निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. अतिथि को जाने के लिए लेखक ने किस-किस तरह से संकेत किया?
उत्तरः अतिथि को जाने के लिए लेखक ने कई तरह से संकेत दिए। लेखक अतिथि के सामने उसे दिखाकर तारीखें बदलता है। तारीखें बदलते समय वह इस बात को दोहराता है कि आज कौन-सी तारीख हो चुकी है। ऐसा करके वह अतिथि को जाने की याद दिलाना चाहता है। इसके अतिरिक्त उसने धोबी को कपड़े देने की अपेक्षा लाॅण्ड्री में कपड़े देने का सुझाव दिया जिससे कपड़े जल्दी धुलकर आ सकें। उसके द्वारा कहे गए ‘जल्दी धुल सकें’ वाक्य में यह भी संकेत था कि अतिथि को शीघ्र अपने घर लौट जाना चाहिए। लेखक ने अतिथि से अपनी नाराजगी दर्शाते हुए उससे गप्पें मारना और साथ में ठहाके लगाना बंद कर दिया। उनके बीच का सौहार्द बोझिल, बोरियत में परिवर्तित हो गया। घर में खाना ‘डिनर’ से चलकर ‘खिचड़ी’ पर आ गया। यह भी एक ठोस संकेत था, अतिथि को वापस भेजने का। इस तरह लेखक ने अतिथि को शीघ्र घर वापस जाने के लिए कई संकेत दिए।
प्रश्न 2. ”बातचीत की उछलती गेंद चर्चा के क्षेत्र के सभी कोनों से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुपचाप पड़ी है“-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः लेखक ने अतिथि से घर-परिवार, दोस्तों, नौकरी, राजनीति, फिल्म, साहित्य, परिवार नियोजन, महँगाई और पुरानी प्रेमिकाओं तक के विषय में काफी बातें कर ली थीं। अब उनके सारे विषय खत्म हो चुके थे। बातचीत रूपी गेंद विषय रूपी कमरे के सारे कोनों को छू आई थी और अब वह शांत पड़ी थी। इस सबका कारण अतिथि का लेखक के घर लंबे समय तक रुकना था। लेखक को लगने लगा था कि यदि अतिथि का मन बातों में ज्यादा ही रम गया तो वह और जम जाएगा और फिर एक ही बात करते-करते उसे बोरियत भी होने लगी थी। इसलिए उनकी बातचीत पर विराम लगा हुआ था। यदि अतिथि समय से खुशी-खुशी चला जाता, तो यह स्थिति कभी उत्पन्न नहीं होती।
प्रश्न 3. "मेरे अतिथि, मैं जानता हूँ कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर मैं भी मनुष्य हूँ। मैं कोई तुम्हारी तरह देवता नहीं। एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। तुम लौट जाओ अतिथि" का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः यदि अतिथि थोड़ी देर तक टिकता है तो वह देवता रूप बनाए रखता है, फिर वह मनुष्य रूप में आ जाता है, और ज्यादा देर तक टिकने पर वह राक्षस का रूप ले लेता है। तब वह राक्षस जैसा बुरा प्रतीत होता है। जब अतिथि तीसरे दिन भी नहीं गया और धोबी से कपड़े धुलाने की बात कहने लगा तो इससे मेहमान के कई दिन और रुकने की सम्भावना हो गई। इसके बाद लेखक अतिथि को देवता न मानकर मानव तथा राक्षस मानने लगा था। उसका अतिथि राक्षस का रूप लेता जा रहा था। भावनाएँ भी अपशब्दों का रूप धारण कर लेती है। मेजबान को गेट आउट तक कहने को विवश होना पड़ा। अतिथि के जल्दी घर जाने में ही उसका देवत्व सुरक्षित है क्योंकि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते।
मनुष्य देवता-स्वरूप अतिथि का आदर सत्कार अधिक दिन तक नहीं कर सकता क्योंकि इस महँगाई के दौर में मनुष्य-रूप में देवता का आदर-सत्कार करते-करते उसके घर का बजट बिगड़ जाता है। आज के समय में अपना परिवार पालना भी कठिन होता है, वहाँ अतिथि का खर्च उठाना पड़े तो मनुष्य का चैन उड़ना स्वाभाविक है।
प्रश्न 4. जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए? क्या यह परिवर्तन सही थे?’ अतिथि तुम कब जाओगे?’ पाठ के आधार पर लिखिए।
अथवा
अतिथि के सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ ?
उत्तरः जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो उसकी आवभगत में कमी आई। लेखक के व्यवहार में परिवर्तन आ गया। सौहार्द धीरे-धीरे बोरियत में बदल गया। शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय खत्म हो गए। बढ़िया लंच और डिनर ने खिचड़ी का स्थान ले लिया। लेखक को अतिथि थोड़ा-थोड़ा राक्षस प्रतीत होने लगा। यहाँ तक कि लेखक का मन उसे गेट आउट कहने को करने लगा। अतिथि के कई दिन तक रुकने पर घर का बजट बिगड़ जाता है। महँगाई के जमाने में जब अपना परिवार पालना कठिन होता है तब अतिथि का खर्च उठाते-उठाते मेहमान के प्रति व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है।
प्रश्न 5. ‘अतिथि देवो भवः’ उक्ति की व्याख्या पर आधुनिक युग के सन्दर्भ में इसका आंकलन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तरः अतिथि देवता के समान होता है। यह कथन पहले के समय में सार्थक था किन्तु आधुनिक युग में यह चरितार्थ नहीं होता है। आज लोगों के पास अपने लिए ही समय नहीं है। वे अतिथियों को कैसे समय दें? आज के लोग कमाने में, अपना भविष्य बनाने में, पढ़ने-पढ़ाने में अधिक ध्यान देने लगे हैं। अतः अब अतिथि के आने पर उनकी खुशी बढ़ती नहीं, बल्कि कम होती है। अतिथि के आने की खबर सुनकर ही चैन उड़ जाता है क्योंकि उसके आने की खबर के साथ ही जेहन में सवाल उठने लगते हैं कि कहाँ उन्हें ठहराया जाएगा? खाने में क्या-क्या बनाना होगा? आदि सवाल अतिथि के आने के पहले ही परेशान करने लगते हैं।
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