इस बार बिहार में एक भयंकर बाढ़ आई। धन की हानि हुई। फसलें नष्ट हो गईं और मवेशी बह गए। अनेक माकन गिर गए। बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अनेक संस्थाएं तत्पर हो गईं। सर्वप्रथम बच्चों और स्त्रियों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। आज भी किसानों की सहायता के लिए कई काम हो रहे हैं। सरकार बीज बाँट रही है जिससे वे नुकसान की भारपाई कर सकें। ऐसी आशा की जाती है कि वे पूरी मेहनत करेंगे और अधिक अन्न उपजाएंगे। ऐसी बाढ़ बिहार में कभी नहीं आई थी।
हिमालय हमारा है। यह भारतीय राष्ट्र का गौरव है। यह हमारे देश का अभिन्न अंग है। भूटान से लेकर कश्मीर तक सम्पूर्ण उत्तरी सीमा पर हिमालय फैला हुआ है। उत्तर बिहार के कुछ गाँवों से हिमालय की चोटियाँ साफ़-साफ़ दिखाई देती हैं। भारत की अनेक नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। भारत के एक बहुत बड़े भाग को इन नदियों ने हरा-भरा बना रखा है। हिमालय ने हमारे देश को बहुत कुछ दिया है। भारत हिमालय के बिना जी नहीं सकता। इसलिए हिमालय की रक्षा हमें हर कीमत पर करनी होगी। हिमालय से बहुत सी नदियाँ भी निकलती हैं। हिमालय भारत की उत्तरी सीमा है तथा यह रक्षक के समान है।
हिमालय हमारा है। यह भारतीय राष्ट्र का गर्व है। यह हमारे देश का एक अटूट हिस्सा है। हिमालय की विस्तार भूटान से लेकर कश्मीर तक है, जो पूरे उत्तरी सीमा पर फैला हुआ है। हिमालय की चोटियाँ उत्तरी बिहार के कुछ गाँवों से दिखाई देती हैं। भारत की कई नदियाँ हिमालय से उत्पन्न होती हैं। ये नदियाँ भारत के एक बड़े हिस्से को हरा-भरा रखती हैं। हिमालय ने हमारे देश को कई चीजें दी हैं। भारत हिमालय के बिना नहीं रह सकता। इसलिए, हमें किसी भी कीमत पर हिमालय की रक्षा करनी होगी। कई नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। हिमालय भारत की उत्तरी सीमा है और यह एक रक्षक की तरह है।
गाड़ी के महंगा होने के कारण इसकी बिक्री घट गयी है। हालाँकि, दूसरे गाड़ियों की कीमतें जस की तस हैं। जो भी हो, गाड़ियों की बिक्री में उतनी कमी नहीं हुई है जितनी लगती है। सरकार दिन-ब-दिन पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ा रही है। इसका एक ही कारण दिया जा सकता है कि लोगों की जीवन शैली उच्चतर हो रही है। उनके पास पैसे आ रहे हैं। धीरे-धीरे देश में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही है। यह हमारे देश की प्रगतिशीलता का सूचक है।
4: हमारे देश में प्रजातंत्र का भविष्य किसी भी अन्य देश के समान, युवावर्ग के हाथों में है। युवाओं की अपने देश के भविष्य में बड़ी भागीदारी होती है और उन्हें भारत को विश्व का एक अग्रवर्ती प्रजातंत्र बनाने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए। हमारी युवा-पीढ़ी से यह अपेक्षा की जाती है कि देश के समक्ष जो नीतियाँ हैं, उनके प्रति समर्पण की एक नई भावना पैदा करें। यह अत्यंत आवश्यक है कि वे महान वट वृक्ष के समान उस संसद के कार्यचालन को समझें और सराहें, जिसकी सुहावनी छत्रछाया के नीचे सभी प्रजातांत्रिक संस्थाएँ फलती-फूलती हैं। उनकी युवा शक्तियों को रचनात्मक, स्वस्थ और उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में लगाने के लिए और यह आश्वस्त करने के लिए कि वे कल के उपयोगी नागरिक बनने के लिए संसदीय प्रकृति और संस्कृति के सर्वोच्च गुणों को आत्मसात करें, यह अति आवश्यक है कि वे आरंभ से ही जनतांत्रिक जीवन पद्धति के अभ्यस्त हो सकें और संसदीय कार्यचालन की प्रक्रियाओं को अच्छी तरह जान सकें।
पुलिस लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिसके लिए तटस्थता और कानून का पालन करना आवश्यक होता है। जब राजनीतिक व्यवस्था में अनिश्चितता उत्पन्न होती है, जैसे कि वर्तमान में हो रहा है, तब पुलिस पर दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ऐसी परिस्थितियों में पुलिस नेतृत्व को अपनी व्यावसायिकता दिखानी होती है। इसे निरंकुशता से बचने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
विभिन्न देशों के अनुभव से पता चलता है कि पुलिस अपनी अनिवार्यता को समझते हुए सामान्य परिस्थितियों में निर्धारित सीमाओं को पार करने की कोशिश करती है। हमने ऐसा कुछ आपातकाल के दौरान और हाल ही में पंजाब में देखा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में, विशेषकर उत्तराखंड आंदोलन के दौरान, इसी तरह का व्यवहार देखा गया। पुलिस इन घटनाओं को अपवाद नहीं कह सकती, क्योंकि ये घटनाएँ विभिन्न पुलिस बलों में लंबे समय से चलती आ रही हैं।
एक बार जब पुलिस तटस्थता के साथ समझौता कर लेती है, तो कानून को प्रभावी और जिम्मेदार तरीके से लागू करने की उनकी क्षमता काफी कम हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि देश में लोकतंत्र के अनुपालन में गंभीर अड़चनें आने लगती हैं।
6: मच्छड़-जनित संक्रमण पुनः राजधानी को अपने चपेट में ले लिया है। स्थिति को समझते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिल्ली के निवासियों को डेंगू ने अपने चपेट में ले लिया है। सरकार ने दिल्ली नगर निगम के लिए फंड मुहैया कराया है, धुंआ फैलाने के काम को तेज कर दिया गया है और जनता में फैले डर पर काबू पाने के लिए अस्पतालों में बेडों की संख्या बढ़ा दी गई है। क्या इसीलिए सरकारी अधिकारी विलंब से कार्रवाई कर रहे थे? क्या इस वर्ष की परिस्थिति को राजधानी नजरअंदाज कर सकती थी? इसका उत्तर राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (NIMR) की रिपोर्ट में निहित है। घरेलू जनित रोकथाम DBC को आठ महीने के बदले साल भर, यानी NIMR की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल से नवंबर तक रिपोर्ट बनानी चाहिए। दिल्ली के नगर निगम में इस तरह की रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था फिर भी धरातल पर यह नाकाफी था।
7: अक्सर हम देखते हैं कि आकाश में उड़ते हुए पंछी अंग्रेजी के ‘वी’ (V) अक्षर का आकार बना लेते हैं ताकि हवा को काटते हुए आसानी से उड़ सकें। अगर उनका कोई साथी पीछे छूट जाता है या उनमें से किसी को चोट लग जाती है, तो समूह के पंछियों में से दो पंछी लौट कर उस छूटे हुए पंछी को अपने साथ लाते हैं। इस तरह, अपने सहज स्वभाव से ही वे एक-दूसरे का साथ देने की प्रवृत्ति प्रकृति के विभिन्न जीवधारियों में होती है। साथ-साथ रहने वाले पशुओं में से एक मर जाए या कहीं और भेज दिया जाए, तो दूसरा कई दिन तक अपनी उदासी मूक रहते हुए भी व्यक्त कर देता है। कभी खाना छोड़कर तो कभी करुण स्वर निकालकर।
8: आज का युग कड़ी प्रतिस्पर्धा का युग है। अतः किसी भी व्यावसायिक संस्था की प्रगति और लाभप्रदता कुछ कर्मचारियों के योगदान पर नहीं, बल्कि प्रत्येक कर्मचारी के योगदान पर निर्भर करती है। ग्राहक-सेवा भी इसका अपवाद नहीं है। हर कर्मचारी को यह समझना होगा कि संस्था की और उसकी प्रगति अच्छी ग्राहक सेवा पर ही निर्भर है।
संस्थान को भी नए विचारों को प्रोत्साहित करने और उन्हें अपनाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। लीक से हट कर उठाए गए कदम व्यावसायिक प्रतिष्ठान को भीड़ से अलग करते हैं, ग्राहकों को आकर्षित करते हैं और उन्हें संस्था से जोड़े रखने में सहायक होते हैं।
अध्ययनों ने इस बात को सिद्ध किया है कि विश्व की नामी और सफलतम कंपनियों ने अपनी ग्राहक-सेवा में निरंतर सुधार के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया है। उनके लिए ग्राहक-सेवा केवल जुबानी जमा-खर्च नहीं बल्कि कंपनी के अस्तित्व का आधार रही है।
वास्तव में, ग्राहक-सेवा के प्रति प्रतिबद्धता से कोई भी व्यापारिक संस्था प्रगति, सफलता और लाभप्रदता के अपने अंतिम लक्ष्य को पा सकती है। जरुरत सिर्फ इस बात को समझने और इस मंत्र को अपनाने की है।
अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयां, नर्सें और लेडी डॉक्टर सभी उपलब्ध हैं। लेकिन देहातों में अभी तक अशिक्षित दाइयों का ही प्रभुत्व है और निकट भविष्य में इस स्थिति में कोई बदलाव की संभावना नहीं है।
बाबू महेशनाथ अपने गाँव के जमींदार थे - एक शिक्षित व्यक्ति और बच्चों के जन्म की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को समझते थे। लेकिन उन्होंने देखा कि ऐसे सुधारों के लिए बाधाओं को पार करने का कोई उपाय नहीं है। कोई भी नर्स गाँव जाकर सेवा करने के लिए राजी नहीं हुई और यदि कोई बातचीत के बाद सहमति भी देती, तो वह इतनी ऊंची फीस मांगती कि बाबू साहब के पास सिर झुका कर लौटने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने लेडी डॉक्टर के पास जाने की हिम्मत नहीं की; उनकी फीस चुकाने के लिए शायद बाबू साहब को अपनी आधी जायदाद बेचनी पड़ती।
इसलिए जब तीन कन्याओं के बाद चौथा बच्चा, एक लड़का, पैदा हुआ, तो फिर वही गूदड़ और वही गूदड़ की बहु। बच्चे अक्सर रात को ही पैदा होते हैं। एक दिन आधी रात को, बाबू साहब के घर से एक सेवक ने गूदड़ के द्वार पर इतनी जोर से आवाज लगाई कि पूरे पड़ोस में हलचल मच गई। इस बार कोई लड़की नहीं थी कि वह मरी आवाज में पुकार सके।