गद्यांश की व्याख्या 'हिन्दी विशेष' के प्रश्न पत्र में 4 अंक का गद्यांश की व्याख्या करने के लिए एक प्रश्न होता है। अधिकांश बच्चे इस प्रश्न को छोड़ देते हैं या आधा-अधूरा हल करते हैं। यह प्रश्न कठिन होते हुए भी सरल है, बच्चों को यह पता नहीं होता कि गद्यांश किस पाठ से लिया गया है, इसके रचनाकार या लेखक कौन हैं, इसलिए उनके लिए यह प्रश्न कठिन होता है। बच्चों की इस कठिनाई को ध्यान में रखते हुए इस भाग में गद्यांश की व्याख्या की तैयारी कैसे करें, इस पर लेख प्रस्तुत किया जा रहा है -
- सबसे पहले पाठ्य-पुस्तक के प्रारंभ में दी गई अनुक्रमाणिका को प्रतिदिन ध्यान से पढ़ें।
- इस खंड में पाठ का नाम, उसकी विधा और रचनाकार का नाम दिया रहता है।
- इस खंड से वस्तुनिष्ठ प्रश्न की तैयारी के साथ-साथ व्याख्या के लिए संदर्भ की तैयारी हो जाती है।
- कुछ पाठ ऐसे हैं जिनसे विगत वर्षों में थोड़ी अंतर से लगातार व्याख्या से संबंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं। जैसे -
- मैं और मेरा देश (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर')
- महापुरुष श्रीकृष्ण (वासुदेव शरण अग्रवाल)
- परम्परा बनाम आधुनिकता (हजारी प्रसाद द्विवेदी)
- गेहूँ और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)
- सच्चा धर्म (सेठ गोविन्द दास)
- बैल की बिक्री (सियाराम शरण गुप्त)
- मातृभूमि का मान (हरिकृष्ण प्रेमी)
- इन पाठों को एक बार ध्यान से अध्ययन करें।
- इन पाठों में व्याख्या के लिए आवश्यक अंश है, उन्हें चिन्हांकित करें।
- उनके मूल भाव को समझें।
व्याख्या लिखते समय ध्यान देनेवाली आवश्यक सामान्य बातें:
- सबसे पहले संदर्भ लिखें। संदर्भ लिखना अत्यंत सरल है, इसके अंतर्गत पाठ का नाम (शीर्षक) और रचनाकार (लेखक) का नाम लिखते हैं।
- प्रसंग लिखें। इसके अंतर्गत लेखक दिए गए गद्यांश में क्या कहना चाहता है, उसका उल्लेख किया जाता है।
- व्याख्या - इसके अंतर्गत गद्यांश में कही गई मुख्य बातों को अपने शब्दों में विस्तार के साथ व्यक्त किया जाता है।
- गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट किया जाता है।
- गद्यांश में प्रयुक्त कठिन शब्दों का सरल अर्थ भी किया जा सकता है।
- विशेष - इसके अंतर्गत गद्यांश की विशेष बात का उल्लेख करते हैं।
- (i) गद्यांश के मूल भाव को एक वाक्य में व्यक्त करना।
- (ii) लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा की विशेषता व्यक्त की जाती है (गद्य में प्रयुक्त भाषा के अनुसार) जैसे -
- भाषा सरल एवं सुबोध है।
- भाषा तत्सम प्रधान साहित्यिक खड़ी बोली है।
- भाषा चुटीली और मुहावरेदार है।
- भाषा भाव की अनुगामिनी और अलंकृत है।
- (iii) शैली के संबंध में विशेष लिखा जाता है।
- (गद्य में प्रयुक्त शैली को ध्यान में रखते हुए) जैसे - 'परम्परा बनाम आधुनिकता' पाठ में शैली की विशेषता इस प्रकार लिखी जा सकती है - वर्णनात्मक एवं विवेचनात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
परीक्षोपयोगी कुछ गद्यांश:
महत्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य को करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है, और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक नवनीत के पाठ "मैं और मेरा देश" से अवतरित है। इसके रचनाकार कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि कार्य से अधिक महत्त्व उसके पीछे छिपी अच्छी भावना का होता है।
व्याख्या - लेखक अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि किसी कार्य की महानता उस कार्य की विशालता से नहीं, बल्कि उस कार्य को करने के मूल में छिपी भावना से है। कहने का आशय यह है कि जीवन में कोई भी कार्य इसलिए महत्वपूर्ण नहीं होता कि वह बड़ा है, अच्छी भावना से किया गया छोटा कार्य भी उससे कहीं अधिक महान हो सकता है।
विशेष - कार्य नहीं, कार्य करने की भावना महत्वपूर्ण होती है, इसे रेखांकित किया गया है। भाषा सरल, सरस एवं सुबोध है। व्याख्यात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
सबसे पहले पाठ्य-पुस्तक के प्रारंभ में दी गई अनुक्रमाणिका को प्रतिदिन ध्यान से पढ़ें। इस खंड में पाठ का नाम, उसकी विधा और रचनाकार का नाम दिया रहता है। इस खंड से वस्तुनिष्ठ प्रश्न की तैयारी के साथ-साथ व्याख्या के लिए संदर्भ की तैयारी हो जाती है।
- कुछ पाठ ऐसे हैं जिनसे विगत वर्षों में थोड़ी अंतर से लगातार व्याख्या से संबंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं। जैसे - मैं और मेरा देश (कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'), महापुरुष श्रीकृष्ण (वासुदेव शरण अग्रवाल), परंपरा बनाम आधुनिकता (हजारी प्रसाद द्विवेदी), गेहूँ और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी), सच्चा धर्म (सेठ गोविन्द दास), बैल की बिक्री (सियाराम शरण गुप्त), मातृभूमि का मान (हरिकृष्ण प्रेमी)। इन पाठों को एक बार ध्यान से अध्ययन करें।
- इन पाठों में व्याख्या के लिए आवश्यक अंश हैं, उन्हें चिन्हांकित करें। उनके मूल भाव को समझें।
व्याख्या लिखते समय ध्यान देने वाली आवश्यक सामान्य बातें -
- सबसे पहले संदर्भ लिखें। संदर्भ लिखना अत्यंत सरल है, इसके अंतर्गत पाठ का नाम (शीर्षक) और रचनाकार (लेखक) का नाम लिखते हैं।
- प्रसंग लिखें। इसके अंतर्गत लेखक दिए गए गद्यांश में क्या कहना चाहता है, उसका उल्लेख किया जाता है।
- व्याख्या - इसके अंतर्गत गद्यांश में कही गई मुख्य बातों को अपने शब्दों में विस्तार के साथ व्यक्त किया जाता है। गद्यांश के मूल भाव को स्पष्ट किया जाता है। गद्यांश में प्रयुक्त कठिन शब्दों का सरलार्थ भी किया जा सकता है।
- विशेष - इसके अंतर्गत गद्यांश की विशेष बात का उल्लेख करते हैं।
- (i) गद्यांश के मूल भाव को एक वाक्य में व्यक्त करना।
- (ii) लेखक द्वारा प्रयुक्त भाषा की विशेषता व्यक्त की जाती है (गद्य में प्रयुक्त भाषा के अनुसार) यथा - भाषा सरल एवं सुबोध है। भाषा तत्सम प्रधान साहित्यिक खड़ी बोली है। भाषा चुटीली और मुहावरेदार है। भाषा भाव की अनुगामिनी और अलंकृत है, आदि।
- (iii) शैली के संबंध में विशेष लिखा जाता है। (गद्य में प्रयुक्त शैली को ध्यान में रखते हुए) यथा - 'परंपरा बनाम आधुनिकता' पाठ में शैली की विशेषता इस प्रकार लिखी जा सकती है - वर्णनात्मक एवं विवेचनात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
परीक्षोपयोगी कुछ गद्यांश
महत्त्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य को करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है, और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक नवनीत के पाठ "मैं और मेरा देश" से अवतरित है। इसके रचनाकार कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बताया है कि कार्य से अधिक महत्त्व उसके पीछे छिपी अच्छी भावना का होता है।
व्याख्या - लेखक अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि किसी कार्य की महानता उस कार्य की विशालता से नहीं बल्कि उस कार्य को करने के मूल में छिपी भावना से है। कहने का आशय यह है कि जीवन में कोई भी कार्य इसलिए महत्वपूर्ण नहीं होता कि वह बड़ा है, अच्छी भावना से किया गया छोटा कार्य भी उससे कहीं अधिक महान हो सकता है।
- कार्य नहीं, कार्य करने की भावना महत्वपूर्ण होती है इसे रेखांकित किया गया है।
- भाषा सरल, सरस एवं सुबोध है।
- व्याख्यात्मक शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है।