प्रसतुत पाठ में भक्त कवि सूरदास ने बालक कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन किया है। सूरदास को बाल मनोविज्ञान का बहुत ही गहरा ज्ञान था। इन पदों में बालक कृष्ण की लीलाओं में सहजता, मनोवैज्ञानिकता और स्वाभाविकता है। यह वर्णन अत्यंत सुंदर, हृदयस्पर्शी तथा सजीव है।
इस पाठ मे संकलित पहले पद में बालक कृष्ण अपनी छोटी चोटी के विषय में परेशान एवं चिंतित दिखाई देते हैं। वे बार-बार माता यशोदा से अपनी चोटी के बारे में पूछते हैं। वे कहते हैं कि बार-बार दूध पीने पर भी यह छोटी है। तुम तो कहती थी कि बार-बार कंघी करने और गूँथने पर यह बलराम की चोटी की तरह लंबी और मोटी होकर जमीन पर लोटने लगेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। तुम मुझे बार-बार कच्चा दूध देती हो। बालक कृष्ण की ऐसी बातें सुनकर माता यशोदा उनकी और बलराम की जोड़ी बनी रहने का आशीर्वाद देती हैं।
दूसरे पद में बालक कृष्ण की शरारतों से तंग एक गोपी माता यशोदा से उनके व्यवहार की शिकायत करती है। वह कृष्ण की करतूतों के बारे में बताती है कि दोपहर में घर को सुनसान समझकर कृष्ण घर में आ गए छींके पर रखा दूध-दही उन्होंने खुद भी खाया और ग्वालबालों को भी खिलाया। वह माता यशोदा से कहती है कि तुमने ही ऐसा अनोखा पुत्र पैदा किया है। तुम इसे मना क्यों नहीं करती हो।
सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्व है लाँबी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिन सी भुइँ लोटी।
काँचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी।
सूर चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।।
शब्दार्थ—
पृष्ट : कबहिं—कब। चोटी—चुटिया। किती बार—कितनी बार अर्थात अनेक बार। पियत—पीते हुए। अजहूँ—आज भी। बल—बलराम। बेनी—बेणी, चोटी। ज्यों— जैसी समान, तरह। हवै है—हो जाएगी। लाँबी—लंबी। काढ़त—कंघी करते हुए। गुहत—गुँथे हुए। न्हवावत—नहलाते हुए, धोते हुए। भुइँ—ज़मीन। लोटी—लोटना। काँचौ—कच्चा। पियावत—पिलाती हो। पचि-पचि—रोज़-रोज़। देति—देती। चिरजीवौ—लंबे समय तक जीये, चिरंजीव रहो। दोउ—दोनों। हरि—श्री कृष्ण। हलधर— बलराम। जोटी—जोड़ी।
प्रसंग—प्रस्तुतपद हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत, भाग-3* में संकलित कविता सूरदास के पद* से लिया गया है इसके रचयिता सूरदास हैं। इस पद में बालक कृष्ण स्रद्ध स्वाभाविक जिज्ञासा एवं बाल-सुलभ क्रियाओं का वर्णन किया गया है, जिसमें वे माता यशोदा से शिकायत कर रहे हैं।
व्याख्या—बालक कृष्ण माता यशोदासे कह रहे हैं कि हे माँ मेरी चोटी कब बढ़ेगी अर्थात कब बड़ी होगी। तुमने तो आश्वासन दिया था किमेरी
चोटी बड़ी हो जाएगी, परआज भी यह छोटी ही है। ऐसे में कृष्ण माता यशोदा से पूछते हैं कि मैं तो का.फी दिनों से दूध पी रहा हूँ, फिर भी यह छोटी-की चोटी ही है । हे माँ! तू तो कहती थी कि यह बलदेव भैया की चोटी की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी तथा बार-बार नहलाते, धोते, कंघी करते,गुंथे हुए नागिन के समान ज़मीन पर लोटने लगेगी। माँ! तुम मुझे कच्चा दूध बार-बार, रोज पिलाती द्दस् पर मुझे मक्खन-रोटी खाने को नहीं देती हो। सूरदास कहते हैं कि बालक कृष्ण की ऐसी बातें सुनकर माता यशोदा उन्हें आशीर्वाद देती है कि कृष्ण और बलराम की यह जोड़ी हमेशा चिरंजीव रहे।
विशेष
प्रश्न (क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए्र
उत्तर : कवि का नाम—सूरदास।
कविता का नाम—सूरदास के पद।
प्रश्न (ख) कृष्ण माता यशोदा से क्या पूछ रहे हैं?
उत्तर : कृष्ण माता यशोदा से पूछ रहे हैं कि उनकी चोटी कब बड़ी होगी।
प्रश्न (ग) माता यशोदा ने कृष्ण स्रद्मह्य क्या स्रद्दद्म था?
उत्तर : माता यशोदा ने कृष्ण को बताया था कि बार-बार कंघी करते, काढ़ते-गँूथते बलराम की चोटी की तरह उनकी चोटी भी लंबी और मोटी हो जाएगी।
प्रश्न (घ) यशोदा उन्हें खाने में क्या देती थीं? उन्हें क्या अधिक पसंद था?
उत्तर : यशोदा, कृष्ण को पीने के लिए बार-बार कच्चा दूध देती थीं जबकि कृष्ण को माखन-रोटी खाना पसंद था।
प्रश्न (ङ) यशोदा कृष्ण को क्या आशीर्वाद देती हैं?
उत्तर : यशोदा कृष्ण को आशीर्वाद देती हैं कि तुम्हारी और बलराम की जोड़ी चरंजीवी रहे।
2.
तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो, ढूँढि़-ढँढोरी आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध-दही सब सखनि खवायौ।
ऊखल चढि़, सींके कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढरकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढोटा कौनस्ड्ड ढँग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै, तैं ही पूत अनोखौ जायौ।।
शब्दार्थ—
पृष्ठ: तेरैं—तुम्हारे। लाल—बेटा। दुपहर—दोपहर। दिवस—दिन। जानि—जानकर, समझकर। सूनो—सुनसान।ढूँढि़-ढँढोरी—खोज-खोजकर। आपही—अपने-आप। किवारि—दरवाज्जा। पैठि—बैठकर। मंदिर—घर। मैं—में। सखनि—मित्रों । खवायास्—खिलाया। ऊखल—ओखली। चढि़—चढक़र। सींके—छींका, जिसमें दूध-दही जैसे खाद; पदार्थ टाँगे जाते हैं। लीन्हौ—ले लिया। अनभावत—जो अच्छा नहीं लगा। भुइँ—ज़मीन। ढरकायौ—बिखेर दिया। गोरस—दूध से बने पदार्थ, मक्खन, दही आदि। ढोटा—बेटा। कौने—किस तरह। लायौ—बनाया या सिखाया। हटकि—मना करके। तैं—तू। पूत—पुत्र। अनोखौ—निराला। जायास्—पैदा किया है।
प्रसंग—प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत, भाग-3* में संकलित सूरदास के पद* से लिया गया है इसके रचयिता सूरदास हैं। इस पद में कृष्ण की शरारतों से परेशान एक गोपी दवारा माता यशोदा से शिकायत करने का चित्रण है।
व्याख्या—श्रीकृष्ण चोरी स्रद्भशह्यक्त गोपियों के घर द्यह्य दूध, मक्खन आदि खा जाते थे। उनकी इस आदत से परेशान एक गोपी माता यशोदा से शिकायत करती हुई कहती है कि तुम्हारे पुत्र कृष्ण ने मेरा माखन खा लिया है। दोपहर के समय घर को सुनसान जानकर यह घर के अंदर घुस आया। दूध-दही स्वयं भी खाया और अपने सभी साथियों को भी खिलाया। ओखली पर चढक़र छींके पर रखी मटकी उतार ली। खाने के बाद जो अच्छा न लगा उसे ज्जमीन पर फैला दिया। हे यशोदा! पता नहीं तुमने इसे क्या सिखाया है कि यह प्रतिदिन दूध-दही की हानि करता रहता है। सूरदास कहते हैं कि गोपी यशोदा से कहती है कि तुम इसे मना क्यों नहीं करती। लगता है कि तुमने ही अनोखा पुत्र पैदा किया है्र
विशेष
प्रश्न (क) गोपी यशोदा के पास क्यों आई थी?
उत्तर : गोपी यशोदा के पास श्रीकृष्ण की शिकायत लेकर आयी थी क्योंकि श्रीकृष्ण उसके दूध-दही का नुकसान करते थे।
प्रश्न (ख) श्रीकृष्ण कब, किसके घर गए और क्यों?
उत्तर : श्रीकृष्ण दोपहर के समय गोपी के घर गए ताकि उस सुनसान समय में वे दही-मक्खन खा सकें।
प्रश्न (ग) गोपी ने कृष्ण की शिकायत किस प्रकार की?
उत्तर: गोपी ने कहा कि यह दोपहर के सुनसान समय में आ जाता है। ओखली के सहारे छींके पर रखा दूध-दही उतारकर खुद भी खाता है और साथियों को भी खिलाता है फिर बचा हुआ दूध दही ज़मीन पर फैला देता है।
प्रश्न (घ) गोपी यशोदा पर क्या आरोप लगाती है?
उत्तर : गोपी यशोदा पर आरोप लगाती है कि तुमने अपने पुत्र को क्या सिखाया है। इसे मना क्यों नहीं करती। लगता है कि तुमने ही अनोखा पुत्र पैदा किया है!
प्रश्न (ङ) कृष्ण ऊँचाई पर रखे छींका तक कैसे पुहंचे?
उत्तर : श्रीकृष्ण ओखली पर चढ़ गए और ऊंचाई पे रखे छींके तक पुहंचे |
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