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पाठ का सारांश: महापरिनिर्वाण | Hindi Class 8 PDF Download

प्रस्तुत पाठ संक्षिप्त बुद्धचरित पुस्तक से लिया गया है | इस अध्याय में महात्मा बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति का उल्लेख है, जिसे बौद्ध ग्रंथों में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है | प्रस्तुत अध्याय के अनुसार गौतमबुद्ध ने जब निर्वाण की ओर जाने की बात कही और संसार से देह त्याग कर मृत्यु लोक की ओर अग्रसर होने के लिए संदेश दिया तब आम्रपाली बुद्ध के पास आयी और भगवानबुद्ध के उपदेश सुनकर और उन्हें भिक्षा के लिए निमंत्रण देकर उन्हें अपने घर आने का आग्रह किया | जब भगवान बुद्ध ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया तब आम्रपाली उनसे विदा लेकर वापस आ गई। तभी लिच्छवी सामन्तों को पता चला कि भगवान बुद्ध आम्रपाली के उद्यान में विराजमान हैं। फिर वे सभी भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए निकल गए |  अपनी-अपनी सवारी सजाकर और उनके पास जाकर उनको नमस्कर करके जमीन पर बैठ गए। बुद्ध ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा कि धर्म में आप लोगों की श्रद्धा आपके राज्य, बल और रूप से भी अधिक मूल्यवान है। मैं जनता को भाग्यशाली मानता हूँ कि उन्हें आप जैसा राजा मिला है। आप सभी अहंकार को भूल कर ज्ञान को प्राप्त कीजिए |  उन्होंने भगवान बुद्ध का उपदेश सुनकर उन्हें सर झुकाकर प्रणाम किया और उन्हें भिक्षा के लिए  निमंत्रण दिया, किन्तु उन्होंने बताया कि वे आम्रपाली का निमंत्रण पहले ही स्वीकार कर चुके हैं। यह सुनकर लिच्छवियों को बुरा तो लगा लेकिन महामुनि के उपदेशों के कारण वे शांत होकर घर चले गए | 

प्रातः काल आम्रपाली ने महामुनि का अतिथि सत्कार किया और भगवान बुद्ध आम्रपाली से भिक्षा लेकर चार मास के लिए वेणुमती नगर चले गए। वर्षा काल के बाद वैशाली वापस आकर वे मर्कट नामक सरोवर के तट पर निवास करने लगे। जब वे एक वृक्ष के नीचे बैठे थे तो मार ने आकर उन्हें कहा कि हे महामुनि अब आपके निर्वाण का समय आ गया है। आप बहुतों को मुक्त कर चुके हैं और कई तो मुक्ति के मार्ग पर हैं उन्हें भी मुक्ति मिल जाएगी। तब तथागत ने कहा कि तुम चिंता मत करो मैं आज से तीसरे माह निर्वाण प्राप्त करूँगा मैं प्रतिज्ञा पूरी कर चुका हूँ। यह सुनकर मार बहुत प्रसन्न हुए और चले गए। मार के जाने के बाद महामुनि अपने प्राण वायु को चित्त में ले गए और उसे चित्त से जोड़कर योग साधना द्वारा समाधि प्राप्त की।

 उनके समाधि से पृथ्वी कापने लगी, चारों ओर गरजन होने लगी, उल्का पात होने लगा, प्रलयकालीन हलचल मच गई , इस प्रकार मृत्यु लोक, दिव्यलोक और आकाश में हुई हलचल के कारण महामुनि ने समाधि से निकल कर कहा कि- आयु से मुक्त मेरा शरीर अब जर्जर हो गया यह उस रथ के समान है जिसकी धुरी नहीं होती। मैं इसे बस अपनी योगबल के सहारे ढो रहा हूँ | 

भगवान बुद्ध के शिष्य आनन्द ये सब हलचल देखकर बेहोश हो गए | कुछ देर बाद जब उनको होश आया तो उसने महामुनि से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अब धरती में मेरा निवास का समय पूरा हो गया है | आज से तीन माह बाद में निर्वाण को प्राप्त कर लूँगा। ये सब सुनकर आनन्द को आघात हुआ वो दुखी हो गया और विलाप करने लगा। फिर भगवान बुद्ध ने उसे कहा कि तुम्हें मैंने सब सीखा दिया है | अब तुम्हें ही मेरे द्वारा चलाए गए इस धर्म को आगे बढ़ाना है। कोई भी प्राणी अमर नहीं है तुम्हें इसे समझना होगा। इसी बीच लच्छीवियों को यह सूचना मिली और वे बुद्ध से मिलने आए, उन्हें प्रणाम किया और विलाप करने लगे उन्हें भी महामुनि ने उपदेश दिया कि यह प्रकृति का नियम है | शरीर तो क्षण भंगुर है इसे तो देह त्याग कर जाना ही होगा। और वे उत्तर दिशा की ओर चले गए। जैसे ही वे वैशाली को छोड़ कर गए वहाँ राहु से ग्रसित सूर्य की तरह प्रभा शून्य हो गया उस रात वैशाली में किसी के घर भोजन नहीं बना |  सभी दुखी थे और उनके पीछे गए लोग वापस आ गए। बुद्ध ने वैशाली को मुड़ कर देखा और कहा कि अब मैं यहाँ कभी वापस नहीं आऊँगा। और वे भोगवती नगरी की ओर चल पड़े यहाँ कुछ समय रहने के बाद अपने अनुयायियों को उपदेश देकर की आप सभी धर्म का अनुसरण करें मैने जो सिखाया है वे सब विनय है। और जिसमें विनय नहीं है उसका अनुसरण ना करे। इसके बाद वे पापा पुर की ओर प्रस्थान किए | वहाँ मल्लों ने उनका उत्सव के साथ स्वागत किया। उन्होंने वहाँ अपने शिष्य चन्दू के घर अंतिम भोजन किया। और चन्दू को उपदेश देकर कुशीनगर की ओर प्रस्थान कर चले गए। भगवान बुद्ध ने चन्दू के साथ इरावती नदी पार कर एक सुंदर उपवन में सरोवर के तट पर कुछ देर आराम किया। उसके बाद भगवान बुद्ध हिरण्यवती नदी में स्नान किया और आनंद को आदेश दिया कि हे आनन्द, इन दोनों साल वृक्ष के बीच मेरे लिए शयन तैयार करो, हे महाभाग ! आज रात्रि के उत्तर भाग में तथागत निर्वाण प्राप्त करेंगे। आनंद ने शयन तैयार के उन्हें अनुग्रह कर लेटने को कहा। हे भगवन शयन तैयार है महामुनि हाथ का तकिया लगाकर , एक पैर पे दूसरा पैर रखकर , शिष्यों के उन्मुख दायीं करवट लेकर लेट गए। उस वक्त सारा संसार निःशब्द था पशु-पक्षी मौन हो गए। शिष्यों को अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने की शीघ्रता होने लगी। 

भगवान बुद्ध ने आंनद को कहा हे आनंद तुम मल्लों को मेरे प्रयाण की सुचना दे तो ताकि वो भी निर्वाण देख लें, बाद में उन्हें पश्चाताप न हो। सूचना सुनते ही मल्लों ने आँसू बहाते हुए भगवान चरणों में पहुँच गए । सब को दुखी देखकर भगवान ने कहा आनंद के समय दुखी होना ठीक नहीं है। यह तो मेरा सौभाग्य है, जो आज मुझे यह अवसर मिला है | भगवान बुद्ध सबको समझा कर धर्म के मार्ग पर चलने का उपदेश दिए। अब सभी मल्लों ने महामुनि का दर्शन किया उनको प्रणाम करते हुए उनके उपदेश का पालन करते हुए घर वापस जाने लगे | 

मल्लों के जाने के बाद सुभद्रा नाम का एक त्रिदंडी सन्यासी उनसे मिलने आया | आनंद ने उसे भगवान से मिलने को मना किया लेकिन भगवान बुद्ध ने उसे पास आने की अनुमति दे दी सुभद्रा सुगत के पास गया और उन्हें सविनय प्रणाम करते हुए बोला कि  हे भगवन, मैंने सुना है कि आपने जो मोक्ष का मार्ग अपनाया है वह सबसे अलग है |   कृपापुंज हव मार्ग कैसा है मुझे भी बताने की कृपा करें, मैं जिज्ञासु होकर यहाँ आया हूँ | विवाद के लिए नहीं | सुभद्रा के प्रार्थना करने पर तथागत ने उन्हें अष्टांग मार्ग के बारे में बताया यह सुनकर वह बहुत खुश हुआ | जैसे किसी राहगीर को भटका रास्ता मिल गया हो । सुभद्रा ने भगवान से कहा कि आपका दर्शन मात्र मेरे लिए नहीं होगा | अतः आप आज्ञा दीजिए की पहले मैं निर्वाण को प्राप्त कर लूँ और आदेश मिलते ही वह शैल की तरह बन गए भगवान ने शिष्यों को उनके अन्तिम संस्कार का आदेश दिया और कहा कि सुभद्रा मेरा अंतिम और उत्तम शिष्य था। 

अब आधी रात को भगवान ने सभी शिष्यों को बुलाया अंतिम उपदेश दिया-उन्होंने कहा मेरे निर्वाण के बाद आप सब को इस प्राति मोक्ष को ही अपना आचार्य प्रदीप मानना चाहिए। आपको उसी का स्वाध्याय करना चाहिए | आचरण करना चाहिए वही मोक्ष प्राप्त का साधन है। उन्होंने सारे नियम बताए और कहा कि मैंने गुरु का कर्त्तव्य निभाया है | अब आप लोग साधना करो विहार, वन पर्वत जहाँ भी रहो धर्म का आचरण करो | यदि मेरे बताए आर्यों में कोई शंका हो तो पूछ लो। सभी मौन बैठे रहे। अनिरुद्ध ने कहा कि हमें कोई भ्रम नहीं है। अनिरुद्ध से भगवान ने कहा कि सभी की मृत्यु निश्चित है | अब मेरे संसार में रहने से कोई काम नहीं | स्वर्ग और भू लोक में जो भी दीक्षित होने योग्य थे वे हो गए। अब इन्हीं के द्वारा मेरा धर्म जनता में प्रचलित होगा। और संसार में स्थायी शांति होगा | तुम लोग शोक त्याग कर जागरूक रहो मेरा यही अंतिम वचन है | 

यही कहकर भगवान बुद्ध ध्यान के माध्यम से सदा के लिए शांत हो गए। यह संदेश सुनकर सभी आकाश के देवतागणों ने उन्हें पुष्प श्रदांजलि अर्पित की और कहा कि यहाँ सभी नश्वर है। यह संदेश सुनकर सभी मल्लों ने रोते हुए भगवान के पास आ पहुँचे। मल्लों ने उनके शव को सुंदर स्वर्णिम शिविका में स्थापित किया । सुंदर फूलों से सजाया। उनके शव-शिविका को मध्य नगरी से लेकर हिरण्यवती नदी पार कर ले गए उनके मुकुट चैत्य के पास चंदन, अरुग तथा वल्कल आदि से चित्त बनाई और दिया जलाकर उनको अग्नि दिया गया | लेकिन उनका शव जल नहीं रहा था | जब उनके प्रिय शिष्य काश्यप पहुँचे भगवान को दण्डवत प्रणाम किया और अग्नि दी तो उनका शव जल गया।। अब भगवान बुद्ध के अस्थियों को धोकर उसे स्वर्णकलश में रखा दिया। भगवान बुद्ध के अस्थियों को मंगलमय और अमुल्य माना गया |  आस पास के राजाओं ने दूत भेजे | उनके अस्थियों को अपने राज्य ले जाने के लिए लेकिन मल्लों ने मना कर दिया। इस बात से 7 राज्य के राजा नाराज होकर युद्ध के लिए तैयार हो गए | इधर मल्लों ने भी युद्ध की तैयारी कर ली | सभी राजाओं ने चारों तरफ से मल्लों को घेर लिया। इसी बीच एक ब्राह्मण ने राजाओं को समझाया कि युद्ध उसका उचित उपाय नहीं है | शान्त होकर इसका मार्ग निकालना चाहिए नहीं तो अनर्थ हो जाएगा। राजाओं ने ब्राह्मण की बात मान ली फिर उस ब्राह्मण ने मल्लों  को भी समझाया और शान्ति से बात का हल निकल गया | उनके अस्थियों का विभाजन करके 8 भाग कर दिया गया 7 राजाओं ने अपने-अपने राज्यों में बुद्धस्तूप बनवाए और एक मल्लों ने स्तुप बनाया |  इस तरह से उनके अस्थियों के 8 स्तूप का निर्माण हुआ | उस ब्राह्मण ने जिस कलश में शव रखे थे उसे लेजाकर स्तूप का निर्माण किया 10 वां स्तूप उनके रखों से बना इस तरह से स्तूप बनाकर उनकी पूजा-अर्चना कर अंखड ज्योति जलाई। इसके बाद भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह करने का कार्य आनंद को सौंपा गया क्योंकि उन्होंने भगवान के सारे उपदेश सुने थे | उन्होंने आगे का कार्य सम्भाला और धर्म का प्रचार-प्रसार किया | 

कालांतर में देवनाम प्रियदर्शी का जन्म हुआ। उन्होंने जनहित के लिए धातू गर्भित स्तुपों से धातु लेकर बहुत सारे स्तुपों का निर्माण करवाया। इस कारण उन्हें चण्ड अशोक, धर्म राज अशोक कहा जाने लगा। उनका कहना था कि भगवान बुद्ध से ज्यादा पूज्य और कौन हो सकता है, जिसने जन्म, जरा, व्यधि, और मृत्य से स्वयं मुक्त होकर सारे संसार को मुक्ति का मार्ग दिखाया है। इस तरह से भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थियों को जगह-जगह स्तूप के रूप में स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है...| 

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