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पाठ का सारांश - सुदामा चरित, हिंदी, कक्षा - 8 | Hindi Class 8 PDF Download

पाठ का सारांश

इस पाठ में श्री कृष्ण और सुदामा के माध्यम से सच्ची मित्रता का मर्मस्पर्शी उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। इनकी मित्रता को सच्ची मित्रता के आदर्श रूप में देखा जा सकता है। ऐसी मित्रता जो अनुकरणीय है। वर्तमान संदर्भ में यह मित्रता और भी महत्वपूर्ण बन जाती है, जब व्यक्ति बुरे समय में अपने मित्र को पहचानने से भी इनकार कर देता है। श्री कृष्ण ने बुरे समय में सुदामा की मदद करके उनको अपने ही समान बना दिया।

इस कविता में श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का वर्णन है। श्री कृष्ण और सुदामा बाल-सखा थे ऋषि संदीपनि के आश्रम में पढऩेवाले गुरुभाई थे। कालांतर में श्री कृष्ण दवाराकाधीश बने और सुदामा अत्यंत गरीब हो गए। सुदामा अपनी पत्नी को अपनी तथा कृष्ण की मित्रता के बारे में बता चुके थे। सुदामा कृष्ण से कोई मदद नहीं माँगना चाहते थे पर अपनी पत्नी के समझाने-बुझाने पर वे फटेहाल स्थिति में दवारका स्थित श्री कृष्ण के भवन जा पहुँचे जहाँ उनको ऐसी हालत में देखकर दवारपाल ने उनको दरवाज़े पर ही रोक दिया। उसने जाकर श्री कृष्ण स्रद्मह्य सुदामा की दीन-दशा तथा फटे कपड़ों आदि के बारे में बताया तथा यह भी कहा कि वह अपना नाम सुदामा बताते हैं। वह चकित होकर आपके भवन को देखे जा रहा है। दवारपाल के मुख से सुदामा नाम सुनते ही श्री कृष्ण के मन में ना जाने क्या आया कि वह सारा काम-काज छोडक़र सुदामा से मिलने को नंगे पैर ही दौड़ पड़े। वे भावुक होकर सुदामा से मिलते हैं। उनके काँटे चुभे पाँवों तथा उनमें फटी बिवाइयाँ देखकर कृष्ण बहुत दुखी होते हैं। कृष्ण सुदामा की ऐसी दयनीय हालत देखकर रो उठते हैं।उसी समय वे सुदामा दवारा ,एक पोटली को छिपाते हुए, देख लेते हैं। वे सुदामा को बचपन की उस घटना की याद दिलाते हैं, जब सुदामा गुरुमाता दवारा दिए गए, चने को अकेले खा गए थे। उन्होंने सुदामा से यह भी कहा कि चोरी की आदत में तो आप बड़े ही कुशल हैं कृष्ण ने सुदामा की सेवा तो बहुत की, पर विदाई के समय उन्होंने नकद कुछ भी नहीं दिया। दवारका से आते समय सुदामा बहुत खीज रहे थे। वे कृष्ण के बचपन की आदतें याद करते हुए कहते हैं, अरे! यह वही कृष्ण है जो तनिक-सी दही के लिए, घर-घर चोरी करता फिरता था। आज यह दवारका का राजा भले ही बन गया है, पर है तो वही कृष्ण। यही सोचते-खीजते सुदामा अपने गाँव पहुँच गए, किंतु वहाँ चारों ओर दवारका जैसा ही धन-वैभव, राजमहल आदि देखकर चकित एवं भ्रमित हो जाते हैं कि कहीं वे वापस दवारका तो नहीं आ गए हैं। वे सारे गाँव में खोजकर थक गए, पर अपनी टूटी झोंपड़ी को नहीं खोज पाए। सुदामा अपनी झोंपड़ी के बारे में सबसे पूछते फिर रहे थे। कृष्ण की कृपा से सुदामा की दशा बदल चुकी थी। नंगे पाँव रहनेवाले सुदामा केदवार पर अब गजराज खड़े थे। कठोर धरती पर रात बितानेवाले को अब कोमल सेज पर भी नींद नहीं आती थी। इस प्रकार श्री कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र की दशा बदलकर मित्रता का ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसे सुदामा जान भी न सके तथा उनकी विपन्नता संपन्नता में बदल गई।

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FAQs on पाठ का सारांश - सुदामा चरित, हिंदी, कक्षा - 8 - Hindi Class 8

1. सुदामा कौन थे?
उत्तर: सुदामा भगवान श्रीकृष्ण के शिष्य और एक गरीब ब्राह्मण थे।
2. सुदामा के प्रति भगवान श्रीकृष्ण का कैसा भाव था?
उत्तर: भगवान श्रीकृष्ण सुदामा के प्रति अत्यधिक स्नेह और प्रेम रखते थे। वे सुदामा के दर्दों को समझते थे और उन्हें सम्मान देते थे।
3. सुदामा के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं क्या थीं?
उत्तर: सुदामा की जीवन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं - उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मुलाकात की, उन्हें अपने घर बुलाया और उन्हें पूरे दिल से स्वागत किया। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपने अत्यंत गरीब हालात में भी अपने घर के आखिरी टुकड़े से दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें धन की आवश्यकता से मुक्ति दी और उन्हें सम्मान दिया।
4. सुदामा के प्रयासों और उनकी ईश्वर भक्ति को ध्यान में रखते हुए, उनसे हम क्या सीख सकते हैं?
उत्तर: सुदामा के प्रयासों और ईश्वर भक्ति से हम यह सीख सकते हैं कि जीवन में सफलता के लिए हमें समानता, करुणा और दया जैसे गुणों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। इन गुणों के साथ हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए और भगवान की भक्ति में रहना चाहिए।
5. सुदामा चरित किस प्रकार के लोगों के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है?
उत्तर: सुदामा चरित वह उदाहरण है, जो हमें बताता है कि जीवन में धन, सम्मान और समृद्धि के लिए हमें ईश्वर की भक्ति और अधिक से अधिक अहंकार नहीं बल्कि गुणों का उपयोग करना चाहिए। यह कहानी उन लोगों के लिए भी प्रेरणादायक है जो अपने दोस्तों या परिवार के साथ अपने समृद्धि का विभाजन करने में लगे रहते हैं।
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