HPSC (Haryana) Exam  >  HPSC (Haryana) Notes  >  Course for HPSC Preparation (Hindi)  >  भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि

भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि | Course for HPSC Preparation (Hindi) - HPSC (Haryana) PDF Download

कोरोना पैनडेमिक को देखते हुए कहा जा रहा है कि भारत में कृषि द्वारा ही देश का आर्थिक पुनरुद्धार संभव है। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्याएँ जिनका सामना किया गया, वे थीं:

  • सप्लाई चेन में व्यवधान
  • बाज़ार-पहुँच की समाप्ति
  • मंडियों का बंद होना
  • उपभोक्ता खाद्य मांग में कमी

इस दौरान सरकार द्वारा कृषि समस्याओं को दूर करने हेतु कई कदम उठाए गए एवं आशा व्यक्त की गई कि शायद इससे देश के आर्थिक पुनरुद्वार को बल मिले। कृषि का महत्त्व सिर्फ वर्तमान में ही नहीं, अपितु इसे मानव सभ्यता का मूलाधार माना जाता है।

जो चातक की तरह ताकता है बादल घने कजरारे जो भूखा रहकर, धरती चीरकर जग को खिलाता है जो पानी वक्त पर आए नहीं तो तिलमिलाता है अगर आषाढ़ के पहले दिवस के प्रथम इस क्षण में वही हलधर अधिक आता है, कालिदास के मन में तू मुझको क्षमा कर देना।

हिंदी के प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र की उक्त पंक्तियाँ कृषि की स्थिति और इसके महत्त्व को सटीकता से निरूपित करती हैं। भारत की पारंपरिक कृषि पर्यावरण हितैषी थी एवं उस समय कृषि पशुपालन पर आधारित थी, जिसके कारण किसानों की लागत काफी कम होती थी। उत्पादन भी इतना था कि जीवन-यापन आराम से हो सके। उस समय के कृषि उत्पादों की गुणवत्ता भी अच्छी थी। हालाँकि कृषि में तकनीकी के प्रवेश ने किसानों के आगत में वृद्धि की, लेकिन इससे भूमि तथा कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में कमी आई।

आधुनिक तकनीकी ने उस कृषि अपशिष्ट को खेत में ही जलाने को मजबूर कर दिया, जो कि पशुओं का आहार था। गोबर खाद के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग ने भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर दिया। हरित क्रांति ने फसल विशेष के उत्पादन में वृद्धि तो की, लेकिन अनेक समस्याओं को भी जन्म दिया। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की समस्या के साथ इस क्षेत्र द्वारा कई प्रकार की चुनौतियों का सामना किया जा रहा है। इन चुनौतियों में शामिल हैं:

  • आधारभूत संरचना का अभाव
  • सीमित निवेश
  • उत्पादकता में कमी
  • साख की कमी
  • मौसम आधारित कृषि एवं वाणिज्यीकरण का अभाव
  • तकनीकी अलगाव
  • नवाचार, शोध एवं अनुसंधान की कमी

भारतीय कृषि की समस्याओं के संदर्भ में सबसे निर्णायक बिंदु मानसून पर निर्भरता है। भारत में वर्षा की स्थिति न सिर्फ अनियमित है, बल्कि अनिश्चित भी है। वर्षा की अधिकता के कारण आँधी, बाढ़, तूफान, कीटों का प्रकोप जैसी आपदाएँ जन्म लेती हैं, जिसके कारण भारतीय किसानों को क्षति उठानी पड़ती है। विडंबना यह है कि इन समस्याओं का अभी तक कोई समुचित हल नहीं ढूँढा गया है एवं न ही कोई सुनिश्चित तंत्र विकसित हो पाया है। परिणामतः कृषक तमाम उद्यम के बावजूद निर्धनता का संजाल नहीं तोड़ पाए हैं।

देश में सिंचाई के वैकल्पिक साधन मौजूद हैं, लेकिन इनका वितरण बहुत ही असमान एवं अविकसित है। साथ ही सीमांत एवं छोटी जोतों तक इनकी पहुँच भी सुनिश्चित नहीं है। अन्य समस्या है भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षीण होना, जो कि सदियों से एक ही भूमि पर कृषि करने का परिणाम है। भू-क्षरण एवं जल रिसाव की समस्या ने भी देश में मृदा की उर्वरा शक्ति को क्षीण किया है। साथ ही रासायनिक खादों के अंधाधुंध एवं अनियोजित प्रयोग से भूमि की उत्पादकता लगातार कम हो रही है। जोतों का लगातार छोटा होना भी कृषि की प्रमुख समस्या है।

दोषपूर्ण भू-स्वामित्व और असमान वितरण प्रणाली ने कृषि को पूरी तरह से नुकसान पहुँचाया है। कृषि भारत की अधिकांश जनता की आजीविका का साधन है। कृषि पर जनसंख्या वृद्धि का दबाव सहज ही महसूस किया जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय कृषि में सर्वाधिक छिपी और मौसमी बेरोज़गारी पाई जाती है। भारतीय कृषि में शिक्षा का नितांत अभाव पाया जाता है। अशिक्षा के कारण किसान अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते। अशिक्षा के चलते ही किसानों में संगठनात्मक प्रवृत्ति का अभाव है। असंगठित क्षेत्र होने के कारण किसान प्रशासन और नीतियों का फायदा नहीं उठा पाते एवं शोषित होते रहते हैं।

किसानों की बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के मूल में सूदखोरों द्वारा उच्च ब्याज दर पर दिया गया ऋण होता है। कृषि उत्पादन कम होने के कारण ऋण न चुका पाने की स्थिति में किसान विवशता में मृत्यु का वरण करता है। हाल के दिनों में कर्ज़माफी द्वारा किसानों को कर्ज़ की समस्या से तुरंत राहत प्रदान करने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। लेकिन कर्ज़माफी किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है। कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे किसान कर्ज़ लेने को मजबूर ही न हो।

गांधी जी ने कहा था कि स्थान विशेष की समस्या का समाधान उस स्थान विशेष पर ही खोजा जा सकता है। विदेशी पद्धति का अनुसरण करने पर तात्कालिक राहत तो मिल सकती है, लेकिन पूर्ण समाधान संभव नहीं है। वर्तमान में मौजूद चुनौतियों के समाधान हेतु सिंचाई व्यवस्था का विस्तार, आधारभूत संरचना का विकास, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ विषमता में कमी लाने तथा कृषि क्षेत्र में संतुलन स्थापित करने हेतु दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है, जिसे ‘इंद्रधनुषी क्रांति’ का नाम दिया गया है।

इसके तहत कृषि क्षेत्र के विविधीकरण के साथ गेहूँ एवं चावल के उत्पादन के अलावा अन्य फसलों के उत्पादन पर बल दिया जाना है, जैसे:

  • जूट उत्पादन
  • दालों का उत्पादन
  • मोटे अनाज का उत्पादन

वर्तमान में कृषि क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक मानव श्रम संलग्न है। अतः इस क्षेत्र से अतिरिक्त श्रम बल का स्थानांतरण कृषि संबद्ध क्षेत्रों में किया जाना चाहिए, जैसे:

  • पशुपालन
  • डेरी उद्योग
  • मत्स्यपालन
  • फूलों की खेती
  • हर्बल खेती
  • रेशम कीट पालन
  • मधुमक्खी पालन

साथ ही अतिरिक्त श्रम बल का प्रयोग कुटीर उद्योग के विकास में भी किया जा सकता है। भविष्य में उत्पादकता बढ़ाने हेतु कृषि क्षेत्र का तकनीकी क्षेत्र से जुड़ाव अत्यंत आवश्यक है। किसानों को जागरूक बनाने के उद्देश्य से अनेक प्रकार के मोबाइल एप्स का विकास किया गया है। साथ ही विपणन व्यवस्था की कमियों को दूर करने हेतु राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) का विकास किया गया है, इसके लिए देश की अन्य मंडियों को भी जोड़ा जा रहा है ताकि फसलों की कीमत संबंधी एकरूपता एवं पारदर्शिता बनी रहे।

भारत सरकार द्वारा देश के कृषि क्षेत्र की भविष्य की दिशा तय करने हेतु नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा की गई है, जिसमें निम्नलिखित बातों पर जोर दिया गया है:

  • सभी कृषिगत उपजों हेतु अधिकतम बिक्री मूल्य को निश्चित करना।
  • मूल्यों में उतार-चढ़ाव से किसानों की सुरक्षा हेतु बाज़ार जोखिम स्थिरीकरण कोष का गठन।
  • सूखा एवं वर्षा से संबंधित जोखिमों से बचाव हेतु कृषि जोखिम कोष का गठन।
  • किसानों हेतु बीमा योजनाओं का विस्तार।
  • कृषि से संबंधित मामलों में स्थानीय पंचायतों के अधिकारों में वृद्धि।
  • राज्य सरकारों द्वारा कृषि हेतु अधिक संसाधनों का आवंटन।

इन सभी प्रयासों के बावजूद कुछ ध्यान देने योग्य मुद्दे हैं, जैसे- कृषि क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान पर व्यय की सीमा में वृद्धि एवं कृषि क्षेत्र को जैव प्रौद्योगिकी के लाभों से जोड़ना। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ की जलवायु कृषि अनुरूप है, अत: प्राकृतिक एवं मानवीय प्रयासों के सम्मिलित प्रभाव के परिणामस्वरूप यहाँ कृषि क्षेत्र का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है। 21वीं सदी में कृषि क्षेत्र की कठिनाइयों को दूर कर देश का विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

The document भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि | Course for HPSC Preparation (Hindi) - HPSC (Haryana) is a part of the HPSC (Haryana) Course Course for HPSC Preparation (Hindi).
All you need of HPSC (Haryana) at this link: HPSC (Haryana)
295 docs
Related Searches

Semester Notes

,

practice quizzes

,

भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि | Course for HPSC Preparation (Hindi) - HPSC (Haryana)

,

Exam

,

Extra Questions

,

pdf

,

mock tests for examination

,

Sample Paper

,

past year papers

,

Viva Questions

,

study material

,

Free

,

MCQs

,

shortcuts and tricks

,

भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि | Course for HPSC Preparation (Hindi) - HPSC (Haryana)

,

Objective type Questions

,

Summary

,

video lectures

,

ppt

,

Important questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

भारत का आर्थिक पुनरुद्धारक: कृषि | Course for HPSC Preparation (Hindi) - HPSC (Haryana)

;