परिभाषा
दो वर्णों या ध्वनियों के संयोग से होने वाले विकार (परिवर्तन) को सन्धि कहते हैं। सन्धि करते समय कभी–कभी एक अक्षर में, कभी–कभी दोनों अक्षरों में परिवर्तन होता है और कभी–कभी दोनों अक्षरों के स्थान पर एक तीसरा अक्षर बन जाता है।
इस सन्धि पद्धति द्वारा भी शब्द–रचना होती है; जैसे-- सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र,
- विद्या + आलय = विद्यालय,
- सत् + आनन्द = सदानन्द।
इन शब्द खण्डों में प्रथम खण्ड का अन्त्याक्षर और दूसरे खण्ड का प्रथमाक्षर मिलकर एक भिन्न वर्ण बन गया है, इस प्रकार के मेल को सन्धि कहते हैं।
संधि हिंदी
संधि में विषय :- संधि उदाहरण
- संधि व्याकरण
- व्यंजन संधि
- दीर्घ संधि उदाहरण
- संधि विक्षेद
- संधि संस्कृत में
- संस्कृत संधि सूत्र
- विसर्ग संधि उदाहरण
- अयादि संधि के उदाहरण
- संधि विच्छेद
सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं
- स्वर सन्धि
(i) गुण सन्धि
(ii) वृद्धि सन्धि
(iii) यण सन्धि
(iv) अयादि संधि - व्यंजन सन्धि
- विसर्ग सन्धि
1. स्वर सन्धि
स्वर के साथ स्वर का मेल होने पर जो विकार होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं।
स्वर सन्धि के भेद हैं-
दीर्घ सन्धि सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ स्वरों के मिलने से उनके स्थान में सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है। वर्गों का संयोग चाहे ह्रस्व + ह्रस्व हो या ह्रस्व + दीर्घ और चाहे दीर्घ + दीर्घ हो, यदि सवर्ण स्वर है तो दीर्घ हो जाएगा। इस सन्धि को दीर्घ सन्धि कहते हैं; जैसे
सन्धि – उदाहरण
- अ + अ = आ – पुष्प + अवली = पुष्पावली
- अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
- आ + अ = आ – माया + अधीन = मायाधीन
- आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय
- इ + इ = ई – कवि + इच्छा = कवीच्छा
- इ + ई = ई – हरी + ईश = हरीश
- इ + इ = ई – मही + इन्द्र = महीन्द्र
- इ + ई = ई – नदी + ईश = नदीश
- उ + उ = ऊ – सु + उक्ति = सूक्ति
- उ + ऊ = ऊ – सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि
- ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव
- ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूल
- ऋ+ ऋ = ऋ – मात + ऋण = मातण
(i) गुण सन्धि
जब अ अथवा आ के आगे ‘इ’ अथवा ‘ई’ आता है तो इनके स्थान पर ए हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे उ या ऊ आता है तो ओ हो जाता है तथा अ या आ के आगे ऋ आने पर अर् हो जाता है। दूसरे शब्दों में, हम इस प्रकार कह सकते हैं कि जब अ, आ के आगे इ, ई या ‘उ’, ‘ऊ’ तथा ‘ऋ’ हो तो क्रमश: ए, ओ और अर् हो जाता है,
इसे गुण सन्धि कहते हैं; जैसे-
- अ, आ + ई, ई = ए
- अ, आ + उ, ऊ = ओ
- अ, आ + ऋ = अर्
सन्धि – उदाहरण
- अ + इ = ए – उप + इन्द्र = उपेन्द्र
- अ + ई = ए – गण + ईश = गणेश
- आ + इ = ए – महा + इन्द्र = महेन्द्र
- आ + ई = ए – रमा + ईश = रमेश
- अ + उ = ओ – चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
- अ + ऊ = ओ – समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- आ + उ = ओ – महा + उत्सव = महोत्सव
- आ + ऊ = ओ – गंगा + उर्मि = गंगोर्मि
- अ + ऋ = अर् – देव + ऋषि = देवर्षि
- आ + ऋ = अर – महा + ऋषि = महर्षि
(ii) वृद्धि सन्धि
जब अ या आ के आगे ‘ए’ या ‘ऐ’ आता है तो दोनों का ऐ हो जाता है। इसी प्रकार अ या आ के आगे ‘ओ’ या ‘औ’ आता है तो दोनों का औ हो जाता है, इसे वृद्धि सन्धि कहते हैं;
जैसे- सन्धि – उदाहरण
- अ + ए = ऐ – पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा
- अ + ऐ = ऐ – मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ – सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ – महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- अ + ओ = औ – जल + ओकस = जलौकस
- अ + औ = औ – परम + औषध = परमौषध
- आ + ओ = औ – महा + ओषधि = महौषधि
- आ + औ = औ – महा + औदार्य = महौदार्य
(iii) यण सन्धि
जब इ, ई, उ, ऊ, ऋ के आगे कोई भिन्न स्वर आता है तो ये क्रमश: य, व, र, ल् में परिवर्तित हो जाते हैं, इस परिवर्तन को यण सन्धि कहते हैं; जैसे-
- इ, ई + भिन्न स्वर = व
- उ, ऊ + भिन्न स्वर = व
- ऋ + भिन्न स्वर = र
सन्धि – उदाहरण
- इ + अ = य् – अति + अल्प = अत्यल्प
- ई + अ = य् – देवी + अर्पण = देव्यर्पण
- उ + अ = व् – सु + आगत = स्वागत
- ऊ + आ = व – वधू + आगमन = वध्वागमन
- ऋ + अ = र् – पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
(iv) अयादि सन्धि
जब ए, ऐ, ओ और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है तो ‘ए’ का अय, ‘ऐ’ का आय् , ‘ओ’ का अव् और ‘औ’ का आव् हो जाता है; जैसे-
- ए + भिन्न स्वर = अय्
- ऐ + भिन्न स्वर = आय्
- ओ + भिन्न स्वर = अव्
- औ + भिन्न स्वर = आव्
सन्धि – उदाहरण
- ए + अ = अय् – ने + अयन = नयन
- ऐ + अ = आय् – नै + अक = नायक
- ओ + अ = अव् – पो + अन = पवन
- औ + अ = आव् – पौ + अक = पावक
2. व्यंजन सन्धि
व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होने से जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं
(i) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, के आगे कोई स्वर अथवा किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, व आए तो क.च.ट. त. पके स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर अर्थात क के स्थान पर ग, च के स्थान पर ज, ट के स्थान पर ड, त के स्थान पर द और प के स्थान पर ‘ब’ हो जाता है; जैसे-
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- वाक् + ईश = वागीश
- अच् + अन्त = अजन्त
- षट् + आनन = षडानन
- सत् + आचार = सदाचार
- सुप् + सन्त = सुबन्त
- उत् + घाटन = उद्घाटन
- तत् + रूप = तद्रूप
(ii) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क्, च्, ट्, त्, प् के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन आए तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है; जैसे-
- वाक् + मय = वाङ्मय
- षट् + मास = षण्मास
- उत् + मत्त = उन्मत्त
- अप् + मय = अम्मय
(iii) जब किसी ह्रस्व या दीर्घ स्वर के आगे छ आता है तो छ के पहले च बढ़ जाता है; जैसे-
- परि + छेद = परिच्छेद
- आ + छादन = आच्छादन
- लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया
- पद + छेद = पदच्छेद
- गृह + छिद्र = गृहच्छिद्र
(iv) यदि म् के आगे कोई स्पर्श व्यंजन आए तो म् के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है; जैसे-
- शम् + कर = शङ्कर या शंकर
- सम् + चय = संचय
- घम् + टा = घण्टा
- सम् + तोष = सन्तोष
- स्वयम् + भू = स्वयंभू
(v) यदि म के आगे कोई अन्तस्थ या ऊष्म व्यंजन आए अर्थात् य, र, ल, व्, श्, ष्, स्, ह आए तो म अनुस्वार में बदल जाता है; जैसे-
- सम् + सार = संसार
- सम् + योग = संयोग
- स्वयम् + वर = स्वयंवर
- सम् + रक्षा = संरक्षा
(vi) यदि त् और द् के आगे ज् या झ् आए तो ‘ज्’, ‘झ’, ‘ज’ में बदल जाते हैं; जैसे-
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
- विपद् + जाल = विपज्जाल
- सत् + जन = सज्जन
- सत् + जाति = सज्जाति
(vii) यदि त्, द् के आगे श् आए तो त्, द् का च और श् का छ हो जाता है। यदि त्, द् के आगे ह आए तो त् का द् और ह का ध हो जाता है; जैसे-
- सत् + चित = सच्चित
- तत् + शरीर = तच्छरीर
- उत् + हार = उद्धार
- तत् + हित = तद्धित
(viii) यदि च् या ज् के बाद न् आए तो न् के स्थान पर या याञ्जा हो जाता है; जैसे-
- यज् + न = यज्ञ
- याच् + न = याजा
(ix) यदि अ, आ को छोड़कर किसी भी स्वर के आगे स् आता है तो बहुधा स् के स्थान पर ष् हो जाता है; जैसे-
- अभि + सेक = अभिषेक
- वि + सम = विषम
- नि + सेध = निषेध
- सु + सुप्त = सुषुप्त
(x) ष् के पश्चात् त या थ आने पर उसके स्थान पर क्रमश: ट और ठ हो जाता है; जैसे-
- आकृष् + त = आकृष्ट
- तुष् + त = तुष्ट
- पृष् + थ = पृष्ठ
- षष् + थ = षष्ठ
(xi) ऋ, र, ष के बाद ‘न’ आए और इनके मध्य में कोई स्वर क वर्ग, प वर्ग, अनुस्वार य, व, ह में से कोई वर्ण आए तो ‘न’ = ‘ण’ हो जाता है; जैसे-
- भर + अन = भरण
- भूष + अन = भूषण
- राम + अयन = रामायण
- परि + मान = परिमाण
- ऋ + न = ऋण
3. विसर्ग सन्धि
विसर्गों का प्रयोग संस्कृत को छोड़कर संसार की किसी भी भाषा में नहीं होता है। हिन्दी में भी विसर्गों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है। कुछ इने-गिने विसर्गयुक्त शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
- अत:, पुनः, प्रायः, शनैः शनैः आदि।
हिन्दी में मनः, तेजः, आयुः, हरिः के स्थान पर मन, तेज, आयु, हरि शब्द चलते हैं, इसलिए यहाँ विसर्ग सन्धि का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी हिन्दी पर संस्कृत का सबसे अधिक प्रभाव है। संस्कृत के अधिकांश विधि निषेध हिन्दी में प्रचलित हैं। विसर्ग सन्धि के ज्ञान के अभाव में हम वर्तनी की अशुद्धियों से मुक्त नहीं हो सकते। अत: इसका ज्ञान होना आवश्यक है।
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के संयोग से जो विकार होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
(i) यदि विसर्ग के आगे श, ष, स आए तो वह क्रमशः श्, ए, स्, में बदल जाता है; जैसे-
- निः + शंक = निश्शंक
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + सन्देह = निस्सन्देह
- नि: + संग = निस्संग
- निः + शब्द = निश्शब्द
- निः + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
(ii) यदि विसर्ग से पहले इ या उ हो और बाद में र आए तो विसर्ग का लोप हो जाएगा और इ तथा उ दीर्घ ई, ऊ में बदल जाएँगे; जैसे-
- निः + रव = नीरव
- निः + रोग = नीरोग
- निः + रस = नीरस
(iii) यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ’, ‘ट-ठ’ तथा ‘त-थ’ आए तो विसर्ग क्रमशः ‘श्’, ‘ष’, ‘स्’ में बदल जाते हैं; जैसे-
- निः + तार = निस्तार
- दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
- निः + छल = निश्छल
- धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
- निः + ठुर = निष्ठुर
(iv) विसर्ग के बाद क, ख, प, फ रहने पर विसर्ग में कोई विकार (परिवर्तन) नहीं होता; जैसे-
- प्रात: + काल = प्रात:काल
- पयः + पान = पयःपान
- अन्तः + करण = अन्तःकरण
(v) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ या ‘आ’ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण अथवा य, र, ल, व में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग ‘र’ में बदल जाता है; जैसे-
- दुः + निवार = दुर्निवार
- दुः + बोध = दुर्बोध
- निः + गुण = निर्गुण
- नि: + आधार = निराधार
निः + धन = निर्धन
निः + झर = निर्झर
(vi) यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर आए और बाद में कोई भी स्वर आए तो भी विसर्ग र् में बदल जाता है; जैसे-
- नि: + आशा = निराशा
- निः + ईह = निरीह
- निः + उपाय = निरुपाय
- निः + अर्थक = निरर्थक
(v) यदि विसर्ग से पहले अ आए और बाद में य, र, ल, व या ह आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाता है; जैसे-
- मनः + विकार = मनोविकार
- मन: + रथ = मनोरथ
- पुरः + हित = पुरोहित
- मनः + रम = मनोरम
(vi) यदि विसर्ग से पहले इ या उ आए और बाद में क, ख, प, फ में से कोई वर्ण आए तो विसर्ग ‘ष्’ में बदल जाता है; जैसे-
- निः + कर्म = निष्कर्म
- निः + काम = निष्काम
- नि: + करुण = निष्करुण
- निः + पाप = निष्पाप
- निः + कपट = निष्कपट
- निः + फल = निष्फल
हिन्दी की कुछ विशेष सन्धियाँ
हिन्दी की कुछ अपनी विशेष सन्धि हैं, इनकी रूपरेखा अभी तक विशेष रूप से स्पष्ट निर्धारित नहीं हुई है, फिर भी इनका ज्ञान हमारे लिए आवश्यक है।
हिन्दी की प्रमुख विशेष सन्धियाँ निम्नलिखित हैं-- जब, तब, कब, सब और अब आदि शब्दों के अन्त में (पीछे) ‘ही’ आने पर ह का भ हो जाता है और ब का लोप भी हो जाता है; जैसे-
(i) जब + ही = जभी
(ii) तब + ही = तभी
(iii) कब + ही = कभी
(iv) सब + ही = सभी
(v) अब + ही = अभी - जहाँ, कहाँ, यहाँ, वहाँ आदि शब्दों के बाद ‘ही’ आने पर ही (स्वर सहित) लुप्त हो जाता है और अन्तिम ई पर अनुस्वार लग जाता है; जैसे-
(i) यहाँ + ही = यहीं
(ii) कहाँ + ही = कहीं
(iii) वहाँ + ही = वहीं
(iv) जहाँ + ही = जहीं - कहीं-कहीं संस्कृत के र् लोप, दीर्घ और यण आदि सन्धियों के नियम हिन्दी में नहीं लागू होते हैं; जैसे-
(i) अन्तर् + राष्ट्रीय = अन्तर्राष्ट्रीय
(ii) स्त्री + उपयोगी = स्त्रियोपयोगी
(iii) उपरि + उक्त = उपर्युक्त
हिन्दी के प्रमुख शब्द एवं उनके सन्धि-विच्छेद
- शब्द – सन्धि – विच्छेद
- राष्ट्राध्यक्ष – राष्ट्र + अध्यक्ष
- नयनाभिराम – नयन + अभिराम
- युगान्तर – युग + अन्तर
- शरणार्थी – शरण + अर्थी
- सत्यार्थी – सत्य + अर्थी
- दिवसावसान – दिवस + अवसान
- प्रसंगानुकूल – प्रसंग +अनुकूल
- विद्यानुराग – विद्या + अनुराग
- परमावश्यक – परम + आवश्यक
- उदयाचल – उदय + अचल
- ग्रामांचल – ग्रामा + अंचल
- ध्वंसावशेष – ध्वंस + अवशेष
- हस्तान्तरण – हस्त + अन्तरण
- परमानन्द – परम + आनन्द
- रत्नाकर – रत्न + आकर
- देवालय – देव + आलय
- धर्मात्मा – धर्म + आत्मा
- आग्नेयास्त्र – आग्नेय + अस्त्र
- मर्मान्तक – मर्म + अन्तक
- रामायण – राम + अयन
- सुखानुभूति – सुख + अनुभूति
- आज्ञानुपालन – आज्ञा + अनुपालन
- देहान्त – देह + अन्त
- गीतांजलि – गीत + अंजलि
- मात्राज्ञा – मातृ + आज्ञा
- भयाकुल – भय + आकुल
- त्रिपुरारि – त्रिपुर + अरि
- आयुधागार – आयुध + आगार
- स्वर्गारोहण – स्वर्ग + आरोहण
- प्राणायाम – प्राण + आयाम
- कारागार – कारा + आगार
- शाकाहारी – शाक् + आहारी
- फलाहार – फल + आहार
- गदाघात – गदा + आघात
- स्थानापन्न – स्थान + आपन्न
- कंटकाकीर्ण – कंटक + आकीर्ण
- स्नेहाकांक्षी – स्नेह + आकांक्षी
- महामात्य – महा + अमात्य
- चिकित्सालय – चिकित्सा + आलय
- नवांकुर – नव + अंकुर
- सहानुभूति – सह + अनुभूति
- दीक्षान्त – दीक्षा + अन्त
- वार्तालाप – वार्ता + आलाप
- पुस्तकालय – पुस्तक + आलय
- विकलांग – विकल + अंग
- आनन्दातिरेक – आनन्द + अतिरेक
- कामायनी – काम + अयनी
- दीपावली – दीप +अवली
- दावानल – दाव + अनल
- महात्मा – महा + आत्मा
- हिमालय – हिम + आलय
- देशान्तर – देश + अन्तर
- सावधान – स + अवधान
- तीर्थाटन – तीर्थ + अटन
- विचाराधीन – विचार + अधीन
- मुरारि – मुर + अरि
- कुशासन – कुश + आसन
- उत्तमांग – उत्तम + अंग
- सावयव – स + अवयव
- भग्नावशेष – भग्न + अवशेष
- धर्माधिकारी – धर्म + अधिकारी
- जनार्दन – जन + अर्दन
- अधिकांश – अधिक + अंश
- गौरीश – गौरी + ईश
- लक्ष्मीश – लक्ष्मी + ईश
- पृथ्वीश्वर – पृथ्वी + ईश्वर
- अनूदित – अनु + उदित
- मंजूषा – मंजु + उषा
- गुरूपदेश – गुरु + उपदेश
- साधूपदेश – साधु + उपदेश
- बहूद्देशीय – बहु + उद्देशीय
- वधूपालम्भ – वधु + उपालम्भ
- भानूदय – भानु + उदय
- मधूत्सव – मधु + उत्सव
- बहूर्ज – बहु + उर्ज
- सिन्धूर्मि – सिन्धु + ऊर्मि
- चमूत्तम – चमू + उत्तम
- लघूत्तम – लघु + उत्तम
- रचनात्मक – रचना + आत्मक
- क्षितीन्द्र – क्षिति + इन्द्र
- अधीश्वर – अधि + ईश्वर
- प्रतीक्षा – प्रति + ईक्षा
- परीक्षा – परि + ईक्षा
- गिरीन्द्र – गिरि + इन्द्र
- मुनीन्द्र – मुनि + इन्द्र
- अधीक्षक – अधि + ईक्षक
- हरीश – हरि + ईश
- अधीन – अधि + इन
- गिरीश – गिरि + ईश
- वारीश – वारि + ईश
- गणेश – गण + ईश
- सुधीन्द्र – सुधी + इन्द्र
- महीन्द्र – मही + इन्द्र
- श्रीश – श्री + ईश
- सतीश – सती + ईश
- फणीन्द्र – फणी + इन्द्र
- रजनीश – रजनी + ईश
- नारीश्वर – नारी + ईश्वर
- देवीच्छा – देवी + इच्छा
- लक्ष्मीच्छा – लक्ष्मी + इच्छा
- परमेश्वर – परम + ईश्वर
- परोपकार – पर + उपकार
- नीलोत्पल – नील + उत्पल
- देशोपकार – देश + उपकार
- सूर्योदय – सूर्य + उदय
- रोगोपचार – रोग + उपचार
- ज्ञानोदय – ज्ञान + उदय
- पुरुषोचित – पुरुष + उचित
- दुग्धोपजीवी – दुग्ध + उपजीवी
- अन्त्योदय – अन्त्य + उदय
- वेदोक्त – वेद + उक्त
- महोदय – महा + उदय
- विद्योन्नति – विद्या + उन्नति
- महोपदेशक – महा + उपदेशक
- महोपकार – महा + उपकार
- दलितोत्थान – दलित + उत्थान
- सर्वोपरि – सर्व + उपरि
- सोद्देश्य – स + उद्देश्य
- जनोपयोगी – जन + उपयोगी
- वधूल्लास – वधू + उल्लास
- भ्रूज़ – भ्रू + ऊर्ध्व
- पितॄण – पितृ + ऋण
- मातृण – मातृ + ऋण
- योगेन्द्र – योग + इन्द्र
- शुभेच्छा – शुभ + इच्छा
- मानवेन्द्र – मानव + इन्द्र
- गजेन्द्र – गज + इन्द्र
- मृगेन्द्र – मृग + इन्द्र
- जितेन्द्रिय – जित + इन्द्रिय
- पूर्णेन्द्र – पूर्ण + इन्द्र
- सुरेन्द्र – सुर + इन्द्र
- यथेष्ट – यथा + इष्ट
- विवाहेतर – विवाह + इतर
- हितेच्छा – हित + इच्छा
- साहित्येतर – साहित्य + इतर
- शब्देतर – शब्द + इतर
- भारतेन्द्र – भारत + इन्द्र
- उपदेष्टा – उप + दिष्टा
- स्वेच्छा – स्व + इच्छा
- अन्त्येष्टि – अन्त्य + इष्टि
- बालेन्दु – बाल + इन्दु
- राजर्षि – राज + ऋषि
- ब्रह्मर्षि – ब्रह्म + ऋषि
- प्रियैषी – प्रिय + एषी
- पुत्रैषणा – पुत्र + एषणा
- लोकैषणा – लोक + एषणा
- देवौदार्य – देव + औदार्य
- परमौषध – परम + औषध
- हितैषी – हित + एषी
- जलौध – जल + ओध
- वनौषधि – वन + ओषधि
- धनैषी – धन + एषी
- महौदार्य – महा + औदार्य
- विश्वैक्य – विश्व + एक्य
- स्वैच्छिक – स्व + ऐच्छिक
- महैश्वर्य – महा + ऐश्वर्य
- अधरोष्ठ – अधर + ओष्ठ
- शुद्धोधन – शुद्ध + ओधन
- स्वागत – सु + आगत
- अन्वेषण – अनु + एषण
- सोल्लास – स + उल्लास
- भावोद्रेक – भाव + उद्रेक
- धीरोद्धत – धीर + उद्धत
- सर्वोत्तम – सर्व + उत्तम
- मानवोचित – मानव + उचित
- कथोपकथन – कथ + उपकथन
- रहस्योद्घाटन – रहस्य + उद्घाटन
- मित्रोचित – मित्र + उचित
- नवोन्मेष – नव + उन्मेष
- नवोदय – नव + उ
- महोर्मि – महा + ऊर्मि
- महोर्जा – महा + ऊर्जा
- सूर्योष्मा – सूर्य + उष्मा
- महोत्सव – महा + उत्सव
- नवोढ़ा – नव + ऊढ़ा
- क्षुधोत्तेजन – क्षुधा + उत्तेजन
- देवर्षि – देव + ऋषि
- महर्षि – महा + ऋषि
- सप्तर्षि – सप्त + ऋषि
- व्याकरण – वि + आकरण
- प्रत्युत्तर – प्रति + उत्तर
- उपर्युक्त – उपरि + उक्त
- उभ्युत्थान – अभि + उत्थान
- अध्यात्म – अधि + आत्म
- अत्युक्ति – अति + उक्ति
- अत्युत्तम – अति + उत्तम
- सख्यागमन – सखी + आगमन
- स्वच्छ – सु + अच्छ
- तन्वंगी – तनु + अंगी
- समन्वय – सम् + अनु + अय
- मन्वंतर – मनु + अन्तर
- गुर्वादेश – गुरु + आदेश
- साध्वाचार – साधु + आचार
- धात्विक – धातु + इक
- नायक – नै + अक
- गायक – गै + अक
- गायन – गै + अन
- विधायक – विधै + अक
- पवन – पो + अन
- हवन – हो + अन
- शाचक – शौ + अक
- अभ्यास – अभि + आस
- पर्यवसान – परि + अवसान
- रीत्यनुसार – रीति + अनुसार
- अभ्यर्थना – अभि + अर्थना
- प्रत्यभिज्ञ – प्रति + अभिज्ञ
- प्रत्युपकार – प्रति + उपकार
- त्र्यम्बक – त्रि + अम्बक
- अत्यल्प – अति + अल्प
- जात्यभिमान – जाति + अभिमान
- गत्यानुसार – गति + अनुसार
- देव्यागमन – देवी + आगमन
- गुर्वौदार्य – गुरु + औदार्य
- लघ्वोष्ठ – लघु + औष्ठ
- मात्रुपदेश – मातृ + उपदेश
- पर्यावरण – परि + आवरण
- ध्वन्यात्मक – ध्वनि + आत्मक
- अभ्यागत – अभि + आगत
- अत्याचार – अति + आचार
- व्याख्यान – वि + आख्यान
- ऋग्वेद – ऋक् + वेद
- सद्धर्म – सत् + धर्म
- जगदाधार – जगत् + आधार
- उद्वेग – उत् + वेग
- अजंत – अच् + अन्त
- षडंग – षट् + अंग
- जगदम्बा – जगत् + अम्बा
- जगद्गुरु – जगत् + गुरु
- जगज्जनी – जगत् + जननी
- उज्ज्वल – उत् + ज्वल
- सज्जन – सत् + जन
- सदात्मा – सत् + आत्मा
- सदानन्द – सत् + आनन्द
- स्यादवाद – स्यात् + वाद
- सदवेग – सत् + वेग
- छत्रच्छाया – छत्र + छाया
- परिच्छेद – परि + छेद
- सन्तोष – सम् + तोष
- आच्छादन – आ + छादन
- उच्चारण – उत् + चारण
- जगन्नाथ – जगत् + नाथ
- जगन्मोहिनी – जगत् + मोहिनी
- श्रावण – श्री + अन
- नाविक – नौ + इक
- विश्वामित्र – विश्व + अमित्र
- प्रतिकार – प्रति + कार
- दिवारात्र – दिवा + रात्रि
- षड्दर्शन – षट् + दर्शन
- वागीश – वाक् + ईश
- उन्मत् – उत् + मत
- दिग्ज्ञान – दिक + ज्ञान
- वाग्दान – वाक् + दान
- वाग्व्यापार – वाक् + व्यापार
- दिग्दिगन्त – दिक् + दिगन्त
- सम्यक् + दर्शन – सम्यग्दर्शन
- ‘दिक् + विजय – दिग्विजय
- निस्सहाय – निः + सहाय
- निस्सार – निः + सार
- निश्चल – निः + चल
- निष्कलुष – निः + कलुष
- निष्काम – निः + काम
- निष्कासन – निः + कासन
- निश्चय – नि: + चय
- दुश्चरित्र – दु: + चरित्र
- निष्प्रयोजन – निः + प्रयोजन
- निष्प्राण – निः + प्राण
- निष्प्रभ – निः + प्रभ
- निष्पालक – निः + पालक
- निष्पाप – निः + पाप
- प्राणिविज्ञान – प्राणि + विज्ञान
- योगीश्वर – योगी + ईश्वर
- स्वामिभक्त – स्वामी + भक्त
- युववाणी – युव + वाणी
- मनीष – मन + ईष
- दुर्दशा – दु: + दशा
- दुर्लभ – दु: + लभ
- निर्भय – निः + भय
- यशोगान – यशः + भूमि
- उन्नयन – उत् + नयन
- सन्मान – सत् + मान
- सन्निकट – सम् + निकट
- दण्ड – दम् + ड
- सन्त्रास – सम् + त्रास
- सच्चिदानन्द – सत् + चित + आनन्द
- यावज्जीवन – यावत् + जीवन
- तज्जन्य – तद् + जन्य
- परोक्ष – पर + उक्ष
- सारंग – सार + अंग
- अनुषंगी – अनु + संगी
- सुषुप्त – सु + सुप्त
- प्रतिषेध – प्रति + सेध
- दुस्साहस – दु: + साहस
- तपोभूमि – तपः + भूमि
- नभोमण्डल – नभः + मण्डल
- तमोगुण – तमः + गुण
- तिरोहित – तिरः + हित
- दिवोज्योति – दिवः + ज्योति
- यशोदा – यशः + दा
- शिरोभूषण – शिरः + भूषण
- मनोवांछा – मनः + वांछा
- पुरोगामी – पुरः + गामी
- मनोग्राह्य – मनः+ ग्राह्य
- निर्मम – निः + मम
- दुर्जन – दु: + जन
- निराशा – नि: + आशा
- निष्ठुर – निः + तुर
- धनुष्टंकार– – धनुः + टंकार
- दुश्शासन – दु: + शासन
- शिरोरेखा – शिरः + रेखा
- यजुर्वेद – यजुः + वेद
- नमस्कार – नमः + कार
- शिरस्त्राण – शिरः + त्राण
- चतुस्सीमा – चतुः + सीमा
- आविष्कार – आविः + कार