संवाद लेखन की परिभाषा
जब दो या दो से अधिक लोगों के बीच होने वाले वार्तालाप को लिखा जाता है तब वह संवाद लेखन कहलाता है। संवाद लेखन काल्पनिक भी हो सकता है और किसी वार्ता को ज्यों का त्यों लिखकर भी।
- भाषा, बोलने वाले के अनुसार थोड़ी-थोड़ी भिन्न होती है।
उदाहरण के रूप में एक अध्यापक की भाषा छात्र की अपेक्षा ज्यादा संतुलित और सारगर्भित (अर्थपूर्ण) होगी। एक पुलिस अधिकारी की भाषा और अपराधी की भाषा में काफी अन्तर होगा। इसी तरह दो मित्रों या महिलाओं की भाषा कुछ भिन्न प्रकार की होगी। दो व्यक्ति, जो एक-दूसरे के शत्रु हैं- की भाषा अलग होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि संवाद-लेखन में पात्रों के लिंग, उम्र, कार्य, स्थिति का ध्यान रखना चाहिए। - संवाद-लेखन में इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए कि वाक्य-रचना सजीव हो। भाषा सरल हो। उसमें कठिन शब्दों का प्रयोग कम-से-कम हो। संवाद के वाक्य बड़े न हों। संक्षिप्त और प्रभावशाली हों। मुहावरेदार भाषा काफी रोचक होती है। अतएव, मुहावरों का यथास्थान प्रयोग हो।
अच्छी संवाद-रचना के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- संवाद छोटे, सहज तथा स्वाभाविक होने चाहिए।
- संवादों में रोचकता एवं सरसता होनी चाहिए।
- इनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और बोलचाल के निकट हो। उसमें बहुत अधिक कठिन शब्द तथा अप्रचलित (जिन शब्दों का प्रयोग कोई न करता हो) शब्दों का प्रयोग न हो।
- संवाद पात्रों की सामाजिक स्थिति के अनुकूल होने चाहिए। अनपढ़ या ग्रामीण पात्रों और शिक्षित पात्रों के संवादों में अंतर रहना चाहिए।
- संवाद जिस विषय या स्थिति के विषय में हों, उस विषय को स्पष्ट करने वाले होने चाहिए अर्थात जब कोई उस संवाद को पढ़े तो उसे ज्ञात हो जाना चाहिए की उस संवाद का विषय क्या है।
- प्रसंग के अनुसार संवादों में व्यंग्य-विनोद (हँसी-मजाक) का समावेश भी होना चाहिए।
- यथास्थान मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग करना चाहिए इससे संवादों में सजीवता आ जाती है। और संवाद प्रभावशाली लगते हैं।
- संवाद बोलने वाले का नाम संवादों के आगे लिखा होना चाहिए।
- यदि संवादों के बीच कोई चित्र बदलता है या किसी नए व्यक्ति का आगमन होता है, तो उसका वर्णन कोष्टक में करना चाहिए।
- संवाद बोलते समय जो भाव वक्ता के चेहरे पर हैं, उन्हें भी कोष्टक में लिखना चाहिए।
- यदि संवाद बहुत लम्बे चलते हैं और बीच में जगह बदलती हैं, तो उसे दृश्य एक, दृश्य दो करके बांटना चाहिए।
- संवाद लेखन के अंत में वार्ता पूरी हो जानी चाहिए।
अच्छे संवाद-लेखन की विशेषताएँ
- संवाद में प्रवाह, क्रम और तर्कसम्मत (अर्थपूर्ण) विचार होना चाहिए।
- संवाद देश, काल, व्यक्ति और विषय के अनुसार लिखा होना चाहिए।
- संवाद सरल भाषा में लिखा होना चाहिए।
- संवाद में जीवन की जितनी अधिक स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही अधिक सजीव, रोचक और मनोरंजक होगा।
- संवाद का आरम्भ और अन्त रोचक हो।
इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखकर छात्रों को संवाद लिखने का अभ्यास करना चाहिए। इससे उनमें अर्थों को समझने और सर्जनात्मक शक्ति को जागरित करने का अवसर मिलता है। उनमें बोलचाल की भाषा लिखने की प्रवृति जगती है।
संवाद लेखन के उदाहरण
(i) रोगी और वैद्य का संवादरोगी- (औषधालय में प्रवेश करते हुए) वैद्यजी, नमस्कार!
वैद्य- नमस्कार! आइए, पधारिए! कहिए, क्या हाल है ?
रोगी- पहले से बहुत अच्छा हूँ। बुखार उतर गया है, केवल खाँसी रह गयी है।
वैद्य- घबराइए नहीं। खाँसी भी दूर हो जायेगी। आज दूसरी दवा देता हूँ। आप जल्द अच्छे हो जायेंगे।
रोगी- आप ठीक कहते हैं। शरीर दुबला हो गया है। चला भी नहीं जाता और बिछावन (बिस्तर) पर पड़े-पड़े तंग आ गया हूँ।
वैद्य- चिंता की कोई बात नहीं। सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं। कुछ दिन और आराम कीजिए। सब ठीक हो जायेगा।
रोगी- कृपया खाने को बतायें। अब तो थोड़ी-थोड़ी भूख भी लगती है।
वैद्य- फल खूब खाइए। जरा खट्टे फलों से परहेज रखिए, इनसे खाँसी बढ़ जाती है। दूध, खिचड़ी और मूँग की दाल आप खा सकते हैं।
रोगी- बहुत अच्छा! आजकल गर्मी का मौसम है; प्यास बहुत लगती है। क्या शरबत पी सकता हूँ?
वैद्य- शरबत के स्थान पर दूध अच्छा रहेगा। पानी भी आपको अधिक पीना चाहिए।
रोगी- अच्छा, धन्यवाद! कल फिर आऊँगा।
वैद्य- अच्छा, नमस्कार।
(ii) दो दोस्तों के बीच जीवन लक्ष्य को लेकर संवाद लेखन
अनिल: “तुम दसवीं कक्षा के बाद कौन सा विषय लेने की सोच रहे हो?”
आदित्य: “मैं तो विज्ञान के विषय पढूंगा।”
अनिल: “क्यों?”
आदित्य: “क्योंकि मैं बड़े होकर एक डॉक्टर बनना चाहता हूँ। तुम्हारे जीवन का क्या लक्ष्य है?”
अनिल: “मैं एक अध्यापक बनना चाहता हूँ।”
आदित्य: “एक डॉक्टर सबकी सेवा करता है, लोगों के दुःख दर्द दूर करता है। मैं भी बड़े होकर बीमार लोगों की सहायता करना चाहता हूँ।”
अनिल: “मैं विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान करके उनके जीवन को उज्जवल बनाना चाहता हूँ। मेरे विचार में यह सबसे अच्छी मानव सेवा है।”
(iii) पिता और पुत्र के बिच संवाद
राहुल– पिता जी, मुझे अपने दोस्तों के साथ बाजार जाना है।
पिता– नहीं राहुल, तुम अपने दोस्तों के साथ रहकर घुमक्कड़ होते जा रहे हो। तुमने पढ़ना लिखना तो बिलकुल ही छोड़ दिया है।
राहुल– नहीं पिता जी, अब मैं खूब पढ़ूँगा, वादा करता हूँ।
पिता– बेटे ऐसे वादे तो रोज करते हो।
राहुल– पर इस बार मैं पक्का वादा करता हूँ कि आपको 80% से ज्यादा अंक ला कर दिखाऊँगा।
पिता– और अगर नहीं लाए तो…….. !
राहुल– फिर आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूँगा।
पिता– ठीक है। तुम्हें यह आखरी अवसर देता हूँ।