हरियाणा राज्य का जलवायु
- हरियाणा राज्य का जलवायु उपोष्णकटिबंधीय, अर्ध-शुष्क से उप-आर्द्र, महाद्वीपीय और मानसूनी प्रकार का है।
- हरियाणा की औसत वार्षिक वर्षा 560 मिमी है, जो राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होती है, दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में 300 मिमी से कम और शिवालिक पहाड़ियों के पहाड़ी क्षेत्रों में 1000 मिमी से अधिक होती है।
- हरियाणा में गर्मियों में बहुत गर्म और सर्दियों में ठंडा मौसम होता है, जिसमें मई और जून के महीने सबसे गर्म और दिसंबर और जनवरी सबसे ठंडे होते हैं।
- हरियाणा में वर्षा असमान रूप से वितरित होती है, जिसमें लगभग 80% वर्षा मानसून के दौरान जुलाई से सितंबर के बीच होती है।
- वर्षा के मामले में सबसे अधिक आर्द्र क्षेत्र शिवालिक पहाड़ हैं, जबकि अरावली पहाड़ क्षेत्र सबसे शुष्क है।
- हरियाणा में सर्दियों में तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है और गर्मियों में 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
- राज्य में तीन मुख्य जलवायु क्षेत्र हैं, जिनमें वार्षिक वर्षा और वायु तापमान में भिन्नता होती है।
जलवायु: वर्तमान आधारभूत और हरियाणा की जलवायु पूर्वानुमान
जलाशय के लिए वर्तमान आधारभूत जलवायु विज्ञान स्थापित करने के लिए, IMD ग्रिडेड वर्षा और तापमान डेटा का उपयोग करते हुए एक अध्ययन किया गया था ताकि हरियाणा में मौसमी वर्षा और तापमान के दीर्घकालिक रुझानों का विश्लेषण किया जा सके।
उपयोग किए गए डेटा
- जलवायु वैज्ञानिकों ने IMD ग्रिडेड डेटा का उपयोग करते हुए हरियाणा में वर्षा पैटर्न का अध्ययन 1971 से 2005 तक किया, और तापमान पैटर्न का अध्ययन 1969 से 2005 तक किया।
- अध्ययन में उपयोग किया गया IMD ग्रिडेड डेटा वर्षा के लिए 0.5 डिग्री और अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान के लिए 1 डिग्री के स्थानिक संकल्प को कवर करता है।
- अध्ययन ने 35 वर्ष (1971-2005) और 37 वर्ष (1969-2005) की अवधि के लिए वर्षा और तापमान डेटा का विश्लेषण किया।
- शोधकर्ताओं ने हरियाणा में वर्षा और तापमान के रुझानों का अध्ययन करने के लिए IMD ग्रिडेड डेटा का उपयोग किया, क्रमशः 35 और 37 वर्ष की अवधि में।
- अध्ययन के लिए, IMD ग्रिडेड डेटा का उपयोग वर्षा और तापमान के विश्लेषण के लिए 0.5 और 1 डिग्री के स्थानिक संकल्प के साथ किया गया।
अवलोकित वर्षा के रुझान

हरियाणा में वर्षा की मात्रा विभिन्न क्षेत्रों में और प्रत्येक वर्ष के अनुसार काफी भिन्न हो सकती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम, जो जून से सितंबर तक चलता है, वार्षिक वर्षा का 82% (544 मिमी) योगदान देता है। अगस्त में औसत मासिक वर्षा सबसे अधिक होती है (163 मिमी), जबकि जुलाई लगभग 29.5% के साथ निकटता से इसके बाद आता है। जून में वर्षा थोड़ी कम होती है, जो वार्षिक कुल का लगभग 10% योगदान करती है, जबकि सितंबर का योगदान 13% है।
- मौसमी वर्षा (मार्च से मई) और पोस्ट-मॉनसून वर्षा (अक्टूबर से दिसंबर) क्रमशः वार्षिक वर्षा में 8% और 5.8% योगदान देती हैं, जिसमें वर्ष दर वर्ष बहुत कम भिन्नता होती है।
- हरियाणा में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान औसत वर्षा के दिन लगभग 25 होते हैं, जो स्थान के अनुसार 14 से 40 के बीच भिन्न होते हैं। उच्च वर्षा वाले दिन आमतौर पर 1 से 3 बार होते हैं, और सामान्यतः केवल एक दिन अत्यधिक वर्षा का होता है।
- पोस्ट-मॉनसून या शीतकालीन मौसम के दौरान, औसतन केवल लगभग 2 वर्षा के दिन होते हैं, जबकि उच्च और अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ नगण्य होती हैं। वर्षा के दिनों की संख्या स्थान के अनुसार 1 से 3 के बीच भिन्न होती है।
देखे गए तापमान प्रवृत्तियाँ
हरियाणा राज्य अपने जलवायु के संदर्भ में स्थानिक और कालिक विविधता को प्रदर्शित करता है।
- दिन-रात का तापमान अंतर 31.4 डिग्री सेल्सियस से 17.4 डिग्री सेल्सियस तक भिन्न होता है।
- औसत अधिकतम तापमान में कोई महत्वपूर्ण प्रवृत्ति नहीं देखी गई है, लेकिन न्यूनतम तापमान 37 वर्षों के दौरान लगभग 1.0 डिग्री सेल्सियस से 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है।
- फतेहाबाद, झज्जर, और करनाल के जिलों में न्यूनतम तापमान में अधिक वृद्धि देखी गई है (1.1 डिग्री सेल्सियस से 1.3 डिग्री सेल्सियस)।
- वर्षों के बीच का परिवर्तन महत्वपूर्ण नहीं है, और वार्षिक अधिकतम और न्यूनतम तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस का स्थानिक परिवर्तन है।
- मौसमी औसत अधिकतम तापमान प्री-मानसून और मानसून के दौरान अधिक होता है और 35.4 डिग्री सेल्सियस से 36.2 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।
- इसी प्रकार, मौसमी औसत न्यूनतम तापमान सर्दी के दौरान सबसे कम होता है और 6.9 डिग्री सेल्सियस से 7.6 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।
हरियाणा का जलवायु परिवर्तन पहलू
जलवायु परिवर्तन हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चिंताओं में से एक बन गया है। यह एक वैश्विक घटना है जिसके विविध स्थानीय प्रभाव हैं, जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों के वितरण और गुणवत्ता को बदलने की संभावना रखते हैं और विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की आजीविका को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
1992 में, भारत ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक पहल के तहत संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ढांचा सम्मेलन (UNFCCC) को अपनाया। UNFCCC के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि "पार्टीज को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जलवायु प्रणाली की रक्षा करनी चाहिए, जिसका आधार समानता है और जो उनकी सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के अनुसार है।"
देश के विकास प्रक्रिया में एक देरी से शामिल राज्य होने के नाते, हरियाणा का प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन राष्ट्रीय औसत का केवल एक अंश है, तथा इसकी मात्रा देश के अन्य औद्योगिक राज्यों की तुलना में बहुत कम है। राज्य की अर्थव्यवस्था अपने प्राकृतिक संसाधन आधार और जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि और वनों से निकटता से जुड़ी हुई है। इसलिए, राज्य जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों के बढ़ते जोखिम का सामना कर रहा है।
राज्य इस प्रकार एक जलवायु अनुकूल, समानता आधारित और सतत विकास पथ अपनाएगा, जिसमें हमारी "सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं" और हमारे क्षेत्रीय विकास प्राथमिकताओं, उद्देश्यों और परिस्थितियों का ध्यान रखा जाएगा।
जलवायु परिवर्तन पर एक राज्य कार्य योजना राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत तैयार की जाएगी, जिसमें राज्य की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन किए जाएंगे। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से संबंधित जानकारी एकत्रित करने, अनुसंधान करने और खाद्य सुरक्षा, वर्षा पैटर्न में बदलाव आदि से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए एक जलवायु परिवर्तन सेल स्थापित किया जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन पहलों की शुरुआत नागरिक समाज के सहयोग से की जाएगी, ताकि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके:
- ऊर्जा दक्षता।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का दोहन।
- कृषि में अनुकूलन प्रबंधन।
- जलवायु-अनुकूल तकनीकों को बढ़ावा देना।
- 3Rs पर अभियान शुरू करना - रीसाइक्लिंग, कम करना, पुनः प्रयोग।
हरियाणा का कृषि-जलवायु क्षेत्र
हरियाणा को तापमान, वर्षा, मिट्टी के प्रकार और फसल पैटर्न जैसे कई कारकों के आधार पर नौ कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। इन क्षेत्रों को प्रत्येक क्षेत्र में सबसे उपयुक्त फसलें और फसल प्रथाओं की पहचान करके कृषि और संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से चिह्नित किया गया है। हरियाणा के नौ कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं:
- उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र: इस क्षेत्र में कम से मध्यम वर्षा होती है, कम आर्द्रता होती है, और एक लंबी सर्दी होती है। यहां की प्रमुख फसलें हैं: गेहूं, चना, सरसों, और जौ।
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र: इस क्षेत्र में मध्यम वर्षा होती है और यहां लंबी सर्दी होती है। यहां प्रमुख फसलें हैं: गेहूं, चना, और सरसों।
- केंद्रीय क्षेत्र: इस क्षेत्र में मध्यम वर्षा होती है और यह विभिन्न फसलों जैसे गेहूं, चना, सरसों, बाजरा, मक्का, और गन्ना उगाने के लिए उपयुक्त है।
- दक्षिण पूर्वी क्षेत्र: इस क्षेत्र में मध्यम वर्षा होती है और यहां लंबा गर्मी का मौसम होता है। यहां प्रमुख फसलें हैं: धान, गन्ना, और सब्जियां।
- दक्षिणी क्षेत्र: इस क्षेत्र का जलवायु गर्म और शुष्क है और यह कपास, मूंगफली, और मक्का जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।
- दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र: इस क्षेत्र में कम से मध्यम वर्षा होती है और इसे बालू मिट्टी की विशेषता है। यहां की प्रमुख फसलें हैं: बाजरा, चना, और सरसों।
- पश्चिमी क्षेत्र: इस क्षेत्र का जलवायु गर्म और शुष्क है और यह कपास, ग्वार, और बाजरा जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।
- उत्तर पश्चिमी क्षेत्र: इस क्षेत्र में वर्षा कम होती है और यहां लंबी सर्दी होती है। यहां की प्रमुख फसलें हैं: गेहूं, चना, और सरसों।
- कंडी क्षेत्र: इस क्षेत्र की विशेषता undulating topography और poor soil fertility है। यहां की प्रमुख फसलें हैं: मक्का, मूंगफली, और गन्ना।
प्रत्येक कृषि-जलवायु क्षेत्र की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं, जो इसे कुछ फसलों और फसल प्रथाओं के लिए उपयुक्त बनाती हैं। इन क्षेत्रों की पहचान कृषि गतिविधियों की योजना बनाने और संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देने में मदद करती है। यह फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने और किसानों की आजीविका में सुधार करने में भी सहायक है।