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मध्यकालीन

राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति (800 - 1200 ई.)

अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiमुगलकाल में सामाजिक और आर्थिक जीवन

  • सिविल सर्विसेज प्रारम्भिक परीक्षा के लिहाज से यह अध्याय उतना महत्वपूर्ण नहीं है। कभी-कभी इससे एक-दो प्रश्न पूछे जाते है। सामान्यतः इस काल की सामाजिक अवस्था पर आधारित प्रश्न होते है। दरअसल सिविल सर्विसेज परीक्षा में राजनीतिक इतिहास पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है। राजा-महाराजा उनकी राजनीतिक उपलब्धियां, युद्ध आदि को अहमियत देने का अब जमाना नहीं रहा। आज इतिहास का मतलब जनमानस का इतिहास है। 
  • अब इतिहासकारों की रुचि वास्तविकता का पता लगाने में है, और प्रश्नों के चयनकत्र्ता भी इसी पथ का अनुसरण कर रहे है। अतः प्रश्नों में उन प्रसंगों पर अधिक जोर रहता है जो आम लोगों से जुड़े हों। चूंकि विवेचन काल भारतीय इतिहास का संक्रमण काल था, अतः पूछे जाने वाले प्रश्न उन्हीं दर्शनों के इर्द-गिर्द केन्द्रित होते है।
  • सन् 1990 से 2010 तक प्रश्न सामान्य ही रहे जैसे-चन्देल राजवंश का संस्थापक कौन था?, किस चालुका राजा ने अपनी राजधानी मलखेद से कल्याणी ले गया था?, अलबरूनी का जाति विभाजन, कश्मीर की रानी दीदी ने कब राज किया आदि। सन् 2012 में इस काल के मंदिर कलाकृति पर प्रश्न पुछे गए। सन् 2015 में विभिन्न राज्य जैसे चम्पक, दूरगरा, कुलता को अभी क्या कहा जाता है। आदि।
  • संभव है संघ लोक सेवा आयोग प्रश्नों के इस पैटर्न में परिवर्तन भी कर दे, अतः उपयुक्त यही होगा कि आप राजनीतिक स्थिति का भी अध्ययन करें। हमने पाठ्यक्रम के अनुसार ही इसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यहां प्रस्तुत पाठ्यसामग्री का अध्ययन करने से पूर्व एन. सी. ई. आर. टी. की पुस्तक में दिए इस अध्याय का अध्ययन अवश्य कर लें ताकि आपका आधार मजबूत हो जाए। 
  • ढेर सारी वंशावलियों और लड़ाइयों का एक साथ वर्णन होने के कारण सामान्यतः इस अध्याय में परीक्षा थी अध्ययन अवश्य कर लें ताकि आपका आधार मजबूत हो जाए। ढेर सारी वंशावलियों और लड़ाइयों का एक साथ वर्णन होने के कारण सामान्यतः इस अध्याय में परीक्षार्थी उलझ जाते है। अतः उलझन में पड़ने की बजाय आप अलग-अलग वंशावलियों और उनसे सम्बद्ध घटनाचक्रों को दिमाग में अलग-अलग सुसज्जित करें। एक बार ऐसा करके आप उलझनों से मुक्त हो जाएंगे और पुनरावृत्ति के लिए आगे दी गई संक्षिप्त व सुस्पष्ट जानकारियां आपको आत्मविश्वास प्रदान करेंगी।

दक्षिण भारत और चोल वंश (800 - 1200 ई.)

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  • यह अध्याय भी प्रारम्भिक परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण है। कभी-कभी एक-दो प्रश्न इस अध्याय से पूछे जाते हैं। प्रारम्भिक परीक्षा में ग्रामीण प्रशासन और चोल कला से ही प्रश्न पूछे जाते है। दक्षिण भारत में हुए लगातार राजनीतिक परिवर्तनों के बीच जीवन और परंपरा की अविच्छिन्नता को बनाए रखनेवाला घटक गांव ही था और इसकी संस्थाओं की जीवंतता को प्रमाणित करनेवाले सैकड़ों अभिलेख दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में पाए जाते है। दक्षिण भारतीय ग्राम स्तर की स्वायत्तता असाधारण थी। ग्रामीण मामलों में राजकीय अधिकारियों की सहभागिता प्रशासक से अधिक सलाहकार और प्रेक्षक के रूप में थी।
  • सन् 1990 से 2017 तक पूछे गए कुछ प्रश्न थे-राजेन्द्र चोल द्वारा जीता गया कोशलाडु किस नदी के किनारे था? उदन कुत्तम क्या है?, अनुराधापुर को किसने विनाश किया?, सन् 2012 में नागर, बेसर और द्रविड़ कला तथा श्रेणी बारे में पूछा गया, सन 2016 में अराधात क्या था? ;यह सिंचाई के लिए पानी चक्र थाद्ध, सिन्ध ;सित्तरद्ध एवं लिंगायत क्या था? आदि। सन् 2017 में यह पूछा गया कि काकतीय राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कौन सा था?
  • इस काल की अन्य विलक्षण विशिष्टता कला और स्थापत्य है। चोल शासन के दौरान मंदिर वास्तुकला, खासकर द्रविड़ या दक्षिण भारतीय वास्तुकला अपने गौरव की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी थी। मूर्तिकला के क्षेत्रा में भी इस काल में उल्लेखनीय प्रगति हुई। अतः बुद्धिमानी  इसी में है कि आप अपना ध्यान चोल ग्रामीण प्रशासन और चोल कला पर केन्द्रित करें।

दिल्ली सल्तनत

  • यह मध्यकालीन इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। सन 1987 से 2017 तक पूछे गए प्रश्न थे - सबसे पहले जजिया किसने समाप्त किया?, सबसे अधिक भूमि राजस्व (50%) किसके काल में था?, व्यावसायिक बागवानी को किसने लोकप्रिय बनाया?, वास्तुकला की ढालुआ शैली को किसने प्रवर्तित किया?, अलाउद्दीन खिलजी की भू-राजस्व के संबंध में क्या सही है?, मुहम्मद-बिन तुगलक द्वारा प्रवर्तित नई मुद्रा क्या थी?, इक्ता व्यवस्था क्यों शुरू की गई?, इब्नेबतूता, क्यों शुरू की गई?, इब्नेबतूता, अल-बिरुनी, मार्को पोलो को कालक्रमानुसार सजाएं?, आर्थिक सुधार लागू करने के पीछे अलाउद्दीन खिलजी का मुख्य उद्देश्य क्या था, इत्यादि।
  • पिफरोज तुगलक के सिंचाई तंत्रा से सबसे अधिक लाभ किस क्षेत्रा को हुआ?, दिल्ली के किस सुल्तान ने अपने सामंतवर्ग में अकुलीनों को स्थान दिया?, राज्य के काम-काज में उलेमाओं की दखलंदाजी का कड़ा विरोध करने वाले कौन-कौन सुल्तान थे?, बहुत सारी हिन्दू धार्मिक कृतियों का संस्कृत से पफारसी में अनुवाद करने का आदेश किसने दिया?, 
  • वह कौन-सा पहला सुल्तान था जिसने शुद्ध( अरबी सिक्का और प्रामाणिक मुद्रा ‘टंका’ चलाया?, सिंचाई के लिए सबसे अधिक नहर का निर्माण किसने कराया भूमि की माप पर आधारित राजस्व-निर्धारण की प(ति किसने शुरू की?, अपने राज्यारोहण के ठीक पूर्व मुक्ति के रूप में सुल्तान इल्तुतमिश के पास कौन-सा इक्ता था?, कहां के शासकों ने सुल्तान-उस-शर्क की उपाधि धारण की थी?, दिल्ली सल्तनत में सीधे राजकीय सेवा में रहने वाला अमीर जिसने बलबन की साजिशों से सर्वोच्च पद खो दिया, कौन था?, दिल्ली सल्तनत में किस्मत ए खोते क्या था?, सन 2014 में महात्तार एवं पत्तकिला किसके लिए प्रयोग किया आता था?, सन् 2016 एवं 2017 में इस अध्याय से कोई भी प्रश्न नहीं था। 
  • हम पाते हैं कि प्रश्न सामान्य प्रशासन और कृषि व्यवस्था से तथा कभी-कभी सुल्तानों के अच्छे कार्यों से पूछे जाते हैं। अतः बुद्धिमानी इसी में है कि आप अपना ध्यान प्रशासनिक परिवर्तनों, कृषिक व्यवस्था, (अच्छे या बुरे ) और कला एवं साहित्य पर केन्द्रित करें। पांच सुल्तानों इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन ख़लजी, मुहम्मद-बिन-तुगलक और पिफरोज तुगलक के शासनकाल पर विशेष ध्यान दें।

उत्तर भारत और दक्कन के प्रांतीय साम्राज्य

  • सिविल सर्विसेज प्रारम्भिक परीक्षा की दृष्टि से मध्यकालीन भारतीय इतिहास का यह सबसे कम उपयोगी अध्याय है। अतः इस अध्याय के लिए बहुत समय देने की जरूरत नहीं है। दो बार इस अध्याय को पढ़ जाएं और हम समझते है कि वह पर्याप्त होगा। यदा-कदा ही इस अध्याय से प्रश्न पूछे जाते है। ध्यान रहे कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास के तीन अध्याय बहुत महत्वपूर्ण है और वे है चोल, दिल्ली सल्तनत, विजयनगर वे है चोल, दिल्ली सल्तनत, विजयनगर साम्राज्य, मराठा और मुगल साम्राज्य। 
  • आजकल ‘पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी के धार्मिक आंदोलन’ नामक शीर्षक की भी महत्ता बढ़ी है। अतः इन बातों के मद्देनजर आपका अध्ययन युक्तिपूर्ण ढंग से होना चाहिए। आप सारे अध्याय की तैयारी सही ढंग से नहीं कर सकते और न तो वैसा करने की जरूरत है। सर्वप्रथम आपको पूरे पाठ्यक्रम और पिछले वर्षों के दौरान पूछे गए प्रश्नों की विशिष्टताओं की मोटे तौर पर जानकारी होनी चाहिए। आपका अगला कदम महत्वपूर्ण अध्यायों का चुनाव करना और उन्हीं अध्यायों पर अपने ध्यान को केन्द्रित करना होना चाहिए। अंततः तथ्यों को एकत्रित करें तथा उन्हें याद रखें। यही आपकी सपफलता का राज होगा।

विजयनगर साम्राज्य

अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiविजय नगर साम्राज्य

  • 1336 ई. में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना आमतौर पर भारतीय इतिहास और खासकर दक्षिण भारतीय इतिहास की एक महान घटना थी। इसकी स्थापना दक्षिण भारत में तुगलक शासन के विरुद्ध राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन के परिणामस्वरूप हुई। संभवत इसी कारणवश यह अध्याय प्रश्न चयनकर्ताओं की नजर में महत्वपूर्ण हो गया है।
  • पहले हम विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों की प्रवृत्ति पर विचार करें। वर्ष 1988 से 2017 तक पूछे गए प्रश्न थे - ‘आयंगार’ प्रथा कहां प्रचलित थी?, विजयनगर साम्राज्य में ‘अमरम’ क्या थे? विजयनगर साम्राज्य प्रांतो में विभाजित था? जिसका प्रधान कौन होता था?, मण्डल, नाडु, कोट्टम को क्रमानुसार सजाएं, विदेशी भ्रमणकारियों ने विजयनगर के संबंध में किन बातों की पुष्टि की है?, सायन और माधव विद्यारण्य किसके संरक्षण में थे?, विजयनगर में भूमि काश्तकारी के संबंध में कौन-सा कथन सही है?
  • कृष्णदेव राय किस अवधि के बीच विजयनगर साम्राज्य का राजा था?, किस लेखक ने विजयनगर साम्राज्य का एक समकालीन विवरण लिखा है?, किस भू-भाग के लिए बहमनी राज्य एवं विजयनगर साम्राज्य बार-बार लड़ते रहे?, कौन-सा विजयनगर शासक आमुक्तमाल्यद का रचयिता था? खेती को किस प्रकार से बढ़ावा देने के लिए विजयनगर राजाओं को याद किया जाता है?, पश्चिमी तट पर विजयनगर साम्राज्य का प्रमुख व्यापारिक पत्तन कहाँ था? सन् 2015 में प्रश्न था- कृष्णा नदी के दक्षिण में किसने एक नये शहर की स्थापना की?।2015 में प्रश्न था- कृष्णा नदी के दक्षिण में किसने एक नये शहर की स्थापना की?
  • प्रश्नों की प्रवृत्ति को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि सामान्यतः तत्कालीन प्रशासन और समाज से प्रश्न पूछे जाते है। अतः विजयनगर प्रशासन और सामाजिक स्थिति पर ध्यान केन्द्रित करने में ही समझदारी है। इसके साथ ही विदेशी यात्रियों के विवरण, कालक्रमानुसार उनका भारत आगमन, कृष्णदेव राय की उपलब्धियां, तत्कालीन सांस्कृतिक और कलात्मक उपलब्धियां आदि की तैयारी भी आवश्यक है।

भारतीय-इस्लामी संस्कृति

  • इस्लाम के भारत आगमन के साथ सांस्कृतिक परंपराओं का अनोखा संगम हुआ जिसके परिणामस्वरूप एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ। इस सांस्कृतिक सम्पर्क का प्रमाण वास्तुकला, चित्रकला, साहित्य और संगीत में देखा जा सकता है साथ ही, धार्मिक क्षेत्रा में भी यह स्पष्ट दृष्टिगोचर है। 
  • भारतीय वास्तुकला की बहुत सारी विशेषताएं मुस्लिम शासकों के वनों में पाई जाती है, क्योंकि उन भवनों का डिजाइन तो मुस्लिम वास्तुकारों द्वारा तैयार किया गया था, परंतु वास्तव में उसका निर्माण हिन्दू शिल्पियों द्वारा ही किया गया। तुर्क विजेताओं द्वारा अपने साथ लायी गई विशिष्टताएं थीं

भारतीय इस्लामी संस्कृतिभारतीय इस्लामी संस्कृति

  • खिलजी शासकों के स्मारकों में प्रचुर आलंकारिक गुण पाए जाते है। तुगलक के भवनों में नितान्त सादगी और सरलता का दर्शन होता है। सल्तनत कालीन चित्रकला में नव-परिवर्तन फारसी और पारंपरिक भारतीय शैली के समन्वय का प्रयास दृष्टिगोचर होता है। बहुत-सी सचित्रा पांडुलिपि जैन और राजस्थानी चित्रकारी शैली का प्रभाव दर्शाती है।
  • सल्तनतकालीन चित्रकारी परंपरा से तीन प्रमुख उपशैलियों का उद्भव हुआ - मुगल, राजस्थानी और दक्कन शैलियां। इस तरह का संयोजन साहित्य और संगीत के क्षेत्रा में भी मिलता है। दो संस्कृतियों के इस सम्मिलन का एक अच्छा उदाहरण है - उर्दू भाषा का विकास। मूलतः इसे जबान-ए-हिन्दी कहा जाता था।
  • इस अध्याय के लिए अलग से तैयारी करने की जरूरत नहीं पड़ती है। जब आप ‘दिल्ली सल्तनत’ के बारे में अध्ययन कर रहे होते है, तभी इस अध्याय से संबंधित बातों को अपने दिमाग में बिठा लें। हमने इस अध्याय को अलग से प्रस्तुत इसलिए किया है, क्योंकि इतिहास एक लें। हमने इस अध्याय को अलग से प्रस्तुत इसलिए किया है, क्योंकि इतिहास एक अविच्छिन्न प्रक्रिया है।

धार्मिक आंदोलन

अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiप्राचीन भारत के धार्मिक आंदोलन

  • मध्यकालीन सुधारकों ने आम जनता को न सिर्फ सामाजिक और धार्मिक अत्याचारों से उबारा, बल्कि देश के सांस्कृतिक विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। इस काल के धार्मिक पुनर्जागरण का उद्देश्य सहनशीलता और सहयोग का वातावरण तैयार करना था। इन सुधारकों? ने जिस सिद्धांत  पर सबसे ज्यादा जोर दिया वह यह था कि चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, ब्राह्मण हो या अन्य सबके ईश्वर एक है, और ईश्वर के सामने सभी बराबर है।
  • वे धार्मिक पक्षपात, कट्टरता और असहिष्णुता को कम करने में सपफल हुए, जो आज भी समय की मांग है। यही कारण है कि इस अध्याय की महत्ता बढ़ी है। इन संतों ने बाह्याडंबरों और अनुष्ठानों की व्यर्थता को उजागर किया और लोगों के दिलोदिमाग को पोंगा पंडितों और मुल्लाओं के प्रभुत्व से छुटकारा दिलाया। सूफी और भक्ति संतों के महान कार्यों, उनके मतों और उपदेशों को वैज्ञानिक ढंग से तैयार करें।
  • इस काल में धार्मिक आंदोलनों ने क्षेत्राीय भाषाओं के साहित्यों को समृ( बनाने में कापफी योगदान दिया, और मध्यकालीन भारतीय साहित्ंय पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। अतः आपकी तैयारी की पूर्णता के लिए उपर्युक्त सभी शीर्षकों की जानकारी आवश्यक है। ध्यान रहे कि इन दोनों भक्ति और सूपफी समकालीन धार्मिक आंदोलनों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसने भारतीय समाज को मतान्ध विश्वासों, कर्मकान्डों तथा जातीय और साम्प्रदायिक द्वेषों से मुक्त कराने में बहुत हद तक सपफलता पाई। 
  • सन् 2011 से अब तक इस अध्याय से ज्यादा प्रश्न नहीं पूछे गए। सन् 2013 में भक्ति संत और किस राज्य से वे जुड़े थे उनको सुमेल करना था। सन् 2014 में बीजक और माधवाचार्य के दर्शन के बारे में पूछा गया।

मुगल साम्राज्य (1526-1707 ई.)

  • यह मध्यकालीन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है। मुगल काल बहुआयामी उक्ति के लिए मशहूर है और इसे ‘द्वितीय क्लासिकी युग’ कहा गया है - ‘प्रथम क्लासिकी युग’ उत्तर भारत में गुप्त काल था। था। इस अध्याय से सामान्यतः प्रश्न पूछे जाते है। अब हम विगत वर्षों के प्रश्नों पर विचार करें।
  • वर्ष 1980 से 2017 में पूछे गए प्रश्न थे - भू-राजस्व की टोडरमल प(ति किसकी नकल थी?, मुगलों की राजभाषा क्या थी?, दारा शिकोह औरंगजेब से हार गया क्योंकि, अकबर की राजपूत नीति का सर्वोत्तम वर्णन किस रूप में हो सकता है?, अकबर ने बुलन्द दरवाजा का निर्माण क्यों करवाया था?, पुरंदर की संधि किस-किस के बीच हुई?, आदि ग्रंथ का संकलन किसने किया?, दल खालसा की स्थापना किसने की आदि। 
  • यहां सिक्ख इतिहास के प्रश्नों की भी गणना की गई है, क्योंकि या तो ये प्रश्न मुगल-सिक्ख संघर्ष से संबंधित है या इन्हें मुगल-सिक्ख संबंध शीर्षक के अंतर्गत रखा जा सकता है। सामान्यतः मुगलों के दमनकारी कार्यों से संबंधित प्रश्नों की अनदेखी की जाती है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि मुगलों को अन्यदेशी नहीं माना जाता है। अब वे भारतीय समाज के एक घटक माने जाते है।
  • अन्य प्रश्न थे दिल्ली का जामा मस्जिद किसने बनवाया था?, किसके काल में प्रतिकृति चित्रकारी अपने सर्वोत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त की?, ‘पितरा दुरा’ किसके काल में प्रयुक्त हुआ?, दीन-ए-इलाही क्या था?, निम्नलिखित में से कौन-सा तत्व अकबर द्वारा शेरशाह सूरी की भू-राजस्व व्यवस्था से गृहीत नहीं था?, बर्नियर ने किसके काल में भारत की यात्रा की, निम्नलिखित में से कौन-सा मुगल शासक अपनी मृत्यु के बाद ‘अर्श-आसियानी’ से संबोधित किया गया, निम्नलिखित में से कौन औरंगजेब की मृत्यु के समय एक स्वतंत्रा राज्य था? 
  • जहांगीर के शासनकाल में किस चीज के चित्रांकन के कारण मुगल चित्रकारी में एक नया आयाम जुड़ा? किसके शासनकाल में प्रतिकृति चित्रकारी अपने सर्वोत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त की? वैसे मनसबदार जिनको शाहजहां द्वारा छः-मासी श्रेणी में रखा गया था, उनके लिए क्या आवश्यक था? किस मुगल राजकुमार को यह श्रेय प्राप्त है कि वह मुगल चित्रकारी का एलबम रखता था? निम्नलिखित में से किसने बादशाह या संप्रभुता को जिल-अल-अल्लाह की अवधारणा के विपरीत पफर्र-ए इज्दी के रूप में परिभाषित किया?, मुगल राजस्व प्रशासन की शब्दावली में जमीं पायमुदाह शब्द का क्या तात्पर्य है?, किसके / किनके शासकों को मुगल बादशाह तरफदार कहते थे? 
  • मुगल अधिकारियों में से किसका सम्बन्ध धार्मिक मामलों से नहीं था?, अकबर ने बुलन्द दरवाजा क्यों बनवाया था?, सन् 2014 में पफतेहपुर सिकरी इबादत रवाना के बारे में प्रश्न पूछा गया। सन् 2015 में एक प्रश्न था- बाबर के आगमन के साथ भारत में क्या आया- बारूद, आर्क एवं गुम्बद, तिमुर राजवंश। विगत वर्षों के प्रश्नों को आर्क एवं गुम्बद, तिमुर राजवंश। विगत वर्षों के प्रश्नों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है 
  • कि निम्नलिखित शीर्षकों पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए
    (i) मुगल प्रशासन की प्रकृति,
    (ii) प्रांतीय प्रशासन,
    (iii) भू-राजस्व,
    (iv) वास्तुकला,
    (v) चित्रकारी,
    (vi) साहित्य,
    (vii) विदेशी यात्री,
    (viii) अकबर, जहांगीर, शाहजहां और दारा शिकोह की उपलब्धियां।
  • कभी-कभी शासकों की साम्राज्यवादी रवैये पर आधारित प्रश्न भी पूछे जाते है। अतः उपर्युक्त शीर्षकों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। घबराएं नहीं, क्योंकि वही आपका सबसे बड़ा शत्रु है।

यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत

अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiयूरोप में वाणिज्यवाद का विकास

  • यह अध्याय सिविल सर्विसेज प्रारम्भिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। है। नियमित रूप से प्रश्न इस अध्याय से पूछे जाते है। यूरोपीय वाणिज्य की शुरुआत भारत की मध्यकालीन वाणिज्यिक समृद्धता और दो शताब्दी के ब्रिटिश शासन के दौरान औपनिवेशिक विपक्तता तथा उससे उत्पन्न गरीबी के बीच सेतु के रूप में है। प्रारम्भ से ही यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियां भारत के तटीय प्रदेशों में दुर्गीकृत व्यापारिक बस्तियों, जिन्हें पफैक्ट्री कहा जाता था, का निर्माण करने लगीं। 
  • ये बस्तियां स्थानीय सत्ता के प्रशासनिक नियंत्रण से मुक्त थीं। कालांतर में वाणिज्यिक प्रयोजन का स्थान क्षेत्राीय और राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने ले ली जिसके परिणामस्वरूप भारत औपनिवेशिक जाल में पफंस गया।
  • अब हम प्रश्नों के पैटर्न पर विचार करें। वर्ष 1980 से 2017 तक पूछे गए प्रश्न थे - स्वतंत्रा रूप से कार्य करने का प्रयास करने के कारण किस फ़्रांससी जनरल को वापस बुला लिया गया था?, औपनिवेशिक शक्तियों के भारत आगमन को कालक्रमानुसार सजाए, किसने भारत में पुर्तगाली अधिकार-क्षेत्रा का बहुत अधिक विस्तार किया?, किस अधिनियम द्वारा अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के आर्थिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया?, अल्बुकर्क ने किस शासक से 1510 ई. में गोवा को जीत लिया?, एक प्रश्न में ब्रिटिश व्यापारिक केन्द्रों को उनकी स्थापना के क्रम में सजाना था। 
  • सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों में यूरोपवासी प्रौद्योगिकी के किस वस्तु को भारत लाए?, सत्राहवीं शताब्दी में नील के उत्पादन के लिए कौन प्रसिद्ध था?, किसने सर्वप्रथम यूरोपीय चल धातु-सदृश मुद्रण यंत्रा में रुचि ली?, इसके अलावे एक मिलाने वाला और एक चन्द्रनगर से संबंधित प्रश्न था। अतः कहा जा सकता है कि तैयारी की कोई एकरूप पद्धति नहीं हो सकती। हां, सूक्ष्म तथ्यों को याद करने की आदत जरूर डालें। हम यहां भारत में पुर्तगालियों, डचों, अंग्रेजों और फ्रफांसीसियों के वाणिज्यिक गतिविधियों की विभिन्न अवस्थाओं को अलग-अलग प्रस्तुत कर रहे है।

 मराठा साम्राज्य एवं राज्यसभा

अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiमराठा साम्राज्य और संघ

  • शिवाजी के नेतृत्व में मराठों के उदय से मुगलों के गौरव को गंभीर झटका लगा। आगे की करीब आधी शताब्दी तक मुगल साम्राज्य को अपनी अधिकांश सैनिक शक्ति मराठों के विरुद्ध लगानी पड़ी। इतना ही नहीं, मुगल शासक औैरंगजे़ब को अपने शासन का अंतिम पच्चीस वर्ष दक्षिण में मराठों से युद्ध  करते हुये बिताना पड़ा। 
  • मराठों के विरुद्ध  करीब आधी सदी तक चला यह संघर्ष मुगल साम्राज्य के लिए अनर्थकारी सिद्ध अनर्थकारी सिद्ध  हुआ। अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक महान मुगलों की चार पीढ़ियों ने दक्षिण में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए साम्राज्य के संसाधनों को लगाया था, लेकिन मौका पाते ही सत्राहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मराठों ने मुगलों की उन उपलब्धियों को तहस-नहस कर डाला। 1761 ई. मेंपानीपत की तीसरी लड़ाई में निर्णायक पराजय तक मराठा भारत की सर्वाधिक दुर्जेय शक्ति के रूप में उभरे थे।
  • अब हम प्रश्नों पर विचार करेंगे। प्रायः मराठा इतिहास की प्रारंभिक अवस्था से प्रश्न नहीं पूछे जाते है। अगर कभी उस भाग से प्रश्न पूछे भी जाते हैं, तो वह प्रशासन, राजस्व व्यवस्था, सैन्य संगठन आदि से संबंधित होता है। इस भाग से प्रश्न नहीं पूछे जाने का भी वही कारण हो सकता है जिसकी चर्चा ‘मुगल साम्राज्य’ की भूमिका में की गई है। इस काल की परवर्ती अवस्था पेशवाशाही और पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारण महत्त्वपूर्ण है।
  • दरअसल, पानीपत की तीसरी लड़ाई ने ब्रिटिश शक्ति के उदय का मार्ग प्रशस्त किया और वही कालांतर में भारत की सर्वोच्च शक्ति बन गई। पेशवा के समय में प्रशासन, उनका राजनीतिक इतिहास, मराठा-ब्रिटिश संघर्ष और पानीपत की तीसरी लड़ाई से संबंधित लोगों पर आधारित प्रश्न पूछे जाते है। मराठा काल की आरंभिक और परवर्ती अवस्थाओं के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करें।
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FAQs on अभ्यर्थियों के लिए सुझावः जरूर पढ़ें - (भाग - 2), इतिहास, UPSC - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. मध्यकालीन अभ्यर्थियों के लिए इतिहास के भाग 2 के लिए कौन से पुस्तकों को सलाह दी जा सकती हैं?
Ans. इतिहास के मध्यकालीन भाग 2 के लिए कुछ सलाहित पुस्तकें हैं: - "मध्यकालीन भारत: विश्व इतिहास का एक संक्षेप" लेखक: सतीश चंद्र - "मध्यकालीन भारत का इतिहास" लेखक: सतीश चंद्र - "मध्यकालीन भारत: 1206-1526" लेखक: सतीश चंद्र - "मध्यकालीन भारतीय इतिहास" लेखक: सतीश चंद्र
2. मध्यकालीन भारत में कौन-कौन से राज्य थे?
Ans. मध्यकालीन भारत में कुछ मुख्य राज्य थे: - दिल्ली सल्तनत - विजयनगर साम्राज्य - बहमनी सुल्तानत - राजपूत राज्य - बंगाल सत्त्रारुढ़ राज्य - ऋषीभूमि (मगध साम्राज्य)
3. मध्यकालीन अभ्यर्थियों के लिए इतिहास के भाग 2 में कौन-कौन से घटनाओं के बारे में अधिकतर प्रश्न पूछे जाते हैं?
Ans. मध्यकालीन भाग 2 में कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में अधिकतर प्रश्न पूछे जाते हैं: - दिल्ली सल्तनत का स्थापना - अलाउद्दीन खिलजी की शासनकाल - तुगलक वंश का शासनकाल - विजयनगर साम्राज्य की स्थापना - बहमनी सुल्तानत का शासनकाल
4. मध्यकालीन भाग 2 में दिल्ली सल्तनत की क्या विशेषताएं थीं?
Ans. मध्यकालीन भाग 2 में दिल्ली सल्तनत की कुछ विशेषताएं थीं: - इसकी स्थापना 1206 में की गई थी और यह 1526 तक अखिल भारतीय शासन का महत्वपूर्ण केंद्र रही। - यह सल्तानत इस्लामी शासन का प्रतीक रही और इसके अधीन धार्मिक सहिष्णुता की भावना थी। - दिल्ली सल्तानत ने भारतीय संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डाला, विशेष रूप से वाणिज्यिक और सांस्कृतिक तालमेल के माध्यम से।
5. मध्यकालीन भारत में कौन-कौन से सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के अवसर थे?
Ans. मध्यकालीन भारत में कुछ सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के अवसर थे: - व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि और वाणिज्य का विकास - विशेष रूप से बाजारों के विकास और वाणिज्यिक महत्व का बढ़ना - विजयनगर साम्राज्य और बहमनी सुल्तानत के शासनकाल में कला और साहित्य में विकास - धार्मिक सहिष्णुता के माध्यम से विभिन्न धर्मों के बीच संघर्ष के कम होने का अवसर
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