UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

ईसा पूर्व लगभग

  • 3102- कलियुग संवत की शुरुआत; कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध।
  • 3400-1750 - सिंधु घाटी सभ्यता।
  • 2700 - सिन्धु घाटी में मुहरों के मिलने की तिथि।
  • 817 - पार्श्वनाथ के जन्म की पारंपरिक तिथि।
  • 544 - सिंहली परंपरा के अनुसार बुद्ध की निर्वाण तिथि।

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

  • 527 - महावीर के निर्वाण की पारम्परिक तिथि।
  • 519 - डेरियस प्रथम का बेहिस्तून अभिलेख।
  • 486 - चीनी परंपरा के अनुसार बुद्ध की निर्वाण तिथि।
  • 327-326 - सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण।
  • 325 - भारत में सिकन्दर का प्रस्थान।
  • 323 - बेबीलोन में सिकन्दर की मृत्यु।
  • 322 - चंद्रगुप्त मौर्य का सिंहासन पर आरोहण।
  • 305 - सेल्यूकस निकेटर का भारतीय अभियान।

सेल्युकस प्रथम निकेटरसेल्युकस प्रथम निकेटर

  • 298 - बिंदुसार के सिंहासन पर आरोहण।
  • 273-232 - अशोक का शासन काल।
  • 187 - मौर्य वंश का उच्छेदन तथा शुंग वंश का परिवर्तन होना।
  • 73 - शुंग वंश का पतन और कण्व वंश का उदय।
  • 58 - विक्रम संवत का प्रारम्भ।
  • 50 - खारवेल - कलिंग का राजा।
  • 20 - कण्व वंश का पतन।
  • 2 - बौद्ध भिक्षुओं का बैक्ट्रिया (बख्त्री) के दरबार से चीनी सम्राट के लिए प्रस्थान।

ईस्वी सन्

  • 47- गोंडोफारस (गुडफार) का ऐतिहासिक दस्तावेज।
  • 64 - चीनी सम्राट मिंग-ती द्वारा भारत से बौद्ध ग्रंथ लाने के लिए अपने दूतों को भेजना।
  • 66 - भारतीय बौद्ध भिक्षु कश्यप मतंग और गोकर्ण का चीन में आगमन।
  • 77 - प्लिनी का 'प्राकृतिक इतिहास'।
  • 78 - शक संवत का प्रारम्भ। पंजाब में कुषाण वंश का प्रारम्भ।
  • 78-110 - कदफिश द्वितीय का शासन काल।
  • 110-1220 - नाम-रहित राजा का काल।
  • 119-.124 - नाहयान।
  • 120-162 - कनिष्क का शासनकाल।
  • 162-182 - हुविष्क का शासनकाल।
  • 182-220 - वासुदेव का शासनकाल।
  • 226 - फारस में सासैनियन राजवंश की शुरुआत।
  • 320 - गुप्त काल का प्रारंभ।
  • 360 - समुद्रगुप्त के निकट सिंहली दूतावास का आगमन।
  • 405-411 - फाहियान का भारत भ्रमण।
    चीनी यात्री फाहियान

    चीनी यात्री फाहियान

  • 415-455 - कुमार गुप्त प्रथम का शासनकाल।
  • 455-467 - स्कन्द गुप्त का शासन काल।
  • 476 - खगोलवेत्ता आर्यभट्ट का जन्म।
  • 533 - यशोधर्मन ने मिहिरकुल को पराजित किया।
  • 547 - कॉसमस इंडिकोप्लेटस।
  • 566 - चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन प्रथम का सिंहासनारोहण।
  • 606 - हर्षवर्धन का सिंहासनारोहण।
  • 609 - पुलकेशिन द्वितीय का राज्याभिषेक।
  • 619-620 - पूर्वी भारत में शशांक।
  • 622 - हिजरी सन् का प्रारम्भ।
  • 629 - ह्वेन सोंग की भारत यात्रा शुरू।
  • 634 - ऐहोल अभिलेख में कालिदास और भारवि का उल्लेख।
  • 637 - अरबों का सिंध में थाना पर आक्रमण।
  • 639 - सोंग चान-सम-पो द्वारा ल्हासा शहर की स्थापना।
  • 642 (लगभग) - पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु।
  • 642-668 - पल्लव नरेश नरसिंह वर्मा का शासन काल।
  • 643 - ह्वेन सांग से हर्ष का मिलन - प्रयाग में हर्ष का छठा पंचवर्षीय सम्मेलन - ह्वेन सांग का प्रस्थान।
  • 645 - ह्वेन सोंग की चीन वापसी।
  • 646-647(ल.) - हर्षवर्धन की मृत्यु।
  • 647-648(ल.) - कामरूप के राजा भास्कर वर्मा द्वारा वांग हुएन-त्से की सहायता।
  • 664 - चीन में ह्वेन सोंग की मृत्यु।
  • 674 - विक्रमादित्य प्रथम चालुक्य और परमेश्वर वर्मा प्रथम पल्लव।
  • 675-685 - नालंदा में इत्सिंग।
  • 710-711 - मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण।
  • 712 - अरबों द्वारा विजय - निरुण और अलोर की विजय - सिंध के राजा दाहिर की हार और मृत्यु।
  • 713 - मुसलमानों द्वारा मुल्तान पर अधिकार।
  • 743-789 - तिब्बत में शान्तरक्षित और पद्म सम्भव।
  • 753 - राष्ट्रकूट वंश का प्रारम्भ।
  • 783 - वत्सराज द्वारा प्रतिहार वंश का प्रवर्तन।
  • 815-877 - अमोघवर्ष का शासनकाल।
  • 829 - हर्जर का कामरूप का राजा होना।
  • 871-907 - आदित्य प्रथम चोल।
  • 907 - चोल राजराजा महान के सिंहासन पर आरोहण।
  • 962 (लगभग) - गजनी साम्राज्य का संस्थापक।
  • 973 - कल्याणी के चालुक्य वंश का प्रारंभ।
  • 977 - सुबुक्तगीन का प्रथम आक्रमण।
  • 985 - चोल राजराज महान का सिंहासनारोहण।
  • 986-987 - सुबुक्तगीन का प्रथम आक्रमण।
  • 997 - सुबुक्तगीन की मृत्यु।
  • 998 - सुल्तान महमूद का स्वर्गारोहण।
  • 1001 - जयपाल की पराजय एवं बलिदान।
  • 1012-44 - राजेंद्र चोल प्रथम का शासनकाल।
    चोल राजा राजेन्द्र की सैन्य विरासत

    चोल राजा राजेन्द्र की सैन्य विरासत

  • 1018 - सुल्तान महमूद द्वारा कन्नौज पर आक्रमण।
  • 1026 - सुल्तान महमूद द्वारा सोमनाथ मंदिर को लूटना।
  • 1076-1141 - उड़ीसा के राजा अनंत वर्मा चोडागंग - पुरी में जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण।

आपके लिए कुछ प्रश्न उत्तर

प्रश्न.1. कनिष्क के शासनकाल में कला का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर: कला की उन्नति - कनिष्क का शासन काल 78 ई. से 101 ई. तक रहा। कनिष्क ने लगभग 23 वर्षों तक शासन किया। माना जाता है कि युद्ध में घायल होने के कारण उसके ही सेनापति ने उसे मार डाला। कनिष्क एक कला प्रेमी था। उसने अपने शासनकाल में अनेक भवनों और स्तूपों का निर्माण करवाया था। कुषाण साम्राज्य की उन्नति के लिए कनिष्क का शासक बनना एक उल्लेखनीय घटना थी। भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कनिष्क को कनिष्क प्रथम के नाम से भी जाना जाता है।

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

"कनिष्क का भारत के कुषाण सम्राटों में सबसे आकर्षक व्यक्तित्व है। वह बौद्ध धर्म का एक महान विजेता और संरक्षक था। वह चंद्रगुप्त की क्षमता और अशोक के धार्मिक उत्साह का एक संयोजन था।" -डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी

  • कनिष्क ने अपनी राजधानी पुरुषपुर में 400 फीट ऊंची और 13 मंजिला मीनार बनवाई थी, जिसके ऊपर लोहे की धातु की एक बड़ी छतरी भी बनी थी। इस स्थान पर एक नगर की स्थापना की गई और पुरुषपुर में कनिष्कपुर नमक की स्थापना की गई तथा एक अन्य नगर की स्थापना की गई। ग्रीक और भारतीय कलाओं के मेल से महान और विश्व प्रसिद्ध गांधार कला का विकास कनिष्क के शासनकाल में हुआ।

गान्धार औऱ मथुरा कला: 

  • कुषाण नरेश केवल विजेता नही अपितु कला मर्मज्ञ और कला के प्रेमी भी थे कनिष्क एक महान निर्माता था उसके शाशनकाल में विशेष उन्नति हुई कनिष्क के शासन काल मे बोद्ध धर्म की एक नई शाखा के उदय ने कला के क्षेत्र में एक नवीन शैली को जन्म दिया प्राचीन बौद्ध मूर्तिकला महात्मा बौद्ध की मूर्तियों का निर्माण नही होता था उनकी उपस्थिति कला में पद चिन्हों बोधिवृक्ष रिक्त आसन आदि के द्वारा दर्शाया जाता था लेकिन बौद्ध धर्म की नई शाखा महायान के उदय के बाद महात्मा बुद्ध की मूर्तियां व उनकी पूजा बौद्ध और उनके अनुयायियों द्वारा उनका प्रिय विषय बन गई इन मूर्तियों का निर्माण मुख्यत गान्धार प्रदेश में इस कला का नाम गान्धार कला पड़ा l
  • इसके अतिरिक्त कुषाण युग मे मथुरा भी एक प्रमुख कला केंद्र था जिसे मथुरा कला के रूप में पुकारा जाता था l गान्धार कला के विषय भारतीय हैं किंतु तकनीक यूनानी है इसी कारण गान्धार कला को इंडो -ग्रीक ,इंडो- हैलेनिक ,इंडो -रोमन ,इंडो-ग्रीको रोमन तथा इंडो-बौद्धिस्ट कला के नाम से भी जाना जाता है l 
  • मथुरा कला का उदय सांची ,सारनाथ और भरहुत की स्वदेशी कला को लेकर हुआ था बौद्ध मूर्तियों के अतिरिक्त जैन व ब्राह्मण देवी देवताओं की मूर्तियां भी मथुरा कला में बनाए गई l इस प्रकार कनिष्क के शाशनकाल में कला की उन्नति हुईl
    ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi


प्रश्न.2. हर्षवर्धन तथा उसकी उपलब्धियाँ का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिये?
उत्तर: गुप्तों के पतन के बाद जब उत्तरी भारत में अनेक जनपदों का आविर्भाव हो रहा था उस समय थाणेश्वर श्रीकण्ठ जनपद की राजधानी था। इस जनपद को प्रारम्भिक संस्थापक पुष्यभूति था। कहते हैं कि वह अपने वंश का प्रथम नरेश था और अपने नाम पर ही पुष्यभूति वंश की स्थापना की । पुष्यभूति वंश का संस्थापक पुष्यभूति नामक राजा ही था और हर्षवर्धन इस वंश का छठा नरेश था । बांसवाड़ा के ताम्रलेख, सोनपत की ताम्र मुहर, नालन्दा में प्राप्त मुहर तथा मधुवन लेख से हर्ष के पाँच पूर्वजों का बोध होता है।

  1. नरवर्धन
  2. राज्यवर्धन
  3. आदित्यवर्धन
  4. प्रभाकरवर्धन और
  5. राज्यवर्धन द्वितीय

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

  • इस प्रकार हर्षवर्धन इस वंश का छठा शासक था । परन्तु इसके ज्येष्ठ भ्राता राज्यवर्धन द्वतीय का शासन तो अति अल्पकालीन ही सिद्ध हुआ। 
  • पुष्यभूति वंश का प्रथम प्रतापी शासक प्रभाकर वर्धन था जिसने सर्वप्रथम अपने को महाराजाधिराज, परमभट्टारक की उपाधि से विभूषित किया। अत: इन उपाधियों के आधार पर स्पष्ट है कि प्रभाकर वर्धन के समय में यह वंश गुप्त वंश के प्रभत्व से सर्वथा मुक्त हो गया था। 
  • बाण ने अपने ग्रंथ में प्रभाव १धन की दिग्विजय का वर्णन बडे ही अलंकारिक रूप में किया है। उसमें लिखा है, ५ वचन पूर्ण रूपी हरिण के लिए सिंह सिन्धु राज के लिए ज्वर, गुर्जर की निद्रा को अंग वाला, गांधार नरेश रूपी सुगन्ध हाथी के लिए महामारी, लाटों की पटुता को अपहरण व वाला और मालवा देश की लता रूपी लक्ष्मी की शोभा को नष्ट करने वाला परश था।
  • मधुवन लेख भी बताता है कि प्रभाकर वर्धन की कीर्ति चारों समुद्र के पार पहुंच गई थी । प्रभाकर वर्धन शिव का उपासक था । हर्ष चरित की धारणा है कि सूर्य की अनुकम्पा से ही प्रभाकर वर्धन के तीन सन्तानें हुई थीं राज्य वर्धन, हर्ष वर्धन तथा राज्यश्री। 
  • वैवाहिक सम्बन्ध से अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए प्रभाकर वर्धन ने अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी राजा गृहवर्धन से कर दिया था।

हर्ष का प्रारम्भिक जीवन 

  • हर्षवर्धन प्रभाकर वर्धन का छोटा पुत्र था। जो रानी यशोमती से उत्पन्न हुआ था। इसका जन्म 590 ई. में हुआ था। इसका बाल्यकाल इसके मामा के पुत्र भाण्डी के साथ व्यतीत हुआ। 
  • पढ़ने लिखने में उसकी अच्छी रुचि थी । बाण ने लिखा है कि हर्ष ने शास्त्र विद्या पूर्ण रूप से सीखी । हर्षवर्धन में किशोरावस्था से ही सैनिक गुण विकसित हो चुके थे। 
  • वह पराक्रमी और वीर था । हर्ष को युद्ध कला की शिक्षा समुचित रूप से दी गई थी। उसे शिकार खेलने का बहुत शौक था।

हर्ष का सिंहासनारोहण

  • कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जब 606 ई. में प्रभाकर वर्धन इस लोक से विदा हो गया तो राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा । 
  • परन्तु उसका शासन अल्पकालीन सिद्ध हुआ। उसके गद्दी पर बैठने के कुछ ही समय पश्चात् मालवा के परवर्ती गुप्त शासक देवगुप्त ने बंगाल के राजा शशांक के साथ मिलकर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और वहाँ के राजा गृह वर्मन को मारकर उसकी पत्नी राज्यश्री को कैद कर लिया। 
  • राज्यवर्धन यह समाचार सुनकर अपने बहनोई की हत्या का प्रतिशोध लेने और अपनी बहन राज्यश्री को छुड़ाने के लिए एक विशाल सेना लेकर पूर्व में गौड़ (बंगाल) की ओर बढ़ा। 
  • मालवा का राजा देवगुप्त तो परास्त हो गया। परन्तु देवगुप्त के मित्र शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन को मार डाला और कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
  • राज्यवर्धन की मृत्यु के पश्चात इसके उत्तराधिकारी के रूप में उसका छोटा भाई हर्षवर्धन थानेश्वर का राजा बना। 
  • हर्षवर्धन प्रभाकर वर्धन का दूसरा पुत्र था। अपने भाई राज्यवर्धन का वध हो जाने पर विवश होकर उसे 606 ई. में सिंहासन सम्भालना पड़ा। उस समय उसकी आयु केवल 16 वर्ष की थी।

हर्षवर्धन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ  
हर्ष को शासक बनते ही कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
जो निम्न थी:
(1) ज्येष्ठ भ्राता की असामयिक मृत्यु से उत्पन्न परिस्थितियों का सामना करना ।
(2) कन्नौज के राजा गृहवर्मन का वध तथा वहाँ के उत्तराधिकारी का प्रश्न ।
(3) बहिन राज्यश्री की तलाश करना जो मालवा नरेश द्वारा मुक्त किये जाने पर पर्वतों की ओर सती होने के लिए चली गई थी।
(4) राज्य के चारों ओर शत्रुओं की उपस्थिति ।।

  • हर्ष ने बड़े साहस एवं धैर्य के साथ इन समस्याओं का सामना किया। हर्षवर्धन बर्ड सेना लेकर इन समस्याओं के निवारण के लिए निकल पड़ा। 
  • रास्ते में उस समाचार मिला कि उसकी बहिन राज्यश्री बन्दीगृह से निकलकर विन्ध्याचल के वनों में चली गई है। 
  • अब हर्ष अपने सेनापति भाष्डि को शशांक पर निगाह रखने के आदेश देकर बहिन की खोज में निकल पड़। 
  • हर्ष अपनी बहन के पास उस समय पहुँचा जब कि वह एक चिता बन का टि दृन जा रही थी। 
  • राज्य के लेकर हुई कुनौज गया परन्तु शशांक हुई से भयभीत हे कोड छेडकर भाग गया। इस प्रकार बिना किसी संघर्ष के काज त ह गया।

कन्नौज के उत्तराधिकार के प्रश्न

  • बहिन के अपने साथ ले आने के बाद दृई ने कन्नौज के उत्तराधिकार के प्रश्न को इल करना चाहा। गृहवर्मा निसन्तान भरा था। इसलिए यह प्रश्न और भी जटिल बन गया था। 
  • परन्तु कनौज के मंत्रियों ने भाष्डि के नेतृत्व में हुई से ही नौज की गद्दी पर बैठने का आग्रह किया। पहले तो दृई ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। 
  • परन्तु अन्त में बहिन श्री और वहाँ के मंत्रियों के समझाने पर दृर्ष ने कन्नौज का भी राजा बनना स्वीकार कर लिया। 
  • वहाँ का शासन उसने अपनी बहिन की मंत्रणा से ही संचालित किया तथा अपने को शीलादित्य के विरुद्ध तथा कुमार की उपाधि से ही अलंकृत किया। 
  • कहा जाता है कि अवलोकितेश्वर बोधिसत्व के कहने पर द्रै ने ही कुमार की उपाधि धारण की थी, लेकिन यह घटना इतिहास में महत्वपूर्ण हो गई। इससे दृष्टिवर्धन थानेश्वर तथा कन्नौज टनों का स्वामी बन गया और फलस्वरूप उत्तरपथ में पुनः एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना हो सकी।

हर्षवर्धन की दिग्विजय अथवा विजयें 
थानेश्वर तथा कन्नौज नगरों का शासक बनने के कारण हुई की सैन्य एवं राजनीतिक शक्ति में भारी वृद्धि हुई। द्रिष्ण को अपने साम्राज्य के रूप में रखने के लिए राजनीतिक एकता स्थापित करना बहुत आवश्यक था।


प्रश्न.3. समुद्रगुप्त की निम्नलिखित में से कौन सी ऐसी नीति थी जो विशेष रूप से दक्षिणापथ के शासकों के प्रति थी?
(a) उनके राज्यों को उखाड़ फेंका गया और समुद्रगुप्त के साम्राज्य का हिस्सा बनाया गया।
(b) उन्होंने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की और अपनी बेटियों का विवाह उससे किया।
(c) वे उपहार लाते थे, उनके आदेशों का पालन करते थे और उनके दरबार में उपस्थित होते थे।
(d) इन्होंने हार स्वीकार की और इन्हें पुनः शासन करने की अनुमति दी गई।
उत्तर: सही उत्तर (d) है।
समुद्रगुप्त प्राचीन भारत के गुप्त साम्राज्य का शासक था।

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

दक्षिणापथ के शासकों के प्रति समुद्रगुप्त की नीति:

  • जहाँ तक दक्षिणापथ के शासकों का संबंध था, समुद्रगुप्त ने उनके प्रति विनम्र रवैया बनाए रखा।
  • ऐसे बारह शासक थे जिन्होंने पराजित होने के बाद समुद्रगुप्त के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
  • फिर उसने उन सभी को फिर से शासन करने की अनुमति दी। इसलिए, सही उत्तर (d) है, इन्होंने हार स्वीकार की और इन्हें पुनः शासन करने की अनुमति दी गई।

अतिरिक्त जानकारी:

  • समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार करने पर, सभी दक्षिण भारतीय राजाओं को मुक्त कर दिया गया और उन्होंने अपनी बेटियों की शादी भी की।
  • वे श्रद्धांजलि लेकर आए, उसके आदेशों का पालन किया, और उसके दरबार में उपस्थित हुए।समुद्रगुप्त (335-376 ईसा पूर्व) गुप्त वंश का महान शासक था, वह चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी था।
  • समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत 'इलाहाबाद स्तंभ' या 'प्रयाग प्रशस्ति' है।
The document ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|679 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. क्या ईसा पूर्व लगभग ईस्वी सन् होता है?
उत्तर. हाँ, ईसा पूर्व लगभग ईस्वी सन् होता है। यह ईसाई धर्म के महान गुरु या मसीह के रूप में जाना जाता है जिन्होंने लगभग 2000 वर्ष पहले जन्म लिया था।
2. क्या इस लेख में इतिहास के बारे में कुछ बताया गया है?
उत्तर. हाँ, इस लेख में ईसा पूर्व के बारे में बताया गया है। इसके अलावा, यह लेख UPSC परीक्षा के लिए कुछ सवालों और उनके उत्तरों के बारे में भी बताता है।
3. क्या आप इस लेख में बताए गए कुछ अन्य विषयों के बारे में भी जान सकते हैं?
उत्तर. नहीं, इस लेख में सिर्फ ईसा पूर्व के बारे में बताया गया है और UPSC परीक्षा के लिए कुछ सवालों और उनके उत्तरों के बारे में भी बताया गया है।
4. ईसा पूर्व एक धर्म की स्थापना की थी या उसका जन्म हुआ था?
उत्तर. ईसा पूर्व एक धर्म की स्थापना नहीं की थी, बल्कि यह एक महान गुरु थे जिन्होंने लोगों को धर्मिक और नैतिक शिक्षा दी थी।
5. वर्तमान समय में ईसाई धर्म का संख्यात्मक स्थान क्या है?
उत्तर. दुनिया भर में ईसाई धर्म के लगभग २.४ अरब अनुयायी हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है।
398 videos|679 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास

,

ppt

,

practice quizzes

,

mock tests for examination

,

Sample Paper

,

यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Objective type Questions

,

Semester Notes

,

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास

,

study material

,

Extra Questions

,

video lectures

,

pdf

,

past year papers

,

यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

ऐतिहासिक कालक्रम (भाग - 1) - इतिहास

,

shortcuts and tricks

,

Previous Year Questions with Solutions

,

MCQs

,

Summary

,

यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Free

,

Viva Questions

,

Important questions

,

Exam

;