भारतीय इतिहास के स्रोत
भारतीय इतिहास के संबंध में स्त्रोत मूलतः दो रूपों में प्राप्त होते हैं - साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत।
-सैंधव सभ्यता और उसके पूर्व के इतिहास की जानकारी के लिए हमें पूर्ण रूप से पुरातात्विक स्त्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है।
-वैदिक काल के लिए हमारे पास मात्रा साहित्यिक स्त्रोत उपलब्ध है।
-उत्तरवैदिक काल से हमारे पास साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों प्रकार के स्रोत उपलब्ध होने लगते हैं।
मौर्यकाल से हमें साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों के साथ-साथ उनकी पुष्टि करने वाले विदेशी विवरण भी मिलने लगते हैं।
- स्रोतों के संदर्भ में साहित्य को तीन उपवर्गों में विभक्त किया जाता है। धार्मिक साहित्य, ऐतिहासिक साहित्य और ऐतिहासिक साहित्य।
- हिन्दुओं के दो प्रसिद्ध प्राचीनतम महाकाव्य है - रामायण और महाभारत।
- अट्ठारह पुराणों से हमें मौर्य पूर्व से लेकर गुप्तकाल तक अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती है।
- मौर्य पूर्वकाल के लिए हमें पूर्ण रूप से पुराणों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
- बौद्धो के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ त्रिपिटक- सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक।
- त्रिपिटकों, महावंश तथा दीपवंश को दक्षिण बौद्ध मत का ग्रंथ माना जाता है।
- प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तार की रचना नेपाल में हुई।
- 549 जातकों में मुख्य रूप से गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाओं का वर्णन है।
- जैनों के धार्मिक ग्रंथों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हेमचन्द्र रचित परिशिष्ट पर्व है।
पुरापाषाण युग
आरम्भ में आदमी खानाबदोश थे, यानि वे झुंड बनाकर एक स्थल से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे।
- चकमक पत्थर तथा कुछ अन्य किस्मों के पत्थरों का औजार और हथियार बनाने का इस्तेमाल हुआ। इस तरह की कुछ चीजे पंजाब (अब पाकिस्तान) में सोहन नदी की घाटी में मिली है। कुछ स्थानों में, जैसे कश्मीर की घाटी में, जानवरों की हड्डियों से भी औजार और हथियार बनाए जाते थे।
- पानी की सुविधा के लिए आदि मानव प्रायः नदी या झरने के किनारे रहता था। बरसात या ठंडक के दिनों में मारे हुए पशुओं की खाल, वृक्षों की छाल अथवा बड़े पत्ते, कपड़े के रूप में काम में लाए जाते थे।
- भारत में पुरापाषाण युग को इस्तेमाल में लाए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरूप और जलवायु में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जाता है। पहली को आरंभिक या निम्न- पुरापाषाण काल, दूसरी को मध्य-पुरापाषाणकाल तथा तीसरी को उच्च-पुरापाषाणकाल काल कहते हैं।
- निम्न-पुरापाषाण काल के औजारों में प्रमुख हैं- कुल्हाड़ी, विदारणी और खंडक।
- मध्य पुरापाषाणकाल युग में उद्योग मुख्यतः शल्क से बनी वस्तुओं का था।
- उच्च पुरापाषाण युग की दो विलक्षणताएं हैं - नए चकमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक प्रारूप के मानव का उदय।
- ऐतिहासिक महत्व के प्रथम ग्रंथ की रचना हर्ष के दरबारी बाणभट्ट ने हर्षचरित के रूप में की है।
- ऐतिहासिक ग्रंथों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण 12वीं शताब्दी में कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी है।
- दक्षिण भारत का प्रारंभिक इतिहास जानने के लिए हमें मुख्य रूप से संगम साहित्य पर निर्भर रहना पड़ता है।
- रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागनन्द नामक तीन प्रसि( नाटकों की रचना हर्ष ने की है।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्रा से मौर्यों के प्रशासनिक व्यवस्था के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- पंतजलि के महाभाष्य से भी प्राचीन काल के अनेक उपकालों के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल होती है।
- अभिलेखों की दृष्टि से मौर्य सम्राट अशोक का शासन काल सर्वाधिक उल्लेखनीय है।
- रूद्रदमन का जूनागढ़ अभिलेख ऐसा पहला अभिलेख है, जिसमें संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ है।
- भारतीय इतिहास के अध्ययन के क्रम में अशोक के अभिलेख प्रथम पठित अभिलेख है।
- प्राचीन भारत में सर्वाधिक स्वर्ण सिक्के गुप्त शासकों ने जारी किए।
- सातवाहन शासकों ने शीशे के सिक्के भी जारी किए।
- हिन्द-यूनानी शासकों के संबंध में हमें केवल सिक्कों से ही जानकारी प्राप्त होती है।
- भारत की प्रथम विकसित सैंधव सभ्यता के संबंध में जानकारी का एकमात्रा स्रोत उत्खननों से प्राप्त नगरावशेष है।
- स्मारकों के रूप में अशोक के समय के सांची तथा भरहुत के स्तूप महत्वपूर्ण है।
- गुप्तकाल के देवगढ़, भितरीगांव और तिगावा के मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
- इतिहास के जनक माने जाने वाले हेरोडोटस के ग्रंथ हिस्टोरिका से भारत की उत्तरी पश्चिमी सीमा की जातियों तथा भारत-ईरान संबंधों की जानकारी प्राप्त होती है।
- मेगस्थनीज की इण्डिका से चन्द्रगुप्त मौर्य उसके दरबार शासन-प्रबन्ध तथा उस समय की सामाजिक अवस्था के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- यूनानी लेखक टोलेमी ने भारत के भूगोल का एक ग्रंथ लिखा।
- चीनी यात्रियों में सबसे पहले पफाह्यान भारत आया था।
- हर्ष के शासनकाल में प्रसि( चीनी यात्राी ह्नेनसांग भारत आया था और यह 13 वर्षों तक भारत में रहा था।
- तिब्बती लामा तारनाथ ने कंग्युर और तंग्युर की रचना की।
- अलबरूनी ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महमूद गजनवी के साथ भारत आया था और उसने तहकीक-ए-हिन्द नामक ग्रंथ की रचना की।
- जवामी-उल-हिकायत नामक कथा-संग्रह की रचना मुहम्मद अपफी ने की थी।
- हमदानी ने जखीरत-उल-मूलक नामक ग्रंथ की रचना की थी।
- शेख सद्-उल-दीन ने सहायपफ नामक ग्रंथ की रचना की थी।
- मत्ला-उल-अनवार ;अमीर खुसरोद्ध और तुहपफा-ए-नसायह ;यूसुपफ गदाद्ध से मुस्लिम कट्टरवादिता की जानकारी मिलती है।
- किताब-ए-नियामखाना-ए-नासिरशाही से मध्यकालीन भारत में सौंदर्य प्रसाधन के उपयोग एवं पकवानों ;खानपानद्ध के निर्माण के संबंध में जानकारी मिलती है।
- मध्यकालीन भारत के नागरिक एवं धार्मिक कानूनों का एक संकलन ग्रंथ पिफक-ए-पिफरोजशाही है।
- पफतवा-ए-जहांदारी ;जियाउद्दीन बरनीद्ध और अबदाब उल-मुलूक (मुबारकशाह) से मध्यकालीन भारत के राजनीतिक विचारों की जानकारी मिलती है।
- 13वीं सदी के अंतिम वर्षों में मार्कोंपोलो ने दक्षिण भारत की यात्रा की।
प्रागैतिहासिक काल
1. निस्संदेह भारतीय सभ्यता विश्व की प्राचीनतम और प्रगामी सभ्यताओं में से एक है, लेकिन अपने विकास काल में इसे कई चरणों से गुजरना पड़ा है।
2. प्रारम्भिक मानव, जिसे आदिम मानव कहते हैं, को सभ्य बनने में लाखों साल लग गए। खाद्य-संग्राहक से खाद्य-उत्पादक की अवस्था में पहुंचने में आदमी को करीब 3,00,000 साल लगे। परंतु एक बार खाद्य-उत्पादक बनने के बाद मनुष्य ने बड़ी तेजी से उन्नति की।
3. मनुष्य के विकास की अवधि को निम्नलिखित कालानुक्रमिक रूप में रखा जा सकता हैµ
i) पुरा-पाषाण-युग ;500000-8000 ई.पू.द्ध
ii) मध्य-पाषाण-युग ;8000-4000 ई.पू.द्ध
iii) नव-पाषाण-युग ;6000-1000 ई.पू.द्ध
iv) ताम्र-पाषाण-युग
सैन्धव
1. सिन्धु सभ्यता में बैल अधिक सम्मानीय था।
2. इस सभ्यता में घोड़े का ज्ञान संदिग्ध है।
3. सिन्धु-निवासी लोहे से अनभिज्ञ थे।
4. सिन्धु-सभ्यता नगरीय एवं व्यापार प्रधान थी।
5. सैन्धव शांतिप्रिय थे।
6. सिन्धु निवासी मूर्ति-पूजक थे तथा शिवलिंग एवं मातृ-पूजा करते थे।
7. सिन्धु निवासी घरों में खेले जाने वाले खेल (Indoor games) पसन्द करते थे।
8. सिन्धु-निवासी मिट्टी के अत्यन्त सुन्दर बर्तन बनाते थे।
- इटली के निकोलो कोंटी ने 1294 ई. में विजयनगर की यात्रा की।
- पफारस के अब्दुर्रज्जाक ने 1442 ई. में विजयनगर की यात्रा की।
- रूसी यात्राी एथेनिसियम निकितिन ने 1470 ई. में दक्षिण भारत की यात्रा की थी।
- 14वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी के बीच के बंगाल सल्तनत का इतिहास पूर्ण रूप से अभिलेखीय स्रोतों पर आधारित है।
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1. भारतीय इतिहास के स्रोत क्या हैं? |
2. भारतीय इतिहास को लिखने के लिए विभिन्न स्रोतों का उपयोग क्यों किया जाता है? |
3. इतिहास के स्रोत क्यों महत्वपूर्ण होते हैं? |
4. भारतीय इतिहास के स्रोतों को कितने प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है? |
5. भारतीय इतिहास के स्रोतों का उपयोग क्यों किया जाता है? |
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