राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ
महत्वपूर्ण तथ्य
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राष्ट्रपति की राज्य से संबंधित विधायी शक्ति
(i) नये राज्य के निर्माण या नामों, क्षेत्रों और सीमाओं में परिवर्तन करने संबंधी विधेयक पर राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य होती है (अनुच्छेद-3)।
(ii) व्यापार, वाणिज्य या अंतर्राज्यीय संपर्कों पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयक राज्यों की विधान सभाओं में राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही पारित हो सकते है।
(iii) सार्वजनिक जीवन के लिए आवश्यक घोषित वस्तुओं पर कर संबंधी कोई भी विधेयक राज्यों की विधान सभाओं में राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही रखे जायेंगे।
(iv) राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए रख ले। यदि राज्य विधानमंडल के कानून से उच्च न्यायालय के अधिकार कम होते हों तो ऐसा विधेयक और संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण संबंधी कोई विधेयक राज्यपाल को राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के लिए अनिवार्य रूप से रखना होगा।
(v) समवर्ती सूची के किसी विवाद के विषय पर विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ रखा जा सकता है (अनुच्छेद-254)।
(vi)अनुच्छेद-356 के अनुसार राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाने पर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के अतिरिक्त राज्य की सभी शक्तियां अपने हाथ में लेकर वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
भारत के नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति
नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति
नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल
(i) नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के पद की अवधि उसके पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष की होगी।
(ii) लेकिन 65 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर 6 वर्ष की अवधि की समाप्ति के पूर्व भी उसका पद रिक्त माना जाएगा।
नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का पद से हटाया जाना
(i) वह किसी भी समय राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्र द्वारा पद त्याग सकता है।
(ii) उसे महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 148 (1) में उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
वेतन एवं सेवा शर्तें
नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य एवं शक्तियां
(i) भारत और उसके प्रत्येक राज्य के और संघ राज्यों की संचित निधि से किये गये सभी व्ययों का परीक्षण (जाँच) और उन पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट)।
(ii) इसी प्रकार संघ और राज्यों की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक सेवाओं के सभी व्ययों की जाँच करना और उन पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) तैयार करना।
(iii) संघ या राज्य के विभागों द्वारा किये गये सभी व्यापार और विनियोजन (विनिर्माण) के लाभ और हानि लेखाओं की जाँच एवं उन पर अपनी रिपोर्ट देना। संसद द्वारा राजस्व के निर्धारण (करों का निर्धारण), उनका संग्रह और उचित वितरण की पर्याप्त जाँच के लिए इस हेतु बनायी गई विधि या नियमों के अनुरूप संघ एवं राज्यों की आय एवं व्ययों की जाँच करना।
(iv) संविधान के अनुच्छेद 150 के अनुसार राष्ट्रपति नियन्त्राक-महालेखा परीक्षक की सलाह से ही राज्यों एवं संघ के लेखाओं के प्रारूप तैयार करेगा।
(v) संविधान के अनुच्छेद 151 के अधीन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संघ के लेखाओं से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करेगा और राष्ट्रपति इस रिपोर्ट (प्रतिवेदन) को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगा।
(vi) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार राज्यों के लेखाओं से संबंधित प्रतिवेदन वह संबंधित राज्यों के राज्यपालों के समक्ष प्रस्तुत करता है और राज्यों के राज्यपाल उसे विधान मण्डल के समक्ष प्रस्तुत करवाते है।
भारत का महान्यायवादी
(i) वह भारत का नागरिक हो;
(ii) किसी एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय में 5 वर्षों तक न्यायाधीश रहा हो, या उच्च न्यायालय में 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो;
(iii) राष्ट्रपति की नजर में प्रसिद्ध विधिवेता हो (अथवा कानून का ज्ञाता हो)।
भारत के महान्यायवादी का यह कत्र्तव्य है कि वह भारत सरकार को कानूनी मामलों में सलाह या परामर्श दे।
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5. संघीय कार्यपालिका के तहत कौन-कौन से कार्यकारी और प्रशासनिक नियम होते हैं? |
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