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विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindiसंसदीय भाषा में "विशेषधिकार" शब्द में संसद के प्रत्येक सदन और उसकी समितियों को संयुक्त रूप से और प्रत्येक सदन के सदस्य को वैयक्तिक रूप से प्राप्त वे कतिपय अधिकार तथा उन्मुक्तियाँ अभिप्रेत हैं जिनके बिना वे अपने कृत्यों का प्रभावी रूप से तथा दक्षतापूर्वक निर्वहन नहीं कर सकते। संसदीय विशेषाधिकार का उद्देश्य संसद की स्वतंत्रता, प्राधिकार और गरिमा की रक्षा करना है। ये विशेषाधिकार सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होते हैं क्यूंकि  सदन अपने सदस्यों की सेवाओं का निर्बाध प्रयोग किये बिना अपने कृत्यों का निष्पादन नहीं कर सकता। प्रत्येक सदन को भी ये विशेषाधिकार अपने सदस्यों की रक्षा करने तथा स्वयं अपने अधिकार और गरिमा को नष्ट होने से बचाने के लिए सामूहिक रूप से प्राप्त हैं। यद्यपि ये विशेषाधिकार व्यक्तिगत रूप से सदस्यों को उस सीमा तक प्राप्त हैं जहाँ तक कि वे सदन के कृत्यों को मुक्त रूप से बिना किसी रुकावट या बाधा के, निष्पादन के लिए अति आवश्यक हैं, परंतु वे संसद सदस्यों को समाज के प्रति उन दायित्वों के उन्मुक्त नहीं करते जिनका पालन करना अन्य नागरिकों के लिए आवश्यक है। संसदीय विशेषाधिकार, कानूनों के लागू होने के मामले में किसी भी संसद सदस्य को अन्य नागरिकों की तुलना में पृथक स्तर पर नहीं रखते, जब तक कि ऐसा करना संसद के हित में न हो और जिसके लिए उसके पास पर्याप्त ठोस कारण न हो।

संसद के दोनों सदनों तथा उनके सदस्यों और उनकी समितियों को प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण विशेषाधिकार ये हैं: संसद में वाक् स्वतंत्रय, संसद में या उसकी किसी समिति में कही हुई किसी बात अथवा दिये हुए किसी मत के संबंध में किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध किसी भी न्यायालय मे किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है और संसद की कार्यवाही के संबंध में न्यायालयों द्वारा जाँच नहीं की जा सकती; और दीवानी मुकदमों के मामलों में सदस्यों को सभा सत्र के दौरान तथा उसके 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। तथापि गिरफ्तारी से यह उन्मुक्ति निवारक गिरफ्तारी अथवा शासकी आदेश द्वारा सांविधिक प्राधिकार के अधीन नजरबंदी के मामलों में और फौजदारी के मामलों में लागू नहीं होती।
जब कोई व्यक्ति अथवा प्राधिकारी या तो व्यक्तिगत रूप से सदस्यों के अथवा समष्टि रूप से सदन के विशेषाधिकारों, अधिकारों और उन्मुक्तियों की अवहेलना करता है अथवा उन पर कुठाराघात करता है तो इसे विशेषाधिकार भंग कहा जाता है और यह सभा द्वारा दंडनीय है। विशिष्ट विशेषाधिकारों के भंग के अतिरिक्त ऐसे कार्य भी जो सदन के प्राधिकार अथवा गरिमा के प्रतिकूल हों, जैसे उसके वैध आदेशों की अवज्ञा स्वयं उसके सदस्यों या अधिकारियों के संबंध में अपमान लेख, सभा के अवमान के समान ही दंडनीय है।

सभा के अवमान की परिभाषा सामान्यतः इस प्रकार की जा सकती है, "कोई  कार्य या भूल जिसके कारण या तो दोनों सदनों में से किसी सदन द्वारा उसके कृत्यों के निर्वहन में बाधा या रुकावट पड़ती हो, अथवा जिससे सभा के किसी सदस्य या अधिकारी द्वारा किये जा रहे उसके कर्तव्य के निर्वहन में बाधा पड़ती हो, या जिसकी प्रवृत्ति प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः ऐसी हो जिसके ऐसे परिणाम हो सकते हों।" कुछ प्रमुख प्रकार की संसद की अवमानना ये हैंः सदन, उसकी समितियों या उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने वाले भाषण अथवा लेख, अध्यक्ष के कत्र्तव्य के निर्वहन में उसके चरित्र और निष्पक्षता के संबंध में दोषारोपण, सदन की कार्यवाही का वृतांत गलत अथवा तोड़-मरोड़ कर प्रकाशित करना, सदन में सदस्यों के आचरण के कारण उन्हें उत्पीड़ित करना अथवा सदस्यों को अपने कत्र्तव्य का पालन करते समय अथवा सदन या उसकी समिति की बैठक में उपस्थित होने के लिए जाते या आते समय उनके रास्ते में रुकावट डालना, सदस्यों के संसदीय आचरण को प्रभावित करने के लिए उन्हें रिश्वत देना और सदस्यों के संसदीय आचरण के संबंध में उन्हें डराना -धमकाना।

विशेषाधिकार के किस प्रश्न पर सदन स्वयं ही विचार कर सकता है और निर्णय ले सकता है अथवा किसी सदस्य द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने पर उस विशेषाधिकार समिति को जाँच - पड़ताल करने तथा उसके संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए सौंपा जा सकता है। तथापि, सामान्य प्रथा यह है कि शिकायत के मामले को विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया जाता है तथा समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत होने तक सदन उस संबंध में अपना कोई निर्णय नहीं देता।

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FAQs on विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले क्या होते हैं?
उत्तर: विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले उन मामलों को संदर्भित करते हैं जिनमें व्यक्तियों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन होता है। इसमें व्यक्तियों को उनके अधिकारों की संरक्षा और उन्हें न्यायपूर्ण नियंत्रण द्वारा न्याय दिया जाता है।
2. भारतीय राजव्यवस्था में विशेषाधिकार किस प्रकार संरक्षित होते हैं?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था में विशेषाधिकार संरक्षित होते हैं। संविधान में विभिन्न धारायें शामिल हैं जो नागरिकों को मूलभूत अधिकारों की संरक्षा और सुरक्षा देती हैं। प्रत्येक नागरिक को जीवन, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, संघर्ष, धर्म, और अन्य अधिकारों की संरक्षा का अधिकार होता है।
3. UPSC क्या है और यह कौन से परीक्षा का आयोजन करता है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय संघ लोक सेवा परीक्षा का आयोजन करता है। यह भारतीय नागरिकों के लिए विभिन्न संघ लोक सेवा पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया का नियंत्रण करता है। UPSC का मुख्य उद्देश्य उच्चतम स्तरीय सार्वजनिक सेवकों की भर्ती और चयन प्रक्रिया का संचालन करना है।
4. विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले का UPSC के साथ क्या संबंध है?
उत्तर: UPSC विशेषाधिकार सम्बन्धी मामलों के संबंध में संघ लोक सेवा परीक्षा में विभाजित कर सकता है। इस परीक्षा में कुछ परीक्षार्थियों को विशेषाधिकार सम्बन्धी मामलों के बारे में पूछा जा सकता है, जिसमें उन्हें विशेषाधिकार संबंधी नियमों, धाराओं और न्याय प्रणाली के बारे में ज्ञान होना चाहिए।
5. विशेषाधिकार सम्बन्धी मामले के आदान-प्रदान में कौन सी संगठनें शामिल होती हैं?
उत्तर: विशेषाधिकार सम्बन्धी मामलों के आदान-प्रदान में कई संगठनें शामिल होती हैं। इनमें अदालतें, न्यायिक संगठनें, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय जाति आयोग, और अन्य संगठनें शामिल हैं जो विशेषाधिकार संबंधी मामलों को संबोधित कर सकती हैं।
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