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केन्द्र राज्य संबंध - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

केन्द्र-राज्य विधायी संबंध

  • संघ व राज्यों के विधायी सम्बन्धों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है जिन्हें संघ सूची (Union List)] राज्य सूची (State List) व समवर्ती सूची (Concurrent List) का नाम दिया गया है। इन सूचियों को सातवीं अनसूची मेंरखा गया है।
  • संघीय सूची मेंराष्ट्रीय महत्व के ऐसे विषयों को रखा गया है जिनके सम्बन्ध में सम्पूर्ण देश मेंएक ही प्रकार की नीति का अनकरण आवश्यक समझा गया है। इस सूची के सभी विषयोंपर विधि निर्माण का अधिकार संघीय संसद को प्राप्त है।
  • राज्य सूची मेंसाधारणतया वे विषय रखे गये हैजो क्षेत्राीय महत्व के है इस सूची के विषयोंपर विधि निर्माण का अधिकार सामान्यता राज्यों की व्यवस्थापिकाओंको ही प्राप्त है।
  • समवर्ती सूची में साधारणतया वे विषय रखे गये हैजिनका महत्व क्षेत्राीय व संघीय दोनोंही दृष्टियोंसे है। इस सूची के विषयोंपर संघ तथा राज्य दोनोंको ही विधियां बनाने का अधिकार प्राप्त है। यदि इस सूची के विषय पर संघीय तथा राज्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हों, तो सामान्यतः संघ का कानून मान्य होगा।
  • भारतीय संघ में अवशिष्ट विषयों के सम्बन्ध में कानून निर्माण की शक्ति संघ को प्रदान की गई है (अनच्छेद 248)। 

    राज्य सूची के विषयों पर संसद को व्यवस्थापन की शक्ति
  • संविधान के अनच्छेद 249 के अनसार यदि राज्य सभा अपने दो तिहाई बहमत से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है कि राज्य सूची में उल्लिखित कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का हो गया है, तो संसद को उस विषय पर विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसकी मान्यता केवल एक वर्ष तक रहती है। राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पनः स्वीकृत करने पर इसकी अवधि मेंएक वर्ष की और वृद्धि हो जाती है। इसकी अवधि समाप्त हो जाने के उपरान्त भी यह 6 माह तक प्रयोग मेंलाया जा सकता है।
  • अनच्छेद 252 के अनसार यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधान मंडल प्रस्ताव पास कर यह इच्छा व्यक्त करते है कि राज्य सूची के किन्हीं विषयोंपर संसद द्वारा कानून निर्माण किया जाये, तो उन राज्योंके लिए उन विषयोंपर अधिनियम बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है। राज्यों के विधान मंडल न तो इन्हेंसंशोधित कर सकते हैऔर न ही इन्हें पूर्ण रूप से समाप्त कर सकते है ।
  • संकट कालीन घोषणा की स्थिति मेंराज्य की समस्त विधायिनी शक्ति पर संसद का अधिकार हो जाता है। इस घोषणा की समाप्ति के 6 माह बाद तक संसद द्वारा निर्मित कानून पूर्ववत चलते रहेंगे। (अनच्छेद 250)
  • संविधान के अनच्छेद 253 के अन्तर्गत यदि संघ सरकार ने विदेशी राज्योंसे किसी प्रकार की संधि की है अथवा उनके सहयोग के आधार पर किसी नई योजना का निर्माण किया है, तो इस संधि के पालन हेत सरकार को सम्पूर्ण भारत की सीमा क्षेत्रा के अन्तर्गत पूर्णतया हस्तक्षेप और व्यवस्था करने का अधिकार होगा। इस प्रकार इस स्थिति मेंभी संसद को राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो  जाता है।
  • अनच्छेद 356 के अन्तर्गत यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए या सांविधानिक तन्त्रा विफल हो जाए तो राष्ट्रपति राज्य विधान मंडल के समस्त अधिकार भारतीय संसद को प्रदान कर सकता है।
  • उपर्यक्त व्यवस्था के अतिरिक्त भी राज्य व्यवस्थापिकाओंको राज्य सूची के विषयोंपर कानून निर्माण की शक्ति सीमित है। अनच्छेद 304(ख) के अनसार कछ विधेयक ऐसे होते है जिन्हें राज्य विधान मंडल में प्रस्तावित किये जाने के पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व-स्वीकृति की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए वे विधेयक, जिनके द्वारा सार्वजनिक हित की दृष्टि से उस राज्य के अन्दर या उससे बाहर वाणिज्य या मेल जोल पर कोई प्रतिबंध लगाए जाने हों।
  • राज्य सूची के कछ विषयों पर राज्यों की व्यवस्थापिकाओं द्वारा पारित विधेयक उस दशा में भी अमान्य होंगे, यदि उन्हेंराष्ट्रपति के विचारार्थ न रोके रखा गया हो और उन पर राष्ट्रपति की स्वीकृति न प्राप्त कर ली गयी हो।

    केन्द्र-राज्य प्रशासनिक संबंध

  • भारतीय संविधान के ग्यारहवेंभाग के दूसरे अध्याय में केन्द्र तथा राज्यों के बीच प्रशासनिक सम्बन्धोंकी चर्चा की गयी है।
  • संविधान के अनच्छेद 73 के अनसार केन्द्र की प्रशासकीय शक्ति उन विषयोंतक सीमित है जिन पर संसद को विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त है।
  • इसी प्रकार संविधान के अनच्छेद 162 के अनसार राज्योंकी प्रशासकीय शक्तियां उन विषयोंतक सीमित है जिन पर राज्य विधान सभाओंको कानून बनाने का अधिकार है।
  • संविधान द्वारा संघीय सरकार को राज्यों की सरकारों को निर्देश देने का अधिकार दिया गया है। संविधान के अनच्छेद 256 के अनसार राज्य सरकार का यह कत्र्तव्य है कि संसद द्वारा पारित विधि को वह मान्यता दे। इसी प्रकार अनच्छेद 257 के अनसार राज्य सरकारोंका यह भी कर्तव्य है कि वे अपने क्षेत्रा मेंसंघ की कार्यपालिका शक्ति के उपयोग मेंन तो कोई रकावट डालें और न कोई पक्षपात करें। इन अनच्छेदों के अन्तर्गत संघ सरकार द्वारा राज्य सरकारो को निर्देश दिये जा सकते है।
  • संविधान मेंयह स्पष्ट प्रावधान है कि यदि संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में दिये गये किन्हीं निर्देशोंका कोई राज्य पालन नहीं करता है तो राष्ट्रपति के लिए यह मानना विधिसंगत है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसमेंराज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनकूल नहीं चलाया जा   सकता है।
  • संघीय सरकार राज्यों की सरकारोंको अनच्छेद 257 (2) के अनसार राज्योंमेंराष्ट्रीय या सैनिक महत्व एवं संचार साधनोंके निर्माण करने और बनाये रखने के लिए निर्देश दे सकती है।
  • संसद राजपथों, बड़ी सड़कों, नहरों, जलपथोंया नौकागम्य नदियोंको राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर सकती है। ऐसा होने के बाद इन सबका नियन्त्राण केन्द्र के हाथोंमेंआ जाता है और केन्द्रीय कार्यपालिका राज्य सरकारोंको इनके सम्बन्ध मेंनिर्देश दे सकती है।
  • अनच्छेद 257(3) के अनसार किसी राज्य में रेलों की रक्षा के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में संघ को राज्य कार्यपालिका को निर्देश देने का अधिकार है।
  • राष्ट्रपति को अधिकार है कि वे किसी राज्य की सरकार को उसकी सहमति मेंशर्त-सहित या बिना किसी शर्त ऐसे किसी विषय से सम्बन्धित कार्यभार सौप सकते है जिस पर संघीय कार्यकारी सत्ता प्रवर्तित होती है।
  • इसके अतिरिक्त संसद किसी राज्य, उसके अधिकारियों और प्राधिकारियों को किसी ऐसी विधि के सम्बन्ध में अधिकार प्रदान कर सकती है एवं उनके कर्तव्य निर्दिष्ट कर सकती है, जिनके सम्बन्ध मेंराज्य विधान मंडल को विधि बनाने के अधिकार न हों। इन प्रावधानोंसे केन्द्र को संसद की विधि प्रवर्तित करने के लिए राज्य के शासनतंत्रा का उपयोग करने का अधिकार मिलता है। इन अधिकारों एवं कर्तव्योंके परिपालन मेंराज्य को जो प्रशासनिक खर्चे करने पड़ते है, उसे केन्द्रीय सरकार देती है।
  • अनच्छेद 352 के अन्तर्गत जब राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करते है तो राज्यों पर संघीय सरकार का पूर्ण नियंत्राण स्थापित हो जाता है।
  • अखिल भारतीय सेवाएं, जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा, संघ तथा राज्य दोनों के लिए सामान है। अनच्छेद 312(1) के अनसार, यदि राज्य सभा दो तिहाई बहमत द्वारा प्रस्ताव पारित करती है कि राष्ट्रीय हित में संघ तथा राज्यों के लिए एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओंको स्थापित करना आवश्यक है तो संसद विधि द्वारा अखिल भारतीय सेवाओंकी स्थापना करेगी।

केन्द्र-राज्य वित्तीय संबंध

  • संघ तथा राज्यों के बीच कर निर्धारण की शक्ति का पूर्ण रूप से विभाजन कर दिया गया है। करों से प्राप्त आय का बंटवारा समय-समय पर वित्त आयोग द्वारा परिस्थितियों के अनसार किया जाता है।
  • संघ के प्रमख राजस्व स्त्रोत इस प्रकार है: निगम कर, निर्यात शुल्क, सीमा शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, विदेशी ऋण, रेल, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार आदि। राज्यों के राजस्व स्त्रोत है- प्रति व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशओं तथा नौकाओं पर कर, बिजली के उपयोग तथा विक्रय पर कर, वाहनों पर चंगी कर आदि।
  • संघ द्वारा आरोपित तथा संग्रहीत किंत राज्योंको सौपे जाने वाले करों के उदाहरण है-  कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर, कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, रेल, समद्र, वायु द्वारा ले जाने वाले माल तथा यात्रियों पर सीमान्त कर, रेल भाड़ा तथा वस्त भाड़ों पर कर, शेयर बाजार तथा सट्टा बाजार के आदान-प्रदान पर मद्रांक शुल्क के अतिरिक्त कर, समाचार पत्रों के क्रय-विक्रय तथा उसमें प्रकाशित किये गये विज्ञापनोंपर और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा वाणिज्य से माल के क्रय-विक्रय पर कर।
  • कतिपय कर संघ द्वारा आरोपित तथा संग्रहीत किये जाते है, पर उनका विभाजन संघ तथा राज्यों के बीच होता है। आय-कर का विभाजन संघीय भू-भागों के लिए निर्धारित निधि तथा संघीय खर्च को काटकर शेष राशि में से किया जाता है। आय-कर के अतिरिक्त दवा तथा शौक शिंगार सम्बन्धी चीजों के अतिरिक्त अन्य चीजों पर लगाया गया उत्पादन शुल्क इसके अन्तर्गत आता है।
  • संविधान के अन्तर्गत केन्द्र द्वारा राज्यों को चार प्रकार के सहायक अनदान प्रदान करने की व्यवस्था की गयी है। प्रथम, पटसन व उससे बनी वस्तओंके निर्यात से जो शुल्क प्राप्त होता है उसमें से कछ भाग अनदान के रूप में जूट पैदा करने वाले राज्यों बिहार, बंगाल, असम और उड़ीसा को दिया जाता है। द्वितीय, बाढ़, भूकम्प और सूखाग्रस्त क्षेत्रोंमें पीड़ितों की सहायता के लिए भी केन्द्रीय सरकार राज्यों को अनदान दे सकती है। तृतीय, आदिम जातियों और कबीलोंकी उन्नति और उनके कल्याण की योजनाओंके लिए भी सहायक अनदान दिया जाता है। चतर्थ, राज्य को आर्थिक कठिनाइयों से उबारने के लिए केन्द्र राज्यों की वित्तीय सहायता कर सकता है।
  • संविधान केन्द्र को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अपनी संचित निधि की साख पर देशवासियों और विदेशी सरकारों से ऋण ले सके। ऋण लेने का अधिकार राज्यों को भी प्राप्त है, परन्त वे विदेशों से उधार नहीं ले सकते। यदि किसी राज्य सरकार पर संघ सरकार का कोई कर्ज बाकी है तो राज्य सरकार अन्य कर्ज संघ सरकार की अनुमति से ही ले सकती है। इस प्रकार का कर्ज देते समय संघ सरकार किसी भी प्रकार की शर्त लगा सकती है।
  • राज्यों द्वारा संघ की सम्पत्ति पर कोई कर तब तक नहीं लगाया जा सकता जब तक संसद विधि द्वारा कोई प्रावधान न कर दे। भारत सरकार या रेलवे द्वारा प्रयोग में आने वाली बिजली पर संसद की अनुमति के अभाव में राज्य किसी प्रकार का शुल्क नहीं लगा सकते। इसी प्रकार संघ सरकार भी राज्य की सम्पत्ति और आय पर कर नहीं लगा सकती।
  • भारत के नियन्त्राक तथा महालेखा परीक्षक की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श से राष्ट्रपति करता है। यह भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के हिसाब का लेखा-जोखा रखने के ढंग का निष्पक्ष रूप से जांच करता है। नियन्त्राक तथा महालेखा परीक्षक के माध्यम से ही भारतीय संसद राज्यों की आय पर अपना नियंत्राण रखती है।
  • वित्तीय संकटकालीन घोषणा की स्थिति में राज्यों की आय सीमा राज्य सूची में वर्णित करों तक ही सीमित रहती है। वित्तीय संकट के प्रवर्तन काल में राष्ट्रपति को संविधान के उन सभी प्रावधानों को स्थगित करने का अधिकार है जो सहायता अनुदान अथवा संघ के करों की आय में भाग बंटाने से सम्बन्धित हो। केन्द्रीय सरकार वित्तीय मामलों में राज्यों को निर्देश भी दे सकती है।
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FAQs on केन्द्र राज्य संबंध - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. केन्द्र राज्य संबंध का मतलब क्या है?
उत्तर: केन्द्र राज्य संबंध भारतीय राजव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसका मतलब है कि राज्य और केन्द्र सरकार के बीच संबंधों का व्यवस्थित ढंग से प्रबंधन। यह संबंधों का वितरण, अधिकार और जिम्मेदारियों का विभाजन, धार्मिक स्वतंत्रता, न्यायपालिका के बीच संबंध और राज्यों को केन्द्र सरकार के निर्देशों का पालन करना आदि को सम्मिलित करता है।
2. क्या UPSC का पूरा नाम है "भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा"?
उत्तर: नहीं, UPSC का पूरा नाम है "संघ लोक सेवा आयोग"। यह भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा (IAS) के लिए जाना जाता है, जो देश के विभिन्न संघ लोक सेवाओं में पदों के लिए उम्मीदवारों की नियुक्ति का आयोजन करता है।
3. केन्द्र राज्य संबंध क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: केन्द्र राज्य संबंध महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से राज्यों को आपसी सहयोग और संवाद के माध्यम से केन्द्र सरकार के साथ मिलकर देश के सभी क्षेत्रों में विकास का काम करने की संभावना होती है। इसके द्वारा राज्यों को विभिन्न योजनाओं, धार्मिक स्वतंत्रता, न्यायपालिका और अन्य मुद्दों पर निर्देशों का पालन करने का भी मार्ग दिया जाता है।
4. भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के लिए पात्रता मानदंड क्या हैं?
उत्तर: भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा (IAS) के लिए पात्रता मानदंड निम्नलिखित हैं: - उम्मीदवार को भारतीय नागरिक होना चाहिए। - उम्मीदवार की आयु 21 वर्ष से 32 वर्ष के बीच होनी चाहिए। - उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से किसी भी विषय में स्नातक डिग्री या समकक्ष परीक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
5. केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच कौन सा संघीय संबंध सबसे महत्वपूर्ण है?
उत्तर: केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच नियमन और वितरण विभाजन सबसे महत्वपूर्ण संघीय संबंध है। इसके माध्यम से केन्द्र सरकार राज्यों को विभिन्न विषयों पर निर्देश और अधिकार देती है, जैसे कि वितरण के लिए धन, वित्तीय सहायता, न्यायपालिका के बीच संबंध, और भाषाई और संस्कृतिक मुद्दों पर नियमन।
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