आयोग का गठन, कार्यकाल, पदमुक्ति, शक्तियां एवं कार्य
आयोग का गठन
निर्वाचन आयोग का कार्यकाल एवं पदमुक्ति
(i) राजनीतिक दलों के लिए आचार-संहिता(Code of Cunduct) तैयार करना।
(ii) राजनीतिक दलों को आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर चुनाव-प्रसार हेतसुविधाएं दिलवाना।
(iii) प्रत्याशियों द्वारा चुनाव प्रचार पर व्यय की जाने वाली राशि की सीमा निर्धारित करना।
(iv) मतदाताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण देना।
(v) निर्वाचन याचिकाओं के संबंध में सरकार को आवश्यक परामर्श देना।
इस सभी के अतिरिक्त चुनाव आयोग से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह समय-समय पर अपने कार्यों के संबंध में सरकार को अपनी रिपोर्ट (प्रतिवेदन) देता रहेगा तथा वह चुनाव-प्रक्रिया मेंसुधार के लिए आवश्यक सुझाव भी देता रहेगा।
चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें एवं कार्य संपादन) अधिनियम, 1994 के संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्णय और निर्णय का व्यवाहारिक पक्ष
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
(अप) न्यायालय ने आयोग के बहुसदस्यीय होने की स्थिति में मुख्य निर्वाचन आयुक्त को अध्यक्ष (चेयरमैन) की भूमिका एवं सभा की अध्यक्षता करने के दायित्व को संविधान के अनुच्छेद 324(3) के अंतर्गत स्वीकार किया।
निर्णय का व्यावहारिक पक्ष
महत्वपूर्ण तथ्य नियम 377 - जो मामले व्यवस्था के प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्नों, अल्प सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से सम्बन्धित नियमों के अधीन नहीं उठाये जाते, वे नियम 377 के अधीन उठाये जाते है। जो सदस्य इस नियम के अधीन मामला उठाना चाहता है, वह संक्षेप में उन मुद्दों, जिन्हें वह उठाना चाहता है, के साथ उसके उठाने के कारणों की लिखित सूचना सदन के महासचिव को देता है। मामला नियम 377 के अधीन उठाने योग्य है या नहीं, इसका निर्णय अध्यक्ष करता है। इसके अन्तर्गत लोक महत्व के मामलों तथा सदस्य के निर्वाचन क्षेत्र से सम्बन्धित मामलों को उठाया जाता है। नियम 377 के अधीन सबसे पहले मामला 14 मई, 1966 को उठाया गया था। |
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