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भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म
-  वैदिक धर्म के विकास के अन्तिम चरण का विवरण उत्तर-वैदिक धर्म ग्रंथों में मिलता है।
-  वैदिक धर्म का संस्थानात्मक रूप (Institutional form) ही ब्राह्मण धर्म के नाम से विदित है।
-  ब्राह्मण धर्म पर ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद एवं वेदांगों द्वारा प्रकाश पड़ता है। कालान्तर में स्मृतियाँ भी प्रकाश डालती है।
-  ब्राह्मण धर्म में ब्रह्मा-विष्णु-महेश के देवमण्डल के साथ ही ‘सार्वभौम आत्मा’ भी धार्मिक विचारों में प्रमुख स्थान पाती है।
-  विकास के क्रमिक दौर में भागवत् धर्म का उदय हुआ और इसके संस्थापक हुए कृष्ण-वासुदेव। कृष्ण-वासुदेव के बारे में भी मत-मतान्तर है, परन्तु सबसे ज्यादा मान्य तथ्य है कि वे ‘वृष्णि वंशीय’ यादव कुल के नेता थे।
-  भागवत् धर्म ने उपनिषदों के ‘सार्वभौम आत्मा’ के स्थान पर व्यक्तिगत भगवान (देव) की स्थापना किया और इसमें यज्ञों जैसे कर्मकाण्डों की जगह ‘भक्ति एवं समर्पण’ ने ले लिया। यह वैदिक एवं ब्राह्मण धार्मिक विचारों से अलग एक नवीन स्थापना व विश्वास था।
-  भागवत् धर्म का उदय तो उपनिषदों के विचारों से ही निसृत है परन्तु इसने अपना पूर्ण अस्तित्व एवं स्वरूप पुराण-काल में ग्रहण किया।
-  कृष्ण के गुरु का नाम ‘घोर अंगिरस’ बताया गया है (द्वान्दोग्य-उपनिषद) एवं वासुदेव कृष्ण के धार्मिक विचारों का विकास भागवत् पद्धति में ही मिलता है।
-  वासुदेव की पूजा का प्रथमतः उद्धरण भक्ति के रूप में पाणिनि के समय (5वीं सदी ई. पू.) का मिलता है।
-  भागवत् धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ है। भगवद् गीता ने भागवत् धर्म में कुछ नवीन स्थापनाएं दी।
1. पंचरात्रा पद्धति: वासुदेव की उपासना उनके व्यूह ;विनत विसकद्ध रूप में। इसके अनुसार वासुदेव ने अपने से (क) संकर्षण, (ख) प्रद्युम्न एवं (ग) अनिरुद्ध को उत्पन्न किया। इस मण्डली में बाद में ‘साम्ब’ भी जुड़ गए। इन चारों की उपासना भी वासुदेव के साथ जुड़ गयी। यह पंचरात्रा पद्धति लगभग द्वितीय सदी ई. पू. के निकट अस्तित्व में आयी।
2. कृष्ण की गो-पालक-बालक के रूप में स्थापना (ईसा की प्रारम्भिक शताब्दी) व इसके विकास में ‘आभीर’ जनजाति का योगदान प्रतीत होता है।
3. कृष्ण एवं राधा युगल की स्थापना (काफी बाद में)।
-  ‘भागवत्’ नाम पाणिनि काल से गुप्त काल तक प्रमुखतः एक धार्मिक विचारधारा के रूप में उपस्थिति रहा जबकि ‘वैष्णव धर्म’ नाम का प्रचलन लगभग 5वीं शताब्दी ई. के पूर्व मध्य में हुआ। अब ‘विष्णु’ देव परम्परा में अत्यधिक प्रचलित होकर सर्वोच्च बन गए जबकि वासुदेव कृष्ण की स्थिति कमजोर पड़ गयी।

स्मरणीय तथ्य
•  आजीवक संप्रदाय के संस्थापक मस्करी गोसाल थे।
•   बौद्ध धर्म के थेरवाद मत के संस्थापक महाकश्यप थे।
•    निर्वाण प्राप्त करने वाले मनुष्य में करुणा, मेट्टा, उपेक्षा एवं समाधि-ये चार भावनाएँ होनी चाहिए।
•    शून्यवाद की स्थापना नागार्जुन ने की थी।
•    बुद्ध का देवत्त्व महायान को हीनयान से स्पष्टतया अलग करता है।
•   विज्ञानवाद-योगाचार्य
    शून्यवाद-माध्यमिक
    स्याद्वाद-सप्तभंगिमय
    रूपविरवाद-हीनयान

-    भागवत् से वैष्णव धर्म की स्थापना विकासक्रम की एक ही धारा है, जबकि अन्य धाराओं में, शैव, शाक्त एवं पाशुपत आदि स्वरूपों का भी आविर्भाव हुआ।
-   ऋग्वेद में विष्णु को सूर्य के एक पक्ष ;।ेचमबजद्ध के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
-   एक वैयक्तिक देव ;च्मतेवदंस ळवकद्ध के रूप में पूजा का प्राथमिक आधार ‘पाणिनि’ के अष्टाध्यायी में प्रथमतः मिलता है जहाँ ‘वासुदेव’ एवं उनके पूजक को ‘वासुदेवक’ कहा गया है तथा विश्व के निर्माण हेतु उन्हें उत्तरदायी बताया गया है। अर्थात् 5वीं शताब्दी ई. पू. में भक्ति का अस्तित्व था, संभव है यह पूजा के आधुनिक भक्ति भाव से कतिपय भिन्न रहा हो।
-   मेगास्थनीज ने भी कहा है कि सौरसेनी लोग ‘हेराक्लीज’ को विशेष सम्मान देते थे। ग्रीक अभिव्यक्ति में ‘हेराक्लीज’ का अभिप्राय वासुदेव कृष्ण से है।
-   वासुदेव कृष्ण एक ऐतिहासिक चरित्रा के रूप में ‘कृष्ण’ वंशीय यादवों के नायक के रूप में वासुदेवपुत्रा के रूप में अवस्थित है।
-   बेसनगर स्थित एक स्तम्भ लेख में हेलियोडोरस (इंडो ग्रीक शासक एण्टियालिसिडस का राजदूत) को वासुदेव (देवों के भी देव) का भक्त बताया गया है, अस्तु द्वितीय शताब्दी ई. पू. तक भागवत् धर्म पूर्णतया स्थापित हो चुका था।
-   भागवत् धर्म जो कि वासुदेव द्वारा प्रणीत है एवं वैष्णव धर्म के लिए स्त्रोत व आधार है, सम्भवतः सूर्य-पूजा से ही सम्बन्धित है। ‘गीता’ भी कहती है कि ”भागवत सिद्धान्त भगवान द्वारा सूर्य को बताया गया, सूर्य द्वारा मनु को एवं मनु द्वारा इच्छ्वाकु को।“
-   शांतिपर्वन के नारायणीय धारा में ‘नारायण’ को आन्तरिक एवं बाह्य आत्मा के रूप में धर्म का पुत्रा बताया गया है और इनका चतुस्र्वरूप नर, नारायण, हरि एवं कृष्ण बताया गया है।
-   विष्णु वासुदेव का मूर्ति प्रस्तुतीकरण प्रथम सदी ई. के पूर्व नहीं हुआ था। चक्रधारी चतुर्भुजी विष्णु की मूर्ति का दर्शन पांचाल शासक विष्णुमूर्ति के एक सिक्के पर मिलता है। ऐसा ही एक उत्कीर्णन कुषाणकालीन एक मुद्रा पर मिलता है, जिसमें विष्णु के हाथ में शंख, चक्र, गदा एवं एक छल्ला (न कि कमल) दिखाया गया है। कनिंघम ने इस मुद्रा को ‘हुविष्क’ का बताया है।
-   मोरा अभिलेख (प्रथम शताब्दी ई. मथुरा के निकट) में भागवत धर्म के नायकों का उल्लेख मिलता है, जिसका विवरण वायु पुराण में निम्नलिखित उपास्यों के रूप में किया गया है-
1.संकर्षण (वासुदेव का रोहिणी से उत्पन्न पुत्रा)
2.वासुदेव (वासुदेव का देवकी से उत्पन्न पुत्रा)
3.प्रद्युम्न (वासुदेव का रुक्मणी से उत्पन्न पुत्रा)
4.साम्बा (वासुदेव का जावंती से उत्पन्न पुत्रा)
5.अनिरूद्ध (प्रद्युम्न का पुत्रा)
-   परम्परागत भारतीय लोगों में व्यापक रूप से मूर्ति-पूजा की अवधारण एवं विश्वास स्थापित करने में ‘भागवत’ अथवा ‘पंचरात्रियों’ का मु•य उत्तरदायित्व रहा है। ‘अर्च’ अथवा श्री विग्रह को भगवान बताते हुए मूर्तियों को ‘प्रत्यक्ष देव’ की संज्ञा दी गयी।
-   गुप्त युग में भागवत् धर्म में महत्वपूर्ण परिवर्तन के रूप में ‘विष्णु के विभिन्न अवतारों में पूजा की प्रसिद्धि’ जानी जाती है। इन अवतारों के सूत्रा उत्तरवैदिक ग्रन्थों में भी तलाशे जा सकते है परन्तु इनकी पूर्ण स्थापना पुराणों द्वारा प्रदत्त की गयी। यद्यपि विष्णु के वामन, वाराह, मत्स्य एवं कूर्म अवतारों का विवरण शतपथ एवं अन्य ब्राह्मणग्रन्थों में भी मिलता है, परन्तु इनमें वाराह, मत्स्य एवं कूर्मरूपों को भगवान से अब तक नहीं जोड़ा गया था।
-   मत्स्य पुराण में विष्णु के 10 अवतारों का वर्णन किया गया है-
•  नारायण • नरसिंह (नृसिंह) • वामन • दत्तातरेय • वेदव्यास  • मन्धातृ • राम (जमदाग्नि के पुत्रा-परशुराम) • राम (दशरथ पुत्रा) • बुद्ध • कल्कि
    उपरोक्त में से प्रथम तीन दैवीय अवतार तथा अन्तिम सात मानव अवतार माने गये है।

स्मरणीय तथ्य
•    पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के लिए यूनाइटेड डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी ?     1602 ई.
•    भारत में पुर्तगालियों द्वारा स्थापित की गई बस्तियों पर शासन  व्यवस्था संभालने के लिए नियुक्त किया गया प्रथम गवर्नर कौन था ? फ्रांसिस्को अल्मीडा
•    ब्राह्यणों को प्रदान की जाने वाली कर मुक्त भूमि क्या कहलाती थी? ब्रह्यदेय
•     संगम कालीन देवता मुरुगन की तुलना किस देवता के साथ की गयी है ?   स्कंद कार्तिकेय
•    चित्रित धूसर मृद्भांड का संबंध किस काल से है ?    उत्तर वैदिक काल
•    सविनय अवज्ञा आंदोलन की असफलता के बाद गांधी जी ने कौन-सी नीति अपनायी?   रचनात्मक कार्यक्रम को बढ़ावा देना
•    सातवाहन, कुषाण और शक राज्यों द्वारा किस बंदरगाह का प्रयोग निर्यात के लिए किया जाता था ?    भड़ौच
•     उत्खननोपरांत कब्रिस्तान का अस्तित्व कहां प्राप्त हुआ है ?    हड़प्पा
•    अशोक के किस अभिलेख में उसका नाम मिलता है ?     मास्की, गुर्जर
•    ‘नुपूर की कहानी’ का संबंध किस संगम युगीन महाकाव्य से है ?  शिलप्पदिद्कारम्
•    अशोक कालीन अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सफल व्यक्ति कौन था?  जेम्स प्रिंसेप
•    ‘दासराज्ञ युद्ध’ किस नदी के तट पर हुआ था ?    परूष्णी
•    भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ किसे माना जाता है ?    यास्क कृत निरुक्त
•    ‘सिजदा’ और ‘पावोस’ की प्रथा को अपने दरबार में किसने आरंभ करवाया ? बलबन
•    द्वितीय संगम का एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ का नाम है     तोल्लकाप्पियम

-   बुद्ध को अवतार के रूप में कश्मीरी लेखक क्षेमेन्द्र लिखित ‘दशावतार चरित’ में भी बताया गया है परन्तु गुप्त युग में देश के विभिन्न भागों में सबसे प्रसिद्ध अवतार ‘वाराह’ का था और इन्हीं की पूजा व्यापक रूप से हुई।
-   गुप्त युग में नव-वैष्णव धर्म का भी अभ्युदय हुआ। यह भागवत् धर्म का जनजातीय अभिव्यक्तिकरण था और वासुदेव के पारिवारिक सदस्यों द्वारा इसका संरक्षण किया गया।
-   गुप्त युग में विष्णु के साथ उनकी पत्नी के रूप में ‘लक्ष्मी’ अथवा ‘श्री’ का भी आविर्भाव हुआ। ‘पृथ्वी’ को भी वैष्णवी के रूप में विष्णु की द्वितीय पत्नी बताया गया है।
-   ‘शिव’ की उत्पत्ति वैदिक देव ‘रुद्र’ से जुड़ती है जो कि बाद में अनार्यों के ‘उत्पादकता देव’ से जुड़ जाती है।
-   हालाँकि शैव सम्प्रदाय के लोग शिव को देव के रूप में स्वीकारते हुए उन्हें पूर्ण नैतिक एवं स्वर्ग के पिता के रूप में स्वीकार करते है, परन्तु विष्णु के विपरीत शिव की उपस्थित संहार एवं संघर्ष के परिदृश्यों पर ही ज्यादा परिलक्षित होती है।
-   मूलतः ‘शिव’ विष्णु के ही संहारक रूप में प्रस्तुत हुए हैं जो कि संहार एवं मृत्यु तथा समय के देवता है, और हमेशा दुष्ट तत्वों (Evil Spirits) से घिरे रहते है और ‘महाकाल’ जैसे नामों से जाने जाते है।

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FAQs on भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म क्या होता है?
उत्तर: भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों का एक हिस्सा है। यह ग्रंथ भागवत पुराण और ब्राह्मण ग्रंथों के रूप में ज्ञात होते हैं और इनमें विभिन्न धार्मिक तत्वों पर विचारों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
2. भागवत पुराण क्या है?
उत्तर: भागवत पुराण एक महत्वपूर्ण हिंदू पुराण है जो विष्णु पुराण के रूप में भी जाना जाता है। इस पुराण में भगवान विष्णु के अवतारों, देवताओं, ऋषियों और धर्म के विभिन्न पहलुओं का वर्णन होता है। यह ग्रंथ भागवत सम्प्रदाय के अनुयायों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
3. ब्राह्मण ग्रंथों का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: ब्राह्मण ग्रंथों का मुख्य उद्देश्य वैदिक कर्मकांड को समझाना और विस्तृत कर्मविधि प्रदान करना है। इन ग्रंथों में वेदों के यज्ञों, उपासना और ऋषि-मुनियों के आचार-व्यवहार के संबंध में विस्तृत ज्ञान दिया गया है।
4.यु.पी.एस.सी एग्जाम के लिए भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यु.पी.एस.सी एग्जाम में भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म का अध्ययन महत्वपूर्ण है। यह धर्म संबंधी प्रश्नों के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
5. भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म से संबंधित प्रमुख धार्मिक तत्वों के बारे में विस्तृत बताएं।
उत्तर: भागवत् एवं ब्राह्मण धर्म में संसार की उत्पत्ति, भगवान के अवतार, धर्म का स्वरूप, कर्मकांड की महत्वता, भक्ति और साधना, वर्णाश्रम व्यवस्था, यज्ञों का महत्व, और आचार-व्यवहार के नियमों का वर्णन होता है। ये सभी तत्व भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण हैं और धर्म के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
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