संगम युग
- ‘संगम’ का अर्थ ‘संघ या परिषद’ है। तमिल भाषा का प्राचीनतम् साहित्य ‘संगम साहित्य’ के नाम से जाना जाता है। यह तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं अन्य बुद्धिजीवियों की एक परिषद थी। प्रो. मेहेण्डाले, इसकी तुलना आधुनिक फ्रांसीसी अकादमी (French Acaeamy) से करते है।
- सुदूर दक्षिण भारत में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के दक्षिण के भू-भाग में जिस प्राचीनकाल में ‘तमिलकम्’ प्रदेश के नाम से जाना जाता था, ईसवी सन् की पहली शताब्दी के आसपास से संगम साहित्य (तमिल साहित्य) के माध्यम से इनके इतिहास एवं संस्कृति पर प्रचुर प्रकाश पड़ने लगता है।
स्मरणीय तथ्य
• सालबाई की सन्धि द्वारा अंग्रेजों ने किसे पेशवा स्वीकार किया? माधवराव नारायण
• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति ब्रिटिश सरकार का रुख कांग्रेस के किस अधिवेशन से सख्त होने लगा था? इलाहाबाद (1888)
• अभिनव भारत का संगठन किसने किया? विनायक दामोदर सावरकर
• वह कौन-से समुद्रतटीय नगर हैं, जहां पर हड़प्पा संस् ति परिपक्व अवस्था में थी? सुतकागेंडोर व सुरकोतड़ा
• ताम्रपाषाणकालीन स्थल ‘अहार’ व गिलूंद’ स्थित थे। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में
• कब्रिस्तान R-37 का साक्ष्य किस स्थल से मिला है? हड़प्पा
• ऋग्वेद के दसवें (अन्तिम) मण्डल में किस/किन वर्णों का उल्लेख मिलता है? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र
• ‘प्रातिशख्य सूत्र’ किस वेदांग की प्रधान रचना है? शिक्षा
• उत्तर वैदिककाल से सम्बद्ध है। चित्रित धूसर मृदभाण्ड
• ‘कायस्थों’ का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है। याज्ञवल्क्यस्मृति
• ‘मध्यम मार्ग’ की अवधारणा का उल्लेख मिलता है धर्मचक्रप्रवर्तन सुत्त
• ‘न्यायवाद’ का सम्बन्ध किस धर्म से है? जैन
• जैन मठ ‘बसदि’ की पांचवीं सदी (ई.) में बहुलता थी कर्नाटक में
• मत्स्यपुराण में उल्लिखित ‘कुंतल’ किस वंश का शासक था? सातवाहन
• ‘पेरियपुराणम्’ ग्रंथ का सम्बन्ध है तमिल शैवमत से
• ‘सनक सम्प्रदाय’ का संस्थापक कौन था? निम्बार्क
• कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार उजले और कोमल ‘दुकूल’ के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र था पूर्वी बंगाल
• ‘भोट्टविष्ट’ नामक बेगारी प्रथा प्रचलित थी- तिब्बत की सीमा पर
• शाही उपाधि ‘कैसर’ धारण करते थे रोमन
• मौर्यकालीन सम्राट् अशोक का नाम किन अभिलेखों में अंकित है? गुर्जरा, मास्की, नासिक व जूनागढ़ अभिलेख
- प्रस्तुत परिषद् या संगम का गठन पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में किया गया था। प्रत्येक लेखक अथवा कवि की पाण्डुलिपि का मुद्रण परिषद के अवलोकन व संस्तुति के बाद ही सम्भव थी।
- संगम युग में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी। राजा वंशानुगत होता था। राष्ट्र (प्रजा) की महत्ता पर बल दिया जाता था। कौटिल्यीय राज्य के सप्तांग सिद्धान्त से ये परिचित थे। राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। राजा की निरंकुशता पर बुद्धिजीवियों, मंत्रियों एवं मंत्रिपरिषदों का आंशिक नियंत्राण था। राजा का आदर्श परम्परागत था अर्थात प्रजा का पुत्रावत् पालन।
- मंत्रिपरिषद न केवल राजा की स्वेच्छाचारित एवं निरंकुशता पर आंशिक नियंत्राण रखती थी, अपितु प्रशासनिक सहायक भी थी।
- ब्राह्मण सर्वोपरि था, राजा भी उसका सम्मान करता था। पुरोहित (धार्मिक निगरानी), चिकित्सक (स्वास्थ्य), ज्योतिषी (शुभ मुहूर्त) एवं मंत्राी (न्याय एवं कर व्यवस्था) अन्य मंत्राी थे।
- विविध कार्यों के लिए अलग-अलग 5 महासभाएं थीं। इनका अत्यन्त महत्व था। इसके सदस्यों को ‘माशनम्’ (बुजुर्ग) कहा गया है। यह व्यवस्था तीनों राज्यों में थी।
- नगर एवं ग्राम का प्रशासन क्रमशः ‘नगर सभा’ तथा ‘ग्राम सभा’ करती थी। ‘नगर सभा’ न्याय व्यवस्था व शासकीय परामर्श से जुड़ी थी जबकि ‘ग्राम सभा’ गांव की आम गतिविधियों पर विचार करती थी एवं मनोरंजन आदि व्यवस्था भी देखती थी। ‘ग्राम सभा एवं पंचायत’ ही बाद में चोलों के प्रसिद्ध ग्राम-शासन का आधार बना।
- आय के मुख्य साधन कृषि कर, व्यापार वाणिज्य कर एवं भूमि कर थे। लगान, सीमा शुल्क, चूँगी आदि भी आय के स्त्रोत थे। कर, उत्पादन का 1/6 लिया जाता था जो नकद या वस्तुओं में प्रदेय था।
- राजा न्याय का सर्वोच्च अधिकारी था। राजा की सभा ‘मनरम्’ सर्वोच्च न्यायालय था।
- युद्ध साम्राज्यवादी कारणों से होते थे। दिग्विजय एवं चक्रवर्तिन की धारणा प्रचलन में थी।
- युद्ध घोष की सूचनाएं शत्राुओं को उनके जानवरों के अपहरण द्वारा या संदेशवाहकों द्वारा दी जाती थी। रथों में घोड़ों के स्थान पर बैल जुतते थे। शख्तयुक्त महिलाओं की एक टुकड़ी होती थी। सेनानायक को ‘एनाडि’ कहा जाता था।
- संगम युग में आर्ययुगीन वर्ण व्यवस्था न थी। ब्राह्मण, अरसक (शासक), वेनिगर (वणिक) एवं बेलाल (वेलार-कृषक) सामाजिक वर्ग थे परन्तु बेलालों को भी शासकों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे।
- ब्राह्मणों का महत्व सर्वोपरि था। वैदिक यज्ञों का प्रचलन था। ब्राह्मण मांसाहारी थे एवं शराब पीते थे। ब्राह्मण वध महानतम अपराध था। शासक ब्राह्मणों की सलाह को सर्वोपरि मानते थे। ‘वेदमार’ उत्तर से आने वाले ब्राह्मण थे।
- समाज में ब्राह्मणों के बाद कृषकों (बेलारों) की प्रतिष्ठा थी। यह प्रतिष्ठा राजाओं के सदृश थी। कृषक ही युद्ध में भाग लेते थे।
- समाज में अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित था। सभी वर्ग के लोग अलग-अलग पोशाक पहनते थे। ‘मछुवारे’ एवं ‘जमादार’ समाज के निम्नतम् वर्ग थे।
- संगम युग में दास प्रथा नहीं थी।
- पितृ सत्तात्मक परिवार थे। स्त्रियों की दशा अच्छी थी। शिक्षा तथा अन्य विशेषाधिकार स्त्रियों को भी प्राप्त थे। ‘एकविवाह’ को कानूनी मान्यता प्राप्त थी, पर ‘बहुविवाह’ भी होते थे। ‘सती प्रथा’ का नियमन न था परन्तु विधवा जीवन इतना कष्टप्रद बना दिया जाता था कि स्वेच्छा से औरतें ‘सती हो जाना’ बेहतर समझती थीं।
- ‘ओवैयर’ तथा ‘नच्चेलियर’ संगमयुगीन दो प्रसिद्ध कवयित्रियाँ थीं।
- जन समुदाय शाकाहारी व मांसाहारी दोनों था। शराब, सुपाड़ी एवं पान का सेवन किया जाता था।
- संगीत, गायन, वादन, नृत्य का अत्यधिक प्रचलन था। चोल शासक करिकाल सप्त स्वरों का प्रखर जानकार था, उसने संगीत को व्यापक संरक्षण प्रदान किया।
- गायकों (पाणर) एवं नर्तकियों (विडैलियर) के सम्मिलित घुमक्कड़ दल हुआ करते थे।
- अतिथि सेवा का विशेष महत्व था। स्त्री-पुरुष तालाबों में सह-स्नान करते थे। भूत-प्रेत, जादू-टोने में विश्वास था। मृतक संस्कार दो तरह से किया जाता था - अ. अग्निदाह और ब. समाधीकरण।
- संगम युग में ‘कावेरी’ दक्षिण भारत की ‘गंगा’ कही जाती थी।
- राजकीय आय का प्रमुख स्त्रोत कृषि थी।
- बेलार (कृषक) राजघराने में विवाह कर सकते थे। वे प्रशासनिक पद भी प्राप्त कर सकते थे। इनमें दो वर्ग थे।
1. जमींदार कृषक-कृषि कार्य श्रमिकों से करवाते थे।
2. काश्तकार कृषक-अपना कार्य स्वयं करते थे।
- खेती में ज्यादातर महिलाएं कार्य करती थीं। प्रायः ये निम्नवर्गीय जाति की होती थीं जिन्हें ‘कडैशियर’ कहा जाता था।
- कपड़े का व्यवसाय चरमोत्कर्ष पर था। ‘उरैयूर’ प्रसिद्ध सूती वस्त्र केन्द्र था। चमड़े के व्यवसाय में लगे लोग ‘पुलैय’ कहलाते थे। ‘सुनार’, ‘लुहार’, ‘कुम्हार’ आदि अन्य उद्यमी भी थे। गन्ने से शक्कर, शराब आदि के निर्माण हेतु कारखाने थे।
- वस्तु विनिमय ही व्यापार का प्रमुख माध्यम था। तराजू पडै (पायली) एवं अवणम् माप-तौल में प्रयुक्त होते थे।
- रोम, मिस्र, अरब, मलयद्वीप समूह, चीन एवं श्रीलंका से व्यापारिक सम्बन्ध थे। ईसा की प्रथम सदी में ‘मदुरा’ के बाजार बहुत प्रसिद्ध थे।
- रोम से व्यापार प्रमुख था। यह रोम शासक ‘आगस्टस’ के समय शुरू हुआ था। रोम शासक ‘नीरो’ की स्वर्ण मुद्राएं तमिल प्रदेशों में मिली हैं। बाद में व्यापार प्रसाधन सामग्रियों तक सीमित हो गया। रोमन व्यापार से सोना चाँदी बहुलता से प्राप्त होती थी।
- पाण्ड्य राज्य मोतियों के लिए प्रसिद्ध था। मन्नार की खाड़ी से मोतियाँ प्राप्त की जाती थीं। ‘कोलडैक्क’ मोतियों का प्रमुख केन्द्र था। अपराधियों द्वारा मोतियाँ सीप से निकलवाई जाती थी।
- चेर राजधानी करुर (वाजी) से रोमन सुराहियाँ, चक्र, बर्तन एवं एक सिक्का मिला है। यहाँ से कुछ दूरी पर प्रचुर मात्रा में रोमन सिक्के मिले हैं।
- पाण्डिचेरी के पास अरिकमेडु (पोडुकै) से कुछ मुहरें तथा रत्न मिले हैं। रोमन मिट्टी के दीप, काँच के कटोरे तथा मनके भी मिले हैं।
- अरिकमेडु व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ से प्राप्त एक मनके पर रोम-शासक आगस्टस की आकृति है।
- लेम्पोस्कस (रोम) से चाँदी की एक थाली मिली है जिस पर कुर्सी पर बैठी भारत माता एवं उनके इर्द-गिर्द भारतीय जानवर एवं मनुष्य अंकित हैं।
- ‘पुहार’ (कावेरीपत्तनम) एक प्रमुख बन्दरगाह था। यहाँ पर विभिन्न यवन बस्तियों के अवशेष मिले हैं।
- ‘आगस्टस’ के पास भारतीय दूत मण्डल गया था।
- संगमयुगीन प्रधान देवता ‘मुरुगन’ थे जो बाद में ‘सुब्रह्मण्यम्’ कहलाए। इनका समीकरण उत्तर भारतीय देव ‘कार्तिकेय’, ‘स्कन्द’ एवं ‘कुमार’ से किया जाता है। मूलतः यह एक पर्वत देवता थी। ‘मच्चालियन नृत्य’ द्वारा इनकी उपासना की जाती थी।
स्मरणीय तथ्य
• सम्राट अशोक का कौन-सा शिलालेख सम्पूर्ण रूप से दुतरफा शैली में लिखा गया है? येरागुड़ी लघु शिलालेख
• हरिषेण द्वारा रचित प्रयागप्रशस्ति किस सम्राट के स्तम्भ पर अंकित की गई है? अशोक
• ‘द्वैराज्य’ और ‘यौवराज्य’ प्रथाएं किनके काल में प्रचलित थीं?कृशक
• ‘देवपुत्र’ उपाधि मूलतः किस राजवंश की थी जिसे बाद में कुषाण शासकों ने धारण किया? चीनी
• अरब ज्योतिषी अबू माशर ने किस नगर में दस वर्षों तक ज्योतिष विद्या का अध्ययन किया? बनारस
• महमूद गजनवी का दरबारी इतिहासकार कौन था? उतबी
• हसन निजामी नामक प्रसिद्ध विद्वान् का आश्रयदाता था कुतुबुद्दीन ऐबक
• वह कौन-सा तुर्क सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किए? इल्तुतमिश
• यूनानियों द्वारा ‘सैंडरोकोट्स’ नाम किसको दिया गया था? चन्द्रगुप्त को
• किस सूफी संत से गयासुद्दीन तुगलक विद्वेष रखता था निजामुद्दीन औलिया से
• ‘जालिम हुमायूं’ के नाम से प्रसिद्ध शासक किस वंश का था? बहमनी वंश का
• कार्तिकेय तथा उसके वाहन मोर की आकृति किसके सिक्कों पर मिलती है? कुमारगुप्त के सिक्कों पर
• कम्यूनल अवार्ड में किसके लिए प्रथक निर्वाचन की व्यवस्था प्रथम बार की गई थी? हरिजनों की
• 1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान किस स्थान पर सर्वप्रथम समानान्तर सरकार की स्थापना की गई? बलिया (उ.प्र.) में
• भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्राी कौन थे? लाॅर्ड एटली
• चटगांव शस्त्रागार छापामार दल के नेता कौन थे? सूर्यसेन
- ‘सरस्वती’ की भी उपासना किसी-न-किसी रूप में होती थी (मणिमेकलै में वर्णित)।
- ‘शिव’ की उपासना अर्द्ध-नारीश्वर के रूप में होती थी। पाण्ड्य नरेश की पुत्राी ‘मीनाक्षी’ का शिव के साथ विवाह का वर्णन भी मिलता है।
- विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र आदि की भी उपासना अनभिज्ञ न थी।
- नगरों को प्राचीर, खाइयों एवं दुर्गों से सुरक्षित रखा जाता था।
- ‘पेरीप्लस आफ द एरीथ्रियन सी’ के अज्ञातनामा लेखक ने पश्चिमी भारत के तीन प्रसिद्ध बन्दरगाहों का नामोल्लेख किया है - (1) भड़ौच (2) क®गागोरा (3) पोराकड्। इनके बाद उसने कावेरीपत्तनम् (पुहार) का उल्लेख किया है।
- संगमयुगीन महत्वपूर्ण पत्तनों में पुहार, तोण्डि, मुजिरिस एवं वाजि थे।
- ‘चेति’ व्यापारियों का निम्न वर्ग था जो मुख्यतः आन्तरिक आपूर्ति से जुड़ा था। ‘वेनिगर’ मुख्य व्यापारी थे।
- ‘तोल्काप्पियम’ ग्रंथ में 8 विवाहों का उल्लेख मिलता है। ‘प्रेम विवाह’ को पाँच तिणाँ कहा गया है।
- चेर शासक ‘शेनगुट्टवन’ ने तमिल देश में ‘पत्तिनी पूजा’ शुरू की। ‘पत्तनी’ एवं ‘कण्णगी’ पूजा प्रमुख थी। इसको राज्याश्रय मिलता था। (शिलपादिकारम्) ‘पत्नी पूजा’ की शुरुआत एक नवीन परम्परा की शुरुआत थी जिसके द्वारा मातृ सत्तात्मक तमिल समाज क्रमशः पितृ सत्तात्मक समाज की ओर बढ़ा।
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1. संगम युग क्या है? |
2. संगम युग के समय किन साम्राज्यों की स्थापना हुई? |
3. संगम युग में कौन-कौन से कला और साहित्य के उदाहरण हैं? |
4. संगम युग में भारतीय साहित्य के किन-किन ग्रंथों का उद्भव हुआ? |
5. संगम युग के दौरान भारतीय व्यापार का क्या महत्व था? |
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