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ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब - इतिहास, यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

परिचय

  • कंपनी ने 1623 तक सूरत, भड़ौच, अहमदाबाद, आगरा और मछलीपट्टनम में कारखाने स्थापित किए।
  • मद्रास में अंग्रेजों ने अपने कारखाने के इर्द गिर्द एक छोटा किला बनाया जिसे ‘फोर्ट सेंट जार्ज’ कहा जाता था।

फोर्ट सेंट जॉर्जफोर्ट सेंट जॉर्ज

  • कम्पनी ने 1668 में पुर्तगालियों से बम्बई द्वीप प्राप्त कर लिया और उसकी किलाबंदी कर ली। कम्पनी ने पश्चिमी तट का मुख्यालय सूरत से बदल कर बम्बई कर लिया।
  • कम्पनी ने पूर्वी भारत में अपना पहला कारखाना 1633 में उड़ीसा में खोला।
  • अंग्रेजों ने बंगाल में अपना प्रथम कारखाना 1651 में हुगली में बंगाल के सुबेदार शाह जहान के पुत्र शाहशुजा की अनुमति से खोला। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने पटना, बालासोर, ढाका, कासिम बाजार तथा अन्य स्थानों पर कारखाने खोले।
  • 1698 में कम्पनी ने तीन गांवों सुतानती, कालिकत्ता और गोविन्दपुर की जमींदारी प्राप्त की और वहाँ अपने कारखाने के इर्द गिर्द ‘फोर्ट विलियम’ नामक किला बनाया। ये गांव शीघ्र ही विकसित होकर एक शहर बन गये जिसका नाम कलकत्ता हो गया।
  • 1700 में फोर्ट विलियम बंगाल में अंग्रेजों की बंगाल प्रेसीडेन्सी का केन्द्र बन गया।
  • 1717 में सम्राट फर्रुखशियर ने बंगाल में कम्पनी को पुराने सुबेदारों द्वारा दी गयी व्यापारिक रियायतों की पुनः पुष्टि कर दी तथा उन्हें कलकत्ता के आस पास के क्षेत्रों को भी किराये पर लेने की अनुमति दे दी।
  • बंगाल के नवाबों मुर्शिद कुली खाँ और अलीवर्दी खां ने अंग्रेज व्यापारियों पर सख्त नियंत्रण रखा।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार के बावजूद अनेक अंग्रेज सौदागर एशिया के साथ स्वतन्त्र व्यापार करते थे। 1694 में हाउस आफ कामन्स ने एक प्रस्ताव पास किया कि जब तक संसद कानून द्वारा मनाही न करे तब तक इंग्लैण्ड के सभी नागरिकों को ईस्ट इंडीज में व्यापार करने के बराबर अधिकार होंगे।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रतिद्वंद्वियों ने ”न्यू कम्पनी“ नाम की एक अन्य कम्पनी बनायी। नयी कम्पनी ने सरकार को अधिक कर्ज दिया जिसके कारण संसद ने नयी कम्पनी को पूरब के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया परन्तु पुरानी कम्पनी के भारत स्थित कर्मचारियों ने नयी कम्पनी को व्यापार नही करने दिया ।
  • बंगाल के नवाबों मुर्शिद कुली खाँ तथा अलीवर्दी खाँ ने कम्पनी को निश्चित धनराशि देने के लिए मजबूर किया तथा उन्हें उनके विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने से रोका।
  • मराठा आक्रमणों से बचने के लिए अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति से अपनी कोठी (फोर्ट विलियम) के चारों ओर एक गहरी खाई बना ली।
  • अप्रैल 1756 में अलीवर्दी खां की मृत्यु के पश्चात् सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। अंग्रेज अपने वस्तुओं  पर टैक्स देने के बजाय कलकत्ता में आने वाले भारतीय वस्तुओं पर भारी चुंगी लगाना आरम्भ कर दिया। कम्पनी ने बिना नवाब की अनुमति के ही कलकत्ता की किलेबन्दी शुरू कर दी तथा सिराजुद्दौला द्वारा निष्कासित कृष्ण बल्लभ नामक व्यक्ति को न केवल अपने यहाँ शरण दी अपितु उसे नवाब को सौंपने से भी इंकार कर दिया।
  • सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों को क्रमशः कलकत्ता और चन्द्रनगर की किलेबंदी तोड़ने का आदेश दिया। अंग्रेजों ने नवाब के आदेश का पालन नहीं किया जबकि फ्रांसीसी कम्पनी ने इस आदेश का पालन किया।
  • सिराजुद्दौला ने जून 1756 में कासिम बाजार तथा कलकत्ता की कोठी पर अधिकार कर लिया तथा मानिकचन्द को कलकत्ता सौंपकर स्वयं मुर्शिदाबाद लौट गया। अंग्रेज अधिकारियों ने समुद्र के किनारे फुल्टो में आश्रय लिया।
  • कलकत्ता में अंग्रेजों की पराजय का समाचार मिलने पर अंग्रेजों ने मद्रास से क्लाइव तथा वाटसन के नेतृत्व में एक सेना कलकत्ता भेजी। क्लाइव दिसम्बर 1756 में कलकत्ता पहुंचा और वहाँ के प्रभारी अधिकारी मानिक चन्द ने घूस लेकर कलकत्ता अंग्रेजों को सौंप दिया।
  • फरवरी 1757 में नवाब ने क्लाइव के साथ अलीनगर (कलकत्ता का नया नाम) की सन्धि पर हस्ताक्षर किया जिसके अनुसार अंग्रेजों को व्यापार के पुराने अधिकार प्राप्त हो गये तथा अंग्रेजों को कलकत्ता की किलेबंदी करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया।
  • क्लाइव ने मार्च 1757 में फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर को जीत लिया।
  • उसने सिराजुद्दौला के प्रधान सेनापति मीर जाफर, साहूकार जगत सेठ, राय दुर्लभ तथा अमीचन्द के साथ मिलकर एक षडयंत्र रचा जिसमें निश्चित किया गया कि सिराजुद्दौला को हटाकर मीर जाफर को नवाब बनाया जायेगा।
  • जून 1757 में क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण मुर्शिदाबाद से 22 मील दक्षिण प्लासी नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। इसे प्लासी का युद्ध कहते है।
  • प्लासी के युद्ध में नवाब की ओर से मुख्यतः मीरमदन और मोहन लाल ने बहादुरी से लड़ाई की। इस युद्ध में सिराजुद्दौला को भागना पड़ा जिसको बाद में बन्दी बनाकर हत्या कर दी गयी।
  • प्लासी का युद्ध सामरिक दृष्टि से बहुत छोटा युद्ध था परन्तु राजनीतिक दृष्टि से इस युद्ध की गणना भारत के भाग्य निर्णायक युद्धों में की जाती है क्योंकि इस युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेज बंगाल के वास्तविक स्वामी बन गये जहाँ से वे अगले 100 वर्षों में पूरे भारत पर छा गये।
  • मीरजाफर ने स्वयं को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया। उसने कम्पनी को बंगाल में व्यापार करने का असीमित अधिकार दिया। कलकत्ता में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का टकसाल खुल गया। अंग्रेजों को 24 परगने की जमींदारी दे दी गयी। इसके अतिरिक्त मीर जाफर ने कम्पनी के कर्मचारियों को भी रुपये दिये। उसने क्लाइव को 20 लाख तथा वाटसन को 10 लाख रुपये दिये।
  • अंग्रेजों की असीमित मांगों को पूरा करने में मीरजाफर ने राजकोष खाली कर दिया और आगे वह अंग्रेजों की मांगों को पूरा करने से इन्कार करने लगा।
  • अंग्रेजों ने मीरजाफर से नाराज होकर अक्टूबर 1760 में उसके दामाद मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया।
  • मीर कासिम ने कम्पनी को बर्धमान, मिदनापुर और चटगांव जिलों की जमींदारी तथा अधिकारियों को कुल मिलाकर 29 लाख रुपये का उपहार दिया।
  • मीर जाफर 15000 रुपये मासिक पेंशन पर कलकत्ता में रहने लगा।
  • मीर कासिम ने महसूस किया कि अपनी स्वतंत्राता बनाये रखने के लिए समृद्ध कोष और कुशल सेना आवश्यक है। इसलिये उसने सार्वजनिक अव्यवस्था रोकने का प्रयास किया और राजस्व प्रशासन से भ्रष्टाचार हटाकर अपनी आमदनी बढ़ाने का प्रयत्न किया।
  • मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से बदल कर मुंगेर कर लिया और अपनी नयी राजधानी की किलेबंदी करके 40 हजार सुरक्षित सैनिकों की सेना तैयार की।
  • मीर कासिम ने अंग्रेजों के व्यक्तिगत व्यापार पर कर लगा दिया। अंग्रेजों द्वारा इसका विरोध करने पर मीर कासिम ने पूरे बंगाल को कर मुक्त कर दिया। इससे अंग्रेज बहुत नाराज हुए।
  • 1763 में अंग्रेजों ने मीर कासिम को पराजित कर दिया जिसके कारण वह अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास भाग गया।
  • अंग्रेजों ने 1763 में फिर मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया और उससे भारी रकम वसूली गयी।
  • मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना का अक्टूबर 1764 में अंग्रेजों से युद्ध हुआ जिसे बक्सर का युद्ध कहते है। इस युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए। अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो ने किया।
  • 1765 में मीरजाफर की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने उसके दूसरे पुत्र निजामुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया तथा उससे एक सन्धि पर हस्ताक्षर करवा लिया। इस सन्धि के अनुसार नवाब को अपनी अधिकांश सेना विघटित कर देनी थी और बंगाल का शासन एक नायब सूबेदार के जरिए करना था, जिसे कम्पनी नामजद करती और उसे कम्पनी की मंजूरी के बिना बर्खास्त नहीं किया जाता। इस प्रकार कम्पनी ने बंगाल के निजामत पर सर्वोच्च नियंत्रण कायम कर लिया।
  • 1765 में क्लाइव गवर्नर के रूप में बंगाल आया।
  • अगस्त 1765 में क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से इलाहाबाद की सन्धि की जिसके तहत कम्पनी नवाब के ऊपर बाहरी आक्रमण होने पर सहायता करती तथा नवाब कम्पनी को उसके सैनिक सेवाओं के लिये भुगतान करता। शुजाउद्दौला ने युद्ध की क्षति पूर्ति के रूप में कम्पनी को 50 लाख रुपये दिये। साथ ही इलाहाबाद तथा कड़ा के जिले भी छोड़ दिए।
  • क्लाइव ने 1765 में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से सन्धि करके बंगाल, बिहार और उड़ीसा का राजस्व वसूल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इसके बदले में कम्पनी द्वारा सम्राट को 26 लाख रुपये तथा इलाहाबाद और कड़ा का जिला दिया गया।
  • क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली लागू की जिसमें धन तो कम्पनी प्राप्त करती थी परन्तु शासन का भार नवाबों के कन्धों पर था।
  • मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत प्रान्तों में दो अधिकारी सुबेदार तथा दीवान होते थे। सुबेदार का कार्य सैनिक संरक्षण, पुलिस तथा फौजदारी कानून लागू करना था जबकि दीवान का कार्य कर व्यवस्था तथा दीवानी कानून लागू करना था। ये दोनों अधिकारी एक दूसरे पर नियंत्रण रखते थे तथा सीधे केन्द्र के प्रति उत्तरदायी थे। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् बंगाल में मुर्शिदकुली खां दोनों काम करने लगा था।
  • शाह आलम ने 1765 में दीवानी का भार कम्पनी को सौंप दिया तथा मीरजाफर की मृत्यु पर निजामुद्दौला द्वारा कम्पनी को निजामत का कार्यभार भी मिल गया।
  • दीवान के रूप में कम्पनी बंगाल के राजस्व को सीधे वसूल करती थी और नायब सुबेदार को नामजद करने के अधिकार के जरिये उसका निजामत पर नियंत्रण था।
  • कम्पनी ने दीवानी के लिये दो उप दीवान, बंगाल के लिये मुहम्मद रजा खां तथा बिहार के लिए शिताब राय को नियुक्त किया।
  • द्वैध शासन प्रणाली प्रभावी तथा व्यावहारिक साबित हुई और बंगाल में अराजकता फैल गयी।
  • 1770 में बंगाल में बारिश न होने के कारण अकाल पड़ा जिसमें कम्पनी की गलत नीतियों के कारण अपार जन धन की क्षति हुई।

बंगाल का भीषण अकालबंगाल का भीषण अकाल

  • 1772 में वारेन हेस्टिंग गवर्नर बनकर भारत आया।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर दी तथा दोनों उपदीवानों मुहम्मद रजा खां एवं राजा शिताब राय को पदमुक्त कर दिया। उसने कोष मुर्शिदाबाद से हटाकर कलकत्ता में स्थापित  कर दिया।
  • दीवान बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा का प्रबंधन बनें। परिषद तथा प्रधान अब मिलकर राजस्व बोर्ड बन गये तथा बोर्ड ने अपने कर संग्राहक नियुक्त किये।
  • बंगाल के नाबालिग नवाब मुबारिक दुल्ला को मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम के संरक्षण में रखा गया तथा नवाब का पेंशन 32 लाख से घटा कर 16 लाख रुपये वार्षिक कर दी गयी।
  • मुगल सम्राट को 26 लाख वार्षिक दिया जाने वाला रुपया बन्द कर दिया गया तथा सम्राट से इलाहाबाद एवं कड़ा के जिले लेकर उसे अवध के नवाब को 50 लाख रुपये में दिया गया।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने निर्णय लिया कि कर वसूलने का अधिकार कम्पनी के हाथ में होना चाहिए और इस उद्देश्य हेतु उसने कलेक्टर नियुक्त किया जिनका काम देशी अधिकारियों की मदद से लगान वसूली तथा शासन व्यवस्था स्थापित करना था। इन देशी अधिकारियों को 5 वर्षों के लिए नियुक्त किया जाता था तथा सर्वाधिक बोली बोलने वाले को कर संग्रहण का अधिकार नीलाम कर दिया जाता था। इस व्यवस्था के निरीक्षण के लिये कलकत्ता में बोर्ड आफ रेवन्यू की स्थापना की गयी।
  • 1772 में प्रत्येक जिले में एक दीवानी तथा एक फौजदारी न्यायालय की स्थापना की गयी तथा इनके फैसलों की अपील के लिये कलकत्ता में सदर दीवानी अदालत और सदर निजामत अदालत बनायी गयी। दीवानी न्याय कलेक्टरों के अधीन होता था। हिन्दुओं पर हिन्दू विधि तथा मुसलमानों पर मुस्लिम विधि लागू होती थी। जिला फौजदारी अदालत एक भारतीय अधिकारी के अधीन होती थी जिसकी सहायता के लिए एक मुफ्ती और एक काजी होता था। कलेक्टर को यह देखना था कि क्या गवाही ठीक से ली गयी थी या नहीं और क्या इसे ठीक से माना गया था या नहीं। मुस्लिम कानून यहां लागू होता था। 
  • सदर दीवानी अदालत में अध्यक्ष, सर्वोच्च परिषद के प्रधान तथा दो अन्य सदस्य होते थे जिनकी सहायता के लिए भारतीय अधिकारी होते थे। सदर निजामत अदालत का अध्यक्ष उपनिजाम होता था जिसकी सहायता के लिये एक मुख्य काजी, एक मुख्य मुफ्ती तथा तीन मौलवी होते थे। सदर निजामत अदालत के कार्य का निरीक्षण परिषद तथा उसके अध्यक्ष करते थे।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने असंख्य चुंगीघरों तथा चैकियों को समाप्त कर दिया। केवल कलकत्ता, हुगली, मुर्शिदाबाद, पटना तथा ढाका में पाँच चुंगीघर रखे गये।
  • 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट पास हुआ जिसके अनुसार भारत में शासन का भार गवर्नर जनरल तथा उसकी चार सदस्यों वाली परिषद को सौंप दिया गया। इस परिषद का अध्यक्ष गवर्नर जनरल होता था तथा निर्णय बहुमत से होता था। बराबर मत होने पर गवर्नर जनरल को निर्णायक मत देने का अधिकार था।
  • रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया था। परिषद् के अन्य चार सदस्य थे वारवैल, क्लेवरिंग, फ्रांसिस तथा मानसन।

बंगाल के गवर्नर जनरल- वारेन हेस्टिंग्सबंगाल के गवर्नर जनरल- वारेन हेस्टिंग्स

  • कर संग्रह की पंचवर्षीय व्यवस्था असफल रही और 1776 में पंचवर्षीय ठेके की समाप्ति पर पुनः एक-वर्षीय प्रणाली अपनायी गयी और कर संग्रहण के अधिकार नीलाम कर दिये गये। 1781 में इस व्यवस्था में पुनः सुधार करके जिलों में पुनः कलेक्टर नियुक्त किया गया जिन्हें कर निश्चित करने का अधिकार था।-  रेग्युलेटिंग एक्ट द्वारा 1773 में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई जिसके अधिकार क्षेत्र में सभी भारतीय तथा अंग्रेज थे। यहाँ अंग्रेजी कानून लागू होता है।
  • वारेन हेस्टिंग्स तथा परिषद के सदस्यों में मतभेद हो गया। वारेन हेस्टिंग्स के विरुद्ध परिषद के सदस्यों द्वारा बहुमत से लखनऊ में रेजिडेन्ट के रूप में ब्रिस्टो की नियुक्ति की गयी तथा उसे नवाब वजीर से फैजाबाद की सन्धि करने की आज्ञा दी गयी। इस सन्धि के तहत नवाब ने बनारस की जमींदारी कम्पनी को दे दी।
  • बंगाल के नन्दकुमार ने मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम को मुवारिकुद्दौला का संरक्षक बनाने के लिए वारेन हेस्टिंस द्वारा साढ़े तीन लाख रुपये घूस लेने का आरोप लगाया तथा उसने इसे सिद्ध करने के लिये परिषद के सम्मुख आने का प्रस्ताव रखा। वारेन हेस्टिंग्स ने परिषद की सभा भंग कर दी तथा नन्दकुमार पर जालसाजी का मुकदमा चलाकर अंग्रेज जूरी की सहायता से उसे फाँसी पर लटकवाने का निर्णय करवा दिया। इस षडयंत्र में मुख्य न्यायाधीश इम्पे भी शामिल था।

पिट्स इंडिया अधिनियम 1784पिट्स इंडिया अधिनियम 1784

  • 1784 में पिट इण्डिया एक्ट लागू हुआ जिसके अनुसार कंपनी की सम्पूर्ण गतिविधियों और भारत में उसके प्रशासन को ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
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FAQs on ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब - इतिहास, यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी क्या है और उसका इतिहास क्या है?
Ans. परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी एक ब्रिटिश कंपनी थी जो 1600 ईसवी में बनाई गई थी। यह कंपनी भारत में व्यापार करने और बंगाल के नवाबों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए बनाई गई थी। इस कंपनी ने भारत में व्यापार के दौरान बड़ी मात्रा में संसाधनों का उपयोग किया और उद्यमी ब्रिटिश व्यापारियों को भारतीय बाजार के लिए एक आधिकारिक आधार प्रदान किया।
2. बंगाल के नवाब कौन थे और उनका संबंध परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी से क्या था?
Ans. बंगाल के नवाब इस्लामिक सल्तनत समय में बंगाल क्षेत्र पर शासन करने वाले मुस्लिम नवाबों को कहा जाता है। परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल के नवाबों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए और उनसे आधिकारिक अनुमति प्राप्त की जो व्यापार के लिए आवश्यक थी। इसके बाद, कंपनी ने बंगाल क्षेत्र में व्यापारिक और राजनीतिक दबदबे की शुरुआत की और बाद में इसे ब्रिटिश शासन के तहत ले लिया गया।
3. परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में कौन-कौन से संसाधनों का उपयोग किया?
Ans. परिचयईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में व्यापार के दौरान कई संसाधनों का उपयोग किया। इनमें से कुछ मुख्य संसाधन शामिल हैं: चाय, अदरक, मिर्च, धान, नींबू, पेपर, तंबाकू, पोस्टा, क्षीर, लकड़ी, बक्री सामग्री, ज्वेलरी, वस्त्र, मसाले, चांदी, तांबा, सोना, नकदी, चाँदी, ज्वेलरी, चाँदी, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुलाबी पत्थर, लोहा, तांबा, तांबी पदार्थ, गुल
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