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नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • भारतीय संविधान के अध्याय 5 में अनुच्छेद 148 से 151 तक में भारत के नियन्त्राक एवं महालेखा परीक्षक के पद एवं उसकी शक्तियाँ तथा उसकी स्वाधीनता सुनिश्चित की गई है।

नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति

  • भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 148 (1) के अनुसार भारत का एक नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक होगा जिसको राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।

नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल

  • संविधान के अनुच्छेद 148 के अधीन नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यकाल, सेवा शर्तें, वेतन के निर्धारण हेतु विधि बनाने का दायित्व संसद को प्राप्त है। इस शक्ति के अधीन संसद ने नियन्त्रक-महालेखा परीक्षक (सेवा-शर्तें) अधिनियम 1971 में निर्मित किया था।
  • 1976 मेंसंशोधित इस अधिनियम के अनुसार-
  • नियन्त्रक-महालेखा परीक्षक के पद की अवधि उसके पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष की होगी।
  • सलेकिन 65 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर 6 वर्ष की अवधि की समाप्ति के पूर्व भी उसका पद रिक्त माना जाएगा।

नियन्त्रक-महालेखा परीक्षक का पद से हटाया जाना

  • नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक निम्न प्रकार से अपने पद से हट सकेगा या हटाया जा सकेगा-
    • वह किसी भी समय राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्र द्वारा पद त्याग सकता है।
    • उसे महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 148 (1) में उसे उसके पद से केवल उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • इस प्रकार उसे केवल संसद के दोनों सदनों के समावेदन पर ;पद्ध साबित कदाचार एवं (2) असमर्थता के आधार पर ही हटाया जा सकता है।
  • साबित कदाचार का अर्थ है उसने अपने अधिकारों अथवा शक्तियों के प्रयोग में दुव्र्यवहार किया है और असमर्थता से तात्पर्य है कि वह अपने कार्य को करने में समर्थ नहीं रह गया है।
  • इन दोनों या इनमें से किसी एक आधार पर उसे तभी हटाया जा सकता है जबकि संसद राष्ट्रपति से ऐसा करने का अनुरोध करे और इस अनुरोध प्रस्ताव पर संसद के प्रत्येक सदन के सदस्यों के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित किया गया होना चाहिए।

वेतन एवं शर्तें

  • इसका वेतन संसद द्वारा निर्धारित होता है।
  • अन्य विषयों में उसकी सेवा शर्तें उन्हीं नियमों से निर्धारित होगी जो भारत सरकार के सचिव की पंक्ति के प्रशासनिक सेवा के सदस्य के लिए लागू होती है।
  • नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के वेतन, भत्ते, छुट्टियों, पेंशन, निवृति का आयु एवं उसके अधिकारों के संबंध में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसकी पदावधि के दौरान कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा। (अनुच्छेद 148 (3))
  • संविधान के अनुच्छेद 148 (4) के अनुसार अपने पद से हटने के पश्चात् वह भारत सरकार या राज्य सरकारों के अधीन कोई भी अन्य पद धारण नहीं कर सकेगा। यह उपबंध इसलिए रखा गया है कि उसे संघ या राज्य की कार्यपालिका को प्रसन्न करने के लिए कोई लालच न हो। (कि वह पद-निवृति के पश्चात् उसे कोई अन्य लाभ का पद सौंप देगी।)
  • नियन्त्रक महालेखा परीक्षक का वेतन एवं उसके सहयोगी कर्मचारियों का वेतन देश की संचित निधि पर भारित होगा और संसद में इस विषय पर मतदान नहीं हो सकेगा।
  • उसके सहयोगी कर्मचारियों की सेवा एवं शर्तें राष्ट्रपति द्वारा उसी के परामर्श पर बनायी जाएगी।

नियन्त्रक-महालेखा परीक्षक के कार्य एवं शक्तियाँ 

  • संसद द्वारा ‘नियन्त्राक-महालेखा परीक्षक (कत्र्तव्य, शक्तियाँ, सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 द्वारा अधिनियमित निम्न शक्तियाँ निर्धारित की गई है - 
    • भारत और उसके प्रत्येक राज्य के और संघ राज्यों की संचित निधि से किये गये सभी व्ययों का परीक्षण (जाँच) और उन पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) तैयार करना।
    • इसी प्रकार संघ और राज्योंकी आकस्मिक निधि और सार्वजनिक सेवाओं के सभी व्ययों की जाँच करना और उन पर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) तैयार करना।
    • संघ या राज्य के विभागों द्वारा किये गये सभी व्यापार और विनियोजन (विनिर्माण) के लाभ और हानि लेखाओं की जाँच एवं उन पर अपनी रिपोर्ट देना।
    • संसद द्वारा राजस्व का निर्धारण (करों का निर्धारण) उनका संग्रह, और उचित वितरण की पर्याप्त जाँच के लिए इस हेतु बनायी गई विधि या नियमों के अनुरूप संघ एवं राज्यों की आय एवं व्ययों की जाँच करना।
    • संविधान के अनुच्छेद 150 के अनुसार राष्ट्रपति नियन्त्रण-महालेखा परीक्षक की सलाह से ही राज्यों एवं संघ के लेखाओं के प्रारूप तैयार करवाएगा।
    • संविधान के अनुच्छेद 151 के अधीन नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक संघ के लेखाओं से संबंधित रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करेगा और राष्ट्रपति इन रिपोर्ट (प्रतिवेदन) को संसद के दोनों सदनोंके समक्ष रखवाएगा।
    • नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार राज्यों के लेखाओं से संबंधित प्रतिवेदन वह संबंधित राज्यों के राज्यपालों के समक्ष प्रस्तुत करता है और राज्यों के राज्यपाल उसे विधान मण्डल के समक्ष प्रस्तुत करवाते है।
    • उपर्युक्त शक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि संविधान द्वारा जनता की निधि से किये गये व्यय की जाँच का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है। एक तरह से वह जन-निधि का संरक्षक होता है।

                                                         महत्वपूर्ण तथ्य
लिस्ट पद्धति - राज्यपालों द्वारा लिस्ट पद्धति का अनुसरण तब किया गया, जब मुख्यमंत्री पद के एक से अधिक दावेदार थे। ऐसी स्थिति में राज्यपाल दावेदारों से अपने समर्थकों की सूची पेश करने के लिए कहे और यदि किसी विधायक का नाम एक से अधिक सूचियों में पाया गया, तो राज्यपाल द्वारा उस विधायक का साक्षात्कार किया गया। उदाहरणार्थ 1967 में विश्वनाथ दास ने उत्तर प्रदेश में, हुकुम सिंह ने राजस्थान में, 1974 में बी. के. नेहरू ने नागालैंड में तथा 1978 में सादिक अली ने महाराष्ट्र में इस पद्धति का प्रयोग किया था। लेकिन कुछ राज्यपालों ने इस पद्धति का प्रयोग नहीं किया है। उदाहरणार्थ 1969 तथा 1970 में बिहार में नित्यानन्द कानूनगो तथा 1984 में आन्ध्र प्रदेश में रामलाल ने लिस्ट पद्धति का अनुसरण नहीं किया।

परेड पद्धति - परेड पद्धति के अनुसार मुख्यमंत्री पद के दावेदार अपने समर्थकों की परेड राज्यपाल के समक्ष करवाते है और परेड में शामिल विधायकों के आधार पर राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है। इस पद्धति का सबसे पहले प्रयोग 1970 में पंजाब में किया गया। इसके बाद इस पद्धति का प्रयोग 1974 में मणिपुर में, 1978 में महाराष्ट्र में तथा 1984 में जम्मू-कश्मीर में किया गया।

 

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FAQs on नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक किसे कहते हैं?
उत्तर: नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विभिन्न सरकारी विभागों की वित्तीय प्रबंधन की निगरानी करने और लेखांकन की जांच करने के लिए नियुक्त किए जाते हैं। वे सरकारी विभागों के नियमों, वित्तीय नियमों और कार्यप्रणालियों की पालना करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि विभाग वित्तीय नियंत्रण के तहत चल रहा है।
2. यूपीएससी (UPSC) क्या है?
उत्तर: यूपीएससी (UPSC) भारतीय संघ लोक सेवा आयोग का एक महत्वपूर्ण परीक्षा है। यह भारतीय संविधान के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है और इसके माध्यम से विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया होती है। इस परीक्षा का उद्देश्य योग्य और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में नियुक्ति करना है।
3. नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक की योग्यता क्या होती है?
उत्तर: नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक बनने के लिए उम्मीदवारों को निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करना होता है: 1. एक स्नातक डिग्री या समकक्ष। 2. लेखा परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों की आयु 30 वर्ष से कम होनी चाहिए। 3. उम्मीदवारों को भारतीय नागरिकता होनी चाहिए। 4. विभिन्न केंद्र शासित प्रदेशों में अनुभव या प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
4. नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक के कार्य क्या होते हैं?
उत्तर: नियन्त्रक और महालेखा परीक्षकों का मुख्य कार्य सरकारी विभागों की वित्तीय प्रबंधन की निगरानी करना होता है। वे विभागों के बजट, खाता-बही, लेखांकन और वित्तीय सूचनाओं की जांच करते हैं। इसके अलावा, वे सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी नियमों, वित्तीय नियमों और कार्यप्रणालियों का पालन किया जा रहा है और विभाग वित्तीय नियंत्रण के तहत सही ढंग से चल रहा है।
5. नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक की परीक्षा कैसे दी जाती है?
उत्तर: नियन्त्रक और महालेखा परीक्षा यूपीएससी (UPSC) द्वारा आयोजित की जाती है। इस परीक्षा में दो चरण होते हैं - प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा। प्रारंभिक परीक्षा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर आधारित होती है और इसके बाद मुख्य परीक्षा उत्तर लेखन पर आधारित होती है। सफलतापूर्वक परीक्षा में उम्मीदवारों को साक्षात्कार और व्यक्तित्व परीक्षण के लिए बुलाया जाता है।
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