सर्वोच्च न्यायालय का गठन
न्यायाधीशों की नियुक्ति
न्यायाधीशों की योग्यताएँ
(क) वह भारत का नागरिक हो,
(ख) किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो, या
(ग) किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो, या
(घ) राष्ट्रपति की राय में वह पारंगत विधिवेत्ता हो।
न्यायाधीशों का कार्यकाल
(क) 65 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकने पर।
(ख) न्यायाधीश स्वयं राष्ट्रपति को संबोधित कर अपने हस्ताक्षर सहित लिखित पत्रा द्वारा अपना पद त्याग सकता है।
(ग) संसद द्वारा महाभियोग लगाकर उसे पद से हटाया जा सकता है।
महाभियोग प्रक्रिया
(1) प्रमाणित कदाचार (दुर्व्यवहार) के आधार पर - इसका तात्पर्य है कि यदि संसद यह महसूस करे कि न्यायाधीश द्वारा अपने पद का दुरुपयोग किया गया है अथवा उसने संविधान के विरुद्ध आचरण किया है तब ऐसी स्थिति में वह प्रस्तुत प्रकरणों के आधार पर राष्ट्रपति की अनुमति से महाभियोग प्रस्ताव रख सकती है।
(2) अक्षमता के आधार पर - संसद यदि यह महसूस करे कि न्यायाधीश अपने पद पर कार्य करते रहने में असमर्थ अथवा अक्षम है तब वह इस आशय का प्रस्ताव राष्ट्रपति की अनुमति से सदस्यों के समक्ष रख सकती है।
कार्यकारी तथा तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
उन्मुक्तियां एवं विशेषाधिकार
(1) किसी भी न्यायाधीश को केवल साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप ही पदच्युत किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
(2) किसी भी न्यायाधीश के वेतन, भत्तों, छुट्टियों या अन्य सुविधाओं में उसके कार्यकाल में कटौती नहीं की जा सकती। कटौती केवल अनुच्छेद 360 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपातकाल के दौरान की जा सकती है।
(3) न्यायाधीशों का वेतन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के अन्तर्गत आता है।
इसी प्रकार उच्च न्यायालय के सभी प्रशासनिक व्यय तथा उसके अन्य कर्मचारियों के वेतन-भत्ते सभी भारत की संचित निधि में से देय होंगे। इन पर संसद में मतदान नहीं किया जा सकता।
(4) किसी भी न्यायाधीश के आचरण एवं कार्यों के संबंध में संसद में महाभियोग प्रस्ताव के अतिरिक्त किसी भी स्थिति में कोई चर्चा नहीं की जा सकती।
(5) न्यायाधीश अपनी सेवा निवृत्ति के पश्चात् भारत राज्यक्षेत्रा के किसी भी न्यायालय में अथवा किसी भी सरकारी अधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकते।
(6) सर्वोच्च न्यायालय को अपने कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिये कर्मचारियों की नियुक्ति में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इनकी सेवा-शर्तें भी इसी न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ
"मैं अमुक जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूं, ईश्वर की शपथ लेता हूँ (या सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ) कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और सत्यनिष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखण्डता अक्षुण्ण रखूँगा तथा मैं सम्यक प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कत्र्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाये रखूँगा।"
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यविधि
सर्वोच्च न्यायालय अपना कार्य किस प्रक्रिया के अनुरूप करेगा, इस हेतु कुछ उपबन्ध तो संविधान में ही निर्धारित किये गये है तथा समय की आवश्यकतानुसार संसद एवं न्यायालय को स्वयं ही अपनी प्रक्रिया संबंधी नियम निर्धारण की शक्ति भी प्रदान की गई है। सामान्यतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी कार्यवाही निम्न विधि द्वारा संचालित की जाती है -
संविधान के अनुच्छेद 145 के अनुसार -
(1) ऐसे विषय जिनका संबंध संविधान की व्यवस्था से हो या जिसमें संविधान की विधि के अभिप्राय (अर्थ) को समझने या उसकी व्याख्या करने संबंधी प्रावधान हो, एवं यदि इसमें कोई ऐसा विषय शामिल हो जिस पर विचार या निर्णय करने केे लिए राष्ट्रपति ने निर्देश दिये हों, तो संबंधित सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम 5 न्यायाधीशों की उपस्थिति में ही की जा सकेगी।
(2) ऐसे विषयों या निर्णयों से संबंधित अपीलें सर्वोच्च न्यायालय के 5 से कम न्यायाधीशों के समक्ष उपस्थित नहीं की जा सकती है जिनमें कि सुनवाई के पश्चात् यह विचार किया जाए कि उसमें संविधान की व्याख्या करने संबंधी या कानून के तात्विक रूप को स्पष्ट करने संबंधी प्रावधान है।
(3) सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाये जाएंगे एवं प्रत्येक रिपोर्ट खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दी जाएगी।
(4) सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक निर्णय बहुमत के आधार पर ही लिये जाएंगे। बहुमत के निर्णय से असहमत उसी खण्ड के न्यायाधीश अपना पृथक निर्णय या राय दे सकते है लेकिन इससे बहुमत के निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बहुमत का निर्णय ही प्रभावी माना जाएगा।
लोकहित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से न्यायालय को अपने निर्णय सुरक्षित रखने का भी अधिकार प्राप्त है। वह ऐसा प्रायः राष्ट्रपति की सहमति एवं परामर्श से ही करता है।
महत्वपूर्ण तथ्य विभिन्न प्रकार के प्रश्न - संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न विभिन्न प्रकार के होते है, जो निम्नलिखित है: (i) तारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरन्त सदन में चाहता है, उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते है। इस प्रश्न पर तारा लगाकर अन्य प्रश्नों से इसका भेद किया जाता है। (ii) अतारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है, उन्हें अतारांकित प्रश्न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्नों का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते। (iii) अल्प सूचना प्रश्न - जो प्रश्न अविलम्बनीय लोक महत्व का हो तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प-सूचना प्रश्न कहा जाता है। (iv) गैर सरकारी सदस्यों से पूछे जाने वाले प्रश्न - संसद में मंत्रिपरिषद के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों, जिन्हें गैर सरकारी सदस्य कहा जाता है, से भी प्रश्न पूछे जा सकते है, जब प्रश्न का विषय किसी ऐसे विधेयक या संकल्प अथवा सदन के कार्य के किसी अन्य विषय से सम्बन्धित हो, जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी रहा हो। |
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1. सर्वोच्च न्यायालय क्या है? |
2. सर्वोच्च न्यायालय कैसे गठित होती है? |
3. सर्वोच्च न्यायालय कितने याचिकाओं का संग्रह कर सकती है? |
4. सर्वोच्च न्यायालय किस प्रकार संविधान की संविधानिक निपटारी के रूप में कार्य करती है? |
5. सर्वोच्च न्यायालय का महत्व क्या है? |
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