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प्रशासनिक न्यायाधिकरण - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • संविधान के अनुच्छेद 323-क के प्रावधानों का अनुपालन करते हुए संसद ने प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 पारित किया था। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि केंद्र और राज्य  सरकारों की सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त लोगों की भर्ती और सेवा-शर्तों से सम्बद्ध विवादों और शिकायतों का निबटारा प्रशासनिक न्यायाधिकरणों द्वारा किया जाएगा।
  • इस अधिनियम के तहत 1 नवम्बर, 1985 को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की स्थापना की गई, ताकि केंद्र सरकार के कर्मचारियों को उनकी नौकरी संबंधी मामलों में शीघ्र और कम लागत पर न्याय प्रदान किया जा सके। न्यायाधिकरण की प्रधान पीठ नई दिल्ली में है।
  • इसके अलावा प्रमुख उच्च न्यायालयों में 16 अन्य नियमित पीठ हैं। ये हैं- अहमदाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ, बंगलोर, कलकत्ता, चंडीगढ़, कटक, एर्नाकुलम, गोहाटी, हैदराबाद, जबलपुर, जयपुर, जोधपुर, मद्रास, मुम्बई और पटना। ये न्यायपीठ उच्च न्यायालय की अन्य पीठों पर, जहां न्यायाधिकरण के पास काम कम है, अस्थाई बैठकें भी करती हैं।
  • प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 4(2) में प्रावधान है कि राज्य सरकारों के विशेष अनुरोध पर केंद्र सरकार द्वारा राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना की जाएगी। इसके अंतर्गत हिमाचाल प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण बनाए गए हैं।
  • केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की ही तरह राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण भी राज्य सरकार के कर्मचारियों के सेवा मामलों में उच्चतम न्यायालय को छोड़कर सभी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रा, शक्तियों और प्राधिकारों का उपयोग करते हैं।

I. कानूनी सहायता
II. विधि-व्यवसाय

कानूनी सहायत

  • विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कानूनी सहायता योजनाएं तैयार करने, उन्हें लागू करने और उन पर निगरानी रखने के लिए सितम्बर, 1980 से उच्च अधिकार प्राप्त समिति कार्यरत है, जिसे कानूनी सहायता योजनाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावशाली बनाना है, ताकि उनका इस्तेमाल सामाजिक न्याय का लक्ष्य हासिल करने के साधन के रूप में किया जा सके। समिति द्वारा तैयार आदर्श (माॅडल) योजना अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने अपना ली है।
  • इस योजना के तहत अधिकतर राज्यों में कानूनी सहायता व सलाहकार बोर्ड स्थापित किए जा चुके हैं। बोर्डों ने उच्च न्यायालयों और जिला स्तरीय न्यायालयों में तथा अधिकतर राज्यों में तालुक स्तर पर भी कानूनी सहायता समितियां स्थापित की है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में लम्बित मामलों के बारे में कानूनी सहायता देने के लिए क्रमशः उच्चतम न्यायालय कानून सहायता समिति और उच्च न्यायालय कानूनी सहायता समितियों का गठन किया गया है।
  • कानूनी सहायता योजना कार्यान्वयन समिति द्वारा अपनाए गए नीतिगत कानूनी सहायता कार्यक्रम में विधि की जानकारी को बढ़ावा देना, विधि काॅलिजों और विश्वविद्यालयों में कानूनी सहायता केंद्रों की स्थापना, अर्ध-विधि कार्मिकों का प्रशिक्षण, जन-हित के मुकदमों को प्रोत्साहन देना और कानूनी सहायता शिविर और लोक अदालतें लगाना शामिल हैं। लोक अदालतें आपसी मेल-मिलाप के तरीकों से झगड़ों का निपटारा करने में सफल रही हैं।

विधि-व्यवसाय

  • भारत में विधि-व्यवसाय से संबंधित कानून, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और उसके अधीन भारतीय बार कौंसिल द्वारा बनाए गए नियमों से परिचालित होते हैं। यह विधि-व्यावसायियों से संबंधित तथा राज्य बार कौंसिल और भारतीय बार कौंसिल के गठन के लिए कानून की एक स्वयंपूर्ण संहिता है। वही व्यक्ति वकालत कर सकता है, जो बार कौंसिल में से किसी एक में अधिवक्ता अधिनियम के अधीन अधिवक्ता के रूप में नामांकित हो। किसी भी राज्य बार कौंसिल के अंतर्गत अधिवक्ता निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किसी अन्य राज्य के बार कौंसिल में स्थानांतरण के लिए आवेदन कर सकता है। कोई भी व्यक्ति एक से अधिक राज्य बार में अधिवक्ता के रूप में नामांकित नहीं हो सकता।
  • अधिवक्ताओं के दो वर्ग हैं- ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ और ‘अन्य अधिवक्ता’। यदि उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय की राय में कोई अधिवक्ता योग्यता, न्यायिक अनुभव, विशेष ज्ञान अथवा विधि-अनुभव के फलस्वरूप वरिष्ठ अधिवक्ता के नाम से अभिहित किए जाने की योग्यता रखता है, तो उसे यह पदनाम दिया जा सकता है। कोई भी वरिष्ठ अधिवक्ता पंजीबद्ध अधिवक्ता के रूप में दर्ज हुए बिना उच्चतम न्यायालय में अथवा राज्य रजिस्टर में दर्ज हुए बिना किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण में पेश नहीं हो सकता।
  • अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए शिक्षा आदि के कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं। व्यावसायिक आचार-संहिता एवं स्तर को विनियमित करने तथा अन्य मामलों के बारे में भी नियम बनाए गए हैं। राज्य बार कौंसिलों को अपने रजिस्टर में अंकित अधिवक्ताओं पर अनुशासनिक अधिकार प्राप्त हैं, किन्तु अधिवक्ताओं को भारतीय बार कौंसिल में अपील करने और इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।
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FAQs on प्रशासनिक न्यायाधिकरण - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. प्रशासनिक न्यायाधिकरण क्या है?
Ans. प्रशासनिक न्यायाधिकरण भारतीय संविधान में स्थापित एक स्वतंत्र और नियमित न्यायिक संस्था है जो व्यक्तिगत और सार्वजनिक विवादों को सुनती है और फैसले करती है। यह न्यायिक संस्था भारतीय राजव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है और शासन की व्यवस्था को सुनिश्चित करती है।
2. प्रशासनिक न्यायाधिकरण के कार्य क्या हैं?
Ans. प्रशासनिक न्यायाधिकरण का मुख्य कार्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक विवादों पर न्यायिक फैसले करना है। इसका कार्यक्षेत्र निर्दिष्ट नियमों, अधिनियमों और संविधान के अनुसार न्यायिक फैसले करना है। यह संस्था सार्वजनिक सुनवाई सुनाती है और विवादों को न्यायिक उपाय द्वारा समाधान करती है।
3. प्रशासनिक न्यायाधिकरण किस प्रकार नियुक्त किया जाता है?
Ans. प्रशासनिक न्यायाधिकरण के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनकी नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को पूरी तरह से प्रधानमंत्री की सलाह का पालन करना होता है। इसके लिए एक चयन आयोग (UPSC) ने न्यायिक सेवा परीक्षा आयोजित की जाती है जिसके आधार पर योग्य उम्मीदवारों की चयनित सूची प्रदान की जाती है।
4. प्रशासनिक न्यायाधिकरण के लिए UPSC परीक्षा क्या है?
Ans. UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) प्रशासनिक न्यायाधिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा है। इस परीक्षा के माध्यम से उम्मीदवारों की योग्यता और योग्यता का मान्यताप्राप्त किया जाता है। इस परीक्षा का आयोजन वार्षिक रूप से होता है और इसमें विभिन्न चरणों का समावेश होता है जैसे कि लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और व्यक्तिगतिक परीक्षा।
5. प्रशासनिक न्यायाधिकरण क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans. प्रशासनिक न्यायाधिकरण भारतीय राजव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह संविधान के अनुसार न्यायिक फैसले करता है। इसके माध्यम से व्यक्तिगत और सार्वजनिक विवादों का समाधान होता है और न्यायिक उपाय द्वारा न्याय नियंत्रण को सुनिश्चित किया जाता है। प्रशासनिक न्यायाधिकरण के माध्यम से न्यायिक संदर्भ बनाए रखा जाता है और देश की राजव्यवस्था को संतुलित और सुरक्षित बनाए रखने में मदद मिलती है।
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