प्रमुख सांस्कृतिक संस्थाएं
एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता- सुप्रसिद्ध भारतविद् विलियम जोन्स (1747.94) ने एशिया के सामाजिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, पुरावशेष, कला, विज्ञान तथा साहित्य की खोज के उद्देश्य से 1784 में एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता की नींव रखी थी। सोसायटी के पास लगभग 1 लाख 75 हजार पुस्तकों का संग्रह है।
• मार्च 1984 में संसद के एक अधिनियम के द्वारा इस सोसायटी को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है।
साहित्य अकादमी- भारतीय साहित्य का विकास करने तथा उसके स्तर को ऊंचा करने के लिए सभी भारतीय भाषाओं में साहित्य को परिपोषित करने तथा उनमें समन्वय स्थपित करके देश में सांस्कृतिक एकता स्थापित करने के लिए साहित्य अकादमी की स्थापना सरकार द्वारा 1954 में की गयी। इस अकादमी के क्षेत्राीय कार्यालय बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में स्थित है। अकादमी के प्रमुख कार्य इस प्रकार है-
(1) साहित्यिक रचनाआंे का एक भारतीय भाषा से दूसरी भारतीय भाषाओं में तथा गैर-भारतीय भाषाओं से भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना।
(2) साहित्यों के इतिहास तथा आलोचना सम्बन्धी रचनाओं का प्रकाशन करना।
(3) ग्रन्थ सूचियों तथा आत्मकथाओं जैसी सन्दर्भ पुस्तकों तथा देवनागरी एवं अन्य भारतीय लिपियों में पुस्तकों का प्रकाशन करना।
(4) जनसामान्य में साहित्य के अध्ययन को लोकप्रिय बनाना।
ललित कला अकादमी- देश और विदेशों में भारतीय कला की जानकारी बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 1954 में ललित कला अकादमी की स्थापना की। इसके लिए यह अकादमी प्रकाशनों, कार्यशालाओं तथा शिविरों का आयोजन करती है। यह प्रतिवर्ष एक राष्ट्रीय प्रदर्शनी तथा प्रत्येक तीसरे वर्ष ‘त्रौवार्षिक भारत’ नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी भी आयोजित करती है। अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष डाॅ. आनन्द कुमार स्वामी (1877.1947) की स्मृति में एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है।
संगीत नाटक अकादमी- 1953 में संगीत नाटक अकादमी की स्थापना नृत्य, नाटक तथा संगीत के विकास के लिए की गई थी। अपनी समन्वयकारी एवं विकासशील गतिविधियों के अंग के रूप में यह प्रतियोगिताएं, गोष्ठियां तथा संगीत सम्मेलनों का आयोजन करती है और श्रेष्ठ कलाकारों को पुरस्कृत करके सम्मानित करती है।
• नृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए अकादमी द्वारा दो राष्ट्रीय संस्थाओं का संचालन भी किया जा रहा है-
(1) कत्थक केन्द्र, नई दिल्ली तथा
(2) जवाहर लाल नेहरू मणिपुरी नृत्य अकादमी, इम्फाल।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय 1959 में नई दिल्ली में स्थापित किया गया था। यहां नाट्यकला में तीन वर्ष का डिप्लोमा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
• विद्यालय में एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का प्रभाग है जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के निर्देशक, डिजाइनर तथा अध्यापक कार्य कर रहे है। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रमों के माध्यम से विश्व की समकक्ष संस्थाओं से सम्पर्क बनाये रखता है।
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम- देश में अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन देने के लिए राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम की स्थापना अप्रैल, 1980 में एक केन्द्रीय एजेंसी के रूप में की गई थी।
• फिल्मोत्सव निदेशालय, जो कि पहले सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय का एक भाग था, को जुलाई 1981 में इस निगम को हस्तान्तरित कर दिया गया। इसका उद्देश्य देश में अच्छे सिनेमाघरों का निर्माण करना है जिसके लिए निगम निम्नलिखित कार्यों को करता है-(1) कथाचित्रों एवं वृत्तचित्रों के निर्माण के लिए ऋण देना। (2) फिल्म क्षेत्रा के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा निर्देशित सारी योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना। (3) विख्यात विदेशी फिल्म निर्माताओं को फिल्म निर्माण में सहयोग और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण-पुरातत्व अनुसन्धान के क्षेत्रा में कार्य करने वाली देश की अग्रणी संस्था भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की स्थापना 1961 में की गयी थी।
• इसकी सर्वप्रमुख सफलताओं में विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिन्धु घाटी की सभ्यता के स्थलों के उत्खनन का कार्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय संस्कृति परिषद्- सरकार द्वारा राष्ट्रीय संस्कृति परिषद् (पूर्व नाम राष्ट्रीय कला परिषद्) की स्थापना 19 सितम्बर, 1983 को की गयी थी। इसका उद्देश्य कला, पुरातत्व विज्ञान, नृविज्ञान, अभिलेखागारों और संग्रहालयों से सम्बन्धित गतिविधियों को समन्वित करना तथा विभिन्न संस्थाओं एवं एजेंसियों आदि की भावी योजनाओं के लिए मार्गदर्शन करना है।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला-केन्द्र- मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के कला विभाग को नई दिल्ली में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र स्थापित करने का कार्य सौंपा गया है। केन्द्र में विभिन्न कलाओं के आपसी सम्बन्धों पर अध्ययन करने की योजना है। इसके अतिरिक्त केन्द्र में प्रकृति, वातावरण, मानव की प्रतिदिन की जीवनचर्या, विश्व और यहां तक कि समग्र ब्रह्माण्ड और कलाओं के सम्बन्धों पर भी अन्वेषण-अध्ययन शुरू करने की योजना है। केन्द्र अपने अनुसंधान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों, प्रकाशनों, प्रचार-प्रसार योजनाओं तथा अन्य रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से कला को समाज के हर वर्ग और देश के हर क्षेत्रा की जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाने के उपाय करेगा।
क्षेत्राीय सांस्कृतिक केन्द्र-क्षेत्राीय सांस्कृतिक केन्द्रों की परिकल्पना का उद्देश्य उन सांस्कृतिक सम्बन्धों को चित्रित करना है जो क्षेत्राीय सीमाओं से परे है। इसका उद्देश्य स्थानीय संस्कृति और क्षेत्राीय संस्कृति का सम्मिलन और अन्ततोगत्वा भारत की समृद्ध और विविधतापूर्ण संस्कृति के निर्माण के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना है। नई योजना के अन्तर्गत 7 क्षेत्राीय सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना की गई है जो इस प्रकार है-
(1) उत्तरी क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, पटियाला
(2) पूर्वी क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, शान्तिनिकेतन, प. बंगाल
(3) दक्षिण क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, तंजावुर
(4) पश्चिमी क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर
(5) उत्तर-मध्य क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद
(6) उत्तर-पूर्वी क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, दिमापुर
(7) दक्षिण-केन्द्रीय क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र, रामपुर
राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा- राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा या माडर्न आर्ट गैलरी की स्थापना 1954 में की गयी और इसमें एक शताब्दी से अधिक समय की विभिन्न शैलियों का प्रतिनिधित्व करने वाली 3,500 से अधिक कलाकृतियों का संग्रह किया गया है। जिन उत्कृष्ट भारतीय कलाकारों की कृतियों का संकलन इस कला दीर्घा में किया गया है, वे है-राजा रवि वर्मा, अवनीन्द्रनाथ टैगोर, नन्दलाल बोस, देवी प्रसाद रायचैधुरी, विनोद बिहतारी मुखर्जी, गगनेन्द्रनाथ टैगोर, जामिनी राय तथा अमृता शेरगिल।
राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल- राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल 15 माचर्, 1985 से एक स्वायत संगठन है। संग्रहालय सम्पूर्ण मानव तन्त्रा का एक गतिशील अभियान प्रस्तुत करता है।
प्रकाशनाधिकार पुस्तकालय-पुस्तकों तथा समाचारपत्रों के (सार्वजनिक पुस्तकालयों) वितरण सम्बन्धी अधिनियम, 1954 के तहत चार पुस्तकालयों को देश में प्रकाशित होनेवाली प्रत्येक नई पुस्तक तथा पत्रिका की एक प्रति प्राप्त करने का अधिकार है। ये पुस्तकालय है-
(1) राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता
(2) सेण्ट्रल लायब्रेरी, बम्बई
(3) कन्नोमारा पब्लिक लायब्रेरी, मद्रास
(4) दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी, दिल्ली
पाण्डुलिपि पुस्तकालय- देश में दो प्रमुख पाण्डुलिपि पुस्तकालय है जिनमें 1891 में स्थापित खुदाबख्श ओरियण्टल पब्लिक लाइब्रेरी का स्थान प्रमुख है। इसमें अरबी एवंफारसी पाण्डुलिपियों तथा मुगलकालीन चित्रों का बृहत् संकलन है।
दूसरा प्रमुख पाण्डुलिपि पुस्तकालय है तंजावुर के महाराज सरफौजी का चोल साम्राज्यकालीन सरस्वती महल पुस्तकालय।
• विभिन्न विषयों पर लिखित भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं की 4,500 पुस्तकों के संग्रह के अलावा इसमें संस्कृत, मराठी, तमिल, तेलुगु एवं अन्य भाषाओं की लगभग 44,500 पाण्डुलिपियां संग्रहीत है।
• इनके अतिरिक्त अन्य प्रसिद्ध पाण्डुलिपि संग्रहालय निम्नलिखित है-
(1) रामपुर रज़ा पुस्तकालय, (2) गवर्नमेण्ट ओरिएण्टल मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी, मद्रास, (3) ओरिएण्टल रिसर्च लाइब्रेरी, पुणे तथा बड़ोदरा, (4) संस्कृत विश्वविद्यालय पुस्तकालय, वाराणसी, (5) मौलाना आजाद पुस्तकालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (अलीगढ़) एवं (6) विश्वेश्वरानन्द वैदिक अनुसंधान संस्थान पुस्तकालय, होशियारपुर।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन. सी. ई. आर. टी.)- यह एक स्वायत्त संस्था है जिसका गठन सितम्बर, 1961 में किया गया। इसके द्वारा प्राथमिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्रा में सं. रा. बाल विपदा राहत कोष (यूनिसेफ) के सहयोग से प्रारम्भ की गयी अनेक परियोजनाओं एवं राष्ट्रीय जनसंख्या शिक्षा परियोजना से सम्बद्ध गतिविधियों में सन्तुलन स्थापित करने एवं उनको प्रबोधित करने का कार्य किया जाता है। यह संस्था प्रथम से बारहवीं कक्षा तक का पाठ्यक्रम विकसित करने के साथ ही उनकी पाठ्य-पुस्तक भी तैयार करती है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एन. बी. टी. )- लोगों में पुस्तकों के प्रति प्रेम को प्रोत्साहित करने तथा विभिन्न आयुवर्गों के लोगों के लिए उचित कीमतों पर अच्छी एवं स्तरीय अध्ययन सामग्री प्रकाशित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की स्थापना 1957 में एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग- वर्ष 1953 में स्थापित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विश्वविद्यालयी शिक्षा की उन्नति तथा समन्वय के लिए आवश्यक कदम उठाने एवं विश्वविद्यालयों में अध्ययन, परीक्षा तथा अनुसंधान का स्तर निर्धारित करने और उसको सुनिश्चित रखने का गुरुतर कार्य करता है।
भारतीय नृविज्ञान सर्वेक्षण-भारतीय नृविज्ञान सर्वेक्षण, कलकत्ता एक अनुसन्धान संस्था है जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संस्कृति विभाग के अधीन कार्यरत है। यह 1945 में स्थापित किया गया था और तब से लेकर आज तक भारतीयों के जैव-सांस्कृतिक पहलुओं पर अनुसन्धान करता आ रहा है। सर्वेक्षण ने अपना विशेष ध्यान जनजातीय तथा समस्याग्रस्त लोगों पर केन्द्रित किया है।
भारत में वेधशालाएं - हमारे देश में सर्वप्रथम ज्यामितीय गणनाओं पर आधारित एकदम सही ज्योतिषीय मापन करने वाली तथा यन्त्रों से सुसज्जित वेधशालाएं बनवाने का श्रेय सवाई राजा जयसिंह द्वितीय को जाता है जिनके सत्प्रयासों से 1724 में पहली वेधशाला (Observatory) का निर्माण दिल्ली में ‘जन्तर-मन्तर’ के रूप में किया गया। इसके पश्चात् इन्होंने मथुरा, वाराणसी, उज्जैन तथा जयपुर मंे वेधशालाओं का निर्माण करवाया जो आज भग्नावशेषों के रूप में ही विद्यमान है। महाराजा जयसिंह स्वयं एक ज्योतिर्विद थे तथा इन्होंने अपने दरबार में तमाम ज्योतिषियों को आश्रय दिया था। इन वेधशालाओं से की जाने वाली गणनाएं एकदम सत्य होती थीं।
साहित्य के क्षेत्रा में पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्थाएं -
भारतीय ज्ञानपीठ- यह संस्था साहित्य के क्षेत्रा में प्रतिवर्ष भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 18 भाषाओं में से किसी भी भाषा में लिखी गई उत्कृष्ट साहित्य रचना के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करती है। पुरस्कार में दो लाख रुपए नकद, एक प्रशस्ति पत्रा तथा एक वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाती है।
साहित्य अकादमी- यह संस्था उत्कृष्ट साहित्यिक रचना के लिए प्रतिवर्ष साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान करती है। साहित्यिक रचना संविधान में उल्लिखित 18 भाषाओं में से किसी भी भाषा की हो सकती है। अकादमी मौलिक कृतियों के लिए 25 हजार तथा अनुदित रचनाओं के लिए 10 हजार रुपए प्रदान करती है।
मध्य प्रदेश सरकार- मध्य प्रदेश सरकार साहित्य के क्षेत्रा में मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कविता के क्षेत्रा मंे कबीर सम्मान, उर्दू के क्षेत्रा में इकबाल सम्मान तथा शिक्षा के क्षेत्रा में डाॅ राधाकृष्णन सम्मान प्रदान करती है।
पश्चिम बंगाल हिन्दी ग्रन्थ अकादमी- यह संस्था प्रसिद्ध हिन्दी लेखक राहुल सांकृत्यायन की जन्म शताब्दी पर राहुल पुरस्कार प्रदान करती है। पुरस्कार में 10 हजार रुपए नकद, एक स्मृति चिन्ह और एक शाल प्रदान किया जाता है।
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी- यह संस्था प्रतिवर्ष साहित्य के क्षेत्रा में सूर्यमल मिश्रण शिखर सम्मान प्रदान करती है। इसमें पुरस्कारस्वरूप 11 हजार रुपए की धनराशि प्रदान की जाती है।
के. के. बिड़ला फाउन्डेशन- यह संस्था उत्कृष्ट साहित्यिक कृति के लिए ‘सरस्वती सम्मान’ (इसमें 3 लाख रुपए नकद प्रदान किए जाते है), राजस्थानी लेखक को 10 वर्ष में प्रकाशित हुई उत्कृष्ट कृति के लिए ‘बिहारी सम्मान’ (इसमें 50 हजार रुपए प्रदान किए जाते है), 10 वर्ष में प्रकाशित किसी भी भारतीय नागरिक की उत्कृष्ट कृति के लिए ‘व्यास सम्मान’ (इसमें डेढ़ लाख रुपए प्रदान किए जाते है) तथा संस्कृत में किए गए विशिष्ट कार्य के लिए ‘वाचस्पति पुरस्कार’ (इसमें 50 हजार रुपए प्रदान किए जाते है) प्रदान करती है।
कला के क्षेत्रा में पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्थाएं
संगीत नाटक अकादमी-यह संस्था संगीत के क्षेत्रा में विशिष्ट कार्यों के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान करती है। पुरस्कार में 25 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्रा, ताम्र पत्रा तथा अंग वó प्रदान किए जाते है।
मध्य प्रदेश सरकार- मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संगीत के क्षेत्रा में तानसेन सम्मान (इसमें 1 लाख रुपए तथा प्रशस्ति पत्रा प्रदान किये जाते है), सुगम संगीत के क्षेत्रा में लता मंगेशकर पुरस्कार (इसमें 1 लाख रुपए तक प्रदान किए जाते है), रंगकर्म के क्षेत्रा में कालीदास सम्मान (इसमें 1 लाख रुपए तथा एक प्रशस्ति पत्रा) प्रदान किए जाते है।
के. के. बिड़ला फाउन्डेशन- यह संस्था भारतीय दर्शन संस्कृति और कला की उत्कृष्ट कृतियों के लिए शंकर पुरस्कार प्रदान करती है। इस पुरस्कार में 1 लाख रुपए प्रदान किए जाते है।