संसद, जिसे भारतीय संविधानिक संस्थान के रूप में जाना जाता है, भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। यह एक प्रतिष्ठित नियमक संस्थान है जो लोकतंत्रिक तंत्र को संचालित करने के लिए गठित किया गया है। संसद राष्ट्रीय नियमन और निर्णय लेने की शक्ति संगठित करती है और भारतीय नागरिकों की मांगों और मानदंडों को प्रतिष्ठित करती है।
संसद
- संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा को शामिल किया जाता है।
संसद
- राष्ट्रपति यद्यपि भारत की कार्यपालिका का प्रधान है लेकिन संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई भी विधेयक कानून तभी बन पाता है जबकि उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाएँ। इस प्रकार वह विधानमण्डल का भी एक अंग है।
- लोकसभा, जनता के प्रतिनिधित्व करने का मंच है, जबकि राज्यसभा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधित्व करती है। यहां चुने गए सदस्यों के माध्यम से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है और नई कानूनों को बनाने और मान्यता प्राप्त करने का कार्य किया जाता है।
- संविधान के अध्याय 2 के अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि- "संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे।"
- संसदीय पैटर्न: भारतीय संविधान के संरचनाकारों ने अमेरिकी पैटर्न की बजाय संसद के लिए ब्रिटिश पैटर्न को अपनाया था। अमेरिकी संघीयता में राष्ट्रपति और विधायिका अलग-अलग अंग होते हैं, हालांकि भारत में विधायिका संस्था एक अभिन्न अंग है।
- पहली संसद: भारत के नए संविधान के अनुसार, पहले साधारण चुनाव 1951-52 के दौरान हुआ था और पहली निर्वाचित संसद अप्रैल 1952 में स्थापित हुई।
राज्य सभा (राज्यों की परिषद)
- राज्य सभा भारतीय संसद का उच्च-सदन है। इसे संसद का द्वितीय सदन भी कहा जाता है।
- राज्य सभा का गठन- संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार राज्य सभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 12 सदस्यों और 238 सदस्यों से अधिक सदस्य नहीं होंगे। इस प्रकार राज्यसभा की कुल सदस्य संख्या 250 से अधिक नहीं होगी।
- नाम निर्देशित या मनोनीत सदस्य- इन सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। ये 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐसे लोगों में से चुने जाते है जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त है।
- निर्वाचित सदस्य- राज्यसभा में 238 सदस्य भारत के संघ राज्यों एवं अन्य राज्यों अर्थात् भारत संघ की ईकाइयों के प्रतिनिधि होते है। राज्यों के प्रतिनिधि सदस्यों का चुनाव उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकला संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
- संघ राज्य क्षेत्रों (केन्द्र शासित प्रदेशों) के प्रतिनिधियों के चुनाव के संबंध में विधि बनाने का अधिकार संसद को दिया गया है। ख्अनु. 80 (5), इसी अधिकार के अधीन लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 में धारा 27 क एवं 28 ज में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य सभा में संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस क्षेत्र के निर्वाचक मण्डल द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
- भारत में राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसका कभी भी विघटन नहीं किया जा सकता।
- इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
- हर दूसरे वर्ष राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का निर्वाचन होता है। (अनुच्छेद 83 (1))
- संविधान के अनुच्छेद 84 के अनुसार राज्य सभा का सदस्य होने के लिए निम्न योग्यताएँ होना आवश्यक है
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह कम से कम 30 वर्ष की आयु का हो।
- वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार वह उस राज्य का मतदाता हो जहाँ से वह चुनाव लड़ना चाहता है।
- अनुच्छेद 84 के अनुसार संसद को राज्य सभा सदस्यों की योग्यता एवं अयोग्यता के संबंध में कानून निर्माण का अधिकार प्राप्त है।
Question for संसद (भाग -1) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था
Try yourself:राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है?
Explanation
भारत में राज्य सभा एक स्थायी सदन है, जिसका कभी भी विघटन नहीं किया जा सकता। राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। हर दूसरे वर्ष, राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का निर्वाचन होता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 83 (1) में व्याख्या किया गया है। इस प्रकार, राज्य सभा के सदस्यों को नियमित रूप से बदला जाता है, ताकि सदन में नई सोच और विचार आते रहें।
Report a problem
संसद के कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति राज्य सभा का सदस्य होने के लिए अयोग्य रहेगा
- यदि वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ के किसी पद पर है, इसमें संघ या राज्य का मंत्री पद शामिल नहीं है।
- यदि वह विकृत चित्त है (पागल है) और ऐसी घोषणा न्यायालय द्वारा विद्यमान् है। (अनुच्छेद 102)
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता अर्जित कर ली हो, या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ती स्वीकार करता हो। (अनुच्छेद 102)
- यदि वह संसद द्वारा बनायी गई अन्य किसी विधि के अनुसार अयोग्य हो। (अनु. 102)
- सदस्यों के निर्वाचन संबंधी किसी भी विवाद कि वह निर्वाचित होने की योग्यता नहीं रखता या उसका निर्वाचन विधि के विरुद्ध है, का निर्णय करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है।
- संविधान के अनुच्छेद 103 के अधीन राष्ट्रपति सदस्यों के निर्वाचन संबंधी निर्णय लेने से पूर्व निर्वाचन आयोग की राय लेगा और उसी राय के अनुसार निर्णय करेगा और उसका निर्णय अन्तिम होगा।
संसदीय प्रक्रिया और राज्य सभा के सदस्यों की भूमिका एवं कार्यवाही
यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया गया है तो वह संसद द्वारा विहित (निर्धारित) विधि में दी गई रीति द्वारा एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए बाध्य होगा।
- इसी प्रकार कोई व्यक्ति संसद या राज्य के किसी विधानमण्डल दोनों का सदस्य नहीं रह सकता। उसे किसी भी एक पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा। यदि वह संसद एवं राज्य विधान-मण्डल दोनों का सदस्य निर्वाचित हो जाए और स्वेच्छा से किसी एक का पद त्याग न करे तो राष्ट्रपति द्वारा बनाये गये नियमों द्वारा निर्धारित अवधि की समाप्ति के पश्चात् संसद में उसका स्थान रिक्त समझा जाएगा।
- संविधान के अनुच्छेद 101 (3) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सदन के अध्यक्ष को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद का त्याग कर दे और सदन द्वारा उसका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया जाए तो सदन में उसका स्थान रिक्त समझा जाएगा।
- यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि तक सदन के सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसका स्थान रिक्त घोषित कर सकता है।
- इन 60 दिनों की अवधि में किसी ऐसी अवधि को नहीं गिना जाएगा जिसके दौरान सदन का अधिवेशन न चल रहा हो या सदन का अधिवेशन निरन्तर चार दिनों के लिए स्थगित रहा हो।
- संविधान के अनुच्छेद 106 में राज्य सभा के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते के निर्धारण के संबंध में नियम एवं कानून निर्माण की शक्ति संसद को दी गई है।
- संविधान के अनुच्छेद 89 (1) के अनुसार ‘भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा।
- उपसभापति का चयन राज्य सभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही किया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद 90 के अनुसार निम्न स्थितियों में उपसभापति का पद रिक्त समझा जाएगा-
(क) यदि वह राज्य सभा का सदस्य नहीं रहता तो वह अपना पद रिक्त कर देगा।
(ख) किसी भी समय सभापति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा देकर वह पद त्याग कर सकेगा।
(ग) राज्य सभा अपने तात्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा उसे पदच्युत कर सकती है। लेकिन ऐसा प्रस्ताव तभी रखा जा सकता है जबकि इसकी पूर्व सूचना कम से कम चौदह दिन पूर्व दे दी गई हो। - ऐसी स्थिति में जबकि सभापति का पद रिक्त हो या सभापति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो तब या फिर यदि सभापति अवकाश पर हो या सदन की कार्यवाही के दौरान सदन से अनुपस्थित हो तब उपसभापति सदन की अध्यक्षता करता है तथा उसे उस समय वे सब अधिकार एवं शक्तियाँ प्राप्त रहती है जो कि एक सभापति को दी जाती है।
- उपसभापति की अनुपस्थिति में इस कार्य के लिए सदन का ऐसा सदस्य जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करेगा सदन की अध्यक्षता करेगा। (अनुच्छेद 91)
- जब उपराष्ट्रपति के विरुद्ध उसे हटाये जाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तब वह सभापति के पद पर नहीं बैठ सकेगा। उसे सामान्य सदस्य की हैसियत से सदन की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार रहेगा।
- इस प्रकार यदि उपसभापति के विरुद्ध इस प्रकार का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है तो वह भी सभापति के अनुपस्थित होने पर भी सभापति के पद पर पीठासीन नहीं हो सकेगा। (अनुच्छेद 92)
- ऐसे संकल्प के विचाराधीन रहने के दौरान उन्हें किसी भी विषय पर मतदान करने का अधिकार नहीं रहेगा।
- संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के अनुसार सदन की गणपूर्ति 1/10 होगी अर्थात् सदन के अधिवेशन में कार्यवाही तभी जारी रखी जा सकेगी जबकि सदन में सदस्यों की उपस्थिति इसके कुल सदस्यों की उपस्थिति इसके कुल सदस्यों का 10वां भाग रहेगी।
महत्वपूर्ण तथ्य
- गैर-सरकारी कार्यकलाप: लोकसभा में शुक्रवार के दिन ढाई घंटे का समय गैर-सरकारी कार्यों के लिए रखा गया है। मंत्रियों के अतिरिक्त सदन के सभी सदस्यों को गैर-सरकारी सदस्य कहा जाता है। कानून बनाना सरकार का उत्तरदायित्व है। इसके लिए सरकार सदन के सम्मुख विधेयक रखती है। जब कभी कोई सदस्य समझता है कि किसी विषय विशेष पर कानून बनाना चाहिए तो वह अपनी ओर से गैर सरकारी विधेयक सदन में प्रस्तुत कर सकता है। इसी प्रकार विशेष प्रशासनिक, वैधानिक तथा कानूनी विषयों पर गैर सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से चर्चा भी करवा सकता है। ऐसे गैर सरकारी विधेयकों तथा प्रस्तावों पर चर्चा के लिए शुक्रवार के दिन ढाई घंटे का समय नियत है। इसलिए शुक्रवार को गैर सरकारी दिन भी कहते है।
- भारत की संचित निधि पर भारित व्ययों पर मतदान का प्रतिषेध-अनुच्छेद 113 के अनुसार भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से सम्बन्धित प्राक्कलन संसद में मतदान के लिए पेश नहीं किये जायेंगे। किन्तु संसद में मतदान के लिए खर्चे की प्रत्येक मद पर बहस का अधिकार होगा। अन्य व्यय से सम्बन्धित खर्चे लोकसभा के समक्ष अनुदान की माँग के रूप में पेश किये जाते है। लोकसभा किसी माँग को स्वीकार कर सकती है, कम कर सकती है या उसे अस्वीकार कर सकती है। किसी भी अनुदान की माँग राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
- विनियोग विधेयक-जब तक विनियोग विधेयक नहीं पारित कर दिया जाता है, भारत की संचित निधि से कोई भी धनराशि नहीं निकाली जा सकती है। अतएव लोकसभा द्वारा अनुदान की माँग पारित कर देने के बाद एक विनियोग-विधेयक पेश किया जाता है जिसमें लोकसभा द्वारा अनुमोदित सभी अनुदानों तथा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की पूर्ति के लिये धन के विनियोग का उपबन्ध रहता है। विनियोग विधेयक में ऐसा कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया जायेगा जो किसी अनुदान की राशि में फेरबदल करने का प्रयास करने वाला हो। विनियोग-विधेयक पारित होने के बाद ही कोई धनराशि भारत की संचित निधि से निकाली जा सकती है।
- अनुपूरक अनुदान-यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लिखित न की गई किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है तो राष्ट्रपति एक अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवायेगा। अनुपूरक अनुदान और विनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है।
Question for संसद (भाग -1) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था
Try yourself:राज्य सभा के उपसभापति का चयन किस प्रकार किया जाता है?
Explanation
संविधान के अनुच्छेद 89 (1) के अनुसार, भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। उपसभापति का चयन राज्य सभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही किया जाता है। इस प्रकार, राज्य सभा के उपसभापति का चयन सदस्यों की बहुमत द्वारा किया जाता है, और वे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं राज्य सभा की कार्यवाही में।
Report a problem
राज्य सभा के कार्य अथवा शक्तियाँ
- संविधान के अनुच्छेद 107 (1) के अनुसार कोई भी अवित्तीय विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 107 (2) के अनुसार कोई भी विधेयक तब तक पारित नहीं समझा जाएगा जब तक कि वह दोनों सदनों (लोक सभा एवं राज्य सभा) द्वारा संशोधनों सहित या उसके बगैर पारित नहीं कर दिया गया हो। इस प्रकार कोई भी विधेयक राज्य सभा की स्वीकृति के बिना कानून नहीं बन सकता।
- संविधान में संशोधन करने के संबंध में राज्य सभा को लोक सभा के समान शक्तियाँ प्राप्त है।
- कोई भी संशोधन तभी पारित समझा जाएगा जबकि दोनों सदन द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित न कर दिया जाए।
- संविधान संबंधी किसी प्रस्ताव पर दोनों सदनों में मतभेद या गतिरोध की स्थिति में संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रस्ताव गिर जाएगा।
- संविधान के द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि वित्त विधेयक पहले लोक सभा में ही प्रस्तावित किया जा सकेगा, राज्य सभा में नहीं।
- राज्य सभा के लिए यह प्रावधान भी है कि वह किसी भी वित्त विधेयक को केवल 14 दिन के लिए ही रोक सकती है।
- 14 दिन तक यदि वह विधेयक राज्य सभा द्वारा पारित नहीं किया गया है और न ही संशोधनों सहित या उसके बगैर लोक सभा को लौटाया गया है तो राज्य सभा में आने की तारीख से 14 दिन पश्चात् वह पारित समझा जाएगा।
- राज्य सभा यदि उसमें कोई संशोधन सुझाती है तो यह लोकसभा की इच्छा पर है कि वह इन संशोधन को स्वीकार या अस्वीकार कर दे।
- लोक सभा मंत्रियों एवं सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे पद्च्युत कर सकती है जबकि राज्य सभा को ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।
- राज्य सभा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेती है।
- राज्य सभा लोक सभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्राक एवं महालेखा परीक्षक पर महाभियोग लगा सकती है। महाभियोग प्रस्ताव तभी पारित समझा जाता है।
- जबकि दोनों सदन उस पर सहमत हों।
- यह लोकसभा के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति को बहुमत प्रस्ताव पास कर पदच्युत कर सकती है।
- यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति को हटाने संबंधी प्रस्ताव पहले राज्य सभा में ही रखा जाएगा। राज्य सभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात् ही वह लोक सभा में प्रेषित किया जाएगा।
- ऐसी स्थिति में जबकि लोक सभा विघटित हो तब जब तक कि नई लोक सभा गठित नहीं हो जाती राज्य सभा के अनुमोदन से ही आपात काल जारी रखा जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार-राज्य सभा यदि सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से ‘राज्य-सूची’ के किसी विषय को ‘राष्ट्रीय महत्त्व’ का घोषित कर दे तो उस विषय पर कानून निर्माण की शक्ति संसद को प्राप्त हो जाती है। ऐसा प्रस्ताव 1 वर्ष तक लागू रहता है। राज्य सभा चाहे तो पुनः उस अवधि को एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है।
- संविधान के अनुच्छेद 312 के अधीन राज्य सभा को यह अधिकार दिया गया है कि वह संघ एवं राज्य क्षेत्र के लिए सम्मिलित रूप से या पृथक-पृथक नई ‘अखिल भारतीय सेवाओं’ की स्थापना कर सकती है। ऐसा वह अपने उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा कर सकती है। साथ ही वह इसी प्रकार के किसी प्रस्ताव द्वारा भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
विभिन्न प्रकार के प्रश्न-संसद में पूछे जाने वाले प्रश्न विभिन्न प्रकार के होते है, जो निम्नलिखित है:
- तारांकित प्रश्न- जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरन्त सदन में चाहता है, उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते है। इस प्रश्न पर तारा लगाकर अन्य प्रश्नों से इसका भेद किया जाता है।
- अतारांकित प्रश्न- जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है, उन्हें अतारांकित प्रश्न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्नों का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते।
- अल्प सूचना प्रश्न- जो प्रश्न अविलंबनीय लोक महत्व का है तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प-सूचना प्रश्न कहा जाता है।
- गैर सरकारी सदस्यों से पूछे जाने वाले प्रश्न-संसद में मंत्रिपरिषद के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों, जिन्हें गैर सरकारी सदस्य कहा जाता है, से भी प्रश्न पूछे जा सकते है, जब प्रश्न का विषय किसी ऐसे विधेयक या संकल्प अथवा सदन के कार्य के किसी अन्य विषय से सम्बन्धित हो, जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी रहा हो।
नियम 377:
जो मामले व्यवस्था के प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्नों, अल्प सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से सम्बन्धित नियमों के अधीन नहीं उठाये जाते, वे नियम 377 के अधीन उठाये जाते है। जो सदस्य इस नियम के अधीन मामला उठाना चाहता है, वह संक्षेप में उन मुद्दों, जिन्हें वह उठाना चाहता है, के साथ उसके उठाने के कारणों की लिखित सूचना सदन के महासचिव को देता है। मामला नियम 377 के अधीन उठाने योग्य है या नहीं, इसका निर्णय अध्यक्ष करता है। इसके अन्तर्गत लोक महत्व के मामलों तथा सदस्य के निर्वाचन क्षेत्र से सम्बन्धित मामलों को उठाया जाता है। नियम 377 के अधीन सबसे पहला मामला 14 मई, 1966 को उठाया गया था।
बैठक:
प्रत्येक अधिवेशन के दौरान संसद के दोनों सदनों की बैठकें अपराह्न 11 बजे से पूर्वाह्न छः बजे होती है, किन्तु कभी-कभी विशेष विषयों पर वक्ताओं के अधिक होने के कारण बैठक मध्यरात्रि तक भी चलती रहती है। बैठक सप्ताह में सोमवार से शुक्रवार तक पांच दिन होती है। संसदीय आचार के अनुसार सदस्यों को बैठक आरंभ होने के निर्धारित समय से कुछ मिनट पहले अपने नियत स्थान पर बैठ जाना चाहिए। ठीक 11 बजे सदन का उद्घोषक घोषणा करता है ”माननीय सभासदों, माननीय अध्यक्षजी“, इसके साथ ही अध्यक्ष कक्ष में प्रवेश करते है। उनके सदन में प्रवेश करते ही उपस्थित सदस्य आदरस्वरूप अपने स्थानों पर खड़े हो जाते है और तब तक खड़े रहते हैं, जब तक कि अध्यक्ष अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेते। इस बीच यदि कोई सदस्य सदन में प्रवेश कर ही रहा हो और अभी अपने स्थान तक न पहुँचा हो तो अध्यक्ष के प्रवेश करते ही जहां पर होता है वही साभिवादन रूक जाता है। अध्यक्ष के स्थान ग्रहण करने के बाद सभी सदस्य झुककर अभिवादन करते है और फिर अपने नियत स्थान पर बैठ जाते है। इसके साथ ही बैठक की कार्यवाही आरंभ हो जाती है।
Question for संसद (भाग -1) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था
Try yourself:नियम 377 के अधीन उठाये गये सबसे पहले मामले की तारीख क्या थी?
Explanation
नियम 377 के अधीन उठाये गये सबसे पहले मामले की तारीख 14 मई, 1966 थी। यह नियम, व्यवस्था के प्रश्न नहीं होने वाले मामलों और अल्प सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से सम्बन्धित नियमों के अधीन नहीं उठाये जाने वाले मामलों के लिए होता है। इस नियम के अधीन, सदस्य लोक महत्व के मामलों और अपने निर्वाचन क्षेत्र से सम्बन्धित मामलों को उठा सकते हैं।
Report a problem
लोक सभा (लोगों का सदन)
- अनुच्छेद 81 में लोक सभा की संरचना की चर्चा है।
इसके अनुसार लोकसभा-
(क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए 530 (गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 द्वारा 30-5-1987 से 525 के स्थान पर प्रतिस्थापित) से अनधिक सदस्यों, और
(ख) संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए बीस से अधिक सदस्यों, से मिलकर बनेगी। - इससे पूर्व 1971 में यह 520 थी और 1971 के अन्त में 27 वें संविधान संशोधन द्वारा 524 निश्चित की गई थी।
- यदि राष्ट्रपति यह समझे कि लोक सभा के इन सदस्यों में एग्लों इण्डियन समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है तो वह 2 एंग्लों इण्डियन सदस्यों को मनोनीत (नाम निर्देशित) करेगा।
संविधान के अनुच्छेद 84 के अनुसार लोक सभा के सदस्य निर्वाचित होने के लिए निम्न योग्यताएँ अपेक्षित हैं-
- वह भारत का नागरिक हो और कम से कम 25 वर्ष की आयु का हो;
- वह जिस क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहता है उस क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता हो;
- इसके अतिरिक्त संसद विधि द्वारा जो भी योग्यताएं निर्धारित करे वह उसे पूरी करनी होगी।
संविधान के अनुच्छेद 84 के अधीन संसद द्वारा निम्न अयोग्यताएं विहित की गई हैं-
- यदि वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी सरकारी लाभ के पद पर हो तो वह निर्वाचन के लिए अयोग्य समझा जाएगा। ऐसी स्थिति में यदि वह चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे अपने पद का त्याग करना पड़ेगा। लाभ के पद में संघ या राज्य के अधीन मंत्राी पदों को शामिल नहीं किया गया है।
- वह किसी सक्षम न्यायालय द्वारा विकृत चित्त घोषित किया गया हो।
- यदि वह दिवालिया हो।
- वह भारत का नागरिक नहीं हो या उसने कोई विदेशी नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली हो।
संसद द्वारा ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951’ द्वारा निम्न योग्यताएँ निर्धारित की गई है-
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों पर निर्वाचित होने वाले उम्मीदवारों के लिए आवश्यक है कि वे भारत के किसी भी क्षेत्र के अनुसूचित जाति पद के लिए अनुसूचित जाति के एवं जनजाति पद के लिए अनुसूचित जनजाति के सदस्य हों।
- असम क्षेत्र के लिए यह आवश्यक है कि उम्मीदवार उसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र या जिले का हो जिसके लिए वह चुनाव लड़ना चाहता है और साथ ही सुरक्षित (आरक्षित) स्थान के उम्मीदवार बनने हेतु असम की ही जनजातियों का होना आवश्यक है।
- अन्य स्थान से खड़े उम्मीदवारों के लिए आवश्यक है कि उनका नाम किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में अवश्य हो।
- एक बार निर्वाचन संबंधी अपराध में दोषी पाये गये अपराधी को निर्वाचन आयोग द्वारा कुछ समय के लिए या जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
- उम्मीदवार ने किसी भी अपराध के लिए 2 वर्ष से अधिक की सजा न पायी हो तथा चुनाव में खड़े होने से पूर्व उसे जेल से छूटे 5 वर्ष से अधिक हो गये हों ।
- सरकार से संबंधित किसी भी ठेके में वह हिस्सेदार न हो न ही किसी सरकारी कारखाने में उसका हित हो।
- उसे बेईमानी या राजद्रोह के कारण किसी सरकारी नौकरी या पद से निकाला न गया हो। यदि इस प्रकार का कोई अपराध उसने किया है तो वह अपराध के 5 वर्ष बाद ही संसद की सदस्यता प्राप्त कर सकता है।
- भारत में लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है। लेकिन संसद द्वारा संविधान में निहित प्रक्रिया के अनुरूप इसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है।
- 1976 के 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया था लेकिन 44 वें संवैधानिक संशोधन 1978 द्वारा यह पुनः 5 वर्ष का दिया गया।
- लोक सभा की अवधि सामान्यतः 5 वर्ष निर्धारित है लेकिन मंत्रिमण्डल की सलाह से इस अवधि के पूर्व भी राष्ट्रपति इसे विघटित या भंग कर सकता है।
- आपातकाल के दौरान संसद लोक सभा की अवधि अधिक से अधिक एक बार में 1 वर्ष बढ़ा सकती है। आपातकाल समाप्त होने पर वह अवधि 6 माह से अधिक विस्तारित नहीं रह सकती।
राष्ट्रपति
भारत में राष्ट्रपति किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता और संसद की बैठकों में भाग नहीं लेता है, लेकिन वह संसद का एक अभिन्न अंग है। वह देश का प्रमुख होता है और देश में सर्वोच्च औपचारिक प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है।
- नियुक्ति: संसद के निर्वाचित सदस्य (सांसद) और विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य (विधायक) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
- शक्तियाँ: किसी विधेयक को कानून बनाने की स्वीकृति: संसद के द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के बिना कानून नहीं बना सकता।
- सदनों का बुलावा और सत्रावसान: राष्ट्रपति को सदनों को बुलाने, सत्रावसान करने, लोकसभा को तोड़ने और सदनों के सत्र में अनुपस्थिति पर अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है।