- ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका।
- ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति की जांच करने तथा उसके सम्बन्ध में सिफारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया। इस आयोग ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया, जिसके कारण 1920 में संयुक्त प्रान्त, असम, बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना के लिए कानून बनाये गये।
- संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही संविधान की 7वीं अनुसूची (राज्य सूची) की प्रविष्टि 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके इसके सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है।
- मेहता समिति की सिफारिश को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया और इस सिफारिश के आधार पर राजस्थान राज्य की विधानसभा ने 2 सितम्बर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया, और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज का उद्धघाटन किया गया। इसके बाद 1959 में आन्ध्र प्रदेश, 1960 में असम, तमिलनाडु एवं कर्नाटक, 1962 में महाराष्ट्र, 1963 में गुजरात तथा 1964 में पश्चिम बंगाल में विधानसभाओं द्वारा पंचायती राज अधिनियम पारित करके पंचायती राज व्यवस्था को प्रारम्भ किया गया।
तिहत्तरवां संविधान संशोधन
- 1988 में पी. के. थुंगन समिति का गठन पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया। इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए।
- इस समिति की सिफारिश के आधार पर पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वां संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया लेकिन राज्य सभा द्वारा नामंजूर कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिये जाने के कारण यह विधेयक समाप्त हो गया। इसके बाद 74वां संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया।
- इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया। इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वां संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया।
- 17 राज्य विधान सभाओं द्वारा अनुमोदित किये जाने पर इसे राष्ट्रपति की सम्मति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया। राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी सम्मति दे दी और इसे 25 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया।
- पंचायत व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रावधान संविधान के भाग 9 में 16 अनुच्छेदों में शामिल किया गया, जो निम्न प्रकार हैं -
(i) पंचायत व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्रामसभा होगी। इसमें एक या एक से अधिक गांव शामिल किये जा सकते हैं। ग्रामसभा की शक्तियों के सम्बन्ध में राज्य विधान मण्डल द्वारा कानून बनाया जाएगा।
(ii) जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है, उनमें दो स्तरीय पंचायत, अर्थात जिला स्तर और गांव स्तर पर, का गठन किया जाएगा और 20 लाख की जनसंख्या से अधिक वाले राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायती राज, अर्थात गांव, मध्यवर्ती तथा जिला स्तर पर, की स्थापना की जाएगी।
(iii) सभी स्तर की पंचायतों के सभी सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्येक पांचवें वर्ष किया जाएगा। गांव स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्षतः तथा मध्यवर्ती एवं जिला स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा।
(iv) पंचायत के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके अनुपात में आरक्षण प्रदान किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण होगा।
(v) सभी स्तर की पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष होगा, लेकिन इनका विघटन पांच वर्ष के पहले भी किया जा सकता है, परन्तु विघटन की दशा में 6 माह के अन्दर चुनाव कराना आवश्यक होगा।
(vi) पंचायतों को कौन सी शक्तियां प्राप्त होंगी और वे किन उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेंगी, इसकी सूची संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची में दी गयी है, जो निम्न प्रकार हैं -
(क) कृषि, जिसके अन्तर्गत कृषि विस्तार भी है,
(ख) भूमि सुधार और मृदा संरक्षण,
(ग) लघु सिंचाई, जल प्रबन्ध और जल आच्छादन विकास,
(घ) पशु पालन, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन,
(ङ) मत्स्य उद्योग,
(च) सामाजिक वनोद्योग और फार्म वनोद्योग,
(छ) लघु वन उत्पाद,
(ज) लघु उद्योग, जिसके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है,
(झ) खादी ग्राम और कुटीर उद्योग,
(त्र) ग्रामीण आवास,
(ट) पेय जल,
(ठ) ईंधन और चारा,
(ड) सड़क , पुलिया, पुल, नौघाट, जल मार्ग तथा संचार के अन्य साधन,
(ढ) ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अन्तर्गत विद्युत का वितरण भी है,
(ण) गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत,
(त) गरीबी उपशमन कार्यक्रम,
(थ) शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी है,
(द) तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा,
(ध) प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा,
(न) पुस्तकालय,
(प) सांस्कृतिक क्रियाकलाप,
(फ) बाजार और मेले,
(ब) स्वास्थ्य और स्वच्छता (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय)
(भ) परिवार कल्याण,
(म) महिला और बाल विकास,
(य) समाज कल्याण (विकलांग और मानसिक रूप से अविकसित सहित)
(र) कमजोर वर्गों का (विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का) कल्याण,
(ल) जन वितरण प्रणाली,
(व) सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण,
(vii) राज्य विधान मण्डल कानून बनाकर पंचायतों को उपयुक्त स्थानीय कर लगाने, उन्हें वसूल करने तथा उनसे प्राप्त धन को व्यय करने का अधिकार प्रदान कर सकती है।
(viii) पंचायतों की वित्तीय अवस्था के सम्बन्ध में जांच करने के लिए प्रति पांचवें वर्ष वित्तीय आयोग का गठन किया जाएगा, जो राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देगा।