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विधानमण्डल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

विधानमण्डल

विधानमण्डल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

  • संविधान के अनुच्छेद 168 के अनुसार 8 राज्यों आन्ध्र प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, उत्तरप्रदेश एवं  प. बंगाल में द्विसदनात्मक व्यवस्था की गई थी एवं बाकी राज्यों में एक सदनात्मक व्यवस्था।
  • वर्तमान में केवल 5 राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है। 1985 में आन्ध्र प्रदेश, 1986 में तमिलनाडु, 1969 में पंजाब एवं पश्चिम बंगाल की विधानपरिषदों को समाप्त कर दिया गया।
  • इस प्रकार अब केवल बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश में द्विसदनात्मक व्यवस्था है।
  • साथ ही जम्मू कश्मीर में भी द्विसदनात्मक प्रणाली प्रचलित है।
  • उन राज्यों में जहाँ एक ही सदन अर्थात् प्रथम सदन विधान सभा ही है उन राज्यों में राज्य की विधान सभा द्वारा एक विशेष बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा विधान परिषद् अर्थात् द्वितीय सदन की स्थापना की जा सकती है।
  • द्वितीय सदन की स्थापना संबंधी प्रस्ताव संबंधित राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।
  • जिन राज्यों में दो सदन हैं वहाँ यदि विधान परिषद् को समाप्त करना हो तब भी इसे समाप्त करने के प्रस्ताव हेतु वैसी ही प्रक्रिया अपनायी जाती है जैसी कि विधान परिषद के गठन के लिए।

विधान परिषद् का गठन

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार किसी राज्य की विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिये, लेकिन किसी भी राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में 40 से कम नहीं होनी चाहिये।
  • संविधान के अनुच्छेद 171 (2) के अधीन विधान परिषदों की संरचना की रीति की शक्ति संसद को प्रदान की गई है। लेकिन जब तक संसद ऐसी विधि न बनाये तब तक उसकी संरचना संविधान में अनुच्छेद 171 (3) में उल्लेखित रीति के अनुसार होगी।
  • संविधान में उल्लेखित रीति के अनुसार विधान परिषद् के कुछ सदस्य तो निर्वाचित होते है और कुछ मनोनीत (नाम निर्दिष्ट)।
  • निर्वाचित सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा।
  • विधान परिषद् के सदस्य विभिन्न स्रोतों  से लिये जाएंगे। इन सदस्यों में 5/6 सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होंगे और 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते है। सदस्यों की कुल सदस्य संख्या का-
    (क) एक तिहाई भाग स्थानीय निकायों- नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों एवं अन्य स्थानीय निकायों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डलों द्वारा निर्वाचित होगा।
    (ख) 1/12 भाग उस राज्य में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातकों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मण्डल द्वारा या इन्हीं के समान (समतुल्य) योग्यता रखने वाले राज्य के निवासियों द्वारा चुना जाएगा।
    (ग) 1/12 भाग राज्य के भीतर माध्यमिक शिक्षा संस्थाओं तथा उनसे उच्च स्तर के शिक्षण संस्थानों के कम से कम तीन वर्ष पुराने शिक्षकों द्वारा चुना जाएगा।
    (घ) एक तिहाई सदस्य राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होंगे जो कि विधान सभा के सदस्य नहीं है।
    (ङ) शेष सदस्य (1/6) राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाएंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन एवं सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या जानकारी का अनुभव हो।
    केन्द्रीय विधानमण्डल के द्वितीय सदन राज्यसभा की भाँति राज्यों की विधान परिषद् भी एक स्थायी सदन है। इसका विघटन नहीं किया जा सकता।
    किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दूसरे वर्ष सेवा निवृत्त हो जाते है और उनके स्थान पर उतने ही अन्य सदस्य चुन लिए जाते है। इस प्रकार एक सदस्य की पद अवधि 6 वर्ष की हो जाती है।

राज्य का महाधिवक्ता

  • संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक महाधिवक्ता होगा तथा इसकी नियुक्ति उस राज्य का राज्यपाल करेगा।
  • कोई भी ऐसा व्यक्ति जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने की योग्यता रखता है, इस पद के लिए योग्य समझा जाएगा।
  • राज्य में महाधिवक्ता का पद केन्द्र में महान्यायवादी के पद के समान होता है। यह राज्य में उसी प्रकार के कृत्य करता है जैसे कि महान्यायवादी केन्द्र में करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 165 (2) के अनुसार उसके प्रमुख कार्य निम्न हैंः
    (1) राज्य सरकार को विधि संबंधी विषयों की सलाह देना।
    (2) राज्यपाल द्वारा समय-समय पर उसे सौंपे गये कानून संबंधी कार्यों का निर्वहन करना।
  • संविधान के अनुच्छेद 165 (3) के अनुसार महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहेगा।
  • महाधिवक्ता का वेतन एवं भत्ते राज्यपाल निर्धारित करता है।
  • अपने कत्र्तव्यों के निर्वहन के लिए महाधिवक्ता को राज्य विधानमण्डल के सदनों की कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार है। लेकिन वह मतदान नहीं कर सकता।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

(क) मूल प्रस्ताव-मूल प्रस्ताव अपने आप में सम्पूर्ण प्रस्ताव होता है, जो सदन के अनुमोदन के लिए पेश किया जाता है। मूल प्रस्ताव को इस तरह से बनाया जाता है कि उससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके। निम्नलिखित प्रस्ताव मूल प्रस्ताव होते है-
(i) राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव, (ii) अविश्वास प्रस्ताव-इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद् में अपना अविश्वास व्यक्त करता है और यदि यह प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। (iii) लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या राज्यसभा के उपसभापति के निर्वाचन के लिए या हटाने के लिए प्रस्ताव। (iv) विशेषाधिकार प्रस्ताव-यह प्रस्ताव संसद के किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब उसे यह प्रतीत हो कि मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य ने संसद में झूठा तथ्य प्रस्तुत करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है।
(ख) स्थानापन्न प्रस्ताव-जो प्रस्ताव मूल प्रस्ताव के स्थान पर और उसके विकल्प के रूप में पेश किये जाते है, उन्हें स्थानापन्न प्रस्ताव कहा जाता है।
(ग) अनुषंगी प्रस्ताव-इस प्रस्ताव को विभिन्न प्रकार के कार्यों के अगले कार्यवाही के लिए नियमित उपाय के रूप में पेश किया जाता है।
(घ) प्रतिस्थापन प्रस्ताव-यह किसी अन्य प्रश्न पर विचार-विमर्श के दौरान पेश किया जाता है। कोई सदस्य किसी विधेयक पर विचार करने के प्रस्ताव के सम्बन्ध में प्रतिस्थापन प्रस्ताव पेश कर सकता है।
(ङ) संशोधन प्रस्ताव-यह प्रस्ताव मूल प्रस्ताव में संशोधन करने के लिए पेश किया जाता है।
(च) अनियत दिन वाले प्रस्ताव-जिस प्रस्ताव को अध्यक्ष द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है, लेकिन उस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के लिए कोई समय नियत नहीं किया जाता, उसे अनियत दिन वाला प्रस्ताव कहा जाता है।


विधान परिषद के सदस्यों की योग्यता

संविधान के अनुच्छेद 173 के अधीन विधान परिषद् के सदस्यों के लिए निम्न अर्हताएँ (योग्यताएं) निर्धारित की गई हैं-
कोई भी व्यक्ति किसी राज्य के विधान परिषद् के किसी स्थान हेतु चुने जाने के लिए तभी योग्य होगा जबकि-
(क) वह भारत का नागरिक हो।
(ख) वह कम से कम 30 वर्ष की आयु का हो।
(ग) उसके पास वे सभी अन्य योग्यताएँ हों जो कि संसद कानून द्वारा निर्धारित करे।
इस अधिकार के अधीन संसद ने जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में यह निर्धारित किया है कि-
(घ) विधान परिषद का सदस्य निर्वाचित होने के लिए आवश्यक है कि वह उस राज्य में किसी भी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रा में मतदाता हो।

सदस्यों की अयोग्यताएं

  • उपर्युक्त योग्यताओं के अतिरिक्त कोई भी सदस्य संविधान के अनुच्छेद 120 में निर्धारित अयोग्यताओं के रहते विधान परिषद् का सदस्य नहीं हो सकता। वे अयोग्यताएं वे ही हैं जो कि किसी संसद सदस्य के लिए निर्धारित हैं-
    (क) वह संघ या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो तथा किसी ऐसे पद पर भी न हो जिसको धारण करने वाले को राज्य विधानमण्डल ने कानून द्वारा इस पद हेतु अयोग्य घोषित किया हो।
    (ख) किसी सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित विकृत चित्त (पागल) न हो।
    (ग) दिवालिया न हो।
    (घ) यदि भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति अपनी निष्ठा को स्वीकार करता हो।
    (ङ) न्यायालय द्वारा अपराधी ठहराया गया हो।
    (च) निर्वाचन के संबंध में भ्रष्ट या अवैध आचरण का दोषी हो।
    (छ) किसी ऐसे निगम का प्रबंधक या अभिकर्ता हो जिसमें सरकार का वित्तीय हित हो।
    यदि किसी सदस्य के निर्वाचन संबंधी कोई अनियमितता या उसका निर्वाचन ऊपर वर्णित किसी अयोग्यता से ग्रस्त है तो ऐसी स्थिति में इसका निर्णय राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की राय के अनुसार किया जाएगा एवं उसका निर्णय अन्तिम होगा। किसी भी न्यायालय में उस पर विचार नहीं किया जा सकेगा।

सभापति तथा उप-सभापति

  • विधान परिषद् अपनी बैठकों के संचालन अथवा कार्य संचालन के लिए तथा बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए अपने सदस्यों में से ही किसी एक को सभापति तथा एक को उप-सभापति चुनती है।
  • इन दोनों पदाधिकारियों को विधान परिषद् स्वयं अपने दो तिहाई बहुमत से पदच्युत भी कर सकती है।
  • सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना तथा सदन में अनुशासन बनाये रखने का दायित्व सदन के सभापति का होता है।
  • कोई भी विधेयक उसकी पूर्वानुमति के वगैर सदन में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता। वही विधेयकों पर बहस की अनुमति देेता है एवं उसे संचालित करता है।
  • सभापति ही बहस समाप्त होने के पश्चात विधेयक पर मतदान कराता है तथा पारित हो जाने पर उस पर हस्ताक्षर करता है, साथ ही उसे निर्णायक मत देने का भी अधिकार होता है।

सदन के अधिवेशन

  • केन्द्रीय विधानमण्डल के सदनों की भांति इसके भी वर्ष में कम से कम 2 अधिवेशन होने अनिवार्य हैं तथा प्रत्येक अधिवेशन के मध्य 6 मास से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये।
  • इसके सत्रा विधान सभा के सत्रों के साथ-साथ ही चलते है।

विधान परिषद् के कार्य

  • इसका प्रमुख कार्य विधान सभा के साथ मिलकर विधान निर्माण करना है।
  • वित्त विेधेयक इस सदन में प्रस्तुत नहीं किये जा सकते।
  • इसके साथ ही विधान सभा द्वारा पारित वित्त विधेयकों को यह मात्रा 14 दिन तक अपने पास रख सकती है। यह उन्हें अस्वीकार नहीं कर सकती। इसके द्वारा दिये गये सुझाव भी मानना या न मानना विधान सभा की इच्छा पर निर्भर करता है।
  • इसी प्रकार सामान्य विधेयकों को यह मात्रा 1 माह तक अपने पास रोके रख सकती है तथा विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में गतिरोध की स्थिति में संयुक्त अधिवेशन होता है जहां संख्या की अधिकता के कारण विधान सभा अपनी इच्छानुसार विधेयक पारित करवा लेती है।
  • न तो यह राज्य सभा की भांति राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचत में भाग ले सकती है और न ही इसे राज्यसभा की भांति लोक सेवाएं गठित करने की विशिष्ट शक्ति प्राप्त है।

विधान सभा

  • राज्य विधान मण्डल का निम्न सदन विधान सभा कहा जाता है। यह राज्य का लोकप्रिय सदन होता है। राज्यों में इसे वही स्थिति प्राप्त होती है जो कि केन्द्र में लोकसभा को प्राप्त होती है।

विधान सभा का गठन

  • संविधान के अनुच्छेद 170 के अधीन प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों से मिलकर बनती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 170 (1) में विधान सभाओं के सदस्यों की कुल संख्या कम से कम 60 तथा अधिकाधिक 500 निर्धारित की गई है।

सदस्यों की योग्यताएं

  • संविधान द्वारा विधान सभा के सदस्य निर्वाचित होने वाले उम्मीदवार हेतु निम्न योग्यताएं अथवा अर्हताएं निर्धारित की गई है-
    (क) वह भारत का नागरिक हो।
    (ख) वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
    (ग) वह जिस राज्य से निर्वाचित होना चाहता है उस राज्य के किसी भी निर्वाचन क्षेत्रा की मतदाता सूची में उसका नाम हो।

सदस्यों की अयोग्यताएँ

  • विधान सभा के सदस्यों के लिए भी वे ही अयोग्यताएं निर्धारित की गई हैं, जो विधान परिषद् के सदस्यों हेतु निर्धारित हैं।
  • यदि कोई सदस्य जो कि पूर्व वर्णित किसी भी अपात्राता से ग्रस्त है तो इस संबंध में उस राज्य के राज्यपाल का विनिश्चय अन्तिम होगा। राज्यपाल इस संबंध में अपना निर्णय निर्वाचन आयोग की राय के अनुसार करेगा तथा इस संबंध में किसी भी न्यायालय में उसके निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

विधान सभा का कार्यकाल

  • संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार विधान सभा अपने गठन की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक कार्य करेगी। 5 वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर यह विघटित हो जाएगी तथा पुनः निर्वाचन द्वारा नयी विधान सभा का गठन कर लिया जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार विधान सभा अपने गठन की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक कार्य करेगी। 5 वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर यह विघटित हो जाएगी तथा पुनः निर्वाचन द्वारा नयी विधान सभा का गठन कर लिया जाएगा।
  • 5 वर्ष की अवधि के पूर्व भी विधान सभा विघटित की जा सकती है। यदि राज्यपाल यह महसूस करे कि विधान सभा राज्य को एक स्थायी मंत्रिमंडल देने में असमर्थ है या मंत्रिमंडल द्वारा राज्य का शासन संवैधानिक उपबंधों के अधीन नहीं चलाया जा रहा तो वह विधानसभा को उसकी अवधि पूर्ण होने से पूर्व भी भंग कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त यदि मंत्रिमंडल राज्यपाल को विधान सभा को भंग करने का परामर्श दे तो भी राज्यपाल विधान सभा को भंग करने के लिए बाध्य है।
  • राज्यपाल द्वारा राज्य में आपात घोषणा के दौरान या राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकाल की स्थिति में विधान सभा की अवधि बढ़ायी जा सकती है। ऐसी दशा में संघ की संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आपात घोषणा प्रभावी रहने के पश्चात् अधिक से अधिक 6 माह तक के लिए विधान सभा की अवधि बढ़ा दे। लेकिन संसद भी यह अवधि एक बार में सिर्फ एक वर्ष ही बढ़ा सकती है।5 वर्ष की अवधि के पूर्व भी विधान सभा विघटित की जा सकती है। यदि राज्यपाल यह महसूस करे कि विधान सभा राज्य को एक स्थायी मंत्रिमंडल देने में असमर्थ है या मंत्रिमंडल द्वारा राज्य का शासन संवैधानिक उपबंधों के अधीन नहीं चलाया जा रहा तो वह विधानसभा को उसकी अवधि पूर्ण होने से पूर्व भी भंग कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त यदि मंत्रिमंडल राज्यपाल को विधान सभा को भंग करने का परामर्श दे तो भी राज्यपाल विधान सभा को भंग करने के लिए बाध्य है।
  • राज्यपाल द्वारा राज्य में आपात घोषणा के दौरान या राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकाल की स्थिति में विधान सभा की अवधि बढ़ायी जा सकती है। ऐसी दशा में संघ की संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आपात घोषणा प्रभावी रहने के पश्चात् अधिक से अधिक 6 माह तक के लिए विधान सभा की अवधि बढ़ा दे। लेकिन संसद भी यह अवधि एक बार में सिर्फ एक वर्ष ही बढ़ा सकती है।

अध्यक्ष

  • संविधान के अनुच्छेद 178 में विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की व्यवस्था की गई है।
  • राज्य विधान सभा अध्यक्ष उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
  • अध्यक्ष के निर्वाचन की व्यवस्था राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  • सबसे पहले राज्यपाल द्वारा इस पद हेतु मनोनयन पत्रा आमंत्रित किये जाते है। इन्हें किसी निश्चित दिन सदन के सम्मुख रखा जाता है। सदन में इस पर वाद-विवाद न किया जाकर सीधा मतदान कराया जाता है। जो प्रत्याशी बहुमत पाता है उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
  • अपने पद को ग्रहण करने से पूर्व विधान सभा अध्यक्ष को राज्यपाल या उसके द्वारा इस हेतु नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ ग्रहण करनी पड़ती है।
  • विधान सभा अध्यक्ष का पद निम्न प्रकार से रिक्त हो सकता है (अनुच्छेद 179);
    (क) यदि अध्यक्ष विधान सभा का सदस्य नहीं रह जाता तो उसे अपना पद त्यागना पड़ेगा।
    (ख) अध्यक्ष उपाध्यक्ष को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा द्वारा पद से मुक्त हो सकता है।
    (ग) विधान सभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष को पदच्युत किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकार का प्रस्ताव सदन में रखने से चैदह दिन पूर्व सूचना दे दी जानी चाहिए।
  • सामान्य अवस्था में अध्यक्ष का पद विधान सभा के कार्यकाल के साथ बंधा होता है, लेकिन जब कभी विधान सभा विघटित की जाती है तब नयी विधान सभा के गठित होने तथा उसके प्रथम अधिवेशन तक वह अध्यक्ष अपने पद पर बना रहेगा।
  • वही संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।
  • कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं इसका निर्णय भी अध्यक्ष ही करता है तथा इस संबंध में इसका निर्णय अन्तिम होता है। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • किसी विधेयक पर पक्ष एवं विपक्ष में बराबर मत पड़ने की स्थिति में अध्यक्ष को निर्णायक मत देने की शक्ति प्राप्त है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारत संघ के प्रतिरक्षा बलों का सर्वाेच्च समादेश किसमें निहित होता है? -  राष्ट्रपति में
  • ‘साझा न्यूनतम कार्यक्रम’ के अंतर्गत संयुक्त मोर्चा सरकार ने अयोध्या विवाद को उच्चतम न्यायालय को किस धारा के तहत सौंपा? -  138(2)
  • भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद द्वारा बेगार तथा बलात् श्रम को प्रतिषिद्ध किया गया है। -  अनुच्छेद 23
  • संसद की किस समिति को प्रायः ओम्बुड्समैन समिति के रूप में जाना जाता है? -  याचिका समिति
  • जर्मनी के संविधान और भारत शासन अधिनियम, 1935 के आलोक में किस उपबंध को जोड़ा गया है? -  आपात से संबंधित उपबंध
  • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध विधि को या कार्यपालिका के आदेश को किस न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया जा सकता है?  -  उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय
  • ”भारत राज्यों का एक संघ होगा“ कहा गया है - प्रथम अनुच्छेद 
  • भाषायी आधार पर राज्यों का पुर्नगठन हुआ था  -  1956 में
  • संसद के संविधान संशोधन पर मूल ढांचे का प्रतिबन्ध किस वाद में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय ने लगाया? - केशवानन्द भारती वाद में
  • दिनेश गोस्वामी समिति किससे सम्बन्धित है? - चुनाव सुधार
  • भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व किस देश के संविधान से ग्रहण किए गए हैं? -  आयरलैंड
  • संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे - बी.आर. अम्बेडकर
  • कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करते समय राज्यपाल रोमेश भण्डारी ने संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत कार्यवाही की? - अनुच्छेद 163


उपाध्यक्ष

  • संविधान में अध्यक्ष की भाँति ही सदन के एक उपाध्यक्ष की भी नियुक्ति का प्रावधान है। उपाध्यक्ष के निर्वाचन एवं उसके पद में रिक्ति की वे ही व्यवस्थाएँ है जो कि अध्यक्ष की है।
  • उपाध्यक्ष का कार्य अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके पद पर कार्य करना है।
  • ऐसे समय जबकि अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों ही सदन से अनुपस्थित हों तब ऐसी स्थिति में राज्यपाल सदन में से ही किसी अन्य व्यक्ति को सदन की सहमति से इस पद पर कार्य हेतु नियुक्त करता है।
  • ऐसी स्थिति में जबकि सदन में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के विरुद्ध उसे हटाये जाने संबंधी प्रस्ताव विचाराधीन हो तब सदन की बैठकों की अध्यक्षता अध्यक्ष पर विचाराधीन प्रस्ताव के दौरान उपाध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष से संबंधित प्रस्ताव पर विचार के दौरान अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में राज्यपाल द्वारा नियुक्त व्यक्ति करेगा।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • संसदीय चुनावों में मत देने का अधिकार है एक - कानूनी अधिकार
  • भारतीय नागरिकता किस सिद्धान्त पर आधारित है? - भारतीय भूमि में जन्म
  • जनहित याचिका किसके द्वारा अभियोजित की जा सकती है? - कोई भी जनहितैषी व्यक्ति
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय किसके मध्य उत्पन्न हुए विवादों का न्यायिक निर्णय करता है? -  केवल राज्य
  • शाहबानों केस में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसद ने हस्तक्षेप कर कानून को बदला था। इस घटना के समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था? -   राजीव गांधी
  • भारत संघ के प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश किसमें निहित होता है? - राष्ट्रपति में
  • न्यायिक पुनर्विलोकन किसका आवश्यक अनुषंगी है? - मौलिक अधिकारों का
  • किस अनुच्छेद में ऐसा उपबंध किया गया है कि कोई व्यक्ति अपने मूल अधिकारों के प्रवर्तन तथा अपनी व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय के पास भी जा सकता है? - अनुच्छेद 32
  • कदाचार या अक्षमता के आधार पर न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल पूरा होने के पूर्व ही किस विधि द्वारा हटाया जा सकता है? - संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा
  • सार्वजनिक लेखा समिति में राज्य सभा के कितने सदस्य होते हैं? -  सात
  • लोक सभा में प्रतिनिधियों की संख्या 500 से बढ़ाकर 525 किस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा की गई? -  31वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा
  • भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन किस सिद्धांत पर आधारित है? -  कानून द्वारा स्थापित  प्रक्रिया के सिद्धान्त पर


विधान सभा की शक्तियाँ

  • विधान मण्डल का अंग होने के कारण विधान-निर्माण करना विधान सभा का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
  • साधारण विधेयक (जिन राज्यों में विधानपरिषद् भी है) सामान्यतः किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते है।
  • विधान सभा सदन में प्रस्तुत विधेयकों पर विचार-विमर्श करती है तथा उसे स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है।
  • कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक कि विधान सभा उसे पारित न कर दे।
  • इसके अतिरिक्त जब विधान सभा का अधिवेशन नहीं चल रहा हो तब राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेशों पर भी उसकी स्वीकृति आवश्यक है। यदि विधान सभा इन अध्यादेशों को अस्वीकृत कर दे तो ये रद्द समझे जाते है।
  • कोई भी वित्त विधेयक केवल विधान सभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते है, विधान परिषद् में नहीं।
  • कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं इसके निर्णय की अन्तिम शक्ति भी विधान सभा अध्यक्ष को ही है।
  • राज्य कार्यपालिका राज्य की निधि में से कोई भी व्यय विधान सभा की स्वीकृति के बगैर नहीं कर सकती। इसके लिए वह वार्षिक बजट विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत करती है।
  • विधान सभा को कार्यपालिका द्वारा प्रस्तुत बजट में कटौती करने, उसमें संशोधन करने तथा उसे स्वीकार अथवा अस्वीकार करने की शक्ति प्राप्त है।
  • राज्य की कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिमण्डल विधान सभा के ही प्रति उत्तरदायी होता है। विधानमण्डल मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत भी कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त यदि विधान सभा कार्यपालिका द्वारा प्रस्तुत किसी वित्तीय प्रस्ताव को अस्वीकार कर दे अथवा उसमें कटौती करने का प्रस्ताव स्वीकार कर ले तो ऐसी स्थिति में मंत्रिमण्डल को त्यागपत्रा देना पड़ता है।
  • विधान सभा कार्यपालिका के सदस्य मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत विधेयकों को भी अस्वीकार कर सकती है।
  • इन सभी के अतिरिक्त वह मंत्रियों से उनके कार्यों तथा विभागों के संबंध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव आदि के माध्यम से भी कार्यपालिका पर नियन्त्राण बनाये रखती है।
  • वह राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 368 में उल्लेखित कुछ विषयों पर संशोधन करने के लिए राज्यों के विधानमण्डल की स्वीकृति अनिवार्य होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रपति संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत लोक सभा भंग कर सकता है? -  अनुच्छेद 85 के अन्तर्गत
  • सरकारिया आयोग किस विषय से संबंधित था? -  केन्द्र-राज्य सम्बन्ध की जांच से
  • संविधान के किस अनुच्छेद में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्रदान की गई है? - अनुच्छेद 13 में 
  • संविधान के अनुच्छेद 123 के अंतर्गत राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति किस परिस्थिति में अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है? -  जब संसद का कोई भी सदन सत्र में हो
  • संविधान के अनुच्छेद 17 में किसका प्रावधान है? - अस्पृश्यता उन्मूलन का तथा किसी भी रूप में इसके प्रयोग को दण्डनीय अपराध बनाने का
  • आपात स्थिति में सभी मौलिक अधिकारों के निलम्बित किए जा सकने के बावजूद संविधान के किन अनुच्छेदों को निलम्बित नहीं किया जा सकता? -  अनुच्छेद 20 व 21 को
  • संविधान में जोड़ी गई दसवीं अनुसूची किस विषय से सम्बन्धित है? - दल-बदल के आधार पर अयोग्यता सम्बन्धी प्रावधानों सेे
  • आपात स्थिति(अनुच्छेद 352) में लोकसभा की समयावधि एक बार में कितने समय के लिए बढ़ाई जा सकती है? - 1 वर्ष के लिए
  • लोकसभा में विरोधी दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी विपक्षी दल के पास लोकसभा के कुल सदस्यों के न्यूनतम कितने प्रतिशत होने चाहिए? - 10 %
  • किसका कथन है कि “भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का वही स्थान है जो इंग्लैंड के संविधान में वहां के सम्राट का है?“ - डाॅ. भीमराव अम्बेडकर का
  • उच्च न्यायालय की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश कौन है? - न्यायमूर्ति लीला सेठ


राज्य विधान मण्डल की शक्तियों पर प्रतिबंध

  • राज्य सूची में सम्मिलित कुछ विषयों से संबंधित विधेयकों को राज्य विधान मण्डल में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है-उदाहरणस्वरूप व्यापार एवं व्यवसाय पर बन्धन लगाने संबंधी विधेयक।
  • राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित कुछ विधेयक कानून नहीं बन सकते जब तक कि उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति न मिल जाए। उदा.- निजी सम्पत्ति को अधिगृहित करने संबंधी विधेयक।
  • यदि राज्य-सूची में वर्णित किसी विधेयक को राज्य सभा राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो ऐसे विषय पर राज्य विधान मण्डल कानून नहीं बना सकता।
  • संकट काल की घोषणा की स्थिति में राज्य सूची के सभी विषयों पर उस अवधि के दौरान कानून निर्माण की शक्ति संसद को प्राप्त हो जाती है।
  • संविधान में अनुच्छेद 356 के अधीन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधान मण्डल की समस्त शक्तियाँ संसदीय शक्ति के अधीन रहेगी।
  • समवर्ती सूची में वर्णित विषयों के संबंध में बने राज्य विधान मण्डल के कानून यदि संसदीय विधि के विरुद्ध हैं तो वे स्वतः ही रद्द हो जाते है।
  • राज्य सरकार न तो विदेशी राष्ट्रों से स्वतंत्रा रूप से कोई संधि ही कर सकती है और न ही केन्द्र की अनुमति के बिना ऋण ही ले सकती है।
The document विधानमण्डल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
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FAQs on विधानमण्डल - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. विधानमण्डल क्या है?
उत्तर. विधानमण्डल भारतीय राजव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण संगठन है जो भारतीय संविधान के अनुसार संचालित होता है। यह एक द्विमासीय संस्था है जिसमें दो सदन होते हैं - लोकसभा और राज्यसभा। विधानमण्डल का मुख्य कार्य नया कानून बनाना, मूल्यांकन करना और नीतियों का निर्धारण करना है।
2. विधानमण्डल संशोधन नोटस क्या है?
उत्तर. विधानमण्डल संशोधन नोटस भारतीय संविधान के संशोधन की प्रक्रिया है। यह विधानमण्डल के सदस्यों को संविधान के नियमों और प्रावधानों में संशोधन करने की अनुमति देता है। इसके द्वारा, संविधान को आधिकारिक रूप से संशोधित किया जा सकता है।
3. UPSC क्या है?
उत्तर. UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय संघ लोक सेवा की एक महत्वपूर्ण परीक्षा नियंत्रण संगठन है। इसका मुख्य कार्य भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS) और अन्य संघ लोक सेवाओं के लिए लिखित परीक्षा आयोजित करना है।
4. विधानमण्डल में नया कानून कैसे बनता है?
उत्तर. विधानमण्डल में नया कानून बनाने की प्रक्रिया निम्नानुसार होती है: 1. किसी सदस्य द्वारा कानून प्रस्तुत किया जाता है। 2. सदनों में कानून के प्रस्तावित प्रावधानों का चर्चा किया जाता है और सदस्यों के विचार व्यक्त किए जाते हैं। 3. अगर प्रस्तावित कानून को सदनों में बहुमत मिल जाता है, तो यह मान्यता प्राप्त करता है। 4. कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए। 5. अगर राष्ट्रपति इसे मंजूर करते हैं, तो यह कानून बन जाता है।
5. भारतीय राजव्यवस्था में लोकसभा और राज्यसभा का क्या महत्व है?
उत्तर. लोकसभा और राज्यसभा भारतीय राजव्यवस्था में महत्वपूर्ण संसदीय संस्थान हैं। ये संसदीय सदनों में विधानमण्डल के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका मुख्य कार्य नये कानूनों का प्रस्तावना, चर्चा और मान्यता प्राप्त करना है। वे लोगों के मुद्दों, सवालों और आपत्तियों को सरकारी स्तर पर उठाने का माध्यम भी होते हैं।
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