ये परिस्थितियां निम्नलिखित है-
(1) राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्ति-संविधान के अनुच्छेद 249 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राज्य सभा अपने उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर संसद राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाये, तो संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून एक वर्ष की अवधि के लिए प्रवर्तनीय होता है, लेकिन राज्य सभा एक वर्ष में पुनः प्रस्ताव पारित करके संसद द्वारा पारित कानून के प्रवर्तन की अवधि एक वर्ष या बार-बार कई वर्षों के लिए बढ़ा सकती है। राज्य सभा ने इस शक्ति का प्रयोग अभी तक केवल एक बार 1950 में किया है जब संसद द्वारा व्यापार तथा वाणिज्य से सम्बन्धित कानून बनाया गया था।
(2) राज्यों की सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति-जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पारित करके संसद से यह अनुरोध करे कि वह राज्य सूची में वर्णित किसी विषय पर कानून का निर्माण करे, तब संसद राज्य सूची में वर्णित उन विषयों, जिन पर कानून बनाने का अनुरोध किया गया है, पर कानून बना सकती है, लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार निर्मित कानून केवल उन राज्यों पर लागू होता है, जिनके विधान मण्डल कानून बनाने का अनुरोध करे। राज्य विधान मण्डलों द्वारा संविधान के प्रवर्तन के बाद अब तक केवल दो बार राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है-
(i) पांच राज्यों (बम्बई, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश) द्वारा 1953 में सम्पदा शुल्क पर कानून बनाने के लिए।
(ii) आठ राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, बम्बई, मद्रास, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, पेप्सू तथा सौराष्ट्र) द्वारा 1955 में पुरस्कार प्रतियोगिता पर कानून बनाने के लिए।
संसद द्वारा राज्यों के विधानमण्डलों के अनुरोध पर पारित कानून में संशोधन का अधिकार केवल संसद को है, न कि राज्य विधानमण्डलों को।
(3) राष्ट्रीय आपात के समय कानून बनाने की संसद की शक्ति-जब कभी राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जाय, तब संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकिन संसद द्वारा इस प्रकार राज्य सूची पर बनाया गया कानून आपातकाल की अवधि के समापन के 6 माह के बाद अप्रवर्तनीय हो जाता है।
(4) राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में संसद की शक्ति-जब राज्य में संवैधानिक तन्त्रा की विफलता के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है, तब संसद को राज्य सूची पर विधि निर्माण का या राज्य विधानमण्डल द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शक्ति के प्रयोग का अधिकार प्राप्त हो जाता है। यदि संसद चाहे तो इस प्रकार राज्य विधानमण्डल की प्राप्त शक्ति के प्रयोग का अधिकार राष्ट्रपति को दे सकती है तथा राष्ट्रपति कुछ शर्तों के साथ इनके प्रयोग का अधिकार अन्य प्राधिकारी को दे सकता है। संसद या राष्ट्रपति या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा राष्ट्रपति शासन के दौरान निर्मित कानून तब तक लागू रहते है जब तक विधान मण्डल उसे निरस्त न कर दे।
महत्वपूर्ण तथ्य
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राज्य के विधायी मामलों पर केन्द्रीय नियन्त्रण
(1) राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयकों का आरक्षित किया जाना-संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि राज्यपाल राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सम्मति देने के पूर्व उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखे। जिस विधेयक में उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में कमी करने का प्रावधान किया गया है, उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है। इसी तरह राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित समवर्ती सूची में वर्णित विषयों से सम्बन्धित विधेयक राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकता है। इसके अतिरिक्त आपातकाल की उद्धोषणा के प्रवर्तन में रहने के दौरान राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निर्देश दे सकता है कि राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित वित्तीय तथा साधारण विधेयक को उसकी अनुमति के लिए आरक्षित रखा जाय।
विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित किये जाने पर प्रक्रिया - जब राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित करके उसके समक्ष पेश किया जाता है, तब उसके पास विधेयक के सम्बन्ध में दो विकल्प उपलब्ध होते है। पहला यह कि या तो वह विधेयक पर अपनी अनुमति प्रदान कर दे या दूसरा, यदि वह चाहे, तो उस विधेयक को अपनी टिप्पणी सहित विधान मण्डल के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। यदि कोई विधेयक विधान मण्डल के पुनर्विचार के लिए भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति के पास उस विधेयक को 6 माह के अन्दर वापस भेजा जाना चाहिए, चाहे विधेयक को राष्ट्रपति की टिप्पणी के अनुसार संशोधित किया गया हो या नहीं। दूसरी बार विधेयक प्राप्त करने पर राष्ट्रपति उस पर अपनी सम्मति देने के लिए बाध्य नहीं है।
(2) राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से विधि निर्माण - राज्य सूची में कुछ ऐसे विषयों को शामिल किया गया है, जिन पर राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता अर्थात् इन विषयों पर कानून निर्माण के लिए राज्य विधानमण्डल में विधेयक पेश करने के पूर्व राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। उदाहरणार्थ राज्य सूची में वर्णित व्यापार तथा वाणिज्य विषय पर कानून बनाने के लिए राज्य विधानमण्डल में विधेयक पेश करने के पूर्व उस विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है।
प्रशासनिक या कार्यपालिका सम्बन्ध
भारतीय संविधान में इस सिद्धान्त को मान्यता दी गयी है कि कार्यपालिका विधान पालिका की सहविस्तारी है अर्थात् जिस विषय पर संसद कानून बना सकती है, उस विषय पर केन्द्रीय कार्यपालिका का नियन्त्राण होगा और जिस विषय पर राज्य का विधान मण्डल कानून बना सकता है, उस विषय पर राज्य की कार्यपालिका का नियन्त्राण रहता है। इस प्रकार संघ सूची के विषयों पर केन्द्र सरकार को तथा राज्य सूची के विषयों पर राज्य सरकार को प्रशासन करने की अधिकारिता है। संविधान की सातवीं अनुसूची में शामिल समवर्ती सूची के विषयों पर कार्यपालिका शक्ति राज्यों के पास है लेकिन इसके कुछ अपवाद भी है, जैसे जब संविधान ऐसे विषयों से सम्बन्धित किसी कार्यपालिका शक्ति को केन्द्र सरकार में निहित करता है, जैसे भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, तो इन अधिनियमों में अन्तर्विष्ट प्रावधानों को कार्यान्वित करने की शक्ति केन्द्र के पास है।
प्रशासन के सम्बन्ध में राज्यों को निर्देश देने की केन्द्र की शक्ति
(i)सामान्य स्थिति में-केन्द्र सरकार सामान्य स्थिति में राज्यों को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) राज्य में प्रवर्तित केन्द्रीय विधि तथा विद्यमान विधियों के सम्यक् अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए,
(ख) यह सुनिश्चित करने के लिए कि केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में राज्य की कार्यपालिका शक्ति हस्तक्षेप नहीं करती,
(ग) राज्य द्वारा राष्ट्रीय या सैनिक महत्व के संचार साधनों के निर्माण तथा उन्हें बनाये रखे जाने को सुनिश्चित करने के लिए,
(घ) राज्य के सीमा क्षेत्रा के अन्तर्गत रेलों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए,
(ङ) अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए योजना बनाने तथा उसके क्रियान्वयन के लिए,
(च) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधायें सुनिश्चित करने के लिए,
(छ) हिन्दी भाषा का विकास सुनिश्चित करने के लिए,
(ज) यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य की सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाय।
(ii) आपातकालीन स्थिति में- आपातकालीन स्थिति में केन्द्र सरकार राज्य को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) किसी विषय के सम्बन्ध में राज्य की कार्यपालिका शक्ति का किस प्रकार प्रयोग किया जाये,
(ख) राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग करने के लिए।
(iii) वित्तीय आपातकालीन स्थिति में - वित्तीय आपातकालीन स्थिति में केन्द्र सरकार राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश दे सकती है-
(क) ऐसे वित्तीय सिद्धान्तों का पालन करने के लिए, जो निदेशों के अनुसार विनिर्दिष्ट किये जाएं,
(ख) राज्य में सेवारत सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों, जिनके अन्तर्गत उच्च यायालय के न्यायाधीश भी है, के वेतन तथा भत्ते में कमी करने के लिए,
(ग) धन विधेयकों या ऐसे अन्य विधेयकों को राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित किये जाने के बाद राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने के लिए।
केन्द्र के निर्देश को न मानने का प्रभाव - यदि राज्य सरकारें केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में असमर्थ रहती है, या पालन करने में उपेक्षा बरतती है, तो उन्हें केन्द्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है और राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
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वित्तीय सम्बन्ध
संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के मध्य राजस्व के स्रोतों का स्पष्ट विभाजन किया गया है तथा संविधान में यह प्रावधान भी किया गया है कि संसद संघ सूची में वर्णित विषयों पर कर अधिरोपित कर सकती है, जबकि राज्य विधान मण्डल राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कर अधिरोपित कर सकता है।
संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत-संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत इस प्रकार है-निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, विदेशी ऋण, रेल, रिजर्व बैंक तथा शेयर बाजार।
राज्य के प्रमुख राजस्व स्रोत-राज्यों के प्रमुख राजस्व स्रोत है-व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशुओं तथा नौकायन पर कर, बिजली के उपयोग तथा विक्रय पर कर, वाहनों पर चुंगी आदि।
संघ द्वारा लगाये गये तथा राज्य द्वारा वसूले जाने वाले कर-जो कर संघ द्वारा लगाये जाते है लेकिन राज्य द्वारा वसूले जाते है, वे है-वसीयतों, विनिमय पत्रों, वचन पत्रों, हुण्डियों, चेकों आदि पर स्टाम्प शुल्क, दवा तथा मादक द्रव्य कर पर तथा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री पर लगाये गये कर।
संघ द्वारा लगाये तथा वसूले जाने वाले लेकिन राज्यों में वितरित किये जाने वाले कर-
(i) कृषि भूमि से भिन्न सम्पत्ति के उत्तराधिकार के सम्बन्ध में शुल्क,
(ii) रेल, समुद्र, वायु मार्ग द्वारा ले जाये जाने वाले माल या यात्रियों पर सीमा कर,
(iii) रेल भाड़ातथा माल भाड़ों पर कर,
(iv) स्टाक एक्सचेन्जों तथा शेयर बाजारों के संव्यवहारों पर स्टाम्प शुल्क से भिन्न कर,
(v) कृषि से भिन्न सम्पत्ति के सम्बन्ध में सम्पदा शुल्क,
(vi) समाचार पत्रों के क्रय या विक्रय पर और उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर,
(vii) समाचार पत्रों से भिन्न माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसा क्रय या विक्रय अन्तर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है,
(vii) माल के पोषण पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसी घोषणा अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होती है।
सहायता अनुदान-संघ द्वारा करों को उद्रहीत करके राज्यों में वितरित किये जाने के बाद भी यह आवश्यक नहीं है कि राज्यों के संसाधन पर्याप्त हों। राज्यों के संसाधन के पर्याप्त न होने की स्थिति में संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक वर्ष संघ ऐसे राज्यों को सहायता अनुदान देगा, जिनके बारे में संसद यह निर्धारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है। विशेषकर राज्यों को जनजातीय क्षेत्रों के कल्याण के लिए अनुदान दिये जायेंगे, जिसमें इस सम्बन्ध में असम को दी जाने वाली सहायता भी शामिल है।
संघ तथा राज्य की उधार लेने वाली शक्ति-संघ को भारत सरकार के राजस्व की प्रतिभूति (security) पर भारत के बाहर उधार लेने की असीमित शक्ति है लेकिन संघ इस शक्ति का प्रयोग संसद द्वारा विहित सीमाओं के अधीन कर सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
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केन्द्र राज्य संबंधों से संबंधित आयोग
केन्द्र तथा राज्य के मध्य विवाद को सुलझाने के लिए मुख्यतः चार आयोग गठित किये गये है, जो इस प्रकार हैं-प्रशासनिक सुधार आयोग (1970), राजमन्नार आयोग (1970), भगवान सहाय समिति (1971) तथा सरकारिया आयोग (1987)। इनमें से प्रथम तीन आयोग/समिति की रिपोर्ट में की गयी सिफारिशें अमान्य कर दी गयी है, जबकि सरकारिया आयोग की सिफारिशों में से कुछ को स्वीकार करने की घोषणा की गयी है।
सरकारिया आयोग की सिफारिश-केन्द्र तथा राज्य सम्बन्धों पर विचार करने के लिए 1983 में न्यायमूर्ति आर. एस. सरकारिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने 1987 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी। 1600 पृष्ठीय रिपोर्ट में आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों में मुख्य निम्नलिखित है-
(i) केन्द्र-राज्य से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधान में कोई संशोधन न तो उचित है और न ही आवश्यक। देश की एकता तथा अखण्डता के लिए मजबूत केन्द्र अनिवार्य है।
(ii) राज्यों में राष्ट्रपति शासन को अन्तिम विकल्प के रूप में लागू किया जाना चाहिए तथा राज्यपाल को 5 वर्ष के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए और बीच में इनका स्थानान्तरण नहीं करना चाहिए।
(iii) केन्द्र तथा राज्यों के बीच निगम कर के उचित बंटवारे के लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए।
(iv) समवर्ती सूची में अन्तर्विष्ट विषयों के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार तथा राज्यों की सरकारों के बीच विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
(v) राज्यों को ऋण देने की पद्धति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और केन्द्र द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं की संख्या कम से कम रखी जानी चाहिए।
(vi) राज्यों में केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करने में केन्द्र सरकार को पूरा अधिकार होना चाहिए तथा केन्द्र राज्य की इच्छा के विरुद्ध भी केन्द्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकता है।
(vii) अभियांत्रिकी, चिकित्सा तथा शिक्षा के लिए अखिल भारतीय सेवा का गठन किया जाना चाहिए।
(viii) योजना आयोग को स्वायत्तशासी संस्था बनाया जाए।
(ix) राष्ट्रीय विकास परिषद् के नाम में परिवर्तन करके इसका नाम राष्ट्रीय एवं आर्थिक विकास परिषद् करना चाहिए तथा इसे और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए, जिससे यह केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक स्तर की सर्वोच्च संस्था हो सके।
(x) किसी राज्य के मुख्यमंत्राी या पूर्व मंत्राी के विरुद्ध पद के दुरुपयोग के आरोपों की जांच के लिए आयोग की नियुक्ति के प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत का समर्थन होना चाहिए।
(xi) देश की एकता तथा अखण्डता के लिए त्रिभाषा सूत्रा को सभी राज्यों में लागू करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जाने चाहिए।
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1. What is the meaning of the right of Parliament to make laws on the subjects mentioned in the State List? |
2. What is the purpose of the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects? |
3. Can Parliament make laws on State List subjects without the consent of the State government? |
4. How does the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects affect the federal structure of India? |
5. What is the significance of the provision that allows Parliament to make laws on State List subjects for UPSC aspirants? |
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