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संयुक्त राष्ट्र संघ - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

संयुक्त राष्ट्र संघ

  • संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शन्ति एवं सुरक्षा बनाये रखना है।
  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 में आयोजित पेरिस शान्ति सम्मेलन में लीग आफ नेशन्स की स्थापना की गयी जिसका आधारभूत सिद्धान्त वर्साय शान्ति सन्धि 1919 का प्रतिज्ञा पत्र था। द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ होते ही यह संगठन अप्रासंगिक हो गया।
  • जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने भीषणतम रूप में सारे विश्व को आतंकित कर रहा था, ऐसे समय में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी। जर्मनी, इटली और जापान के धुरी राष्ट्रों की सम्मिलित शक्ति का मुकाबला करने में ब्रिटेन, अमेरिका तथा अन्य मित्र राष्ट्रों की सारी शक्ति लगी हुई थी।
  • ऐसे में ब्रिटेन के सेण्ट जेम्स महल में की गयी घोषणा (12 जून, 1941), एटलांटिक चार्टर (14 अगस्त, 1941), संयुक्त राष्ट्र घोषणा (1 जनवरी, 1942), मास्को घोषणा (30 अक्टूबर, 1943), तेहरान सम्मेलन (1 दिसम्बर, 1943), डम्बरटन ओक्स सम्मेलन के द्वारा एक नई संस्था के निर्माण का निश्चय किया गया।
  • 1 जनवरी, 1942 को ब्रिटेन, त्तकालीन सोवियत संघ, चीन तथा अन्य 26 मित्र राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को नगर में हुआ, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि ये राष्ट्र सम्मिलित होकर धुरी राष्ट्रों का सामना करेंगे। इस संगठन को ‘संयुक्त राष्ट्र’ अथवा ‘यूनाइटेड नेशन्स’ का नाम अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन डी रुजवेल्ट द्वारा प्रदान किया गया।
  • 1 जून, 1945 के सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र’ के घोषणा पत्र (प्रस्तावना और अनुच्छेद 111 के साथ) को अन्तिम रूप दिया गया एवं इसकी औपचारिक स्थापना इसके अस्थायी मुख्यालय लेक सैक्सेस (अमेरिका) में हुई।
  • 26 जून, 1945 को (भारत सहित) 50 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने अधिकार पत्र पर हस्ताक्षर किये। पोलैण्ड ने बाद में इस पर हस्ताक्षर किये। 
  • अधिकारिक रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया। तभी से 24 अक्टूबर प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • 1946 से संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क में है और इसके सदस्यों की वर्तमान संख्या 185 है।
  • संयुक्त राष्ट्र का चार्टर ही इसका संविधान है, इस संविधान में दस हजार शब्द, 111 धाराएं एवं 19 अध्याय हैं। चार्टर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के चार प्रमुख उद्देश्य हैं-
     (i)  सामूहिक व्यवस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शन्ति एवं सुरक्षा कायम रखना और आक्रामक प्रवृत्तियों को नियन्त्रण में रखना;
     (ii) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शन्तिपूर्ण समाधान करना;
  • (iii) राष्ट्रों के आत्मनिर्णय और उपनिवेशवाद विघटन की प्रक्रिया को गति देना;
     (iv) सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित एवं पुष्ट करना।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने इन उद्देश्यों से जुड़े हुए दो और लक्ष्य निर्धारित किये है; वे है-‘निःशस्त्रीकरण’ और ‘नयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था’ की स्थापना।

संयुक्त राष्ट्र संघ का सिद्धान्त-चार्टर की धारा 2 में निम्नलिखित मौलिक सिद्धान्तों का समावेश किया गया है-

(i) इसका प्रमुख आधार सभी देशों की समानता एवं सम्प्रभुता का सिद्धान्त है।
 (ii) प्रत्येक सदस्य चार्टर द्वारा उन पर लागू होने वाले दायित्वों के पालन हेतु वचनबद्ध होंगे।
 (iii) यह संगठन किसी भी देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
 (iv) प्रत्येक सदस्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा शान्तिपूर्ण ढंग से करेंगे।
 (v) कोई भी देश संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के प्रतिकूल कोई कार्य नहीं करेगा।
 (vi) चार्टर के प्रतिकूल काम करने वाले किसी देश की सहायता कोई अन्य सदस्य देश नहीं करेगा।
 (vii) संयुक्त राष्ट्र संघ उन देशों को भी अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखने के लिए बाध्य करेगा, जो इस संगठन के सदस्य नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता

  • चार्टर में दो प्रकार की सदस्यता का उल्लेख किया गया है-प्रथम, वे प्रारम्भिक सदस्य जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। द्वितीय, चार्टर में विश्वास रखने वाले शान्ति प्रिय देशों को भी इसकी सदस्यता उपलब्ध है। ऐसे देशों को महासभा के दो तिहाई बहुमत और सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 9 सदस्यों की स्वीकृति से, जिसमें 5 स्थायी सदस्य अवश्य हों, संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त होती है
  • सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर ही महासभा किसी राज्य को सदस्यता प्रदान कर सकती है, परन्तु इस सम्बंध में सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (Veto) भी प्राप्त है।
  • सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट पर सदस्य देशों को महासभा से निलम्बित भी किया जा सकता है एवं निलम्बित राष्ट्र को पुनः स्थापित करने का अधिकार सुरक्षा परिषद को ही है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता के प्रत्याहार (Withdrawl) के सम्बन्ध में चार्टर मौन है। चार्टर, सदस्यों की सदस्यता का प्रत्याहार करने की न तो आज्ञा देता है और न ही मना करता है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 6 के अनुसार, यदि कोई सदस्य चार्टर में वर्णित सिद्धान्तों का जानबूझ कर लगातार उल्लंघन करता है तो उसे सुरक्षा परिषद के सुझाव पर महासभा द्वारा संस्था से निकाला जा सकता है। निष्कासन के लिये सुरक्षा परिषद के 9 सदस्यों की सकारात्मक सहमति (जिसमें पाँचों स्थायी सदस्य भी शामिल होने चाहिए) तथा महासभा का निर्णय दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से होना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय

  • इस संगठन का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयार्क शहर में है। मैनहट्टन द्वीप में बना 39 मंजिला मुख्यालय 17 एकड़ जमीन में फैला हुआ है। मुख्यालय में कुल करीब 10,000 कर्मचारी कार्यरत है। यहाँ पर अक्टूबर, 1952 में महासभा की पहली बैठक हुई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ में छः भाषाएँ मान्यता प्राप्त है (अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, रूसी, अरबी, स्पेनिश)। अंग्रेजी एवं फ्रेच इसकी कार्यकारी भाषाएं है।

संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंग

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तीसरे अध्याय के अनुच्छेद 7 के अनुसार इस संस्था के छः मुख्य अंग है, जो इस प्रकार है-
 (1) महासभा (2) सुरक्षा परिषद (3) आर्थिक और सामाजिक परिषद (4) न्यास परिषद (5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं (6) सचिवालय।

(1) महासभा

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों में महासभा सर्वाधिक बृहत् एवं महत्वपूर्ण अंग है। प्रत्येक सदस्य के प्रतिनिधि इस महासभा के सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र के समस्त सदस्यों को महासभा में बैठने का अधिकार है। प्रत्येक राष्ट्र को एक मत देने का अधिकार प्राप्त है, यद्यपि प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को पाँच प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है। प्रतिनिधियों को वाद-विवाद में भाग लेने का अधिकार है, परन्तु वोट देते समय एक देश का एक ही वोट समझा जाता है।
  • महासभा की बैठक कम से कम वर्ष में एक बार होती है। सुरक्षा परिषद के अनुरोध पर महासचिव विशेष सत्र भी बुला सकते है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 18 में महासभा की मतदान प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। महत्वपूर्ण प्रश्नों पर महासभा के निर्णय उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से होंगे, जबकि अन्य प्रश्नों पर निर्णय उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यांे के साधारण बहुमत से किया जायेगा।
  • महासभा का वार्षिक अधिवेशन सितम्बर माह के तीसरे मंगलवार से प्रारम्भ होता है एवं दिसम्बर मध्य तक चलता है। प्रत्येक नियमित सत्र के आरम्भ में महासभा नये अध्यक्ष, 21 उपाध्यक्ष और अपनी सात मुख्य समितियों के सभापति (चेयरमैन) निर्वाचित करती है।
  • महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी सदस्यों, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद के 54 सदस्यों एवं न्यास परिषद के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के सदस्यों को निर्वाचित करने का अधिकार समान रूप से महासभा एवं सुरक्षा परिषद को है। सुरक्षा परिषद की स्वीकृति प्राप्त होने पर ही महासभा नये सदस्यों को पद ग्रहण करने की अनुमति देती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के आय-व्यय का लेखा (बजट) महासभा द्वारा ही स्वीकृत होता है।
  • साधारण वार्षिक अधिवेशन के अतिरिक्त यदि महासभा के सदस्य बहुमत से विषेश अधिवेशन की मांग करें या सुरक्षा परिषद चाहे, तो संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव 15 दिन के अन्दर महासभा की बैठक बुला सकते है। विशेष अवस्था में सुरक्षा परिषद के 9 सदस्यों के अनुरोध पर 24 घण्टे की सूचना पर विशेष अधिवेशन बुलाया जा सकता है।

(2) सुरक्षा परिषद

  • चार्टर के पाँचवें अध्याय में सुरक्षा परिषद के संगठन सम्बन्धी नियम दिये गये है। इसके अनुसार परिषद में मूलतः पाँच स्थायी और छः अस्थायी सदस्य, कुल मिलाकर ग्यारह सदस्य होते है। परन्तु सितम्बर 1965 में चार्टर में संशोधन करके अस्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाकर दस कर दी गयी है।
  • महासभा ने निर्णय लिया कि दस अस्थायी सदस्यों में से 5 एशियाई-अफ्रीकी राज्यों से, 1 पूर्वी यूरोप से, 2 दक्षिणी अमेरिका से शेष 2 पश्चिमी यूरोप व अन्य राज्यों से होने चाहिए। इस प्रकार सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते है।
  • अनुच्छेद 23 में अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, फ्रांस तथा ब्रिटेन को स्थायी सदस्यों के रूप में उल्लेख किया गया है। सोवियत संघ के विघटन के बाद अब उसका स्थान रूस ने ले लिया है।
  • अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन महासभा अपने दो तिहाई बहुमत से दो वर्ष के लिये करती है।
  • चार्टर के अनुच्छेद 7 के अन्तर्गत सुरक्षा परिषद का प्रत्येक सदस्य एक मत दे सकता है। सुरक्षा परिषद में उपस्थित किये गये प्रश्न दो प्रकार के होते है-प्रथम, प्रक्रिया सम्बन्धी एवं द्वितीय, महत्व सम्बन्धी। जब प्रश्न का सम्बन्ध प्रक्रिया से होता है तो उस पर निर्णय के लिये 9 सदस्यों का सकारात्मक मत आवश्यक है। जब प्रश्न महत्व से सम्बन्धित होता है अथवा महत्वपूर्ण होता है तो उन प्रश्नों के सम्बन्ध में निर्णय के लिए यह आवश्यक है कि 9 सदस्यों के मतों में से पाँच स्थायी सदस्यों का सकारात्मक मत हो। यदि एक भी स्थायी सदस्य विरोध में मतदान करता है तो सुरक्षा परिषद के लिये निर्णय लेना असम्भव हो जाता है। विरोध में दिये गये ऐसे मत को निषेधाधिकार (Veto) कहते है।
  • यदि कोई स्थायी सदस्य मतदान के समय अनुपस्थित रहता है तो उसे निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाता है।
  • ऐसा कोई देश जो न तो सुरक्षा परिषद का सदस्य है और न ही संयुक्त राष्ट्र संघ का, परन्तु परिषद के सम्मुख विचाराधीन किसी मामले में पक्षकार है तो इसके बावजूद कि उसे मतदान का अधिकार नहीं है, सुरक्षा परिषद उसे उस मामले के विवेचन में भाग लेने के लिये आमन्त्रित कर सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 24 के अन्तर्गत संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों द्वारा सुरक्षा परिषद को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा बनाये रखने का प्रारम्भिक उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
  • अध्याय 6 के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रावधान किया गया है। यदि पक्षकार ऐसा करने में असफल रहते है और उनके कार्यों से अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाता है तो अनुच्छेद 41 के अन्तर्गत परिषद सदस्य राज्यों को दोषी राज्य से आर्थिक, कूटनीतिक तथा यातायात आदि सम्बन्धों का विच्छेद कर लेने की सलाह दे सकती है।
  • यदि इन कार्यों से भी समस्या का समाधान नहीं हो पाता तो अनुच्छेद 42 के अन्तर्गत वह सैनिक कार्यवाही कर सकती है। इस कार्यवाही में जल, थल और वायु तीनों सेनाएं सम्मिलित की जा सकती है। ऐसी कार्यवाही को सामूहिक कार्यवाही कहते है।
  • अनुच्छेद 108 के अन्तर्गत चार्टर में संशोधन के लिए महासभा के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।
  • सुरक्षा परिषद अनुच्छेद 5 के अन्तर्गत ऐसे सदस्य, जिसके विरुद्ध वह कार्यवाही कर रही है, की सदस्यता के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों को निलम्बित करने की संस्तुति कर देती है तो महासभा द्वारा उसे निलम्बित कर दिया जायेगा। परन्तु यदि सुरक्षा परिषद चाहे तो उसके निलम्बन को वापस ले सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र का महासचिव सुरक्षा परिषद की संस्तुति पर ही नियुक्त किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश सुरक्षा परिषद तथा महासभा द्वारा निर्वाचित होते हैं।

आर्थिक और सामाजिक परिषद

  • 54 सदस्यों वाली आर्थिक एवं सामाजिक परिषद एक स्थायी संस्था है, जिसके एक तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष पद मुक्त होते रहते है। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य की अवधि 3-3 वर्ष होती है। परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाला सदस्य तुरन्त पुनः निर्वाचित हो सकता है। परिषद में प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का एक ही प्रतिनिधि होता है।
  • इसमें निर्णय उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा लिये जाते है।
  • आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की बैठक वर्ष में दो बार होती है- अप्रैल एवं जुलाई में क्रमशः न्यूयार्क एवं जेनेवा में।
  • आर्थिक एवं सामाजिक परिषद अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य तथा सम्बन्धित मामलों पर अध्ययन कर सकती है।
  • परिषद के अधीन निम्नलिखित प्रादेशिक आर्थिक आयोग कार्य करते है। ई. सी. ई. (यूरोप के लिये आर्थिक आयोग, जेनेवा), एस्कैप (एशिया तथा प्रशान्त सागरीय प्रदेश के लिये आर्थिक एवं सामाजिक आयोग, बैंकाक), ई. सी. एल. ए. (लैटिन अमेरिका के लिये आर्थिक आयोग, सेंटियागो, चिली), ई. सी. ए. (अफ्रीका के लिये आर्थिक आयोग, आदि आबाबा), ई. सी. डब्लू. ए. (पश्चिम एशिया के लिये आर्थिक आयोग, बगदाद)।

न्याय परिषद

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अध्याय 8 न्यास परिषद के विषय में विचार करता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार उन प्रदेशों में जहाँ पूर्ण स्वायत्त शासन नहीं है उनके निवासियों के हितों की रक्षा के लिये अन्तर्राष्ट्रीय न्यास व्यवस्था स्थापित की जाए और अलग-अलग न्यास समझौते के अनुसार इनको संयुक्त राष्ट्र शासन के अधीन रखा जाये।
  • चार्टर के अनुसार न्यास परिषद के चार उद्देश्य है-(i) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देना, (ii) लोगों की स्वशासन अथवा स्वतंत्रता के क्रमिक विकास में सहायता करना और आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक और शिक्षा सम्बन्धी सहायता देना, (iii) सबके लिये मानवीय अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति आस्था बढ़ाना, एवं (iv) सामाजिक, आर्थिक और वाणिज्य सम्बन्धी मामलों में समानता का व्यवहार।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय

  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय राष्ट्र संघ की प्रमुख कानूनी संस्था है। न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना से पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निर्णय अस्थायी अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय किया करता था। परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के साथ ही अस्थायी अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय को समाप्त कर न्याय का अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में स्थापित किया गया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय को संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 7 के अन्तर्गत प्रमुख अंग के रूप में स्वीकार किया गया है। इसमें 15 न्यायाधीश होते है जो महासभा तथा सुरक्षा परिषद द्वारा अलग-अलग चुने जाते है। इनका कार्यकाल 9 वर्ष का होता है परन्तु कार्यकाल के समाप्त होने पर ये पुनः चुने जा सकते है।
  • 15 न्यायाधीशों में से पाँच न्यायधीश सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के देश के होते है। न्यायालय स्वयं अपना सभापति एवं उपसभापति चुनता है जिनका कार्यकाल तीन वर्ष होता है। परन्तु ये भी कार्यकाल की समाप्ति के बाद चुने जा सकते है। न्यायाधीशों के निर्णय बहुमत के आधार पर होते है। अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का भी अधिकार होता है।
  • न्यायालय हेग में स्थापित है, परन्तु इसे इस बात की छूट है कि वह अपना कार्य, यदि आवश्यक हो, तो अन्य स्थानों पर भी करे। न्यायालय में जब किसी मामले की सुनवाई होने वाली हो तो दोनों पक्षकारों को यह अधिकार है कि वे अपनी-अपनी राष्ट्रीयता के एक-एक न्यायाधीश की नियुक्ति सुनवाई वाले बेंच में कराएं।
  • न्यायालय का निर्णय अन्तिम समझा जाता है। निर्णय की अपील नहीं हो सकती, किन्तु यदि कोई पक्ष समझे कि कोई आवश्यक बात न्यायालय के सम्मुख किसी कारण से उपस्थित नहीं हो सकी अथवा प्रत्यक्ष रूप से कहीं भूल हुई है, तब उस अवस्था में पुनर्विचार के लिये प्रार्थना-पत्र दिया जा सकता है।

सचिवालय

  • सचिवालय का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी महासचिव है। महासचिव के अधीन महासभा के नियमोंके अनुसार उनके द्वारा विश्वभर से चुनकर नियुक्त किया गया अन्तर्राष्ट्रीय कर्मचारी वर्ग है।
  • सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासचिव की नियुक्ति महासभा द्वारा पाँच वर्ष के लिये की जाती है। महासचिव का वेतन 20 हजार डालर वार्षिक होता है और यह राशि कर-मुक्त होती है।
  • नियुक्ति के पश्चात अपने कार्यकाल में सचिवालय के सभी कर्मचारी विश्व नागरिक हो जाते है और वे केवल विश्व संस्था के प्रति ही निष्ठावान होते है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव

  • 1 फरवरी, 1946 को नार्वे के त्रिग्वेली प्रथम महासचिव नियुक्त किये गये थे।
  • 1 नवम्बर, 1950 को उनका कार्यकाल तीन वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया। 10 नवम्बर, 1952 को उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
  • 10 अप्रैल 1953 को स्वीडन के डाॅग हैमरशोल्ड को महासचिव नियुक्त किया गया।
  • कांगों में विमान दुर्घटना में डाॅग हैमरशोल्ड की मृत्यु हो जाने के बाद सितम्बर 1961 को बर्मा के ऊ-थाँट अस्थायी एवं बाद में स्थायी महासचिव  बनाये गये। उनको 1966 में अलग पाँच वर्षों के लिये दुबारा चुन लिया गया।
  • 22 सितम्बर, 1971 को डाॅ. कुर्त वाल्डहाईम को इस पद पर नियुक्त किया गया।
  • सन् 1982 से जेवियर परेज डी कुइयार महासचिव पद पर कार्यरत थे।
  • 1 जनवरी, 1992 से 37  दिस. `96 तक डा. बुतरस घाली-(मिश्र) महासचिव के पद पर रहे।
  • 1 जनवरी, 1997 से श्री कोफी अन्नान संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद पर कार्यरत हैं। 

संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरण

  • यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख उद्देश्य विश्व शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना है तथापि अन्य क्षेत्रों में भी राष्ट्रों में आपसी सहयोग द्वारा उक्त उद्देश्य की प्राप्ति को सुगम बनाने के लिए विशिष्ट अभिकरणों की व्यवस्था की गयी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अभिकरणों को मोटे तौर पर चार भागों में बांटा   जा सकता है-
     (1) तकनीकी मामलों में सक्रिय अभिकरण-;(i) विश्व डाक संघ, (ii) अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संघ, (iii) विश्व अंतरिक्ष विज्ञान संगठन, (iv) विश्व मौसम विज्ञान संगठन एवं (v) अन्तर्राष्ट्रीय दूर-संचार संघ।
     (2) सामाजिक एवं मानवीय गतिविधियों में सक्रिय अभिकरण-;(i) यूनेस्को, (ii) विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं (iii) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन।
     (3) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय समस्याओं-आर्थिक विकास में सक्रिय अभिकरण-;(i) पुनर्निर्माण एवं विकास का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक (विश्व बैंक), (ii) अन्तर्राष्ट्रीय विकास संगठन एवं (iii) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।
     (4) विशुद्ध रूप से आर्थिक समस्याओं से संबद्ध अभिकरण-(i) खाद्य एवं कृषि संगठन, (i) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम तथा (i)अन्तर्राष्ट्रीय कृषि विकास निधि।

(1) खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricultural Organization)-इस संगठन की स्थापना 1943 में खाद्य एवं कृषि सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन के फलस्वरूप हुई थी। इस संगठन का उद्देश्य पोषण स्तर एवं जीवन स्तर को बढ़ाना है। 16 अक्टूबर, 1945 से यह संगठन पूर्ण रूप से अस्तित्व में आया। इस संगठन का मुख्य कार्य खाद्य एवं कृषि सम्बन्धी सूचना संग्रहित करना, उनका प्रसार करना एवं विश्लेषण करना है।

प्रत्येक सदस्य राष्ट्र इस सम्मेलन में एक प्रतिनिधि भेजता है। इसके अन्तर्गत 49 सदस्यों की एक परिषद है, जिसे विश्व खाद्य परिषद कहा जाता है। खाद्य और कृषि संगठन खाद्य संकट की समस्या को हल करने में सतत प्रयत्नशील है।

(2) विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization)- यह संस्था 7 अप्रैल, 1948 को अस्तित्व में आयी। इस संगठन का उद्देश्य विश्व के देशों की जनता द्वारा स्वास्थ्य की उच्चतम सम्भव दशा को प्राप्त करना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य के कार्यों का संचालन एवं समन्वय, महामारियों एवं बीमारियों के उन्मूलन को प्रोत्साहित करना, आहार पोषण, निवास गृह और सफाई तथा काम करने की दशाओं को उन्नत करने आदि का कार्य करता है।
 इसका मुख्यालय-जेनेवा में और प्रादेशिक कार्यालय अलेग्जेंड्रिया, ब्राजेविला, कोपेनहेगन, मनीला, नयी दिल्ली तथा वाशिंगटन में स्थित है।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization)- इसकी स्थापना 1919 में राष्ट्र संघ के एक स्वायत्त अंग के रूप में हुई थी। राष्ट्र संघ के अन्तर्गत यह प्रथम विशिष्ट अभिकरण था एवं 1946 में इसे संयुक्त राष्ट्र संघ का अंग स्वीकार कर लिया गया। यह विश्व में श्रमिक, मालिक और सरकार के त्रिविध सहयोग का प्रयत्न करने वाला सबसे बड़ा संगठन है। अन्तः सरकारी एजेन्सी के रूप में यह संगठन श्रमिकों की स्थिति में सुधार करने, जीवन स्तर उन्नत करने एवं सामाजिक शान्ति बनाये रखने का प्रयत्न करता है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों द्वारा मजदूरों के हित में कार्य करता है। इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में स्थित है।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन (International Civil Aviation Organiz- ation)-अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संघ 4 अप्रैल, 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण बना। यह आधारभूत रूप से तकनीकी संगठन है। अन्तर्राष्ट्रीय सिविल उड्डयन की समस्याओं का अध्ययन, सिविल उड्डयन के अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्ड एवं नियम निश्चित करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु शक्ति एजेन्सी ;(International Atomic Energy Agency)-अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु शक्ति एजेन्सी की स्थापना 29 जुलाई, 1957 को हुई। 26 अक्टूबर, 1956 को न्यूयार्क के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इसकी संविधि को अनुमोदित किया गया था। 1957 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों ने एक समझौता सूत्र स्वीकार किया जिसके अनुसार इसे स्वायत्त अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थिति प्रदान की गयी, अतः इसे न तो संयुक्त राष्ट्र संघ का सहायक अंग कहा जा सकता है और न उसका विशिष्ट अभिकरण। इस अभिकरण का मुख्य उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करना है। विश्व भर में शान्ति, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए परमाणु ऊर्जा को द्रुतगति से व्यापक बनाना भी इसका उद्देश्य है। इसका मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में स्थित है।

(6) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund)-एक स्वतंत्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना 27 दिसम्बर, 1945 को हुई थी तथा 1 मार्च, 1947 से इसने अपना कार्य प्रारम्भ किया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को उन्नत करना, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाना, विनिमय दरों को स्थायी बनाना, अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान असंतुलन को कम करना तथा लाभ के कामों में पूँजी लगाना।

(7) पुनर्निर्माण एवं विकास का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक या विश्व बैंक (Internat- ional Bank for Reconstruction and Development or World Bank)- पुनर्निर्माण एवं विकास का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक का उद्भव 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन से हुआ तथा विश्व बैंक का कार्य जून, 1946 से प्रारम्भ हुआ। विश्व बैंक निजी विदेशी पूँजी नियोजन को प्रोत्साहन देता है और सदस्य राज्यों को निजी पूँजी उपलब्ध न होने पर उन्हें ऋण देता है। यह सदस्य राज्यों की आर्थिक सुविधाओं के विकास के लिये धन उधार देता है। इस प्रकार यह बैंक उत्पादक प्रयोजनों के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूँजी के विनिमय को प्रोत्साहन देता है। वही देश विश्व बैंक का सदस्य हो सकता है जो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य होता है। इस प्रकार दोनों संस्थाओं की सदस्यता साथ-साथ चलती है। विश्व बैंक ने युद्ध में क्षतिग्रस्त तथा विकासशील राष्ट्रों के विकास के लिये सराहनीय कार्य किये है। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. में स्थित है।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय विकास संगठन (International  Development Association)- अन्तर्राष्ट्रीय विकास संगठन की स्थापना 24 दिसम्बर, 1960 को की गयी थी जो कि विश्व बैंक की एक सहायक संस्था है। 1 मार्च, 1961 को इसे संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य अविकसित राज्यों के आर्थिक विकास के लिये न्यनूतम ब्याज दर पर दीर्घ कालीन ऋण देना है। अतः यह विश्व बैंक के विकास सम्बन्धी उद्देश्यों को आगे बढ़ाता है और उसकी कार्यवाहियों को अनुपूरित करता है। विश्व बैंक के पदाधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग ही इसके कार्य करते है।

(9) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम ;(International Finance Corporation)- विश्व बैंक के इस सह संगठन की स्थापना जुलाई, 1956 में हुई तथा 1957 में संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बना। विकासशील सदस्य राज्यों में निजी उद्योगों को वित्तीय सहायता देना इसका प्रमुख कार्य है। इसे ऋण देने वाली संस्था न कहकर प्रधानतः नियोजन निकाय कहा जा सकता है।

(10) यूनेस्का (UNESCO)-यूनेस्को ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) का संक्षिप्त नाम है। 4 नवम्बर, 1946 को स्थापित यह संगठन 14 दिसम्बर, 1946 को संयुक्त राष्ट्र के साथ सम्बद्ध कर दिया गया।

यूनेस्को के प्रस्ताव में ही उसका उद्देश्य निहित है। ”युद्ध मनुष्यों के मस्तिष्कों में प्रारम्भ होते है, अतः मनुष्यों के मस्तिष्कों में ही शान्ति की सुरक्षा के लिये व्यवस्था की जानी चाहिए।“ यूनेस्को का उद्देश्य शान्ति एवं सुरक्षा के लिये योगदान करना है जिसकी पूर्ति हेतु शिक्षा, विज्ञान तथा संस्कृति द्वारा राष्ट्रों के मध्य निकटता की भावना का निर्माण करना आवश्यक है।

(11) विनियोग सम्बन्धी विवादों के समाधान का अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र (International Centre for Settlement of Investment Disputes)- यह अभिकरण 14 अक्टूबर, 1966 से अस्तित्व में आया। यह एक स्वायत्त अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जिसका निर्माण राज्यों एवं राज्यों के नागरिकों के मध्य उत्पन्न होने वाले विनियोग सम्बन्धी विवादों के समाधान के अभिसमय के अन्तर्गत हुआ।

(12) विश्व डाक संघ (Universal Postal Union)-विश्व डाक संघ की स्थापना 1 जुलाई, 1975 को हुई थी जब 9 अक्टूबर, 1874 में बर्न में आयोजित डाक कांग्रेस के निर्णयों को स्वीकार किया गया था। इसका पहला नाम सामान्य डाक संघ (General Post Union) था जो 1878 में पेरिस में आयोजित सम्मेलन में बदल गया। इसका मुख्यालय बर्न (स्विट्जरलैण्ड) में है।

(13) अन्तर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union )-1 जनवरी, 1961 के अभिसमय के अन्तर्गत इस संघ का निर्माण हुआ। इसके मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है-(i) सभी प्रकार के दूर संचार के प्रयोग में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को कायम रखना एवं उसका विस्तार करना, एवं (ii) दूरसंचार सम्बन्धी प्रादेशिक सुविधाओं को एवं उसकी उपादेयता को प्रोत्साहन देना। उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह संगठन रेडियो वेव का आबंटन करता है और रेडियो वेव अंकित करता है, ताकि विभिन्न देशों के रेडियो स्टेशनों के बीच किसी तरह का ध्वनि कारक हस्तक्षेप न होने पाये।

(14) अन्तर्राष्ट्रीय सामुद्रिक संगठन (International Maritime Organization)-यह संगठन 1958 में स्थापित हुआ। यह संगठन नौपरिवहन के लिए उन कार्यों को करता है, जिनको अन्तर्राष्ट्रीय सिविल उड्डयन संघ उड्डयन के लिए करता है। यह मुख्यतः सलाहकारी अभिकरण है जो समुद्रों में नौपरिवहन के लिए सुरक्षा नियमों का निर्धारण करता है। नौपरिवहन के सभी मामलों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देता है। सचिवालय लन्दन में स्थित है।

(15) संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (United Na tions High Commission for Refugees)-यह संगठन 1948 में स्थापित किया गया था एवं इसका मुख्यालय जेनेवा में स्थित है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों की सहायता करना है जिन्हें किसी कारणवश अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़े। यह संगठन शरणार्थियों को संरक्षण प्रदान करने एवं उनकी समस्याओं को निपटाने का प्रयास करती है।

(16) अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (United Nations Children' s Emergency Fund)-यह संस्था महासभा द्वारा 1946 में स्थापित की गई। 130 राष्ट्रों का एक कार्यकारी मण्डल इसका संचालन करता है। यह एक अर्धशासित संस्था है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य और पोषण आदि कार्यक्रमों के माध्यम से बाल कल्याण कार्यों को प्रोत्साहन देना है। इसके अतिरिक्त भूकम्प, बाढ़ आदि परिस्थितियों में शिशु और उनकी माताओं के लिये अपेक्षित सहायता करती है।

(17) विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization)- 1947 में स्थापित यह संगठन 1951 में संयुक्त राष्ट्र संघ का विशिष्ट अभिकरण बन गया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य मौसम विज्ञान सम्बन्धी विषयों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की वृद्धि करना है। इसके लिये इसने विश्व भर में जगह-जगह मौसम विज्ञान प्रयोगशालाओं की स्थापना की है। इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विटजरलैण्ड) में स्थित है।

(18) संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (U.N. Industrial Development Organization)-इस संस्था की स्थापना 1 जनवरी, 1967 को महासभा ने की थी। इसका प्रमुख कार्य संयुक्त राष्ट्र की औद्योगिक एजेन्सियों के कार्यों में समन्वय स्थापित करना है।

(19) विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन World Intellectual Property Organization)-इस संगठन की स्थापना के समझौते पर 1967 में स्टाकहोम में 51 देशों के हस्ताक्षर हुए थे और यह अप्रैल, 1970 में लागू हुआ था। 1974 में यह संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशेष अभिकरण बन गया। इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में स्थित है।

(20) व्यापार और सीमा शुल्क पर समझौता (World Intellectual Property Organization)-इस समझौते पर 1947 में विचार हुआ एवं 1 जनवरी, 1948 को लागू किया गया। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सामान्य नियम तथा सीमा शुल्क से सम्बन्धित नियमों में एकरूपता एवं स्थिरता स्थापित करना है। इसका मुख्यालय जेनेवा में स्थित है। वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन ने इसका स्थान ले लिया है।

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FAQs on संयुक्त राष्ट्र संघ - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. संयुक्त राष्ट्र संघ क्या है?
उत्तर: संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) विश्व का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो सदस्य राष्ट्रों के बीच सहयोग और समझौता स्थापित करने का उद्देश्य रखता है। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में स्थित है।
2. संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य क्षेत्र क्या हैं?
उत्तर: संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार, सामाजिक और आर्थिक विकास, मानवीय संघर्षों के समाधान, वैश्विक आपातकालीन परिस्थितियों का नियंत्रण, और विश्वस्तरीय सहयोग के क्षेत्र में कार्य करता है।
3. संयुक्त राष्ट्र संघ की संशोधन नोटस क्या हैं?
उत्तर: संशोधन नोटस एक सारांश होता है जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों और पहलों की सूची होती है। इसमें जिन मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र संघ कार्य कर रहा है, उन्हें विस्तार से वर्णित किया जाता है।
4. भारतीय राजव्यवस्था क्या है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था भारत की संविधानिक और नैतिक आधारभूत व्यवस्था है जो देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को निर्धारित करती है। इसमें संविधान, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, नीतिपालिका और न्यायिक प्रक्रियाओं को शामिल किया जाता है।
5. UPSC क्या है?
उत्तर: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय सरकार का एक संघटित संगठन है जो भारतीय नागरिकों के लिए सरकारी नौकरियां प्राप्त करने के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है। UPSC विभिन्न संघ लोक सेवाओं जैसे IAS, IPS, IFS, IRS आदि के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है।
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