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महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 1) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

महत्वपूर्ण संविधान संशोधन

  • संविधान (प्रथम संशोधनअधिनियम 1950 - इस संशोधन में संविधान के अनुच्छेद 19  में दिए गए वाकस्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य के अधिकार तथा कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने के नए अधिकारों की व्यवस्था है। इन प्रतिबंधों का प्रावधान सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ मैत्राीपूर्ण संबंधों अथवा वाकस्वातंत्र्य के अधिकार के संदर्भ में अपराध उद्दीपन और व्यावसायिक या तकनीकी अर्हताएं विहित करने अथवा कोई व्यापार या कारोबार चलाने के अधिकार के संदर्भ में राज्य आदि द्वारा कोई व्यापार, कारोबार उद्योग अथवा सेवा चलाने के संबंध में किया गया है। इस संशोधन द्वारा दो नए अनुच्छेद 31 क और 31 ख तथा नवम् अनुसूची को शामिल किया गया, ताकि भूमि सुधार कानूनों को चुनौती न दी जा सके।
  • संविधान (द्वितीय संशोधनअधिनियम, 1952 - इस संशोधन द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए प्रतिनिधित्व के अनुपात को पुनः समायोजित किया गया ।
  • संविधान (तृतीय संशोधनअधिनियम, 1954 - इस संशोधन द्वारा सूची III  (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 33  प्रतिस्थापित की गई है, ताकि वह अनुच्छेद 369  के समरूप हो सके ।
  • संविधान (चतुर्थ संशोधनअधिनियम, 1955 - निजी सम्पति को अनिवार्यतः अर्जित या अधिग्रहीत करने की राज्य की शक्तियों की फिर से ठीक-ठाक ढंग से व्याख्या करने और इसे उन मामलों से जहां राज्य की विनियमनकारी और प्रतिषेधात्मक विधियों के प्रवर्तन से किसी व्यक्ति को सम्पत्ति से वंचित किया गया। संविधान के अनुच्छेद 31क की परिधि का जमींदारी उन्मूलन जैसे आवश्यक कल्याणकारी कानूनों तक विस्तार करने तथा शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के समुचित आयोजन और देश के खनिज तथा तेल स्रोतों पर पूरा नियंत्रण करने के उद्देश्य से इस अनुच्छेद का संशोधन किया गया । नवम अनुसूची में छह अधिनियम भी शामिल किए गए। राज्य-एकाधिपत्यों के लिए उपबंध करने वाली विधियों के समर्थन में अनुच्छेद 305 में भी संशोधन किया गया।
  • संविधान (दसवां संशोधनअधिनियम, 1961- दादरा और नागर हवेली क्षेत्रा केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल करने और राष्ट्रपति की विनियम बनाने की शक्तियों के अधीन उसमें प्रशासन की व्यवस्था करने के लिए अनुच्छेद 240  और पहली अनुसूची को संशोधित किया गया।
  • संविधान (ग्यारहवां संशोधनअधिनियम, 1961 - इस संशोधन का उद्देश्य संशोधन के अनुच्छेद 66 और 71 का इस दृष्टि से संशोधन करना था जिससे उपयुक्त निर्वाचक मंडल में किसी खाली पद के आधार पर राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती न दी जा सके।
  • संविधान (बारहवां संशोधनविधेयक, 1962 -  इस संशोधन के द्वारा गोआ दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया और इस प्रयोजन के  लिए अनुच्छेद 240  का संशोधन किया गया।
  • संविधान (तेरहवां संशोधनअधिनियम 1962 -  इस संशोधन द्वारा भारत सरकार और नागा पीपुल्स कन्वेंश्न के बीच हुए एक करार के अनुसरण में नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध करने के लिए एक नया अनुच्छेद 371क जोड़ा गया।
  • संविधान (चैदहवां संशोधनअधिनियम, 1962 -  इस अधिनियम के द्वारा पांडिचेरी केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में प्रथम अनुसूची में जोड़ा गया और इस अधिनियम द्वारा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोआ, दमन और दीव और पांडिचेरी के केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए संसदीय विधि द्वारा विधानमंडलों का गठन किया जा सका ।
  • संविधान (सोलहवां संशोधनअधिनियम, 1963 - इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 19 का संशोधन किया गया जिससे भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता के हित में वाक और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य शांतिपूर्ण और शस्त्रारहित सम्मेलन तथा बनाने के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया गया। संसद और राज्य विधान मंडलों के निर्वाचन के लिए उम्मीदवारों द्वारा ली जाने वाली शपथ या अधिनियम का संशोधन करके उसमें यह शर्त भी शामिल की गई कि वे भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता को अक्षुण्ण रखेेंगे। इस संशोधनों का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है।
  • संविधान (सत्राहवां संशोधनअधिनियम, 1964 - अनुच्छेद 31क में आगे संशोधन किया गया, जिसके अनुसार निजी खेती के अधीन भूमि का अधिग्रहण तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि प्रतिकार के रूप में उसका बाजार मूल्य न दिया जाए। साथ ही इस संशोधन द्वारा उक्त अनुच्छेद में दी गई ‘सम्पदा’ की परिभाषा को विस्तार पूर्व तारीख से लागू किया गया। नवम् अनुसूची का भी संशोधन किया गया और उसमें 44 और अधिनियम शामिल किए गए।
  • संविधान (अठारहवां संशोधनअधिनियम, 1966 - इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 3 का यह स्पष्ट करने के लिए संशोधन किया गया कि ‘राज्य’ शब्द में केन्द्रशासित प्रदेश भी शामिल होगा और इस अनुच्छेद के अधीन नया राज्य बनाने की शक्ति में किसी राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के एक भाग को किसी दूसरे राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश से मिलाकर एक नया राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश बनाने की शक्ति को भी शामिल किया गया।
  • संविधान (उन्नीसवां संशोधनअधिनियम, 1966 - निर्वाचन न्यायाधिकरणों को समाप्त करने और उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव याचिकाओं की सुनवाई किए जाने के निर्णय के परिणामस्वरूप अनुच्छेद 324 का संशोधन इस परिणामिक परिवर्तन के लिए किया गया।
  • संविधान (बीसवां संशोधनअधिनियम, 1966 - यह संशोधन चन्द्रमोहन बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय के कारण आवश्यक हुआ जिसमें उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य में जिला न्यायाधीशों की कतिपय नियुक्तियों को निरस्त घोषित कर दिया था। एक नया अनुच्छेद 233क जोड़ा गया और राज्यपाल द्वारा की गई नियुक्तियों को विधिमान्य बना दिया गया।
  • संविधान (बाईसवां संशोधनअधिनियम, 1969 - यह अधिनियम असम राज्य में एक नए स्वायत्त राज्य मेघालय का निर्माण करने की दृष्टि से लागू किया गया।
  • संविधान (तेइसवां संशोधनअधिनियम, 1971 - अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा आंग्ल-भारतीयों के लिए संसद और राज्य विधानमंडलों में स्थानों के आरक्षण की अवधि दस वर्षों तक और बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 334 का संशोधन किया गया।
  • संविधान (चैबीसवां संशोधनअधिनियम, 1971 - यह संशोधन गोलकनाथ के मामले में उत्पन्न स्थिति के संदर्भ में पारित हुआ। तदनुसार इस अधिनियम द्वारा मूल अधिकारों सहित संविधान में संशोधन करने के संसद के अधिकारों के बारे में सभी प्रकार के संदेहों को दूर करने के लिए अनुच्छेद 13 और अनुच्छेद 368 में संशोधन किया गया।
  • संविधान (पच्चीसवां संशोधनअधिनियम, 1971 - इस संशोधन द्वारा बैंक राष्ट्रीयकरण के मामले को देखते हुए अनुच्छेद 31 में संशोधन किया गया। ‘मुआवजा’ शब्द की ‘पर्याप्त मुआवजा’ के रूप में न्यायिक व्याख्या को देखते हुए ‘मुआवजा’ शब्द के स्थान पर ‘रकम’ शब्द रखा गया।
  • संविधान (छब्बीसवां संशोधनअधिनियम, 1971 - इस संशोधन द्वारा भारतीय रियासतों के शासकों के ‘प्रिवीपर्स’ और विशेषाधिकारों को समाप्त किया गया। यह संशोधन माधव राव के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के परिणामस्वरूप पारित किया गया।
  • संविधान (सत्ताइसवां संशोधनअधिनियम, 1971 - यह संशोधन अधिनियम उत्तर-पूर्वी राज्यों के पुनर्गठन के कारण आवश्यक कतिपय बातों की व्यवस्था करने के लिए पारित किया गया। एक नया अनुच्छेद 239ख जोड़ा गया, जिसमें कुछ केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासन अध्यादेश घोषित करने के लिए समर्थ हो गए।
  • संविधान (अट्ठाइसवां संशोधनअधिनियम, 1972 - यह संशोधन भारतीय सिविल सेवा के सदस्यों के छुट्टी, पेंशन और अनुशासन के मामलों के संबंध में विशेषाधिकारों को समाप्त करने के लिए पारित किया गया।
  • संविधान (उनतीसवां संशोधनअधिनियम, 1972 - संविधान की नौवीं अनुसूची का संशोधन करके उसमें भूमि सुधार के बारे में केरल के दो अधिनियम शामिल किए गए।
  • संविधान (इकत्तीसवां संशोधनअधिनियम, 1973 - इस अधिनियम द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व की अधिकतम संख्या 500 से बढ़ाकर 525 तथा केन्दशासित प्रदेशों के सदस्यों की अधिकतम संख्या को 25 से घटाकर 20 किया गया।
  • संविधान (तैतीसवां संशोधनअधिनियम, 1974 - इस अधिनियम द्वारा संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार कानूनों को नवम् अनुसूची में शामिल किया गया।
  • संविधान (चैंतीसवां संशोधनअधिनियम, 1974 - इस अधिनियम द्वारा विभिन्न राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार कानूनों को नवम् अनुसूची में शामिल किया गया।
  • संविधान (छत्तीसवां संशोधनअधिनियम, 1975 - सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण सदस्य बनाने और उसे संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल करने और सिक्किम को राज्य सभा और लोक सभा में एक-एक स्थान देने के लिए यह अधिनियम बनाया गया। संविधान (पैंतीसवां संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़े गए अनुच्छेद 2क और दसवीं अनुसूची को हटाकर अनुच्छेद 80 और 81 का यथोचित संशोधन किया गया।
  • संविधान (सैंतीसवां संशोधनअधिनियम, 1975 - इस अधिनियम द्वारा केन्द्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा की व्यवस्था की गई, संविधान के अनुच्छेद 240 का भी संशोधन किया गया और यह उपबंध किया गया कि अन्य विधानमंडल वाले केन्द्रशासित प्रदेशों की तरह केन्द्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के लिए विनिमय बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग तब किया जा सकेगा, जब विधानसभा या तो भंग हो गई हो या उसके कार्य निलम्बित हों।
  • संविधान (अड़तीसवां संशोधनअधिनियम, 1976 - इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 123ए 213 और 352 में संशोधन करके यह उपबंध किया गया कि इन अनुच्छेदों में उल्लिखित राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक निर्णय को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
  • संविधान (उन्नतालीसवां संशोधनअधिनियम, 1975 - इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्राी और लोक सभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर ऐसे प्राधिकारी द्वारा विचार किया जा सकेगा, जो संसदीय कानून द्वारा नियुक्त किया जाए। इस अधिनियम द्वारा नवम् अनुसूची में कतिपय केन्द्रीय कानूनों को भी शामिल किया गया।
  • संविधान (इकतालीसवां संशोधनअधिनियम, 1976 - इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 316 में संशोधन करके राज्य लोक सेवा आयोगों और संयुक्त लोक सेवा आयोगों के सदस्यों की सेवा निवृत्ति की आयु को 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।
  • संविधान (बयालीसवां संशोधनअधिनियम, 1976 
    इस अधिनियम द्वारा संविधान में अनेक महत्वपूर्ण संशोधन किए गए ये संशोधन मुख्यतः स्वर्णसिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए थे।
    कुछ महत्वपूर्ण संशोधन समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्र की अखंडता के उच्चादर्शों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने, नीति-निर्देशक सिद्धांतों को अधिक व्यापक बनाने और उन्हें उन मूल अधिकारों, जिनकी आड़ लेकर सामाजिक-आर्थिक सुधारों को निष्फल बनाया जाता रहा है, पर वरीयता देने के उद्देश्य से किए गए। 
    इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा नागरिकों के मूल कर्तव्यों के संबंध में एक नया अध्याय जोड़ा गया और समाज-विरोधी गतिविधियों से, चाहे वे व्यक्तियों द्वारा हों या संस्थाओं द्वारा, निपटने के लिए विशेष उपबंध किए गए। 
    कानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या निर्धारित करने तथा किसी कानून को संवैधानिक दृष्टि से अवैध घोषित करने के लिए कम से कम दो तिहाई न्यायाधीशों की विशेष बहुमत व्यवस्था करके न्यायपालिका संबंधी उपबन्धों का भी संशोधन किया गया।
    उच्च न्यायालयों में अनिर्णीत मामलों की बढ़ती हुई संख्या को कम करने के लिए और सेवा, राजस्व, सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रगति के संदर्भ में कतिपय अन्य मामलों के शीघ्र निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्रा को सुरक्षित रखते हुए प्रशासनिक और अन्य न्यायाधिकरणों के निर्माण के लिए उपबन्ध किया गया। 
    अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालयों की रिट अधिकार क्षेत्रा में भी कुछ संशोधन किया गया।
  • संविधान (तेंतालीसवां संशोधनअधिनियम, 1977 - इस अधिनियम द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ संविधान(बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 के लागू होने से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रा में जो कटौती हो गई थी, उसे बहाल करने का उपबंध किया गया और तदनुसार उक्त संशोधन द्वारा संविधान में शामिल किए गए अनुच्छेद 32क, 131क, 144क, 226क, और 228क को इस अधिनियम द्वारा हटा दिया गया। इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 31घ को भी, जिसके द्वारा राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कतिपय कानून बनाने के लिए संसद को विशेष शक्तियां दी गईं थीं, हटा दिया गया।
  • संविधान (चवालीसवां संशोधनअधिनियम, 1978 - 
  • सम्पत्ति के अधिकार को, जिसके कारण संविधान में कईं संशोधन करने पड़े, मूल अधिकार के रूप में हटाकर केवल वैधिक अधिकार बना दिया गया। फिर भी यह सुनिश्चित किया गया कि सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटाने से अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने और उनके संचालन संबंधी अधिकारों पर कोई प्रभाव न पड़े।
  • संविधान के अनुच्छेद 352 का संशोधन करके यह उपबंध किया गया कि आपातस्थिति की घोषणा के लिए एक कारण ‘सशस्त्रा विद्रोह’ होगा। आंतरिक गड़बड़ी, यदि वह सशस्त्रा विद्रोह नहीं है तो आपातस्थिति की घोषणा के लिए आधार नहीं होगा। व्यक्तिगत स्वतन्त्राता के अधिकार को, जैसा कि अनुच्छेद 21 और 22 में दिया गया है, इस उपबंध द्वारा और अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। 
    इसके अनुसार निवारक नजरबंदी कानून के अधीन व्यक्ति को किसी भी स्थिति में दो महीने से अधिक अवधि के लिए नजरबंद नहीं रखा जा सकता, जब तक कि सलाहकार बोर्ड यह रिपोर्ट नहीं देता कि ऐसी नजरबंदी के पर्याप्त कारण हैं। इसके लिए अतिरिक्त संरक्षण की व्यवस्था इस अपेक्षा से की गई कि सलाहकार बोर्ड का अध्यक्ष किसी समुचित उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और बोर्ड का गठन उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशों के अनुसार किया जाएगा।
    विलम्ब से बचने की दृष्टि से अनुच्छेद 132ए 133 और 134 में संशोधन किया गया और एक नया अनुच्छेद 134क सम्मिलित किया गया, जिसके द्वारा यह उपबंध किया गया कि निर्णय, डिग्री, अन्तिम आदेश अथवा सजा सुनाए जाने के तत्काल बाद संबंधित पक्ष के मौखिक आवेदन के आधार पर अथवा यदि उच्च न्यायालय उचित समझे तो स्वयं ही उच्चतम न्यायालय में अपील करने के प्रमाण-पत्रा मंजूर किए जाने के प्रश्न पर विचार करे। 
    इस अधिनियम द्वारा किए गए अन्य संशोधन मुख्यतः आंतरिक आपात स्थिति अवधि के दौरान किए गए संशोधन के कारण संविधान में आई विकृतियों को दूर करने अथवा सुधार करने के लिए हैं।
  • संविधान (पैंतालीसवां संशोधनअधिनियम, 1980 - यह अधिनियम संसद तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और आंग्ल-भारतीयों के लिए स्थानों के आरक्षण संबंधी व्यवस्था को दस वर्षों की अवधि के लिए और बढ़ाने के उद्देश्य से पारित किया गया।
  • संविधान (सैंतालीसवां संशोधनअधिनियम, 1984 - इस संशोधन का उद्देश्य संविधान की नवम् अनुसूची में कतिपय भूमि सुधार अधिनियमों को शामिल करना है ताकि उन अधिनियमों को लागू किए जाने में रुकावट डालने वाली मुकदमेबाजी को रोका जा सके।
  • संविधान (अड़तालीसवां संशोधनअधिनियम, 1984 - संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन पंजाब राज्य के बारे में राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई उद्घोषणा तब तक एक वर्ष से अधिक समय तक लागू नहीं रह सकती, जब तक कि उक्त अनुच्छेद के खंड (5) में उल्लिखित शर्त पूरी नहीं होती। चूंकि यह महसूस किया गया है कि उक्त उद्घोषणा का लागू रहना आवश्यक है, इसलिए यह संशोधन किया गया है कि ताकि इस मामले में अनुच्छेद 356 के खंड (5)में उल्लिखित शर्तें लागू न होने पाएं।
  • संविधान (उन्नचासवां संशोधनअधिनियम, 1984 -  त्रिपुरा सरकार ने सिफारिश की थी कि संविधान की छठी अनुसूची के उपबन्धों को उस राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में लागू किया जाए। इस अधिनियम द्वारा किए गए संशोधन का उद्देश्य उस राज्य में काम कर रही स्वायत्तशासी जिला परिषद को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना है।
  • संविधान (पचासवां संशोधनअधिनियम, 1984 - संविधान के अनुच्छेद 33 द्वारा संसद को यह निर्धारित करने के लिए कानून बनाने की शक्ति दी गई है कि संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत्त किसी अधिकारी को सशस्त्रा सेनाओं अथवा लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रभारित बलों पर लागू करने में किस सीमा तक प्रतिबंधित अथवा निराकृत किया जाए ताकि उनके द्वारा कर्तव्यों के उचित निर्वहन और उनमें अनुशासन बनाए रखने को सुनिश्चित किया जा सके।
    अनुच्छेद 33 की परिधि में निम्नलिखित बातों को लाने के लिए इसका संशोधन प्रस्तावित हैः
    राज्य की अथवा उसके प्रभार या कब्जे में सम्पत्ति के संरक्षण के लिए प्रभारित बलों के सदस्य; अथवा
  • आसूचना अथवा प्रति-आसूचना के प्रयोजन के लिए राज्य द्वारा स्थापित ब्यूरो अथवा अन्य संगठनों में नियुक्त व्यक्ति अथवा
    किसी बल, ब्यूरो अथवा संगठन के प्रयोजन के लिए स्थापित दूर संचार प्रणालियों में नियुक्त अथवा उनसे संबंधित व्यक्ति।
    अनुभव से पता चला है कि इनके द्वारा कर्तव्यों के उचित निर्वहन तथा उनमें अनुशासन बनाए रखने को सुनिश्चित करने की आवश्यकता राष्ट्रीय हित में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • संविधान (इक्यावनवां संशोधनअधिनियम, 1984 - इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 330 में संशोधन किया गया ताकि मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों के लिए संसद में स्थान आरक्षित किए जा सकें। साथ ही स्थानीय जनजातियों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अनुच्छेद 332 में संशोधन करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में भी इसी तरह का आरक्षण किया गया।
  • संविधान (बावनवां संशोधनअधिनियम, 1985 - इस संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि यदि कोई संसद सदस्य या विधानसभा सदस्य दल-बदल करता है या दल द्वारा निकाल दिया जाता है, जिसने उसे चुनाव में खड़ा किया था या कोई निर्दलीय उम्मीदवार जो चुने जाने के छह महीने के अन्दर किसी राजनैतिक दल का सदस्य बन जाता है वह सदन का सदस्य होने के अयोग्य करार दिया जाएगा। इस अधिनियम में राजनैतिक दलों के विभाजन तथा विलय के संबंध में समुचित प्रावधान है।
  • संविधान (तिरेपनवां संशोधनअधिनियम, 1986  - 
  • यह भारत सरकार और मिजोरम सरकार द्वारा मिजोरम नेशनल फ्रंट के साथ 30 जून, 1986 को हुए मिजोरम समझौते को लागू करने के लिए बनाया गया है। 
    इसके लिए नया अनुच्छेद 371 जी. संविधान में जोड़ा गया है जिसमें अन्य बातों के अलावा मिजो लोगों के धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्परागत कानून और विधि के संबंध में संसद द्वारा कानून बनाने की मनाही है। 
  • दीवानी तथा फौजदारी संबंधी मामलों, जिन पर मिजो लोगों के परम्परागत कानून के अनुसार निर्णय लिया जाता है तथा जमीन के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में भी तब तक संसदीय कानून लागू नहीं होगा, जब तक मिजोरम की विधानसभा इसे मंजूरी नहीं दे देती। 
  • लेकिन यह धारा मिजोरम राज्य में संशोधन के जारी होने से पहले से लागू होने वाले केन्द्रीय कानूनों पर लागू नहीं होगी। नई धारा में यह भी व्यवस्था है कि मिजोरम विधानसभा में कम से कम चालीस सदस्य होंगे।
  • संविधान (पचपनवां संशोधनअधिनियम, 1986 - इसमें केन्द्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिए जाने के भारत सरकार के प्रस्ताव को लागू किया गया है। इसके लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 371 एच. जोड़ा गया है। अन्य बातों के अलावा इस अनुच्छेद में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को प्रदेश की अत्यंत नाजुक स्थिति के कारण कानून और व्यवस्था के क्षेत्रा में विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है। 
  • इसके अनुसार अपने दायित्वों को पूरा करने में राज्यपाल मंत्रिपरिषद से सलाह-मशविरा करके की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपना व्यक्तिगत निर्णय ले सकेंगे। यदि राष्ट्रपति चाहे तो राज्यपाल की यह जिम्मेदारी खत्म की जा सकेगी। 
  • नए अनुच्छेद के अनुसार यह भी व्यवस्था की गई है कि अरुणाचल प्रदेश राज्य की विधानसभा में तीस से कम सदस्य नहीं होंगे।
  • संविधान (छप्पनवां संशोधनअधिनियम, 1987 
  • भारत सरकार ने केन्द्रशासित प्रदेश गोआ, दमन व दीव के गोआ जिले में शामिल क्षेत्रा को गोआ राज्य के रूप में तथा उसी केन्द्रशासित प्रदेश के दमन व दीव में शामिल क्षेत्रा को दमन व दीव नामक एक नए केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में गठन का प्रस्ताव किया है।
  • इस संदर्भ में यह प्रस्तावित किया गया कि नए राज्य गोआ की विधानसभा में 40 सदस्य होंगे। केन्द्रशासित प्रदेश गोआ, दमन व दीव की मौजूदा विधानसभा में 30 निर्वाचित हैं तथा 3 मनोनीत सदस्य हैं। 
  • ऐसा विचार किया गया कि जब तक मौजूदा विधानसभा की पांच वर्ष की अवधि समाप्त होकर नए निर्वाचन न कर लिए जाएं, तब तक गोआ राज्य के लिए बनी नई विधानसभा में दमन व दीव का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्यों को शामिल न किया जाए। अतएव नए राज्य गोआ को ऐसी विधानसभा देने का निश्चय किया गया जिसमें 30 से कम सदस्य न हों। इस संशोधन के उक्त प्रस्ताव को प्रभावी बनाने के लिए अपेक्षित विशेष प्रावधान को प्रभावी बनाया।
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FAQs on महत्वपूर्ण संविधान संशोधन (भाग - 1) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. संविधान संशोधन क्या है?
उत्तर: संविधान संशोधन भारतीय संविधान के निर्माण में हुए परिवर्तनों को कहा जाता है। यह एक विधि या संशोधन प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और संविधान संशोधन की प्रक्रिया के बाद यह संविधान में शामिल किया जाता है।
2. संविधान संशोधन के लिए कितने अधिकारीक सुपरमेजोरिटी की आवश्यकता होती है?
उत्तर: संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को सुपरमेजोरिटी की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि संविधान संशोधन प्रस्ताव को दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास होना चाहिए।
3. संविधान संशोधन क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर: संविधान संशोधन की आवश्यकता तब होती है जब संविधान में किसी नई विचार या विधि को शामिल किया जाना हो या पहले मौजूदा विचार या विधि में संशोधन करने की जरूरत हो। यह देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के अनुरूप संविधान को अद्यतित और सुधारित करने का माध्यम होता है।
4. संविधान संशोधन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: संविधान संशोधन की प्रक्रिया निम्नानुसार होती है: 1. संविधान संशोधन का प्रस्तावनीय बिल तैयार किया जाता है। 2. बिल को लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाता है और इसके पास होने के बाद यह दूसरे सदन में भेजा जाता है। 3. दोनों सदनों में बिल को मंजूरी के लिए वोट होता है। इसके लिए दोनों सदनों में बहुमत की आवश्यकता होती है। 4. बिल को राष्ट्रपति को संविधान के लिए अभिमान्यता के लिए भेजा जाता है। 5. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद, बिल एक संविधानिक संशोधन के रूप में घोषित होता है।
5. संविधान संशोधन के लिए संविधान की कितनी अनुच्छेदों में परिवर्तन की आवश्यकता होती है?
उत्तर: संविधान संशोधन के लिए संविधान के किसी भी अनुच्छेद में परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है। संविधान के प्रमुख और महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में परिवर्तन करने के लिए संविधान संशोधन की प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
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