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आजादी के बाद का भारत
 -    1916 के कांगे्रस लीग पैक्ट ने संवैधनिक सुधरों की कांग्रेस -मुसलिम लीग स्कीम को जन्म दिया। इसमें मांग की गई कि प्रादेषिक विधयिकाओं के चार-पांच सदस्य ‘जनता द्वारा व्यापकतम संभव मताध्किार’ द्वारा चुने जाएं।
 -    कांग्रेस की पहल पर एक सर्वदलीय सम्मेलन मई 1928 में बुलाया गया। इसमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जो ‘‘भारत में संविधन के सि(ांत तय करे’’ 10 अगस्त 1928 को पेश नेहरू रिपोर्ट वास्तव में भारत के संविधन के मसौदे की रूपरेखा थी। इसमें एक ऐसी संसदीय प्रणाली की कल्पना की गई थी जिसमें पूर्ण जिम्मेदार सरकार, मिले-जुले मतदाता क्षेत्रा हों और अल्पसंख्यकों के लिए समयब( सीटों का आरक्षण हो।
 -    जून 1934 में कांग्रेस कार्यसमिति ने संवैधनिक सुधरों सम्न्बंधी ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश श्वेत पत्रा अस्वीकार कर दिया। साथ ही उसने तय किया कि ‘‘श्वेत पत्रा का एकमात्रा संतोषजनक विकल्प वयस्क मताध्किार या इसकी निकटतम प्रणाली के आधर पर निर्मित संविधन सभा द्वारा तैयार किया गया संविधन है’’।
 -    17 सितम्बर, 1937 को केन्द्रीय असेंबली में पेश एक प्रस्ताव में गवर्नमेंट आॅपफ इंण्डिया ऐक्ट 1935 की जगह संविधन सभा में निर्मित संविधन लागू करने की मांग की गई। इसे कांग्रेस के नेता एस. सत्यमूर्ति ने पेश किया। 
 -    सन् 1940 में वाइसराय लिनलिथगो ने ‘अगस्त प्रस्ताव’ पेश किया। इसका उद्देश्य यु( कार्य में भारत का सहयोग प्राप्त करना था। इसमें पहली बार स्वीकार किया गया कि नए संविधन के निर्माण का कार्य, पूरी तरह तो नहीं, लेकिन प्रमुखतः भारतीयों का होना चाहिए।
 -    मार्च 1942 में दक्षिण-पूर्वी एशिया में ब्रिटेन की हार हो गई। रंगून के पतन के तीन दिनों बाद ब्रिटेन के प्रधनमंत्राी विंस्टन चर्चिल ने सर स्टैपफर्ड क्रिप्स को भारत भेजने की घोषणा की।
 -    द्वितीय विश्व यु( की समाप्ति के तुरंत बाद मई 1945 में भारत सम्न्बंधी एक श्वेत-पत्रा जारी किया गया। इसके बाद जून-जुलाई 1945 में शिमला सम्मेलन हुआ जो असपफल रहा।
   -    जुलाई 1945 के ब्रिटिश चुनावों में लेबर पार्टी की जीत ने  नई संभावनाएं पैदा कर दीं। वाइसराय लाॅर्ड वैवेल ने 19 सितम्बर, 1945 को भारत सम्न्बंधी नई नीति घोषित की। 19 पफरवरी, 1946 को ब्रिटेन ने एक कैबिनेट मिशन भारत भेजने की घोषणा की, जिसका उद्देश्य आजादी तथा संविधन-निर्माण के प्रश्नों को हल करना था।
   -    कैबिनेट मिशन 24 मार्च, 1946 को भारत पहुंचा और उसने भारतीय नेताओं के साथ विस्तार से बातें कीं। समझौता नहीं हो सकने पर मिशन ने 16 मई, 1946 को अपनी स्कीम घोषित की। इसने स्वीकार किया कि संविधन बनाने की संस्था स्थापित करने का सबसे अच्छा जरिया वयस्क मताध्किार पर आधरित चुनाव हैं।
   -    संविधन सभा में 389 सदस्य प्रस्तावित थे। इनमें 296 ब्रिटिश भारत से और 93 भारतीय रजवाड़ों के राज्यों से थे। 
   -    भारत की संविधन सभा का प्रथम अध्विेशन 9 सितम्बर, 1946 को सुबह 11 बजे शुरू हुआ। व्यावहारिक दृष्टि से आजाद भारत का इतिहास इसी ऐतिहासिक तारीख से शुरू होता है। 
   -    15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के साथ संविधान सभा एक सार्वभौम संस्था बन गई, और साथ ही नए राज्य के लिए एक विधयिका भी। इस पर संविधन बनाने तथा सामान्य कानून बनाने की भी जिम्मेदारी थी।
   -    प्रमुख संवैधनिक विशेषज्ञ अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर  ने, जिन्होंने संविधन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, कहा:  इस असेंबली ने सामान्य व्यक्ति और जनतांत्रिक शासन की अंतिम सपफलता में बड़े विश्वास के साथ वयस्य मताध्किार का सिद्धांत स्वीकार किया है....... वयस्य मताध्किार का एकमात्रा विकल्प ग्राम समुदाय या स्थानीय निकायों पर आधरित अप्रत्यक्ष चुनाव हैं .... इसे उचित नहीं पाया गया।
    -    आॅस्टिन ने वयस्क मताध्किार के आधर पर प्रत्यक्ष चुनाव को ‘‘ऐसा शंख’’ बताया ‘‘ जिसकी आवाज ने सोते भारत को जगा दिया या कम से कम उसमें हलचल पैदा कर दी’’।26
    -    संविधन का मूल दर्शन या प्रेरक विचार इसकी भूमिका में पाया जाता है। यह नेहरू द्वारा तैयार उद्देश्यों से संबंध्ति प्रस्ताव पर आधरित था। इसे असेंबली के प्रथम अध्विेशन में 13 दिसम्बर, 1946 को पेश किया गया और 22 जनवरी, 1947 को स्वीकृत किया  गया।
    -    यह आम तौर पर माना जाता है कि अदालतों ने 1971 तक मूलभूत अध्किारों को निर्देशक सिद्धांतों से अध्कि महत्व दिया है। लेकिन इंदिरा गांधी द्वारा 1971 तथा 1976 में लाए गए 25वें तथा 42 वें संशोध्नों के जरिए निर्देशक तत्वों को प्रधनता दी गई। 
    -    लेकिन 1980 में सुप्रीम कोर्ट ने मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारतीय संघ के मुकद्दमे में महत्वपूर्ण पफैसला सुनाया। इसके अनुसार मूलभूत अध्किार एवं निर्देशक तत्व, दोनों ही समान महत्व के थे और एक के बिना पर दूसरे को छोड़ा नहीं जा सकता था। ;ए.आई.आर. 1980 एस. सी 1789)। 
    -    संविधन भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, ध्र्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक गणतंत्रा घोषित करता है। हालांकि ‘ध्र्मनिरपेक्ष’ और  ‘समाजवादी’ शब्द 1976 में 42वें संशोध्न के जरिए जोड़े गए थे, संविधन की आत्मा ध्र्मनिरपेक्ष थी।
    -    यह माना गया है कि किसी भी संविधन की एक मूल रचना होती जिसे बदला नहीं जा सकता है। यह बात 1973 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण बेेंच ने केशवानंद भारती केस में स्पष्ट की। 
    -    इंदिरा गांधी के शासन काल में आपातकाल के दौरान 42वें संशोध्न ;1946द्ध में घोषणा की गई कि संसद द्वारा संशोध्न करने के अध्किार पर ‘‘ कोई सीमा नहीं होगी’’ और साथ ही किसी भी संविधन संशोध्न एक्ट पर ‘‘ किसी भी कोर्ट में किसी भी आधर पर चुनौती नहीं दी जा सकती’’। 
    -    लेकिन मिनर्वा मिल्स बनाम भारतीय संघ के मुकद्दमे में सुप्रीम कोर्ट ने संविधन के मूल चरित्रा बरकरार रखने पर पुनः जोर दिया। उसके विचार में ‘‘न्यायिक समीक्षा’’ एक ऐसा मूल पक्ष है जो संध्विान के संशोध्न के जरिए भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। वर्तमान स्थिति यह है कि यदि कोर्ट को यह विश्वास हो जाए कि संशोध्न संविधन के मूल चरित्रा को प्रभावित करेगा तो यह खारिज कर दिया जाएगा।
    -    ज्ञानी जैल सिंह ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जिन्होेेंने कोई बिल संसद को वापस कर दिया था। साथ ही उन्होंने प्रधनमंत्राी को यह भी लिखा कि उन्हें महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी नहीं दी जा रही है। इसमें उन्हें यह देखने की संवैधनिक जिम्मेदारी निभाने में दिक्कत हो रही है कि सरकार संविधन की धराओं और आत्मा के अनुरूप चालई जा रही थी। 
    -    1978 में किए गए 44वें संशोध्न के अनुसार यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति तभी आपातकाल की घोषणा कर सकता है जब इस संबंध् में मंत्रिमंडल का लिखित निर्णय उन्हें प्राप्त हो। आपातकाल के दौरान भी उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह पर ही काम करना होगा। 
    -    धरा 65 के अनुसार उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में काम करने लगते हैं। ऐसा दो मौकों पर हुआ -जब डाॅ. जाकिर हुसैन और पफाखरुद्दीन अली अहमद की अपने कार्यकाल में ही मृत्यु हो गई, तो उपराष्ट्रपति वी.वी गिरी और बी.डी. जत्ती को कार्यभार संभालना पड़ा।
    -    लोक सभा का कार्यकाल सिपर्फ एक ही बार, 1976 में, एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था, जब प्रधनमंत्राी इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी।
    -    मतदाता-क्षेत्रा भौगोलिक आधर पर होती है, जिनका एक सदस्यीय प्रतिनिध्त्वि होता है। ये क्षेत्रा राज्यों में जनसंख्या के अनुपात में बनाए जाते हैं। इसमें से कुछ जनजातियों एवं आदिवासियों के लिए राज्य की जनंसख्या में उनके अनुपात में सुरक्षित रखी जाती हैं।
    -    इस प्रकार, यदि आंध््र प्रदेश की जनसंख्या का 40 प्रतिशत सीटों पर सिपर्फ जनजातियांे के उम्मीदवार और 10 प्रतिशत पर सिपर्फ आदिवासी उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं।
    -    लोकसभा की अध्कितम सीटें 552 होती हैं। इनमें से 550 भौगोलिक मतदाता-क्षेत्रा हैं, और दो ऐंग्लो इंडियन समुदाय के मनोनीत सदस्य होते हैं।
    -    सभी राज्यों में असेंबलियां ;विधनसभाद्ध होती हैं। जिनमें 500 से अध्कि और 60 से कम सदस्य नहीं होने चाहिए। 
    -    1959 और 1962 के बीच सारे राज्य सरकारों ने पंचायती राज कानून लागू किए। लेकिन कुल मिलाकर पंचायती राज के कार्य संतोषजनक नहीं रहे हैं। 
    -    पंचायत के इस संबंध् में समस्याओं का अध्ययन करने के लिए कई समितियों का गठन किया गया जिन्होंने बहुमूल्य सुझाव दिए- जैसे अशोक मेहता समिति 1978, जी.वी.के. राव समिति 1985, और एल. एम. समिति 1986 ।
    -    राजीव गांधी के नेतृत्व में 1988 में नई पहल की गई। पी. के. थुगोन के नेतृत्व में गठित एक समिति ने सुझाव दिया कि पंचायती राज संस्थाओं को संवैधनिक रूप से मान्यता दी जाए। 
    -    1989 में संविधन में 64वें संशोध्न संबंधी बिल संसद में पेश किया गया। दुर्भाग्य से राज्यसभा में बहुमत प्राप्त नहीं था। विरोधी पार्टियों को संदेह था कि यह कदम राज्यों के अध्किार छीनने का एक और तरीका है। इसलिए उन्होंने इसे पास नहीं होने दिया, और इस  प्रकार एक अच्छा कानून नहीं बन पाया।
    -    आखिरकार संविधन में 73वें एवं 74वें संशोध्न बिलों को 1993 में पास करवाने का जिम्मा कांगे्रस के हिस्से आया। 
    -    जनवरी 1950 में सुप्रीम कोर्ट के अस्तित्व में आने से पहले भारत में पफेडरल कोर्ट हुआ करता था। इससे आगे की अपीलें ब्रिटेन में प्रिवी काउंसिल की न्यायायिक समिति के समझ की जा सकती थीं। 
    -    प्रिवी काउंसिल का अध्किार क्षेत्रा अक्टूबर 1949 में समाप्त कर दिया गया और पफेडरल कोर्ट की जगह सुप्रीम कोर्ट ने ले ली। 
    -    परंपरागत रूप से चीपफ जस्टिस हमेशा की सुप्रीम 

 

                                               राष्ट्रीय आंदोलन
  -     भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन प्रायः विश्व इतिहास का सबसे  बड़ा जन आंदोलन था।
  -     1919 के बाद इस जन आंदोलन का निर्माण इस धरणा के इर्द-गिर्द हुआ कि आम जनता को राजनीति और उनके अपने मुक्ति प्रयासों में, स्वयं सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और यह उन्हें निभानी ही पडे़गी। 
  -     1985 में अपनी स्थापना से ही राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुखतम राजनीतिक घटक-भारतीय कांग्रेस को जनवादी आधरों पर संगठित किया था।
  -     1920 में असहयोग आंदोलन शुरू करने का निर्णय, 1886 मतों से लिया गया, जबकि उसमें 884 लोगों ने गांधीजी के प्रस्ताव के विपक्ष में मतदान किया था। 
  -     1929 के लाहौर अध्विेशन में गांधीजी से जब सविनय अवज्ञा आंदोलन की बागडोर संभालने का आग्रह किया गया जो उन्होंने यह शर्त रखी कि पहले वायसराय की टेªन पर आंतकवादी क्रांतिकारियों द्वारा बम फेंके जाने की घटना की निंदा करते हुए अध्विेशन एक प्रस्ताव पारित करे। 
  -     तब भी यह प्रस्ताव 794 के मुकाबले मात्रा 942 मतों से पारित किया गया था। 
  -     द्वितीय विश्वयु( के दौरान यु( की तैयारियों में सहयोग के लिए गांधीजी के विचारों को कांग्रेस द्वारा जनवरी 1942 में अस्वीकार कर दिया गया था। 
  -     लोकमान्य तिलक ने घोषणा की कि ‘‘प्रेस की स्वतंत्राता और बोलने की स्वतंत्राता ही एक राष्ट्र को जन्म देता और इसका पालन-पोषण करता है।’’ 
  -     1922 में गांधीजी ने लिखा फ्सबसे पहले हमें बोलने और संगठित होने का अध्किार हासिल करना चाहिए ....... इन बुनियादी अध्किारों की रक्षा हमें जीवन देकर भी करनी चाहिए।य् 
  -     पिफर 1939 में गांधीजी ने कहा, ‘‘ अहिंसा नागरिक अध्किार स्वराज की दिशा में पहला कदम है। यह राजनीतिक और सामाजिक जीवन का उदमद है। यह आजादी का आधर है। इसे विरल करने या इससे समझौता करने की कोई जगह नहीं है।
  -     नेहरू ने 1936 में लिखा, फ्यदि नागरिक अध्किारों का दमन होता है, तो एक राष्ट्र अपनी जीवंतता खो देता है और किसी महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए अक्षम हो जाता है।य् 
  -     1931 के करांची अध्विेशन द्वारा पारित मौलिक अध्किार संबंधी प्रस्ताव ने, बोलने एवं प्रेस के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता संगठित हाने की स्वतंत्राता की गारंटी की। 
  -     1928 में लोक सुरक्षा विधायक एवं व्यापारिक विवाद विधेयक जिसका मुख्य उद्देश्य टेªड युनियनों, वामपंथियों और कम्यूनिष्टों को कुचल डालना था, उसका विरोध् केन्द्रीय विधनमंडल में केवल मोतीलाल नेहरू ने किया बल्कि मदन मोहन मालवीय और एम. आर. जयकर जैसे कट्टरपंथियों में भी किया।
  -     नेहरू ने 1946 में कहा आत्मनिर्भरता फ्अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से इनकार नहीं करती, उसे तो प्रोत्साहित करना ही चाहिए, परंतु आर्थिक साम्राज्यवाद से सुरक्षा का भी हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए।य् 
  -     1930 के दशक में गांधीजी ने बार-बार दुहराया कि वे सभी मशीन उद्योगों के विरु( नहीं हैं बल्कि सिपर्फ उनके विरु( हैं जो मानव श्रम को विस्थापित करती हैं।
  -     1942 में गांधीजी ने नेहरू को उनके आधुनिक विज्ञान और तकनीक के आधर पर उद्योग और कृषि के विकास के प्रति पूर्णतः समर्पित होने के बावजूद अपना उत्तराध्किारी माना।
  -     गांधीजी ने 1942 में यह घोषणा किया कि फ्जमीन उसकी है जो उस पर काम करता है और किसी की भी नहीं।य् 
  -     गांधीजी ने 1942 में कहा फ्ध्र्म एक निजी मामला है जिसका राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिएय्। 
  -     1936 के लखनउफ अध्विेशन के अपने अध्यक्षीय भाषण में नेहरू ने कहा फ्हम आज दुनिया को दो विशाल समुहों में विभाजित देख रहे हैं- साम्राज्यवादी और पफासीवादी एक तरपफ तथा समाजवादी तथा राष्ट्रवादी दूसरी तरपफ ....... अनिवार्यतः हम अपना पक्ष दुनिया की प्रगतिशील ताकतों के साथ देख रहे हैं। जो पफासीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों के विरु( खडे़ हैंय्। 

 


 -    1916 के कांगे्रस लीग पैक्ट ने संवैधनिक सुधरों की कांग्रेस -मुसलिम लीग स्कीम को जन्म दिया। इसमें मांग की गई कि प्रादेषिक विधयिकाओं के चार-पांच सदस्य ‘जनता द्वारा 

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FAQs on आजादी के बाद का भारत (भाग - 1) - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. आजादी के बाद का भारत का इतिहास क्या है?
उत्तर: आजादी के बाद का भारत का इतिहास उन सभी घटनाओं, नीतियों और प्रगति की कहानी है जो भारतीय स्वतंत्रता के बाद से अब तक हुई है। इसमें शामिल हैं विभिन्न योजनाएं, संविधान, राजनीतिक घटनाएं, आर्थिक विकास, सामाजिक परिवर्तन और वैज्ञानिक प्रगति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे।
2. आजादी के बाद का भारत में UPSC परीक्षा क्या होती है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय सरकार के लिए सिविल सेवा नियुक्तियों का नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार है। यह परीक्षा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और अन्य कई पदों के लिए भर्ती का मानक मानी जाती है।
3. आजादी के बाद के भारत में कौन-कौन से महत्वपूर्ण इतिहासी घटनाएं हुईं?
उत्तर: आजादी के बाद के भारत में कई महत्वपूर्ण इतिहासी घटनाएं हुईं। कुछ उदाहरणों में शामिल हैं: संविधान का निर्माण, भारत-पाकिस्तान विभाजन, गोल्डन ट्रायंगल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना, विज्ञान क्षेत्र में महत्वपूर्ण खोजों की गईं और आर्थिक विकास के कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।
4. आजादी के बाद के भारत में क्या-क्या प्रगति हुई है?
उत्तर: आजादी के बाद के भारत में कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है। कुछ मुख्य क्षेत्रों में शामिल हैं: विज्ञान और तकनीकी, आर्थिक विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और ग्रामीण विकास। भारत ने अपने विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक और तकनीकी में बड़ी प्रगति की है और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
5. आजादी के बाद के भारत में कौन-कौन सी योजनाएं शुरू की गईं हैं?
उत्तर: आजादी के बाद के भारत में कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की गईं हैं। कुछ उदाहरणों में शामिल हैं: जनधन योजना, मुद्रा योजना, स्वच्छ भारत अभियान, आयुष्मान भारत, डिजिटल इंडिया, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और प्रधानमंत्री आवास योजना। ये योजनाएं भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई हैं।
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