गांधीजी ने अगस्त 1957 में यह घोषित किया कि कश्मीर की आकांक्षाओं के अनुरूप भारत और पाकिस्तान किसी में शामिल होने के लिए स्वतंत्रा हैं।
- भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापाक यु( के खतरे को देखते हुए भारत सरकार 30 दिसम्बर, 1947 को मांउटबेंटन की सलाह पर कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भेजने के लिए तैयार हो गई जिसमें पाकिस्तान द्वारा अतिक्रमण किए गए क्षेत्रों को खाली करवाने का आग्रह किया गया थ।
- 1951 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें पाक अध्किृत कश्मीर से पाकिस्तान की सेनाओं को वापस हटा लिए जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में एक जनमत संग्रह का प्रावधान था। यह प्रस्ताव भी विपफल हो गया क्योंकि पाकिस्तान ने आज के तथाकथित आजाद कश्मीर से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने से इनकार कर दिया।
- उस समय से आज तक भारत और पाकिस्तान के दोस्ताना संबंधें की राह में सबसे बड़ी बाध कश्मीर ही बनी हुई है।
- 13 सितम्बर, 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई। तीन दिनो के बाद निजाम ने समर्पण कर दिया और नवम्बर में भारतीय संघ में विलय को स्वीकार कर लिया।
- भारत सरकार ने उदारता दिखाई और निजाम को कोई सजा नहीं दी। उसे राज्य के औपचारिक शासक या राजप्रमुख के रूप में बहाल रखा गया और 50 लाख रुपए की प्रिवी पर्स के साथ ही उसे अपनी विशाल संपत्ति का ज्यादातर भाग अपने पास रखने की अनुमति दे दी गई।
- प्रफांसिसी शासन कहीं अध्कि न्यायसंगत था और एक लंबी संधिवार्ता के बाद पांडिचेरी तथा अन्य प्रफांसिसी अध्पित्यों को 1954 में भारत को सौंप दिया।
- 17 दिसम्बर, 1961 की रात गोवा में भारतीय सेना को प्रवेश करने का आदेश जारी किया गया। गोवा के गवर्नर -जनरल ने बिना किसी यु( के तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया।
- 1951 तक पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के पुर्नवास की समस्या को पूरी तरह निबटा दिया गया था। और शरणार्थी भी शेष भारतीय समाज के साथ एकीकृत हो चुके थे।
- पूर्वी बंगाल में 1947 और 1948 के आरंभिक वर्षों में हिन्दू बड़ी संख्या में रुके रहे। परंतु जब वहां रुक-रुक कर दंगे लगातार भड़कने लगे तो साल दर साल करीब 1971 तक शरणार्थियों की धीमी रफ्रतार से आगमन जारी रहा।
- जनवरी 1948 में भारत सरकार ने गांधीजी द्वारा अनशन के बाद विभाजित संपत्ति के रूप में 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान को अदा कर दिया हालांकि यह डर बना हुआ था कि इस पैसे का कश्मीर में सैनिक कार्यवाइयों को वित्तीय सहायता देने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
- 8 अप्रैल, 1950 को भारत और पाकिस्तान के प्रधनमंत्रियों के बीच अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के सवाल को सुलझाने के लिए एक संधि हुई जिसे ‘‘नेहरू-लियाकत समझौता’’ के नाम से जाना जाता है।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने पफरवरी 1948 में भारत में आम क्रांति की शुरूआत हो जाने की घोषणा कर दी और नेहरू सरकार को साम्राज्यवाद और अर्धमंती शक्तियों का एजेंट घोषित कर दिया।
- इसने अनेक क्षेत्रों में उग्र जनांदोलन आरंभ कर दिया जिसमें सबसे प्रमुख 9 मार्च 1949 को समूचे देश में रेलवे हड़ताल आयोजित करने की कोशिश थी।
- नेहरू ने 1952 में कहा, ‘‘सबसे महत्वपूर्ण पहलू, सर्वोच्च पहलू, भारत की एकता है।’’ एक दूसरे मौके पर उन्होंने टिप्पणी की, ‘‘भारत की एकता का पालन-पोषण मेरा पेशा है।’’ हम एक बार पिफर उन्हें उ(ृत कर सकते हैंः ‘‘व्यक्तिगत रूप से मैं महसूस करता हूं।’’ उन्होंने 1957 में कहा, ‘‘सबसे बड़ा दायित्य न केवल भारत का आर्थिक विकास है बल्कि उससे भी अध्कि भारत के लोगों का मानसिक और भावनात्मक एकीकरण का है।’’
- 1950 में भारतीय संविधन ने 14 प्रमुख भाषाओं को पहचाना और इसके अतिरिक्त सैकड़ों अन्य ऐसी भाषाएं थीं जिनके बोलने वालों की संख्या दस लाख से उफपर रही होंगी।
- 1961 की जनगणना में 1949 भाषाओं को मातृभाषा के रूप में दर्ज किया गया था।
- 1947 के बाद की सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियां- समाजवादी पार्टी, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी, जनसंघ और बाद में स्वतंत्रा पार्टी, ये सभी अपने संगठन और विचारधरा की दृष्टि से अखिल भारतीय चरित्रा की थीं और देश की एकता के लिए हमेशा तैयार थीं।
- आजाद भारत के पहले बीस वर्षों में सबसे बड़ा विभाजनकारी मुद्दा भाषा समस्या थी। कई लोगों में यह डर समा गया था कि देश की राजनीतिक और सांस्कृतिक एकता खतरे
में है।
- भाषा के मुद्दे पर आंदोलन ने हिन्दी विरोध् का स्वरूप अपना कर एक विकराल रूप धरण कर लिया और देश के हिन्दी और अ-हिन्दी भाषी प्रदेशों के बीच टकराव की स्थिति पैदा होने लगी।
- राष्ट्रीय भाषा के मुद्दे का समाधन तो संविधन द्वारा सभी प्रमुख भाषाओं को ‘भारत की भाषाएं’ अथवा भारत की राष्ट्रीय भाषाएं मानकर सुलझा लिया गया। परंतु मामला वहीं समाप्त नहीं हो गया, क्योंकि देश का अध्किारिक कामकाज इतनी भाषाओं में नहीं किया जा सकता था।
- 1964 में नेहरू ने लिखा, ‘‘ अपनी जगह पर अंग्रेजी को मैं बहुत प्यार करता हूं, पर यदि यह वो स्थान छीनना चाहे, जो इसका नहीं है, तो मैं इसका घोर विरोध्ी हूं। निश्चय की अंग्रेजी आज विश्व भाषा है। अतः मैं इसे दूसरी वैकल्पिक भाषा के रूप में स्थान देता हूं।’’ नेहरू ने इन्हीं विचारों को 1937 के अपने लेख ‘आॅन द क्वेशचन आॅपफ लैंग्वेज’ तथा संविधन सभा की बहस में प्रतिबिम्बित किया था।
- राजभाषा अथवा संपर्क भाषा पद के लिए दूसरा दावेदार हिन्दी या हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय आंदोलन खासकर अपने परवर्ती जनांदोलनों के दौरान यह भूमिका निभा चुकी थी।
- हिन्दी की इस भूमिका को अहिन्दी भाषी प्रदेश के नेताओं ने भी स्वीकार लिया था क्योंकि यह भाषा पूरे देश में सबसे अध्कि बोली और समझी जाती थी।
- लोकमान्य तिलक, गांध्ीजी, सी. राजगोपालाचारी, सुभाष चन्द्र बोस और सरदार पटेल कुछ महत्वपूर्ण हिन्दी समर्थक थे।
- राष्ट्रीय आम सहमति को प्रतिबिंबित करते हुए 1928 मे नेहरू रिपोर्ट ने यह स्थापित किया था कि देवनागरी अथवा उर्दू लिपिकों में लिखा हिन्दुस्तानी भारत की आमभाषा होगी, परंतु कुछ समय के लिए अंग्रेजी का उपयोग जारी रहेगा।
- पाकिस्तान ने निर्माताओं ने उर्दू को मुसलमानों और पाकिस्तान की भाषा के रूप में प्रस्तुत किया।
- कांग्रेस विधयी दल ने हिन्दुस्तानी के विरु( और हिन्दी के पक्ष में 77 के मुकाबले 78 वोटों से निर्णय लिया। हालांकि नेहरू और आजाद हिन्दुस्तानी के पक्ष में लड़ते रहे।
- हिन्दी गुट भी कुछ समझौता करने को मजबूत हुआ और इसने मान लिया कि हिन्दी राजभाषा होगी, राष्ट्रीय भाषा नहीं।
- संविधन ने यह प्रावधन दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय अंकों के साथ भारत की राजभाषा होगी। अंग्रेजी का सभी सरकारी कामकाजों के लिए 1965 तक उपयोग किया जाएगा। इसके बाद इसका स्थान हिन्दी ले लेगी।
- हालांकि संसद को 1965 के बाद भी खास कार्यों के लिए अंग्रेजी के प्रयोग की अवधि बढ़ा देने की शक्ति दी गई थी।
- 1955 में संविधन के प्रावधनों के अनुरूप बनी राजभाषा आयोग की रिपोर्ट 1956 में प्रस्तुत की गई, जिसमें यह सलाह दी गई थी कि धीरे धीरे सरकारी विभागों में अंग्रेजी की जगह हिन्दी अभी से लागू करने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि 1965 में हिन्दी पूर्णतः अंग्रेजी का स्थान ले ले।
- इस संयुक्त समिति की संस्तुतियों को लागू करने के लिए राष्ट्रपति ने 1960 में एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार 1965 के बाद हिन्दी मुख्य राजभाषा होगी परंतु अंग्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में बिना किसी प्रतिबंध् के बनी रहेगी।
- मार्च 1958 में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचारिणी सभा के पूर्व अध्यक्ष सी. राजगोपालाचारी ने घोषित किया, ‘‘हिन्दी अहिंदी लोगों के लिए ठीक उतनी ही विदेशी है जितनी कि हिन्दी समर्थकों के लिए अंग्रेजी।’’
- 1957 में डाॅ. लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ ने एक उग्र आंदोलन शुरू किया जो करीब-करीब दो वर्षों तक अंग्रेजी की जगह हिन्दी को तत्काल लागू करने के लिए चलता रहा।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अनुसूचित किया कि 26 जनवरी, 1965 के बाद सभी नियमित चिट्ठियां हिन्दी मे जारी की जाएंगी और सिपर्फ महत्वपूर्ण परिपत्रा अंग्रेजी अनुवाद के साथ भेजे जाएंगे।
- आर्थिक संकटों और 1967 के चुनावों में कांग्रेस की कमजोर हुई स्थिति के बावजूद इंदिरा गांधी ने राजभाषा अध्निियम, 1963 को संशोध्ति करने के लिए 27 नवम्बर 1967 को विधेयक प्रस्तुत किया।
- लोक सभा ने इस विधेयक को 16 दिसम्बर, 1967 को 41 के मुकाबले 205 मतों से पारित कर दिया। इस अध्निियम ने सितम्बर 1959 में नेहरू द्वारा दिए गए आश्वासन को स्पष्ट एवं ठोस कानूनी स्वरूप प्रदान किया।
- इसमें प्रावधन किया गया था कि हिन्दी के अलावा सहायक भाषा के रूप में केन्द्रीय सरकार के कामकाज एवं केन्द्र तथा अहिन्दीभाषी राज्य के बीच संवाद के लिए अंग्रेजी तब तक प्रयोग में लाई जाएगी, जब तक कि अहिंदीभाषी राज्य इसे चाहें और इस संदर्भ में अहिंदीभाषी राज्यों को अंतिम निर्णय का संपूर्ण अध्किार प्राप्त होगा। इस प्रकार हमेेशा के लिए द्विभाषाई नीति स्वीकार ली गई।
- 1971 की जनगणना के अनुसार कुल आबादी में भाषाई अल्पसंख्यकों का अनुपात केरल में 4 प्रतिशत से लेकर कर्नाटक में 34.5 प्रतिशत तथा आसाम में 3.9 प्रतिशत से लेकर जम्मू कश्मीर में 44.5 प्रतिशत तक है।
- 1951 में करीब दो करोड़ 33 लाख लोग उर्दू बोलने वाले थे, उर्दू बोलने वालों की संख्या राज्य की पूरी जनसंख्या के अंदर कापफी देखी जा सकती है जैसे उत्तर प्रदेश (10.5), बिहार (8.8), महाराष्ट्र (7.2), आंध्रं प्रदेश (7.5), कर्नाटक (9)।
- 1979-80 के दौरान मात्रा 3.68 प्रतिशत प्राथमिक स्कूूल के छात्रों को उर्दू माध्यम से शिक्षा मिल रही थी जबकि 1981 में उर्दू बोलने वालों की संख्या 10.5 प्रतिशत थीं।
- आंध्रं प्रदेश ने उर्दू को 1968 से ही तेलंगाना क्षेत्रा की अतिरिक्त भाषा के रूप में मान्यता प्रदान कर रखा है।
- 1971 की जनगणना ने 400 से उफपर जनजातीय समुदायों को दर्ज किया जिनमें करीब 3 करोड़ 80 लाख लोग थे, जो भारतीय आबादी के 6.9 प्रतिशत तक बैठते थे।
- नेपफा को आसाम के सीमावर्ती हिस्से से अलग कर 1948 में बनाया गया था। नेपफा की स्थापना आसाम के कार्य क्षेत्रा से बाहर केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में हुआ और इसे एक विशेष प्रशासन के तरह रखा गया।
- नेपफा का नया नाम अरुणाचल प्रदेश रखा गया और 1987 में इसे अलग राज्य का दर्जा दे दिया गया।
- अलग राज्य की मांग ने तब जोर पकड़ना शुरू किया जब 1960 में आसाम के राजनीतिक नेतृत्व ने असमिया को राज्य की एकमात्रा राजभाषा बनाने का कदम उठाया।
- 1960 में पहाड़ी क्षेत्रों की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने एकजुट होकर आॅल पार्टी हिल लीडर कांप्रफेंस बनाया और भारतीय संघ के अंदर अलग राज्य की मांग दुहराई।
- अतंतः 1969 में एक संविधन संशोध्न के माध्यम से ‘राज्य के अंदर राज्य’ के रूप में आसाम के अंदर मेघालय राज्य बनाया गया जिसे कानून और व्यवस्था, जो आसाम सरकार के अधीन ही रहा, को छोड़कर सभी मामलों में पूरी स्वायत्तता प्रदान कर दी गई।
- बाद में पूरे पूर्वोत्तर प्रांत के पुनर्गठन के एक अंग के रूप में 1972 में मेघालय एक अलग प्रांत बनाया गया, जिसके अंदर गारो, खासी और जैयतियां जनजातियां शामिल की गईं।
- नागा लोग आसाम बर्मा से लगी पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित नागा पहाड़ियों के निवासी थे। 1961 में उनकी आबादी करीब 5 लाख थी जो भारतीय आबादी के 0.01 प्रतिशत बैठते थे। इसके अंदर कई अलग-अलग कबीले थे जो अपनी अलग भाषाएं बोलत थे।
- 1955 में इन अलगाववादी नागाओं ने स्वतंत्रा सरकार के गठन की घोषणा कर दी और हिसंक विद्रोह आरंभ कर दिया।
- दरअसल 1957 के मध्य में जब सशस्त्रा विद्रोह की कमर एक बार तोड़ दी गई, तो अपेक्षाकृत नरमपंथी नागा नेतागण डाॅ. इमकोनग्लिबा ओ के नेतृत्व में सामने आए। उन्होंने भारतीय संघ के अंदर नागालैण्ड राज्य के निर्माण के लिए समझौता किया।
- भारत सरकार ने उनकी मांग को एक के बाद एक कई कदम उठाकर स्वीकार कर लिया। और अंततः 1963 में नागालैण्ड राज्य अस्तित्व में आया है।
- नागालैण्ड से मिलती-जुलती समस्या कुछ वर्षों के बाद पूर्वाेत्तर के मीजो स्वायत्त जिले में खड़ी हो गई।
- 1959 के अकाल के दौरान, आसाम सरकार के राहत कार्यों से उत्पन्न भयानक असंतुष्टि और 1961 में आसाम राजभाषा विधेयक का अनुमोदन किए जाने के कारण वहां लालडेंगा की अध्यक्षता में मीजो नेशनल प्रफंट का गठन हुआ।
- मार्च 1966 को मीजो नेशनल प्रफंट ने भारत से अलग होकर अपनी स्वतंत्राता की घोषणा कर दी।
- 1973 में अपेक्षाकृत कम उग्रवादी मीजो नेताओं ने जब अपनी मांग में भारी कटौती कर दी, उसके बाद भारत संघ के अंदर अलग मिजोरम राज्य की उनकी मांग
स्वीकार कर ली गई।
- मीजो जिलों को आसाम से अलग कर मिजोरम को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
- अंततः 1986 में एक समझौता हो गया। लालडेगा और मीजो नेशनल प्रफंट अपनी भूमिगत हिंसक गतिविध्यिों को त्याग देने के लिए तैयार हो गए तथा भारतीय अध्किारियों के सामने हथियार एवं गोला बारूद समर्पित कर वे संवैधनिक राजनीति की मुख्य धरा में पिफर शामिल हो गए।
- भारत सरकार मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार हो गई जिसके साथ ही, उन्हें अपनी परंपरा, संस्कृति और भूमि कानून बनाए रखने की छूट दे दी गई। संधि के हिस्से के रूप में लालडेगा को मुख्यमंत्राी बनाकर एक सरकार स्थापित की गई नए राज्य का गठन हो गया।
- अनुसूचित जनजाति 1951 में छोटानागपुर की आबादी का 31.15 प्रतिशत (1971 में 30.94) और संथाल परगना की आबादी का 44.67 प्रतिशत (1971
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1. आजादी के बाद के भारत के इतिहास में कौन-कौन से महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं? |
2. आजादी के बाद के भारत में युवाओं की भूमिका क्या रही? |
3. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कौन-कौन से महिला स्वतंत्रता सेनानी मशहूर हुईं? |
4. भारतीय संविधान कब और कैसे निर्मित हुआ? |
5. आजादी के बाद के भारत में गांधी की हत्या कब और कैसे हुई? |
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