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राज्य विधानमंडल (भाग - 2) - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

धान सभा का अध्यक्ष

  •  संविधान के अनुच्छेद 178 में विधानसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की व्यवस्था की गई है।
  • राज्य विधानसभा अध्यक्ष उस राज्य की विधानसभा के सदस्योंद्वारा चुना जाता है।
  •  अध्यक्ष के निर्वाचन की व्यवस्था राज्यपाल द्वारा की जाती है।
  •  सबसे पहले राज्यपाल द्वारा इस पद हेतु मनोनयन पत्रा आमंत्रित किये जाते है। इन्हें किसी निश्चित दिन सदन के सम्मुख रखा जाता है। सदन में इस पर वाद-विवाद न किया जाकर सीधा मतदान कराया जाता है। जो प्रत्याशी बहुमत पाता है उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।
  • अपने पद को ग्रहण करने से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष को राज्यपाल या उसके द्वारा इस हेतु नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ ग्रहण करनी पड़ती है।
  •  विधान सभा अध्यक्ष का पद निम्न प्रकार से रिक्त हो सकता है [अनुच्छेद 179]
    (क) यदि अध्यक्ष विधान सभा का सदस्य नहीं रह जाता तो उसे अपना पद त्यागना पड़ेगा।
    (ख) अध्यक्ष उपाध्यक्ष को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा द्वारा पद से मुक्त हो सकता है।
    (ग) विधान सभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष को पदच्युत किया जा सकता है। लेकिन इस प्रकार का प्रस्ताव सदन में रखने से चैदह दिन पूर्व सूचना दे दी जानी चाहिए।
  • सामान्य अवस्था में अध्यक्ष का पद विधानसभा के कार्यकाल के साथ बंधा होता है, लेकिन जब कभी विधान सभा विघटित की जाती है तब नयी विधानसभा के गठित होने तथा उसके प्रथम अधिवेशन तक वह अध्यक्ष अपने पद पर बना रहेगा।
  •  इसके मुख्य कार्य निम्न है-
    (i) सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना।
    (ii) बैठकोंका संचालन करना।
    (iii)सदन की कार्यवाही के नियम आदि निर्धारित करना।
    (iv) विधेयकों को प्रस्तुत करने की अनुमति देना।
    (v) उन पर बहस का समय निश्चित करना तथा सदस्यों के बोलने का क्रम निर्धारित करना।
    (vi) सदन में अनुशासन बनाये रखना।
    (vii) वही संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।
    (viii) कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं इसका निर्णय भी अध्यक्ष ही करता है तथा इस संबंध में इसका निर्णय अन्तिम होता है। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
    (ix) विधेयकों पर मतदान करवाता है।
    (x) किसी विधेयक पर पक्ष एवं विपक्ष मेंबराबर मत पड़ने की स्थिति में अध्यक्ष को निर्णायक मत देने की शक्ति प्राप्त है।
    (ix )वह सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की भी रक्षा करता है। किसी के द्वारा भी इसका उल्लघंन करने की स्थिति में वह उसे दण्ड दे सकता है।

राज्य विधानमण्डल की शक्तियों पर प्रतिबंध

  • राज्य सूची में सम्मिलित कुछ विषयों से संबंधित विधेयकों को राज्य विधान मण्डल में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है उदाहरणस्वरूप-व्यापार एवं व्यवसाय पर बन्धन लगाने संबंधी विधेयक।
  • राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित कुछ विधेयक कानून तब तक नहीं बन सकते जब तक कि उन्हें राष्ट्रपति की स्वीकृति न मिल जाए, उदाहरणस्वरूप- निजी सम्पत्ति को अधिग्रहित करने संबंधी विधेयक।
  • यदि राज्य-सूची में वर्णित किसी विधेयक को राज्य सभा राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो ऐसे विषय पर राज्य विधान मण्डल कानून नहीं बना सकता।
  • आपात काल की घोषणा की स्थिति में राज्यसूची के सभी विषयों पर उस अवधि के दौरान कानून निर्माण की शक्ति संसद को प्राप्त हो जाती है।
  • संविधान में अनुच्छेद 356 के अधीन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधान मण्डल की समस्त शक्तियाँ संसदीय शक्ति के अधीन रहेगी।
  • समवर्ती सूची में वर्णित विषयों के संबंध में बने राज्य विधान मण्डल के कानून यदि संसदीय विधि के विरुद्ध हैं तो वे स्वतः ही रद्द हो जाते है।
  • राज्य सरकार न तो विदेशी राष्ट्रों से स्वतंत्रा रूप से कोई संधि कर सकती है और न ही केन्द्र की अनुमति के बिना ऋण ही ले सकती है।

राज्य का महाधिवक्ता

  •  संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक महाधिवक्ता होगा तथा इसकी नियुक्ति उस राज्य का राज्यपाल करेगा।
  •  कोई भी ऐसा व्यक्ति जो कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने की योग्यता रखता है, इस पद के लिए योग्य समझा जाएगा।
  •  राज्य में महाधिवक्ता का पद केन्द्र में महान्यायवादी के पद के समान होता है। यह राज्य में उसी प्रकार के कृत्य करता है जैसे कि महान्यायवादी केन्द्र में करता है।
  •  संविधान के अनुच्छेद 165(2) के अनुसार उसके प्रमुख कार्य निम्न हैं:

(i) राज्य सरकार को विधि संबंधी विषयों पर सलाह देता है।
(ii) राज्यपाल द्वारा समय-समय पर उसे सौपे गये कानून संबंधी कार्यों का निर्वहन करना।

  •   संविधान के अनुच्छेद 165(3) के अनुसार महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहेगा।
  •  महाधिवक्ता का वेतन एवं भत्ते राज्यपाल निर्धारित करता है।
  • अपने कत्र्तव्यों के निर्वहन के लिए महाधिवक्ता को राज्य विधानमण्डल के सदनोंकी कार्यवाहियों में भाग लेने और बोलने का अधिकार है। लेकिन वह मतदान नहीं कर सकता।

धन विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधान मंडल की तुलनात्मक स्थिति

  •  धन विधेयक के बारे में संघ और राज्य में स्थिति एक सी है। यह द्वितीय सदन या उच्च सदन (अर्थात् राज्य सभा या विधान परिषद) में प्रारंभ नहीं हो सकता।
  •  उच्च सदन को ऐसे विधेयकों में संशोधन करने या उन्हें अस्वीकार करने की शक्ति नहीं है। दोनों दशाओं मेंजब निम्न सदन (अर्थात् लोक सभा या विधान सभा) कोई विधेयक पारित करके उसे पारेषित करता है, तो उच्च सदन केवल सिफारिश कर सकता है। यह अंतिम रूप से निम्न सदन पर निर्भर रहता है कि वह उच्च सदन की सिफारिशों को स्वीकार करे या अस्वीकार। यदि लोक सभा या विधान सभा (यथास्थिति) उन सिफारिशों में से किसी को स्वीकार नहीं करता है तो विधेयक उसी रूप में संसद या विधान मंडल द्वारा पारित किया समझा जाएगा जिसमें निम्न सदन में पारित किया गया था और उसे राष्ट्रपति या राज्यपाल (यथास्थिति) की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। यदि निम्न सदन, उच्च सदन की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेता है तो यह समझा जाएगा कि विधेयक संसद या विधान मंडल द्वारा उसी रूप मेंपारित किया गया है जिस रूप में वह ऐसी सिफारिशोंके स्वीकार किए जाने के पश्चात् होता है।
  •  यदि उच्च सदन, निम्न सदन द्वारा पारेषित धन विधेयक को उसे प्राप्त होने की तारीख से 14 दिन की अवधि के भीतर नहीं लौटाता है तो यह समझा जाएगा कि 14 दिन की अवधि की समाप्ति पर वह विधेयक संसद या विधान मंडल द्वारा पारित कर दिया गया है और उसे (यथास्थिति) राष्ट्रपति या राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाएगा चाहे उसे उच्च सदन ने अनुमति न दी हो या उस पर कोई सिफारिश की हो।
  • दोनों सदनोंके बीच धन विधेयक के संबंध में गतिरोध को निपटाने के लिए कोई उपबंध नहीं है, क्योंकि संभवतः कोई गतिरोध हो ही नहीं सकता।

धन विधेयक से भिन्न विधेयकों के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल की तुलनात्मक स्थिति

  •  ऐसे विधेयक संसद या राज्य विधान मंडल के किसी भी सदन मेंपारेषित किए जा सकते है।
  • कोई विधेयक संसद द्वारा पारित तभी समझा जाता है जब दोनों सदन उस विधेयक पर मूल रूप मेंया दोनोंसदनों द्वारा सहमत संशोधनों के साथ सहमत हो जाते है। विधान परिषद की कोई सहव्यापी शक्ति नहीं है और दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर अंततोगत्वा विधान सभा की इच्छा अभिभावी होगी। 
  •  संसद के दोनों सदनों के बीच असहमति की दशा में गतिरोध को निपटाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा दोनोंसदनों की संयुक्त बैठक आहूत की जाती है। विधान मंडल के दोनों सदनों के बीच गतिरोध को निपटाने के लिए संयुक्त बैठक का कोई उपबंध नहीं है।
  • राज्य सभा की दशा में निम्न सदन से विधेयक की प्राप्ति की तारीख से उसे पारित करने की अवधि छह मास है किंतु विधान परिषद की दशा मेंयह अवधि तीन मास है।
  • संसद में असहमति की दशा मेंलोक सभा द्वारा दुबारा विधेयक पारित किए जाने से राज्य सभा का अध्यारोहण नहीं हो सकता। इस गतिरोध को निपटाने का एकमात्रा तरीका है दोनों सदनोंकी संयुक्त बैठक, किंतु यदि राष्ट्रपति अपने विवेकानुसार संयुक्त बैठक आहूत नहीं करता है तो विधेयक समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार संयुक्त बैठक के अधीन रहते हुए राज्य सभा को विधेयक के पारित होने को रोकने की प्रभावी शक्ति है। लेकिन संयुक्त बैठक की दशा में लोक सभा के सदस्योंकी संख्या राज्य सभा के सदस्योंकी संख्या से दो गुणा से भी ज्यादा होने के कारण लोक सभा का वर्चस्व स्वाभाविक है।
  •  विधानमंडल के मामले मेंअसहमति होने पर विधान सभा द्वारा विधेयक को दो बार पारित किया जाना विधान मंडल द्वारा विधेयक के पारित होने के लिए पर्याप्त है। यदि विधेयक इस प्रकार पारित किया जाता है तो विधान परिषद दूसरी यात्रा में विधेयक की प्राप्ति की तारीख से एक मास की अवधि तक ही उसे रोक सकती है, और कुछ नहीं कर सकती। यदि परिषद विधेयक को पुनः अस्वीकार कर देती है या ऐसे संशोधन प्रस्तावित करती है जिनसे विधान सभा सहमत नहीं है या विधेयक को पारित किए बिना एक मास व्यतीत हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि विधेयक विधान मंडल द्वारा उसी रूप में पारित हो गया है जिसमेंविधान सभा ने उसे दुबारा पारित किया था। यदि परिषद द्वारा किए गए संशोधन विधान सभा को स्वीकार्य है तो वह ऐसे संशोधनोंसहित पारित समझा जाएगा। यह प्रक्रिया विधान सभा मेंप्रारंभ होने वाले विधेयकों के संबंध में असहमति की दशा मेंही लागू होती है। यदि विधान परिषद में प्रारंभ हुआ विधेयक परिषद द्वारा पारित करके विधान सभा को पारेषित किया जाता है और विधान सभा विधेयक को अस्वीकार कर देती है या उसमेंऐसे संशोधन करती है जिनसे परिषद सहमत नहीं है तो विधेयक तुरंत समाप्त हो जाएगा और विधान सभा द्वारा उसके पारित करने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होगा। 
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