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जलवायु - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

जलवायु

  • अत्यधिक भौगोलिक विस्तार और अनेक भू-आकृतियों के कारण सम्भवतः विश्व के अनेक देशों की अपेक्षा भारत में जलवायु सम्बन्धी दशाओं में बड़ी भिन्नता पायी जाती है। इसका एक भाग कर्क रेखा के उत्तर में और दूसरा उसके दक्षिण में है। उत्तर-पश्चिमी भागों में थार का विशाल मरुस्थल है जहाँ वर्ष भर में 25 सेण्टीमीटर से भी कम वर्षा होती है जबकि उत्तरी और पूर्वी भाग में खासी की पहाड़ियों में चेरापूँजी नामक स्थान पर 1,087 सेण्टीमीटर वर्षा का औसत रहता है।
  • कश्मीर में द्रास नामक स्थान पर न्यूनतम तापमान-90Cतक और लेह में 00C.450Cपहुँच जाता है जबकि राजस्थान में उच्चतम तापमान 550Cसे अधिक अंकित किया जा चुका है।
  • हिमालय के अधिकांश पहाड़ी केन्द्रों में अगस्त में आद्रता 100% पायी जाती है और आकाश मेघाच्छन्न रहता है, किन्तु दिसम्बर में इन्हीं स्थानों में आद्रता 0% हो जाती है। कोचीन का मध्यम औसत तापमान  270Cसे ऊपर नहीं बढ़ता और न ही न्यूनतम तापमान 230C से नीचे उतरता है, जो मुम्बई के तापान्तर के दुगुने से भी अधिक है तथा पंजाब के आन्तरिक भागों से 6 से 8 गुना है। 
  • भारत की जलवायु पर दो बाहरी कारकों का प्रभाव पड़ता है
    (i) उत्तर की ओर की हिमाच्छादित श्रेणियाँ भारत को मध्य एशिया की ओर से आनेवाली ठंडी हवा से बचाकर इसको महाद्वीपीय जलवायु (Continental Climate) का रूप देती है जिसकी प्रमुख विशेषताएँ स्थानीय हवाओं का आधिक्य, हवा का सूखापन, अधिक दैनिक ताप-परिसर और वर्षा की न्यूनता है।
    (ii) दक्षिण की ओर हिन्द महासागर की निकटता भारत को उष्ण मानसूनी जलवायु (Tropicial Monsoon) देती है जिसमें उष्ण कटिबंधीय जलवायु की आदर्श दशाएँ प्राप्त होती है।
  • आधुनिक विचारधारा में अब माना जाता है कि मानसूनी हवाओं के अन्तर्गत अधोमण्डल (Troposphere) में स्थित उष्ण-कटिबंधीय पूर्वी जेट तथा अर्द्ध उष्ण-कटिबंधीय पश्चिमी जेट प्रभृति आँधियों (Storms) को सम्मिलित किया जाता है जो वर्ष में एक निश्चित ऋतु में ही प्रवाहित होती है। मानसूनी हवाओं की उत्पत्ति अधोमण्डल में विकसित सामयिक आँधियों से सम्बन्धित मानी गयी है। 
  • अधोमण्डल (औसत अनुमानित ऊँचाई 12 कि. मी.) में उत्पन्न आँधियों के फलस्वरूप वायुमण्डल की वाष्प भरी पवन एक दिशा में प्रवाहित होकर ऊपरी अधोमण्डल में पहुुँचती है और उनके दिशाओं में फैल जाती है तथा हवाओं का जो प्रवाह निम्न अधोमण्डल में पहुँचता है वह जैट स्ट्रीम (Jet Stream) का रूप ले लेता है और यही अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर द्रवीभूत होकर धरातल पर वर्षा कर देता है।

मानसून को प्रभावित करने वाली बाह्य दशाएँ

  • मई के महीने में यदि हिन्द महासागर में अधिक उच्च वायुदाब हुआ तो उत्तरी भारत में प्रायः प्रतिचक्रवातीय पवन उत्पन्न हो जाती है। फलस्वरूप भूमध्यरेखीय वायुदाब के कारण मानसूनी हवायें अधिक संगठित नहीं हो पाती और वे क्षीण हो जाती है।
  • यदि मार्च तथा अप्रैल महीनों में चिली तथा अर्जेण्टाइना में वायुदाब अधिक होता है तो भारतीय मानसून अधिक शक्तिशाली होता है क्योंकि इस वायुदाब से दक्षिणी-पूर्वी स्थायी पवनें अधिक प्रबल हो जाती है तथा भूमध्य रेखा को पार करके दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की वृद्धि करती है।
  • यदि अप्रैल-मई के महीनों में भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में जंजीबार के निकट अधिक वर्षा होती है, तो भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा का अर्थ है शान्त-खण्ड की पेटी में अधिक तेज संवाहिनी धाराओं का उत्पन्न होना तथा इन धाराओं का दक्षिणी-पश्चिमी स्थायी हवाओं के उत्तर की ओर जाने में बाधक होना। इसके फलस्वरूप भारतीय मानसून कमजोर हो जाता है।
  • जिस वर्ष उत्तरी पर्वतीय प्रदेश में मई के महीने तक हिमपात होता है उस वर्ष वहाँ उच्च वायुदाब की दशाएँ उत्पन्न होने से प्रतिचक्रवातीय हवायें चलने लगती है और मानसून क्षीण पड़ जाता है। इसके विपरीत, जिस वर्ष दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक हिमपात होता है उस वर्ष मानसून अधिक शक्तिशाली होता है। यदि उपर्युक्त दशाएँ विपरीत हुईं तो उनका प्रभाव भी बिल्कुल विपरीत होता है।

ऋतुएँ 

  • भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग (मौसम कार्यालय) ने वर्ष को चार ऋतुओं में बाँटा है
  • उत्तरी-पूर्वी मानसूनी हवाओं का मौसम (N.E. Monsoon Season)
  • शीत ऋतु (15 दिसम्बर से 15 मार्च तक)
  • शुष्क ग्रीष्म ऋतु (लगभग 15 जून से 15 दिसम्बर तक)
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं का मानसूनी (S.E. Monsoon Season)
  • वर्षा ऋतु (लगभग 15 जून से 15 सितम्बर तक)
  • शरद ऋतु या मानसून प्रत्यावर्तन काल की ऋतु (मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक)

शुष्क शीत ऋतु (Dry Winter Season)

  • उत्तरी भारत में अक्टूबर से ही आकाश मेघरहित होने लगता है और दिसम्बर तक सम्पूर्ण देश मेघविहीन हो जाता है, केवल दक्षिणी-पूर्वी भारत में लौटती मानसून से जो वर्षा होती है उसके कारण कहीं-कहीं मेघ छा जाते है। भारत में यह मौसम दिसम्बर से ही शुरू हो जाता है। इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में रहता है।
  • दिसम्बर के मध्य से मध्य एशिया में उच्च वायुदाब होने के कारण पछुआ (Westerlies) की शाखाएँ दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इसी कारण कभी-कभी इस समय आकाश में मेघ भी जमा हो जाते है जिनका बरसना रबी फसलों के लिए काफी लाभदायक होता है।
  • सारे देश में इस ऋतु में तापमान न्यून रहता है। सबसे कम तापमान उत्तरी-पश्चिमी भारत में होता है और ज्यों-ज्यों यहाँ से हम पूर्वी या दक्षिणी भारत की ओर बढ़ते है तापमान बढ़ता जाता है। राजस्थान का रात्रि तापमान कई बार 00C से भी नीचे उतर आता है। इस समय भारत का औसत उच्चतम तापमान कुछ स्थानों पर 290C तक रहता है जबकि उत्तर-पश्चिम में यह केवल 180C तक ही रहता है।
  • फरवरी के आसपास कैस्पियन सागर एवं तुर्किस्तान प्रदेश की ठंडी हवायें भारतीय प्रदेश में प्रवेश कर जाती है। इनके कारण तापमान नीचे गिर जाता है तथा गहरा कोहरा छा जाता है फिर भारतीय वैसे प्रदेश जो समुद्र से नजदीक है वहाँ कोई कोहरा नहीं होता है। इस समय तमिलनाडु में शान्त खण्ड (Doldrums) के कारण तूफान आने की सम्भावना रहती है। पर्वतों पर भीषण हिमपात होता है।

उष्ण शुष्क ग्रीष्म ऋतु (Hot Dry Summer Season)

  • मार्च से जून के महीनों में भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्पष्ट रूप से गर्म व शुष्क मौसम की ऋतु होती है। कमजोर हवायें व शुष्कता इस मौसम की प्रमुख विशेषता होती है। फरवरी माह में सूर्य की स्थिति भूमध्य रेखा के निकट होती है। मार्च के अन्त में वह कर्क रेखा की ओर बढ़ना आरम्भ कर देता है। इस कारण सारे भारत में तापमान बढ़ने लगता है। मार्च के मध्य से तापमान बढ़ने प्रारम्भ हो जाते है। मार्च में सर्वाधिक तापमान दक्षिण भारत 430C रहता है; जबकि अप्रैल में मध्य प्रदेश व गुजरात में तापमान 430C तक पहुँच जाता है। कई स्थानों का तापमान 470C तक पहुँच जाता है।
  • इस समय काफी गर्म और शुष्क हवायें चलती है जिसे स्थानीय भाषा में लू (Loo) कहते है। जब इन शुष्क गर्म हवाओं से आद्र्र हवाएँ मिलती है, तो भीषण तूफान तथा आँधियाँ आती है जिनका वेग कभी-कभी 100 से 125 कि. मी. प्रति घंटा तक होता है। इनसे वर्षा भी होती है। बंगाल में इन्हें काल बैसाखी (Nor-wester) कहते है।
  • नाखेस्टर हवाओं की उत्पत्ति छोटानागपुर पठार पर होती है। पछुआ हवाएँ इन्हें पूर्व की ओर ले जाती है। इन हवाओं से असम में 50 से. मी. तथा उड़ीसा व पश्चिमी बंगाल में 10 से. मी. तक वर्षा होती है। इस वर्षा को वसन्त ऋतु की तूफानी वर्षा (Spring storm showers) कहते है।
  • असम में मई में काफी वर्षा होती है। इसे यहाँ चाय वर्षा (Tea Shower) कहते है।
  • दक्षिण भारत में जो वर्षा होती है इसे आम वर्षा (Mango Showers) कहते है।
  • जहाँ इससे कहवा की फसल को लाभ पहुँचता है, वहाँ इसे फूलों वाली बौछार (Cherry Blossom Showers) कहते है।

वर्षा ऋतु (Rainy Season)

  • इस ऋतु को गर्म आर्द्र ऋतु भी कहते है। भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ मौसम पूरी तरह से परिवर्तित हो जाता है। यह मानसून समस्त भारत में मध्य जून से मध्य सितम्बर तक वर्षा करने में प्रभावकारी रहता है। जून माह में जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है, तो वायुमण्डली परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगता है।
  • ज्यों-ज्यों मानसून वर्षा बढ़ती जाती है त्यों-त्यों तापमान भी कम होने लगता है। प्रायद्वीपीय भारत के तापमान जून माह में मई माह की अपेक्षा 30C से 60C के बीच कम रहते है। उत्तरी-पश्चिमी भारत में जुलाई माह में 20C से 30C तक तापमान की कमी देखी जाती है। जून एवं जुलाई में पश्चिमी राजस्थान को छोड़कर लगभग सभी भागों में तापमान में समानता रहती है। अगस्त माह में तापमान और भी गिर जाता है। थार मरुस्थल में इस माह में तापमान 380C तक पहुँच जाता है जबकि मैदानी भागों में यह औसत 300C से 320C तक रहता है।
  • सूर्य की स्थिति कर्क रेखा पर लंबवत होते ही अपेक्षाकृत और कम वायुदाब बन जाता है और दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवायें इस वायुदाब के केन्द्र तक पहुँचने की कोशिश करती है।
  • दक्षिणी भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की दो प्रधान शाखायें हो जाती है। इनमें से एक अरब सागर और दूसरी बंगाल की खाड़ी की ओर से देश में प्रवेश करती है और दोनों शाखायें अपने अपने तरीकों से देश में वर्षा के वितरण को प्रभावित करती है।
  • बंगाल की खाड़ी को पार करने के बाद मानसूनी हवाएं सबसे पहले मेघालय पठार पर स्थिर गारो, खासी पहाड़ियों से टकराती है। इन पहाड़ियों के समुद्राभिमुख ढाल पर संसार की सबसे अधिक वर्षा होती है। वहीं राजस्थान में 25 सें. मी. से भी कम वर्षा होती है।

शरद ऋतु (The Cool Season)

  • यह ऋतु मध्य सितंबर से अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देती है। इस समय दक्षिण-पश्चिम मानसून उत्तर भारत से लौटना शुरू कर देता है। उत्तरी-पूर्वी हवायें अपना स्थान लेने लगती है। दक्षिणी प्रस्फोट के विपरीत यह प्रत्यावर्तन काफी क्रमिक होता है। इस प्रत्यावर्तन के ढाँचे में भी रोचक प्रादेशिक अन्तर देखा जाता है।
  • अक्टूबर माह के अन्त में तापमान में भारी गिरावट होती है। अक्टूबर में औसत तापमान 260C रहता है। नवम्बर में न्यूनतम तापमान 100C तक पहुँच जाता है। दिसम्बर माह में देश के उत्तरी व उत्तरी-पश्चिमी भाग में औसत तापमान 160C रहता है। उत्तर भारत में किसी-किसी रात तापमान 00C के आस-पास पहुँच जाता है।
  • मानसून के लौटने के साथ-साथ उत्तर पश्चिम में विस्तृत निम्न वायुदाब का क्षेत्र समाप्त होने लगता है और यह बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ने लगता है। इसके बढ़ने की गति का मानसून हवायें अनुकरण करती है। वर्षा धीरे-धीरे समाप्त होती है और सितम्बर के अन्त तक उत्तरी मैदान की हवायें शुष्क हवाओं में बदल जाती है। चक्रवातीय परिस्थितियों का स्थान प्रतिचक्रवातीय परिस्थितियाँ ले लेती है। दिन और रात के तापमान में अन्तर होने लगता है। साथ-साथ हवा की दिशा दक्षिण-पश्चिम से बदलकर उत्तर-पूर्व हो जाती है।
  • लौटता मानसून जब उत्तरी-पूर्वी दिशा प्राप्त कर लेता है, तब बंगाल की खाड़ी से आद्रता प्राप्त करके बंगाल, उड़ीसा व आन्ध्र प्रदेश के तटीय प्रदेशों तथा तमिलनाडु व केरल में वर्षा करता है। तमिलनाडु में नवम्बर दिसम्बर में 65 से. मी. 80 से.मी. तक वर्षा होती है।
  • नवम्बर-दिसम्बर में उत्तर भारत के मैदानी भागों में भूमध्य सागर से आनेवाले चक्रवातों द्वारा हल्की वर्षा हो जाती है, जो रबी की फसलों के लिए अत्यन्त लाभकारी होती है।
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FAQs on जलवायु - भारतीय भूगोल - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. जलवायुजलवायु क्या होती है?
उत्तर. जलवायुजलवायु, जिसे भूगोल में "मार्गीय जलवायुसंबंधी नियमितता" के रूप में भी जाना जाता है, एक क्षेत्र की सामान्य मौसम पैटर्न है जो वहाँ वर्ष भर में बार-बार होते हैं। यह मौसम के बारे में जानकारी देती है, जैसे उच्च औसत तापमान, नमी, मौसमी घटनाओं का आवेश, बारिश और वायुमंडलीय शरीर।
2. भारतीय भूगोल में जलवायुजलवायु की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर. भारतीय भूगोल में जलवायुजलवायु की कई विशेषताएं हैं। भारत में बहुत सारे मौसम प्रभाव होते हैं, जैसे मानसून, जंगली जलवायु, बांगलादेशी मौसम, शीतकालीन बारिश, गर्मी, बाढ़, जलप्रपात और औसत तापमान। इन विभिन्न मौसम प्रभावों के कारण, भारतीय भूगोल में अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु शर्तें होती हैं।
3. जलवायुजलवायु के कारणों में कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर. जलवायुजलवायु के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ मुख्य कारण हैं: वायुमंडलीय तत्वों के विचार के साथ संबंधित विश्लेषण, वायुमंडलीय घटनाओं के प्रभाव, आंतरविद्युतीय गतिविधि, मानसून प्रभाव, समुद्र तटीय जलवायु प्रभाव, बांगलादेशी मौसम प्रभाव और नाबाद जलवायु प्रभाव।
4. भारतीय भूगोल में जलवायुजलवायु के प्रकार कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर. भारतीय भूगोल में कई प्रकार की जलवायुजलवायु होती हैं। कुछ मुख्य प्रकार हैं: गर्म जलवायु, शीतकालीन जलवायु, मानसून जलवायु, सदियों की सदियों तक चलने वाली जलवायु और उपाग्रह जलवायु। ये जलवायुजलवायु प्रकार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न मौसम प्रभावों और तापमान के कारण होते हैं।
5. भारतीय भूगोल में जलवायुजलवायु की प्राकृतिक प्रभावशीलता क्या है?
उत्तर. भारतीय भूगोल में जलवायुजलवायु की प्राकृतिक प्रभावशीलता काफी अधिक है। भारत एक विशाल देश है जिसमें मानसून, पहाड़, नदी, समुद्र और वनस्पति जैसे विभिन्न प्राकृतिक तत्वों का विस्तार है। इसके कारण भारत में विभिन्न जलवायु शर्तें होती हैं और इसके परिणामस्वरूप यहाँ विभिन्न प्राकृतिक प्रभावों का अनुभव किया जा सकता है।
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