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साक्षरता - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

साक्षरता
1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति
• 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने सबको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को ”कम-से-कम समय में“ पूरा करने की अनिवार्यता की ओर ध्यान आकृष्ट कराया था। इसमें सन् 1995 तक देश में 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का संकल्प लिया गया था।
• समानता को बढ़ावा देने के लिए 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी बच्चों को न सिर्फ शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने, बल्कि जीवन में सफलता के लिए भी बराबर मौका देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। इसमें स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ देने वाले बच्चों, स्कूल की सुविधा से रहित स्थानों के बच्चों और पूरे समय पढ़ने के लिए स्कूल जाने में असमर्थ मजदूरी करने वाले बच्चों तथा लड़कियों के लिए एक व्यापक सुव्यवस्थित कार्यक्रम की व्यवस्था की गयी थी।
• राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गैर-औपचारिक शिक्षा केन्द्रों में पढ़ने-लिखने के लिए बेहतर माहौल बनाने के उद्देश्य में आधुनिक टेक्नोलाजी के उपयोग पर जोर दिया गया था।
• इसके अलावा गैर-औपचारिक शिक्षा को गुणवत्ता की दृष्टि से औपचारिक शिक्षा के समकक्ष लाने के लिए उचित उपाय करने पर जोर दिया गया था। इसमें अध्यापकों की व्यावसायिक क्षमता सुधारने, स्वयंसेवी एजेंसियों की भूमिका बढ़ाने और समाज की भागीदारी सुनिश्चित करने पर भी विशेष ध्यान दिया गया था।
• राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बनायी गयी कार्रवाई योजना में सबको प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किये गये और नयी पहल की गयी।
• इसके अंतर्गत स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई के माहौल में सुधार और अध्यापकों की कार्यकुशलता बढ़ाने के साथ-साथ 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के ऐसे बच्चों के लिए वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की गयी थी जो स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रह गये थे।
• 1987-88 के बाद शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र द्वारा प्रायोजित तीन प्रमुख कार्यक्रम शुरू किये गये। ये थे-आपरेशन ब्लैक बोर्ड, शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में सुधार और पुनर्गठन तथा गैर-औपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम।

शिक्षा का सूक्ष्म स्तरीय आयोजना, इसका आधार, कार्यरूप के उपाय
• सूक्ष्म स्तरीय आयोजना या माइक्रो प्लानिंग का उद्देश्य ”परिवार और बच्चों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम“ तैयार करना है ताकि प्रत्येक बच्चा नियमित रूप से अपने लिए सुविधाजनक स्थान पर पांच वर्ष तक स्कूल या गैर-औपचारिक शिक्षा केन्द्र में शिक्षा प्राप्त करता रहे।
• इस तरह की सघन कार्यक्रम-नीति का आधार:
(क) आम आदमी की भागीदारी वाली योजनाएं बनाने सम्बंधी वह धारणा है जिसमें समाज को अपनी आवश्यकताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी खुद उठाने के लिए प्रेरित किया जाता है और कार्यक्रमों का सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक भूमिका सौंपी जाती है।
(ख) इसका आधार प्रशासनिक कामकाज का विकेन्द्रीकरण करना भी है ताकि स्थानीय शैक्षिक कर्मी अपने-अपने क्षेत्र के बारे में निर्णय कर सकें तथा इस प्रकार समूची प्रणाली समाज की मांग के अनुरूप कार्य कर सके।
• सूक्ष्म स्तरीय आयोजना के लिए क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं के अनुसार योजनाएं बनाना भी जरूरी है। इसमें क्षेत्र का अभिप्राय राजस्व गांव से है लेकिन व्यवहार में ब्लाक, तालुका या जिले को इकाई बनाकर योजना बनायी जाती है। इस क्षेत्र में सूक्ष्म स्तरीय आयोजना को जिन उपायों से कार्यरूप दिया जाएगा, वे है:
(1) समाज की भागीदारी हासिल करना,
(2) शैक्षिक प्रशासन का विकेन्द्रीकरण,
(3) स्थानीय स्तर की प्रशासनिक और संसाधन सहायक प्रणाली मजबूत बनाकर उसे नयी दिशा प्रदान करना,
(4) इलाके की शैक्षिक आवश्यकताओं का पता लगाना,
(5) दाखिले के लायक सभी बच्चों को स्कूलों में भर्ती कराना और जो स्कूल जाने में असमर्थ हो उनके लिए गैर-औपचारिक शिक्षा के कार्यक्रमों अथवा अन्य नये और सहायक उपायों के जरिए शिक्षा उपलब्ध कराना,
(6) यह सुनिश्चित करना कि सभी बच्चे नियमित रूप से वास्वत में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते रहें और
(7) स्कूलों या गैर-औपचारिक शिक्षा केन्द्रों में सुधार के उपाय करना ताकि पढ़ाई-लिखाई की कारगर व्यवस्था हो सके।

शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी में सावधानी बरतने की आवश्यकता
• संसाधनों की दुर्लभता के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में शिक्षा के निजीकरण का सुझाव दिया जा रहा है। जहां तक वित्त प्रदान करने की बात है, शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण नहीं रहा है।
• भारत में आमतौर पर सभी निजी संस्थानों का प्रबन्ध निजी तौर पर किया जाता है, किन्तु आवर्ती बजटों के लगभग समूचे हिस्सों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र से धन दिया जाता है। निजी संस्थानों पर सरकारी सहायता के रूप में पर्याप्त धन खर्च किया जाता है।
• किन्तु प्राईवेट शिक्षा संस्थानों से सम्बद्ध अध्ययनों से पता चलता है कि विशेष कर नए प्राईवेट संस्थान जो सरकार से सहायता नहीं लेते, अत्यधिक फीस वसूल करते है और अभिभावकों से भारी मात्रा में चन्दा प्राप्त करते है; साथ ही यह भी कि निजी संस्थानों द्वारा धन जुटाने की प्रक्रिया असमानता पर आधारित है।
• सरकार वित्तीय पहलुओं सहित इन संस्थानों की कार्य प्रणाली को नियमित बनाने में कुछ नहीं कर सकती। निजी शिक्षा संस्थान आमतौर पर सम्पन्न लोगों की ही आवश्यकताएं पूरी करते है। सरकार की कुछ ही ऐसी नीतियां है जिनसे आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के बच्चों को निजी संस्थानों में प्रवेश मिल पाता है।
• ऐसे प्राईवेट शिक्षा संस्थान गिने-चुने ही है, जो सरकार का वित्तीय बोझ हल्का कर सकते है, क्योंकि सरकारी सहायता न लेने वाले प्राईवेट शिक्षा संस्थानों की संख्या बहुत कम है, और ऐसे निजी संस्थान जो सरकारी सहायता प्राप्त करते है वे स्वयं के संसाधन नहीं जुटाते। आमतौर पर यह जरूरी नहीं होता कि प्राईवेट शिक्षा संस्थान सरकार का वित्तीय बोझ कम करें, बल्कि वे कल्याणकारी राज्य के वित्तीय, शैक्षिक और अन्य सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्यों के खिलाफ भी काम करते है। अतः शिक्षा में निजीकरण की नीतियों को बढ़ावा देने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
• सरकार का सापेक्षिक हिस्सा कितना हो और इसी प्रकार अन्य स्त्रोतों से सापेक्षिक रूप में कितना हिस्सा जुटाया जाये, जैसे फीस और अन्य आन्तरिक संसाधन, यह सब तय करने के लिए विविध प्रकार के मानदंड अपनाये जाने चाहिए।
• उच्च शिक्षा के लिए धन जुटाने सहित राज्य की सक्रिय भागीदारी सैद्धान्तिक और व्यावहारिक मानदंडों पर आधारित होनी चाहिए।
• अन्ततः यह ध्यान रखना होगा कि पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के बिना आधुनिक शिक्षा का अस्तित्व संभव नहीं है, हालांकि वित्तीय संसाधन शिक्षा की सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते।

1986 के शिक्षा नीति में संशोधन
• राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली विकसित करने, शिक्षा प्रणाली में विषमताएं दूर करने तथा अधिक शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराने पर बल देने के लिए मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई गई।
• सामाजिक क्रियान्वयन से प्राप्त अनुभव के अनुसार उसमें कुछ संशोधनों की आवश्यकता है।
• ये संशोधन मई 1992 में लागू किए गए। प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना, शिक्षा अवसरों में समानता लाना, महिला शिक्षा एवं विकास, माध्यमिक शिक्षा को व्यावसायिक रूप देना, उच्च शिक्षा को सुदृढ़ बनाना, सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता, विषय सामग्री एवं प्रक्रिया में सुधार लाना आज भी शिक्षा क्षेत्र में राष्ट्रीय प्रयासों के प्रमुख पहलू है।
• एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ है कि अब प्राथमिक शिक्षा में बच्चों के दाखिले की बजाय उनकी पढ़ाई जारी रखने तथा एक निश्चित स्तर की शिक्षा प्राप्ति पर अधिक बल दिया जाने लगा है।

अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा तथा सबके लिए शिक्षा के संबंध में संशोधित शिक्षा नीति के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सुझाए गए उपाय
• 1992 की संशोधित शिक्षा नीति में यह संकल्प प्रकट किया गया था कि शताब्दी के अंत तक 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए अच्छे स्तर की निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू करने का प्रस्ताव थे। थाईलैंड में 1990 में ”सबके लिए शिक्षा“ के बारे में आयोजित विश्व सम्मेलन में भी सन् 2000 तक या जितनी जल्दी हो सके उससे पहले सबको शिक्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
• 16 दिसम्बर, 1993 को नई दिल्ली में सर्वाधिक आबादी वाले विकासशील देशों के शिखर सम्मेलन में ‘सबके लिए शिक्षा’ के संकल्प को दोहराया गया। अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा तथा सबके लिए शिक्षा के सम्बन्ध में संशोधित शिक्षा नीति के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जो उपाय सुझाए गए है, उनमें से कुछ इस प्रकार है:
(1) एक किलोमीटर तक की पैदल चलने की दूरी के भीतर स्कूल या अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र या स्वयंसेवी स्कूल की व्यवस्था करना;
(2) सामुदायिक भागीदारी तथा ग्राम स्तर तक शिक्षा के प्रबंध के विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से निचले स्तर तक योजनाएं बनाना;
(3) पांचवीं तथा आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने वाले बच्चों की संख्या के बारे में निगरानी के जरिए बच्चों की पढ़ाई जारी रखने पर अधिक बल देना तथा ऐसे कार्यक्रम बनाना जिनसे सभी बच्चे शिक्षा का चरण पूरा होने तक शिक्षा का न्यूनतम स्तर अवश्य प्राप्त कर लें;
(4) आपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना के विस्तार से शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि और प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति में सुधार;
(5) औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर रह जाने वाले बच्चों के लिए अनौपचारिक शिक्षा एवं सुधार;
(6) शिशु देखभाल तथा विद्यालय-पूर्व शिक्षा के पहलुओं पर अधिक ध्यान देना;
(7) स्कूली अध्यापकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण के केन्द्र खोलकर अध्यापकों की शिक्षा के कार्यक्रम का विस्तार तथा सुधार; और
(8) सम्पूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए जिले की आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाएं चलाना तथा बाहरी एजेंसियों के माध्यम से संसाधनों में वृद्धि करना।

महिलाओं के लिए संशोधित कार्य योजना तथा नए प्रयास

  • शिक्षा नीति के संशोधन के फलस्वरूप सरकार ने अगस्त 1992 में एक संशोधित कार्य योजना भी तैयार की। 1992 की कार्य योजना में कहा गया है कि शिक्षा के प्रबंध में सुधार लाना सबसे प्रमुख कार्य है।
  • इसमें कहा गया है कि कार्यकुशलता का मापदंड अधिक बजट खर्च करके और धन की मांग करना नहीं बल्कि बढ़िया कामकाज और अच्छा परिणाम होना चाहिए।
  • इसमें कहा गया है कि यह आवश्यक नहीं है कि यदि शिक्षा की पहुँच उच्च स्तर की होगी तो अधिक बच्चे दाखिला लेंगे। इसलिए केवल शिक्षा सुविधाओं की व्यवस्था कर देने की बजाय सुविधाओं में सुधार, अनिवार्य दाखिले तथा संतोषजनक स्तर की शिक्षा पाने और शिक्षण प्रक्रिया में भागीदारी पर अधिक बल दिया जाना चाहिए।
  • कार्य योजना में यह भी कहा गया है कि पूर्ण साक्षरता अभियान एक व्यावहारिक आदर्श के रूप में सामने आया है और इससे अनिवार्य वयस्क साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त होने योग्य लगने लगा है।
  • 1992 की कार्य योजना में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की समस्या को मूलतः बालिकाओं की समस्या माना गया है और शिक्षा के सभी स्तरों पर विशेषकर विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य तथा व्यावसायिक विषयों में, जिनमें लड़कियों की योग्यता को बहुत कम करके आंका जाता है, लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • यह भी कहा गया है कि महिलाओं की समानता एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रणाली को दिशा देने तथा सभी राष्ट्रीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में महिलाओं की आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिए एक विशेष प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है।


नए प्रयास

  • सरकार ने देश में शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े कुछ क्षेत्रों के लिए बुनियादी शिक्षा के कार्यक्रम तैयार करने में इस पहलू पर अधिक जोर दिया है।
  • जिन जिलों में महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत दर से कम है और जहाँ लड़कियों के स्कूल तक पहुँचने, पढ़ाई जारी रखने तथा उनके निश्चित स्तर की शिक्षा प्राप्ति के लिए विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है, वहाँ जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम की नई पहल की जा रही है।
  • इसी प्रकार अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम में पाठ्य सामग्री आदि में काफी लचीलापन रखा जा सकता है ताकि वह कार्यक्रम उपेक्षित समुदायों की लड़कियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके।


”सन् 2000 तक सबको शिक्षा“ हेतु क्या सुझाव थे ?
•  ‘सन 2000 तक सबको शिक्षा’ का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव है-
1. जनसंख्या नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करके जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण लगाया जाए।
2. शिक्षा व्यवस्था के मौजूदा ढांचे में सुधार किया जाए।
3. प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले व्यय में वृद्धि की जाए।
4. सभी सरकारी कर्मचारी, अधिकारी एवं अध्यापक वर्ग प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले व्यय का ईमानदारी से प्रयोग करें।
5. समाज के सम्पन्न एवं बुद्धिजीवी वर्ग आगे आकर प्राथमिक स्कूलों के विकास हेतु सहयोग करें।
6. ऐसी शिक्षा पद्धति लागू की जाए जो कि एक तरफ तो प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की जरूरतों को पूरी कर सके और दूसरी तरफ उच्च शिक्षा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं अपने ही स्त्रोतों एवं संसाधनों से कर सके।

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FAQs on साक्षरता - भारतीय भूगोल - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. साक्षरता क्या है?
उत्तर. साक्षरता एक व्यक्ति की क्षमता है जो उन्हें पठन और लेखन का ज्ञान होने के साथ-साथ संदेशों को समझने और संवाद करने की क्षमता प्रदान करती है। यह एक महत्वपूर्ण कौशल है जो व्यक्तियों को शिक्षा, प्रगति और समाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
2. भारतीय भूगोल क्या है?
उत्तर. भारतीय भूगोल भारत के स्थान, भू-रचना, जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों, जनसंख्या, प्रशासनिक विभाजन, विभिन्न राज्यों की स्थानीय विशेषताओं, और भारतीय भूगोल के विभिन्न विषयों पर ज्ञान को संकलित करने का अध्ययन है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है जो UPSC परीक्षा में पूछे जाते हैं।
3. साक्षरता के लाभ क्या हैं?
उत्तर. साक्षरता के कई लाभ हैं। यह व्यक्ति को स्वयं के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता देता है, उन्हें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अवसर प्रदान करता है, और सामरिक और सार्वभौमिक समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है। साक्षरता व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है और उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा करने की क्षमता प्रदान करता है।
4. भारतीय भूगोल क्यों UPSC परीक्षा में महत्वपूर्ण है?
उत्तर. भारतीय भूगोल UPSC परीक्षा में महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे छात्रों को भारत की भू-रचना, जलवायु, प्राकृतिक संसाधन, जनसंख्या, इतिहास, संघटनात्मक और भौगोलिक विशेषताएं, और विभिन्न राज्यों के भूगोलिक प्रोफाइल का ज्ञान होता है। यह परीक्षा छात्रों की तत्परता, समझ, और भूगोल से संबंधित विषयों पर विचार करने की क्षमता का मापदंड भी होती है।
5. साक्षरता कौन-कौन सी अनुभूति लाती है?
उत्तर. साक्षरता व्यक्ति को विभिन्न अनुभव प्रदान करती है, जैसे कि उन्हें अच्छे शिक्षा के अवसर मिलते हैं, सामाजिक चीजों में भागीदारी कर सकते हैं, और विशेष रूप से स्वयं के विकास के लिए संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। साक्षरता व्यक्ति के लिए नई जगहों पर रोजगार के अवसर खुलते हैं और उन्हें स्वतंत्रता का अनुभव करने की क्षमता देती है।
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