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संसद (भाग -2) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

लोक सभा की गणपूर्ति

  • संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के अनुसार लोक सभा की गणपूर्ति 1/10 निर्धारित की गई है। इसका तात्पर्य है कि सदन की बैठक तभी की जा सकती है जबकि सदन की कुल सदस्य संख्या का 10वाँ भाग सदन में उपस्थित हों।
  • अध्यक्ष (Speaker)-अनुच्छेद 93 के अनुसार लोक सभा का एक अध्यक्ष होगा जिसे लोक सभा स्वयं चुनेगी। इसके पद की अवधि लोक सभा की अवधि के बराबर ही रहती है। सामान्यतः लोक सभा में बहुमत दल का सदस्य ही स्पीकर (अध्यक्ष) के रूप में चुना जाता है। लेकिन अन्य विरोधी दलों की सहमति प्राप्त करने की कोशिश भी की जाती है।
  • उपाध्यक्ष-अध्यक्ष की भाँति ही अनुच्छेद 93 के अधीन लोक सभा अपने ही में से एक सदस्य को उपाध्यक्ष चुनती है। ऐसी स्थिति में जबकि अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों पद रिक्त हों तब सदन यथास्थिति किसी अन्य को अपना अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनती है।
    • जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद धारण करने वाला व्यक्ति-
    • लोक सभा का सदस्य नहीं रह जाता तो वह अपना पद रिक्त कर देगा।
    • किसी भी समय यदि वह अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को और यदि उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित त्यागपत्रा द्वारा अपना पद त्याग सकता है।
    • लोक सभा अपने तात्कालीन सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर उसे पद से हटा सकती है। लेकिन वह ऐसा तभी कर सकती है जबकि ऐसा प्रस्ताव प्रस्तावित किये जाने के 14 दिन पूर्व सूचना दे दी गई हो।
    • लोक सभा अध्यक्ष को कुछ मामलों में विशेष शक्ति प्राप्त है जो कि राज्य सभा के सभापति को प्राप्त नहीं है। ये निम्न हैं-
    • लोक सभा अध्यक्ष को कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं इसका निर्णय करने की अन्तिम एवं अनन्य शक्ति प्राप्त है। अध्यक्ष ही यह निर्णय देता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं।
    • दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोक सभा अध्यक्ष ही करता है। जब किसी विधान (विधेयक) के संबंध में दोनों सदनों में मतभेद हो तो ऐसी स्थिति में गतिरोध या मतभेद दूर करने के लिए दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है। इसकी अध्यक्षता लोक सभा का अध्यक्ष ही करता है और इसी पद की शक्ति के अधीन वह बैठक के संबंध में प्रक्रिया नियमों के निर्देश तथा आदेश निर्धारित कर लागू करवाता है।
    • अध्यक्ष लोक सभा में दलों एवं समूहों को मान्यता प्रदान करता है।
    • अध्यक्ष को यह शक्ति भी प्राप्त है कि वह लोक सभा के नेता के परामर्श से बजट, विनियोग विधेयक व वित्त-विधेयकों पर सभा के द्वारा विचार के लिए दिन तथा समय नियत करे।
    • सभी संसदीय समितियों पर उसका सर्वोच्च नियन्त्राण होता है। कोई भी समिति अध्यक्ष की अनुमति के बगैर संसद भवन से बाहर बैठक नहीं कर सकती, न ही उसकी पूर्व स्वीकृति लिए बिना राज्य सरकार के अधिकारियों को गवाही देने के लिए बुला सकती है। अध्यक्ष ही समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है तथा आवश्यक प्रक्रिया संबंधी निर्देश भी देता है।
    • कुछ समितियाँ जैसे कार्य मंत्राणा समिति, सामान्य-प्रायोजन समिति, नियम समिति आदि का नेतृत्व अध्यक्ष ही करता है। वही इनका सभापति होता है।
    • लोक सभा या उससे संबंधित प्रश्नों के संबंध में संविधान तथा नियमों की व्याख्या का अधिकार भी लोक सभा अध्यक्ष का ही है। इस संबंध में सरकार अध्यक्ष के साथ कोई वाद-विवाद नहीं कर सकती।
    • अध्यक्ष लोक सभा सचिवालय का प्रमुख होता है तथा सचिवालय उसी के नियंत्राण तथा निर्देशन में कार्य करता है।
  • लोक सभा अध्यक्ष को राज्य सभा के सभापति के समकक्ष ही वेतन तथा भत्ते प्रदान किये जाते हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 97 के अधीन संसद को ही अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के वेतन-भत्तों के संबंध में कानून निर्माण की शक्ति प्राप्त है।
  • संसद द्वारा निर्मित कानून के अधीन लोक सभा अध्यक्ष को 7500 रुपये मासिक वेतन, 1000 रुपये प्रतिमाह सरकारी भत्ता, तथा इसके अतिरिक्त वे सब भत्ते जो अन्य सांसदों को भी प्राप्त होंगे।
  • जब अध्यक्ष पद रिक्त हो तो ऐसी स्थिति में सदन का उपाध्यक्ष अध्यक्ष पद पर कार्य करेगा। इस दौरान उसे वे सब शक्तियाँ प्राप्त होगी जो कि एक अध्यक्ष को प्राप्त होती है।
  • ऐसी स्थिति में जबकि अध्यक्ष को हटाये जाने संबंधी प्रस्ताव सदन में विचाराधीन है तब अध्यक्ष अध्यक्षता नहीं कर सकता तथा जब उपाध्यक्ष के संबंध में कोई ऐसा ही प्रस्ताव विचाराधीन हो तब वह भी उपाध्यक्ष पद या उस समय अध्यक्ष का पद रिक्त हो तो अध्यक्ष पद पर पीठासीन नहीं रह सकता। ऐसी स्थिति में सदन किसी अन्य व्यक्ति को अध्यक्षता के लिए चुन लेता है।


लोक सभा की शक्तियाँ एवं कार्य

  • सामान्य विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते है एवं ये विधेयक तभी पारित समझे जाते है जबकि दोनों सदन इसे पारित कर दे। किसी विधेयक के संबंध में यदि दोनों सदनों के मध्य गतिरोध है या मतभेद है तो दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है।
  • इसमें लोक सभा की सदस्य संख्या राज्य सभा की सदस्य संख्या से दुगनी से भी अधिक होने के कारण विधेयक लोक सभा की इच्छानुसार पारित हो जाता है। राज्य सभा सामान्य विधेयक को 6 माह रोके रखने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकता।
  • संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार कोई भी वित्त विधेयक केवल लोक सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है और लोक सभा द्वारा पारित होने के पश्चात् ही राज्य सभा में भेजा जाता है।
  • राज्य सभा के लिए यह आवश्यक है कि वह किसी भी वित्त विधेयक को उसकी प्राप्ति की तारीख से 14 दिन के अन्दर संशोधनों के साथ या उनके बगैर लौटा दे।
  • राज्य सभा के द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को मानना या न मानना लोक सभा की इच्छा पर निर्भर करता है।
  • यदि राज्य सभा 14 दिन के भीतर विधेयक नहीं लौटाती तो वह विधेयक राज्य सभा द्वारा पारित मान लिया जाता है।
  • वार्षिक बजट अनुदान एवं पूरक मांगे भी लोक सभा के ही समक्ष रखी जाती है।
  • मंत्रिमण्डल अपने पद पर तभी तक रह सकता है जब तक कि उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त रहे।
  • संविधान संशोधन के संबंध में लोक सभा एवं राज्य सभा की शक्तियाँ बराबर है।
  • राष्ट्रपति द्वारा घोषित संकटकाल दो माह से अधिक तभी तक जारी रह सकता है जबकि इन दो माह के भीतर उसे लोक सभा की स्वीकृति प्राप्त न हो जाए। अन्यथा दो माह पश्चात् वह स्वयं समाप्त मान लिया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 85 (1) के अनुसार राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय व स्थान पर जो कि वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत (बुलायेगा) करेगा।
  • लोक सभा के अधिवेशन के स्थगन की शक्ति अध्यक्ष को तथा राज्य सभा के सत्रा के स्थगित करने की शक्ति सभापति को प्राप्त है।
  • सत्रावसान-संसद के अधिवेशनों को समाप्त करने की प्रक्रिया सत्रावसान कही जाती है। सत्रावसान की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह से ही करता है।
  • दीर्घावकाश-संसद के किसी सत्रा के सत्रावसान होने एवं नये सत्रा के शुरू (समवेत) होने के बीच की समयावधि को दीर्घावकाश कहा जाता है।

संसद सदस्यों के विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 (9) में कहा गया है कि संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार संसद को होगा।
  • भारतीय संविधान में हुए 44वें संविधान संशोधन 1978 के पश्चात् संसद सदस्यों को प्राप्त विशेषाधिकारों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है-
    (1) व्यक्तिगत रूप से उपभोग किये जाने वाले विशेषाधिकार, तथा 
    (2) सामूहिक रूप से प्राप्त विशेषाधिकार।

व्यक्तिगत रूप से प्राप्त विशेषाधिकार

  • संसद के किसी भी सदस्य को उस सदन जिसका कि वह सदस्य है कि अधिवेशन के चलते रहने के दौरान या संयुक्त बैठक के दौरान अथवा यदि वह किसी संसदीय समिति का सदस्य है तो उसकी बैठकों के दौरान तथा बैठकों के पूर्व या पश्चात् 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
  • गिरफ्तारी से यह उन्मुक्ति उसे केवल दीवानी (सिविल) मामलों में प्राप्त है। फौजदारी (आपराधिक) मामलों में नहीं।
  • संसद के किसी भी सदस्य के लिए उस सदन की जिसका कि वह सदस्य है, अनुमति के बगैर गवाही देने के लिए बुलाये जाने संबंधी आदेश नहीं निकाला जा सकता।
  • संसद के सदस्य को संसद या समिति में उसके द्वारा कही गई किसी भी बात के लिए न्यायालय में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • सदस्यों के इस वाक् स्वातंत्रा्य पर यह प्रतिबन्ध है कि वे उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीशों के कार्यों की आलोचना नहीं कर सकते, न ही उसके आचरण के विरुद्ध कुछ कह सकते संसद के किसी भी सदस्य को उस सदन जिसका कि वह सदस्य है कि अधिवेशन के चलते रहने के दौरान या संयुक्त बैठक के दौरान अथवा यदि वह किसी संसदीय समिति का सदस्य है तो उसकी बैठकों के दौरान तथा बैठकों के पूर्व या पश्चात् 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
  • गिरफ्तारी से यह उन्मुक्ति उसे केवल दीवानी (सिविल) मामलों में प्राप्त है। फौजदारी (आपराधिक) मामलों में नहीं।
  • संसद के किसी भी सदस्य के लिए उस सदन की जिसका कि वह सदस्य है, अनुमति के बगैर गवाही देने के लिए बुलाये जाने संबंधी आदेश नहीं निकाला जा सकता।
  • संसद के सदस्य को संसद या समिति में उसके द्वारा कही गई किसी भी बात के लिए न्यायालय में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • सदस्यों के इस वाक् स्वातंत्रा्य पर यह प्रतिबन्ध है कि वे उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीशों के कार्यों की आलोचना नहीं कर सकते, न ही उसके आचरण के विरुद्ध कुछ कह सकते है। ऐसा वे केवल महाभियोग लगाने की स्थिति में ही कर सकते है। ऐसा वे केवल महाभियोग लगाने की स्थिति में ही कर सकते है।

सदन के सामूहिक विशेषाधिकार

(1) सदन की कार्यवाही एवं चर्चा को अध्यक्ष की अनुमति से प्रकाशित करवाया जा सकता है। सदन अन्य व्यक्तियों को इन्हें प्रकाशित करने से रोक भी सकता है।
(2) सदन अन्य व्यक्तियों की किसी भी समय दर्शक दीर्घा से हटवा सकता है। सदन के प्रक्रिया संबंधी नियमों के अधीन, अध्यक्ष तथा सभापति को यह अधिकार है कि वह अन्य व्यक्तियों (अजनबियों) को सदन के किसी भाग से बाहर चले जाने का आदेश दे।
(3) सदन को अपने आन्तरिक मामलों को निपटाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। प्रत्येक सदन को यह अधिकार है कि वह सदन की कार्यवाहियों को नियन्त्रिात करे तथा सदन की चारदीवारी के अन्दर उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद का न्यायालय की सहायता के बिना निपटारा करें।
(4) सदन को अपने सदस्यों तथा बाहरी व्यक्तियों को सदन के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने पर दण्डित करने का भी अधिकार प्राप्त है।
(5) सदन को अपने किसी सदस्य की गिरफ्तारी, निरोध, कारावास अथवा रिहाई के संबंध में तुरन्त सूचना प्राप्त करने का भी अधिकार प्राप्त है।

प्रत्येक सदन के अध्यक्ष व सभापति का यह दायित्व होता है कि वह सदन के सदस्यों के इन विशेषाधिकारों एवं दायित्वों की रक्षा करे।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • सदन-पटल: संविधान तथा संसद की नियमावली के अनुसार सरकार को अनेक प्रकार की रपटों, अधिनियमों के अंतर्गत बनी नियमावलियों आदि की सूचना संसद को देनी होती है। ऐसी सभी रपटें आदि सदन में तो पढ़ी नहीं जा सकती, इसलिए इन्हें सदन-पटल पर रखने की प्रथा है। सरकार के अतिरिक्त सदन की विभिन्न समितियों की रपट भी सभा-पटल पर रखी जाती है।
  • कार्यवाही परामर्शदात्री समिति: यह समिति प्रत्येक सप्ताह के लिए सदन की कार्यसूची तय करती है। अगले सप्ताह में सदन में किन विधेयकों, प्रस्तावों तथा विषयों को किस दिन, कितना समय दिया जाये, यह परामर्शदात्री समिति तय करती है। संसदीय कार्यमंत्री इस समिति का अध्यक्ष होता है। विरोध पक्ष के नेता या प्रतिनिधि भी इस समिति के सदस्य होते है। यह समिति प्रत्येक शुक्रवार को प्रश्नकाल के बाद सदन को अगले सप्ताह की कार्य सूची की विवरणिका प्रस्तुत करती है।
  • सत्रावसान-संसद के अधिवेशनों को समाप्त करने की प्रक्रिया सत्रावसान कही जाती है। सत्रावसान की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह से ही करता है।
  • दीर्घावकाश-संसद के किसी सत्र के सत्रावसान होने एवं नये सत्र के शुरू (समवेत) होने के बीच की समयावधि को दीर्घावकाश कहा जाता है।

संसद सदस्य के लिए अयोग्यता

अनुच्छेद 102 के अनुसार कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निम्नलिखित आधार पर अयोग्य होगा:
(i) यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है लेकिन यदि संसद ने विधि द्वारा किसी पद को धारण करने की छूट दी है, तो उस पद को धारण करने वाला (ii) यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित कर दिया गया है;
(iii) यदि वह अमुक्त दिवालिया है;
(iv) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या यदि वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा धारण करता है;
(v) यदि वह दल-बदल कानून (संविधान की दसवीं अनुसूची) के अधीन संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया है;
(vi) यदि वह संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि के अधीन अयोग्य घोषित कर दिया गया है। संसद ने 1951 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 बनाकर निम्नलिखित व्यक्तियों को संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया हैः
(क) जो कुछ अपराधों के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी निर्णीत किया गया हो,
(ख) जो भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया गया हो,
(ग) जो व्यक्ति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण करते हुए भ्रष्टाचार के कारण या राज्य के प्रति अभक्ति के कारण पदच्युत कर दिया गया हो,
(घ) जो सरकार के &#

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FAQs on संसद (भाग -2) - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. संसद (भाग -2) क्या है?
उत्तर: संसद (भाग -2) भारतीय राजव्यवस्था में दो संसदीय सदनों, यानी लोकसभा और राज्यसभा को संदर्भित करता है। यह दूसरा भाग भारतीय संविधान में उल्लेखित है और इसमें संसद के सदस्यों के चुनाव, कार्यकाल, संदर्भ, शपथ, अधिकार, आदि के बारे में विवरण दिए गए हैं।
2. संशोधन नोटस क्या हैं?
उत्तर: संशोधन नोटस वे लिखित सूचनाएं होती हैं जो संसद के सदस्यों को किसी विशेष विधेयक के प्रस्तावित संशोधनों के बारे में सूचित करती हैं। यह एक अधिकृत दस्तावेज होता है जिसे संसद के सदस्यों को उपलब्ध कराया जाता है ताकि वे इसे पढ़कर और अध्ययन करके संशोधन के बारे में अवगत हो सकें।
3. भारतीय राजव्यवस्था में UPSC क्या है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भर्ती प्रक्रिया का प्रबंधन करने वाला एक केंद्रीय संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय सेवाओं, जैसे IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा), IPS (भारतीय पुलिस सेवा), IFS (भारतीय विदेश सेवा) आदि के पदों के लिए योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति करना है।
4. संघ लोक सेवा आयोग क्या प्रक्रिया का प्रबंधन करता है?
उत्तर: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विभिन्न सिविल सेवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया का प्रबंधन करता है। यह आयोग परीक्षा का आयोजन करता है, उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए चयन प्रक्रिया का प्रबंधन करता है और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
5. संशोधन नोटस क्यों महत्वपूर्ण होते हैं?
उत्तर: संशोधन नोटस महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे संसद के सदस्यों को नियमित रूप से विधेयकों के संशोधन के बारे में सूचित करते हैं। ये नोटस सदस्यों को विशेष जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे वे संशोधन के विषय में संघीय विधायन को बेहतर ढंग से समझ सकें और उस पर विचार कर सकें।
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