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आनुवंशिकी विज्ञान (Genetics)

जीन (Gene)

  • DNA पर स्थित नाइट्रोजनी यौगिक ही जीन्स का निर्माण करते है।
  • इसके तीन नाइट्रोजनी यौगिकों को एक क्रम में ‘जेनेटिक कोड’ (Genetic Code) कहते है।
  • प्रत्येक जेनेटिक कोड का कोई न कोई कार्य होता है, जैसे-कुछ कोड प्रोटीन संश्लेषण के लिए उत्तरदायी है तो कुछ अन्य भिन्न-भिन्न प्रकार के RNA के निर्माण के लिए।
  • कौन-कौन से कोड किस-किस अमीनो-अम्ल के लिए (प्रोटीन संश्लेषण में) उत्तरदायी है, इसकी पूरी खोज हरगोविंद खुराना ने की थी जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

क्रोमोसोम्स (Chromosomes)

  • प्रत्येक जाति में इसकी संख्या नियत रहती है, जैसे-आदमी में क्रोमोजोम्स के 23 जोड़े रहते है, मटर में 7 जोड़े आदि। 
  • क्रोमोसोम की वह संख्या जो लैंगिक जनन के समय एक गैमीट (Gamete) में जाती है, गैमीटिक क्रोमोजोम्स (Gametic chromosomes) या हैप्ल्वाॅइड (Haploid) कहलाती है। इसे 'n' से सूचित करते है।
  • अगर किसी कोशिका (जैसे-मानव के एक कोशिका) में गैमीटिक क्रोमोजोम्स की दो प्रति हो तो उसे डीप्ल्वाॅइड (Diploid) कहेंगे। इसे 2n से सूचित किया जाता है।
  • अतः Diploid प्राणी में किसी एक गुण के निर्धारण के लिए एक जीन के दो एलील (allele) होते है।
  • जीन का वह allele जो दूसरे allele पर प्रभाव डालते है, प्रभावी एलील (Dominant allele) तथा जो एलील प्रभावित होते है उसे अप्रभावी एलील (Recessive allele) कहते है।
  • फेनोटाइप (Phenotype): किसी प्राणी का बाहरी गुण (जो दीखता है) फेनोटाइप कहलाता है।
  • जीनोटाइप (Genotype): किसी प्राणी का वह गुण जो उसके जीन की संरचना के कारण होता है।
  • उत्परिवर्तन (Mutation): किसी जन्तु या पौधे का गुण DNA की प्रकृति पर निर्भर करता है। अगर किसी विधि से DNA के नाइट्रोजनी संरचना में परिवर्तन आ जाए या क्रोमोजोम के छोटे टुकड़े अलग हो जाएं तो जन्तु या पौधे के गुण परिवर्तित हो जाते है; इसी घटना को उत्परिवर्तन या Mutation कहते है।

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ग्रेगर जाॅन मेण्डल: आनुवंशिकी के पिता

  • ग्रेगर जाॅन मेण्डल जो ऑस्ट्रेलिया के पादरी थे, कि आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है। उन्होंने मटर (Pisum sativum) के पौधों पर अनेक प्रयोग किये और उनके आधार पर कुछ निष्कर्षों को प्रतिपादित किया जिसकी रिपोर्ट 1866 में प्रकाशित की गई।
  • अपने प्रयोगों के आधार पर मेण्डल निम्न निष्कर्षों पर पहुँचेगा
    (i) आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने वाले लक्षण को कारक (Factors) कहा, जो अब जीन के नाम से जाना जाता है।
    (ii) संकर संतान में यह कारक अपरिवर्तनशील होता है फलस्वरूप अगली पीढ़ी में वह लक्षण पूर्ववत् प्रकट होते है।
    (iii) मेंडल ने कुछ प्रयोगों में दो विपरीत लक्षणों को एक साथ लेकर प्रयोग किये, जैसे पीले और चिकने मटर के बीज तथा हरे और झुर्रीदार बीज। इस प्रकार जब दो लक्षणों को ध्यान में रखकर परीक्षण किया जाता है तो ऐसे क्राॅस को द्विसंकर क्राॅस (Dihybrid Cross) कहते है।
    (iv) मेण्डल ने अपने प्रयोगों के आधार पर जो निष्कर्ष निकाला उसे ‘मेण्डल के नियम’ के नाम से जाना जाता है। 
  • मेण्डल ने तीन नियमों का प्रतिपादन किया, जो निम्न है
    (i) मेण्डल का प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) - इसके अन्तर्गत उन्होंने एक जोड़े के विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर क्राॅस (Cross) कराया, तो पहली पीढ़ी में उपस्थित होने वाला लक्षण प्रभावी (Dominant) रहा तथा दूसरा लक्षण अप्रभावी (Recessive) रहा। उदाहरणस्वरूप, जब मटर के लाल पुष्प वाले पौधे से सफेद पुष्प वाले पौधे का क्राॅस कराया गया, तो पहली पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाले पौधे ही उगे। इससे नियमानुसार लाल रंग प्रभावी (Dominant) एवं सफेद रंग अप्रभावी (Recessive) हुआ।
    (ii) मेंडल का पृथक्करण का नियम (Law of Segregation) - इसमें दो विपरीत लक्षणों को क्राॅस कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में दोनों लक्षण उपस्थित होते है, लेकिन F2 पीढ़ी में दोनों लक्षण पृथक हो जाते है। जैसे-जब मटर के लाल पुष्प वाले पौधे का सफेद पुष्प वाले पौधे से क्राॅस कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाले पौधे ही उगते है, लेकिन पुनः जब इसी पीढ़ी के पुष्पों में स्व-परागण कराया जाता है, तो F2 पीढ़ी के पौधे दोनों प्रकार के होते है। यहाँ लाल पुष्प वाले तथा सफेद पुष्प वाले पौधों में 3 :l 1 का अनुपात पाया जाता है।
    (iii) स्वतंत्र पृथक्करण का सिद्धान्त (Law of Independent assortment) - इनमें दो विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर पर-परागण कराया जिसे द्वि-प्रसंकरण कहा जाता है। इसके अनुसार जब दो स्वतंत्र विपरीत लक्षणों वाले पौधे पर पर-परागण कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी में वे प्रभावी लक्षणों का प्रदर्शन करते है तथा युग्मनज के बनने में पृथक्करण का नियम लागू होता है।

आहार के पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत, कार्य और न्यूनता के लक्षण

पोषक तत्व

1. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)
स्त्रोत

  • अनाज वाले खाद्य पदार्थ में अधिकाधिक रूप में मण्ड (Starch) और गन्ना तथा ग्लूकोस विशुद्ध है। आलू तथा कंद-जातीय सब्जियाँ।

कार्य

  • ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले मुख्य स्त्रोत होते हैं।
  • मण्ड के रूप में ‘संचित ईंधन’ का कार्य करते हैं।
  • वसा में बदलकर ‘संचित भोजन’ का काम करते हैं।
  • RNA तथा DNA के घटक होते हैं।
  • ये शर्कराओं के रूप में ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन का काम करते हैं।

न्यूनता के लक्षण

  • सुस्ती, थकान, दुर्बलता, वजन कम हो जाना।

2. प्रोटीन (Protein)
स्त्रोत

  • सभी प्रकार की दाल , दूध, पनीर, मांस, मछली, अंडा, सूखे मेवे आदि।

कार्य

  • ये जीवद्रव्य के भौतिक दशाओं (साॅल- Sol तथा जेल- gel) का नियन्त्रण करती हैं।
  • कोशिकाओं के विभिन्न अंगकों (Organelles) की रचना में प्रमुखतः भाग लेते हैं।
  • वृद्धि तथा मरम्मत के लिए (Anabolism) आवश्यक होती है।
  • हार्मोन के संश्लेषण में भाग लेती हैं।
  • उपापचयी प्रतिक्रियाओं में रासायनिक उत्प्रेरक का कार्य करती हैं।
  • हीमोग्लोबिन के रूप में ये शरीर में गैसीय संवहन करती हैं।
  • एण्टीबाॅडीज के रूप में शरीर की सुरक्षा करती हैं।
  • न्यूक्लिओ प्रोटीन आनुवंशिक लक्षणों के विकास और वंशागति का नियंत्रण करती हैं।

न्यूनता के लक्षण

  • दुर्बलता, वजन कम होना, मानसिक तथा शारीरिक वृद्धि में कमी, बार-बार अस्वस्थ होना, दृष्टि का कमजोर होना। बच्चों में क्वाशिओरकर रोग (Kwashiorkor disease)।

3. वसा (Fat)

स्त्रोत

  • घी, तेल, मछली के यकृत का तेल चर्बी, मूँगफली, मक्खन, दूध,दही, क्रीम, सूखे मेवे आदि।

कार्य

  • ऊर्जा उत्पादन के लिए ये भी ईंधन का कार्य करती हैं।
  • इनका महत्व ‘संचित भोजन’ के रूप में अधिक होता है।
  • वसा ऊतकों के रूप में ताप-नियंत्रण और सुरक्षा में सहायता करती हैं।
  • आवश्यकता पड़ने पर कार्बोहाइड्रेट्स में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • कुछ बताएं कोशिका कला तथा अन्य झिल्लियों की रचना में भाग लेती हैं।
  • व्युत्पन्न वसाएं विटामिन ‘D’ तथा अनेक हाॅरमोन्स के संयोजन में भाग लेती हैं।

न्यूनता के लक्षण

  • दुर्बलता, वजन में कमी, थकावट, सुस्ती, स्तम्भित वृद्धि।

4. जल (Water)
स्त्रोत

  • शरीर में उपापचय के उपजात पदार्थ के रूप में, पानी के रूप में, जो तरल पदार्थ हम पीते हैं और ठोस पदार्थ हम खाते हैं उससे ही शरीर जल प्राप्त करता है।

कार्य

  • जल आहार का महत्वपूर्ण घटक है तथा भोजन के पाचन,अवशोषण के लिए आवश्यक है।
  • शरीर में यह घोलक (Solvent) का कार्य करता है जिसमें जीवद्रव्य के अधिकांश पदार्थ घुले रहते हैं, जिसमें शरीर की रासायनिक प्रतिक्रियाएं घटित होती हैं। 
  • जल सभी कोशिका और शरीर पदार्थ का वाहक है।
  • यह शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करता है।
  • यह शरीर में अत्यधिक शोधन करने वाला साधन है और अश्रु, श्वेद, मूत्र और मल के रूप में अवशिष्ट द्रव्य को बाहर निकालता है।
  • यह शरीर के जोड़ों के स्नेहक का काम करता हैं।
  • यह समस्त शरीर के ऊतकों व तरलों का अंगक है।

न्यूनता के लक्षण

  • अम्लरक्तता (Acidosis), क्षारमयता, निर्जलीकरण (Dehydration), शोफ (Oedema), आयात, अपच

5. लवण (Salts)
स्त्रोत

  • अनाज, सब्जियां, फल, सूखे मेवे आदि। (ये मुख्यतः कैल्शियम, सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम तथा लौह के क्लोराइड्स, फाॅस्फेट्स,कार्बोनेट्स तथा सल्फेट्स आदि होते हैं)

कार्य

  • लवणों के आयनों के कारण जीवद्रव्य में विद्युत-चालकता होती है। इसी से जीवद्रव्य में संवेदनशीलता होती है।
  • अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में आना बंधकों का कार्य करते हैं।
  • कई ऊतक, रक्त, हड्डियों, दाँतों आदि की रचना में भाग लेते हैं।
  • हृदय स्पंदन, चेता-संवहन, पेशी संकुचन आदि में महत्वपूर्ण भाग लेते हैं।

न्यूनता के लक्षण

  • अम्लरक्तता क्षारमयता, निर्जलीकरण, शोफ, अपचय हाथ-पैर कांपना, घेंघा रोग

6. विटामिन (Vitamins)
स्त्रोत

  • अनाज, फल, सब्जियां, सूखे मेवे आदि।

कार्य

  • उपापचय में विटामिन आवश्यक सहकारी हैं।
  • विटामिन विभिन्न ऑक्सीकरण एंजाइम के भागों के रूप में विशिष्ट प्रोटीनों का संयोजन करते हैं।
  • इनका सम्बन्ध शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा के भंजन से होता है।
  • ये उपापचय के अन्तिम उत्पाद के रूप में ऊर्जा कार्बन डाइआक्साइड व जल का मोचन करते हैं।

न्यूनता के लक्षण

  • अनेक प्रकार के न्यूनता जनित रोग

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लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome)

मानव जाति में पुरुषों के 46 गुणसूत्र अर्थात् 23 जोड़ियों में से केवल 22 जोड़ियों के गुणसूत्र समजात होते है, इन्हें आटोसोम्स (Autosomes) कहा जाता है। पुरुष में 23वीं जोड़ी अर्थात् 2 गुणसूत्र असमान होते है, ये हेटरोसोम्स (Heterosomes) या ऐलोसोम्स (Allosomes) कहलाते है। पुरुष के 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र को XY रूप में दर्शाते है, जबकि स्त्रियों में इस गुणसूत्र को XX रूप में दर्शाते है। स्पष्ट है कि मनुष्य में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र के कारण ही पुरुष एवं स्त्री का विकास होता है। अतः ये गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) कहलाते है।

मनुष्य में लिंग निर्धारण

  • पुरुष विषमयुग्मजी (Heterogametic) होते है। शुक्रजनन (Spermatogenesis) में अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा इनमें दो प्रकार के शुक्राणु बनते है- X एवं Y इसके विपरीत स्त्रियां समयुग्मकी (Homogametic) होती हैं अर्थात् इनमें अण्डजनन (Oogenesis) द्वारा एक ही प्रकार के अण्डाणु (Ova) बनते है। जिनम प्रत्येक में X शुक्राणु मिलता है।
  • इस प्रकार निषेचन (Fertilization) में यदि किसी अण्डाणु से X गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तो युग्मनज (Zygote) में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र XX होंगे और इससे बनने वाली संतान लड़की होगी। इसके विपरीत यदि किसी अण्डाणु से यदि Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलेगा तो जाइगोट के परिवर्धन से लड़का (XY) बनेगा। इस प्रकार पिता के द्वारा संतान का लिंग निर्धारण होता है।
  • इसी प्रकार लिंग-सूत्रों में, लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त कुछ अन्य गैर लैंगिक लक्षण के जीन्स पाये जाते है। इन्हीं लक्षणों को लिंग-सहलग्न वंशागति (Sex-Linked Inheritance) कहते है।

आनुवंशिक अनियमितता (Genetic Disorders)

क्रोमोजोम की संख्याओं में परिवर्तन अथवा जीन उत्परिवर्तन के कारण विभिन्न तरह की अनियमितताएँ जीन में पायी जाती है, जो वंशागत होती है। 

यह निम्न प्रकार की होती है

  • रंग वर्णान्धता (Colour blindness) - वर्णान्ध व्यक्ति लाल व हरे रंग का भेद नहीं कर पाते है। इसे डाल्टोनिज्म भी कहते है। यह लिंग-सम्बन्धित रोग होता है, जो वंशागति के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है।
  • डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's Syndrome) - इसमें 21वीं जोड़ी के गुणसूत्र दो के बजाए तीन होते है अर्थात् ऐसे व्यक्ति में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है। इस सिन्ड्रोम वाला व्यक्ति छोटे कद एवं मन्द बुद्धि का होता है। इसमें जननांग समान लेकिन पुरुष नंपुषक होते है। इसे मंगोली जड़ता (Mangoloid idiocy) भी कहते है।
  • हीमोफिलिया (Haemophilia)- यह भी मनुष्यों का लिंग सहलग्न रोग है। हीमोफिलिया के रोगियों में चोट के काफी समय के बाद तक भी रक्त लगातार बहता रहता है। अतः उसे रक्त-स्त्रावण रोग (bleeder's disease) भी कहते है। यह रोग प्रायः पुरुषों में ही पाया जाता है। इसकी वंशागति भी वर्णान्धता की जैसी होती है।
  • क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम (Klinefelter's Syndrome) - इसमें लिंग गुणसूत्र दो के बजाए तीन और प्रायः XXY होते है। इनमें एक अतिरिक्त X गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण (Testes) छोटे होते है और इनमें शुक्राणु नहीं बनते। अतः ये सिन्ड्रोम भी नंपुसक होते है।
  • टरनर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndrome) - ये ऐसी स्थियाँ होती है जिनमें केवल एक X गुणसूत्र पाया जाता है। इनका कद छोटा होता है एवं जननांग अल्पविकसित होते है। वक्ष चपटा तथा जनद अनुपस्थित या अल्पविकसित होते है। ये नंपुसक होती है।
  • फीनाइलकीटोनूरिया (Phenylketonuria)- बच्चों के तंत्रिक उत्तक में फीनाइलऐलेनीन के जमाव से अल्पबुद्धिता (Mental dificiency) हो जाती है। इस रोग में फीनाइलऐलेनीन को टाइरोसीन नामक अमीनो अम्ल में बदलने वाले एन्जाइम फीनाइल ऐलेनीन हाइड्रोक्सीलेज की कमी होती है।
  • हँसियाकार-रक्ताणु एनीमिया (Sickle-Cell Anaemia) - इस रोग में ऑक्सीजन की कमी के वजह से लाल रक्त कण के हीमोग्लोबिन सिकुड़कर हँसिया की आकृति के हो जाते है। यह रोग भी सुप्त जीन के कारण होता है। इसकी वंशागति में विशेष बात यह है कि सामान्य दशा का द्योतक प्रबल जीन पूरा प्रबल जीन नहीं होता है।

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FAQs on आनुवंशिक विज्ञान - जीव विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. आनुवंशिकी विज्ञान क्या है?
उत्तर: आनुवंशिकी विज्ञान जीव विज्ञान का एक महत्वपूर्ण शाखा है जो जीवों के बिगड़ते और पुनर्गठित होने वाले गुणों का अध्ययन करती है। इसका मुख्य ध्यान प्रतिद्वंद्विता और विविधता के पीछे विरासत में बदलाव के लिए जीवों के आनुवंशिक संरचना और कार्य पर होता है।
2. आहार के पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत क्या हैं?
उत्तर: आहार के पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत अपनी आहारिक प्रविधि के आधार पर अलग-अलग जीवों के लिए भिन्न हो सकते हैं। वनस्पतियों (फल, सब्जियां, अनाज), दूध और दूध संबंधित उत्पाद, मांस और मांस संबंधित उत्पाद और अन्य जैविक पदार्थ आमतौर पर पोषक तत्वों के प्रमुख स्रोत होते हैं।
3. आनुवंशिक विज्ञान क्या कार्य करती है?
उत्तर: आनुवंशिक विज्ञान जीवों के आनुवंशिक संरचना और उनके आनुवंशिक प्रभावों का अध्ययन करती है। यह गुणों के बिगड़ते और पुनर्गठित होने वाले आनुवंशिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए उपयुक्त तकनीकों का उपयोग करती है। इसका उपयोग जीवनी विज्ञान, चिकित्सा, बायोटेक्नोलॉजी, जीव उत्पादन और वनस्पति उत्पादन में किया जाता है।
4. आनुवंशिक विज्ञान में न्यूनताएं क्या हो सकती हैं?
उत्तर: आनुवंशिक विज्ञान में न्यूनताएं उपस्थित हो सकती हैं जो इसका ध्यान रखना आवश्यक बनाती हैं। कुछ मामलों में, न्यूनताएं शामिल हो सकती हैं: - अपूर्ण ज्ञान प्रदान: आनुवंशिक विज्ञान एक विस्तृत और गहन विषय है और इसमें नवीनतम अनुसंधान और विकास की बड़ी मात्रा होती है। इसलिए, न्यूनता हो सकती है जब ज्ञान की नवीनतम उपलब्धियों और अद्यतनों का पर्याप्त ज्ञान न हो। - तकनीकी अवरोध: कुछ आनुवंशिक अध्ययन में उपयोग होने वाली तकनीकों की न्यूनता हो सकती है, जैसे कि अद्यतन या विकासी तकनीकों की अभाव या पहुँच की कमी। - नमूना न्यूनता: कई आनुवंशिक अध्ययनों के लिए उचित नमूना प्राप्त करना एक चुनौती हो सकती है। नमूना न्यूनता के कारण अध्ययन के परिणामों की मान्यता और विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है।
5. आनुवंशिक विज्ञान कौन-कौन से क्षेत्रों में उपयोग होती है?
उत्तर: आनुवंशिक विज्ञान कई क्षेत्रों में उपयोगी होती है। कुछ मुख्य क्षेत्रों में शामिल हैं: - जीवनी विज्ञान: आनुवंशिक विज्ञान के अध्ययन से हम जीवनी विज्ञान के मूल लेखक, वंशानुक्रम, विकास और विकास इत्यादि के माध्यम से जीवों के
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