- आदमी बूढ़ा हो जाता है
मानव शरीर में होने वाली जैविक प्रक्रियाओं (Biological Activities) का मंद पड़ जाना ही वृद्धावस्था है। इन्हीं जीव वैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण उम्र बढ़ने पर बहुत सी शारीरिक क्रियायें धीमी पड़ जाती हैं, जिनके फलस्वरूप बुढ़ापा आ जाता है। बुढ़ापे में शरीर की सभी कोशिकाओं (Cells) और ऊत्तकों में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। गुर्दे, यकृत, प्लीहा और अग्न्याशय की कोशिकाएँ कमजोर हो जाती है। शरीर की रक्त शिराएँ पुरानी पड़ जाती हैं जो खून और अन्य पोषक तत्वों को शरीर के सभी हिस्सों में तेजी से नहीं पहुँचा पातीं। इस प्रकार बुढ़ापा आता जाता है।
- मकड़ी अपने बनाये जाल में खुद नहीं फँसती
मकड़ी जिन पदार्थों से अपना जाल बनाती है, उसका निर्माण उसके पेट की ग्रन्थियों में ही होता है। इसके पेट की नोक पर एक छोटे से छेद से यह द्रव पदार्थ बाहर आता है जो हवा के सम्पर्क में आकर धागे के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ये धागे चिपचिपे तथा मुलायम होते है। चिपचिपा धागा शिकार फँसाने के काम आता है। मकड़ी स्वयं अपने जाल में इसलिये नहीं फँसती क्योंकि इसके पैरांे में एक प्रकार का तेल पैदा होता है, जो इसे चिपचिपे धागों में नहीं फँसने देता और यह स्वतन्त्रतापूर्वक इधर-उधर विचरण करती है।
- फूलों में सुगन्ध होती है
भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों में अलग-अलग प्रकार के तेल होते है। इन्हीं तेलों के कारण फूलों में गन्ध होती है। यही तेल धीरे-धीरे वाष्पित होते है जिससे गन्ध का अनुभव होता है। फूलों के इन्हीं तेलों को निकालकर इत्र बनाये जाते है। फूलों में सुन्दरता, मनमोहक रंग, पुष्परस इत्यादि कीट पतंगें को आकर्षित करने के लिये होते हैं। कींट-पतंगे इनकी ओर आकर्षित होकर इन पर आकर बैठते है, और अपने साथ ही वे एक फूल के परागकणों को दूसरे फूल तक ले जाते है। इन्हीं परागकणों से फूलों में गर्भाधान की क्रिया होती है जिसके फलस्वरूप बीजों का जन्म होता है।
- प्रवासी पक्षी (Migrating Birds) अपना रास्ता ढूँढ़ लेते है
प्रवासी पक्षी उन पक्षियों को कहते है, जो प्रतिकूल मौसम आने पर एक देश छोड़कर दूसरे देश में चले जाते है। कई बार तो पक्षी एक महाद्वीप से उड़कर दूसरे महाद्वीप में जा बसते है। कुछ पक्षी सर्दियों में अपने स्थान को छोड़कर गर्म स्थानों में चले जाते है। बाद में वे पुनः अपने स्थान पर आ जाते है। सामान्यतः ऐसा कहा जाता है कि पक्षियों में एक जन्मजात शक्ति होती है जिसके आधार पर वह अपने रास्तों और ठिकानों का पता लगा लेते है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पक्षी पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति विशेष संवेदन रखते है और उनके आधार पर वे पता लगाते है कि वे धरती के किस हिस्से से आये है। वास्तविकता यह है कि वैज्ञानिकों के पास इस तथ्य की कोई ठोस जानकारी नहीं है कि प्रवासी पक्षी अपना रास्ता कैसे ढूँढ़ते है।
चिकित्साशास्त्र से सम्बंधित खोज/आविष्कार | |
खोज का नाम | वैज्ञानिक |
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ | आइन्योवन |
अंतःस्त्रव विज्ञान | वेलिस और स्टर्लिंग |
एन्टी टाक्सीन | बेहरिंग और कितासातो |
लिंग हार्मोन | इयूगन स्टेनाच |
एन्टीजन | लैंडस्टीनर |
मधुमेह का इंसूलिन | बेंटिंग एवं बेस्ट |
पेनीसीलिनी | एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग |
डी.डी.टी. | पाल मूलर |
स्ट्रेप्टोमाइसीन | सेलमन वैक्समैन |
एल.एस.डी. | हाफमैन |
गर्भ निरोधक गोलियाँ | पिनकस |
पोलियो का मुखीय टीका | एलबर्ट सेबिन |
किडनी मशीन | कोल्फ |
निम्न तापीय शल्य-चिकित्सा | हेनरी स्वेन |
ओपन हार्ट सर्जरी | वाल्टन लिलेहक |
पोलियो का टीका | जोनस साल्क |
कृत्रिम हृदय का प्रयोग (शल्य चिकित्सा के दौरान) | माइकेल डी बाके |
हृदय प्रतिरोपण शल्य चिकित्सा | क्रिश्चियन बर्नाड |
प्रथम परखनली शिशु | स्टेप्टो और एडवर्डस |
कैंसर के जीन | राबर्ट वीनवर्ग |
जेनेटिक कोड | डा. हरगोविन्द खुराना |
कालाजार बुखार की | यू.एन. ब्रह्मचारी |
चिकित्सा वंशानुक्रम के नियम | जाॅन ग्रेगर मेंडल |
प्राकृतिक चयन का सिद्धान्त | चाल्र्स डार्विन |
बैक्टीरिया | ल्यूवेन हाॅक |
रक्त परिसंचरण | विलियम हार्वे |
टीका लगाना | एडवर्ड जेनर |
स्टेथेस्कोप | रेने लिंक |
क्लोरोफाॅर्म | जेम्स सिमसन |
रेबीज टीका | लुई पास्चर |
कुष्ट के जीवाणुु | हनसन |
हैजे और तपेदिक के रोगाणु | राबर्ट कोच |
मलेरिया के रोगाणु | लावेरान |
डिप्थीरिया के जीवाणु | क्लेब्स एवं बजर्निक |
एस्प्रीन | ड्रेसर |
मनोविज्ञान | सिग्मंड फ्रायड |
- बांस
बांस घास कुल का पौधा है। अतः यह एक घास है। इसका मुख्य तना जमीन के भीतर रहता है। इसी से हवा में रहने वाली बांस की शाखायें निकलती है। इसके द्वारा छत, झोपड़ी, मकान, चटाइयाँ तथा टोकरियाँ बनायी जाती है। इसके द्वारा कागज बनाया जाता है। कुछ देशों में हरे बांस को सब्जी के रूप में भी प्रयोग करते है। बांस सबसे अधिक दक्षिण-पूर्व एशिया, भारतीय उपमहाद्वीप और प्रशांत महासागर के द्वीपों पर पाये जाते है। भारत में असम राज्य में सर्वाधिक बांस पाया जाता है।
- पेड़-पौधों की उम्र ज्ञात करना
वृक्षों की उम्र ज्ञात करने के लिये वैज्ञानिक वृक्ष के तने की अनुप्रस्थ काट को देखते है। यदि पेड़ के तने को एक गोल चकती के रूप में काटें तो उस पर गोल घेरे दिखाई देंगे। ये गोल घेरे ही वृक्ष की उम्र के अभिलेख है। इन्हीं घेरों को गिनकर हम वृक्ष की उम्र ज्ञात कर लेते है।
- एंटीबायोटिक्स
एंटीबायोटिक्स ;।दजपइपवजपबेद्ध एक विशेष प्रकार की ओैषधियाँ है जो हमारे शरीर में रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं का विनाश करती है। ये हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर रोगों से लड़ने में हमारी मदद करती है। सर्वप्रथम एंटिबायोटिक्स औषधि पेनिसिलीन थी जो निमोनिया, खाँसी, गले की सूजन इत्यादि के इलाज में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई। अन्य औषधियाँ स्ट्रेप्टोमाइसिन, एम्पिसिलीन, टेट्रासाइक्लिन, तथा क्लारोमाइसिटीन है। इनके द्वारा अनेक बीमारियों को दूर करने में मदद मिली हैै। एंटीबायोटिक्स जीवाणुओं और फंफूंदीयों से बनायी जाती है।
वनस्पति शास्त्र से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य | |
तथ्य | उदाहरण व विवरण |
सबसे बड़ा आवृतबीजी वृक्ष | यूकेलिप्टस |
संसार में सबसे लम्बा वृक्ष | कसिकुआ। यह एक नग्नबीजी है |
सबसे छोटा (आकार में) आवृतबीजी पौधा | लेमना। यह जलीय आवृतबीजी है जो भारत में भी पाया जाता है |
सबसे बड़ी पत्ती वाला पौधा | विक्टोरिया रेजिया। यह भारत में बंगाल में पाया जाने वाला जलीय पादप है |
सबसे बड़ा फल | लोडोइसिया। इसे डबल कोकोनट भी कहते हैं एवं केरल में पाया जाता है |
सबसे छोटा टेरिडोफाइटा | एजोला। यह एक जलीय पादप है |
सबसे छोटे बीज | आर्किड्स |
सबसे छोटा पुष्प | वुल्फिया। इसका पुष्प 0.1 मिमी. व्यास का होता है |
सबसे बड़ा पुष्प | रेफ्लेशिया ओरनोल्डाई। व्यास 45 सें.मी. तथा भार 90 कि.ग्रा. तक हो सकता है। यह वाइटिश की जड़ पर परजीवी है |
सबसे छोटा आवृतबीजी परजीवी | आर्सीथेबियम। यह एक द्विबीजपत्री है जो नग्नबीजियों के तने पर पूर्ण परजीवी है |
सबसे बड़ा नरयुग्म | साइकस। यह एक नग्नबीजी पादप है |
सबसे बडा बीजांड | साइकस |
जीवित जीवाश्म | साइकस |
सबसे छोटे गुणसूत्र | शैवाल में |
सबसे लम्बे गुणसूत्र | ट्राइलियम में |
सबसे ज्यादा गुणसूत्र वाला पौधा | औफियोग्लोसम। यह एक फर्न है जिसके डिप्लाॅयड कोशिका में 1266 गुणसूत्र पाये जाते हैं |
सबसे कम गुण सूत्र वाला पौधा | हेप्लोपोपस ग्रेसिलिस |
सबसे छोटा नग्नबीजी पादप | जेमिया पिगमिया |
सबसे भारी काष्ठ वाला पौधा | हार्डविचया बाइनेका |
सबसे हल्की काष्ठ वाला पौधा | ओक्रोमा लेगोपस |
सबसे छोटी कोशिका | माइकोप्लाज्मा गेलिसेप्टिकम |
धतूरा के बीजों के खाने पर मरने का कारण | बीजों में उपस्थित डेटूरिन नामक विषैला एल्केलाइड |
वनस्पति हाथी दांत | आइवरी पाम। इसमें हेमी सेल्यूलेज इतना कठोर हो जाता है कि बिलियर्ड के खेल की गैंदे बनाई जाती हैं |
टेनिस गेंद जैसा फल | केन्थ |
जंगल की आग | ढाक |
कल्प वृक्ष | एडनसोनिया डिजीटेटा। कुल-बोम्बोक्रसी, चमगादड़ द्वारा परागण |
कदंब का पेड़ | एंथसिफेलस कंदबा। कुल रुबियेसी, इसके पुष्प रात्रि में खिलते हैं, खुशबू युक्त होते हैं। परागण चमगादड़ द्वारा |
एक पौधे पर दो प्रकार की पत्तियों वाला पौधा | रेननकुलस अक्वेटिलिस |
हरी जड़ों वाले पौधे का उदाहरण | सिंघाड़ा |
आर्द्रताग्राही जड़ों वाले पौधे का उदाहरण | आर्किड्स-बांडा रोक्सवर्जिया |
उपरिपादप का उदाहरण | आर्किड्स-बांडा रोक्सवर्जिया |
मीठे जहर वाला पौधा | एकोनिटम फरोक्स। एकोनिटिन क्षाराभ के कारण विषैला है |
खाने योग्य कवक | 1. अगैरिकस केम्पेस्ट्रिरस 2. मार्केला एस्क्युलेंटा |
चाय देने वाला पौधा | थियासाइनेन्सिस की पत्तियों से, इसमें कैफीन, थीयोइन और टेनिन होती है |
काॅफी देने वाला पौधा | कोफिया अरेबिका। इसमें कैफिन होती है |
कोको देने वाला पौधा | थियोब्रोमा केकओ, इसमें थिओब्रोमीन व कैफीन होती है |
अफीम देने वाला पौधा | पोपी (पेपावर सोमेनिफेरम), इसमें मार्फीन होती है |
टीक की लकड़ी देने वाला पौधा | टेक्टोना ग्रेन्डिस |
साल की लकड़ी देने वाला पौधा | सोरिया रोबस्टा |
रबर देने वाला पौधा | हेविया ब्रेसिलेंसिस |
नारियल फल देने वाला पौधा | कोकोज न्युसीफेरा |
गांजा देने वाला पौधा | केनाबिस सेटाइवा |
- मोती
मोती सीपी के अन्दर पायी जाती है। यह सफेद, चमकदार वस्तु है, जो बहुत ही कीमती होता है। मोती का निर्माण घोंघे (Oyster) के द्वारा होता है। जब बालू का कण इसके अन्दर आता है तो घोंघा इस कण पर सीप के पदार्थ की परत चढ़ाये चला जाता है। यह परत कैल्शियम कार्बोनेट की होती है। कुछ समय बाद यही परत सीप के अन्दर मोती बन जाती है। इसी को सच्चा मोती कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि मोती सफेद ही हो, यह काला,गुलाबी, बैंगनी भी हो सकता है। आजकल मनुष्य ने कृत्रिम तरीके से भी मोती बनाना सीख लिया है। इसे ही मोती कल्चर कहते है। जापान में यह तकनीक काफी प्रचलित है, और कृत्रिम मोतियों का यह सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
- फल खट्टे या मीठे होते हैं
किसी फल का स्वाद उसमें उपस्थित यौगिकों पर निर्भर करता है। फलों में सामान्यतः अम्ल, विटामिन, स्टार्च तथा प्रोटीन एवं सैल्यूलोज होते है। ये सभी पदार्थ फल के अन्दर मिश्रित अवस्था में होते है। जिन फलों में अम्लों की मात्रअधिक होती है, उनका स्वाद खट्टा होता है। जिन फलों में स्टार्च या सुक्रोज (चीनी) ज्यादा होती है, उनका स्वाद मीठा होता है। इसी प्रकार दो फलों के स्वाद में भी अन्तर होता है। इसका कारण यह है कि एक ही प्रकार के फल में अनेक प्रकार की उपजातियाँ होती है, और फिर स्थान, जलवायु, उगाने के तरीके, खाद, पानी इत्यादि की विभिन्नता से उनमें उपस्थित यौगिकों की मात्रएक समान नहीं होती, इसलिए उनका स्वाद भी भिन्न-भिन्न होता है।
- छुई-मुई का पौधा छूने से मुरझा जाता है
छुई-मुई के पौधे की पत्तियाँ स्पर्श के प्रति संवेदनशील होती है। जब हम इनकी पत्ती को छूते है तो पतली दीवारों वाली कोशिकाओं से पानी तने में चला जाता है, फलस्वरूप ये कोशिकायें सिकुड़ जाती हैं। इसी को हम छुई-मुई का मुरझाना कहते है।
- लोग बौने होते है
मनुष्य की लम्बाई में वृद्धि सामान्यतः कई बातों पर निर्भर करती है। सामान्य रूप से मनुष्य की लम्बाई वंशानुगत गुणों के कारण होती है। जिस व्यक्ति के माँ-बाप लम्बे होंगे वह व्यक्ति भी लम्बा होगा। छोटे कद के माँ-बाप के बच्चे छोटे कद के होते है। बौनेपन का दूसरा कारण बीमारी भी हो सकती है। कुछ बीमारियाँ ऐसी होती है, जो लम्बाई में वृद्धि को रोक देती है। बौनापन पीयूष ग्रन्थि (Pituitary gland) में हार्मोन की कमी के कारण भी हो सकता है। इस प्रकार हार्मोन्स की कमी का कारण भी मनुष्य में लम्बाई की वृद्धि को रोक देता है।
- ह्नेल को मछली नहीं माना जाता
ह्नेल एक स्तनधारी (Mammal) प्राणी है। ह्नेल का विकास विशालकाय जन्तुओं डाइनोसाॅर (Dinosaur) से माना जाता है। ह्नेल का आकार भी सभी जन्तुओं से विशाल होता है। ह्नेल फेफड़ों से साँस लेती है। मछलियों की भाँति इसके गिल्स नहीं होते। यह बच्चे पैदा करती है और उनको दूध पिलाती है। इन्हीं सब गुणों के कारण ह्नेल को मछली न मानकर स्तनधारी प्राणी माना जाता है।
- मछलियाँ पानी में साँस लेती है
मछलियाँ गिल्स द्वारा साँस लेती है। उनमें हमारी तरह फेफड़े नहीं होते और न ही वे हमारी तरह नाक से साँस लेती है। मछलियाँ साँस लेने के लिये मुँह में पानी लेती है। यह पानी गलफड़ों से होता हुआ बाहर निकल जाता है। पानी में मिली हुई आक्सीजन गलफड़ों की कोशिकाओं द्वारा सोख ली जाती है और गलफड़ों में बहने वाले खून के साथ यह आक्सीजन में मिल जाती है, और शरीर में भ्रमण करती है। इसी आक्सीजन से मछली का खून शुद्ध होता रहता है तथा मछली के साँस लेने की क्रिया पूरी हो जाती है।
- सर्दियों में मेढ़क मिट्टी में घुस जाते है
मेढ़क के शरीर का तापमान एक सा नहीं रहता बल्कि वातावरण के साथ-साथ घटता-बढ़ता रहता है। जाड़े का मौसम शुरू होते ही जैसे-जैसे वातावरण का ताप गिरता है, मेढ़क के शरीर का ताप भी कम होने लगता है, इससे इसकी जीवन क्रियाएं शिथिल होने लगती है। ये अपने को जीवित रखने के लिये तालाबों के नीचे गीली मिट्टी में सिर के बल धीरे-धीरे धंसाना शुरू कर देते है और काफी गहराई में चले जाते है। इस समय मेढ़क पूर्णतया विश्राम करता है, और जीवित रहने के लिये अपने शरीर में जमा चर्बी तथा ग्लाइकोजन प्रयोग में लाता है।
- साँपों का जहरीलापन
सभी साँप जहरीले नहीं होते। हमारे यहां साँपों की लगभग 200 जातियाँ पायी जाती है जिनमें चार जातियाँ ही जहरीली है। इनमें कोबरा (Cobra), करैत (Krait), साॅ स्केल वाइपर (Saw Scale Viper) और रसल वाइपर (Rus-sell Viper) ही जहरीली जातियाँ है। साँपों में पाये जाने वाले जहर को वेनम (Venom) कहते है। साँप के सिर के दोनों ओर आँखों के थोड़ा नीचे विष ग्रन्थियाँ (Poison glands) स्थित होती है।
- नींद में हमारे शरीर पर प्रभाव
हमारा मस्तिष्क एक बहुत जटिल क्षेत्रहै। हमारे मस्तिष्क में निद्रा केन्द्र नाम का एक विशिष्ट क्षेत्ररहता है। खून में मिला हुआ कैल्सियम इस निद्रा केन्द्र को नियन्त्रिात करता है। जब कैल्सियम की एक निश्चित मात्ररक्त द्वारा निद्रा केन्द्र में पहुँचा दी जाती है तो हमें नींद आ जाती है। नींद की अवस्था में हमारे हृदय की धड़कन कुछ धीमी हो जाती है, लेकिन पाचन संस्थान अपने सामान्य स्थिति में रहता है। यकृत एवं गुर्दे अपना काम सामान्य रूप से करते रहते है। नींद की अवस्था में हमारे शरीर का तापमान लगभग एक डिग्री कम हो जाता है।
- महिलाओं की आवाज सुरीली होती है
सामान्यतः तेरह साल की अवस्था में लड़के-लड़कियों में वयस्कता आनी शुरू होती है। इस उम्र में हमारे शरीर की ग्रन्थियाँ सेक्स हार्मोन (Sex Harmones) पैदा करती है। इन हार्मोनों के पैदा होने से लड़के एवं लड़कियों के शरीर में बहुत से परिवर्तन आ जाते है। इस उम्र में लड़कों की आवाज में भारीपन आने लगता है, उनके कंठनली की लम्बाई और मोटाई बढ़ जाती है जबकि लड़कियों में यह हार्मोन नहीं पैदा होता। इसलिये उनकी आवाज पहले जैसी सुरीली बनी रहती है।
- कुछ लोग नींद में खर्राटे लेते है
जब हम जागते है तब हमारे मुँह के अन्दर गले के पास की त्वचा सख्त और तनी हुई रहती है, लेकिन सोते समय यह कुछ ढीली पड़ जाती है। मुंह से साँस लेने पर ढीली त्वचा वायु के दबाव द्वारा कम्पन करने लगती है। त्वचा के इसी कम्पन के फलस्वरूप एक आवाज निकलने लगती है। इसी आवाज को लोग खर्राटे के रूप में सुनते है। यदि हम सोने से पहले अपनी नाक एवं मुख भली-भाँति साफ कर लें, तो यह खर्राटा काफी कम हो सकता है।
- डायलीसिस
कृत्रिम तरीके द्वारा रक्त से हानिकारक पदार्थों को छानकर अलग करना ही डायलीसिस (Dialysis) की क्रिया कहलाती है। किसी व्यक्ति का गुर्दा (Kidneys) यदि ठीक ढंग से कार्य नहीं कर रहा हो तो हानिकारक पदार्थों की मात्रखून में बढ़ती जाती है, फलस्वरूप रक्त जहरीला हो जाता है। वैज्ञानिकों ने ऐसे छन्नों का निर्माण कर लिया है, जो शरीर के गन्दे खून को शरीर से बाहर निकालकर साफ करने का काम करते है। इन छन्नों को डाइलाइजर (Dialyser) कहते है। रोगी का गंदा रक्त उसकी किसी एक धमनी से सिरिन्ज द्वारा डाइलाइजर में भेजा जाता है, यहाँ रक्त साफ होकर रोगी की किसी शिरा द्वारा शरीर में वापस भेज दिया जाता है। यह प्रक्रिया डायलीसिस के द्वारा होती है।
- बेहोशी का कारण
हमें सामान्य रूप से कार्य करने के लिये यह आवश्यक है कि मस्तिष्क में रक्त का संचार उचित प्रकार से होता रहे। जब तक हमारे मस्तिष्क में खून की उचित मात्रपहुँचती रहती है तब तक हमारी सभी क्रियाएं सामान्य रूप से चलती रहती है। यदि हमारे मस्तिष्क में रक्त पहुँचने में कोई बाधा आ जाये तो मनुष्य बेहोशी की अवस्था में आ जायेगा। अतः मस्तिष्क के अन्दर रक्त का अभाव होना ही बेहोशी का कारण है।
- जुड़वाँ बच्चे का पैदा होना
स्त्री-पुरुष का जब एक निश्चित समय पर संयोग होता है तो पुरुष के वीर्य (Semen) में उपस्थित स्पर्म (Sperms) में से एक स्पर्म स्त्री के अंडे में प्रवेश कर जाता है। अंडे में स्पर्म के प्रवेश की क्रिया को गर्भाधान कहा जाता है। कभी- कभी ऐसा हो जाता है कि गर्भाधान की क्रिया के बाद अंडा दो हिस्सों में बँट जाता है। इन दोनों भागों का गर्भाशय में अलग-अलग दो बच्चों के रूप में विकास होता रहता है। इस प्रकार पैदा हुये दोनों बच्चे रूप, रंग, आकार में एक से होते है। उनके गुण भी मिलते-जुलते है। ये दोनों बच्चे या तो लड़की होंगे या लड़के। इसका कारण यह है कि दोनों बच्चे एक ही अंडे से पैदा हुये है। कभी-कभी महिलाओं को दो या उससे अधिक बच्चे एक ही साथ जन्म लेते है। दो या उससे अधिक बच्चे अलग-अलग अंडों में स्पर्मों द्वारा प्रवेश कर जाने से होते है। इस स्थिति में परिणामित संततियों के गुण भिन्न होते हैं।
जन्तु-विज्ञान के उपखण्ड | |
पारिस्थितिकी | सजीव एवं निर्जीव वातावरण से जीवों के संबंधों का अध्ययन |
क्रेनिओलाॅजी | करोटि का अध्ययन |
न्यूरोलाॅजी | तंत्रिका तंत्रका अध्ययन |
सार्कोलाॅजी या मायोलाॅजी | पेशियों का अध्ययन |
हीमैटोलाॅजी | रुधिर एवं रुधिर रोगों का अध्ययन |
आॅस्टिओलाॅजी | कंकाल तंत्र का अध्ययन |
एन्जिओलाॅजी | परिसंचरण तंत्र का अध्ययन |
ओडाॅन्टोलाॅजी | दंत विज्ञान का अध्ययन |
आॅरगैनोलाॅजी | अंग विज्ञान का अध्ययन |
सिन्डेस्मोलाॅजी | कंकाल संधियों एवं स्नायुओं का अध्ययन |
कैरिओलाॅजी | केन्द्रक का अध्ययन |
एन्डोक्राइनोलाॅजी | अंतःस्त्रावी तंत्रका अध्ययन |
कार्यिकी | शरीर कार्य एवं कार्य विधियों का अध्ययन |
टेक्टोलाॅजी | शरीर के रचनात्मक संघटन का अध्ययन |
इथोलाॅजी | जंतु के व्यवहार का अध्ययन |
भ्रौणिकी | भू्रणीय परिवर्धन विज्ञान |
जैविकी | जीवन-वृत का अध्ययन |
जातिकी | जाति के उद्विकास का अध्ययन |
वर्गिकी | जीव जातियों का नामकरण एवं वर्गीकरण |
टेटोलाॅजी | उपार्जित लक्षणों का अध्ययन |
जीवाश्मिकी | जीवाश्मों का अध्ययन |
आनुवंशिकी | जीवों के आनुवंशिक लक्षणों एवं वंशागति का अध्ययन |
प्राणि भूगोल | पृथ्वी पर जंतुओं के वितरण का अध्ययन |
सुजननिकी | आनुवंशिकी के सिद्धांतों द्वारा मानव जाति की उन्नति का अध्ययन |
यूथेनिक्स | पालन-पोषण द्वारा मानव जाति की उन्नति का अध्ययन |
यूफेनिक्स | कोशिकाओं में जीन RNA- प्रोटीन संश्लेषण शृंखला में परिवर्तन करके मानव-जाति की उन्नति का अध्ययन |
रेडियोबायोलाॅजी या एक्टिनोबायोलाॅजी | जीवों पर विकिरणों के प्रभाव का अध्ययन |
परजीविक | परजीवी जीवों का अध्ययन |
पेथाॅलाॅजी | रोगों की प्रकृति, लक्षणों व कारणों का अध्ययन |
ट्रोफोलाॅजी | पोषण विज्ञान |
एन्जाइमोलाॅजी | एन्जाइम के स्रोत, स्राव तथा प्रभाव का अध्ययन |
हेल्मिन्थोलाॅजी | परजीवी कमियों का अध्ययन |
इक्थियोलाॅजी | कीट पतंगों (Insects)का अध्ययन |
एन्टोमोलाॅजी | मछलियों और मछली पालन का अध्ययन |
एन्थ्रोपोलाॅजी | मानव जाति के सांस्कृतिक विकास का अध्ययन |
मोलस्क विज्ञान | मोलस्का और उसके कवचों का अध्ययन |
सीरम विज्ञान | रुधिर सीरम का अध्ययन |
आणविक जीव विज्ञान | आणविक स्तर पर जंतुओं का अध्ययन |
सूक्ष्म जैविकी | अतिसूक्ष्म जीवों का अध्ययन |
बैक्टेरियोलाॅजी | जीवाणुओं का अध्ययन |
वाइरोलोजी | विषाणुओं का अध्ययन |
उद्विकास | पहले पाए गये तथा बाद में पाए जाने वाले जीवों के पारस्परिक संबंधों द्वारा सरल रचनाओं से जटिल रचनाओं के परिवर्तन का अध्ययन |
कार्डियोलाॅजी | हृदय की रचना तथा कार्यविधि का अध्ययन |
काॅन्ड्रोलाॅजी | उपास्थि (Cartilage) का अध्ययन |
क्रायोजेनिक्स | जंतुओं के शरीर पर सर्दी के प्रभाव का अध्ययन |
पेरालाॅजी | स्पंजों का अध्ययन |
मिरमीकोलाॅजी | चींटियों का अध्ययन |
निमैटोलाॅजी | गोलकृमि परजीवियों (Nematodes) का अध्ययन |
ऐरेकनोलाॅजी | मकड़ियों का अध्ययन |
सौरोलाॅजी | छिपकलियों का अध्ययन |
एथनोलाॅजी | मनुष्य की जातियों का अध्ययन |
सिण्डेस्मोलाॅजी | जन्तुओं के शरीर में पाए जाने वाले जोड़ों (joints) का अध्ययन |
गाइनेकोलाॅजी | मादा जीवधारियों के प्रजनन अंगों का अध्ययन |
राइनोलाॅजी | जंतुओं के कान, नाक तथा गले का अध्ययन |
हिप्नोलाॅजी | नींद (Sleep) का अध्ययन |
आॅनीरोलाॅजी | स्वप्न (Dream) का अध्ययन |
कैलोलाॅजी | मानवीय सौंदर्य (Human Beauty) का अध्ययन |
मधुमक्खी-पालन | मधुमक्खियों के पालने एवं उनसे शहद तथा मोम प्राप्त करने का अध्ययन |
रेशमकीट-पालन | रेशम प्राप्त करने वाले रेशमकीट का अध्ययन |
पिसीकल्चर | मछलियों के पालने का अध्ययन |
पाउल्ट्री | अण्डे एवं मांस प्राप्त करने का अध्ययन |
पिगरी | सुअरों से चर्बी, मांस आदि प्राप्त करने का अध्ययन |
- स्तनधारी मादा के शरीर में दूध का बनना
दूध का निर्माण स्तनधारी प्राणियों के स्तनों में उपस्थित कुछ विशेष ग्रन्थियों द्वारा होता है। ये ग्रन्थियाँ आकार में काफी बड़ी होती है और इनकी बनावट थैलीनुमा होती है। इन ग्रन्थियों से वसा की बड़ी-बड़ी बूँदें निकलती हैं जो स्तनों में उपस्थित तरल पदार्थों से मिलकर दूध बना देती हैं। अधिकतर स्तनधारी प्राणियों में एक हारमोन होता है, जो इन ग्रन्थियों को क्रियाशील करता है। अण्डाशय के कोरपस लूटियम से भी एक हारमोन ”प्रोलैक्टिन“ (Prolactine) दूध के निर्माण की क्रिया में सहायता देता है।
- हमारा शरीर गर्म रहता है
हमारे शरीर को गर्मी भोजन से प्राप्त होती है। जो खाना हम खाते है, वह शरीर में आक्सीकरण (Oxidation) की क्रिया द्वारा ऊष्मा ऊर्जा में बदल जाती है। भोजन से पैदा हुई ऊर्जा के द्वारा ही शरीर समस्त कार्य करता है। एक सामान्य व्यक्ति के शरीर में लगभग 2500 कैलोरी ऊर्जा प्रतिदिन पैदा होती है। इसी ऊर्जा से शरीर द्वारा विभिन्न कार्य होते है और शरीर गर्म भी रहता है। शरीर के तापमान को स्थिर रखने का काम मस्तिष्क द्वारा नियन्त्रिात होता है। जब मस्तिष्क के ताप नियन्त्राक केन्द्र में कोई गड़बड़ी आ जाती है तो मनुष्य को कंपकंपी आने लगती है या बुखार हो जाता है। शरीर के गर्म रहने से सदा ही हमारे शरीर से ऊष्मा विकिरण द्वारा बाहर निकलती रहती है।
- हमें हिचकी आती है
हमारी छाती एवं पेट के बीच में एक डायाफ्राम (Diaphram) होता है। अन्दर की ओर साँस खींचते समय यह डायाफ्राम नीचे चला जाता है और पेट को दबाता है, जिससे फेफड़ों में हवा भर जाती है और साँस बाहर निकलते समय यह ऊपर की ओर आ जाता है, जिससे हवा फेफड़ों से बाहर निकल जाती है। इस प्रकार यह डायाफ्राम ऊपर नीचे होता रहता है और साँस लेने की क्रिया बिना आवाज किए चलती रहती है। यह डायाफ्राम एक पिस्टन की तरह काम करता है। कभी-कभी पेट में गैस या अम्लता बढ़ जाने के कारण यह डायाफ्राम उत्तेजित होकर सिकुड़ जाता है। ऐसी स्थिति में फेफड़ों में जाने वाली हवा रुकावट के कारण एक अजीब सी आवाज पैदा करती है। इसी को हम हिचकी आना कहते है। अतः हिचकी आना एक ऐसी क्रिया है, जिसके द्वारा पेट में बनी गैस या अवांछित भोजन को शरीर बाहर निकालने की कोशिश करता है, जिससे साँस लेने में कोई रुकावट न हो। शराब पीने या पास में किसी ट्यूमर के हो जाने पर भी यह डायाफ्राम सिकुड़ जाता है और हमें हिचकी आने लगती है।
- हमें प्यास लगती है
हमारे रक्त में जल एवं नमक सदैव ही मौजूद रहते है। शरीर के ऊत्तकों में भी ये पदार्थ रहते है। सामान्यतः रक्त में इन दोनों पदार्थों का अनुपात स्थिर रहता है। किसी कारणवश रक्त में जल की मात्रा कम होने पर इन दोनों पदार्थों का अनुपात बदल जाता है। इस स्थिति में मस्तिष्क में उपस्थित प्यास केन्द्र गले को सन्देश भेजता है, जिसके फलस्वरूप गले में सिकुड़न पैदा हो जाती है। इस सिकुड़न से गला सूखने लगता है और हमें प्यास महसूस होने लगती है।
- बिना उबाले दूध जल्दी खराब हो जाता है
ताजे दुहे दूध में कई प्रकार के बैक्टीरिया होते है। जब दूध वायु के सम्पर्क में आता है तो इन बैक्टीरिया के कारण दूध खट्टा हो जाता है। दूध को खराब होने से बचाने का सबसे अच्छा तरीका फ्राँसीसी वैज्ञानिक लुई पास्चर ने खोजा था। इस प्रक्रिया को पास्चुराइजेशन (Pasteurization) कहते है। बाजार में बिकने वाले मक्खन और दूध के पैकेटों पर पास्चुराइजेशन युक्त लिखा रहता है। यदि दूध को 620C पर 30 मिनट तक गर्म करके ठंडा कर दिया जाये तो दूध में उपस्थित बैक्टीरिया मर जाते है। इस प्रकार के गर्म किये हुए दूध को बिना खराब हुए अधिक समय तक रखा जा सकता है।
- ऊंट के शरीर में कूबड़ (Hump) का महत्व
ऊँट का कूबड़ एक चलता-फिरता वसा का भण्डार है। जब भोजन और पानी की कमी होती है, तो यही वसा विघटित होकर ऊर्जा और पानी में बदल जाती है। इस विधि से ऊंट 17 दिन तक बिना पानी के जीवित रह सकता है।
- जब हम रोते है, तो आँखों से आँसू बहता है
आँख की ऊपरी पलक में एक लेक्राइमल (Lachrymal) नामक ग्रंथि पायी जाती है। आँसू इसी ग्रंथि से निकलता है। किसी भावुकता से या आँख में कुछ घुस जाने से यह ग्रंथि सक्रिय होकर आँसुओं का स्त्राव करती है। नन्हें शिशुओं में यह ग्रन्थि विकसित नहीं होती, इसीलिए उनके रोने पर आँसू नहीं निकलता है।
- गर्म देशों के व्यक्ति ठंडे देशों की अपेक्षा काले होते है
त्वचा में मेलानिन (Melanin) नामक पिगमेंट बनता है। गर्म देशों में व्यक्तियों को पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से बचाने के लिए त्वचा में मेलानिन का निर्माण अधिक मात्रा में होता है, जिससे वे काले होते है। ठंडे देशों के व्यक्तियों में मेलानिन कम मात्रा में पाया जाता है, जिससे वे गोरे होते है।
- मुँहासे का कारण
त्वचा की बाहरी सतह पर ‘सिबेशियस’ नामक छोटी-छोटी ग्रंथियाँ पाई जाती है। इनमें ‘सिबम’ नामक चिकना पदार्थ बनता है। सिबेशियस ग्रंथियाँ महीन नलियों के माध्यम से त्वचा पर बने छिद्रो द्वारा बाहर की ओर खुलती है। ग्रंथियों में बना सिबम इसी नली से बाहर निकलता है। कभी-कभी सिबम बहुत अधिक मात्रा में बनता है, जिससे बाहर नहीं निकल पाता और फूलकर मुँहासे का रूप धारण कर लेता है।
- श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया)
ल्यूकोरिया का शाब्दिक अर्थ है- सफेद तरल पदार्थ बहना। प्रायः योनि मार्ग पर एक तरल तह बनी रहती है, जो सुरक्षा कवच का कार्य करती है। कुछ स्त्रियों में इसकी अधिकता होने से श्वेत प्रदर होने लगता है। यह रोग एक रोगाणु ट्राइकोमोनास के संक्रमण से भी होता है।
- वृद्धावस्था में चेहरे पर झुर्रियां पड़ती है
झुर्री पड़ना वृद्धावस्था का प्रतीक है। त्वचा में ऊपरी सतह के नीचे कुछ संयोजी ऊत्तक(Connective tissues) होते है, जो दो प्रकार के प्रोटीन तन्तुओं से बनता है- कोलेजन और इलास्टिन। कोलेजन त्वचा को आवश्यक सामग्री देता है और इलास्टिन त्वचा को लचीलेदार बनाये रखता है। उम्र अधिक होने पर इलास्टिन खत्म होने लगता है, और कोलेजन अस्त-व्यस्त होकर धारियों जैसी संरचना बनाता है। सूर्य की पराबैंगनी किरणें भी झुरियाँ बढ़ाने में सहयोग करती है।
- पसीना
हमारे शरीर से पसीने का स्त्राव ‘स्वेद ग्रंथियों’ से होता है। एक सामान्य मनुष्य के शरीर में 20 लाख से लेकर 35 लाख तक स्वेद ग्रंथियाँ होती है। आकार एवं गुण धर्म के आधार पर स्वेद ग्रंथियों को दो वर्गों में बाँटा गया है- बड़ी स्वेद ग्रंथियों को ‘एपोक्राइन’ तथा छोटी ग्रंथियों को ‘एक्क्राइन’ कहते है। प्रत्येक स्वेद ग्रंथि रुधिर कोशिकाओं के जाल से ढ़की रहती है। पसीने के लिए पानी इन्हीं रुधिर कोशिकाओं से प्राप्त होता है। गर्मी के दिनों में मनुष्य के शरीर से दिन भर में 12 लीटर तक पसीना निकल आता है। पसीने में 99.5% पानी तथा शेष सोडियम, क्लोराइड, सल्फेट, फास्फेट, यूरिया और लैक्टिक अम्ल होता है। मनुष्य ‘गर्म रक्त’ वाले समूह का प्राणी है और उसके शरीर का तापक्रम बदलते मौसम के बावजूद स्थिर रहना चाहिए। जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है, तो शरीर की रक्षा करने के लिए पसीना निकलता है।
- ‘थैलासीमिया’
थैलासीमिया एक ऐसा आनुवंशिक रोग है, जिससे पीड़ित शिशु में जन्म के कुछ माह बाद ही अत्यधिक अरक्तता हो जाती है। उसे जीवित रखने के लिए उसे बाहरी रक्त देना अनिवार्य हो जाता है। इस रक्ताधान की क्रिया को जीवनपर्यन्त 6-8 सप्ताह के अंतराल से दोहराना पड़ता है। इस रोग से बचने के लिए यह आवश्यक है कि स्क्रीनिंग परीक्षण के बाद थैलासीमिया से पीड़ित पुरुष को सलाह दी जाये कि वह उसी जीन की विषम युग्मन महिला से विवाह न करे अन्यथा उनकी संतान भी थैलासीमिया से पीड़ित हो सकती है।
- महिलाओं में मासिक धर्म (Menstrous cycle)
महिलाओं में इस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेराॅन नामक हार्मोन के स्तर में गिरावट के साथ ही मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है। इसी के साथ ‘एन्डोमेट्रियम’ (जहाँ डिम्ब का निर्माण होता है) गर्भाशय से निकलकर बाहर की ओर चल पड़ता है। एन्डोमेट्रियम का बाहर निकलना ही मासिक स्त्राव कहलाता है।
- सिड्स
यह रहस्यमय बीमारी है, जिसका पूरा नाम- ‘अकस्मात् शिशु मृत्यु लक्षण’ (Sudden Infant Death Syndrome =k SIDS) है। इसमें लक्षण नहीं होता है और न ही बच्चे रोते है। इसे ‘शैय्या मृत्यु’ भी कहा जाता है। इस रोग के संभवतः दो कारण है, पहला- जन्म के समय शिशुओं का वजन कम होना, और दूसरा- स्त्रियों का जल्दी-जल्दी गर्भ धारण करना।
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