कैंसर
कैंसर के प्रकार
कैंसर सभी प्रकार के मैलिग्नैंट ट्यूमर (malignant tumor) का सामान्य नाम है जिसे ऊतक के एक असामान्य समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसकी संवृद्धि सामान्य ऊतक से अधिक तीव्र होती है तथा उपचारात्मक कारकों को पृथक कर दिए जाने के बाद भी बनी रहती है। वास्तव में कैंसर एक बीमारी नहीं है यह कई बीमारियों का एक लक्षण है।कैंसर सैकड़ों प्रकार के होते हैं,
जिन्हें मुख्य रूप से निम्नलिखित चार समूहों में बाँटा जा सकता है।
1. कार्सिनो मास (carcinomas)
- इस प्रकार के कैंसर में ट्यूमर का निर्माण होता है, जिसकी उत्पत्ति बाह्य एपीथीलियल कोशाओं (External Epithelial cells) से या एपीडर्मिस (Epidermis) कोशाओं से होती है। सामान्यतः ठोस ट्यूमर का निर्माण तन्त्रिाका ऊतकों (nerve tissue) के एकत्रा होने से होता है। इन ऊतकों से जो ग्रन्थियाँ जुड़ी रहती हैं, उन्हें कार्सीनोमास कहते हैं।
- इनमें मुख्य रूप से सीने का कैंसर, मस्तिष्क कैंसर, त्वचा के कैंसर को सम्मिलित किया गया है। विश्व के विभिन्न भागों में कैंसर से पीड़ित रोगियों में 80.85 प्रतिशत रोगी इस प्रकार के कैंसर से पीड़ित हैं।
2. सारकोमास (sarcomas)
- सारकोमा ट्यूमर का निर्माण संयोजी ऊतकों (connective tissue) से होता है। ये ठोस ट्यूमर है, जो संयोजी ऊतकों से, हड्डियों एवं माँसपेशियों, (muscles) में बनतेहै। विश्व में 2.3 प्रतिशत रोगी इसी प्रकार के कैंसर से पीड़ित है।
3. लिम्फोमास (Lymphoma)
- इस प्रकार का कैंसर लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes)" की अधिकता के कारण होता है। लिम्फोसाइट्स का अधिक निर्माण लिम्फ (lymph) एवं प्लीहा (spleen) के द्वारा होता है। इस प्रकार का कैंसर मनुष्यों में लगभग 5 प्रतिशत तक देखा गया है।
4. ल्यूकेमिया (Leukemia)
- इस प्रकार का कैंसर ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes), जिनको (W.B.C.) भी कहतेहै, की अधिकता के कारण होता है। मनुष्यों में लगभग इस प्रकार का कैंसर 4 प्रतिशत तक पाया जाता है।
कैंसर कोशाओं के लक्षण
➤ कैंसर कोशिकाओं में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है
- कोशीय अवशोषण क्षमता में कमी - कैंसर के कारण कोशिकाएं सामान्य हो जाती है जिसकी वजह से इन कोशाओं में अवशोषण क्षमता कम हो जाती है।
- कोशिका झिल्ली के अवयवों में आणविक परिवर्तन - कैंसर युक्त कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) में बाह्य पर्त पर पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थों में परिवर्तन आ जाता है, जैसे - कैंसर कोशाओं में ग्लाइकोप्रोटीन की मात्रा में कमी आ जाती है।
- ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis) की दर में वृद्धि - ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया में ग्लूकोज का अपघटन हो जाता है। कैंसर कोशाओं में ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया की दर तेज हो जाती है। वारवर्ग नामक वैज्ञानिक ने 1920 में ही सिद्ध कर दिया था कि कैंसर कोशाओं में ग्लाइकोलाइसिस की दर बढ़ जाती है।
- शर्करा की अधिक मात्रा का स्थानान्तरण - कैंसर कोशिकाएं अधिक शर्करा का स्थानान्तरण करतीहै। ट्यूमर कोशाएँ अधिक शर्करा को अवशोषित करतीहै, जिससे इन कोशाओं की वृद्धि तेजी से होती है।
- कोशिकीय कंकाल (Cytoskeleton) "की अनियमितताएं कैंसर कोशिकाओं के कारण कोशा का कंकाल जो माइक्रोट्यूब्यूल्स; डपबतवजनइनसमेद्ध एवं माइक्रोफिलामेन्ट (Microfilament) का बना होता है, धीरे-धीरे क्षय होने लगता है।
- प्रोटियोलिटिक एंजाइम (Proteolytic Enzyme) का अधिक स्राव- कैंसर कोशिकाओं के कारण प्रोटियोलिटिक एन्जाइम अधिक मात्रा में स्रावित होता है जिससे संचित प्रोटीन का अधिक विघटन हो जाता है।
- वाइरस विशिष्ट एंटीजन का निर्माण - कैंसर कोशिकाओं की बाह्य परत प्लाज्मा झिल्ली पर विशेष प्रकार के एन्टीजन्स बन जाते हैं, जो कैंसर वाइरस के पोषक कोशा में प्रवेश के लिए सहायक होते हैं।
कैंसर के कारण
कैंसर एक ऐसा रोग है जो शरीर के विभिन्न अंगों में हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाले कैंसर के वास्तविक कारणों को तो अभी तक नहीं खोजा जा सका है, लेकिन विभिन्न अनुसंधानों से इसके कारणों से सम्बन्धित अवधारणाओं में परिवर्तन होता रहा है। कैंसर की आधुनिक अवधारणाओं के अनुसार वर्तमान में यह निम्नलिखित प्रकार से होता है
➤ दैहिक उत्परिवर्तन परिकल्पना (Somatic Mutation Hypothesis)
- इस परिकल्पना के अनुसार दैहिक उत्परिवर्तन के कारण कैंसर होता है। इसमें कोई जीन (Gene) भाग नहीं लेता है, बल्कि रिप्रैसर जीन (Repressor gene) के सक्रिय होने से कैंसर हो जाता है। दैहिक उत्परिवर्तन से दो प्रकार से कैंसर हो सकते हैं
(i) रिप्रैसर जीन में म्यूटेशन (Mutation) से
(ii) मेडिटेशन के द्वारा प्रेशर प्रोटीन के उत्पादन से - इस परिकल्पना के अनुसार कैंसर का मुख्य कारण कोशिका में क्रोमोसोम की संख्या का अनियमित वितरण है। कैंसर कोशाओं में कभी-कभी क्रोमोसोम की संख्या अलग-अलग होती है, जैसे - क्रोनिक माइलोइड ल्यूकीमिया कैंसर वाले रोगी के अन्दर क्रोमोसोम की एक भुजा में एक जोड़ा अनुपस्थिति होता है, इस क्रोमोसोम को फिलेडिल्फिया क्रोमोसोम (Philadelphia Chromosome) कहते हैं। इस क्रोमोसोम के कारण कैंसर हो जाता है। इस परिकल्पना के अनुसार लगभग 1 या 2 प्रतिशत ही कैंसर होता है।
स्मरणीय तथ्य
- पौधों के भौगोलिक वितरण और उनके कारणों का अध्ययन वनस्पति विज्ञान की किस शाखा के अंतर्गत किया जाता है? - वनस्पति भूगोल
- विषाणु की सर्वप्रथम 1886 ई. में किस जर्मन वैज्ञानिक ने पता लगाया? - एडोल्फ मेयर
- नींबू रूटेसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम बताइये? - सिफरस लिमोनिया
- ‘आम’ का कौन-सा भाग खाने योग्य होता है? - मध्य फलभित्ति
- जिन श्वेत रक्त कणिकाओं में न्यूक्लियस अनियमित आकार का तथा अनेक लोबों में विभाजित रहता है, उन्हें कहते हैं - पाॅलीमार्क
- मधुमक्खी के मोम में कौन-सा अम्ल उपस्थित होता है? - पामिटिक अम्ल
- किस प्राणिशास्त्र वेत्ता का कहना है कि स्तनधारी प्राणी जगत के शिरोमणि हैं? - कुवियर
- हीरा और ग्रेफाइट दोनों कार्बन के अपरूप हैं। ये दोनों विद्युत के होते हैं - क्रमशः सुचालक व कुचालक
- परमाणु (समान या असमान) के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी से सह-संयोजक बन्धन बनने की क्रिया को क्या कहा जाता है? - आक्सीकरण
- निकट दृष्टि दोष के निवारण के लिए जिस चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें किस लेंस का प्रयोग किया जाता है? - अवतल लेंस का
- दूर दृष्टि दोष के निवारण के लिए चश्मे में जिस लेंस का प्रयोग किया जाता है, उसे कहते हैं? - उत्तल लेंस
- जिस कैमरे से चित्रा लिए जाते हैं, उसमें किस लेंस का इस्तेमाल किया जाता है? - उत्तल लेंस
- लाल, हरे तथा नीले रंग को परस्पर उपयुक्त मात्रा में मिलाने से अन्य रंग प्राप्त होते हैं, जबकि इनको बराबर मात्रा में मिलाने से श्वेत प्रकाश प्राप्त होता है। इन रंगों को क्या कहते हैं? - प्राथमिक रंग
- द्वितीयक रंग किन रंगों को कहते हैं? - पीला, मैजेंटा, पीकॉक ब्ल्यू
- बैंगनी रंग के प्रकाश की तरंग दैर्ध्य सबसे कम तथा लाल रंग की तरंग दैध्र्य सबसे अधिक होती है। प्रकाश की तरंग दैध्र्य को मापते हैं? - एंग्स्ट्राम में
- सोलर कुकर में किस तरह के दर्पण का प्रयोग किया जाता है? - अवतल दर्पण का
- तेज वायु के बड़े-बड़े गोले को क्या कहते हैं? - चक्रवात
➤ वाइरल जीन परिकल्पना
- सन् 1911 में राउस(Rous) नामक वैज्ञानिक ने ”प्लाई माउथ राक“ मुर्गी में सर्वप्रथम ट्यूमर को देखा और बताया कि यह ट्यूमर वाइरस के कारण होता है। लगभग 20 वर्षों बाद चूहों में भी वाइरस के द्वारा होने वाले ट्यूमर के प्रमाण मिले। इस प्रकार राउस को वाइरस द्वारा कैंसर की परिकल्पना का जनक कहा जाता है। राउस द्वारा खोजे हुए वाइरस को राउस वाइरस (Rous Virus) के नाम से जाना गया। लगातार खोजों के आधार पर यह पता लगा कि मनुष्य में भी ट्यूमर का निर्माण होता है। यह ट्यूमर ओन्कोवाइरस (Oncovirus) के द्वारा निर्मित होता है।
- वाइरस के द्वारा होने वाले कैंसर का पता लगाने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ सामने आती हैं
(i) कैंसर कारण वायरस का मनुष्य (Host) प्रवेश कठिनाई से होता है।
(ii) वायरस का आसानी से स्थानान्तरण नहीं हो पाता है।
(iii) यदि वाइरस उपस्थित होता है तो उसकी उपस्थिति की अलग पहचान नहीं होती है।
(iv) ट्यूमर के अन्दर वाइरस का पता लगाने में मुश्किल आती हैं। - आधुनिक खोजों के आधार पर वायरस के द्वारा होने वाला कैंसर ओन्कोजेनिक वाइरस के द्वारा होता है।
ऑनकोजेनिक वायरस (Oncogenic Virus)
ऑनकोजेनिक वायरस को दो भागों में बाँटा जा सकता है
➤ (D.N.A.) वायरस - D.N.A वायरस निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं
- H.P.V. (Human Papilloma Virus) - मनुष्य में कैंसर पैदा कर देता है।
- E.B.V. (Epstein Bar Virus) - बच्चों में कैंसर पैदा कर देते हैं।
- हर्पीस सिम्पलेक्स वायरस टाइप - 2 (Herpes Simplex Virus type 2) - इस वाइरस के कारण महिलाओं के गर्भाशय में टयूमर का निर्माण होता है।
- पॉक्स वायरस (POX-Virus) - इस वाइरस के कारण मनुष्य में एपीडर्मल पर्त में ट्यूमर बन जाते हैं।
- एडीनोवाइरस (Adenovirus) -इसके कारण मनुष्य के मस्तिष्क में ट्यूमर बनते हैं।
➤ R.N.A.वायरस - के निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं
- रियोवायरस (Reovirus) - इसके कारण जानवरों एवं मनुष्यों में कैंसर हो जाता है।
- रिटरो वायरस (Retrovirus) - इस वायरस के कारण सार्कोमास प्रकार के कैंसर हो जाते हैं।
- ह्यूमन-टी-सेल ल्यूकेमिया वाइरस (Human-T-Cell Leukaemia)- इस वाइरस के कारण मनुष्य में ल्यूकोमियास प्रकार का कैंसर हो जाता है।
- वाइरल ओन्कोजिनेसिस (Viral Oncogenesis)-आधुनिक खोजों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि ओन्कोजेनिक वाइरस के कारण कैंसर होता है। इस प्रकार ओन्कोजेनिक वाइरस के द्वारा कैंसर होने की क्रिया को वाइरल ओन्कोजिनेसिस कहते हैं।
- इस क्रिया में RNA वायरस ओंकोजीन पर आक्रमण करते हैं। आक्रमण के बाद जीन में उपस्थिति DNA द्विगुणन की क्रिया से दोहरी कुडली का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज (Reverse Transcriptage) नामक एन्जाइम भाग लेता है। दोहरी कुंडल के होने से क्छ। पोषक कोशा में प्रवेश कर जाता है। क्छ। का पोषक कोशा ( Host Cell) में प्रवेश के साथ-साथ प्रोटीन का निर्माण तेजी से होने लगता है। प्रोटीन की वृद्धि के साथ-साथ कोशाओं में अधिक वृद्धि होती है और कैंसर हो जाता है।
स्मरणीय तथ्य
- आयन मंडल की खोज किसने की है? - केनिली तथा हेविसाइड
- सामान्यतः आकाश में देखने से कितने तारे नजर आते हैं? - 3500 से 4000 तक
- चन्द्रमा का व्यास कितना है?- 2160 मील
- विटामिन सी या सरफेरीक एसिड के कमी से कौन-सा रोग होता है? - स्कर्वी रोग
- प्रकाश-किरणों की दिशा द्वारा निर्धारित पादप अंगों की गति को क्या कहते हैं? - फोटोट्राॅफिज्म
- किसी चुम्बकीय पदार्थ में अन्य चुम्बक के प्रभाव से उत्पन्न होने की क्रिया को क्या कहते हैं?- चुम्बकीय प्रेरण
- आवेश के परिमाप का व्यावहारिक मात्रक क्या है? - कूलम्ब
- शिराओं में एक ऐसा वाल्ब होता है जो रक्त को केवल हृदय में आने देता है, उसका नाम है - सेमिल्युनर वाल्ब
- ‘भौतिक’ शब्द किस भाषा से लिया गया है? - ग्रीक भाषा
- किसी समांगी पारदर्शी माध्यम में प्रकाश गमन किस रेखा द्वारा होता है? - सरल रेखा द्वारा
- धमनी का ल्यूमेन छोटा होता है, तो किसका ल्यूमेन बड़ा होता है - शिरा का ल्युमेन
- स्वस्थ मनुष्य को कम-से-कम कितनी कैलोरी गर्मी चाहिए? - 3500 कैलोरीज
- उस दृष्टि दोष को किस नाम से जाना जाता है, जिसमें व्यक्ति दूर स्थित वस्तुओं को तो स्पष्ट देख लेता है, लेकिन निकट की वस्तुएं स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता? - दूर दृष्टि दोष
- आयन मण्डल की खोज किसने की है? - केनिली तथा हेविसाइड
- चन्द्रमा का व्यास कितना है? - 2160 मील
- प्रकाश-किरणों की दिशा द्वारा निर्धारित पादप अंगों की गति को क्या कहते हैं? - फोटोट्रोफिज्म
- किसी चुम्बकीय पदार्थ में अन्य चुम्बक के प्रस्ताव से उत्पन्न होने की क्रिया को क्या कहते हैं? - चुम्बकीय प्रेरण
- आवेश के परिमाप का व्यावहारिक मात्रक क्या है? - कूलम्ब
जीन परिकल्पना
आधुनिक खोजों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि कैंसर का मुख्य कारण जीन्स हैं। ये जीन्स जिनके द्वारा कैंसर होता है ओन्कोजीन्स (Oncogenes) कहलाते हैं। अब इस बात पर विश्वास किया जाने लगा है कि कैंसर पैदा करने वाले सभी कारक अन्ततः जीनों के दो समूहों को प्रभावित करते हैं। जीन सामान्य रूप से कोशा के अन्दर केन्द्रक में पाए जाने वाले क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं।
जीन
- प्रोटो ऑनकोजेनेस (Proto Oncogenes) ये ओंकोजीन का प्रारंभिक रूप होता है।
- कैंसर सप्रैसर जीन या एन्टी ओंकोजीन (Cancer Suppressor Gene वत or Antioncogenes) - ये ओन्कोजीन का विपरीत रूप है। प्रोटोओन्कोजीन की कार्य प्रणाली अभी तक सही ढंग से ज्ञात नहीं है, लेकिन C-MYC केन्द्रीय प्रोटीन से पता चलता है कि ओन्कोजीन, कोशाओं के विकास एवं वृद्धि को नियन्त्रिात करती है।
स्मरणीय तथ्य
- चूने के पत्थर को 1000ºC तक गर्म करने से क्या प्राप्त होता है? - कली चूना
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी के आधार पर मनुष्य जाति के सुधार का अध्ययन कहलाता है- यूफेनिक्स
- रक्त में अल्कोहल की मात्रा किस विधि द्वारा मापते हैं? - ब्रीयलेजर परीक्षण
- डी. एन. ए. फिंगर प्रिंटिंग तकनीक का जन्मदाता कहा जाता है - डाॅ. एलेक जेफ्री को
- ध्वनि को मापने की इकाई है - डेसीबल
- मनुष्य के रक्त में प्लाज्मा की मात्रा होती है - 60 प्रतिशत
- मेंढक अपने शरीर के किस भाग से पानी पीता है? - त्वचा से
- बच्चों को पढ़ाने की माॅन्टेसरी पद्धति का विकास किसने किया है? - मोरिया माॅन्टेसरी
- एक्स-रे के विकल्प के रूप में प्रकाश में आयी नयी किरण - टी-रे
- भास्वर मरीचिका किस गैस के कारण उत्पन्न होती - फास्फीन
- कैलोमल क्या होता है? - मरक्यूरिक क्लोराइड
- सिंदूर का रासायनिक नाम है - ट्राई प्लम्बर टेट्रा ऑक्साइड
- पेंक्रियाटिक जूस में पाये जाने वाला एन्जाइम है - ट्रिप्सिन एन्जाइम
- आंतों में प्रोटीनों को अमीनो अम्ल में अपघटित करने में उत्पे्ररक होता है - पेप्सिन एन्जाइम
- स्फिग्नोमैनोमीटर नामक यंत्र से क्या मापते हैं? - रक्तदाब
- सन् 1902 में कार्ल लैंडस्टीनर ने किसकी खोज की थी? - रक्त-समूह की
- अंडे में प्रोटीन प्रतिशत होता है - 12 प्रतिशत
- असील किससे संबंधित है? - कुक्कुट
- वैधानिक मानक के अनुसार मकान में कम-से-कम वसा प्रतिशत होता है - 80 प्रतिशत
- भाभा एटाॅमिक रिसर्च सेन्टर ट्राम्बे में स्थित पांचवें न्यूक्लियर
एक अन्य कोड GTP से पता चलता है कि यह प्रोटीन बन्धीय कारक (Binding Factor) का कार्य करती है। इसके अलावा कोशाओं में वृद्धि, स्थानान्तरण एवं म्यूटेशन (Mutation) के द्वारा जीन के उत्पाद (Product) में वृद्धि के कारण कैंसर हो जाता है। सामान्य रूप से सभी स्तनधारियों (Mammals) में ओन्कोजीन पाई जाती है। यह ओन्कोजीन सक्रिय होकर कैंसर उत्पन्न कर देती है। यह आवश्यक नहीं है कि ओन्कोजीन्स के सक्रिय होने पर कैंसर हो। कुछ कैंसर तो ऐसे है जो संवृद्धिकारी जीनों की क्रियाशीलता के कारण न होकर जीनों की निष्क्रियता से हो जाते है।
हार्मोन परिकल्पना
शरीर में अनेक प्रकार की ग्रंथियां पाई जाती हैं जो क्रियाशीलता को नियन्त्रिात करती है। इन ग्रन्थियों से हारमोन का स्त्रवन होता है। इन हारमोन की अधिकता एवं कमी से कैंसर हो जाते है। उदाहरण के लिए थाइराइड ग्रन्थि (Thyroid gland) से थाइरोक्सिन (Thyroxin) नामक हारमोन की अधिकता से कैंसर हो जाता है। इस प्रकार के कैंसर को थाइराइड कैंसर कहते है।
सामान्य थाइरोइड ग्रंथि
मेटास्टेसिस (Metastasis)- कैंसर एक घातक रोग है। यह रोग एक कोशा से दूसरी कोशा में फैलता है और बाद में स्थानान्तरित हो जाता है। अन्त में इसकी अधिकता में रोगी की मृत्यु भी हो जाती है। वास्तव में मेटास्टेसिस का अर्थ है रोग का उत्पन्न होना एवं पास की कोशाओं में स्थानान्तरित होना है। आधुनिक खोजों से यह सिद्ध हो चुका है कि कैंसर एक निष्क्रिय क्रिया है। फिर मेटास्टेसिस से लगातार कैंसर फैलता है। कुछ ऐसे रोगी भीहै जिनमें 9 से 10 प्रकार के कैंसर होते हुए भी अपना जीवन काट रहे है। इस प्रकार के रोगियों में कैंसर कोशाओं का स्थानान्तरण होता रहता है। आधुनिक खोजों से ये भी निष्कर्ष निकला है कि मेटास्टेसिस क्रिया से कैंसर कोशाओं की वृद्धि धीमी हो जाती है।संक्रमण की क्रिया विधि में शिथिलता (Mechanism of invasive delay)
➤ कैंसर रोगियों के संक्रमण में शिथिलता के अनेक कारण हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं
- कोना क्षय (Cell Loss) - कैंसर कोशिकाएं धीरे-धीरे शरीर गुहा (Body Cavity) में एकत्रित होती रहती हैं और उनका सम्बन्ध शरीर की बाहरी कोशाओं से हो जाता है। इन कोशाओं का धीरे-धीरे क्षय होने लगता है। इनके क्षय होने की दर इन कोशाओं की वृद्धि के बराबर होती है, जिससे संक्रमण की क्रिया विधि में कमी आ जाती है।
- कैंसर कोशिकाओं की गतिशीलता (Cancer cell motility) - कैंसर कोशिकाओं की गति सामान्य कोशाओं से अधिक होती है। इस प्रकार अधिक गति में संक्रमण की क्रियाविधि और शिथिल हो जाती है।
- मरम्मत कार्य (Repair Process) - कैंसर कोशिकाओं के संक्रमण में शिथिलता कैंसर कोशाओं मायोफाइब्रोब्लास्ट की उपस्थिति पर भी निर्भर करता है।
➤ कैंसर कोशिका में संक्रमण की क्रिया में शिथिलता के प्रभाव
- कैंसर कोशिकाओं के संक्रमण में शिथिलता से कैंसर रोग धीमे-धीमे फैलता है। संक्रमण की शिथिलता से कैंसर कोशाएँ शरीर गुहा में एकत्रा हो जाती हैं, जिससे आॅपरशेन करने में आसानी रहती है।
- संक्रमण की शिथिलता के कारण प्राथमिक कोशिकाओं में ही कैंसर को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
➤ कैंसर नियंत्रण एवं रोकथाम
- भारत में कैंसर के रोगियों की संख्या लगभग 15-20 लाख तक है। इसके अतिरिक्त भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख नए कैंसर पीड़ित रोगियों का पता चलता है। वर्तमान में यह देश का छठा सबसे बड़ा जानलेवा रोग है। जिससे प्रतिवर्ष 3 लाख लोग मर जाते हैं। इतनी अधिक संख्या में लोगों के मरने का कारण यह है कि लोग रोग के पूरी तरह फैल जाने पर ही उपचार के लिए आते हैं।
- राष्ट्रीय कैंसर नियन्त्राण कार्यक्रम जो 1985 में प्रारम्भ किया गया था, में कैंसर की रोकथाम तथा शीघ्र खोज पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसकी व्यापकता को देखते हुए भारत में कैंसर नियन्त्राण कार्यक्रम 1975.76 में प्रारम्भ किया गया जिसे 1985 में निम्नलिखित उद्देश्यों से एक राष्ट्रीय कार्यक्रम का स्वरूप दिया गया
- तम्बाकू से होने वाले कैंसर को रोकना,
- गर्भाशय कैंसर को रोकना
- राष्ट्रीय स्तर पर चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाना तथा सुदृढ़ करना।
- आठवीं योजना के दौरान मेडिकल कॉलेजों तथा अन्य बड़े अस्पतालो मे कैंसर के लिए नैदानिक एवं चिकित्सा सुविधाएँ और बढ़ाई गई हैं।कैंसर की रोकथाम हेतु सूचना, शिक्षा तथा संचार (आई. ई. सी.) कार्यों एवं रोग का जल्दी पता लगाकर उसे प्राथमिक तथा द्वितीयक चिकित्सा संरचना एवं जनसंचार के माध्यम से पूरा किया जाएगा।
- वर्ष 1990-91 सेकैंसरके नियन्त्राण एवं रोकथाम हेतु तीन नवीन योजनाएं प्रारम्भ की गई है।
- कैंसरसम्बन्धी शिक्षा, शीघ्र खोज तथा दर्द निवारक दवाओं का वितरण सम्बन्धी जिला परियोजनाएँ प्रारम्भ करना।
- स्वयंसेवी संस्थाओं को स्वास्थ्य शिक्षा प्रसार तथा शीघ्र खोज हेतु वित्तीय सहायता देना।
- मेडिकल कॉलेजों तथा बड़े अस्पतालों में ओन्कोलोजी विंग की स्थापना करना।
➤ कैंसर रोग के नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने अलग-अलग कई संस्थानों की स्थापना की हैै, जहाँ कैंसर का इलाज किया जाता है। इनमें कुछ संस्थान निम्नलिखित है
- किदवई स्मारक ओन्कोलोजी संस्थान
- गुजरात कैंसर अनुसंधान अहमदाबाद
- कैंसर अस्पताल और अनुसंधान संस्थान ग्वालियर
- क्षेत्रीय कैंसर केंद्र तिरुवनंतपुरम
- कैंसर अनुसंधान और चिकित्सा सोसाइटी क्षेत्रीय केन्द्र, कोलकाता
- कैंसर संस्थान मद्रास
- डाॅ. बी.बी. गिरि कैंसर अनुसंधान गुवाहाटी
- चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान कलकत्ता
- रोटरी कैंसर अस्पताल संस्थान नई दिल्ली
- टाटा स्मारक अस्पताल मुंबई।
इबोला बुखार
- ‘इबोला बुखार’ एक संक्रामक रोग है जो एक विशेष प्रकार के विषाणु ‘इबोला’ से फैलता है। ‘इबोला’ नामकरण उत्तरी जैरे में प्रवाहित होने वाली नदी ‘इबोला’ पर हुआ है।
- ‘इबोला विषाणु’ एक आर.एन.ए. विषाणु है, जो ‘फिलोवाइरिडी’ परिवार समूह का है। यह रोगी के रक्त एवं अन्य रात्रांवों में मिलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ‘इबोला विषाणु’ अत्यन्त घातक होता है। यही कारण है कि इसे अत्यन्त घातक जीवाणुओं ‘बायोसेफ्टी लेबल चार’ की श्रेणी के अन्तर्गत शामिल किया गया है। यह विषाणु इतना खतरनाक है कि प्रयोगशाला में इस विषाणु के साथ प्रयोग करते समय अन्तरिक्ष यात्रियों सदृश कपड़े पहनने पड़ते हैं एवं रेडियोधर्मी पदार्थों पर काम करने जैसी सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं।
- वैज्ञानिक अभी तक यह पता लगाने में सफल नहीं हो पाए हैं कि यह विषाणु कहाँ से आता है। यदि एक बार यह शरीर में प्रवेश कर जाए तो यह जल्दी ही शरीर की कोशिकाओं को अपने नियंत्राण में कर लेता है और अपनी संख्या में करोड़ों की वृद्धि कर लेता है। इनकी संख्या शीघ्र ही इतनी बढ़ जाती है कि रोगी के शरीर की रक्त वाहिनियाँ मृत रक्त कोशिकाओं से अवरूद्ध हो जाती है। परिणामस्वरूप विषाणु के लगातार आक्रमण से रोगी की त्वचा गलने लगती है।
➤ इबोला विषाणु की संरचना
इबोला विषाणु
- इबोला विषाणु की शारीरिक संरचना के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों ने काफी अध्ययन किए हैं। किए गए अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि इबोला विषाणु के विभिन्न प्रभेद या तो लम्बे तन्तु के आकार के होते हैं या अंग्रेजी के ‘यू’ (U) अक्षर के आकार के होते हैं, अथवा गोलाकार होते हैं एवं गुंथे हुए आटे की तरह दिखाई देते हैं। इनके इस आकारिकी गुण के कारण ही इन्हें ‘फिलोवाइरस’ कहा जाता है। इबोला विषाणुओं के तन्तुओं की लम्बाई 1400 नैनोमीटर तक भी पाई जाती है। तन्तुओं का व्यास 80 से 100 नैनोमीटर के मध्य होता है।
- इबोला विषाणु की आनुवंशिक संरचना राइबो न्यूक्लिक एसिड (आर. एन. ए.) के एक तन्तु से होती है। इस आर. एन. ए. के ऊपर विषाणु के जीन चिपके होते है। धागे के आकार की एक संरचना में प्रोटीन के 7 अणु इस आर. एन. ए. के टुकड़े पर बाहर से लिपटे रहते है। इबोला के आर. एन. ए. अणु का आण्विक भार 5.6 × 106 डाल्टन होता है।
- ‘इबोला बुखार’ अभी तक लाइलाज बीमारी है और मानव शरीर में भी इस विषाणु से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता नहीं होती है। अभी तक इस विषाणु पर नियंत्राण हेतु कोई टीका भी विकसित नहीं हो पाया है।
- इबोला विषाणु का संक्रमण न फैलने पाए, इसके लिए आवश्यक है कि अस्पतालों में साधारण बचाव के साधनों को अपनाया जाए, जैसे - गाउन पहनना, दस्ताने पहनना एवं मास्क आदि का प्रयोग करना चाहिए। इंजेक्शन लगाने के लिए विसंक्रमित इंजेक्शनों का ही प्रयोग करना चाहिए। चूँकि यह रोग रोगी के रक्त एवं अन्य रात्रांवों के सम्पर्क में आने से ही होता है, अतः साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं संक्रमित व्यक्ति के बिस्तर या वस्त्र आदि के विशेष सम्पर्क में नहीं रहना चाहिए।