पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ में पानी का मानवीकरण करते हुए उसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन किया गया है। इसमें पानी के निर्माण तथा उसके अस्तित्व बचाए रखने की जानकारी दी गई है। इसके अलावा ओस की एक बूँद अनेक अवस्थाओं से गुज्जरकर वायु, बादल, समुद्र, ज्वालामुखी फिर नदी और नल के पानी से होते हुए पेड़ की पत्ती तक की यात्रा करने का वर्णन यानी 'बूँद की कहानी उसी की जुबानी' प्रस्तुत किया गया है।
लेखक अपने पथ पर बढ़ता जा रहा था कि बेर की झाड़ी से हाथ पर ओस की बूँद आ गिरी। बूँद उसकी कलाई से सरककर हथेली पर आ गई। लेखक ने महसूस किया कि कहीं से ‘सुनो-सुनो’ की आवाज़ आ रही है। ध्यान से सुना तो पाया कि यह आवाज़ उसी कण (बूँद ) से आ रही है। अब लेखक उस ‘सुनो-सुनो’ की आवाज़ को अनसुनी न कर सका। उसके ‘कहो’ कहते ही बूँद ने खुशी से कहा। ‘‘मैं ओस हूँ, जिसे लोग जल और पानी भी कहते हैं तथा मैं बेर के पेड़ से आई हूँ।’’ लेखक ने जिज्ञासा वश पूछा, ‘‘क्या पेड़ में फव्वारा है?’’ लेखक के अविश्वास से दुखी बूँद ने लेखक को अपनी कहानी बतानी शुरू की।
बूँद ने कहा जब वह ज्मीन में इधर-उधर घूम रही थी तभी पेड़ की असंख्य जड़ों ने उसे अपनी ओर खींच लिया। वह (बूँद) अपने अंदर खनिज पदार्थों को लिए घूम रही थी कि एक रोएँ (जड़) ने उसे अपने अंदर खींच लिया। तीन दिन तक यह साँसत भोगने के बाद वह पत्तों से होकर निकल भागी। रात भर पक्रह्में पर पड़ी रहने के बाद लेखक को देखते ही उसके हाथ पर आ गिरी।
बूँद की कहानी सुनकर लेखक को दुख हुआ। सूरज निकलने में कुछ समय शेष था। उनकी शक्ति पाते ही बूँद उड़ जाएगी| अतः सूरज निकलने तक का समय बिताने के लिए बूँद विचित्र घटनाओं से परिपूर्ण जीवन की कहानी सुनाने लगी।
बहुत समय पहले उसके (बूँद के) पुरखे हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) नामक दो गैसों के रूप में सूर्यमंडल में विदमान थे। एक दिन की बात है की एक प्रचंड प्रकाश-पिंड सूर्य की ओर बढ़ता आ रहा था। सूर्य से लाखों गुना बड़े इस प्रकाश-पिंड की शक्ति इतनी अधिक थी कि सूर्य का एक भाग टूटकर उसके पीछे चला। यह टूटा भाग इतनी खिचाव व शक्ति न सहन कर पाने के कारण कई और खंडों में टूट गया। उन्हीं में से एक हमारी पृथ्वी है। उसका (बूँद का) ग्रह ठंडा होता गया और अरबों वर्ष पहले हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रक्रिया के उपरांत उसका जन्म हुआ। अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गँवाकर उन्होंने बूँद को पैदा किया | कुछ समय तक वह पृथ्वी के आसपास वाष्प रूप में मँडराती रही। फिर क्या हुआ पता नहीं, पर जब उसे होश आया तो स्वयं को ठोस बर्फ के रूप में पाया। अब वह अपने भाप-रूप के सत्रहवें भाग में बची थी। लाखों वर्ष यूँ ही आनंद में बीत गए। यह समय दाल में नमक के बराबर ही था। ऐसे दीर्घजीवी से बात करके लेखक स्वयं को धन्य मान रहा था।
बूँद ने बताया कि एक दिन अचानक उसके जैसे ही बर्फ बने भाई-बहनों के भार के कारण नीचेवाले भाई दब गए और पानी बन गए। अब तक वह जान चुकी थी कि समुद्र में भी नाना प्रकार के जीव-जंतुओं का साम्राज्य है। बूँद ने एक दिन समुद्र की गहराई में जाने का निश्चय किया। मार्ग में उसने नाना प्रकार के विचित्र जीव-जंतु देखे जिनमें धीरे रेंगनेवाले घोंघे, जालीदार मछलियाँ, भारी-भारी कछुवे, मनुष्य से अधिक लंबी मछलियाँ तथा लालटेन के प्रकाशवाली मछली देखी। उसे यह देखने में कई साल लग गए। इस समय वह पानी की तीन मील मोटी परत के नीचे थी। बूँद ज़मीन में घुसकर अपनी जान बचाने का प्रयास करने लगी। समुद्र के जलकण भी तो अपनी जान बचाने का यही तरीका अपनाते हैं। वह अपने साथियों के साथ ऐसी जगह पर पहुँची जहाँ कुछ भी ठोस न था। बड़ी-बड़ी लाल-पीली चट्टान बहने के लिए उतावली थी। उतावली तथा खुशी में डूबी बूँद अचानक ऐसी जगह पहुँची जहाँ तापमान बहुत ऊँचा था। अचानक एक बड़ा-सा धमाका हुआ और वह अपने साथियों समेत बाहर फेंक दी गई। वह आकाश में उड़ चली। उसने पीछे मुडक़र देखा कि पृथ्वी फट गई है। उसमें से धुआँ, रेत, पिघली धातुएँ तथा लपटें निकल रही हैं। वह इस शानदार दृश्य को देखने के लिए बार-बार इच्छुक थी। मनुष्य इसे 'ज्वालामुखी' कहते हैं।
आसमान में उसे भाप का बड़ा दल मिला तथा उसकी सहेली आँधी भी मिली। आँधी उसे पीठ पर लादे इधर-उधर घुमाती थी। आसमान में स्वच्छंद किलोलें करना उसे बहुत अच्छा लग रहा था। वह अब अपने साथियों के साथ एक चट्टान पर गिरी जिससे चट्टान टूटकर खंड-खंड हो गई। उसकी इच्छा अब समतल भूमि पर जाने की थी इसलिए वह एक छोटी धारा में मिल गई। सरिता के वे दिन बड़े मज्जे के थे। बहते-बहते एक दिन वह नगर के पास पहुँची। नदी के तट पर एक चिमनी देखकर उसकी उत्सुकता बढ़ी। वह उधर बढ़ी कि एक मोटे पाइप में खींच ली गई और किस्मत से ,एक दिन वह नल के टूटे भाग से शद्द भाग निकली और पृथ्वी में समा गई तथा घूम-फिरकर इस बेर के पेड़ के पास आ पहुँची थी। अब तक सूर्य निकल चूका था। सूर्य की शक्ति पाकर ओस की बूँद धीरे-धीरे छँटी और गायब हो गई।
शब्दार्थ—
पृष्ठ : आश्चर्य—हैरानी। दृष्टि—निगाह। झंकार—मधुर स्वर, । स्वर—आवाज़। उत्पन्न करना—पैदा करना। प्रसन्नता—खुशी।
पृष्ठ: अविश्वास—भरोसा न रह जाना। टटोलना—ढूँढ+ना, तलाशना। निर्दयी—दया रहित। असंख्य—अनगिनत। बलपूर्वक—ज्जबरदस्ती। बंधु—भाई। प्राण नाश करना—जान देना। प्रयत्न- कोशिश। उत्सुकता- कुछ जानने-समझने की इच्छा। साँसत—कष्ट,। जैसे-तैसे—किसी तरह।
पृष्ठ : रक्षा—बचाव, सहायता। दर्शन करना—देखना। परिपूर्ण—भरा हुआ। पुरखा—पूर्वज। विदमान—मौजूद। ब्रह्मण्ड—संपूर्ण लोक। प्रचंड—तेज्ज। चूर्ण—चूरा। आकर्षण—खिचाव। प्रारंभ—शुरुआत।
पृष्ठ: प्रत्यक्ष—स्पष्ट रूप से दिखाई देनेवाला। दीर्घजीवी—लंबे समय तक जीवित रहनेवाला। वाह्र्मलाप—बातचीत। ठोसपन—कठोरता। तरल—द्रव रूप में।
पृष्ठ : मास—महीना। भेंट—मुलाकात। वर्णनातीत—जिसका वर्णन न किया जा सके। निरा—सि.र्फ। भाया—अच्छा लगा। मन—चालीस सेर या लगभग ३७ किलोग्राम। विचित्र—अज्जीब।
पृष्ठ: नेत्र—आँख। बहुतायत—अधिकता। निपट—एकदम,। तह—परत। चेष्टा—कोशिश। सम्मति—राय। उत्साही—जोशीला।
पृष्ठ : उतावली—ज्जल्दबाजी। नाना प्रकार—अनेक तरह के। अंधाधुंध—बिना सोचे-समझे।असह्य—जो सहा न जा सके। अगुवा—आगे-आगे चलनेवाला। विभाजित होना—बँट जाना। गर्भ—पेट के अंदर का भाग।
पृष्ठ : दल—झुंड। स्वच्छंद—मुक्त। कलोल करना—उछल-कूद करना। शिखर—चोटी। प्रहार—चोट पहुँचाना।उन्मत—मद में। सरिता—नदी। न्यौता—बुलावा।
पाठ में प्रयुक्त मुहावरे
साँसत भोगना—दुख भोगना। जान बचाकर भागना—किसी तरह जान बचाना। जान में जान आना—राहत महसूस करना। कमर कसे रहना—पूरी तरह से तैयार रहना। हवाइयाँ उडऩा—घबरा जाना। कान खड़े होना—चौकन्ना हो जाना। आँखों से ओझल होना—गायब हो जाना।
1. पानी की कहानी के संदर्भ में आम तौर पर पूछे जाने वाले सवाल क्या हैं? | ![]() |
2. पानी की कहानी में कौन से मुख्य विषय शामिल हैं? | ![]() |
3. पानी की कहानी के अनुसार, पानी बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? | ![]() |
4. पानी की कहानी के अनुसार, पानी क्यों महत्वपूर्ण है? | ![]() |
5. जल संरक्षण की दृष्टि से पानी की कहानी में बताए गए उपाय क्या हैं? | ![]() |