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पाठ का सारांश - अकबरी लोटा, हिंदी, कक्षा - 8 | Hindi Class 8 PDF Download

प्रस्तुत कहानी में काल्पनिकता के सहारे कहानीकार ने लाला झाऊलाल की समस्या का हल अत्यंत रोचक ढंग से किया है। उसने अपने मित्र और एक अंग्रेज पात्र के माध्यम से यह भी बताने का प्रयास किया है कि दूसरे को नीचा दिखाने के लिए व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। लाला झाऊलाल का बेढंगा लोटा किस तरह से ऐतिहासिक लोटा बनकर अंग्रेजो के संग्रहालय का अंग बन जाता है, इसका वर्णन मन को गुदगुदाता है।

लाला झाऊलाल काशी के अमीर आदमी थे। ठठेरी बाज़ार में बने उनके मकान से एक सौ रुपये किराया आ जाता था, फिर भी दो सौ पचास (ढाई सौ रुपये) एक साथ कम ही मिलते थे। पति-पत्नी दो ही सदस्य घर में थे। जीवन सुख से बीत रहा था कि लाला झाऊलाल की पत्नी ने एक दिन उनसे अचानक ढाई सौरुपयेकी माँग कर दी। यह सुनकर लाला जी परेशान हो उठे। इतने रुपयों का अचानक प्रबंध करना उनके वश में न था। लगे हाथ पत्नी ने यह भी कह दिया कि रुपये का प्रबंध वे न कर पाएँ तो वह अपने भाई के घर से मँगा लेगी। लाला के स्वाभिमान को चोट लगी। उन्होंने पत्नी से कहा कि वह अपने भाई से भीख नहीं माँगेगी। वे स्वयं ही इन पैसों का प्रबंध एक सप्ताह में कर देंगे। उनकी पत्नी ने कहा कि सात दिन इसी जन्म में या अगले ...? लाला जी ने इसी सप्ताह के अंत तक पैसे देने का वचन दे दिया।

इस घटना के सात में से चार दिन बीत जाने पर भी रुपयों का प्रबंध न हो सका।लाला के सामने प्रतिष्ठा का प्रश्न था। यदि वे पत्नी को दिया ये वचन पूरा न कर पाए तो उसकी नज़रो में गिर जाने का डर था। आखिर पाँचवें दिन उन्होंने यह बात अपने मित्र पंडित बिलवासी मिश्र को बताई। वह भी रुपयों के प्रबंध करने की बात कहकर चले गए। आज उस घटना का सातवाँ और पत्नी से किए गए वायदे का अंतिम दिन था। परेशान झाऊलाल को कुछ सूझ न रहा था, क्योंकि बिलवासी मिश्र भी पैसे लेकर नहीं आए थे। चिंतामग्न लाला जी ने अपने नौकर को पानी लाने के लिए आवाज्ज लगाई। नौकर के घर में न होने से उनकी पत्नी उस बेढंगे लोटे में पानी लेकर आईं जिसे वे देखना भी नहीं चाहते थे। लाला जी ने पानी भरा लोटा लिया और छत की मुँडेर के किनारे खड़े होकर पानी पीने लगे। अचानक उनके हाथ से लोटा छूट गया और गली में किसी दुकान पर खड़े एक अंग्रेज के पैर पर हल गिरा, जिससे उसके पैर का अँगूठा चोटिल हो गया। वह अंग्रेज लगातार गालियाँ दिए जा रहा था। उसके मुँह से निकलती गालियाँ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। लाला जी को आज पता चला कि अंग्रेजी में भी गालियों की कमी नहीं है।

तभी भीड़ को चीरते पंडित बिलवासी मिश्र ने आँगन में कदम रखा। अविराम गालियाँ बकते अंग्रेज को देखकर बिलवासी मिश्र ने सारी घटना का अनुमान लगा लिया। उन्होंने अंग्रेज को कुर्सी पर आदर से बिठाया और सारी भीड़ को आँगन से बाहर किया। अंग्रेज ने पंडित जी को अपने प्रति सहानुभूति रखता देखकर पूछा ‘‘क्या वह इस व्यक्ति को जानते हैं?’’ बिलवासी जी ने कहा कि वह तो इस आदमी को बिलकुल भी नहीं जानते और ऐसा व्यक्ति जो किसी राह चलते व्यक्ति को घायल करे, उसे वह जानना भी नहीं चाहते। साथ ही उनहोंने यह भी कहा कि उन्हें तो यह व्यक्ति पागल लगता है। अपने प्रति इस तरह का व्यवहार देखकर लाला जी को बहुत क्रोध आ रहा था। इस बात से बेखबर बिलवासी ने अंग्रेजो को लाला जी के खिला.फ पुलिस में रिपोर्ट करने की सलाह भी दे दी। पुलिस रिपोर्ट की बात पर सहमत अंग्रेज बिलवासी से पुलिस स्टेशन का रास्ता पूछने लगा। बिलवासी जी ने कहा कि पहले आप इस लोटे को खरीद लें फिर आपके साथ पुलिस स्टेशन चलते हैं बिलवासी जी ने बताया कि यह कोई साधारण लोटा नहीं, बल्कि ऐतिहासिक लोटा है। अंग्रेज की उत्सुकता देखकर बिलवासी जी ने इस लोटे के बारे में बताया कि एक बार सोलहवीं शताब्दी में हुमायूँ, शेरशाह से पराजित होकर सिंधु के रेगिस्तान में मारा-मारा फिर  रहा था। उस समय प्यास से उसकी जान निकल रही थी। तभी एक ब्राह्मण ने हुमायूँ को अपने लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई, किंतु जब अकबर सम्राट बना तो उसने उस ब्राह्मण को खोज निकलवाया और उस लोटे को दस सोने के लोटे के बदले खरीद लिया। अकबर को वह लोटा बहुत प्रिय था। उसी से वजू करता था। इसी कारण इसका नाम अकबरी लोटा* पड़ गया। इतना पुराना लोटा होने की बात सुनकर अंग्रेज को लालच आ गया। दोनों ने ही लोटा खरीदने की इच्छा व्यक्त की। लाला झाऊलाल से बेचने की बात सुनकर बिलवासी जी ने पचास रुपये देने चाहे, पर अंग्रेज ने एक सौ कहे। डेढ़ सौ, ढाई सौ......पाँच सौ की बोली लगाते हुए अंत में अंग्रेज ने उस लोटे को खरीद लिया।अंग्रेज की खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि वह अब अपने पड़ोसी को भी भारत से खरीदी गई  वस्तुएँ दिखा सकेगा।अंग्रेज ने बताया कि पिछले वर्ष उसके एक मित्र ने यहाँ से जहाँगीरी अंडा खरीदा था और बात-बात पर उसका घमंड किया करता था। बिलवासी जी की उत्सुकता देखकर उसने बताया कि जब नूरजहाँ ने जहाँगीर का एक कबूतर उड़ा दिया था तो उसने पूछा लकबूतर कैसे उड़ा़ तो नूरजहाँ ने दूसरा कबूतर उड़ाकर कहा, ऐसे। नूरजहाँ की यह अदा जहाँगीर के दिल को छू गई। उसका और नूरजहाँ का प्रेम कबूतर ने ही कराया था। उसी कबूतर का एक अंडा सँभालकर जहाँगीर ने बिल्लौरी (काँच की) हांड़ी में रख दिया था, जो बाद में जहाँगीरी अंडे* के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंग्रेज खुश था क्योंकि उसका अकबरी लोटा, उसके पड़ोसी मेजर डगलस के जहाँगीरी अंडे से एक पुस्त पुराना तथा उसके बाप जैसा है।

बिलवासी जी ने झाऊलाल को रुपये संभालकर रखने को दिए। लाला जी ने पूछा, लपंडित जी, रुपयों का प्रबंध कैसे हुआ था? उन्होंने कहा कि यह बात उनके सिवा कोई नहीं जानता। ईश्वर  ही जानता है कि यह प्रबंध कैसे हुआ। वे जल्दी से अपने घर चले गए लाला झाऊलाल उन्हें धन्यवाद भी न दे सके।

इधर बिलवासी जी भी पैसों का प्रबंध न कर सके तो उन्होंने अपनी पत्नी के गले से जंजीर मेंं लगी ताली निकाली थी और आलमारी से ढाई सौरुपये लेकर लाला झाऊलाल को देने गए थे। यह काम उन्होंने पत्नी के सोते समय किया। उन्होंने शाम को फिर वही काम किया और पत्नी के गले से ताली निकालकर रुपये यथास्थान रख दिए। उनकी पत्नी यह बात जान भी न सकी। अगली सुबह बिलवासी जी देर तक निश्चिंत होकर सोते रहे।

शब्दार्थ—

पृष्ठ ; ठठेरीबाज़ार—वह बाज़ार जहाँ बर्तन खरीदे तथा बेचे जाते हैं। सनसनाया—घबराया। असमर्थं— कोई काम करने की स्थिति में न होना।

पृष्ठ ; तात्पर्य—मतलब, अर्थ। रोब से- प्रभावपूर्वक। प्रतिष्ठा—इज़्ज़तमान। साख—विश्वास। विपदा—मुसीबत। खुक्ख—खाली हाथ।

पृष्ठ ; बेढंगी—कुरूप या अच्छी बनावटवाला न होना। गढऩ—बनावट। अदब—इज़्ज़तमान, सम्मान। गनीमत—अच्छा है, शुक्र है। चूँ करना—कुछ कहना। मुँडेर—छत का बाहर की ओर निकला हिस्सा। उल्का—टूटा हुआ आकाशीय पिंड। खुरा.फाती—शरारती दिमागवाला। ईज्ज्द्माद—खोज।

पृष्ठ ; बदन—शरीर। अनाधिकारी—जिसका अधिकार न हो। प्रधान—मुख्य। नख-शिख से—सिर से पाँव तक पूरी तरह। सायबान—छज्जा। प्रकांड—बहुत बड़ा। कोष—खजाना। शख्स—आदमी। निरीह—कमज़ोर, बेचारा।

पृष्ठ; डेंजरस ल्यूनाटिक—खतरनाक पागल। क्रिमिनल—अपराधी।

पृष्ठ ;  हिरासत—कैद। इजाज्जत—आज्ञा। रदी—बेकार। विज्ञ-बुद्धिमान—ज्ञानी। सुरक्षित—अच्छी तरह
पढ़ा-लिखा। ऐतिहासिक—इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण । तलाश—खोज।  म्यूज्जियम—संग्रहालय। प्रदान करना—देना। फैंसी—रोच

पृष्ठ ; लोभ—लालच। भुरता करना—कुचल देना, चकनाचूर करनाताव आना—जोश आ जाना।

पृष्ठ ;  डींग—बड़ी-बड़ी बातें। हाथ कर देना—समर्पण कर देना। बिल्लौर—काँच। पारसाल—गतवर्ष। पुश्त—पीढ़ी। राह लेना—चल पडऩा।

पृष्ठ ; सहेजना—सँभालना। मनमोहक—मन को अच्छा लगनेवाला। सिकड़ी—जंजीर। पूर्ववतïï—पहले की तरह। 
 

पाठ में प्रयुक्त मुहावरे

आँख सेंकना—अत्यंत ध्यान एवं कुतूहल से देखना। चारों खाने चित्त होना—हार जाना। दुम दबाकर भागना—डरकर भाग जाना। मुँह दिखाना—सामना करना। हेकड़ी से हाथ धोना—प्रतिष्ठा समाप्त हो जाना। डामल-फाँसी देना—आजीवन कैद या देश से निकाले जाने की सजा। हँसी-खेल न होना—काम सरल न होना। काशीवास का संदेश लेकर पहुँचना—मौत लेकर आना। मारा-मारा फिरना—बिना किसी प्रयोजन के घूमनाभुरता करना— कुचल देना। ताव आना—जोश से भर जाना। आशाओं की लाश उठाना—बहुत निराश होना। प्रसन्नता की कूँची गिरना—खुशी दिखाई देना। कान पकना—बहुत परेशान हो जाना। निछावर होना—कुर्बान हो जाना। देना। कान पकना—बहुत परेशान हो जाना। चैन की नींद सोना—बेफ़िक्री से सोना।

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FAQs on पाठ का सारांश - अकबरी लोटा, हिंदी, कक्षा - 8 - Hindi Class 8

1. अकबरी लोटा क्या होता है?
उत्तर: अकबरी लोटा एक लोटा होता है जो अकबर शाह के समय में उपयोग किया जाता था। यह लोटा उन लोगों के लिए बनाया गया था जो खाने के बाद अपने हाथ धोने के लिए पानी की आवश्यकता होती थी।
2. अकबरी लोटा की उत्पत्ति कब और कैसे हुई?
उत्तर: अकबरी लोटा की उत्पत्ति अकबर शाह के समय में हुई थी। यह लोटा बाकी लोटों से अलग होता था क्योंकि इसमें एक पानी दाना था जो लोटे के अंदर से निकाला जा सकता था और उसे जमीन पर नहीं गिराना पड़ता था।
3. अकबरी लोटा किस उपयोग के लिए उपलब्ध था?
उत्तर: अकबरी लोटा उन लोगों के लिए उपलब्ध था जो खाने के बाद अपने हाथ धोने के लिए पानी की आवश्यकता होती थी। इसके अलावा, इसे उन लोगों द्वारा भी उपयोग किया जाता था जो धरती के नमी को आकस्मिक रूप से खो देते थे।
4. अकबरी लोटा का वजन क्या था?
उत्तर: अकबरी लोटा का वजन 14 पौंड होता था।
5. अकबरी लोटा के इतिहास में कौन से अन्य राज्य भी इसका उपयोग करते थे?
उत्तर: अकबरी लोटा के इतिहास में बंगाल, असम, अरबों और अफ़गानिस्तान जैसे राज्य भी इसका उपयोग करते थे।
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