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पंचवर्षीय योजनाएं 

  • योजना आयोग के अनुसार, किसी संघीय प्रणाली में नियोजन का मुख्य काम यह होना चाहिए कि यह राष्ट्रीय उद्देश्यों और विकास की कार्ययोजना के प्रति लोगों में वचनबद्धता पैदा करे तथा एक साझे सपने का निर्माण करें। 
  • यह काम केवल सरकारी स्तर पर न हो बल्कि इसमें आर्थिक संस्थाओं को भी भाग लेना चाहिए। 

विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं की प्राथमिकता
प्रथम पंचवर्षीय योजना

  • द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) और देश के विभाजन (1947) के कारण नष्ट हुई अर्थव्यवस्था का पुनरुत्थान करना।
  • खाद्य संकट का समाधान करना तथा कच्चे माल की स्थिति (विशेषकर पटसन, रुई) सुधारना।
  • अर्थव्यवस्था में उत्पन्न होने वाली स्फीतिकारक प्रवृत्तियों को रोकना।
  • मजबूत ढांचागत आधार तैयार करना ताकि आगामी पंचवर्षीय योजनाओं में आर्थिक विकास को तीव्र किया जा सके।
  • ऐसी विकासात्मक परियोजनाओं को पूर्ण करना जो आगामी वर्षों में विशाल योजनाओं की नींव बने।
  • सामाजिक न्याय के कार्यक्रम प्रारंभ करना, जो 26 जनवरी 1950 से लागू भारतीय संविधान के अनुरूप हो।
  • ऐसे प्रशासनिक व अन्य संस्थाओं का निर्माण करना जो विकास कार्यक्रमों को लागू करने में आवश्यक हो।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय आय में 4.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि करना।
  • देश का तीव्र औद्योगीकरण किया जाना जिसके लिए आधारभूत व भारी उद्योगों पर विशेष बल देना।
  • रोजगार अवसरों में भारी विस्तार करके 5 वर्षों की अवधि में 10 से 12 मिलियन लोगों के लिए रोजगार अवसर उपलब्ध कराना।
  • आय व धन की असमानता कम करना तथा आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण किया जाना ताकि समाजवादी ढंग से समाज की दिशा में बढ़ा जाय।

तृतीय पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय आय में 5.6 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि करना तथा विनियोग का ऐसा ढांचा तैयार करना कि आगामी योजनाओं में भी इस विकास दर को कायम रखा जा सके।
  • खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना तथा उद्योग व निर्यात आवश्यकताओं के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि करना।
  • आधारभूत उद्योगों (इस्पात, रसायन, ईंधन, शक्ति) का विस्तार करना और मशीन-निर्माण क्षमता बढ़ाना ताकि भावी औद्योगीकरण की आवश्यकताओं को आगामी 10 वर्षों में देश के आंतरिक साधनों द्वारा पूरा किया जा सके।
  • मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग और रोजगार अवसरों का विस्तार करना।

चौथी पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय आय में 5.7 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि करना।
  • आर्थिक स्थिरता कायम करना।
  • आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • सामाजिक व आर्थिक न्याय समानता प्राप्त करना।
  • रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध करना।
  • आर्थिक संस्थाओं का पुनर्गठन करना।

पांचवीं पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय आय में 5.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि करना (योजना के अंतिम प्रारूप में इसे 4.4 प्रतिशत कर दिया गया)।
  • उत्पादक रोजगार के अवसरों में विस्तार करना।
  • न्यूनतम आवश्यकताओं का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू करना।
  • सामाजिक कल्याण का विस्तृत कार्यक्रम लागू करना।
  • कृषि, आधारभूत उद्योगों तथा जन-उपयोग के लिए वस्तुएं उत्पन्न करने वाले उद्योगों पर बल देना।
  • निर्धन वर्गों को उचित स्थिर मूल्यों पर अनिवार्य उपभोग की वस्तुएं उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त सरकारी वसूली एवं वितरण प्रणाली को चुस्त बनाना।
  • भुगतान संतुलन बनाये रखने के लिए तीव्र निर्यात-प्रोत्साहन एवं आयात-प्रतिस्थापन किया जाना।
  • अनावश्यक उपभोग पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जाना।
  • एक न्यायपूर्ण कीमत-मजदूरी-आय नीति लागू करना।
  • सामाजिक आर्थिक और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिए संस्थानात्मक, राजकोषीय व अन्य उपाय लागू करना। 

 

                    विभिन्न योजनाओं की समय अवधियाँ

योजना

अवधि

प्रथम

1951-52 से 1955-56

द्वितीय

1956-57 से 1960-61

तृतीय

1961-62 से 1965-66

वार्षिक (तीन)

1966-67, 1967-68, 1968-69

चतुर्थ

1969-70 से 1973-74

पांचवीं

1974-75 से 1978-79

वार्षिक (एक)

1979-80

छठी

1980-81 से 1984-85

सातवीं

1985-86 से 1989-90

वार्षिक (दो)

1990-91, 1991-92

आठवीं

1992-93 से 1996-97

नौवीं

1997-98 से 2002-2003

दसवीं

2002 से 2007

11वीं

2007 से 2012

12वीं

2012 से 2017

 

छठी पंचवर्षीय योजना

  • आर्थिक विकास दर में 5.2% की वृद्धि, संसाधनों के प्रयोग की कुशलता और उनकी उत्पादकता बढ़ाना।
  • आर्थिक एवं तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए आधुनिकीकरण(Modernisation) की गतिविधियों को मजबूत करना।
  • निर्धनता और बेरोजगारी के प्रभाव को उत्तरोत्तर कम करना।
  • ऊर्जा के घरेलू संसाधनों का तेजी से विकास करना।
  • न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम द्वारा कमजोर वर्गों के जीवन स्तर में सुधार लाना।
  • आय व धन की असमानताएं दूर करने के लिए सार्वजनिक नीतियों और सेवाओं के पुनर्वितरक आधार (Redistributive base) को गरीबों के हित में मजबूत बनाना।
  • क्षेत्रीय असमानताओं में उत्तरोत्तर कमी लाना।
  • जनसंख्या नियंत्रण के लिए स्वैच्छिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
  • पारिस्थितिकीय(Ecological) तथा पर्यावरणीय (Environmental) परिसम्पत्तियों के संरक्षण और सुधार को बढ़ावा देकर विकास के अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करना।
  • उपयुक्त शिक्षा, संचार और संस्थात्मक कार्यक्रमों द्वारा विकास प्रक्रिया में जनता के सभी वर्गों की सहभागिता को बढ़ाना।

सातवीं पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय आय में 5 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि करना।
  • पूंजी की पूर्ण क्षमता का उपयोग करके पूंजी की उत्पादकता में वृद्धि करना जिससे पूंजी-उत्पादन अनुपात में कमी लायी जा सके।
  • आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में महत्वपूर्ण कमी लाना।
  • पूर्ण रोजगार की दशाएं उत्पन्न करना
  • भुगतान शेष की समस्या को अधिक नियंत्रित करने के उद्देश्य से प्रमुख भारतीय उत्पादनों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में सुधार करके निर्यात को बढ़ावा देना तथा आयात प्रतिस्थापन की नीति को कड़ाई से लागू करना।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी लाना।
  • अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति के दबावों को नियंत्रित करना।
  • ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।

आठवीं पंचवर्षीय योजना

  • राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा मई 1992 में अनुमोदित आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) के दस्तावेज में 7,98,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय का प्रावधान था, जिसमें से 4,34,100 करोड़ रुपए का परिव्यय सार्वजनिक क्षेत्र के लिए था।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इस राशि में से 3,61,000 करोड़ रुपये की राशि नए निवेश तथा 73,100 करोड़ रुपऐ चालू खर्च के लिए रखे गए थे।
  • योजना के दस्तावेज में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप (Goverment interfrence) में कमी, अधिक से अधिक सीमा तक लाइसेन्स नियन्त्रण तथा नियमों की समाप्ति, बाजारतन्त्र की भूमिका में वृद्धि तथा पूँजी निवेश के व्यापक लक्ष्यों को प्राथमिकता दी गयी।

आठवीं योजना की विशेषताएं

  • यह योजना निर्देशात्मक प्रकृति की थी। इसमें भविष्य के लिए दीर्घकालीन कार्यनीति बनाने पर बल दिया गया। योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार को कम करके उसके लिए विशिष्ट परियोजनाओं का पता लगाने का प्रयास किया गया।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित किए गए। इन लक्ष्यों के द्वारा अर्थव्यवस्था को निर्धारित दिशा में अग्रसर होने केे लिए प्रोत्साहन मिला।
  • योजना के प्रारूप में यह स्वीकार किया गया है केवल स्वस्थ एवं शिक्षित व्यक्ति ही आर्थिक विकास में सहायक हो सकते है तथा यही विकास अन्ततः मानवीय विकास के लिए आवश्यक होगा। 
  • अतः इसके लिए योजना में स्वास्थ्य, शिक्षा, साक्षरता तथा कमजोर वर्गों के व्यक्तियों के लिए पीने के पानी एवं आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति से सम्बन्धित कार्यक्रमों को पर्याप्त स्थान दिया गया। 
  • देश के तीव्र आर्थिक विकास हेतु बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए प्राथमिकता हेतु जिन क्षेत्रों का योजना में जिक्र किया गया, उनमें बिजली, परिवहन एवं संचार मुख्य थे।
  • देश की छठी एवं सातवीं पंचवर्षीय योजनाओं में वित्तीय संतुलन की स्थिति को दूर करने का कोई प्रयास सफल नहीं हो सका। अतः आठवीं योजना में इस असन्तुलन को हल करने का पुनः प्रयास किया गया।
  • इसके लिए योजना में धन की व्यवस्था इस प्रकार करनी थी कि उससे मुद्रा स्फीति उत्पन्न न हो। इसमें समन्वित -ष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया गया। विकास की प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी के महत्व को आठवीं योजना में स्वीकार किया गया।
  • इसके लिए इस योजना में संस्थागत -ष्टिकोण अपनाने पर बल दिया गया।
  • योजना आयोग ने इस प्रकार की कार्यनीति तैयार की कि जिला, ब्लाॅक तथा गाँव स्तर पर आम लोगों की संस्थाओं को सशक्त बनाया जाए, ताकि योजना में प्रस्तावित निवेश इस प्रकार से किए जा सके कि उन्हें आम लोगों की जरूरतों से जोड़ा जा सके।
  • आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए योजना में यह आवश्यक समझा गया है कि जिला, ब्लाॅक तथा ग्राम स्तर पर अधिकारों के बड़े पैमाने पर विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था की जाए। 
  • इसमें संसाधनों के आवंटन पर उतना अधिक बल नहीं दिया गया जितना कि आवंटित धनराशि के अनुकूलतम उपयोग पर।

आठवीं योजना की प्राथमिकताएं
आठवीं योजना का मूलभूत उद्देश्य विभिन्न पहलुओं में मानव विकास करना था।  
इस मूलभूत उद्देश्य की प्राप्ति हेतु योजना में जिन उद्देश्यों को प्राथमिकता दी गई, वे निम्नलिखित हैं -

  • शताब्दी के अन्त तक लगभग पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त करने की -ष्टि से पर्याप्त रोजगार का सृजन करना।
  • प्रोत्साहन एवं हतोत्साहन की प्रभावी योजना द्वारा जन सहयोग के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना।
  • प्रारम्भिक शिक्षा का व्यापीकरण करना तथा 15 से 35 वर्ष की आयु के मध्य के लोगों में व्याप्त निरक्षता को पूर्णतः समाप्त करना।
  • सभी गाँवों एवं समस्त जनसंख्या हेतु पेयजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान करना तथा मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना।
  • खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात योग्य बचत प्राप्त करने हेतु कृषि का विकास एवं विस्तार करना।
  • विकास प्रक्रिया को स्थाई आधार पर समर्थन देने हेतु आधारभूत ढाँचे (ऊर्जा, परिवहन, संचार व सिंचाई) को मजबूत करना।

आठवीं योजना का जायजा

  • इन उपायों के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में निश्चित रूप से सुधार हुआ। विदेशी मुद्रा कोष जो जुलाई, 1991 में 1.1 बिलियन अमरीकी डालर के निम्न स्तर पर था, वह बढ़कर इस समय 18 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक हो गया है।
  • निर्यात वृद्धि दर में बढ़ोतरी से चालू खाता घाटा भी आठवीं योजना के दौरान सातवीं योजना की तुलना में कम हो गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि विदेशी निवेशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति पुनः विश्वास उत्पन्न हुआ है।
  • आठवीं योजना के दौरान  विशेषकर सिंचाई के क्षेत्र में, सरकारी निवेश कम हुआ। खाद्यान्नों के मूल्यों में तेजी से वृद्धि हुई। 
  • बिजली, परिवहन और संचार जैसी आधारभूत सुविधाओं के क्षेत्र में भी आठवीं योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकी। 
  • इसका मुख्य कारण यह है कि इन क्षेत्रों में पूंजी निवेश उतना नहीं हो पाया जितना कि सोचा गया था। 

नौवीं पंचवर्षीय योजना

  • नौवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1977 को लागू की गई थी। इस योजना के लिए दो चीजें हितकर साबित हुईं। 
  • एक तो स्थिरीकरण कार्यक्रम जो 1991 में शुरू हुआ था और दूसरा ढांचागत समायोजन जिसे बाद में शुरू किया गया। 
  • नियोजन को जन-मानस के अनुकूल बनाकर एक नए युग का सूत्रपात करना ही इस योजना का मुख्य काम है। इसमें न केवल सरकार बल्कि गरीब जनता भी पूरी तरह से भाग लेगी।

नौवीं योजना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता ताकि पर्याप्त उत्पादक रोजगार का सृजन हो सके और गरीबी का उन्मूलन हो सके
  • स्थिर कीमतों के साथ अर्थव्यवस्था के संवृद्धि दर में बढ़ोतरी
  • सभी के लिए खास कर समाज के कमजोर वर्गों के लिए संतुलित आहार सुनिश्चित करना
  • मूलभूत न्यूनतम सेवाएं उपलब्ध कराना और सुरक्षित पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, आवास और एक निश्चित समयावधि तक इनमें सामंजस्य स्थापित करना
  • जनसंख्या वृद्धि दर को स्थिर रखना
  • हर स्तर पर लोगों को गोलबंद करने विकास प्रक्रिया के पर्यावरण संबंधी स्थायित्व को सुनिश्चित करना
  • महिलाओं और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति, अल्पसंख्यकों इत्यादि को विशेष अधिकार देना ताकि ये वर्ग सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन और विकास में योगदान दे सकें
  • लोगों को जोड़ने वाली संस्थाओं का विकास करना और बढ़ावा देना जैसे पंचायती राज, सहकारी समितियां, स्वसहयोग समूह इत्यादि।

इन सभी उद्देश्यों का लक्ष्य समानता और संवृद्धि है। राज्य नीति के आधार पर इन उद्देश्यों के चार वर्ग बनाए गए हैं-

  • लोगों का ऊंचा जीवन स्तर
  • उत्पादन रोजगार का सृजन
  • क्षेत्रीय संतुलन
  • आत्मनिर्भरता

नौवीं योजना में प्राथमिकता के आधार पर सात आधारभूत सेवाओं को चुना गया है। ये सेवाएं हैं -

  • सुरक्षित पेयजल का प्रावधान
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की उपलब्धता
  • सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना
  • सभी आवासहीन गरीब परिवारों को सार्वजनिक आवास सहायता का प्रावधान 
  • बच्चों को संतुलित आहार
  • सभी गांवों और निवास स्थान का सड़कों द्वारा संपर्क जोड़ना
  • गरीब लोगों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुरक्षित करना।
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FAQs on पंचवर्षीय योजनाएं (भाग - 1) पारंपरिक अर्थव्यवस्था - UPSC

1. पंचवर्षीय योजनाएं क्या हैं?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाएं वे योजनाएं होती हैं जो देश की अर्थव्यवस्था के विकास और सुधार के लिए पांच साल के योजनाकाल के अंतर्गत चलाई जाती हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य समाजिक और आर्थिक विकास को गति देना होता है और गरीबी, बेरोजगारी, जहरीले प्रदूषण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के मुद्दों को हल करना होता है।
2. पंचवर्षीय योजनाएं क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाएं देश के विकास को निर्देशित करने और उसे सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण माध्यम होती हैं। इन योजनाओं के द्वारा सरकार विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों का पालन करती है और लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए उचित नीतिगत निर्णय लेती है। ये योजनाएं सामरिक, आर्थिक, सामाजिक और वातावरणिक मामलों को ध्यान में रखते हुए देश के विकास को बढ़ावा देती हैं।
3. क्या पंचवर्षीय योजनाओं में परंपरागत अर्थव्यवस्था का ध्यान रखा जाता है?
उत्तर: हां, पंचवर्षीय योजनाओं में परंपरागत अर्थव्यवस्था का ध्यान रखा जाता है। इन योजनाओं का उद्देश्य देश की राष्ट्रीय आय और उत्पादन को बढ़ाना, गरीबी को कम करना, श्रम सुधार करना और उचित रोजगार के अवसर प्रदान करना होता है। ये योजनाएं बड़े पैमाने पर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के विकास को सुनिश्चित करती हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने का प्रयास करती हैं।
4. पंचवर्षीय योजनाएं कितने सालों के लिए चलती हैं?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाएं पांच साल के योजनाकाल के अंतर्गत चलती हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिति में सुधार करना होता है और सामरिक, आर्थिक, सामाजिक और वातावरणिक मामलों को सम्मिलित करके देश के विकास को गति देना होता है। पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान सरकार विभिन्न क्षेत्रों में नीतियों का पालन करती है और उनकी प्रगति का मूल्यांकन करती है।
5. पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा किस प्रकार के मुद्दों का समाधान किया जाता है?
उत्तर: पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा गरीबी, बेरोजगारी, जहरीले प्रदूषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पानी, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि के मुद्दों का समाधान किया जाता है। ये योजनाएं सामरिक, आर्थिक, सामाजिक और वातावरणिक मामलों को ध्यान में रखते हुए देश के विकास को बढ़ावा देती हैं और सुधार कार्यों को निर्देशित करने का माध्यम होती हैं।
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