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कल्याण - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

कल्याण

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना, उसमें वर्णित राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत, मूलभूत अधिकार और 38, 39 और 46 जैसे विशिष्ट अनुच्छेद जन-कल्याण के प्रति राज्य की वचनबद्धता के प्रमाण हैं।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का कल्याण

  • अनुसूचित जातियों और जनजातियों का निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के अनुसार किया गया है।

संवैधानिक सुरक्षा

  • भारत के संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों का शैक्षिक तथा आर्थिक दृष्टि से उत्थान करने और उनकी सामाजिक अयोग्यताओं को दूर करने के उद्देश्य से उनकी आवश्यक सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान करने के उपाय किए गए हैं। 
  • इसके लिए या तो कुछ विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं या फिर नागरिक के रूप में उनके सामान्य अधिकारों पर जोर दिया गया है।

संविधान में इन वर्गों के लिए कुछ प्रमुख सुरक्षा उपाय इस प्रकार हैंµ 

  • अस्पृश्यता उन्मूलन तथा किसी भी रूप में इनके प्रचलन पर रोक (अनुच्छेद-17)
  • उनके शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सभी प्रकार के शोषण व सामाजिक अन्याय से उनका सरंक्षण (अनुच्छेद-46)
  • हिन्दुंओं के सार्वजनिक धार्मिकस्थलों के द्वार कानूनी तौर पर हर जाति और वर्ग के हिंदुओं के लिए खोलना (अनुच्छेद-25 ख)
  • दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों, मनोरंजन स्थलों तथा कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों और सरकारी धन से पूरी तरह या आंशिक रूप से संरक्षित किसी भी स्थान अथवा सार्वजनिक स्थल के उपयोग संबंधी सभी अयोग्यताएं, उत्तरदायित्व, रुकावटें और शर्तें समाप्त करना (अनुच्छेद 15-2)
  • अनुसूचित जनजातियों के लोगों के हितों के संरक्षण के लिए आम नागरिक के भारत में किसी भी स्थान पर आने-जाने, रहने तथा बसने और संपत्ति खरीदने-बेचने संबंधी सामान्य अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने की कानूनी व्यवस्था (अनुच्छेद 19.5)
  • सरकार द्वारा संचालित अथवा सरकारी खजाने से सहायता प्राप्त करने वाली शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश संबंधी प्रतिबंधों को समाप्त करना (अनुच्छेद 29-2)
  • राज्य को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने तथा इस संबंध में उनके दावों पर विचार करने का अधिकार प्रदान करना (अनुच्छेद-16-335)
  • लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए 25 जनवरी 2026 तक विशेष प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करना (अनुच्छेद 330 - 332 और 324) 
  • उनके कल्याण तथा हितों की रक्षा के लिए राज्यों में जनजातीय सलाहकार परिषदों तथा अलग विभागों की स्थापना और केन्द्र में विशेष अधिकारी की नियुक्ति (अनुच्छेद 164- 338 तथा पांचवीं अनुसूची) 
  • अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन तथा नियंत्राण के लिए विशेष व्यवस्था (अनुच्छेद-244 और पांचवीं तथा छठी अनुसूची)
  • उनसे जबरन मजदूरी कराने पर प्रतिबंध लगाना (अनुच्छेद 2-3)।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग

  • पैंसठवें संविधान संशोधन अधिनियम(1990) के अंतर्गत अनुच्छेद 338 के तहत नियुक्त किए जाने वाले विशेष अधिकारी के स्थान पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आयोग बनाया गया है। इसमें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने वाले अध्यक्ष के साथ पांच सदस्यों की भी व्यवस्था की गई थी।

संसदीय समिति

  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों की सुरक्षा के संवैधानिक सुरक्षा उपायों के क्रियान्वयन की जांच के लिए सरकार ने तीन संसदीय समितियां गठित की हैं। इनमें से पहली संसदीय समिति 1966 में, दूसरी 1971 में और तीसरी 1973 में बनाई गई।
  • अब इनके स्थान पर श्रम और कल्याण के बारे में संसद की स्थाई समिति गठित की जा चुकी है।

छुआछूत के खिलाफ कानून

  • छुआछूत की कुप्रथा को रोकने के लिए 1955 में बने कानून के दायरे को बढ़ाया गया है और इसके दंडात्मक प्रावधानों को और कड़ा कर दिया गया है। इसके लिए कानून में व्यापक संशोधन किए गए हैं और इसे ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 नाम दिया गया है। संशोधित अधिनियम 19 नवंबर 1976 से लागू हो गया है।

अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों पर अत्याचारों की रोकथाम

  • अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989- 30 जनवरी 1990 से लागू हुआ। इसमें अत्याचार की श्रेणी में आने वाले अपराधों के उल्लेख के साथ-साथ उनके लिए कड़े दंड की भी व्यवस्था की गई है।

पुस्तक बैंक कार्यक्रम

  • मेडिकल और इंजीनियरी डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए अनुसूचित जातियों/जनजातियों के छात्रों को पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए 1991.92 में पुस्तक बैंक कार्यक्रम शुरू किया गया। अब कृषि, पशु-चिकित्सा और पोलीटेक्निक पाठ्यक्रमों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। दो-दो विद्या£थयों के लिए पाठ्य-पुस्तकों का एक सैट उपलब्ध कराया जाता है।

राज्य अनुसूचित जाति विकास निगम

  • राज्य के अनुसूचित जाति विकास निगमों की मदद के लिए यह योजना वर्ष 1978.79 में शुरू की गई थी, ताकि अनु. जाति/जनजाति आबादी को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाया जा सके।

बाबा साहेब डाॅ. अम्बेडकर फाउंडेशन

  • इसकी स्थापना 24 मार्च, 1992 को एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में की गई थी। फाउंडेशन को भारतरत्न बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर की जन्म शताब्दि समारोहों के दौरान सुनिश्चित किए गए कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने, उनकी देखरेख और प्रबंध की जिम्मेदारी सौंपी।

ग्रामीण अनाज बैंक योजना

  • दूर-दराज और पिछड़े जनजातीय इलाकों के बच्चों की कुपोषण से होने वाली मृत्यु की रोकथाम के सरकार के प्रयास के रूप में वर्ष 1996.97 में ग्रामीण अनाज बैंक योजना शुरू की गई।

पिछड़े वर्गों का कल्याण

  • संविधान के अनुच्छेद 15(4) में राज्यों को, नागरिकों के सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के उत्थान के लिए विशेष उपाय करने का अधिकार प्रदान किया गया है। 
  • इसके अलावा, अनुच्छेद 16(4) में राज्य को यह अधिकार दिया गया है कि वह सरकारी सेवाओं तथा पदों में ऐसे किसी भी पिछड़े वर्गों के लिए, जिन्हें इनमें पर्याप्त आरक्षण नहीं मिला, आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है। 
  • अनुच्छेद 16 या 38, 46 और अनुच्छेद 38 के भाग 16 के खंड (I) के अंतर्गत संविधान में दिए गए अन्य प्रावधानों के अंतर्गत राज्य के लिए अनिवार्य कर दिया गया है कि वह ‘सामाजिक व्यवस्था को जहां तक संभव हो सके, लाए और प्रभावी ढंग से प्रेषित कर जन-कल्याण को बढ़ावा दे, जिनमें न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को सूचित करें।
  • भारत सरकार ने ‘अति समृद्ध तबके’ की पहचान करने के लिए 22 फरवरी 1993 को एक विशेषज्ञ समिति बनाई। 
  • इस समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 8 सितंबर 1993 को एक ज्ञापन जारी किया, जिसमें ये सुविधायें दी गईं। 
  • भारत सरकार के अंतर्गत आने वाली नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण, और अन्य पिछड़े वर्गों में ‘अति समृद्ध तबके’ के लोगों को आरक्षण नहीं दिया जाएगा।

अल्पसंख्यकों का कल्याण

  • सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर पांच समुदायों-मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जरथ्रुस्त को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया है।
  • भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का प्रावधान है और इसके अंतर्गत उन्हें अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने एवं अपनी इच्छानुसार शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने एवं चलाने संबंधी उनके अधिकारों को मान्यता प्रदान की गई है।

वक्फ

  • वक्फ ऐसे कार्यों के लिए स्थाई रूप से दान की गई ऐसी चल या अचल संपत्तियां हैं, जो मुस्लिम कानून के अनुसार धर्मसम्मत और पवित्रा माने जाते हैं। 
  • इन संस्थाओं के बेहतर प्रबंध तथा इनके उद्देश्यों को पूरी तरह हासिल कर समाज के विकास और प्रगति की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है। 
  • वक्फ संस्थाओं के बारे में केंद्रीय कानून पर अमल की जिम्मेदारी कल्याण मंत्रालय की है। 
  • वक्फ संस्थाओं के प्रशासन को और सुदृढ़ करने के लिए संसद ने एक नया कानून तैयार कर 1995 में उसे लागू किया। इसे वक्फ अधिनिय, 1995 नाम दिया गया। 
  • पहली जनवरी 1996 से देश में इस कानून के लागू होने के बाद वक्फ संबंधी पहले के केंद्रीय कानून, जैसे- वक्फ अधिनियम, 1954 और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 1984 समाप्त हो गए हैं। 
  • 1995 का नया वक्फ अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर बाकी समूचे भारत पर लागू होता है।
  • इस कानून में वक्फ संस्थाओं के प्रबंध के लिए विकेंद्रित प्रणाली अपनाने के साथ-साथ वक्फ बोर्डों के लोकतंत्राीकरण की भी व्यवस्था है। 
  • प्रत्येक वक्फ संस्था के मुतवल्ली (प्रबंधक) को अपने वक्फ के कामकाज में पूरी आजादी है। 
  • राज्यों के सभी वक्फों की जिम्मेदारी राज्य सरकारों द्वारा गठित वक्फ बोर्डों की होती है। 
  • राज्य वक्फ बोर्ड यह सुनिश्चित करते हैं कि वक्फ संस्थाओं का कामकाज और प्रशासन ठीक तरह से चले और उनकी आमदनी का इस्तेमाल उन्हीं कार्यों में किया जाए, जिनके लिए उनका गठन किया गया है।   
  • बोर्ड का अपना कार्यालय तथा कर्मचारी होते हैं और उसका खर्च विभिन्न वक्फ संस्थाओं से वैधानिक रूप से वसूल किए जाने वाले अंशदान से चलता है। 
  • राज्य सरकारें वक्फ बोर्डों की गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रखने के लिए जिम्मेदार हैं।
  • बोर्ड के सदस्यों तथा प्रधान कार्यकारी अधिकारी (सचिव) की नियुक्ति के अलावा बोर्ड का वा£षक बजट प्राप्त करने और इसके हिसाब-किताब की जांच के लिए लेखापरीक्षकों की नियुक्ति की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की है। 
  • राज्य सरकारें बोर्ड की निर्देश दे सकती हैं और कतिपय मामलों में बोर्ड के स्थान पर काम कर सकती हैं। केंद्र सरकार केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों के कामकाज में तालमेल रखकर तभी तक कार्य करती हैं, जब तक इनकी गतिविधियां धर्मनिरपेक्ष हों। 
  • देश में वक्फ संस्थाओं और वक्फ बोर्डों के प्रशासन तथा कामकाज के बारे में केंद्र को सलाह देने के लिए केंद्रीय वक्फ परिषद नाम की वैधानिक संस्था गठित की गई है। 
  • वक्फ से संबंधित मामलों के प्रभारी केंद्रीय मंत्राी परिषद के अध्यक्ष होते हैं। वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत 26 जून 1997 को केंद्रीय वक्फ परिषद का पुनर्गठन किया गया है।

महिला और बाल विकास

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय में 1985 में महिला और बाल विकास विभाग का गठन किया गया। 
  • इसका उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के लिए आवश्यक सर्वांगीण विकास की जरूरत को पूरा करना है।

पुरस्कार

  • बाल कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों की शुरुआत 1979 में अंतर्राष्ट्रीय बाल वर्ष के दौरान की गई थी। 
  • इनका उद्देश्य बाल कल्याण के लिए स्वैच्छिक आधार पर कार्य करने वालों को सरकार की ओर से मान्यता प्रदान करना था। 
  • राष्ट्रीय वीरता पुरस्कारों की शुरुआत 1957 में भारत सरकार ने की थी। कठिन परिस्थितियों में असाधारण सूझबूझ और बहादुरी दिखाने के लिए बच्चों को ये पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। 
  • भारत सरकार ने हाल ही में असाधारण उपलब्धियां हासिल करने वाले बच्चों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए हैं। इसके अंतर्गत पढ़ाई-लिखाई, कला, संस्कृति और खेल-कूद जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धियां प्राप्त करने वाले बच्चों को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। 

केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड

  •  देश में समाज कल्याण संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देने तथा महिलाओं, बच्चों तथा विकलांगों के कल्याण कार्यक्रमों को स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से लागू करने के लिए 1953 में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड गठित किया गया था।
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FAQs on कल्याण - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर: कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था एक प्रकार की अर्थव्यवस्था है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर आधारित है। इसमें व्यापार, व्यवसाय, सामाजिक संगठन और परिवारीक नेटवर्क की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
2. क्या कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था उत्पादन के माध्यम से चलती है?
उत्तर: हां, कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था उत्पादन के माध्यम से चलती है। इसमें कृषि, उद्योग, व्यापार और व्यवसाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह परंपरागत ढंग से उत्पादित वस्तुओं की संग्रहणीयता को सुनिश्चित करने के लिए ज्ञात अंतरालों और तकनीकों का प्रयोग करती है।
3. कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था का महत्व क्या है?
उत्तर: कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था का महत्व उसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में होता है। इसे एक समृद्ध और स्थायी अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है जो न केवल सामाजिक सुरक्षा और संतुलन को बनाए रखती है, बल्कि साथ ही सामरिक और आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है।
4. क्या कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है?
उत्तर: हां, कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है। यह एक माध्यम है जिसके माध्यम से देश की आर्थिक विकास और सामरिकता को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके अलावा, इसका महत्व भी उन लोगों के लिए होता है जो परंपरागत व्यवसाय, कृषि और उद्योग के माध्यम से अपनी आय कमाते हैं।
5. क्या कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था को बदलने की जरूरत है?
उत्तर: हां, कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था को बदलने की जरूरत है। विश्वास की बढ़ती दुर्घटनाओं, तकनीकी और आर्थिक प्रगति के साथ एक संवेदनशील और सुगम अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है। इसके लिए समय के साथ संगठनात्मक और प्रशासनिक परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है ताकि कल्याण की पारंपरिक अर्थव्यवस्था अधिक सुसंगत, प्रभावी और स्थायी बने।
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