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समितियाँ तथा आयोग - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

कौल समिति

  • पीे. के कौल समिति ने भारतीय यूनिट ट्रस्ट (यूटीआई) अधिनियम, 1964 को निरस्त करने का सुझाव दिया। 
  • समिति का मानना है कि म्यूचुअल फंड उद्योग के समुचित विकास के लिए एकीकृत अधिनियम को उपयोग मेें लाने की आवश्यकता है। 
  • समिति ने म्यूचुअल फंड के ट्रस्टियों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश भी तैयार किये हैं। 
  • इस समिति का गठन 1997 में किया गया था। इसने अपनी सिफारिश मई 1998 में दी। यूटीआई अधिनियम, 1964 को निरस्त करने के संबंध में समिति ने तर्क दिया है कि एकीकृत म्यूचुअल फंड अधिनियम की मदद से यूटीआई समेत सभी म्यूचुअल फंडों के लिए एक समान नियमन व्यवस्था विकसित की जा सकेगी। 
  • यूटीआई को छोड़कर शेष सभी म्यूचुअल फंड, संशोधित सेबी (म्यूचुअल फंड) अधिनियम.1996 के तहत संचालित किये जाते हैं। 
  • यद्यपि 1994 के बाद से यूटीआई द्वारा जारी सभी स्कीमों को स्वैच्छिक रूप से सेबी अधिनियम के दायरे में लाया गया है, फिर भी कौल समिति इसे पर्याप्त नहीं मानती। 
  • इसी को ध्यान में रखते हुए म्यूचुअल फंड को कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत कंपनी के रूप में गठित करने का भी सुझाव दिया है। 
  • इस तरह की कंपनी केवल म्यूचुअल फंड व्यवसाय को स्थापित व परिचालित करने के लिए स्थापित की जाएगी। 
  • ऐसी कंपनियां सेबी अधिनियम द्वारा संचालित होंगी। समिति ने इस व्यवस्था की कुछ खामियों का भी जिक्र किया है। 
  • समिति का मानना है कि इस तरह की व्यवस्था में पूंजी में कमी और शेयरों की पुनर्खरीद पर नियंत्राण को लेकर कुछ दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। 
  • यदि इस तरह की कपंनियां यूनिटों के जरिये उगाही गयी पूंजी को ‘क्वासी ईक्विटी’ के समान मान्यता देती हैं तो इनको नियमित करने में परेशानी हो सकती है। 
  • समिति का यह भी मानना है कि जिस तरह से गैर-बैंकिग वित्तीय कपंनियों के नियमन में दिक्कतेें हो रही हैं, कुछ इसी प्रकार की प्रवृत्ति यहां भी देखने को मिल सकती है। 
  • समिति का मानना है कि म्यूचुअल फंडों की स्थापना इंडियन ट्रस्ट अधिनियम, 1982 के तहत किया जाना दोषपूर्ण है। इसीलिए समिति ने इस अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की है। 
  • समिति का मानना है कि डिपाॅजिटरी अधिनियम के ऐसे सभी प्रावधानों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनके जरिये म्यूचुअल फंडों की कार्यप्रणाली संचालित की जाती है। 
  • ज्ञातव्य है कि अमेरिका जैसे विकसित देश के साथ-साथ ब्राजील, मैक्सिको, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड और सेशेल्स जैसे विकासशील देशों में भी म्यूचुअल फंड अधिनियम पारित किया जा चुका था।
  • इसी के मद्देनजर समिति ने सरकार से इस तरह के अधिनियम को शीघ्रातिशीघ्र पारित करने का सुझाव दिया है।
  • समिति ने ट्रस्टी बोर्ड के सदस्यों की न्यूनतम संख्या पांच रखने की सिफारिश की है जबकि सदस्यों की अधिकतम संख्या निर्धारित करने का अधिकार म्यूचुअल फंड को होगा। 
  • ट्रस्टी बोर्ड की बैठक में कोरम एक स्वतंत्रट्रस्टी अथवा निदेशक के बगैर पूरा नहीं होगा। 
  • बोर्ड में एक तिहाई स्थायी सदस्य स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए। 
  • समिति ने हर दो महीने पर कम-से-कम एक बार बोर्ड की बैठक बुलाने का सुझाव दिया है। 
  • समिति ने स्वतंत्र निदेशकों को भी विस्तृत जिम्मेदारी तय की है।

आचार्य समिति

  • इस समिति का गठन जनवरी 1998 में किया गया था और उसने अपनी रिपोर्ट मार्च 1998 में सरकार को सौंपी।
  • प्राथमिक पूंजी बाजार में सुधार के लिए गठित डाॅ. शंकर आचार्य समिति ने सुझाव दिया है कि किसी शेयर के सूचीकरण के बाद उसमें कम से कम छह माह से एक वर्ष तक के लिए मार्केट मेकिंग अनिवार्य कर दी  जाए। 
  • समिति का कहना है कि इससे प्राथमिक बाजार के प्रति निवेशकों के खोये हुए विश्वास को वापस लाने में मदद मिल सकती है। समिति ने मार्केट मेेकरों के लिए समुचित मात्रमें वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने की भी सिफारिश की है। 
  • समिति ने सूचीबद्धता प्रावधानों को और अधिक सख्त बनाने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही समिति ने एक प्रभावी संस्थागत व्यवस्था विकसित करने का सुझाव दिया है जिससे आम निवेशकों के बीच विश्वास का माहौल बनाया जा सके। 
  • समिति ने लेखा प्रावधानों और काॅरपोरेट गवर्नेस के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को अपनाने की सिफारिश की है। 
  • समिति ने सरकार से डेरिवेटिव ट्रेडिंग जल्द से जल्द शुरू करने की अनुमति देने का आग्रह किया है। 
  • समिति ने प्राइवेट प्लेसमेंट के प्रावधानों को सख्त बनाने की सिफारिश की है। 
  • समिति ने सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश के लिए जीडीआर की बजाय घरेलू पूंजी बाजार के इस्तेमाल का सुझाव दिया है।
  • समिति का कहना है कि यदि कोई कंपनी एक निश्चित संख्या से ज्यादा निवेशकों के बीच शेयरों का प्राइवेट प्लेसमेंट करना चाहती है तो उसके लिए डिस्क्लोजर प्रावधानों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। 
  • एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे दक्ष संस्थागत निवेशकों या उच्च नेटवर्थ वाले निवेशकों के बीच ही शेयरों का प्राइवेट प्लेसमेंट हो सके। 
  • समिति ने सार्वजनिक उपक्रमों की विनिवेश योजनाओं के स्वरूप में भी फेरबदल की सिफारिश की है।

गुप्ता समिति

  • नवम्बर 96 में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट फरवरी, 1998 में सेबी को सौंपी थी।
  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मामूली संशोधनों के साथ डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर डाॅ. एल.सी. गुप्ता समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है।
  • म्यूचुअल फंड के लिए डेरिवेटिव सौदे की न्यूनतम सीमा व्यक्तिगत निवेशकों के समान एक लाख रुपये तय की गयी है। 
  • सीमा निर्धारण का मुख्य उद्देश्य छोटे निवेशकों को संरक्षण प्रदान करना है। इसी प्रकार डेरिवेटिव सौदे में एक्सपोजर की सीमा नेटवर्थ का 20 गुना होगी। एक्सपोजर सीमा का आशय टर्नओवर की बजाय बकाया व्यवसाय से है। 
  • गुप्ता समिति ने डेरिवेटिव ट्रेडिंग के संबंध में स्टाॅक एक्सचेंजों के लिए मुख्य रूप से तीन शर्र्तंे रखी थीं, जिन पर सेबी बोर्ड ने सहमति जता दी। डेरिवेटिव ट्रेडिंग के संबंध में स्टाॅक एक्सचेंजों के लिए मुख्य रूप से तीन शर्तें निर्धारित की गयी हैं। 
  • एक, एक्सचेंज में उचित बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए। दूसरा, एक्सचेंज की ट्रेडिंग व्यवस्था कम्प्यूटरीकृत हो और निगरानी की बेहतर व्यवस्था हो। 
  • तीसरी शर्त के तहत डेरिवेटिव ट्रेडिंग शुरू करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के इच्छुक होने की जरूरत होगी।

हनुमंत राव समिति

  • इस समिति का गठन सरकार ने 28 सितम्बर, 1997 को योजना आयोग के पूर्व सदस्य सी.एच.हनुमंत राव की अध्यक्षता में किया था। 
  • समिति ने अपनी रिपोर्ट 3 अप्रैल, 1998  को उर्वरक एवं रसायन मंत्राी को सौंपी।
  • उर्वरकों की मूल्य नीति के संबंध में गठित उच्चाधिकार-प्राप्त हनुमंत राव समिति ने उद्योग को नियंत्राण-मुक्त करने की सिफारिश की है। 
  • समिति ने उर्वरकों की मौजूदा प्रतिधारण मूल्य योजना (आरपीएस) को भी समाप्त करने की सिफारिश करते हुए कहा है कि मूल्य निर्धारित करने का फैसला उर्वरक इकाइयों पर छोड़ देना चाहिए। 
  • आरपीएस के स्थान पर मूल्य निर्धारण के लिए दीर्घकालिक सीमांत लागत (एलआरएमसी) को आधार बनाया जाना चाहिए। 
  • उर्वरक वितरण के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत लागू आवंटन प्रणाली को भी समिति ने समाप्त करने को कहा है। 
  • नयी मूल्य प्रक्रिया को अगले रबी सीजन (1998.99) से लागू कर दिया जाए। 
  • उर्वरक इकाइयों को सब्सिडी देने के लिए एलआरएमसी के आधार पर एक मानक संदर्भ मूल्य (एनआरपी) निर्धारित किया जाए। 
  • उर्वरक इकाइयों को फार्म गेट मूल्य (एफजीपी) निर्धारित करने की छूट एक निश्चित सीमा तक ही होगी। 
  • यह सीमा सब्सिडी निर्धारण और यूनिट मूल्य निर्धारण दोनों समय ध्यान में रखी जाएगी। एफजीपी के लिए सरकार को हर साल इसकी समीक्षा कर अधिसूचना जारी करनी हेागी। इस मूल्य में डीलर को मुनाफा और परिवहन खर्च शामिल होंगे। 
  • समिति ने मूल्य सीमा निर्धारित करने के लिए एक उर्वरक नीति योजना बोर्ड (एफपीपीबी) गठित करने की भी सिफारिश की है।
  • उर्वरक इकाइयों को दी जाने वाली सब्सिडी का निर्धारण एनआरपी, डीलर मार्जिन और औसत परिवहन खर्च सहित जो राशि आयेगी उसे फार्म गेट मूल्य से घटाकर किया जाए। सब्सिडी सीधे उर्वरक उत्पादकों को ही दी जाए। 
  • समिति ने कहा है कि एनआरपी का निर्धारण उर्वरक इकाइयों में इस्तेमाल हो रहे ईंधन के आधार पर किया जाएगा। इसके आधार पर ही सब्सिडी का अंतर तय किया जायेगा। 
  • देश में अधिकतर उर्वरक इकाइयां नैप्था और कोयले पर आधारित हैं। भविष्य में स्थापित होने वाली इकाइयों को तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है। 
  • उर्वरकों के वितरण के मामले एक महत्त्वपूर्ण सिफारिश करते हुए समिति ने कहा है कि नयी मूल्य प्रक्रिया में वितरण प्रणाली पर सरकार का नियंत्राण समाप्त होना जरूरी है।
  • इसलिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955के तहत जारी उर्वरकों के आवंटन की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया जाए। इसके साथ ही समान परिवहन लागत योजना को भी समाप्त कर दिया जाए। 
  • दूरदराज के इलाकों में उर्वकरों के वितरण पर उर्वरक कपंनियों को अतिरिक्त सहायता दी जाए और इन क्षेत्रों को अधिसूचित किया जाए।
  • यूरिया आयात को पांच साल के लिए कैनालाइज्ड किया जाना चाहिए। लेकिन देश में न्यूनतम आत्मनिर्भरता की स्थिति बनाने के लिए नयी यूरिया इकाइयों को उनकी अधिक उत्पादन लागत के चलते एलआरएमसी के आधार पर अतिरिक्त सब्सिडी दी जानी चाहिए। 
  • समिति ने उर्वरक उद्योग में निवेश आकर्षित करने के लिए सकारात्मक नीति बनाने की सिफारिश भी की है।

 

 

                                                               महत्वूपर्ण समितियाँ

            समिति

                       कार्यक्षेत्र   

दत्त समिति

औद्योगिक लाइसेंसिंग

महालनोबिस समिति

राष्ट्रीय आय

राजा चेलैया समिति

कर-सुधर

चेलैया समिति

काला धन की समाप्ति

भानुप्रताप सिंह समिति

कृषि

जी.वी. रामकृष्णा समिति

सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के शेयर का विनिवेश

नरेशचन्द समिति

कॉर्पोरेट गवर्नेंस

बलवन्त राय मेहता समिति

विकेन्द्रीकरण के लिए सुझाव

ज्योति बसु समिति

आक्ट्राई समाप्ति पर रिपोर्ट

खुसरो समिति

कृषि साख

राज समिति

कृषि जोतकर

भगवती समिति

बेरोजगारी

वांचू समिति

प्रत्यक्ष कर

एल.के. झा समिति

अप्रत्यक्ष कर

वाघुल समिति

म्युचुअल फण्ड स्कीम

नादकर्णी समिति

सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिभूतियाँ

मल्होत्र समिति

बीमा क्षेत्र में सुधर

सेन गुप्ता समिति

शिक्षित बेरोजगारी

डॉ.विजय केलकर समिति

प्राकृतिक गैस मूल्य

भूतलिंगम समिति

मजदूरी, आय तथा कीमतें

दंतेवाला समिति

बेरोजगारी के अनुमान

सुखमय चक्रवर्ती समिति

मौद्रिक प्रणाली पर पुनर्विचार

सरकारिया समिति

केन्द्र-राज्य सम्बन्ध्

वैद्यनाथन समिति

सिंचाई के पानी

नरसिम्हम समिति

वित्तीय (बैंकिंग) सुधर

जानकीरमन् समिति

प्रतिभूति घोटाला

रेखी समिति

अप्रत्यक्ष कर

डॉ.. मेहता समिति

आई.आर.डी.पी. की प्रगति पर पुनर्विचार

शंकरलाल गुरु समिति

कृषि विपणन

हजारी समिति (1967)

औद्योगिक नीति

तिवारी समिति (1984)

औद्योगिक रुग्णता

रंजराजन समिति (1991)

भुगतान संतुलन

गोइपोरिया समिति (1991)

बैंक में ग्राहक सेवा सुधर

गोस्वामी समिति (1993)

औद्योगिक रुग्णता

नन्जुन्दप्पा समिति (1993)

रेलवे किराए भाड़े

भण्डारी समिति (1994)

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्संरचना

स्वामीनाथन समिति (1994)

जनसंख्या नीति

के.आर. वेणुगोपाल समिति (1994)

 
 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् केन्द्रीय निर्गम मूल्य निर्धरण

एम.जी. जोशी समिति (1994)

 
 

दूरसंचार में निजी क्षेत्र के प्रवेश सम्बन्धी दिशा-निर्देश

ज्ञान प्रकाश समिति (1994)

चीनी घोटाला

बी.एन. युगांध्र समिति (1995)

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना

सुन्दर राजन समिति (1995)

(खनिज) तेल क्षेत्र में सुधर

डी.के. गुप्ता समिति (1995)

दूरसंचार विभाग की पुनर्संचना

राकेश मोहन समिति (1995)

आधरित संरचना वित्तीयन

मालेगाँव समिति (1995)

प्राथमिक पूंजी बाजार

सोधनी समिति (1995)

विदेशी  मुद्रा बाजार

के. एन. काबरा समिति

फ्रयूचर टेªडिंग

पिन्टो समिति (1997)

नौवहन उद्योग

चंद्रात्रो समिति (1997)

शेयर व प्रतिभूतियों की स्टॉक एक्सचेंजों में डीलिस्टिंगे

अजीत कुमार समिति (1997)

सेना के वेतनों की विसंगतियाँ

सी.बी. भावे समिति (1997)

कंपनियों द्वारा सूचनाएँ प्रस्तुत करना

यू.के. शर्मा समिति (1998)

नाबार्ड द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की देखरेख

धनुका समिति

प्रतिभूति बाजार से संबंध्ति नियम

दवे समिति (2000)

असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन की सिपफारिश

चक्रवर्ती कमेटी (1985)

मौद्रिक प(ति के कार्यों की समीक्षा

चक्रवर्ती समिति-2

बैंकिंग क्षेत्र सुधर

ओ.पी. सोध्नी विशेषज्ञ दल (1995)

विदेशी विनिमय बाजार का विकास

एस.एस तारापोर समिति (1997)

पूँजी खाते की परिवर्तनशीलता

कार्यक्षेत्र   

 

पार्थ सारथी शोम समिति

कर नीति

एन.के. सिंह समिति

कर नीति की समीक्षा

भूरेलाल समिति

मोटर वाहन करों में वृ(ि

एन.के. सिंह समिति

विद्युत क्षेत्र में सुधर

सुशील कुमार समिति

बीटी कपास की खेती की समीक्षा

केलकर समिति-2

प्रत्यक्ष तथा परोक्ष करारोपण

 

सम्बन्धी सिफारिश करना

राजिन्दर सच्चर समिति-1

कम्पनीज एण्ड MRPT एक्ट

 

संबंध् में सिफारिशें देने हेतु

रंगराजन समिति-3

निजी क्षेत्र में सुधर

केलकर समिति

पिछड़ी जातियों पर पहली समिति

मण्डल कमीशन

पिछड़ी जातियों के लिए सीटों का आरक्षण

कोठारी कमीशन

शैक्षिक सुधर

आबिद हुसैन समिति

छोटे पैमाने के उद्योगों के सुझाव हेतु

नरसिंहम समिति

बैंकिंग सुधर

तेंदुलकर समिति

निधर्नता रेखा के आकलन हेतु

पी.सी. अलेक्जेण्डर समिति (1978)

आयात-निर्यात नीतियों का उदारीकरण

आर.वी. गुप्ता समिति (दिसम्बर 1997)

कृषि साख

महाजन  समिति (मार्च 1997)

चीनी उद्योग

एस.एन. खान समिति (1998)

 
 

वित्तीय संस्थाओं तथा बैंकों की भूमिका में समन्वय

एन.एस. वर्मा समिति (1999)

वाणिज्यिक बैंकों की पुनर्संचना

तारापोर समिति (जुलाई 2001)

यू.टी.आई. के शेयर सौदों की जाँच

वाई.वी. रेड्डी समिति (अक्टूबर 2001)

आयकर छूटों की समीक्षा

सप्तट्टषि समिति (जुलाई 2002)

स्वदेशी चाय उद्योग के विकास हेतु

अभिजीत सेन समिति (जुलाई 2002)

दीर्घकालीन अनाज नीति

एन.आर. नारायण मूर्ति समिति (2002)

कार्पोरेट गवर्नेंस

माशेलकर समिति (जनवरी 2002)

ऑटो फ्रयूल नीति

माशेलकर समिति (अगस्त 2003 में रिपोर्ट)

नकली दवाओं का उत्पादन

वी.एस.व्यास समिति (दिसम्बर 2003)

कृषि एवं ग्रामीण साख विस्तार

विजय केलकर समिति-3

पिफस्कल रेस्पोन्सिबिलिटी एण्ड बजट मैनजमेन्ट

(मार्च 2004)

एक्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था की त्रौमासिक समीक्षा

लाहिड़ी समिति (2005)

खाद्य तेलों के मूल्यों पर प्रशुल्क संरचना

सच्चर समिति-2 (2005)

मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक व

 

शैक्षाणिक स्थिति का अध्ययन

नायर कार्यदल (2006)

पेट्रोलियन क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित

 

करने के लिए नीतिगत सुझाव देने हेतु

रंगराजन समिति-2 (2006)

पेट्रोलियम उत्पादों पर प्रशुल्क संरचना के

मालेगाँव समिति (2006)

लेखा मानकों पर सुझाव हेतु

शुंगलू समिति (2006)

सरदार सरोवर बाँध् परियोजना के विस्थापियों 

 

के पुनर्वास की स्थिति की समीक्षा हेतु

पाठक आयोग (2006)

न्छव् के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम की जाँच हेतु

सी रंगराजन समिति (31 दिसम्बर, 2007 को गठित)

वचत एवं निवेश

 

के आंकड़ों की समीक्षा

अभिजीत सेन समिति (मार्च 2007 में गठित)

कृषिगत उत्पादों के थोक

 

एवं खुदरा मूल्यों पर फ्रयूचर टेªडिग की समीक्षा

मिस्त्राी समिति (2007)

वित्तीय गतिविध्यिों के सुधर हेतु सुझाव

दीपक पारिख समिति (2007)

 
 

आधरित संरचना के वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु

तेन्दुलकर समिति (2008)

गरीबी रेखा के नीचे की लाइन की समीक्षा हेतु

बी.के. चतुर्वेदी समिति (2008)

 
 

तेल कंपनियों की वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु

सुब्बाराय समिति (जुलाई 2009)

मौद्रिक नीति पर तकनीकी सलाह हेतु

डॉ.. कीर्ति एस. पारीक समिति (अगस्त 2009)

 
 

पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्य प्रणाली पर सुझाव देने हेतु

राकेश मोहन समिति (मार्च 2009)

कमेटी ऑन पफाइनेंशियल सेक्टर एसेसमेंट

डॉ.. सी.रंगराजन समिति (अप्रैल 2010)

 
 

सार्वजनिक व्यय के बेहतर प्रबंधन के लिए

एम.सी. जोशी समिति (मई 2011)

 
 

काले धन से संबंध्ति विभिन्न पहलुओं की समीक्षा

दत्त समिति

औद्योगिक लाइसेंसिंग

महालनोबिस समिति

राष्ट्रीय आय

राजा चेलैया समिति

कर-सुधर

चेलैया समिति

काला धन की समाप्ति

भानुप्रताप सिंह समिति

कृषि

जी.वी. रामकृष्णा समिति

सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के शेयर का विनिवेश

नरेशचन्द समिति

कॉर्पोरेट गवर्नेंस

बलवन्त राय मेहता समिति

विकेन्द्रीकरण के लिए सुझाव

ज्योति बसु समिति

आक्ट्राई समाप्ति पर रिपोर्ट

खुसरो समिति

कृषि साख

राज समिति

कृषि जोतकर

भगवती समिति

बेरोजगारी

वांचू समिति

प्रत्यक्ष कर

एल.के. झा समिति

अप्रत्यक्ष कर

वाघुल समिति

म्युचुअल पफण्ड स्कीम

नादकर्णी समिति

सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिभूतियाँ

मल्होत्र समिति

बीमा क्षेत्र में सुधर

सेन गुप्ता समिति

शिक्षित बेरोजगारी

डॉ.. विजय केलकर समिति

प्राकृतिक गैस मूल्य

भूतलिंगम समिति

मजदूरी, आय तथा कीमतें

दंतेवाला समिति

बेरोजगारी के अनुमान

सुखमय चक्रवर्ती समिति

मौद्रिक प्रणाली पर पुनर्विचार

सरकारिया समिति

केन्द्र-राज्य सम्बन्ध्

वैद्यनाथन समिति

सिंचाई के पानी

नरसिम्हम समिति

वित्तीय (बैंकिंग) सुधर

जानकीरमन् समिति

प्रतिभूति घोटाला

रेखी समिति

अप्रत्यक्ष कर

डॉ.. मेहता समिति

आई.आर.डी.पी. की प्रगति पर पुनर्विचार

शंकरलाल गुरु समिति

कृषि विपणन

हजारी समिति (1967)

औद्योगिक नीति

तिवारी समिति (1984)

औद्योगिक रुग्णता

रंजराजन समिति (1991)

भुगतान संतुलन

गोइपोरिया समिति (1991)

बैंक में ग्राहक सेवा सुधर

गोस्वामी समिति (1993)

औद्योगिक रुग्णता

नन्जुन्दप्पा समिति (1993)

रेलवे किराए भाड़े

भण्डारी समिति (1994)

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्संरचना

स्वामीनाथन समिति (1994)

जनसंख्या नीति

के.आर. वेणुगोपाल समिति (1994)

 
 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् केन्द्रीय निर्गम मूल्य निर्धरण

एम.जी. जोशी समिति (1994)

 
 

दूरसंचार में निजी क्षेत्र के प्रवेश सम्बन्धी दिशा-निर्देश

ज्ञान प्रकाश समिति (1994)

चीनी घोटाला

बी.एन. युगांध्र समिति (1995)

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना

सुन्दर राजन समिति (1995)

(खनिज) तेल क्षेत्र में सुधर

डी.के. गुप्ता समिति (1995)

दूरसंचार विभाग की पुनर्संचना

राकेश मोहन समिति (1995)

आधरित संरचना वित्तीयन

मालेगाँव समिति (1995)

प्राथमिक पूंजी बाजार

सोधनी समिति (1995)

विदेशी  मुद्रा बाजार

के. एन. काबरा समिति

फ्रयूचर टेªडिंग

पिन्टो समिति (1997)

नौवहन उद्योग

चंद्रात्रो समिति (1997)

शेयर व प्रतिभूतियों की स्टॉक एक्सचेंजों में डीलिस्टिंगे

अजीत कुमार समिति (1997)

सेना के वेतनों की विसंगतियाँ

सी.बी. भावे समिति (1997)

कंपनियों द्वारा सूचनाएँ प्रस्तुत करना

यू.के. शर्मा समिति (1998)

नाबार्ड द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की देखरेख

धनुका समिति

प्रतिभूति बाजार से संबंध्ति नियम

दवे समिति (2000)

असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन की सिपफारिश

चक्रवर्ती कमेटी (1985)

मौद्रिक प(ति के कार्यों की समीक्षा

चक्रवर्ती समिति-2

बैंकिंग क्षेत्र सुधर

ओ.पी. सोध्नी विशेषज्ञ दल (1995)

विदेशी विनिमय बाजार का विकास

एस.एस तारापोर समिति (1997)

पूँजी खाते की परिवर्तनशीलता

कार्यक्षेत्र   

 

पार्थ सारथी शोम समिति

कर नीति

एन.के. सिंह समिति

कर नीति की समीक्षा

भूरेलाल समिति

मोटर वाहन करों में वृद्धि

एन.के. सिंह समिति

विद्युत क्षेत्र में सुधर

सुशील कुमार समिति

बीटी कपास की खेती की समीक्षा

केलकर समिति-2

प्रत्यक्ष तथा परोक्ष करारोपण

 

सम्बन्धी सिपफारिश करना

राजिन्दर सच्चर समिति-1

कम्पनीज एण्ड डत्च्ज् एक्ट

 

संबंध् में सिपफारिशें देने हेतु

रंगराजन समिति-3

निजी क्षेत्र में सुधर

केलकर समिति

पिछड़ी जातियों पर पहली समिति

मण्डल कमीशन

पिछड़ी जातियों के लिए सीटों का आरक्षण

कोठारी कमीशन

शैक्षिक सुधर

आबिद हुसैन समिति

छोटे पैमाने के उद्योगों के सुझाव हेतु

नरसिंहम समिति

बैंकिंग सुधर

तेंदुलकर समिति

निधर्नता रेखा के आकलन हेतु

पी.सी. अलेक्जेण्डर समिति (1978)

आयात-निर्यात नीतियों का उदारीकरण

आर.वी. गुप्ता समिति (दिसम्बर 1997)

कृषि साख

महाजन  समिति (मार्च 1997)

चीनी उद्योग

एस.एन. खान समिति (1998)

 
 

वित्तीय संस्थाओं तथा बैंकों की भूमिका में समन्वय

एन.एस. वर्मा समिति (1999)

वाणिज्यिक बैंकों की पुनर्संचना

तारापोर समिति (जुलाई 2001)

यू.टी.आई. के शेयर सौदों की जाँच

वाई.वी. रेड्डी समिति (अक्टूबर 2001)

आयकर छूटों की समीक्षा

सप्तट्टषि समिति (जुलाई 2002)

स्वदेशी चाय उद्योग के विकास हेतु

अभिजीत सेन समिति (जुलाई 2002)

दीर्घकालीन अनाज नीति

एन.आर. नारायण मूर्ति समिति (2002)

कार्पोरेट गवर्नेंस

माशेलकर समिति (जनवरी 2002)

ऑटो फ्रयूल नीति

माशेलकर समिति (अगस्त 2003 में रिपोर्ट)

नकली दवाओं का उत्पादन

वी.एस.व्यास समिति (दिसम्बर 2003)

कृषि एवं ग्रामीण साख विस्तार

विजय केलकर समिति-3

पिफस्कल रेस्पोन्सिबिलिटी एण्ड बजट मैनजमेन्ट

(मार्च 2004)

एक्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था की त्रौमासिक समीक्षा

लाहिड़ी समिति (2005)

खाद्य तेलों के मूल्यों पर प्रशुल्क संरचना

सच्चर समिति-2 (2005)

मुस्लिमों की सामाजिक, आर्थिक व

 

शैक्षाणिक स्थिति का अध्ययन

नायर कार्यदल (2006)

पेट्रोलियन क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित

 

करने के लिए नीतिगत सुझाव देने हेतु

रंगराजन समिति-2 (2006)

पेट्रोलियम उत्पादों पर प्रशुल्क संरचना के

मालेगाँव समिति (2006)

लेखा मानकों पर सुझाव हेतु

शुंगलू समिति (2006)

सरदार सरोवर बाँध् परियोजना के विस्थापियों 

 

के पुनर्वास की स्थिति की समीक्षा हेतु

पाठक आयोग (2006)

न्छव् के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम की जाँच हेतु

सी रंगराजन समिति (31 दिसम्बर, 2007 को गठित)

वचत एवं निवेश

 

के आंकड़ों की समीक्षा

अभिजीत सेन समिति (मार्च 2007 में गठित)

कृषिगत उत्पादों के थोक

 

एवं खुदरा मूल्यों पर फ्रयूचर टेªडिग की समीक्षा

मिस्त्री समिति (2007)

वित्तीय गतिविध्यिों के सुधर हेतु सुझाव

दीपक पारिख समिति (2007)

 
 

आधरित संरचना के वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु

तेन्दुलकर समिति (2008)

गरीबी रेखा के नीचे की लाइन की समीक्षा हेतु

बी.के. चतुर्वेदी समिति (2008)

 
 

तेल कंपनियों की वित्तीय मामले में सुझाव देने हेतु

सुब्बाराय समिति (जुलाई 2009)

मौद्रिक नीति पर तकनीकी सलाह हेतु

डॉ.. कीर्ति एस. पारीक समिति (अगस्त 2009)

 
 

पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्य प्रणाली पर सुझाव देने हेतु

राकेश मोहन समिति (मार्च 2009)

कमेटी ऑन फाइनेंशियल सेक्टर एसेसमेंट

डॉ.. सी.रंगराजन समिति (अप्रैल 2010)

 
 

सार्वजनिक व्यय के बेहतर प्रबंधन के लिए

एम.सी. जोशी समिति (मई 2011)

 
 

काले धन से संबंध्ति विभिन्न पहलुओं की समीक्षा

 

  • नयी उर्वरक इकाइयों के मूल्य योजना को समय 15 साल निर्धारित किया जाना चाहिए। 
  • देश में गैस की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए समिति ने सुझाव दिया है कि घरेलू कंपनियों को उन देशों में संयुक्त उद्यम के रूप में उर्वरक संयंत्रस्थापित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए जहां गैस की प्रचुरता हो। 
  • उर्वरकों के उपयोग में संतुलन की स्थिति कायम रखने के लिए समिति ने यूरिया व विनियंत्रित उर्वरकों के बीच कीमत का अंतर करने की सिफारिश की है। 
  • उर्वरकों की नयी कीमतों को निर्धारित करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि ये कीमतें किसानों की पहुंच में बनी रहें। 

धानुका समिति 

  • मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति डी.आर. धानुका की अध्यक्षता में इस समिति का गठन 28 फरवरी, 1997 को किया गया था। 
  • धानुका समिति ने प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1956 और सेबी अधिनियम, 1992 को मिलाकर एक प्रतिभूति कानून बनाने की सिफारिश की है। 
  • समिति का गठन प्रतिभूतियों से जुड़े कानूनों की खामियों को पहचानने और उसे सुधारने के लिए समुचित सुझाव देने के उद्देश्य से हुआ था। 
  • समिति ने भारतीय यूनिट ट्रस्ट (यूटीआई) को पूरी तरह सेबी (म्यूचुअल फंड) अधिनियम के दायरे में शामिल करने का सुझाव दिया है। 
  • प्रतिभूति बाजार के नियमन की पूरी जिम्मेदारी सेबी को सौंपे जाने की सलाह दी है। 
  • जावबदेही के तहत कंपनी अधिनियम के कुछ प्रावधानों के अनुरूप नियमन की भी बात कही गयी है।
  • इस संबंध में कहा गया है कि यूटीआई अधिनियम, 1963 के प्रावधानों को नजरअंदाज करते हुए इसका नियमन पूरी तरह से एक म्यूचुअल फंड के रूप में किया जाना चाहिए। 
  • इसी प्रकार डिपाॅजिटरी अधिनियम, 1996 के संबंध में समिति ने डिमैटीरियलाइज्ड प्रतिभूतियों से जुड़े विवादों को उपभोक्ता मंचों के अधिकार क्षेत्र से अलग करने का सुझाव दिया है। 
  • ऐसी प्रतिभूतियों को जारी अथवा हस्तांतरित करने की प्रक्रिया पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगाने की बात कही गयी है। 
  • इसके अतिरिक्त 10 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य वाले नये इश्युओं के लिए डिमैटीरियलाइजेशन अनिवार्य करने का सुझाव दिया गया है। 
  • समिति का मानना है कि इन प्रावधानों के जरिये प्रतिभूति बाजार से जुड़े कई मुद्दों के नियमन के लिए वैधानिक आधार तैयार किया जाना संभव हो सकेगा। 
  • समिति का कहना है कि प्रस्तावित कानून के तहत नियम तय करने का अधिकार सेबी के पास होना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूचीबद्ध कंपनियों से जुड़े अब तक के तमाम प्रावधानों को अमल में लाने की जिम्मेदारी सेबी को सौंपी जानी चाहिए। 
  • समिति मात्रबाजार इंटरमीडियरियों के लिए निर्देश जारी करने संबंधी सेबी की भूमिका से संतुष्ट नहीं है। बल्कि वह चाहती है कि सेबी आम निवेशकों से सीधे तौर पर जुड़ी हो और उनके लिए वह समुचित निर्देश भी जारी करे। 
  • समिति ने बाजार विशेषज्ञता का दुरुपयोग करने वाले प्रोफेशनलों से निबटने के लिए सेबी को समुचित अधिकार प्रदान करने का सुझाव दिया है। 
  •  इस संबंध में रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि वकील व चाटर्ड एकाउंटेंट जैसे बाजार विशेषज्ञ अपनी विद्या का गलत इस्तेमाल करते पकड़े जाते हैं तो प्रतिभूति बाजार में उन पर रोक लगायी जानी चाहिए।
  • रिपोर्ट में एक्सचेंजों के नियमन के लिए भी कुछ नये प्रावधान शामिल किये गये हैं। इसके मुताबिक यदि किसी स्टाॅक एक्सचेंज के संचालन समिति को बर्खास्त किया जाता है तो कुछ पुराने सदस्य, नये बोर्ड के गठन होने तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। 
  • समिति ने एक्सचेेंजों की मान्यता के संबंध में ‘क्षेत्रके अंतर्गत’ की अवधारणा को समाप्त करने को कहा है। 
  • लेकिन अतिरिक्त ‘ट्रेंडिंग फ्लोर’ के लिए ऐसी से अनुमति प्राप्त करने की अनिवार्यता पूर्ववत जारी जारी रखने की सिफारिश की है। 
  • समिति ने कंपनी विधेयक के मसौदे में भी कुछ संशोधन के सुझाव दिये हैं। इसके तहत क्षेत्राीय स्टाॅक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कराने की अनिवार्यता को समाप्त करने, सूचीबद्धता के लिए समय सीमा 10 सप्ताह से घटाकर 30 दिन करने और प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम में ‘डेरिवेटिव’ व ‘आॅप्शन इन सिक्यूरिटीज’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना मुख्य है। 
  • समिति ‘बाईबैक’ के प्रावधानों में भी संशोधन के पक्ष में है। इसके अनुसार बाईबैक, सिर्फ ‘शेयरों’ के लिए लागू होनी चाहिए तथा पूर्व में जारी इश्युओं से जुटाये पैसे का उपयोग बाईबैक के लिए करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

कपूर समिति

  • उद्योग मंत्रालय में पूर्व सचिव एस. एल. कपूर की अध्यक्षता में इस एक सदस्यीय समिति का गठन रिजर्व बैंक द्वारा दिसम्बर 1997 में किया गया था। 
  • लघु उद्योग क्षेत्रको साख की बेहतर उपलब्धि के लिए समिति ने  126 विभिन्न सिफारिशें की हैं जिनमें लघु उद्योगों के लिए कोलेटरल रिजर्व फंड तथा लघु उद्योग आधारिक संरचना विकास कोष की स्थापना करना तथा सिडबी (SIDBI) की भूमिका में व्यापक वृद्धि करना शामिल हैं। 
  • समिति की कुछेक महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैं -
  1. भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक(SIDBI) की स्थिति में सुधार करके लघु उद्योगों के वित्तीयन के लिए उस नाबार्ड के समतुल्य एक नोडल एजेंसी की भूमिका प्रदान की जाए।
  2. जीवन बीमा निगम (LIC)  साधारण बीमा निगम (GIC) तथा पेंशन फंड अपने संसाधनों का एक भाग सिडबी को ऋण के रूप में उपलब्ध कराएं तथा सिडबी को अपने ऋणों का 40 प्रतिशत भाग लघुतर इकाइयों को उपलब्ध कराना चाहिए। 
  3. ब्याज दर के मामले में लघु उद्योगों के साथ विशेष रियायत की जानी चाहिए। इन्हें सामान्य तौर पर प्राइम लैंडिंग रेट पर ऋण उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  4. बैंकों को प्राथमिकता क्षेत्रवाले ऋणों के लिए निर्धारित राशि का निवेश नाबार्ड, सिडबी, हुडको व राष्ट्रीय आवास बैंक आदि के बाॅण्डों में करने की अनुमति प्रदान नहीं की जानी चाहिए।
  5. लघु उद्योगों के लिए 2 लाख रुपए के ऋणों को ‘कोलेटरल सिक्यूरिटी’ की आवश्यकता से मुक्त किया जाए।
  6. नयी पीढ़ी के जो उद्यमी 10 लाख रुपए तक की परियोजनाओं के लिए बैंक ऋणों के लिए ‘कोलेटरल सिक्यूरिटी’ जुटाने में असमर्थ हैं। 
  7. उनकी सहायता के लिए 100 करोड़ रुपए की प्रारम्भिक राशि से एक ‘कोलेटरल रिजर्व फंड’ स्थापित किया जाए। इस राशि में केंद्र सरकार के अतिरिक्त सिडबी, नाबार्ड, राज्य सरकारों व बैंकों का योगदान हो।
  8.  नाबार्ड के ‘ग्रामीण आधारिक संरचना विकास कोष’ के तहत न आने वाले क्षेत्रों में औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करने को समिति ने एक ‘लघु उद्योग आधारिक संरचना विकास कोष’ की स्थापना का सुझाव दिया है।
  9. रुग्ण लघु इकाई की परिभाषा में परिवर्तन किया जाए तथा पुनर्जीवन योग्य इकाइयों के पुनर्जीवन को बैंकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाए।
  10. लघु उद्योगों के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋणों का एक निश्चित भाग महिला उद्यमियों द्वारा प्रवर्तित इकाइयों को उपलब्ध करया जाए। 
  11. साख गारंटी की मौजूदा प्रणाली को समाप्त करके एक पृथक साख गारंटी निगम की स्थापना की जाए।
  12. लघु उद्योगों के लिए विशिष्ट बैंक शाखाओं की संख्या में एक हजार की वृद्धि की जाए।

 

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FAQs on समितियाँ तथा आयोग - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. समितियाँ तथा आयोग क्या होते हैं?
Ans. समितियाँ तथा आयोग सरकारी संगठन होते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में नीति निर्धारण, नियंत्रण और समाधान के लिए गठित किए जाते हैं। ये संगठन सार्वजनिक या निजी हो सकते हैं और सरकार द्वारा इन्हें अधिकार और शक्ति दी जाती है। उदाहरण के रूप में, भारत में यूपीएससी (UPSC) एक प्रमुख संगठन है जो सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है।
2. सिविल सेवा परीक्षा क्या है और इसका महत्व क्या है?
Ans. सिविल सेवा परीक्षा भारतीय सरकार के विभिन्न आयोगों और विभागों में नौकरियों के लिए एक राष्ट्रीय स्तरीय परीक्षा है। इस परीक्षा के माध्यम से उम्मीदवारों को विभिन्न पदों पर चयन का मौका मिलता है, जैसे कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), भारतीय विदेश सेवा (IFS) आदि। यह परीक्षा देश के नेतृत्वीय पदों पर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर योग्यता और नौकरी के अवसर की गारंटी प्रदान करती है।
3. UPSC क्या है और इसका क्या कार्य है?
Ans. यूपीएससी (UPSC) भारत सरकार द्वारा संचालित एक संघीय आयोग है जो सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करता है। इसका मुख्य कार्य संघीय सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षा के आयोजन, परीक्षा पाठ्यक्रम तथा नियमों का निर्धारण करना है। यूपीएससी उम्मीदवारों को चयनित अधिकारियों के रूप में विभिन्न सरकारी विभागों, आयोगों और संगठनों में भर्ती के लिए भी जिम्मेदार है।
4. समिति क्या होती है और इसका क्या महत्व है?
Ans. समिति एक संगठन होता है जो विशेष मुद्दों पर विचार करता है, जांच करता है और नीतियों और सार्वजनिक निर्धारणों की सिफारिश करता है। समितियों का महत्व इसलिए होता है क्योंकि वे सरकार के लिए महत्वपूर्ण सलाह और नीति सुझाव प्रदान करते हैं। इन समितियों के सदस्यों का चयन विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर किया जाता है।
5. भारत में कौन-कौन सी प्रमुख समितियाँ और आयोग हैं?
Ans. भारत में कई प्रमुख समितियाँ और आयोग हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हैं। यहां कुछ प्रमुख समितियों और आयोगों के उदाहरण हैं: - यूपीएससी (संघीय लोक सेवा आयोग) - रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (भारतीय मुद्रा नियंत्रण आयोग) - आयोग आयोग (लोकपाल और लोकायुक्त आयोग) - नीति आयोग (नीति निर्माण आयोग) - उच्च न्यायालय (भारतीय न्यायपालिका) - भारतीय राष्ट्रीय संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) आदि।
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