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अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

विश्व बैंक

  • अमेरिका के बे्रटनवुड्स शहर के माउन्ट वाशिंगटन होटल में 1 जुलाई से 22 जुलाई, 1944 को 44 राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ। 
  • अन्तिम मसौदे पर 22 जुलाई को हस्ताक्षर हुए और 27 दिसम्बर, 1945 को आई.बी.आर.डी. नामक संस्था अस्तित्व में आई, जो विश्व बैंक के नाम से विख्यात है। भारत भी इस संस्था का एक संस्थापक सदस्य है। 
  • 1944.45 में भारत स्वतंत्र नहीं था, किन्तु ब्रिटिश साम्राज्य की अनुमति से भारत सरकार के तत्कालीन वित्त सचिव सर जेरेमी रेसमैन के नेतृत्व में भारतीय शिष्टमंडल ने इस सम्मेलन में भाग लिया। 
  • सर थियोडोर ग्रिगोरी तथा सर सी.डी.देशमुख इस शिष्टम.डल के अन्य सदस्य थे। सर सनमुखम चेट्टी तथा ए.डी. स्त्रौफ गैर-आधिकारिक सदस्य थे। 
  • आई.बी.आर.डी. का प्रारंभिक उद्देश्य युद्ध-पीड़ित देशों को पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु सहायता प्रदान करना था।
  • बाद में यह विचार किया गया कि इस संस्था को विकासशील देशों को सहायता पहंुचाने का उत्तरदायित्व सौंप दिया जाए और युद्ध पीड़ित देशों के पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु अलग योजना बनायी जाये। 
  • अमेरिका के तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज सी. मार्शल ने इस योजना की रूपरेखा तैयार की जो ‘मार्शल प्लान’ के नाम से मशहूर हुई। 
  • विश्व बैंक समूह का मुख्यालय अमेरिका के वाशिंगटन डी.सी. में स्थित है। 
  • इसका एक कार्यालय भारत की राजधानी में भी काम कर रहा है। 
  • सर्वस्वीकृत परम्परा के अनुसार अमेरिका का कोई प्रतिनिधि ही विश्व बैंक के अध्यक्ष पद पर आसीन हो सकता है। 
  • अध्यक्ष के अतिरिक्त विभिन्न विभागों के प्रधान के रूप में 17 उपाध्यक्ष, 5 प्रबंधक निदेशक, 4 विभागाध्यक्ष तथा एक महानिदेशक होते हैं।
  • बोर्ड आॅफ गवर्नर विश्व बैंक का सर्वोच्च प्रशासक मंडल होता है, जिसमें प्रत्येक सदस्य देश द्वारा गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर मनोनीत किया जाता है। 
  • अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी तथा जापान को विशेष दर्जा प्राप्त है और इनमें से प्रत्येक द्वारा निदेशक और एक वैकल्पिक निदेशक की नियुक्ति की जाती है। 
  • चीन को भी अकेले एक कार्यकारी निदेशक और एक वैकल्पिक निदेशक मनोनीत करने का अधिकार है। 
  • शेष 22 कार्यकारी निदेशक और वैकल्पिक निदेशक सदस्य देशों के विभिन्न समूहों द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं।
  • विश्व बैंक का प्रधान उद्देश्य विकासशील देशों को विकास की विभिन्न परियोजनाओं हेतु वित्तीय सहायता, तकनीकी सेवा और परामर्श प्रदान करना है।
  • कृषि, शिक्षा, बिजली एवं ऊर्जा, पर्यावरण, वित्त, उद्योग, खनन, तेल एवं गैस, जनसंख्या, स्वास्थ्य, सामाजिक क्षेत्र, परिवहन एवं दूरसंचार, शहरी विकास तथा जलापूर्ति एवं सफाई के लिए विश्व बैंक द्वारा आयोजित विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 
  • विश्व बैंक सदस्य-देशों से प्राप्त अंशदान के अतिरिक्त यूरोप, जापान और अमेरिका के पूंजी बाजार से मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण लेकर वित्त का प्रबन्ध करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ(IDA)

  • आई.डी.ए. विश्व बैंक का ही एक अंग है। 
  • यद्यपि खुले बाजार के ऋणों की तुलना में विश्व बैंक के ऋण अधिक आसान शर्तों पर उपलब्ध होते हैं, फिर भी यह अनुभव किया गया है कि कुछ अत्यल्प विकसित देश विश्व बैंक के आसान ऋणों का भार भी वहन करने में समर्थ नहीं हैं और उन्हें लम्बी अवधि के लिए ब्याज मुक्त सहायता की आवश्यकता है। 
  • ऐसे ही निर्बल देशों के सहायतार्थ 1960 ई. में विश्व बैंक द्वारा आई.डी.ए. की स्थापना की गयी। 
  • पहले यह संस्था 50 वर्षों के लिए निर्धनतम देशों को ब्याज रहित सहायता देती थी और सहायता राशि को वापसी के लिए अनुग्रहस्वरूप 10 वर्षों का अतिरिक्त समय भी दिया जाता था। 
  • अब वापसी की मियाद घटाकर 35 से 40 वर्ष के बीच कर दी गयी है। 
  • अपेक्षाकृत अधिक विकसित ऋणी देशों के लिए 40 वर्ष की मियाद निर्धारित की गयी है। 
  • लाभभोगी सदस्य देशों को केवल 0.50 प्रतिशत की दर से अविमुक्त राशि पर सेवा-शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। अन्य शर्तें अभी भी पूर्ववत हैं।
  • आई.डी.ए. के दो पार्ट हैं।
  • विकासशील देश पार्ट-2 श्रेणी के हैं। पार्ट-1 श्रेणी के देशों में आस्ट्रेलिया, आॅस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, इटली, जापान, कुवैत, लग्जेमबर्ग, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नार्वे, पुर्तगाल, रूस, द. अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, स्वीट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ग्रेट ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। 
  • पार्ट-1 के सदस्य देश आई.डी.ए. कोष में अशंदान करते हैं। किन्तु कोई सहायता प्राप्त नहीं करते हैं। 
  • इसके विपरीत पार्ट-2 के सदस्य देश अंशदान भी करते हैं और सहायता भी लेते हैं।
  • पार्ट-2 के सदस्य देशों को सहायता प्रदान करने के लिए आई.डी.ए. को पार्ट-1के सदस्य देशों में दानस्वरूप कोष संभरण ;प्क्। त्मचसमदपेीउमदजद्ध की राशि प्राप्त होती है। 
  • इन देशों के प्रतिनिधि एक बार में 3 वर्षों के लिए केाष संभरण की राशि का निर्धारण करते हैं। लेकिन इनके द्वारा समय पर अपना वचन पूरा नहीं करने के कारण विकासशील देशों की प्रगति बाधित होती है। 
  • इसके अतिरिक्त आई.बी.आर.डी. के लाभ का कुछ भाग भी आई.डी.ए. को उपलब्ध कराया जाता है। आई.डी.ए. ऋण लेकर कोष का संभरण नहीं करता है।
  • पुनर्वापसी की रकम भी आई.डी.ए. के कोष का एक स्रोत है। पार्ट-2 के सदस्य देशों को दो भागों में विभक्त किया गया है। 
  • प्रथम श्रेणी में उन देशों को रखा गया है जोे केवल आई.डी.ए. से सहायता पाने योग्य हैं। इन देशों की कुल सहायता राशि को 58 प्रतिशत उपलब्ध कराया जाता है। 
  • द्वितीय श्रेणी में वे देश सम्मिलित हैं जो आई.डी.ए.  और आई.बी.आर.डी. दोनों संस्थाओं से लाभ उठाते हैं। इनके बीच कुल सहायता राशि का 42 प्रतिशत वितरित किया जाता है। 
  • आई.डी.ए. से लाभ प्राप्त करने वाले देशों में भारत को प्रथम स्थान प्राप्त है। 
  • आई.डी.ए. का कोई पृथक प्रशासन तंत्र नहीं है। आई.बी.आर.डी. के प्रशासन तंत्र द्वारा ही इसका प्रबंधन और संचालन होता है। लेकिन कार्यकारी निदेशक मंडल में विभिन्न देशों और समूहों को आई.डी.ए. के मामले में आई.बी.आर.डी. से भिन्न मताधिकार प्राप्त है।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय निगम

  • यह निगम विश्व बैंक समूह की ही एक संस्था है। यद्यपि कानूनी और वित्तीय दृष्टि से यह विश्व बैंक से अलग हैं और इसके कानूनी एवं कार्यकारी स्टाफ भी अलग हैं, फिर भी प्रशासनिक एवं अन्य सेवाओं के लिए यह विश्व बैंक पर निर्भर है। 
  • इसका प्रमुख कार्य सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना तथा इस उद्देश्य की प्रर्ति के लिए देशी तथा विदेशी पूंजी जुटाने में निजी कंपनियों की मदद करना है। 
  • विदेशी पूंजी बाजार से ऋण लेने में तथा विदेशी बाजार में अंशों एवं प्रतिभूतियों को बेचने में आई.एफ.सी. सदस्य देशों की निजी कंपनियों की मदद करता है। 
  • निजी क्षेत्र की विभिन्न परियोजनाओं के लिए यह ऋण एवं निवेश के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  • अपने वित्त के लिए आई.एफ.सी. सरकारी गांरटी की मांग नहीं करता है। 
  • लेकिन एक निजी वित्तीय संस्था की भांति बाजार की प्रवृत्तियों और अपनी लागत को ध्यान में रखकर सदस्य देशों से अपने वित्त की कीमत वसूल करता है।
  • समय के साथ-साथ आई.एफ.सी. अपनी गतिविधियों को विस्तारित करने तथा उनमें विविधता लाने का प्रयास कर रहा है। 
  • पूंजी बाजार के विकास, निजी क्षेत्र के विस्तार, निजीकरण, निवेश के नवीन अवसरों की खोज, पट्टा व्यवसाय तथा संसाधन जुटाने के लिए आई.एफ.सी वित्त, परामर्श और तकनीकी सेवा प्रदान करता है। 
  • यह निजी वित्तीय संस्थाओं के साथ मिलकर भी वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है। 
  • आई.एफ.सी पूंजी बाजार, ऊर्जा एवं शक्ति, दूर संचार, कृषि आधारित व्यवसाय, पर्यटन, निर्माणी व्यवसाय, तेल, पेट्रोलियम एवं गैस तथा खनन क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रिय है।

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना एक साथ 27 दिसम्बर, 1945 को हुई थी। 
  • नवम्बर, 1947 के एक करार द्वारा यह संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ गया।
  • अमेरिका के हेनरी डेक्सटर व्हाइट और ब्रिटेन के जाॅन मेनार्ड कीन्स द्वारा इन संस्थाओं की स्थापना हेतु जो प्रारूप प्रस्तावित किये गये उनमें से हेनरी डेक्सटर व्हाइट के प्रस्ताव को ही ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में स्वीकार किया गया। 
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. में ही स्थित है, किन्तु इसका प्रशासन तंत्र विश्व बैंक से पृथक है। 
  • प्रबंध निदेशक इस संस्था के शीर्ष पदाधिकारी होते हैं अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि विश्व बैंक के अध्यक्ष पद को अमेरिका का कोई प्रतिनिधि और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निदेशक पद को पश्चिमी यूरोप का कोई प्रतिनिधि सुशोभित करेगा।
  • इस संस्था का मुख्य उद्देश्य विनिमय-दरों में स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तरलता बनाये रखना है। 
  • यदि किसी सदस्य देश के समक्ष भुगतान संतुलन का संकट उपस्थित हो जाता है और विदेशी मुद्रा के अभाव में उसका विदेशी व्यापार बाधित होने लगता है तो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उसे अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराता है, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के स्वतंत्र प्रवाह में गतिरोध उत्पन्न नहीं हो। 
  • अल्प-विकसित सदस्य देशों को मुद्रा-कोष द्वारा रियायती ऋण उपलब्ध कराये जाते हैं। मुद्रा-कोष की अपनी अलग मुद्रा है, जिसे एस.डी.आर. कहते हैं।   एस.डी.आर. सर्वमान्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा है, जिसे सभी देश आपसी लेनदेन में बेहिचक स्वीकार करते हैं। 
  • मुद्रा-कोष पूंजी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक देश का कोटा निर्धारित करता है और कोटे के अनुपात में ही सदस्य देशों को ऋण प्रदान किया जाता है। 
  • विकसित देश मुद्रा कोष से ऋण नहीं लेते हैं। कोटे के अनुपात में ही मुद्रा कोष पर विभिन्न सदस्य देशों का नियंत्रण रहता है। 
  • भारत भी कार्यकारी निदेशक मंडल का एक सदस्य है, क्योंकि बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका के साथ उसे 2.58 प्रतिशत का संयुक्त मताधिकार प्राप्त है।
  • मुद्रा कोष के ऋणों के साथ कठोर शर्तें जुड़ी रहती हैं, यथा -  वित्तीय घाटे को निश्चित सीमा में रखना, गैर-योजना मदों  के व्ययों में कटौती, संरचनात्मक एवं संस्थागत सुधार, सीमा-शुल्क में कटौती, संरक्षणवाद से परहेज, उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा अन्य आर्थिक सुधार।

एशियाई विकास बैंक

  • एशिया विश्व का सबसे बड़ा महादेश है। इस क्षेत्र के आर्थिक विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर एक बैंक की स्थापना की आवश्यकता महसूस की गयी। 
  •  इस उद्देश्य के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग द्वारा सितम्बर 1963 में एक विशेष समिति गठित की गयी, जिसने क्षेत्रीय बैंक की स्थापना के सम्बंध में अपना सुझाव प्रस्तुत किया। 
  • प्रस्तावित बैंक की रूपरेखा को अमली जामा पहनाने के लिए आयोग ने अक्टूबर 1964 में एक अध्ययन दल बनाया। 
  • अप्रैल 1965 में बैंक की स्थापना का निर्णय लिया गया। 
  • तदनुसार 26 नवम्बर, 1966 को बैंक की स्थापना हो गई और उसी वर्ष 19 दिसम्बर से बैंक ने अपना काम-काज प्रारंभ कर दिया। 
  • इसका प्रधान कार्यालय फिलीपींस की राजधानी मनीला में स्थित है।
  • इसके अतिरिक्त भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया, नेपाल और वनुआतू में इसके आवासीय कार्यालय क्रियाशील हैं। 
  • भारत की राजधानी नई दिल्ली में ए.डी.बी. के आवासीय कार्यालय की स्थापना दिसम्बर 1993 में की गयी।
  • ए.डी.बी. का प्रशासनिक ढांचा लगभग विश्व बैंक जैसा ही है। बोर्ड आॅफ गवर्नर्स बैंक का उच्च अधिकारी होता है। 
  • बोर्ड के प्रत्येक सदस्य देश एक गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर मनोनीत करते हैं। 
  • वर्ष में कम से कम एक बार बोर्ड आॅफ गवर्नर्स की बैठक आहूत करना अनिवार्य है। 
  • नये सदस्यों के प्रवेश, अधिकृत पूंजी में परिवर्तन, निदेशक एवं अध्यक्ष का निर्वाचन और चार्टर में संशोधन को छोड़कर अन्य सभी कार्य निदेशक मंडल को सौंप दिये जाते हैं। 
  • निदेशक मंडल के 12 सदस्यों का निर्वाचन बोर्ड आॅफ गर्वनर्स द्वारा होता है तथा वे बोर्ड आॅफ गर्वनर्स द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अधीन कार्य करते हैं और अपने कार्य के लिए बोर्ड आॅफ गवर्नर्स के प्रति ही उत्तरदायी होते हैं। 
  • क्षेत्रीय सदस्यों और गैर-क्षेत्रीय सदस्यों के 4 प्रतिनिधियों को मिलाकर निदेशक मंडल का गठन किया जाता  है। 
  • क्षेत्रीय निदेशकों को 65 प्रतिशत मतदान की शक्ति प्राप्त है।
  • ए.डी.बी. विकास वित्त से जुड़ी संस्थाओं तथा लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों को सरकारी गारंटी पर तथा निजी उद्यमों को सरकारी गांरटी के बिना ही ईक्विटी एवं ऋण  के रूप में प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन लाने हेतु भी ए.डी.बी. वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
  • ए.डी.बी. विश्व बैंक समूह, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) तथा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ तालमेल रखता है और निजी तथा सरकारी संस्थाओं के सहयोग से सह-वित्तीयन में भी भाग लेता है। 
  • इसकी प्राथमिकताओं में क्रमशः ऊर्जा, सामाजिक क्षेत्र, परिवहन एवं संचार, कृषि, एवं कृषि आधारित उद्योग तथा वित्तीय क्षेत्र शामिल हैं।
  • ए.डी.बी. परियोजना निर्माण, सलाहकार सेवा तथा से विवर्गीय प्रशिक्षण के लिए भी ऋण एवं अनुदान प्रदान करता है।
  •  भारत इस बैंक का तीसरा सबसे बड़ा ऋणी देश है। चीन को पहला और इण्डोनेशिया को दूसरा स्थान प्राप्त है। 
  • विश्व बैंक के अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ की तर्ज पर ए.डी.बी. द्वारा 1974 में एशियाई विकास कोष की स्थापना की गई। 
  • आई.डी.ए. की भांति ए.डी.एफ. भी दाता देशों से कोष प्राप्त करता है और अत्यंत पिछड़े सदस्य देशों को इस कोष से रियायती सहायता प्रदान करता है। 
  • ए.डी.बी. द्वारा तकनीकी सहायता विशेष कोष तथा जापान विशेष कोष की भी स्थापना की गयी है।

बहुराष्ट्रीय बैंक 

  • जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के बहुराष्ट्रीय बैंक कई देशों में क्रियाशील हैं। 
  • इन बैंकों द्वारा व्यापार तथा परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु ऋण प्रदान किये जाते हैं। 
  • भारत में सिटी बैंक, ए.एन.जेड. ग्रिन्डलेज बैंक, स्टैंर्ड चार्टर्ड बैंक, हांगकांग बैंक, अमेरिकन  एक्सप्रेस, बैंक आॅफ अमेरिका आदि कई बहुराष्ट्रीय बैंक बड़े पैमाने पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
  • उपर्युक्त संस्थाएं सतत् विभिन्न देशों की आर्थिक नीतियों और कार्यक्रमों में समन्वय और सामंजस्य स्थापित करती रहती हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक घटनाचक्रों की मुख्यधारा के साथ सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था को जोड़कर वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करती हैं ताकि विभिन्न देशों के बीच बिना किसी गतिरोध के वित्त और व्यापार का प्रवाह जारी रहे।

गैट और डब्ल्यू.टी.ओ.

  • 1947 में भारत सहित 23 देशों के बीच जिनेवा में हुई वार्ता के दौरान सीमा शुल्क एवं व्यापार पर आम समझौता (गैट) की रूपरेखा बनी। 
  • गैट के पहले दौर की उस वार्ता में 45 हजार वस्तुओं पर सीमा शुल्कों में कुल 10 अरब डालर मूल्य की कमी लाये जाने के प्रस्ताव पर सदस्य देशों के बीच सहमति बन गयी।
  • 1 जनवरी 1948 से यह समझौता लागू किया गया। 
  • गैट के अस्तित्व में आने के समय इसका उद्देश्य संरक्षणवाद के उपायों से मुक्त विश्व व्यापार की स्थितियां कायम करना और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सीमा शुल्क से संबंधित नियमों में एकरूपता एवं सुनिश्चितता लाना घोषित किया गया।
  • उरुग्वे दौर की वार्ता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जिसमें 117 देशों ने भाग लिया था। सितम्बर 1986 में शुरू हुई वार्ता को हालांकि दिसम्बर 1990 में ही योजनानुसार समाप्त होना था, पर सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर गंभीर मतभेद उभर जाने के कारण इसमें तीन वर्षों की देरी हुई। 
  • वार्ता के दौरान उभरे मतभेदों को सुलझाने के लिए गैट महानिदेशक आर्थर डंकल ने समझौते के प्रारूप के रूप में एक प्रस्ताव पेश किया। 
  • डंकल प्रस्ताव के नाम से प्रसिद्ध समझौते के इस प्रारूप को गैट के सभी सदस्य देशों ने 13 दिसम्बर 1993 को जिनेवा में हुई एक बैठक में अनुमोदित कर दिया। 
  • डंकल प्रस्ताव के आधार पर हुए विचार-विमर्श के बाद मोरक्को के मराकेश शहर 15 अप्रैल 1994 को एक समझौते की घोषणा की गयी, जिस पर गैट के सभी सदस्य देशों के वाणिज्य मंत्रियों ने हस्ताक्षर कर दिये।
  • भारत की ओर से तत्कालीन वाणिज्य मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
  • डंकल प्रस्ताव के आधार पर हुए उरुग्वे दौर की व्यापार वार्ताओं के ‘समापन अधिनियम’ के रूप में चचित समझौते के फलस्वरूप विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) अस्तित्व में आया। 
  • डब्ल्यूटीओ ने 1 जनवरी 1995 से गैट की भूमिका को आत्मसात करते हुए विश्व व्यापार व्यवस्था के नियंत्रण एवं संचालन का दायित्व संभाल लिया। 
  • डब्ल्यूटीओ की स्थापना संबंधी प्रावधान के अतिरिक्त उक्त समझौते में विश्व व्यापार संबंधी 28 संधियों को शामिल किया गया था, जिनमें से सीमा शुल्कों में अधिक से अधिक कटौती के माध्यम से मुक्त विश्व व्यापार को बढ़ावा दिये जाने, कृषि एवं सेवा क्षेत्र को मुक्त व्यापार प्रक्रिया के दायरे में लाये जाने तथा बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार संबंधी पहलुओं से जुड़ी संधियां विशेष उल्लेखनीय हैं।
  • गैट के तहत हुई इन संधियों को लागू कराने की जिम्मेदारी डब्ल्यूटीओ की है। 
  • प्रत्येक संधि को सदस्य देशों द्वारा लागू किये जाने के लिए एक निश्चित समय-सीमा मुकर्रर है। 
  • इसमें विकासशील एवं अविकसित देशों के लिए कुछ वर्षों की छूट का भी प्रावधान किया गया। 
  • सैद्धांतिक रूप से डब्ल्यूटीओ सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जुड़े सभी मामलों पर किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ है और आयात एवं घरेलू बाजार संबंधी एक जैसे नीति-नियम की वकालत करता है
  • भारत को डब्ल्यूटीओ प्रावधानों की बाध्यताओं के तहत आगामी वर्षों में पेटेंट, काॅपीराइट, जैव-विविधता, ट्रेड मार्क व इस तरह के कई अन्य विषयों से जुड़े अपने कानूनों को बदलना पड़ा।

 

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FAQs on अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं क्या हैं?
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं विभिन्न देशों के बीच वित्तीय सहयोग और व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए स्थापित हुई हैं। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य वित्तीय स्थिरता, विकास, और सहयोग को बढ़ावा देना है।
2. विश्व बैंक क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: विश्व बैंक एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो विकासशील देशों को वित्तीय सहायता और उनके विकास कार्यक्रमों के लिए उच्चकोटि के ऋण प्रदान करती है। इसका महत्व इसे विश्वास्तरीय संस्था और वित्तीय सहायता का महत्वपूर्ण स्रोत बनाने में है।
3. आपको बताएंगे कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष क्या है और इसका उपयोग क्या होता है?
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो अपने सदस्यों को मदद करने के लिए बनाई गई है। यह सदस्य देशों को विभिन्न आपातकालीन स्थितियों के लिए मुद्रा सहायता प्रदान करता है, जो उनके वित्तीय स्थिति को सुधारने में मदद करता है।
4. अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का व्यापारिक महत्व क्या है?
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं विभिन्न देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देती हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच संबंध, व्यापार और वित्तीय सहयोग बढ़ाते हैं जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है।
5. विश्व व्यापार संगठन (वीटो) क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: विश्व व्यापार संगठन (वीटो) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो व्यापार और व्यापारिक मामलों को संचालित करने के लिए स्थापित की गई है। इसका महत्व यह है कि यह विश्व व्यापार को बढ़ावा देने और विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को सुधारने में मदद करता है।
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