आरक्षित मुद्रा
आरक्षित मुद्रा
वह मुद्रा, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हो और दूसरे देश उसे ऋण समझौतों और खातें में एक इकाई के रूप में दिखाने को तैयार हों, ‘आरक्षित मुद्रा’ कहलाती है।
यह वह मुद्रा है, जिसे कोई देश अपने पूंजी भंडार के तहत संचित रखता है। अमेरिकी डाॅलर , यूरो आदि इसी प्रकार की मुद्रायें हैं।
राॅलिंग बजट- ऐसा बजट, जो वर्ष के प्रांरभ में तैयार कर लिया जाये, लेकिन बाद में बदलती परिस्थितियों के हिसाब से उसमें निंरतर परिवर्तन किया जाता रहे, राॅलिंग बजट कहलाता है। इस प्रकार के बजट का लाभ यह है कि इसमें बाह्य एवं नियंत्राण से परे स्थितियों के कारण पैदा होने वाले अंतर को रोका जा सकेगा।
प्राॅमीसरी नोट- किसी एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के नाम किया गया लिखित व हस्ताक्षरित बिना शर्त वादा ‘प्राॅमिसरी नोट’ कहलाती है।
प्राॅमीसरी नोट
इसमें दूसरे व्यक्ति को एक निदष्ट मात्रा में धन देने या उसको अथवा धारक को उस मात्रा का धन उपलब्ध कराने का निर्देश उल्लिखित होता है। धन का भुगतान मांगे जाने पर या भविष्य में किसी निश्चित अवधि पर किया जाना होता है। इस प्रकार के प्राॅमीसरी नोट को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेन्ट्स में शामिल किया जाता है।
स्टाॅक इन्वेस्ट योजना- यह कम्पनियों को शेयरों के लिए आवेदन-राशि सम्प्रेषण की एक योजना है। इस योजना के अन्तर्गत निवेशकों को शेयर आवंटित होने के बाद ही उनके खाते से रुपया कम्पनियों के खाते में जाएगा।
मुक्त व्यापार नीति- इसके अन्तर्गत घरेलू तथा विदेशी वस्तुओं के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है तथा किसी के भी साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता है। इस नीति के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर सरकार का नियन्त्राण नहीं होता, अर्थात् न तो विदेशी सामान पर अनावश्यक कर लगाए जाते हैं और न ही स्वदेशी उद्योगों को कोई विशेष सुविधा ही प्रदान की जाती है।
योग्यता के अनुसार भुगतान सिद्धान्त (ABILITY PAY THEORY)- यह कर निर्धारण का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसके अनुसार करदाता पर उसकी भुगतान योग्यता (क्षमता) के अनुसार ही कर लगाना चाहिए प्रगतिशील कर इस सिद्धान्त की पुष्टि करते है।
मूल्यानुसार कर (AD VOLREM TAX)- यह वह कर है, जो वस्तु पर उसके मूल्य (Value) के अनुरूप लगाए जाते है।
अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त (Optimum population theory)- इस सिद्धान्त के अनुसार एक देश के लिए आर्थिक दृष्टि से सर्वोत्तम जनसंख्या वह होती है जहाँ प्रति व्यक्ति वास्तविक आय अधिकतम होती है।
जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion)- जब जन्म दर मृत्यु दर से बहुत अधिक होती है तथा उसके फलस्वरूप जनसख्ंया तीव्र गति से बढ़ती है तो उस स्थिति को जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया जाता है। भारत में वर्तमान में यही स्थिति है।
जीरो-नेट-एड (Zero- Net Aid)- जब कोई देश पूर्णरूप से आत्मनिर्भर बन जाता है तो उसे किसी प्रकार की विदेशी सहायता की आवश्यकता नहीं होती, इस स्थिति को ही जीरो-नेट एड कहते है।
नीड बेस्ड वेजेज़(Need Based Wages)- यह मजदूरी की वह दर है जो एक श्रमिक को उसकी आवश्यकतानुसार प्राप्त होती है, इस मजदूरी से श्रमिक अपनी उन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, जिनका वह आदी हो गया है। सामान्यतः मजदूरी श्रम की पूर्ति उत्पादकता तथा लाभ पर आधारित होती है जोकि आवश्यकता आधारित मजदूरी से काफी कम होती है।
नियो-कोलोनियलिज्म (Neo Coloniliasm)- यह आर्थिक उपनिवेशवाद है, जिसके अन्तर्गत धनी देश गरीब देशों को आर्थिक सहायता के माध्यम से उन पर राजनीतिक दबाव डालकर उनसे गलत कार्य करवाते हैं तथा उनकी आन्तरिक नीतियों को भी प्रभावित करते है।
मुक्त बन्दरगाह (Free port)- मुक्त बन्दरगाहें उस बन्दरगाह को कहते हैं, जहाँ बिना सीमा शुल्क दिए सामान जहाज में चढ़ाया अथवा उतारा जा सकता है, जैसे- हांगकांग बन्दरगाह।
समर्थन मूल्य (Support Price)- यह वे कीमतें है जो सरकार द्वारा निश्चित की जाती है तथा इन कीमतों पर सरकार वस्तुओं को खरीदने के लिए प्रतिबद्ध होती है बाजार में मूल्य इन मूल्यों से कम नहीं हो सकते।
तीसरी व चौथी दुनिया (Third World and Fourth World)- तीसरी दुनिया में एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमरीका आदि के पिछड़े, विकासशील देश आते है, चैथी दुनिया में वे अर्धविकसित तथा विकासशील देश आते है, जिन पर अत्यधिक विदेशी ऋण है तथा जो पेट्रोल निर्यातक देशों द्वारा मूल्य वृद्धि से विशेष प्रभावित होते है।
विमुद्रीकरण (Demonotization)- विमुद्रीकरण का अर्थ सरकार द्वारा छिपी हुई सम्पत्ति को बाहर निकालने के लिए अपनाई गई धातु मुद्रा एवं पत्रा मुद्रा चलन से बाहर करने की नीति से है।
विमुद्रीकरण
इसके अन्तर्गत प्रचलित मुद्रा को रद्द करके उसके बदले में नई मुद्रा प्रदान की जाती है
अवपात मुद्रा प्रसार (Stagflation)- इसका अर्थ उस स्थिति से लगाया जाता है जबकि अर्थव्यवस्था में विकास की स्थिरता तथा मुद्रा-स्फीति दोनों विद्यमान हो।
अधिमूल्यन (Revaluation)- जब एक देश अपनी मुद्रा की कीमत अन्य मुद्राओं के संदर्भ में बढ़ा देता है तो उसे अधिमूल्यन कहा जाता है।
अपस्फीति (Disinflation)- अर्थव्यवस्था में व्याप्त मुद्रा स्फीति को ठीक करने के लिए मुद्रा की मात्रा में धीरे-धीरे कमी की जाती है। इस व्यवस्था को ही अपस्फीति कहा जाता है।
मुद्रा स्फीति (Inflation)- जब सामान्य मूल्य स्तर में वृद्धि हो जाती है तो उस स्थिति को मुद्रा स्फीति कहा जाता है। मुद्रा स्फीति की अवस्था में वस्तुओं के मूल्य बढ़ते है तथा मुद्रा का मूल्य कम होता है।
मुद्रा संस्फीति (Reflation)-मुद्रा संकुचन की स्थिति के परिणामस्वरूप उत्पन्न मन्दी को दूर करने के लिए सरकार आर्थिक क्रियाओं के संचालन हेतु धीरे-धीरे मुद्रा प्रसार करती है, इस स्थिति को ही ‘मुद्रा संस्फीति’ कहा जाता है।
अवमूल्यन (Devaluation)- जब एक देश अपनी मुद्रा की कीमत अन्य मुद्राओं के रूप में कम कर देता है अथवा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में SDR के रूप में गिरा देता है तो उसे मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है। इसका सम्बन्ध मुद्रा के बाह्य मूल्य से होता है।
मुद्रा मूल्य ह्रास (Depreciation of Money)- जब वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जाने के फलस्वरूप मुद्रा की क्रय शक्ति घट जाती है तो इसे मुद्रा मूल्य ह्रास कहते है।
मुद्रा संकुचन (Deflation)- मुद्रा की मात्रा में कमी हो जाने के फलस्वरूप मुद्रा के मूल्य में वृद्धि हो जाती है इसे मुद्रा संकुचन की स्थिति कहा जाता है। मुद्रा संकुचन के समय वस्तुओं के मूल्यों में कमी हो जाने के साथ-साथ बेरोजगारी उत्पन्न होने लगती है।
साख संकुचन नीति (Credit Squeez Policy)- केन्द्रीय बैंक द्वारा ऋणों को कम करने के लिए अपनाई जाने वाली नीति को साख संकुचन की नीति कहा जाता है।
मोरेटोरियम (Moratorium)- इसका उपयोग उस अवधि के लिए किया जाता है जिसमें कानून द्वारा ऋणों का भुगतान टाल दिया जाता है।
पैट्रो डाॅलर(Petro-Dollar)- पेट्रोल निर्यातक देशों द्वारा पेट्रोल निर्यात करके अर्जित मुद्रा ‘पैट्रो डाॅलर्स’ कहलाती है।
पैट्रो डाॅलर
डाॅलर डिप्लोमेसी- जो राष्ट्र डाॅलर के मूल्य में वृद्धि करके अमरीकी डाॅलर को लाभ पहुँचाने का प्रयास करते है, उनके इस प्रयास को ही डाॅलर डिप्लोमेसी कहा जाता है।
एम्बार्गो (Embargo)- जब किसी राष्ट्र की सरकार द्वारा विदेशी जहाजों के आवागमन तथा किसी वस्तु विशेष के आयात-निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है तो उस प्रतिबन्ध को ‘एम्बार्गों’ कहा जाता है।
साॅफ्ट करेन्सी (Soft Currency)- इसका उपयोग उन मुद्राओं के लिए किया जाता है जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
हार्ड करेन्सी (Hard Currency)- इसका उपयोग उन मुद्राओं के लिए किया जाता है जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय माँग अधिक होती है तथा जिन्हें आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता, जैसे-अमरीकी डाॅलर, मार्क, येन, पौण्ड, स्टर्लिंग आदि।
गर्म मुद्रा(Hot Currency)- इस शब्द का उपयोग उस मुद्रा के लिए किया जाता है, जिसका विनिमय मूल्य लगातार कम हो रहा हो तथा इसके बदले में व्यक्ति अधिक स्थिर मूल्य वाली मुद्रा प्राप्त करना चाहता है।
साॅफ्ट लोन (Soft Loan)- कम ब्याज पर लम्बी अवधि के लिए प्राप्त किया गया ऋण ‘साॅफ्ट लोन’ कहलाता है।
हार्ड लोन (Hard Loan)- ऊँची ब्याज दर पर अपेक्षाकृत कम अवधि के लिए प्राप्त किया गया ऋण ‘हार्ड लोन’ कहलाता है।
विनिमय पत्रा (Bill of Exchange)- विनिमय पत्रा उस विलेख को कहते है जिस पर लिखने वाले के हस्ताक्षर (Signature) होते है तथा जिसमें एक शर्तरहित आज्ञा होती है, जिसके द्वारा लिखने वाला किसी निश्चित व्यक्ति को यह आदेश देता है कि वह एक निश्चित राशि का किसी निश्चित व्यक्ति को अथवा उसके आदेशित व्यक्ति को अथवा विलेख के वाहक को भुगतान कर दे।
बीयर (Bear)- बीयर स्टाॅक एक्सचेंज में उस व्यक्ति को कहा जाता है जो इस उम्मीद से वस्तु (शेयर या डिबेन्चर) को भविष्य में देने का वादा करके बेचता है कि उस वस्तु (शेयर या डिबेन्चर) के मूल्य भविष्य में घट जाएंगे।
बुल (Bull)- बुल स्टाॅक एक्सचेन्ज में उस व्यक्ति को कहा जाता है जो इस आशा से शेयर या डिबेन्चर खरीदता है कि भविष्य में उनके भाव बढ़ जाएंगे।
वेज फ्रीज (Wage Freeze)- जब किसी एक उच्च स्तर पर पहुँचकर श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि करना समाप्त कर दिया जाता है तो उस स्थिति को ‘वेज फ्रीज’ कहा जाता है।
विनियोग प्रन्यास- इसका तात्पर्य ऐसी वित्तीय संस्थाओं से है जो अपने अंश के माध्यम से कोषों (Funds) को संगृहीत कर विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में विनियोजित करती है।
फ्लेटिंग-ए-करेन्सी (Floating-a-Currency)- विश्व के विभिन्न देशों की मुद्राओं के सरकारी तथा गैर सरकारी मूल्यों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को देखते हुए कुछ देशों ने अपने देश की मुद्रा का अन्य देशों की मुद्राओं के सापेक्ष मूल्य निर्धारित न करने का निर्णय किया, जिसके फलस्वरूप दैनिक आधार पर मुद्रा का मूल्य निर्धारित हो सके, मुद्रा-मूल्य निर्धारण की इस प्रक्रिया को ही ‘फ्लोटिंग-ए-करेन्सी’ कहा जाता है।
सांयोगिक अनुबन्ध (Contingental Contract)- इसका तात्पर्य किसी कार्य को करने अथवा न करने के ऐसे अनुबंध ;ब्वदजतंबजद्ध से है जो किसी भावी घटना के घटित होने पर निर्भर है, जो अनुबन्धों के समपार्शविक है।
साख (Credit)- यह एक प्रकार का विनिमय कार्य है, जिसमें कोई ऋणदाता किसी ऋणी को वर्तमान समय में कुछ वस्तुएं अथवा मुद्रा इस विश्वास पर देता है कि कुछ समय बाद वह उसे वापस कर देगा।
पूर्व तिथि (Ante-date)- किसी भी साख-पत्रा अथवा चैक या बिल पर लिखी हुई तिथि से पहले की तिथि ‘पूर्व तिथि’ कहलाती है।
पंच निर्णय (Arbitration)- जब कोई व्यावसायिक विवाद विवादग्रस्त पक्षों द्वारा नामित किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह द्वारा सुलझाया जाता है तो इस प्रकार के निर्णय को ‘पंच निर्णय’ कहा जाता है।
संलेख (Deed)- इसका तात्पर्य उस कानूनी-पत्रा से है जो किसी सम्पत्ति को बन्धक रखने से सम्बन्धित होता है।
द्विधातुमान (Birnetalism)- इसका तात्पर्य उस मुद्रा व्यवस्था से है, जिसमें सोना तथा चाँदी दोनों मुद्रामान के रूप में प्रयोग में लाए जाते है।
मुद्रा बाजार (Money Market)- अल्पकालिक मौद्रिक परिसम्पत्तियों के क्रय-विक्रय केन्द्र को ‘मुद्रा बाजार’ कहा जाता है।
प्रतिज्ञा-पत्रा(Promissory Note)- यह एक शर्तरहित पत्रा (करेन्सी नोट अथवा बैंक नोट के अतिरिक्त) है, जिसमें उसका लेखक एक व्यक्ति विशेष को अथवा उसके आदेशानुसार किसी व्यक्ति विशेष को अथवा उसके वाहक को माँगने पर अथवा एक निश्चित अवधि के पश्चात् एक निश्चित राशि चुकाने का वचन देता है।
कागजी स्वर्ण (Paper Gold)- इससे तात्पर्य उस अन्तर्राष्ट्रीय द्रव्य से है जो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की पुस्तकों में अंकित रहता है तथा केवल पुस्तकीय प्रविष्टियों के द्वारा एक देश से दूसरे देश में पहुँच जाता है इसका उपयोग SDR के रूप में किया जाता है।
ऋण-पत्रा(Debentures)- एक कम्पनी द्वारा ऋण के प्रमाण के रूप में जारी किए गए अनुबन्ध-पत्रा ही ऋण-पत्रा कहलाते है। इनमें धारक को एक निश्चित ब्याज की दर पर निश्चित अवधि के पश्चात् ऋण को वापस करना होता है।
डिविडेण्ड (Divident)- वह लाभ जो शेयर धारकों को कम्पनी द्वारा प्राप्त होता है, डिविडेण्ड कहलाता है।
भारत सहायता क्लब (Aid-India-Club)- यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, जो भारत की विकास परियोजनाओं हेतु ऋण उपलब्ध कराने के लिए 1958 में स्थापित की गई थी। विश्व बैंक भी इसका सदस्य है।
ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment)- ऐच्छिक बेरोजगारी तब होती है, जब कोई व्यक्ति प्रचलित दरों पर उपलब्ध रोजगार को स्वीकार नहीं करता।
अनैच्छिक बेरोजगारी (Involuntary Unemployment)- जब कोई व्यक्ति प्रचलित कीमत (आय) या उससे कम पर रोजगार प्राप्ति हेतु तत्पर हो, किन्तु उसे रोजगार न मिल रहा हो, उस स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है।
संरचनात्मक बेरोजगारी(Structural Unemployment)- इसका तात्पर्य एक दीर्घकालीन बेरोजगारी की स्थिति से है, जो देश के पिछड़े आर्थिक ढाँचे से सम्बन्धित होती है।
खुली बेरोजगारी (Open Unemployment)- इससे तात्पर्य ऐसी बेरोजगारी से है जिसमें श्रमिक बिल्कुल बिना कामकाज के होता है, उसे थोड़ा बहुत भी काम नहीं मिलता है।
छिपी हुई बेरोजगारी (Disguised Unemployment)- ऐसे व्यक्ति जो अपनी श्रम शक्ति का कुछ न कुछ उपयोग करते रहते है किन्तु उनकी सीमान्त उत्पादकता (MP) शून्य होती है, छिपी बेरोजगारी के अन्तर्गत आते है।
समन्वित ग्राम्य विकास कार्यक्रम (I. R. D. P.)- यह ग्रामीण विकास का एक समन्वित/एकीकृत कार्यक्रम है। देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों को ऊपर उठाने और उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने हेतु 1978-79 में सरकार ने यह (I. R. D. P.) योजना प्रारम्भ की थी।
ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP)- यह कार्यक्रम सरकार ने 1983-84 में प्रारम्भ किया था, इसका उद्देश्य प्रत्येक भूमिहीन श्रमिक परिवार के कम से कम एक सदस्य को वर्ष से 100 दिन तक के रोजगार की गारण्टी दिलाना है। इस कार्यक्रम को अब जवाहर रोजगार योजना में सम्मिलित कर दिया गया है।
ट्राइसेम (TRYSEM)-Traning Rural Youth For Self Employment- यह कार्यक्रम 15 अगस्त, 1979 से प्रारम्भ किया गया था। इसका उद्देश्य 18 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के ग्रामीण युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देना था।
राष्ट्रीय विकास परिषद्(National Development Council)-
यह योजना आयोग की प्रमुख सलाहकार समिति थी। वास्तव में यह योजना आयोग की तरह एक संविधानेत्तर संस्था थी जिसका गठन 1952 में किया गया था। समस्त राज्यों के मुख्यमंत्राी व योजना आयोग के सदस्य इसके सदस्य होते थे। प्रधानमंत्राी इसका सभापति होता था।
आई. एस. ओ. 9000:शृखंला का यह सबसे पहला मानक विभिन्न मानकों के प्रबंधन, गुणवत्ता आश्वासन के स्तर तथा मानकीकरण के चयन और उपयोग के दिशा निर्देश के बारे में है।
केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO)- इसकी स्थापना 1950-51 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय आय प्रपत्रा तैयार करना है।
खुली-स्फीति(Open Inflation)- जब अर्थव्यवस्था में कीमत वृद्धि पर कोई नियन्त्राण नहीं होता तथा कीमतें अनियन्त्रिात दर से बढ़ती रहती है तो ऐसी स्थित को खुली स्फीति कहा जाता है। इस प्रकार की स्फीति प्रथम महायुद्ध के पश्चात् जर्मनी, आस्ट्रिया, रूस आदि में देखी गई थी।
दमित स्फीति (Supressed Inflation)- इस स्थिति में सरकार द्वारा कीमत नियन्त्राण तथा डम्पिंग (Dumping) के माध्यम से तथा कुल माँग में कमी करके कीमतों पर नियन्त्राण किया जाता है। इन उपायों के पश्चात् होने वाली स्फीति खुली स्फीति की दर से बहुत कम होती है।
आई. एस. ओ. 9001- डिज़नो के विकास, उत्पादन, प्रतिष्ठापन, परीक्षण और रखरखाव में गुणवत्ता आश्वासन के लिए यह मानक प्रमाणपत्रा दिया जाता है।
आई. एस. ओ. 9002- उत्पादन, सामग्री प्रबंध (मैटीरियल मैनेजमेंट) और प्रतिष्ठान में गुणवत्ता आश्वासन के लिए प्रमाण देता है।
आई. एस. ओ. 9003- अंतिम निरीक्षण और परीक्षण में गुणवत्ता आश्वासन के लिए प्रमाणपत्रा प्रदान करता है।
आई. एस. ओ. 9004- गुणवत्ता प्रबंधन और गुणवत्ता प्रबंध प्रणालियों के संबंध में मार्गनिर्देशक मानक है।
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