UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi  >  आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था

आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • श्वेत क्रांति - भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। दुग्ध उत्पादन में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को श्वेत क्रांति का नाम दिया गया है। विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध विकास कार्यक्रम ‘आॅपरेशन-फ्लड’, ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं के साथ जोड़ने के लिए 1970 में एन.डी.डी.बी. ने   बनाया था। आॅपरेशन-फ्लड कार्यक्रम इस समय अपने तीसरे चरण में चल रहा है। आॅपरेशन फ्लड.3 का प्राथमिक उद्देश्य, जैसा कि पहले चरणों में था, लाभकारी मूल्यों पर दुग्ध की अधिप्राप्ति करके, ग्रामीण इलाकों में ही उत्पादित दूध और डेयरी उत्पादों के लिए अच्छी विपणन सुविधाएं उपलब्ध कराकर, उत्पादकता को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करके, अनुप्रायोगिक अनुसंधान और विकास कार्यक्रम शुरू करके, सहकारी समितियों के ‘आनन्द पैटर्न’ को दोहराना है, ताकि दुग्ध उत्पादकों को लाभ प्राप्त हो सके।
  • पीली क्रांति - पीली क्रांति खाद्य तेलों व तिलहन के उत्पादन से संबंधित है। साठ के  दशक के बाद भारत को बड़ी मात्रा में तिलहन का आयात करना पड़ रहा था। अतः भारत सरकार ने तिलहनों के उत्पादन में वृद्धि हेतु 1987.88 में एक टेक्नोलाॅजी मिशन का गठन किया, जिसने राष्ट्रीय, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर सहकारी समितियों, कृषि अनुसंधान संस्थानों व ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं की मदद से कार्य किया। एन.डी.डी.बी. ने पीली क्रांति को सफल बनाने में सहयोग दिया।
  • नीली क्रांति - भारत में मत्स्य उत्पादन में हुई महत्वपूर्ण वृद्धि को ही ‘नीली क्रांति’ की संज्ञा दी गयी है। मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि और सहकारिता विभाग का मात्स्यिकी प्रभाग समुचित नीतियां अपनाने के अतिरिक्ति प्रत्यक्ष अथवा राज्य सरकारों के माध्यम से विभिन्न उत्पादन प्रधान कार्यक्रम, आदान आपूर्ति कार्यक्रम तथा बुनियादी ढांचा विकसित करने के कार्यक्रम आदि चलाता है।
  • गरीबी रेखा - योजना आयोग द्वारा अपनायी गयी गरीबी रेखा की एक वैकल्पिक परिभाषा के अंतर्गत आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं को ध्यान  में रखा गया है। इस परिभाषा के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में भोजन में 2,400 कलौरी प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति तथा शहरी क्षेत्र में 2,100 कैलोरी प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की उपलब्धता होनी चाहिए।
  • मुद्रा अपस्फीति - मुद्रा अपस्फीति वह स्थिति है, जिसके तहत मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में लगातार कमी होती रहती है।
  • समर्थन कीमतें - समर्थन कीमतें उत्पादकों को यह गारंटी देती हैं कि यदि अत्यधिक उत्पादन हुआ तो भी सरकार कीमतों को निर्धारित कीमतों से नीचे नहीं गिरने देगी। इस उद्देश्य के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन कीमतों पर बड़े पैमाने पर खाद्यान्नों को क्रय करने के लिए बचनबद्ध होती है।
  • वसूली कीमतें - वसूली कीमतें वे कीमते हैं, जिन पर सरकार खाद्यान्नों को मंडियों से खरीदती है। इस खरीददारी की आवश्यकता सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरतों को पूरा करने तथा बफर स्टाॅक का निर्माण करने के लिए होती है। वसूली कीमतें सदैव न्यूनतम समर्थन कीमतों से अधिक होती हैं।
  • वित्त आयोग - वित्त आयोग एक सांविधिक संस्था है। वित्त आयोग का गठन भारतीय संविधान की धारा 280 के अन्तर्गत राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष के बाद या आवश्यकतानुसार पहले भी किया जाता है। वित्त आयोग का गठन केन्द्र व राज्यों के बीच संसाधनों के विभाजन पर विचार करने के लिए किया जाता है। प्रथम वित्त आयोग का गठन 1952 में श्री. के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में हुई।
  • अप्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष कर - ऐसा कर, जिसे प्रारम्भ में लगाए गए व्यक्ति पर से किसी अन्य पर हस्तांतरित किया जा सकता है - अप्रत्यक्ष कर कहलाता है। उदाहरणः आबकारी शुल्क, बिक्री कर, आयात शुल्क। प्रत्यक्ष कर उस कर को कहा जाता है जिसका भार उसी पर पड़ता है जिसको उसे अदा करना होता है अर्थात् इस प्रकार के करों का अंतरण किसी दूसरे व्यक्ति पर नहीं किया जा सकता। उदाहरणः आयकर, निगम कर, उपहार कर आदि।
  • वैधानिक मुद्रा - किसी देश की वैधानिक मुद्रा को उस देश के लोगों द्वारा अस्वीकार करना कानूनन जुर्म होता है।
  • बैंक दर - केन्द्रीय बैंक द्वारा अन्य व्यावसायिक बैंकों से ली जाने वाली ब्याज दर को बैंक दर कहा जाता है।
  • भुगतान शेष - किसी देश के किसी दिये हुए वर्ष से बाहर के देशों से किये गये आर्थिक लेन-देन के व्यवस्थित रिकार्ड को भुगतान शेष कहा जाता है।
  • सार्वजनिक निर्गम - संयुक्त पूंजी कम्पनियों द्वारा पूंजी उगाहने के लिए जब शेयर या डिबेंचर (ऋण पत्रा) जारी किये जाते हैं तो इस क्रिया को निर्गम कहा जाता है। जब यह शेयर या डिबेंचर आम जनता को उपलब्ध कराया जाता है तो उसे सार्वजनिक निर्गम कहा जाता है।   
  • मुद्रा बैंक - प्रधानमंत्राी द्वारा 8 अप्रैल, 2015 को शुभारंभ की गई ( Micro Units Development and Refinance Agency (MUDRA)बैंक की स्थापना मुख्यरूप से सूक्ष्म साख क्षेत्र में एक विनियामक तथा विकास संस्था के रूप में की गई है।
  • जोखिम पूँजी(Venture Capital)  - बाजार में विनेशकर्ताओं एवं कम्पनियों द्वारा व्यापारिक अथवा अन्य प्रकार की निवेशक गतिविधियों में प्रयुक्त की जाने वाली पूंजी ‘जोखिम पूंजी’ कहलाती है।
  • संचित निधि (Consolidated Fund)  - अनुच्छेद 267 के तहत भारत सरकार की एक संचित निधि होती है जिसमें भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राजकोषीय हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोंपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रति संदाय में उस सरकार की सभी प्राप्तियां जमा की जाती है। इसे ही संचित निधि कहा जाता है। इसी प्रकार की संचित निधि राज्य सरकार की भी होती है।
  • आकस्मिकता निधि (Contingency Fund) - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 267(1) के प्रावधानों के तहत एक अग्रदाय लेखा के रूप में आकस्मिकता निधि होती है, जिसकी राशि 500 करोड़ रुपए है। इस निधि से भारत के राष्ट्रपति के नाम पर आकस्मिक परिस्थिति में भुगतान किए जा सकते हैं। संसद द्वारा अतिरिक्त व्यय की स्वीकृति के साथ यह धनराशि पुनः आकस्मिकता निधि में जमा कर दी जाती है। इस निधि का परिचालन वित्त मंत्रालय अर्थिक मामलों के विभागों के संचित द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार की निधि राज्यों में भी होती है।
  • समावेशित विकास(Inclusive Growth) - ऐसा विकास समावेशित विकास कहलाता है जिसमें आर्थिक विकास की उच्च दर से जनित राष्ट्रीय आय के विवरण में समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोगों को उचित हिस्सा मिले अर्थात् राष्ट्रीय आय का रिसाव प्रभाव नहीं की ओर अधिक हो।
  • पम्प प्राइमिंग(Pump Priming) - पम्प प्राइमिंग विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्राी जे.एम. कीन्स द्वारा प्रतिपादित निवेश की एक अवधारणा है जिसके अनुसार मन्दी को दूर करने के लिए सरकार को बड़े पैमाने  पर निवेश करने की बात कही गई है भले ही वह निवेश अनुत्पादक ही क्यों न हो।
  • संविभाग निवेश (Portfolio Investment) - वित्तीय विपत्रों में अंतर्राष्ट्रीय निवेश को संविभाग निवेश कहते हैं। जब एक देश के निवेशक दूसरे देश की कम्पनियों के अंशों, ऋणपत्रों, बाॅण्डों तथा अन्य प्रतिभूतियों में धन लगाते हैं, तो ऐसे निवेश को संविभाग निवेश कहा जाता है।
  • क्लोजिंग स्ट्रोक (Closing Stock) - वह माल जो व्यापार में वर्ष के अन्त में प्रयोग होने अथवा विक्रय होने से बच जाता है, उसे क्लोजिंग स्टाॅक कहते हैं। 
  • उपार्जित आय (Accrued Income) - ऐसी आय जो चालू वर्ष में अर्जित तो कर ली गई है, किन्तु वर्ष के अन्त तक वास्तव में प्राप्त नहीं होती, उपार्जित आय कहलाती है।
  • अनुपार्जित आय (Unearned Income) - आय का वह भाग जो चालू वर्ष में प्राप्त हो तो गया है, किन्तु चालू वर्ष से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता, अनुपार्जित आय कहलाती है।
  • मूर्त सम्पत्तियाँ (Tangible Assets)  - मूर्त सम्पत्तियाँ ऐसी सम्पत्तियाँ होती हैं, जिन्हें देखा, छूआ तथा अनुभव किया जा सकता है, जैसे- भूमि, भवन, मशीनरी, माल, रोकड़, फनीचर, मोटरगाड़ियाँ आदि।
  • अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets)  - इन सम्पत्तियों का भौतिक अस्तित्व नहीं होता अर्थात् इनका आन्तरिक मूल्य कुछ नहीं होता, किन्तु इनका मूल्य स्वामित्व एवं कब्जे(Ownerhip and Possession) के द्वारा प्रदत्त अधिकारों से प्राप्त किया जाता है, जैसे- ख्याति, पेटेन्ट, व्यापारिक चिन्ह, कोपीराइट आदि।
  • रीट्स (REITS) - रीयल एस्टेट इन्वेस्टमेन्ट्स फण्ड ऐसी निधियां हैं, जो स्थावर सम्पदा क्षेत्रक में निवेश को एक साथ संग्रहित करके उसका आवश्यकतानुसार उपयोग करती है।
  • इन्विट्स (InviITs)- ये इन्फ्रास्ट्रचर इन्वेस्टमेन्ट्स ट्रस्ट (अवसंरचना) निवेश न्यास कहा जाता है। ये न्यास सार्वजनिक निजी सहभागिता आधार वाली परियोजनाओं को निवेश संसाधन उपलब्ध कराती है।
  • प्रसाद (PRASAD)- वर्ष 2014.15 के केन्द्रीय बजट में घोषित एक योजना है। तीर्थस्थल कायाकल्प तथा आध्यात्मिक संबर्द्धन मुहिम पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission for (Pilgrimage Rejuvenation and Spritual Augmentation Drive)  नामक यह कार्यक्रम भारत के प्रमुख तीर्थस्थालों के कायाकल्प हेतु प्रारम्भ किया गया है।
  • गिल्ट फण्ड - ऐसे फण्ड जिनके माध्यम से सरकारी सिक्योरिटी में निवेश किया जाता है, ‘गिल्ट फण्ड’ कहलाते हैं। सरकारी कम्पनियों में किया जाने वाला निवेश ज्यादा बेहतर तथा सुरक्षित माना जाता है।
  • डी-मैट अकाउण्ट - यह एक प्रकार का बैक खाता है जिसमें रुपयों की जगह शेयर एवं बाॅण्ड रखे जाते हैं। इस खाते में रुपए का लेन-देन नहीं होता। अगर कोई व्यक्ति शेयर बाजार में निवेश करना चाहता है, तो उस डी-मैट खाता खुलवाना जरूरी है।
  • स्वर्णमान(Gold Standard) - जब किसी देश की प्रधान मुद्रा स्वर्ण में परिवर्तनशील होती है अथवा मुद्रा का मूल्य सोने में मापा जाता है, तो इस मौद्रिक व्यवस्था को ‘स्वर्णमान’ कहते हैं।
  • किराया क्रम (Hire Purchase) - जब कोई वस्तु मासिक या वार्षिक इन्स्टाइलमेंट के आधार पर खरीदी जाती है, तो इस विधि को ‘हायर परचेज’ कहते हैं। इसमें वस्तु का स्वामित्व उसके मूल्य का पूरा भुगतान होने के बाद ही मिलता है।
  • हाॅट मनी(Hot Money) - उस विदेशी मुद्रा को हाॅट मनी कहते हैं, जिसमें शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवृत्ति होती है। जिस स्थान पर अधिक लाभ मिलने की संभावना होती है, वहीं यह स्थानान्तरित हो जाती है।
  • विधिम्राह्य मुद्रा(Legal Tender Money) - जिस मुद्रा में भुगतान करने पर लेनदार कानूनी तौर पर स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता है, उसे ‘विधिग्राह्य’ मुद्रा कहते हैं। भारत की विधिग्राह्य मुद्रा रुपया है। रुपया नेपाल एवं भूटान में विधिग्राह्य मुद्रा है।
  • मारेटोरियम(Moratorium) - उस अवधि को ‘मारेटोरियम’ कहते हैं जिसमें कानून द्वारा ऋणों का भुगतान टाल दिया जाता है।
  • ऋणशोधन निधि(Sinking Fund)- नियमित रूप से धनराशि जमा करके तैयार किया गया ऐसा कोष जिससे किसी ऋण का परिपक्वता पर आसानी से भुगतान किया जा सके, शोधन कोष कहलाता है।
  • प्राइमरी गोल्ड(Primary Gold)  - 24 केरेट के शुद्ध सोने को प्राइमरी गोल्ड कहते हैं।
  • ऋण परिवर्तन (Debt Conversion)- किसी सार्वजनिक ऋण की परिपक्वता पर यदि सरकार उसका वास्तविक भुगतान न करके   उसके स्थान पर दूसरे नए ऋणपत्रा जारी कर दे, तो यह प्रक्रिया ‘ऋण परिवर्तन’ कहलाती है।
  • विनिमय नियंत्राण (Exchange Control)- यह उस व्यवस्था का नाम है जिसके अंतर्गत कोई देश विदेशी मुद्राओं के स्वतंत्रा बाजार पर नियंत्राण करके अपनी मुद्रा की विनिमय दर को भिन्न रखने का प्रयास करता है, जो स्वतंत्रा बाजार में निर्धारित होती है।
  • गिफिन वस्तुएँ (Giffin Goods)- गिफिन वस्तुएं कुछ घटिया किस्म की ऐसी होती हैं जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का बड़ा भाग व्यय करता है। इन वस्तुओं पर मांग का नियम लागू नहीं होता, बल्कि मूल्य में वृद्धि से इनकी मांग बढ़ जाती है तथा मूल्य में कभी से मांग भी कम हो जाती है। इस विरोधाभास को गिफिन का विरोधाभास (Giffin’s Paradox)  कहा जाता है।
  • अल्पाधिकार(Oligopoly)- यदि किसी वस्तु के बाजार में विक्रेताओं की संख्या बहुत कम (किन्तु दो से अधिक) होती है जिनके मध्य आपस में कोई समझौता संभव हो सकता हो, तो ऐसा बाजार अल्पाधिकार कहलाता है। इस प्रकार के बाजार में वस्तु एक जैसी भी हो सकती है तथा वस्तु में विभेद भी हो सकता है।
  • धारक बाॅण्ड(Bearer Bond) - धारक बाॅण्ड वे ऋणपत्रा हैं, जिनका भुगतान परिपक्वता पर कोई भी प्राप्त कर सकता है। इन पर न तो खरीददार का नाम लिखा होता है और न ही हस्तान्तरित करते समय इसके पृष्ठ भाग पर हस्ताक्षर ही करने होते हैं। प्रायः इनका उपयोग काले धन को सफेद धन में बदलने के लिए किया जाता है।
  • दृश्य अथवा मूर्त प्रतिभूति (Tangible Security)- दृश्य प्रतिभूति में ऋण की वसूली प्रतिभूति बेचकर की जा सकती है। दृश्य प्रतिभूति में अंश (Shares),  ऋणपत्रा (Debentures), सरकारी प्रतिभूति, माल(Goods)एवं जीवन बीमा पाॅलिसी आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • प्राथमिक प्रतिभूति (Primary Security)- प्राथमिक प्रतिभूति से अभिप्राय उस प्रतिभूति से होता है, जो ऋण को मुख्यतः सुरक्षित करती है तथा यह प्रतिभूति ऋणी द्वारा प्रदत्त की जाती है।
  • समपाश्र्विक प्रतिभूति (Collateral Security)- समपाश्र्विक प्रतिभूति ऋण की सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्राथमिक प्रतिभूति के अतिरिक्त ऋणी से प्राप्त की जाती है। वह प्रतिभूति तृतीय पक्षकार द्वारा उसकी जमानत (Guarantee)  स्वरूप अथवा ऋणी द्वारा अन्य प्रतिभूतियां प्रदान करके उपलब्ध की जाती है।
  • सावधि जमा (Time Deposits)- सावधि जमाओं के अंतर्गत उन समस्त जमा राशियों को सम्मिलित किया जाता है, जो एक निर्धारित अवधि के लिए बैंक के पास जमा की जाती है। यह जमा राशि विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त होने पर देय (Repayable) होती है। बैंक ऐसी जमा राशियों पर अपेक्षाकृत ऊँची दर से ब्याज देते हैं। इस प्रकार के जमा बैंकों द्वारा प्रायः सावधि जमा खाते (Fixed Deposits Account) तथा आवर्ती जमा खाते (Recurring Deposit Account) में स्वीकार किए जाते हैं।
  • माँग जमा (Demand Deposits) - माँग जमाओं के अंतर्गत उन समस्त जमा राशियों को सम्मिलित किया जाता है, जो जमाकर्ता द्वारा अपनी इच्छानुसार चाहे जब वापस मांगी जा सकती है। बैंकों में चालू खाते (Current Account) तथा बचत खाते (Saving Account) में जमा राशियाँ माँग जमा के अंतर्गत आती है।
  • नकद साख खाता (Cash Credit Account) - यह एक ऋण खाता है। इस खाते के अंतर्गत बैक खाताधारी को एक निश्चित मात्रा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार देता है। इसी सीमा के अन्दर ऋणी अपनी आवश्यकतानुसार बैंक से रुपया लेता है और जमा भी कराता है। ब्याज उसी राशि पर वसूल किया जाता है जो वास्तव में ऋणी के पास रहती है।
  • स्मार्ट कार्ड (Smart Card) - डाक विभाग द्वारा चुनींदा शहरों में प्रारंभ की गई प्रीमियम बचत बंैक सेवा के अंतर्गत प्रत्येक खातेदार को एक ‘स्मार्ट कार्ड’ जारी किया जाएगा, जिसमें वर्तमान कागज की पासबुक व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। ‘स्मार्ट कार्ड’ के माध्यम से खातेदार किसी एक निश्चित डाकघर के स्थान पर विभिन्न डाकघरो में अपने खाते में धन जमा करा सकेंगे तथा निकाल सकेंगे।
  • विनिमय साध्य विपत्र (Negotiable Instrument) - विनिमय- साध्य विपत्रा एक लिखित प्रपत्रा होता है, जो विधि अथवा व्यापारिक प्रथा के अंतर्गत अन्तरिक किया जा सकता है। जो व्यक्ति ऐसा प्रपत्र सद्भाव से तथा मूल्य के बदले (in good faith and for value) प्राप्त करता है उस व्यक्ति को ऐसे प्रपत्रा पर समुचित स्वामित्व रखने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है चाहे उसके अंतरणकर्ता का उस विपत्र पर कोई स्वामित्व नहीं था अथवा दोषपूर्ण स्वामित्व था। वचन-पत्र (Promissory note) विनिमय-पत्र (Bill of exchange) तथा चेक (Cheque) की गणना विनिमय साध्य विपत्रों के अंतर्गत की जाती है। इन विपत्रों का नियमन ‘विनिमय साध्य विपत्रा अधिनियम’ (Negotiable Instruments Act) के द्वारा होता है।
  • साख-पत्र (Letter of Credit) - साख-पत्र सामान्यतः एक बैंक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम लिखा गया एक पत्रा होता है जिसमें पत्रा में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा जारी किए गए चैकों या उसके द्वारा स्वीकार किए गए विनिमय बिलों के भुगतान की गारण्टी प्रदान की जाती है। इस प्रकार के साख-पत्रा निर्यात आयात व्यापार में बहुत उपयोगी होते हैं।
  • यूरो-निर्गम (Euro-Issue) - भारत सरकार, भारतीय रिजर्ब बैंक तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कतिपय प्रावधानों के अंतर्गत चुनींदा भारतीय कम्पनियों को विदेशी पूंजी बाजारों में निर्गम जारी करके विदेशी पूंजी में पूंजी एकत्रित करने की छूट प्रदान कर दी है। इसी-के तहत जब कोई भारतीय कम्पनी विदेशों में अपना निर्गम जारी करती है, तो उसे ‘यूरो-निर्गम’ कहा जाता है।
  • आउटकम बजट (Outcome Budget) - आउटकम बजट के अंतर्गत एक वित्तीय वर्ष के लिए किसी मंत्रालय अथवा विभाग को आवंटित किए गए बजट में अनुश्रवण तथा मूल्यांकन किए गए जा सकने वाले भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण इस उद्देश्य से किया जाता है कि बजट के क्रियान्वयन की गुणवत्ता को परखा जाना सम्भव हो सके।

भारत में केन्द्रीय सरकार ने इस नई पद्धति को वर्ष 2005 - 06 के बजट में प्रस्तावित किया था। इसको पहली बार वित्त मंत्री द्वारा 25 अगस्त, 2005 को संसद में प्रस्तुत किया था।

  • वित्त विधेयक - नए करों को लागू करने, पुराने करों में घटत-बढ़त या उन्हें यथावत् रखने के बारे में सरकारी प्रस्ताव वित्त विधेयक कहलाता है। संविधन के अनुच्छेद 110 के अनुसार वित्त विधेयक एक धन विधेयक है।
  • समेकित कोष - कर तथा ट्टण आदि के द्वारा सरकार जो धन प्राप्त करती है, वह समेकित कोष कहलता है। सरकार अपना संपूर्ण व्यय भी इसी कोष से करती है। संसद की स्वीकृति के बिना इस निधि में से कोई भी रकम नहीं निकाली जा सकती है।
  • आकस्मिक कोष- अप्रत्याशित और आकस्मिक खर्च के लिए संसद से सरकार यह आकस्मिक कोष स्वीकार कराती है। जिस पर प्रतिवर्ष संसद की अलग स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। रकम की निकासी के लिए बाद में संसद की स्वीकृति प्राप्त कर ली जाती है और खर्च की गई धनराशि निधि में वापस डाल दी जाती है।
  • राजस्व बजट - इसमें कर तथा शुल्क आदि से प्राप्त होने वाली सरकारी आमदनी शामिल होती हैं। दूसरी तरफ इसके संग्रह पर किए जाने वाला व्यय की राजस्व बजट में शामिल होता है।
  • जनलेखा - करों से प्राप्त आदमनी के अतिरिक्त सरकार के पास कुछ ऐसी धनराशि भी होती है। जिसकी वह मालिक नहीं, केवल ट्रस्टी होती है और जिसे वह निर्धरित समय पर नियमानुसार ब्याज के साथ लौटा देती है। चूंकि यह धन देर सवेर सरकार को सम्बन्धित पक्षों को लौटाना पड़ता है, इसलिए इस पर भी संसद की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
  • पूंजीगत बजट -  इसमें सरकार द्वारा प्राप्त किया गया ऋण, उस पर किया गया खर्च तथा सरकारी परिसम्पतियों से होने वाली आय तथा व्यय शामिल होते हैं।
  • विनियोग विधेयक - संसद द्वारा स्वीकृत बजट में से आवश्यक धनराशि निकालने के लिए जो विधेयक पेश किया जाता है, उसे विनियोग विधेयक कहते हैं।
  • अनुदान मांग - बजट में अलग-अलग विभागों की अपने विकास और कार्य संचालन पर व्यय किए जाने वाली मांग को अनुदान मांग कहते हैं। बजट के मंत्राी द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है और वही बहस का जवाब भी देती है।
  • कटौती प्रस्ताव - संसद सदस्यों द्वारा बजट में दिखलाए गए खर्च को कम करने के लिए जो प्रस्ताव पेश किए जाते हैं, उन्हें कटौती प्रस्ताव कहते हैं। इन प्रस्तावों का असली उद्देश्य बजट के उस भाग पर विस्तार से बहस करना होता है। यदि कोई कटौती प्रस्ताव सरकार की इच्छा के विपरीत पारित हो जाए तो उसका अर्थ सरकार के विरु( अविश्वास माना जाता है।
  • लेखानुदान - पिछला बजट 31 मार्च को समाप्त हो जाता है। इसके बाद उसे नहीं बढ़ाया जा सकता। इसलिए पहली अप्रैल को सरकार को अपने खर्च के लिए नए बजट की आवश्यकता होती है, परन्तु नया बजट प्रायः पहली अप्रैल से पूर्व पारित नहीं हो पाता। इसलिए संसद अस्थायी रूप से सरकार को व्यय के लिए अग्रिम ध्नराशि देती है।
  • पूरक बजट - यदि कभी बजट में स्वीकृत धनराशि 31 मार्च से पहले ही समाप्त हो जाती है, तो उसी स्थिति में सरकार संसद के सम्मुख पूरक बजट प्रस्तुत करती है, जिसमें शेष समय के लिए अतिरिक्त ध्न की मांग की जाती है।
  • वित्तीय घाटा - वित्तीय घाटा खजाने की सबसे सच्ची तस्वीर है। जिसमें बजट घाटे के साथ-साथ सरकार की शुद्ध उधारी को भी जोड़कर देखा जाता है।
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FAQs on आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) क्या है?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) एक पाठ्यक्रम है जो पारंपरिक अर्थव्यवस्था के संबंध में जानकारी प्रदान करता है। यह शब्दावली आयोग लोक सेवा आयोग (UPSC) के एक परीक्षा से संबंधित है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और अन्य संघ लोक सेवा पदों की भर्ती के लिए आयोजित की जाती है।
2. आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) के कार्यक्षेत्र क्या हैं?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) के कार्यक्षेत्र पारंपरिक अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं। यह पाठ्यक्रम विभिन्न आर्थिक शब्दों, संकेतों और अवधारणाओं की समझ को सुधारने में मदद करता है और विद्यार्थियों को विभिन्न आर्थिक विषयों पर स्पष्टता प्रदान करता है।
3. आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) को कैसे तैयार करें?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) को तैयार करने के लिए आपको प्राथमिकताएं और प्रश्नों के प्रकार समझने की आवश्यकता होती है। आप विभिन्न संदर्भ पुस्तकों, अध्ययन सामग्री और इंटरनेट से सहायता ले सकते हैं। आपको परीक्षा के पैटर्न को समझने के बाद, आपको निर्धारित समय सीमा के भीतर अभ्यास करना चाहिए।
4. आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) की परीक्षा के लिए कौन सी तैयारी सामग्री उपलब्ध है?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) की परीक्षा की तैयारी के लिए विभिन्न प्रकाशनों द्वारा बनाई गई तैयारी सामग्री उपलब्ध है। कुछ लोकप्रिय पुस्तकों के नाम हैं "आर्थिक शब्दावली" द्वारा रामेश्वर प्रसाद, "आर्थिक शब्दसागर" द्वारा श्रीकांत काले, और "आर्थिक शब्दावली का सारांश" द्वारा जगदीश भाटिया। इन पुस्तकों का उपयोग करके आप अपनी तैयारी को संपूर्ण कर सकते हैं।
5. आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) की परीक्षा के लिए कौन से तरीके अध्ययन करने चाहिए?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली (भाग- 3) की परीक्षा की तैयारी के लिए आपको प्राथमिकताएं और प्रश्नों के प्रकार समझने की आवश्यकता होती है। आपको आर्थिक समीक्षा, आर्थिक संगणना, आर्थिक नीति, वित्तीय प्रबंधन और अन्य आर्थिक विषयों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आप अध्ययन सामग्री, प्रश्नों का अभ्यास करके और मॉक टेस्ट देकर अपनी तैयारी को मजबूत कर सकते हैं।
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