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पठन सामग्री और व्याख्या - वाख, क्षितिज | Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij) PDF Download

(1)

रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव
 जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार,
 पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे,
 जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने नाव की तुलना अपने जिंदगी से करते हुए कहा है की वे इसे कच्ची डोरी यानी साँसों द्वारा चला रही हैं। वह इस इंतज़ार में अपनी जिंदगी काट रहीं हैं की कभी प्रभु उनकी पुकार सुन उन्हें इस जिंदगी से पार करेंगे। उन्होंने अपने शरीर की तुलना मिट्टी के कच्चे ढांचे से करते हुए कहा की उसे नित्य पानी टपक रहा है यानी प्रत्येक दिन उनकी उम्र काम होती जा रही है। उनके प्रभु-मिलन के लिए किये गए सारे प्रयास व्यर्थ होते जा रहे हैं, उनकी मिलने की व्याकुलता बढ़ती जा रही है। असफलता प्राप्त होने से उनको गिलानी हो रही है, उन्हें प्रभु की शरण में जाने की चाहत घेरे हुई है।

(2)

खा खा कर कुछ पाएगा नहीं,
 न खाकर बनेगा अहंकारी,
 सम खा तभी होगा समभावी,
 खुलेगी साँकल बन्द द्वार की।

व्याख्या - इन पंक्तियों में कवियत्री ने जीवन में संतुलनता की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है की केवल भोग-उपभोग में लिप्त रहने से कुछ किसी को कुछ हासिल नही होगा, वह दिन-प्रतिदिन स्वार्थी बनता जाएगा। जिस दिन उसने स्वार्थ का त्याग कर त्यागी बन गया तो वह अहंकारी बन जाएगा जिस कारण उसका विनाश हो जाएगा। अगले पंक्तियों में कवियत्री ने संतुलन पे जोर डालते हुए कहा है की न तो व्यक्ति को ज्यादा भोग करना चाहिए ना ही त्याग, दोनों को बराबर मात्रा में रखना चाहिए जिससे समभाव उत्पन्न होगा। इस कारण हमारे हृदय में उदारता आएगी और हम अपने-पराये से उठकर अपने हृदय का द्वार समस्त संसार के लिए खोलेंगे।

(3)

आई सीधी राह से ,गई न सीधी राह,
 सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
 ज़ेब टटोली कौड़ी ना पाई
 माँझी को दूँ क्या उतराई ।

व्याख्या - इन पंक्तियों में कवियत्री ने अपने पश्चाताप को उजागर किया है। अपने द्वारा पमात्मा से मिलान के लिए सामान्य भक्ति मार्ग को ना अपनाकर  हठयोग का सहारा लिया। अर्थात् उसने भक्ति रुपी सीढ़ी को ना चढ़कर कुण्डलिनी योग को जागृत कर परमात्मा और अपने बीच सीधे तौर पर सेतु बनाना चाहती थी । परन्तु वह अपने इस प्रयास में लगातार असफल होती रही और साथ में आयु भी बढती गयी । जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उसकी जीवन की संध्या नजदीक आ गयी थी अर्थात् उसकी मृत्यु करीब थी । जब उसने अपने जिंदगी का लेख जोखा कि तो पाया कि वह बहुत दरिद्र है और उसने अपने जीवन में कुछ सफलता नहीं पाया या कोई पुण्य कर्म नहीं किया और अब उसके पास कुछ करने का समय भी नहीं है । अब तो उसे परमात्मा से मिलान हेतु भक्ति भवसागर के पार ही जाना होगा । पार पाने के लिए परमात्मा जब उससे पार उतराई के रूप में उसके पुण्य कर्म मांगेगे तो वह ईश्वर को क्या मुँह दिखाएगी और उन्हें क्या देगी क्योंकि उसने तो अपनी पूरी जिंदगी ही हठयोग में बिता दिया । उसने अपनी जिंदगी में ना कोई पुण्य कर्म कमाया  और ना ही कोई उदारता दिखाई । अब कवियित्री अपने इस अवस्था पर पूर्ण पछतावा हो रहा है पर इससे अब कोई मोल नहीं क्योकि जो समय एक बार चला जाता है वो वापिस नहीं आता । अब पछतावा के अलावा वह कुछ नहीं कर सकती।

(4)

थल थल में बसता है शिव ही
 भेद न कर क्या हिन्दू मुसलमाँ,
 ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
 यही है साहिब से पहचान ।

व्याख्या - इन पंक्तियों में कवियत्री ने बताया है की ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, वह सबके हृदय के अंदर मौजूद है। इसलिए हमें किसी व्यक्ति से हिन्दू-मुसलमान जानकार भेदभाव नही करना चाहिए। अगर कोई ज्ञानी तो उसे स्वंय के अंदर झांककर अपने आप को जानना चाहिए, यही ईश्वर से मिलने का एकमात्र साधन है।

कवि परिचय

ललद्यद - कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत - कवियत्री ललद्यद का जन्म सन 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी मौजूद नही है। इनका देहांत सन 1391 में हुआ। इनकी काव्य शैली को वाख कहा जाता है।

कठिन शब्दों का अर्थ

  • वाख - चार पंक्तियों में लिखी गयी कश्मीरी शैली की एक गाए जाने वाली रचना है।
  • कच्चे सकोरे - स्वाभाविक रूप से कमजोर
  • रस्सी कच्चे धागे की - कमजोर और नाशवान सहारे
  • सम - अंतः करण तथा बाह्य इन्द्रियों का निग्रह
  • समभावी - समानता की भावना।
  • सुषुम-सेतु - सुषम्ना नाड़ी रूपी पुल
  • जेब टटोली - आत्मलोचन किया।
  • कौड़ी न पाई - कुछ प्राप्त नही हुआ
  • माझी - नाविक
  • उतराई - सद्कर्म रूपी मेहनताना।
  • थल-थल - सर्वत्र
  • शिव - ईश्वर
  • साहिब - स्वामी
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FAQs on पठन सामग्री और व्याख्या - वाख, क्षितिज - Class 9 Hindi (Kritika and Kshitij)

1. What is the meaning of the term "Vakh" in the context of the Kshitij textbook?
Ans. "Vakh" is a Kashmiri term that refers to a poetic composition that expresses deep spiritual and philosophical thoughts. In the Kshitij textbook, the term is used to refer to the poetry of Lal Ded, a 14th-century mystic poetess from Kashmir.
2. Who was Lal Ded and what was her contribution to Kashmiri literature?
Ans. Lal Ded, also known as Lalla Arifa or Lalleshwari, was a 14th-century mystic poetess from Kashmir. She is considered one of the most important figures in Kashmiri literature, as she composed beautiful poetry in Kashmiri language that expressed deep spiritual and philosophical thoughts. Lal Ded's poetry is characterized by her emphasis on the importance of self-realization and the unity of all beings.
3. What is the significance of the poem "All is Immersed in the Divine Essence" in the Kshitij textbook?
Ans. The poem "All is Immersed in the Divine Essence" is one of the most famous compositions of Lal Ded, and it expresses her belief in the unity of all beings and the oneness of the divine. The poem is significant in the Kshitij textbook because it introduces students to the poetry of Lal Ded and to the rich literary heritage of Kashmir.
4. How does the poetry of Lal Ded reflect the culture and traditions of Kashmir?
Ans. The poetry of Lal Ded reflects the rich cultural and spiritual traditions of Kashmir, as it is deeply rooted in the Sufi and Hindu traditions of the region. Her poetry celebrates the beauty of nature, the importance of self-realization, and the unity of all beings. Lal Ded's poetry is also significant for its use of the Kashmiri language, which is an important part of the cultural heritage of the region.
5. What is the significance of studying the poetry of Lal Ded in the Kshitij textbook?
Ans. The study of the poetry of Lal Ded is significant for several reasons. First, it introduces students to the rich literary heritage of Kashmir and to the Kashmiri language, which is an important part of the cultural identity of the region. Second, Lal Ded's poetry promotes the importance of self-realization and the unity of all beings, which are important values for students to learn. Finally, the study of Lal Ded's poetry provides students with a deeper understanding of the spiritual and philosophical traditions of India.
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