Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)  >  पठन सामग्री और सार - पाठ 3 - आत्मकथ्य, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10

पठन सामग्री और सार - पाठ 3 - आत्मकथ्य, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij) PDF Download

भावार्थ :

मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

अर्थ – इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्तियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनित जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है। इस माध्यम से कवि कह रहे हैं की इस संसार में हर कुछ चंचल है, कुछ भी स्थिर नही है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के मज़ाक बनाने में लगे हैं, हर किसी को दूसरे में कमी नजर आती है। अपनी कमी कोई नही कहता, यह जानते हुए भी तुम मेरी आत्मकथा जानना चाहते हो। कवि कहता है कि यदि वह उन पर बीती हुई कहानी वह सुनाते हैं तो लोगों को उससे आनंद तो मिलेगा, परन्तु साथ ही वे यह भी देखेंगे की कवि का जीवन सुख और प्रसन्नता से बिलकुल ही खाली है।

भावार्थ :

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्‍ज्‍वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्‍वप्‍न देकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्‍या कर जो भाग गया।

अर्थ – कवि कहते हैं कि उनका जीवन स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमज़ोरियों का बखान कर जगहँसाई नही करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि के जीवन में भी पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएँ महज मिथ्या बनकर रह गयी चूँकि वह सुख का स्पर्श पाते-पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।

भावार्थ :

जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्‍मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्‍यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़े कथाएँ आज कहूँ?
क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्‍या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्‍मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्‍यथा।

अर्थ – इन पंक्तियों में कवि अपने सुन्दर सपनों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उनके जीवन में कुछ सुखद पल आये जिनके सहारे वे वर्तमान जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने प्रेम के अनगनित सपने संजोये थे परन्तु वे सपने मात्र रह गए, वास्तविक जीवन में उन्हें कुछ ना मिल सका। कवि अपने प्रेयसी के सुन्दर लाल गालों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मानो भोर अपनी लाली उनकी प्रेयसी के गालों की लाली से प्राप्त करती है परन्तु अब ऐसे रूपसी की छवि अब उनका सहारा बनकर रह गयी है क्योंकि वास्तविक जीवन वे क्षण कवि को मिलने से पहले ही छिटक कर दूर चले गए। इसलिए कवि कहते हैं कि मेरे जीवन की कथा को जानकर तुम क्या करोगे, अपने जीवन को वे छोटा समझ कर अपनी कहानी नही सुनाना चाहते। इसमें कवि की सादगी और विनय का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। वे दूसरों के जीवन की कथाओं को सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी उनके जीवन की कहानी सुनाने का वक़्त नही आया है। मेरे अतीतों को मत कुरेदो, उन्हें मौन रहने दो।

कवि परिचय

जयशंकर प्रसाद

इनका जन्म सन 1889 में वाराणसी में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज में वे पढ़ने गए परन्तु स्थितियां अनुकूल ना होने के कारण आँठवी से आगे नही पढ़ पाए। बाद में घर पर ही संस्कृत, हिंदी, फारसी का अध्ययन किया। छायावादी काव्य प्रवृति के प्रमुख कवियों में ये एक थे। इनकी मृत्यु सन  1937 में हुई।

प्रमुख कार्य

काव्य-कृतियाँ – चित्राधार, कानन-कुसुम, झरना, आंसू, लहर, और कामायनी।
नाटक – अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
उपन्यास – कंकाल, तितली और इरावती।
कहानी संग्रह – आकाशदीप, आंधी और इंद्रजाल।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. मधुप – मन रूपी भौंरा
  2. अनंत नीलिमा – अंतहीन विस्तार
  3. व्यंग्य मलिन – खराब ढंग से निंदा करना
  4. गागर-रीती – खाली घड़ा
  5. प्रवंचना – धोखा
  6. मुसक्या कर – मुस्कुरा कर
  7. अरुण-कोपल – लाल गाल
  8. अनुरागिनी उषा – प्रेम भरी भोर
  9. स्मृति पाथेय – स्मृति रूपी सम्बल
  10. पन्था – रास्ता
  11. कंथा – अंतर्मन
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FAQs on पठन सामग्री और सार - पाठ 3 - आत्मकथ्य, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Hindi Class 10 (Kritika and Kshitij)

1. आत्मकथ्य क्या होता है?
उत्तर: आत्मकथ्य एक आत्मीय कथा होती है जो किसी व्यक्ति द्वारा खुद के जीवन का वर्णन करती है। इसमें व्यक्ति अपने जीवन के महत्वपूर्ण पल, अनुभव, और संघर्षों के बारे में बताता है।
2. 'आत्मकथ्य' के पाठ में किस विषय पर चर्चा की गई है?
उत्तर: 'आत्मकथ्य' के पाठ में व्यक्ति के व्यक्तित्व, उसके जीवन के महत्वपूर्ण पल, उसके अनुभव, और संघर्षों पर चर्चा की गई है।
3. आत्मकथ्य के पाठ में कौन सा लेखक अपने जीवन को वर्णित कर रहा है?
उत्तर: आत्मकथ्य के पाठ में लेखक मुक्तिबोध वर्णित कर रहे हैं जो अपने जीवन के संघर्षों, सफलताओं, और अनुभवों का वर्णन कर रहे हैं।
4. आत्मकथ्य क्यों महत्वपूर्ण होता है?
उत्तर: आत्मकथ्य महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसके माध्यम से हम अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों, संघर्षों, और अनुभवों को समझ सकते हैं। यह हमें सामान्य मानवीय अनुभवों से जोड़ता है और हमें अपने आप को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।
5. आत्मकथ्य के पाठ में कौन सा भाव व्यक्त किया गया है?
उत्तर: आत्मकथ्य के पाठ में मुक्तिबोध ने आत्मविश्वास, संघर्ष की भावना, और सफलता की प्राप्ति के लिए प्रेरित करने वाला भाव व्यक्त किया है।
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