Table of contents |
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कवि परिचय |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म 19 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ जिले में मजमां गाँव में हुआ। ये आगे चलकर कैफ़ी आज़मी के रूप में मशहूर हुए। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। इनकी कविताओं में एक ओर सामाजिक और राजनितिक जागरूकता का समावेश है तो दूसरी ओर हृदय कोमलता भी है। उन्होंने 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कहा।
प्रस्तुत कविता में देश के सैनिकों की भावनाओं का वर्णन है। सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने से पीछे नहीं हटेगा। फिर चाहे उसे अपनी जान से ही हाथ क्यों ना गवांना पड़े। भारत – चीन युद्ध के दौरान सैनिकों को गोलियाँ लगने के कारण उनकी साँसें रुकने वाली थी ,ठण्ड के कारण उनकी नाड़ियों में खून जम रहा था परन्तु उन्होंने किसी चीज़ की परवाह न करते हुए दुश्मनों का बहादुरी से मुकाबला किया और दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया।
सैनिक गर्व से कहते हैं कि सैनिक गर्व से कहते हैं कि यदि हमें अपना सिर भी कटवाना पड़े, तो हम खुशी-खुशी कटवा देंगे पर हमारे गौरव के प्रतीक हिमालय को कभी नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। लेकिन देश के लिए प्राणों की आहुति देने की खुशी कुछ ही लोगों को मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नहीं खोना चाहते।
जिस तरह से दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है उसी तरह सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दे कर धरती को खून से लाल कर दिया है सैनिक कहते हैं कि हम देश के लिए बलिदान दे रहे हैं, लेकिन हमारे बाद भी यह सिलसिला चलता रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल जैसा मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए बढ़े, तो उसे तोड़ दो।अपने वतन की रक्षा के लिए तुम राम हो और लक्ष्मण भी तुम हो अब इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है।
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
व्याख्या: कवि कहते हैं कि सैनिक अपने आखिरी सन्देश में कह रहें है कि वो अपने प्राणों को देश हित के लिए न्योछावर कर रहें है ,अब यह देश हम जाते जाते आप देशवासियों को सौंप रहें हैं। सैनिक उस दृश्य का वर्णन कर रहें है जब दुश्मनों ने देश पर हमला किया था। सैनिक कहते है कि जब हमारी साँसे हमारा साथ नहीं दे रही थी और हमारी नाड़ियों में खून जमता जा रहा ,फिर भी हमने अपने बढ़ते कदमों को जारी रखा अर्थात दुश्मनों को पीछे धकेलते हुए आगे बढ़ते गए। सैनिक गर्व से कहते हैं कि हमें अपने सर भी कटवाने पड़े तो हम ख़ुशी ख़ुशी कटवा देंगे पर हमारे गौरव के प्रतीक हिमालय को नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। हम मरते दम तक वीरता से दुश्मनों का मुकाबला करते रहे हैं, अब इस देश की रक्षा का भार आप देशवासियों को सौंप रहे हैं।
ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
व्याख्या: सैनिक कहते हैं कि हमारे पूरे जीवन में हमें जिन्दा रहने के कई अवसर मिलते हैं लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी कभी कभी किसी किसी को ही मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नहीं खोना चाहते। सैनिक देश के नौजवानों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि सुंदरता और प्रेम का त्याग करना सीखो क्योंकि वो सुंदरता और प्रेम क्या, जवानी ही क्या, जो देश के लिए अपना खून न बहा सके। सैनिक देश की धरती को दुल्हन जैसा मानते हैं और कहते हैं कि जिस तरह दुल्हन को स्वयंवर में हासिल करने के लिए राजा किसी भी मुश्किल को पार कर जाते थे उसी तरह तुम भी अपनी इस दुल्हन को दुश्मनों से बचा कर रखना। क्योंकि अब हम देश की रक्षा का दायित्व आप देशवासियों पर छोड़कर जा रहे हैं।
राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
व्याख्या: सैनिक कहते हैं कि हम देश के लिए बलिदान दे रहे हैं, परंतु हमारे बाद भी यह सिलसिला जारी रहना चाहिए। जब भी जरूरत हो, तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। जीत की ख़ुशी तो देश पर प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी के बाद दोगुनी हो जाती है। उस स्थिति में ऐसा लगता है मानो जिंदगी मौत से गले मिल रही हो। अब यह देश आप देशवासियों को सौंप रहे हैं अब आप अपने सर पर मौत की चुनरी बाँध लो अर्थात अब आप देश की रक्षा के लिए तैयार हो जाओ।
खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
व्याख्या: सैनिक कहते हैं कि अपने खून से लक्ष्मण रेखा जैसी रेखा तुम भी खींच लो और ये तय कर लो कि उस रेखा को पार करके कोई रावण रूपी दुश्मन इस पार न आ पाए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए बढ़े, तो उसे तोड़ दो। अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम हो और तुम ही लक्ष्मण हो ।अब इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है।
इस कविता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने देश से सच्चा प्यार करना चाहिए और देश की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। सैनिक हमें सिखाते हैं कि देश की सेवा सबसे बड़ा धर्म है, और इसके लिए अपना जीवन तक कुर्बान करना गौरव की बात होती है। वे अपने प्राणों की आहुति देकर हमें देश की रक्षा का दायित्व सौंपते हैं। कविता हमें प्रेरणा देती है कि हम भी एकजुट होकर अपने देश की रक्षा करें, जैसे राम और लक्ष्मण ने किया था। जब भी देश को ज़रूरत हो, हमें बिना डरे आगे आना चाहिए और अपने देश के सम्मान की रक्षा करनी चाहिए।
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